Thursday, October 24, 2019

धनतेरस और आर्थिक स्थिति Dhanteras and economic condition

धनतेरस पर इस उपाय से जान जाएंगे अपनी आर्थिक स्थिति का हाल
dhanateras par is upaay se aapakee aarthik sthiti ka haal pata chalega

दीपावली पर्व पर नतेरस के दिन खरीदारी करना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन लोग सोना, चांदी, पीतल के बरतन आदि की खरीद करते हैं। लोगों की आस्था है कि इस दिन खरीदारी करने से साल भर आर्थिक स्थिति अच्छी बनी रहती है और पैसों को लेकर संकट की स्थिति उत्पन्न नहीं होती है।
इसी कारण से हर साल धनतेरस के मौके पर हर घर में कुछ ना कुछ खरीदने कि परंपरा है। लेकिन अक्सर ऐसा भी होता है कि धनतेरस के मौके पर खरीदारी के बावजूद आपको पूरे साल धन से जुड़ी परेशानियां उठानी पड़ती है। तो आज एक ऐसे आसान उपाय के द्वारा हम अनुमान लगा सकते हैं कि वर्ष भर हमारी आर्थिक स्थिति कैसी रह सकती है?
धनतेरस के दिन आपको एक आसान सा उपाय करना है और इससे आप आने वाले समय में अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में जान सकते हैं।

आप धनतेरस के दिन साबुत धनिया खरीद कर ले आएं। इसे आप संभालकर अपने पूजा घर में रख दें।
इस धनिया को आप दिवाली के दिन माता लक्ष्मी के सामने रखकर पूजा करें। अगले दिन आप इस धनिया को सुबह के समय गमले या फिर घर के बगीचे में बिखेर दें।
ऐसा माना जाता है कि साबुत धनिया से यदि हरा भरा पौधा उग जाता है तो आने वाले समय में आपकी आर्थिक स्थित बढ़िया रहेगी।
यदि धनिया का पौधा हरा लेकिन थोडा कमजोर है तो पैसों को लेकर आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। पीला और बीमार पौधा या फिर पौधा ना उगना संकेत देता है कि आपको धन संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

समृद्धि और खुशहाली के लिए अपना सकते हैं ये उपाय
ऐसा कहा जाता है कि धनतेरस के दिन जो कार्य  किया जाता है उसका लाभ 13 गुना बढ़कर व्यक्ति को मिलता है। इस दिन 13 अंक बेहद शुभ माना जाता है। आप इस पावन दिन पर घर के अंदर 13 दिए और घर की दहलीज और बाहर की तरफ 13 दिए जलाएं।आपकी दीपावली जगमग होगी।

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अष्ट स्वरूपा महालक्ष्मी Ashta Swaroopa Mahalakshmi



धनतेरस 2019 Dhanteras 2019 की खरीदारी क्या लाएं घर पर?

धनतेरस 2019 Dhanteras 2019
इस धनतेरस शुभ समृद्धि  और लाभ  के लिए इन चीजों में से कोई तीन चीजें जरूर लाएं घर पर
हम सभी लोग अपने घर में धनतेरस के पर्व पर कुछ न कुछ सामान जरूर खरीद कर लाते हैं।
बहुत सारी घर की आवश्यकता की वस्तुएं हम धनतेरस पर लाने  को पहले से ही निश्चित करते हैं। परन्तु इसके बाद भी अक्सर हम निश्चित नहीं हो पाते कि वास्तव में धनतेरस पर क्या लाएं।
आइए जानते हैं धनतेरस पर लाने वाली कुछ प्रमुख वस्तुओं के बारे में, जिनके द्वारा हमे समृद्धि भी प्राप्त होती है और हमारापर्व भी हो जाता है।
धनतेरस पर खरीदारी करते समय कुछ चीजों को याद रखना अतिआवश्यक है। आइए जानते हैं, क्या हैं वो  चीजें, जिनके साथ माता लक्ष्मी का हमारे घर में होता है प्रवेश...
धनिया
धनतेरस के दिन साबुत धनिया खरीद कर लाएं और लक्ष्मी पूजा के समय इसकी भी पूजा करें। दीपावली पूजन के बाद घर के आंगन या गमलों में इसे डाल दें क्योंकि यह धनदायक माना जाता है।
गणेश लक्ष्मी की मूर्ति
गणेश लक्ष्मी की मूर्तियों को धनतेरस के दिन घर लाने से घर में धन संपत्ति बनी रहती है।
सोना-चांदी
धनतेरस के दिन सोना चांदी और धातु का सामान खरीदने से घर में सदैव लक्ष्मी बनी रहती हैं।
गूंजा
धनतेरस के दिन घर में गूंजा लाने से धनप्राप्ति के द्वार खुल जाते हैं। लक्ष्मी पूजन के समय भी इसे पूजा में रखा जाता है।
कौड़ी
कौड़ी को घर में रखने से उस घर में कभी भी धन की कमी नहीं रहती है। पूजन के बाद इन कौड़ियों को लाल कपड़े में बांध कर तिजोरी या धन वाले स्थान पर रखने से धन की कमी कभी नहीं होती है।
शंख
शंख को घर में लाने से घर में लक्ष्मी जी का आगमन होता है।
झाड़ू
झाड़ू से नकारात्मक शक्तियां घर से बाहर जाएंगी और साफ सुथरे घर में माता लक्ष्मी का आगमन होगा।
नमक
इस दिन नमक खरीद कर लाने से साल भर धन का अभाव नहीं होता और सुख समृद्धि घर में ही टिकी रहती है।

श्रीयंत्र
लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए स्फटिक का श्रीयंत्र घर लाएं और पूजा के बाद इस श्रीयंत्र को केसरिया कपड़े में बांधकर तिजोरी या धन स्थान पर रख दें, इससे सदा वहां बरकत बनी रहेगी।

चाँदी का हाथी

व्यापार और आत्मविश्वास को बढ़ाने में चाँदी का हाथी महत्वपूर्ण योगदान देता है।

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दीपावली पूजन मुहूर्त 2019 Deepawali Pujan Muhurta 2019

         दीपावली पूजन मुहूर्त 2019
Deepawali Pujan Muhurta 2019


आओ माता लक्ष्मी,
गणपति ऋद्धि सिद्धि दातार।
आन विराजो काज में,
कर दो मम उद्धार।।

27 अक्टूबर 2019 कार्तिक कृष्ण अमावस्या रविवार में श्री महालक्ष्मी पूजन दीपावली पर्व मनाया जाएगा।इस दिन चतुर्दशी तिथि दिन में 12:22 तक  रहेगी,तत्पश्चात अमावस्या आ जाएगी।इसलिए दीपावली पर्व चतुर्दशी में मनाया जाएगा।
रविवार दीपावली के दिन चित्रा नक्षत्र 03:16 मिनट तक और विष्कुम्भ योग 22:09 मिनट तक रहेगा।
पद्म नामक सुयोग में इस वर्ष लक्ष्मी पूजन बहुत अच्छा माना जाएगा।
चित्रा नक्षत्र-मृदु मैत्र संज्ञक होने से सभी तरह के कामकाज,उद्योग धन्धे वालो के लिए शुभ कहा जाएगा।
दीपावली पर्व लक्ष्मी जी की उत्पत्ति तिथि होने से सभी तरह के काम धन्धे वालों के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है।

दीपावली पूजन का शुभ मुहूर्तAuspicious time for Deepawali worship


● मध्यान्ह 12:27 मिनट से मकर लग्न कार्य विशेष के लिए उत्तम रहेगी,जिसमे शुभ का चौघड़िया मुहूर्त कार्य सिद्धिप्रद लाभदायक रहेगा।

● दिन में 02:10 मिनट से कुम्भ लग्न 03:38 तक रहेगी,जो अपने स्वामी से दृष्ट होकर अत्यंत शुभफलदायी है।इसमें दीपावली पूजन, कुबेरभण्डारी पूजन, बही-बसना पूजन श्रेष्ठ माना जाएगा।

● मीन मेष लग्न-दोपहर बाद 03:35 से सायं 06:35 तक रहने वाली मीन मेष लग्नें अपने स्वामी से दृष्ट अत्यंत शुभ हैं।

● मेष गोधूलि लग्न कही जाएगी - धेनुधूरि वेला लगन सकल सुमंगल मूल।।
मेष लग्न प्रदोष काल में भी रहेगी।दीपावली पूजन के लिए उत्तम कही जाएगी।

● रात्रिवेला में शुभ,अमृत,और चर के तीन चौघड़िया मुहूर्त सायं 05:35 से रात 10:28 मिनट तक रहेंगे और ये तीनो ही मुहूर्त श्रेष्ठ कहे जाएंगे।

● वृष लग्न सायं 06:39 से प्रारम्भ होगी,जिसमें प्रदोष काल आ जाएगा।लग्न पर शुभ ग्रह  गुरु और बुध की दृष्टि शुभ फलप्रद मानी जाएगी।

● कर्क लग्न रात 10:48 से 01:08 तक रहेगी।इसी में निशीथ काल आ जाएगा।इसके बाद सिंह लग्न आ जाएगी।
यह समय सर्वोत्तम होगा क्योंकि निशीथ काल मे समुद्र मन्थन के समय श्री महालक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ था।इसलिए निशीथ को सभी  आचार्य श्रेष्ठ मानते हैं।

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Wednesday, October 23, 2019

दीपावली पूजन की विशेष विधि Special method of Deepawali worship


कलियुग में माता महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए एक चमत्कारी उपाय
A miraculous way to get the blessings of Mother Mahalakshmi in Kali Yuga

प्रस्तुत लेख पिछले गायत्री संग्रह नामक शीर्षक में दिया है,उसी का कुछ परिष्कृत अंश प्रस्तुत है।

दीपावली पर्व पर महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए तथा अपने को ऊर्जावान बनाये रखने और जीवन की विभिन्न समस्याओं के निवारण हेतु हम इसका प्रयोग कर सकते है।
दीपावली में मुख्य रूप से गणेश और लक्ष्मी जी का पूजन होता है,इनकी सोना,चाँदी या पीतल की मूर्तियाँ स्थापित करे।साथ ही हनुमान और कुबेरादि का पूजन किया जाता है।अभाव में माटी की मूर्तियाँ रख सकते हैं।

● हनुमान जी असीमित शक्तियों के स्वामी होते हुए भी हमेशा सेवक धर्म का पालन करते रहे अतः इनका पूजन करने से हमारे अन्दर अहंकार की भावना नही आती है,और हम सफलता की नित नई सीढ़ियां चढ़ते जाते हैं।

● गणेश जी इनके बड़े-बड़े कान और उदर में सब समाहित हो जाता है,अपनी सूंड़ से ये स्थिति को पहले से ही भाँप लेते हैं।और इनका वाहन चूहा छोटी से छोटी और गंदी जगहों  में  भी चला जाता है।अर्थात् व्यापारी को हमेशा बड़े कान और पेट वाला होना चाहिए, ताकि वो सबकी सुन सके और ग्राहक उससे संतुष्ट हो।साथ ही अवसर को वो दूर से ही भाँप ले।
और छोटी और साधारण जगहों से भी वो व्यापारिक लाभ ले सकें।


● लक्ष्मी जी अर्थात् लक्ष्य में लगा हो मन जिसका उसी के पास ये आती हैं।
● कुबेर अर्थात् स्थायित्व।लक्ष्मी किसी के पास रुकती नही हैं, उन्हें स्थिर रखने के लिए कुबेर जी की शरण मे जाना पड़ता है।
● और अन्त में संजीवनी अर्थात् स्वास्थ्य की रक्षा तभी हम जीवन के सारे सुखों का रसास्वादन कर पाएंगे।

     ।।दीपावली पूजन की विशेष विधि ।।

Special method of Deepawali worship


सबसे पहले नवग्रह गायत्री का पाठ कर  ले।(देखें गायत्री संग्रह)
दीपावली पूजन:- पांच दियाली रखे।और पांचो में कपूर और एक-एक जोड़ा फूलवाली लौंग रखें।

● पहली दियाली का कपूर जलाकर हनुमान गायत्री का पाठ करे।।कम से कम ग्यारह या एक सौ आठ बार।।

                      हनुमान गायत्री:-
ॐ रामदूताय च विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो हनुमत् प्रचोदयात्।।

● इसी तरह दूसरी दियाली का कपूर जलाकर गणेश गायत्री ग्यारह या एक सौ आठ बार पढ़ें।।

                     गणेश गायत्री:-
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ति:प्रचोदयात्।।

● तीसरी दियाली का कपूर जलाकर लक्ष्मी गायत्री का ग्यारह या एक सौ आठ बार पाठ करें।

                 लक्ष्मी गायत्री:-
ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात्।।

● चौथी दियाली का कपूर जलाकर कुबेर गायत्री का ग्यारह या एक सौ आठ बार पाठ करें।।

                  कुबेर गायत्री:-
ॐ यक्षराजाय विद्महे वैश्रवणाय धीमहि तन्नो कुबेर:प्रचोदयात्।।

●  और पांचवी  दियाली का कपूर जलाकर सञ्जीवनी  महामृत्युंजय का कम से कम ग्यारह या एक सौ आठ बार पाठ करे।
             सञ्जीवनी  महामृत्युंजय:-

ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं त्रयंम्बकंयजामहे भर्गोदेवस्य धीमहि सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम् धियो यो नः प्रचोदयात् ऊर्वारूकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।

दियाली परिवार का हर व्यक्ति अलग-अलग या मिलकर भी जला सकते है।
नोट:- लौंग देवी देवताओं का भोजन है, और कपूर हमारे घर के वास्तु दोषों का नाश कर देता है।

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Monday, October 21, 2019

आयु - वय - प्रमाण Age proof

         आयु  - वय - प्रमाण Age proof


जानते हैं कि आयु के अनुसार हमारे शास्त्रों में मनुष्य की कितनी अवस्थाएं होती हैं और उन्हें किन-किन नामों से जाना जाता है?
We know that according to age, how many stages of human beings are there in our scriptures and by what names are they known?

1-शून्य से एक वर्ष तक नवजात,शिशु, शैशवावस्था।

2-एक वर्ष से पाँच वर्ष पर्यन्त शिशु निर्मल - बाल कालांश।

3-पाँच वर्ष से बारह वर्ष तक बाल्यावस्था, श्रीयोगवृद्धिकाल।

4-बारह से अट्ठारह वर्ष तक श्री यौवनारम्भ शुभकालांश:।

5-अट्ठारह से तीस वर्ष तक श्री युवावस्था कर्मकाल।

6-तीस से पैतालिस वर्ष तक मध्यावस्था,सुखदकालांश:।

7-पैतालिस से साठ वर्ष तक प्रौढ़ावस्था, समकालांश:।

8-साठ वर्ष उपरान्त वृद्धावस्था,वानप्रस्थ कालांश: एवं श्रीहरि संकीर्तन शुद्ध दिनचर्या-रात्रिचर्या।

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Sunday, October 20, 2019

अहोई अष्‍टमी Ahoi Ashtami 2019

        अहोई अष्‍टमी Ahoi Ashtami


इस पर्व विशेष को करने से संतान की उन्नति और कल्याण भी होता है
यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी तिथि को रखा जाता है।
इस दिन महिलाएं संतान की उन्नति और कल्याण के लिए व्रत रखती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. इस दिन अहोई माता (पार्वती) की पूजा की जाती है। इस दिन किए उपाय आपकी हर मुश्किल दूर कर सकते है। इस दिन महिलाएं व्रत रखकर अपने संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं।
जिन लोगों को संतान नहीं हो पा रही हो उनके लिए ये व्रत विशेष है। इस दिन विशेष उपाय करने से संतान की उन्नति और कल्याण भी होता है।इस बार अहोई अष्टमी 21 अक्टूबर सोमवार को है।

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व
Importance of Ahoi Ashtami Vrat


● अहोई अष्टमी व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है।
● इस दिन  माता पार्वती (अहोई) की पूजा की जाती है।
● इस दिन महिलाएं व्रत रखकर अपने संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं।
● जिन लोगों को संतान नहीं हो पा रही हो उनके लिए ये व्रत विशेष है।
● जिनकी संतान दीर्घायु न होती हो , या गर्भ में ही नष्ट हो जाती हो , उनके लिए भी ये व्रत शुभकारी होता है।
● सामान्यतः इस दिन विशेष प्रयोग करने से संतान की उन्नति और कल्याण भी होता है।
● ये पर्व आयु और सौभाग्यकारक होता है।
● इस बार अहोई अष्टमी का व्रत 21 अक्टूबर को किया जाएगा।

कैसे रखें इस दिन उपवास ?

How to keep fast on this day?


● प्रातः स्नान करके अहोई की पूजा का संकल्प लें।
● अहोई माता की आकृति , गेरू या लाल रंग से दीवार पर बनायें।
● सूर्यास्त के बाद तारे निकलने पर पूजन आरम्भ करें।
● पूजा की सामग्री में एक चांदी या सफ़ेद धातु की अहोई ,चांदी की मोती की माला , जल से भरा हुआ कलश , दूध-भात, हलवा और पुष्प , दीप आदि रखें।
● पहले अहोई माता की , रोली , पुष्प,दीप से पूजा करें , उन्हें दूध भात अर्पित करें।
● फिर हाथ में गेंहू के सात दाने और कुछ दक्षिणा (बयाना) लेकर अहोई की कथा सुनें।
● कथा के बाद माला गले में पहन लें और गेंहू के दाने तथा बयाना सासु माँ को देकर उनका आशीर्वाद लें।
● अब चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करें।
●  चांदी की माला को दीवाली के दिन निकाले और जल के छींटे देकर सुरक्षित रख लें।

अहोई अष्टमी व्रत की विधि
Method of Ahoi Ashtami Vrat

व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान किया जाता है और पूजा के समय ही संकल्प लिया जाता है कि “हे अहोई माता, मैं अपने पुत्र की लम्बी आयु एवं सुखमय जीवन हेतु अहोई व्रत कर रही हूं। अहोई माता मेरे पुत्रों को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखें।” अनहोनी से बचाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए इस व्रत में माता पर्वती की पूजा की जाती है। अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवाल पर अहोई माता का चित्र बनाया जाता है और साथ ही स्याहु और उसके सात पुत्रों का चित्र भी निर्मित किया जाता है। माता जी के सामने चावल की कटोरी,  मूली, सिंघाड़े रखते हैं और सुबह दिया रखकर कहानी कही जाती है। कहानी कहते समय जो चावल हाथ में लिए जाते हैं, उन्हें साड़ी के दुप्पटे में बाँध लेते हैं। सुबह पूजा करते समय लोटे में पानी और उसके ऊपर करवे में पानी रखते हैं।  ध्यान रखें कि यह करवा, करवा चौथ में इस्तेमाल हुआ होना चाहिए। इस करवे का पानी दिवाली के दिन पूरे घर में भी छिड़का जाता है। संध्या काल में इन चित्रों की पूजा की जाती है। पके खाने में चौदह पूरी और आठ पूयों का भोग अहोई माता को लगाया जाता है। उस दिन बयाना निकाला जाता है। बायने में चौदह पूरी या मठरी या काजू होते हैं। लोटे का पानी शाम को चावल के साथ तारों को आर्ध किया जाता है।

अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे स्याहु कहते हैं। इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है।  पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें। पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं। पूजा के पश्चात अपनी सास के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करती है।

अहोई अष्टमी व्रत कथा
Ahoi Ashtami Vrat Katha

प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ हो ली। साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।

स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा ले। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।

सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं अचानक साहुकार की छोटी बहू की नज़र एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे के मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है।गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।
 वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है। अहोई का अर्थ एक प्रकार से यह भी होता है "अनहोनी से बचाना " जैसे साहुकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था।
साभार:-

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Thursday, October 17, 2019

ब्रह्म राक्षस एक परिचय Brahmarakshas an introduction


           ब्रह्म राक्षस एक परिचय Brahmarakshas an introduction


ब्रह्म राक्षस जिसका नाम सुनते ही मन में एक भयावह आकृति उत्पन्न हो जाती है,और  एक प्रकार का भय व्याप्त हो जाता है।कारण दुर्भाग्य वश यदि किसी का सामना इनसे होता है, तो उसका विनाश लगभग तय हो जाता है, ऐसा ही हम सुनते आए हैं।लेकिन वास्तव में इनका सामना किसी से हुआ है ऐसा अनुभव नही मिला तो चलिए जानते हैं ब्रह्मराक्षस के बारे में कुछ तथ्य:-
ब्रह्मा राक्षस वो होते है , जिनको ब्रह्म की शक्ति का ज्ञान तो होता है , पर उसको बुरे काम मे प्रयोग करते है ।ये आधे दैत्य और आधे देव होते हैं।

ब्रह्मराक्षस

हिन्दू धर्म में गति और कर्म के अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्माराक्षस, बेताल और क्षेत्रपाल. उक्त सभी के उपभाग भी होते हैं. आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं. भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है.

कौन होते हैं ब्रह्मराक्षस
Who are Brahmarakshas

ब्रह्माराक्षस उन आत्माओं को कहा जाता है जो उच्च जन्म लेकर अपने जीवन में बुरे काम करते है या अपनी उच्च ज्ञान का लाभ न उठाकर उन्हें गलत कामो में लगाते है. ऐसे लोगों को अपने जीवन के बाद अपने ज्ञान के कारण एक ब्रह्माराक्षस के रूप में भुगतना पड़ता है।

कैसे होते हैं ब्रह्माराक्षस

How are Brahmarakshas?


इस तरह के एक विद्वान को पृथ्वी पर बाध्य होकर अपने कर्तव्यों को करने या अच्छे छात्रों को ज्ञान प्रदान करने के रूप में प्रयोग लाया जाता है। जब कोई व्यक्ति ब्रह्माराक्षस बन जाता है तो ऐसा व्यक्ति बहुत ही शक्तिशाली बन जाता है।

खामोश
वह हमेशा खामोश रहकर अनुशासन में जीवन यापन करता है।इसे ही जिन्न कहते हैं। यह बहुत सारा खाना खाते हैं और घंटों तक एक जैसे ही अवस्था में बैठे या खड़े रहते हैं।
अक्सर इनका निवास पीपल के वृक्ष पर पाया जाता है, इसकी कुछ पहचान भी बताई गई हैचूँकि पीपल के वृक्ष पर बह्मदेव और ब्रह्मराक्षस दोनों का निवास बतलाया गया है, जो पीपल ऊपर से सूखा हो और नीचे हरा- भरा हो तो उस पर ब्रह्मराक्षस का निवास माना जाता है, और यदि पीपल का वृक्ष नीचे सूखा है और ऊपर हरा भरा है तो उस पर ब्रह्मदेव का निवास मन जाता हैइसी वृक्ष पर ये अपना निवास बना लेते हैं,और जनसामान्य के द्वारा प्रदत्त जल और भोगादि को ग्रहण कर उनकी इच्छाओं की पूर्ति करते रहते हैं।साथ ही अप्रसन्न होने पर उनको परेशान करते हैं।।
पीपल का वृक्ष यदि पूरा हरा-भरा है तो उस पर किसी किसी तरह की बाधा नही होती हैऐसे ही पीपल के वृक्ष का पूजन करना चाहिए

कौन हमें ब्रह्मराक्षस से मुक्त कर सकता है Who can liberate us from Brahmarakshas


प्राचीन ग्रंथों के अनुसार ये शक्तिशाली दानव आत्मा होती है जो इस दुनिया की बहुत शक्तियों की मालिक होती है और केवल कुछ लोग या कुछ राशि के लोग ही इनसे लड़ सकते हैं और उन्हें इस जीवन से मुक्ति दे सकते हैं।
यह ब्रह्मराक्षस अपने सीखने के उच्च स्तर को बनाए रखते है। लेकिन यह मनुष्य को खाते है। वे अपने पिछले जन्म की बातें, वेद और पुराणों का ज्ञान अपने साथ अपनी यादों में रखते है। दूसरे शब्दों में उनका आधा हिस्सा ब्राह्मण और आधा हिस्सा दानव का होता हैं।

ब्रह्मराक्षस की मुक्ति का उपायRemedy for liberation of Brahmarakshas


श्रीमद्भगवतगीता में ब्रह्मराक्षस कि मुक्ति का मार्ग भी बड़ा ही आसान बताया गया है जिस वृक्ष पर ब्रह्माराक्षस रहते थे, एक दिन उसके नीचे कोई पंडित गीता के श्लोकों का पाठ कर रहा था, ब्रह्माराक्षस ने सिर्फ गीता के श्लोक का आधा भाग गलती से सुन लिया और सुनने मात्र से ही उसकी मुक्ति हो गयी।
अर्थात् गीता पाठ से और ग्रहों की पंचतत्व क्रमानुसार गायत्री के जप, चिन्तन और मनन करने से ये मुक्त हो जाते हैं, और हमारे ऊपर इनकी अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव नही पड़ता है।

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Tuesday, October 15, 2019

Karwa Chauth Vrat 2019 करवा चौथ व्रत 2019


Karwa Chauth Vrat 2019करवा चौथ व्रत 2019


करवा चौथ का व्रत प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है
करवा चौथ का व्रत 17 अक्‍टूबर 2019  गुरुवार को है
इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं
व्रत के दिन चन्द्रमा को अर्घ्‍य देने की परंपरा है
करवा चौथ का व्रत अब एक उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा है।
यही कारण है कि पहले कुछ जगहों तक सीमित रहने वाला यह व्रत अब देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है।
यद्यपि हमारे धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए कई व्रत है लेकिन करवा चौथ व्रत का विशेष महत्व है।
इस दिन महिलाएं दिनभर व्रत(अन्न जल त्याग कर) रहकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। इस दिन पूरे विधि-विधान से माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने के बाद करवा चौथ की कथा (Karwa Chauth Katha) सुनी जाती है। फिर रात के समय चन्द्रमा को अर्घ्‍य देने के बाद ही यह व्रत संपन्‍न होता है. मान्‍यता है कि करवा चौथ का व्रत रखने से अखंड सौभाग्‍य का वरदान मिलता है।

करवा चौथ की तिथि और शुभ मुहूर्तKarwa Chauth's date and auspicious time


करवा चौथ की तिथि: 17 अक्‍टूबर 2019
चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 17 अक्‍टूबर 2019 (गुरुवार) को सुबह 05 बजकर 20 मिनट से
चतुर्थी तिथ‍ि समाप्‍त: 18 अक्‍टूबर 2019 को सुबह 05 बजकर 29 मिनट तक
करवा चौथ व्रत का समय: 17 अक्‍टूबर 2019 को सुबह 05 बजकर 27 मिनट से रात 08 बजकर 05 मिनट तक।
चन्द्रोदय सायं 07 बजकर 59 मिनट पर।

करवा चौथ की पूजन सामग्री  Worshiping materials of Karwa Chauth


करवा चौथ के व्रत से एक-दो दिन पहले ही सारी पूजन सामग्री को इकट्ठा करके घर के मंदिर में रख दें. पूजन सामग्री इस प्रकार है- मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्‍कन, पानी का लोटा, गंगाजल, दीपक, रूई, अगरबत्ती, चंदन, कुमकुम, रोली, अक्षत, फूल, कच्‍चा दूध, दही, देसी घी, शहद, चीनी,  हल्‍दी, चावल, मिठाई, चीनी का बूरा, मेहंदी, महावर, सिंदूर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ और दक्षिणा के पैसेआदि।

करवा चौथ व्रत की पूजा विधि
Worship method for Karwa Chauth Vrat


- करवा चौथ वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्‍नान कर लें।
- अब इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए व्रत का संकल्‍प लें- ''मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये''।
- सूर्योदय से पहले सरगी ग्रहण करें और फिर दिन भर निर्जला व्रत रखें.
- दीवार पर गेरू से फलक बनाएं और भीगे हुए चावलों को पीसकर घोल तैयार कर लें. इस घोल से फलक पर करवा का चित्र बनाएं. वैसे आजकल बनी-बनाई तैयार फोटो भी मिल जाती हैं. इन्‍हें वर कहा जाता है. चित्रित करने की कला को करवा धरना का जाता है।
- आठ पूरियों की अठावरी बनाएं. मीठे में हल्‍वा या खीर बनाएं और पकवान भी तैयार करें।
- अब पीली मिट्टी और गोबर की मदद से माता पार्वती की प्रतिमा बनाएं. अब इस प्रतिमा को लकड़ी के आसान पर बिठाकर मेहंदी, महावर, सिंदूर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी और बिछुआ अर्पित करें।
- जल से भर हुआ लोट रखें।
- करवा में गेहूं और ढक्‍कन में शक्‍कर का बूरा भर दें।
- रोली से करवा पर स्‍वास्तिक बनाएं.
- अब गौरी-गणेश और चित्रित करवा की पूजा करें.
- पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें- ''ऊॅ नम: शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥''
- करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।
- कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपने सभी बड़ों का आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।
- पानी का लोटा और 13 दाने गेहूं के अलग रख लें।
- चंद्रमा के निकलने के बाद छलनी की ओट से पति को देखें और चन्द्रमा को अर्घ्‍य दें।
- चंद्रमा को अर्घ्‍य देते वक्‍त पति की लंबी उम्र और जिंदगी भर आपका साथ बना रहे इसकी कामना करें।
- अब पति को प्रणाम कर उनसे आशीर्वाद लें और उनके हाथ से जल पीएं. अब पति के साथ बैठकर भोजन करें।

करवा चौथ व्रत की कथाStory of Karwa Chauth Vrat


पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी. सेठानी समेत उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा. इस पर बहन ने जवाब दिया- "भाई! अभी चांद नहीं निकला है, उसके निकलने पर अर्घ्‍य देकर भोजन करूंगी." बहन की बात सुनकर भाइयों ने क्या काम किया कि नगर से बाहर जा कर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें से प्रकाश दिखाते हुए उन्‍होंने बहन से कहा- "बहन! चांद निकल आया है. अर्घ्‍य देकर भोजन कर लो।
यह सुनकर उसने अपने भाभियों से कहा, "आओ तुम भी चन्द्रमा को अर्घ्‍य दे लो." परन्तु वे इस सच्चाई को जानती थीं, उन्होंने कहा- "बाई जी! अभी चांद नहीं निकला है, तेरे भाई तेरे से धोखा करते हुए अग्नि का प्रकाश छलनी से दिखा रहे हैं." भाभियों की बात सुनकर भी उसने कुछ ध्यान न दिया और भाइयों द्वारा दिखाए गए प्रकाश को ही अर्घ्‍य देकर भोजन कर लिया. इस प्रकार व्रत भंग करने से गणेश जी उस पर अप्रस्सन हो गए. इसके बाद उसका पति सख्त बीमार हो गया और जो कुछ घर में था उसकी बीमारी में लग गया।
जब उसने अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसने पश्चाताप किया गणेश जी की प्राथना करते हुए विधि विधान से पुनः चतुर्थी का व्रत करना आरम्भ कर दिया. श्रद्धानुसार सबका आदर करते हुए सबसे आशीर्वाद ग्रहण करने में ही मन को लगा दिया. इस प्रकार उसकी श्रद्धा भक्ति सहित कर्म को देखकर भगवान गणेश उस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवन दान दे कर उसे आरोग्य करने के पश्चात धन-संपत्ति से युक्त कर दिया. इस प्रकार जो कोई छल-कपट को त्याग कर श्रद्धा-भक्ति से चतुर्थी का व्रत करेंगे उन्‍हें सभी प्रकार का सुख मिलेगा।
नोट-इस जानकारी को अधिक उत्कृष्ट बनाने हेतु एवं इसमें आवश्यक सुधार हेतु अपने अमूल्य सुझाव और विचार प्रदान करें।।

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Saturday, October 12, 2019

शरद पूर्णिमा 2019 Sharad Purnima 2019

           शरद पूर्णिमा 2019
     Sharad Purnima 2019

शरद पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा 13 अक्टूबर 2019 रविवार को मनाई जाएगी।
लक्ष्मी पूजन हेतु यह सबसे महत्वपूर्ण पर्व है, अर्थात् अमावस्या में दीपावली का पर्व और पूर्णिमा में कोजागरी ,वर्ष में ये दोनों पर्व लक्ष्मी जी के पूजन हेतु अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं।
आज रात्रि भर घी का दीपक जलाकर लक्ष्मी, कुबेरादि का पूजन किया जाता है।आज माता लक्ष्मी इन्द्र के साथ ऐरावत हाथी पर आकाश गंगा में भ्रमण करती हैं और घर-घर पर उनकी दृष्टि पड़ती है, वे देखती हैं कि "कोजागर्ति" अर्थात् कौन जाग रहा है?
रात्रि जागरण कर पूजन करने वालों को सुख समृद्धि प्रदान करती हैं
शारद पूर्णिमा की अमृतमय चाँदनी से सिक्त खीर दूसरे दिन प्रातः प्रसाद स्वरूप ग्रहण करने से धन,ऐश्वर्य और बल में बृद्धि होती है।

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Wednesday, October 9, 2019

कजरी पूर्णिमा Kajari Purnima


      कजरी पूर्णिमा Kajari Purnima

कजरी पूर्णिमा का पर्व भी श्रावण पूर्णिमा के दिन ही पड़ता है यह पर्व विशेषत: मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के कुछ जगहों में मनाया जाता है। श्रावण अमावस्या के नौंवे दिन से इस उत्सव तैयारीयां आरंभ हो जाती हैं। कजरी नवमी के दिन महिलाएँ पेड़ के पत्तों के पात्रों में मिट्टी भरकर लाती हैं जिसमें जौ बोया जाता है।
कजरी पूर्णिमा के दिन महिलाएँ इन जौ पात्रों को सिर पर रखकर पास के किसी तालाब या नदी में विसर्जित करने के लिए ले जाती हैं ।इस नवमी की पूजा करके स्त्रीयाँ कजरी बोती है। गीत गाती है तथा कथा कहती है। महिलाएँ इस दिन व्रत रखकर अपने पुत्र की लंबी आयु और उसके सुख की कामना करती हैं।
श्रावण पूर्णिमा को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक नामों से जाना जाता है और उसके अनुसार पर्व रुप में मनाया जाता है जैसे उत्तर भारत में रक्षा बंधन के पर्व रुप में, दक्षिण भारत में नारयली पूर्णिमा व अवनी अवित्तम, मध्य भारत में कजरी पूनम तथा गुजरात में पवित्रोपना के रूप में मनाया जाता है।

श्रावण पूर्णिमा महत्व Shravan Purnima Importance


श्रावण पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता है अत: इस दिन पूजा उपासना करने से चंद्रदोष से मुक्ति मिलती है, श्रावणी पूर्णिमा का दिन दान, पुण्य के लिए महत्वपूर्ण होता है अत: इस दिन स्नान के बाद गाय आदि को चारा खिलाना, चिंटियों, मछलियों आदि को दाना खिलाना चाहिए इस दिन गोदान का बहुत महत्व होता है।
श्रावणी पर्व के दिन जनेऊ पहनने वाला हर धर्मावलंबी मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेकर जनेऊ बदलते हैं ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान देकर भोजन कराया जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा का विधान होता है।
विष्णु-लक्ष्मी के दर्शन से सुख, धन और समृद्धि कि प्राप्ति होती है. इस पावन दिन पर भगवान शिव, विष्णु, महालक्ष्मी व हनुमान को रक्षासूत्र अर्पित करना चाहिए।

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Saturday, October 5, 2019

भद्रा Bhadra

भद्रा Bhadra




भद्रा का नाम सुनते ही हमारे मन में तरह-तरह के विचार आने लगते हैं, अधिकतर हम भयभीत हो जाते हैं आईये जानते हैं भद्रा के बारे में-

 पञ्चाङ्ग के पाँच अङ्गों में ‘करण’ एक महत्वपूर्ण अङ्ग है, जो तिथि का आधा  हिस्सा होता है। करण के 11 भाग हैं। इसमें से सातवां भाग ‘विष्टि’ है इसी का नाम भद्रा है। भद्रा को सूर्य की पुत्री व शनि की बहन बताया गया है। चन्द्र की स्थिति के आधार पर प्रतिदिन भद्रा की स्थिति इस प्रकार बताई गई है।
मेष, वृषभ, मिथुन, वृश्चिक का जब चंद्रमा हो, तब भद्रा स्वर्गलोक में रहती है।
कन्या, तुला, धनु, मकर का चंद्रमा होने से पाताललोक में और
कर्क, सिंह, कुंभ, मीन राशि पर स्थित चंद्रमा होने पर भद्रा मृत्युलोक में रहती है अर्थात् सम्मुख रहती है।
जब भद्रा भू-लोक में रहती है, तब अशुभ फलदायिनी व वर्जित मानी गई है। इस समय शुभ कार्य नहीं करने चाहिए। शेष अन्य लोक में भद्रा शुभ रहती है। शुक्ल पक्ष की भद्रा का नाम वृश्चिकी व कृष्ण पक्ष की भद्रा सर्पिणी है। बिच्छू का विष डंक में और सर्प का विष मुख में होने के कारण वृश्चिकी भद्रा की पुच्छ व सर्पिणी भद्रा का मुख विशेष रूप से त्याज्य है। किन्तु अन्य मतानुसार भद्रा की पुच्छ सभी कार्यों में शुभ मानी गयी है।

भद्रा परिचय - कहा जाता है कि देव दानव संग्राम में जब देवगण परास्त हो हुए तो भगवान शिव ने क्रोध से संतप्त अपने शरीर को देखा, जिससे गर्दभ मुख वाली,पूँछयुक्त, तीन पैर,सात भुजा,तथा सिंह के समान गर्दन वाली प्रेत वाहिनी देवी प्रकट हुई।

जिसने अपने विकराल मुख से राक्षसों का मान मर्दन कर देवताओं का भद्र अर्थात् भला किया।
इसलिए प्रसन्न हुए देवताओं ने इसे भद्रा नाम से सम्मानित किया, और पञ्चाङ्ग में करण के मध्य स्थापित किया।भद्रा को छाया से उत्पन्न सूर्यपुत्री भी कहा गया है यथा-

छायासूर्यसुते देवि       विष्टिरिष्टार्थदायिनी।
पूजितासि यथाशक्त्या भद्रे भद्र प्रदा भव।।

छाया एवं सूर्यपुत्री भद्रा यथाशक्ति पूजन अर्चन मात्र से सभी अरिष्ट निवारण कर जगती तलवासी प्राणियों का मंगल करती है। रोगादि उपद्रव निवृत्ति, विघ्न बाधा शान्ति के साथ साथ युद्ध, मुकदमा, द्यूत तथा राजकाज में विजय दिलवाती है।

जिस दिन भद्रा हो उस दिन प्रातःकाल भद्रा के इन नामों का स्मरण करने से सारे दोषों का नाश होता है।

भद्रा के द्वादश नाम-


1-धन्या
2-दधिमुखी
3-भद्रा
4-महामारी
5-खरानना
6-कालरात्रि
7-महारुद्रा
8-विष्टि
9-कुलपुत्रिका
10-भैरवी
11-महाकाली
12-असुरक्षयकरी

भद्रा कब-कब होती है?


एक तिथि में दो करण होते हैं। तो विष्टि नामक करण को भद्रा कहते हैं। 
माह के एक पक्ष में भद्रा की चार बार पुनरावृति होती है। जैसे शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्द्ध में भद्रा होती है तथा चतुर्थी व एकादशी तिथि के उत्तरार्ध में भद्रा होती है।

कृष्ण पक्ष में तृतीया व दशमी तिथि का उत्तरार्ध में और सप्तमी व चतुर्दशी तिथि के पूर्वार्ध में भद्रा व्याप्त रहती है।

भद्रा में वर्जित  


भद्रा में मुख्य रूप से रक्षाबन्धन, होलिका दहन, वर्जित हैं।
तथा अन्यान्य ग्रंथों के अनुसार भद्रा में कई कार्यों को निषेध माना गया है। जैसे मुण्डन संस्कार, गृहारंभ, विवाह संस्कार, गृह - प्रवेश, रक्षाबंधन, शुभ यात्रा, नूतन व्यवसाय प्रारम्भ करना और सभी प्रकार के मंगल कार्य भद्रा में वर्जित माने गये हैं।

भद्रा में  विहित कार्य 


कुछ ऐसे कार्य भी है जिन्हें भद्रा में करना शुभ होता है।
जैसे अग्नि कार्य, युद्ध करना, किसी को कैद करना, विषादि का प्रयोग, विवाद संबंधी काम, क्रूर कर्म, शस्त्रों का उपयोग,रोगादि उपद्रवों की शान्ति, विघ्न बाधा शान्ति,शल्य चिकित्सा, शत्रु का उच्चाटन, पशु संबंधी कार्य, मुकदमा आरंभ करना या मुकदमे संबंधी कार्य,राजकार्य शत्रु का दमन करना आदि कार्य भद्रा में किए जा सकते हैं।

भद्रा का वास 


ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होता है तब भद्रा का वास पृथ्वी (मृत्युलोक) पर होता है।

चंद्रमा जब मेष, वृष, मिथुन या वृश्चिक में रहता है तब भद्रा का वास स्वर्गलोक में रहता है।

कन्या, तुला, धनु या मकर राशि में चंद्रमा के स्थित होने पर भद्रा पाताल लोक में होती है।

भद्रा जिस लोक में रहती है वही प्रभावी रहती है।

भूलोकस्था सदात्याज्या स्वर्ग-पातालगा शुभा।।

स्वर्गेभद्राशुभम् कार्ये पाताले च धनागमः।
मृत्युलोके यदा विष्टि: सर्वकार्य विनाशिनी।।

इस प्रकार जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होगा तभी भद्रा का पृथ्वी पर अनिष्ट प्रभाव होगा अन्यथा नही। जब भद्रा स्वर्ग या पाताल लोक में होगी तब वह शुभ फलदायी कहलाएगी।

भद्रा परिहार 


● यदि दिन की भद्रा रात में और रात की भद्रा दिन में हो तो भद्रा का परिहार माना जाता है। इस भद्रा का दोष पृथ्वी पर नहीं होता है। ऎसी भद्रा को शुभ फल देने वाली कहा गया है।यथा-

दिवा भद्रा रात्रौ रात्रि भद्रा यदा दिवा। 
न तत्र भद्रा दोषः स्यात सा भद्रा भद्रदायिनी।।

● भद्रा दिन में तिथि के उत्तरार्ध की व रात्रि में पूर्वार्ध की सब कार्यों में शुभ होती है।यथा-

रात्रि भद्रा यदा अहनि स्यात दिवा दिवा भद्रा निशि। 
न तत्र भद्रा दोषः स्यात सा भद्रा भद्रदायिनी।।

विष्टिरङ्गारकश्चैव व्यतीपातश्च वैधृति:।प्रत्यरिर्जन्मनक्षत्रं मध्यान्हातपरतः शुभम्।।

अर्थात्- विष्टि,अंगारक,क्रकच,दग्धादि योग, व्यतिपात, वैधृति, दुष्टतारा कुयोग दोपहर के बाद सभी शुभ होते हैं।

भद्रा मुख पुच्छ ज्ञानम्-


भद्रा विहित( कुल समय) को तीन स्थानों में रखकर पृथक-पृथक क्रमशः4/6/10 से भाग करने पर प्रहर, षष्ट्यंश, और दशमांश का मान निकल आता है।

चक्र में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि में जो भद्रा लिखी गई है उसके प्रथम प्रहर (यानी भद्रा के शुरू में) षष्ट्यंश तुल्य भद्रा का मुख होता है और चतुर्थ प्रहर के अंत में दशमांश तुल्य भद्रा का पुच्छकाल माना जाता है। प्रहर का मतलब भाग से है।
उदाहरण- सम्वत् 2059 श्रावण शुक्ल पूर्णिमा गुरुवार रक्षाबंधन के दिन भद्रा की व्याप्ति व्यवधान कारक है। अतः भद्रा के मुख का समय सभी शुभ कृत्यों में वर्जित है। उक्तदिन भद्रा का विहितकाल 12 घंटा 40 मिनट को 4 से भाग करने पर 3 घंटा 10 मिनट प्रत्येक पहर का मान हुआ। पुनः 12/40 को 6 से भाग दिया तो 2 घंटा 7 मिनट षष्ट्यंश प्राप्त हुआ। इसी प्रकार 10 से भाग करने पर दशमांश एक घंटा 16 मिनट सुनिश्चित हुआ।
पूर्णिमा के चतुर्थ प्रहर के प्रारंभ में षष्ट्यंश तुल्य भद्रा का मुख्य होता है, सो ज्ञातत करने पर प्रत्येक प्रहर 3/10×3=9/30 जमा भद्रा प्रारम्भकाल 26/39=36/9-24 शेष पूर्णिमा दिन 12 घंटा 9 मिनट से चौथा पहर शुरू भद्रा मुख आरम्भ का समय प्रारम्भ हुआ, जिसमें षष्ट्यंश 2/7 जमा किया तो 14 घंटा 16 मिनट तक का समय सुनिश्चित हुआ। जो कि राखी बांधने के लिए उपयुक्त नहीं है। तीसरे प्रहर के अन्त 12/9 से दशमांश 1/16 घटाया तो 10/53 से भद्रा का पुच्छकाल 12/9 , बजे तक रहेगा जिसे प्रत्येक काम में शुभ माना गया है।

पृथिव्यां यानि कर्माणि शुभान्यशुभानि च।
तानि सर्वाणि सिध्यन्ति विष्टि पुच्छे न संशयः।।

अन्य उदाहरण से समझते हैं

शुक्ल पक्ष की 4,8, 11, और 15 इन चार तिथियों में और कृष्ण पक्ष की 3,7, 10, और 14 इन चार तिथियों में एवं मास में आठ तिथियों में जो भद्रा कही गई है- उनमें क्रमशः 5,2,7, 4,8,6,1, इन प्रहरों के आरम्भ की 5 घटी मात्र भद्रा का मुख होता है, जो सब शुभ कार्यों में अशुभ प्रद है तथा उन्ही आठ तिथियों में क्रम से 8,1,6,3, 7,2,5,4, प्रहरों के अन्तिम 3 घटी विष्टि की पुच्छ होती है, जो सब कार्यों में शुभप्रद कही गई है। जिस तिथि के उत्तरार्ध की भद्रा दिन में और पूर्वार्ध की भद्रा रात रात्रि में हो तो सब कार्यों में शुभप्रद कही गई है।


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Friday, October 4, 2019

आरती माँ जगदम्बा गौरी गिरिराज किशोरी

आरती माँ जगदम्बा गौरी गिरिराज किशोरी



जै गौरी गिरिराज किशोरी आरती तुम्हारी।
जै महेश मुख चन्द्रचकोरी आरती तुम्हारी।।

एक भरोसा तेरा मईया दूजा नही सहारा है।2
कर दो मईया मोरि सहईया 2 आरती तुम्हारी।।

जै गौरी गिरिराज किशोरी आरती तुम्हारी।
जै महेश मुख चन्द्रचकोरी आरती तुम्हारी।।

अतुलित तेज बदन पर सोहै तिहुँ लोक उजियारा है।2
भक्तों की कल्याण करइया 2 आरती तुम्हारी।

जै गौरी गिरिराज किशोरी आरती तुम्हारी।
जै महेश मुख चन्द्रचकोरी आरती तुम्हारी।।

जो कोई माँ की करे आरती कष्ट कभी नही पाता है।2
दूध पूत भण्डार भरईया 2 आरती तुम्हारी।।

 जै गौरी गिरिराज किशोरी आरती तुम्हारी।
जै महेश मुख चन्द्रचकोरी आरती तुम्हारी।।

रोग हरो माँ, शोक हरो माँ, शत्रु से बचाओ।2
"विजय"करो माँ बजे बधइया 2,आरती तुम्हारी।।

 जै गौरी गिरिराज किशोरी आरती तुम्हारी।
जै महेश मुख चन्द्रचकोरी आरती तुम्हारी।।

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्येत्र्यंबके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।

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Thursday, October 3, 2019

सच और झूठ की कहानी Story of truth and lies

         सच और झूठ की कहानी

     Story of truth and lies


एक बार सच और झूठ दोनों एक नदी के किनारे आ मिलते हैं, दोनों ने एक दूसरे का हाल चाल पूछा, फिर विचार किया कि नदी में स्नान कर लें।
दोनों ने अपने कपड़े किनारे रखे और स्नान करने लगे।झूठ थोड़ा पहले ही निकल आया और सच के कपड़े पहन कर चला गया।
थोड़ी देर बाद जब सच नदी से बाहर आया तो देखा उसके कपड़े गायब थे।अब वो क्या करे?वो झूठ के कपड़े तो पहन नही सकता था।
कहा जाता है कि तभी से सच नंगा है, वो किसी के सामने नही जा सकता।यदि जाता भी है तो लोग उसे स्वीकार नहीं कर पाते उल्टे उसे ही अशिष्ट आदि न जाने कितने नामों से पुकारते हैं।
और उधर झूठ सच के कपड़े पहनने के बाद लोगों के बीच बड़े ठाठ  से जाता और लोग उसकी बात भी मानते।
वास्तव में हमारे जीवन में यही हो रहा है।
क्या आपके साथ भी तो ऐसा नहीं हो रहा?

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कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त

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