Sunday, February 17, 2019

वास्तु के अनुसार सीढ़ियों का निर्माणConstruction of stairs according to Vastu

 वास्तु के अनुसार सीढ़ियों का निर्माण

Construction of stairs according to Vastu



गृह निर्माण के समय यदि सीढ़ियों को बनाते समय कुछ वास्तु सम्मत  बातों का ध्यान रखा जाए तो यही सीढ़ियां न केवल भवन की सुंदरता में चार चाँद लगाती हैं बल्कि हमे समृद्ध भी बनाती हैं।

1.सीढ़ियों का निर्माण भवन के दक्षिण या पश्चिम भाग में करना उत्तम रहता है।

2.सीढ़ियों का घुमाव दक्षिणावर्ती होना चाहिए।

3.सीढ़ियों के सामने कोई बन्द दरवाजा नहीं होना चाहिए।

4.सीढ़ियों के नीचे शौचालय कदापि नहीं होना चाहिए।

5.सीढ़ियां विषम संख्या में बनवानी चाहिए। 

6. सीढ़ी चढ़ते समय चेहरा या तो उत्तर या पूर्व की ओर होना चाहिए।

7. सीढ़ी हमेशा दक्षिणावर्त दिशा में होनी चाहिए।

8. सीढ़ी के नीचे कोई कमरा नहीं बनाना चाहिए।

9. सीढ़ियों की नीचे और उपर द्वार रखना चाहिए। नीचे वाले दरवाजे से उपर वाला दरवाजा 12 भाग कम होना चाहिए।

10. यदि किसी मकान में सीढ़ियां पूर्व या उत्तर दिशा में बनी हों तो, उसके वास्तुदोष को कम करने के लिए दक्षिण-पश्चिम दिशा में एक कक्ष बनवाना देना चाहिए।

11.सीढ़ियों के नीचे किसी भी प्रकार का कबाड़, जूता-चप्पल आदि रखना परिवार के मुखिया के लिए अशुभकारी होता है।

12.वास्तुशास्त्र के नियम के अनुसार सीढ़ियों का निर्माण उत्तर से दक्षिण की ओर अथवा पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर करवाना चाहिए। जो लोग पूर्व दिशा की ओर से सीढ़ी बनवा रहे हों उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सीढ़ी पूर्व दिशा की दीवार से लगी हुई नहीं हो। पूर्वी दीवार से सीढ़ी की दूरी कम से कम 3 इंच होने पर घर वास्तुदोष से मुक्त होता है।

13.सीढ़ी के लिए नैऋत्य यानी दक्षिण दिशा उत्तम होती है। इस दिशा में सीढ़ी होने पर घर प्रगति की ओर अग्रसर रहता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार उत्तर-पूर्व यानी ईशान कोण में सीढ़ियों का निर्माण नहीं करना चाहिए।

14. मकान की सीढ़ियां पूर्व से पश्चिम या उतर से दक्षिण की ओर जाने वाली होनी चाहिए। इस बात का ध्यान रखें सीढ़ियां जब पहली मंजिल की ओर निकलती हों तो हमारा मुख उतर-पश्चिम या दक्षिण-पूर्व में होना चाहिए।

15.सीढ़ियों के लिए भवन के पश्चिम, दक्षिण या र्नैत्य का क्षेत्र सर्वाधिक उपयुक्त होता है। नैत्य कोण या दक्षिण-पश्चिम का हिस्सा सीढ़ियां बनाने के लिए अत्यंत शुभ एवं कल्याणकारी होता है।

16. सीढ़ियां कभी भी उतरी या पूर्वी दीवार से जुड़ी हुई नहीं होनी चाहिए। उतरी या पूर्वी दीवार एवं सीढ़ियों के बीच कम से कम 3’’ (तीन इंच) की दूरी अवश्य होनी चाहिए।

17. घर के उतर-पूर्व या ईशान कोण में सीढ़ियों का निर्माण कभी नहीं करवाना चाहिए। इस क्षेत्र में सीढ़ियां बनवाने से आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। व्यवसाय मंे नुकसान एवं स्वास्थ्य की हानि भी होती है तथा गृह स्वामी के दिवालिया होने की संभावना भी निरंतर बनी रहती है। घर के आग्नेय कोण अर्थात् दक्षिण-पूर्व में सीढ़ियां बनवाने से संतान के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

18.सीढ़ियां यदि गोलाई में या घुमावदार बनवानी हों तो घुमाव सदैव पूर्व से दक्षिण, दक्षिण से पश्चिम, पश्चिम से उतर तथा उतर से पूर्व दिशा में होना चाहिए। यदि घर के ऊपर का हिस्सा किराये पर देना हो और स्वयं मकान मालिक को नीचे रहना हो तो ऐसी स्थिति में ऊपर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां कभी भी घर के सामने नहीं बनवानी चाहिए। ऐसी स्थिति में किरायेदार को आर्थिक लाभ होता है तथा मकान मालिक को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है। सीढ़ियों के आरंभ एवं अंत द्वार अवश्य बनवाना चाहिए।

19.सीढ़ियों का द्वारा पूर्ण अथवा दक्षिण दिशा में ही होना चाहिए। एक सीढ़ी दूसरी सीढ़ी के मध्य लगभग 9’’ का अंतर होना चाहिए।

20. सीढ़ियों के दोनों ओर रेलिंग लगी होनी चाहिए।

21. सीढ़ियों का प्रारंभ त्रिकोणात्मक रूप में नहीं करना चाहिए।

22. अक्सर लोग सीढ़ियों के नीचे जूते, चप्पल रखने की रैक या अलमारी बनवा देते हैं। यह सर्वथा अनुचित है। सीढ़ियों के नीचे का स्थान हमेशा खुला रहना चाहिए। इससे घर के बच्चों को उच्च शिक्षा ग्रहण करने में सहायता मिलती है।

23.सीढ़ियां संबंधी वास्तु दोषों को दूर करने के उपाय: यदि घर बनवाते समय सीढ़ियों से संबंधित कोई वास्तु दोष रह गया हो तो उस स्थान पर बारिश का पानी मिट्टी के कलश में भरकर तथा मिट्टी के ढक्कन से ढककर जमीन के नीचे दबा दें। ऐसा करने से सीढ़ियों संबंधी वास्तु दोषों का नाश होता है। यदि यह उपाय करना भी संभव न हो तो घर में प्रत्येक प्रकार के वास्तु दोषों को दूर करने के लिए घर की छत पर एक म्टिटी के बर्तन में सतनाजा तथा दूसरे बर्तन में जल भरकर पक्षियों के लिए रखें ।

24.मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही पहली सीढ़ी न दिखाई दे,यह धन हानि या गरीबी की निशानी मानी जाती है।

25. सीढ़ियों की संख्या हमेशा विषम होना चाहिए। या सीढ़ियों की संख्या इस प्रकार होनी चाहिए कि उसे 3 से भाग दें तो 2 शेष रहे। 
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Saturday, February 16, 2019

कूष्माण्डा kooshmaanda

                         प्राक्कथन 
श्री कूष्माण्डा चालीसा का प्रणयन संवत् २०१९ कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को पं.-श्री सुरेन्द्र कुमार पाण्डेय 'संत'द्वारा हुआ.
यह वही समय है जब विश्व पर अष्टग्रही योग का प्रभाव व्याप्त था और भारत पर चीन का आक्रमण हुआ था.उस समय ये परास्नातक (हिन्दी) के विद्यार्थी थे.ये बचपन से ही शान्त एवं अध्यात्मिक विचारधारा के व्यक्ति रहे हैं.
उस समय तीन वर्ष घाटमपुर में प्रवास करने के दौरान माँ कूड़हा (कूष्माण्डा) देवी के प्रति लगन एवं उनके आशीर्वाद से इनके ह्रदय में ऐसी प्रेरणा हुई कि अपने कृतित्व द्वारा माँ के चरणों में कुछ श्रद्धा सुमन अर्पित किये जायें.
इसी सन्दर्भ में माँ की चालीसा की रचना का विचार उत्पन्न हुआ,उस समय अपने जेब खर्च से इन्होंने इसकी रचना कर एक हजार प्रतियाँ छपवा कर वितरित की,इस क्रम से आज तक इसकी रचना का प्रसाद भक्तों में वितरित होता रहा.
उम्र के अनुभव और अंतर्मन की प्रेरणा से जीवन के उत्तरार्ध में इन्हें पुनः यह विचार आया कि इस रचना को वह पुनः प्रसाद रूप में वितरित करे,किन्तु आज की प्रति में संशोधन एवं कुछ और प्रकरण जो मूल प्रति में थे परन्तु बाद के संस्करणों में उनका अभाव देखा गया,इसलिये रचयिता द्वारा अन्य प्रतियो में छोड़े गये अंशो को पुनः प्रकाशित करना आवश्यक समझा गया साथ ही इसमें कूष्माण्डा पंचामृत,शिव शतनाम को जोड़ा गया है.
इस प्रकार यह संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण पुनः आपके सम्मुख माँ के प्रसाद के रूप में प्रस्तुत है.
                                                                                                                            -:निवेदक:-
                                                                                                                 विजय कुमार शुक्ल (आचार्य)
                                                                                                                  कानपुर (उत्तर प्रदेश )
                                                                                                                  मो_9936816114
                                                                                                                  vijay.shukla003@gmail.com


                           कूष्माण्डा महात्म्य 

 या देवी  सर्व भूतेषु  मात्र रूपेण संस्थिता.
                       नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः.
 सुरा  सम्पूर्ण  कलशं  रूधिराप्लुतमेव  च .
                दधाना हस्त पद्माभ्याम कूष्माण्डा शुभदास्तुमे.


माँ भगवती दुर्गा के चौथे स्वरुप का नाम कूष्माण्डा हैं.अपनी मंद हल्की हँसी द्वारा अंड अर्थात ब्रम्हाण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है.
जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था चारो ओर अन्धकार ही अन्धकार परिव्याप्त था  तब इन्ही देवी ने अपने ईषत हास्य से ब्रम्हाण्ड की रचना की थी.अतः यही सृष्टि की आदि स्वरूपा शक्ति है.
इनका निवास सूर्य मण्डल के भीतर के लोक में है सूर्य लोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्ही में है,इनके शरीर की कान्ति और प्रभा भी सूर्य के समान ही देदीप्यमान और भास्वर है,इनके तेज की तुलना इन्ही से की जा सकती है.
इनकी आठ भुजायें है,अतः यह अष्टभुजी देवी के नाम से भी विख्यात है,इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डलु,धनुष,बाण,कमल-पूष्प,अमृत पूर्ण कलश,चक्र,तथा गदा है आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है,इनका वाहन सिंह है,बलियों में इन्हें कुम्हड़े की बलि सर्वाधिक प्रिय है इसलिये भी इन्हें कूष्माण्डा कहा जाता है.
नवरात्र पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरुप की पूजा की जाती है,इस दिन साधक का मन 'अनाहत चक्र' में अवस्थित होता है,इनकी भक्ति से आयु,यश,बल,और आरोग्य की वृद्धि होकर समस्त रोग-शोक विनष्ट हो जाते है,यदि मनुष्य सच्चे ह्रदय से माँ के शरणागत हो जाये तो उसे अत्यन्त सुगमता से परमपद की प्राप्ति हो जाती है,अतः लौकिक,पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिये.


                  श्री कूष्माण्डा   चालीसा

                                     दोहा 

         अम्बे पद चित लाय करि विनय करहुँ कर जोरि,
         बरनऊ तव मै विशद यश करहु विमल मति मोरि.
         दीन  हीन  मुझ   अधम   को  आप  उबारो आय,
         तुम   मेरी    मनकामना    पूर्ण   करो   सरसाय.
                                                                                                                  चौपाई

                                जय जय जय कुड़हा महरानी,           त्रिविध ताप नाशक तिमुहानी. १.
                                  आदि शक्ति अम्बिके  भवानी,            तुम्हरी महिमा अकथ कहानी .२.
                                  रवि सम तेज तपै चहुँ  ओरा,              करहु कृपा जनि होंहि निहोरा .३.
                                  धवल धाम मंह वास तुम्हारो,              सब मंह सुन्दर लागत न्यारो .४.
                                  तिनकै रचना बरनि न जाई,                 सुन्दरता लखि मन ठग जाई.५.
                                  सोहत  इहां  चारि दरवाजा,              विविध भॉंति चित्रित छवि छाजा.६.
                                 चवँर घंट बहु भॉंति विराजहिं,           मठ पर ध्वजा अलौकिक लागहिं.७.
                                  शीश मुकुट अरु कानन कुण्डल,              अरुण बदन से प्रगटै तव बल.८.
                                  रूप   अठ्भुजी   अद्भुत  सोहे,                     होय  सुखी  जो  मन से जोहै.९.
                                  तन पर शुभ्र वसन हैं राजत,                     कर कंकन पद नूपुर छाजत.१०.
                                  विविध भॉंति मन्दिर चहुँ ओरा,                   चूमत गगन हवै सब ओरा.११.
                                  शंकर महावीर  को  वासा,                       औरहु  सुर  सुख पावहिं पासा.१२.
                                  सरवर सुन्दर जहाँ सुहाई,                       तेहि कै महिमा बरनि न जाई.१३.
                                  घाट  मनोहर  सुन्दर  सोहैं,                           पडत दृष्टि तुरतै मन मोहैं.१४.  
                                  नीर मोति अस निर्मल तासू ,                      अमृत आनि कपूर सुवासू .१५.
                                 पीपल नीम आछि अमराई,                            औरहु तरुवर इहां सुहाई .१६.
                                 बहु भांतिन ध्यावैं नर नारी,                    मन वांछित फल पावहिं चारी.१७.
                                 तुम्हरो ध्यान करहिं जे प्रानी,                     होहिं मुक्त रहि जाइ कहानी.१८.
                                 जोगी जती ध्यान जो लावें,                          तुरतै सिद्ध पुरुष होई जावै.१९.
                                 नेत्र हीन तव आवहिं पासा,                          पूजा करहिं होइ तम नासा.२०.
                                  दिव्य दृष्टि तिनकै होइ जाई,                        होहिं सुखी जब होउ सहाई.२१.
                                  पुत्रहीन  कहुं  ध्यान  लगावै,                         तुरतै  पुत्रवान  होइ  जावै.२२.
                                  रंक आइ सब नावहिं माथा,                     पावहिं धन अरु होंहिं सनाथा.२३.
                                  नाम लेत दुःख दरिद नसाहीं,                   अक्षत से अरिगन हटी जाहीं.२४.
                                 नित प्रति आइ करहिं जो दर्शन,             मनवांछित फल पावै सो जन.२५.
                                 जो सरवर मंह मज्जन करहीं,                 कलुष  नसाइ  जात  हैं सबहीं.२६.
                                 जो जन मन से ध्यावहिं तुमही,               सब विपत्ति से छूटहिं  तबहीं.२७.
                                 सोम  शुक्र  दिन  आवहिं प्रानी,                    पूजा करहिं प्रेम रस सानी.२८.
                                 कार्तिक माह पूर्णिमा आवत,                  तेहि दिन मेला सुन्दर लागत.२९.
                                 लेत नाम भव भय मिटि जाई,                        भूत प्रेत सब भजै पराई.३०.
                                पूजा जो जन मन से करहीं,                       होहिं सुखी मुद मंगल भरहीं.३१.
                                दूर  दूर  से  आवहिं  प्रानी,                      करहिं सुदर्शन मन सुख मानी.३२.
                                तुम्हरी कीर्ति रही जग छाई,                     तेहिते सब जन आवत भाई.३३.
                                दरश परश कर मन हरषाहीं,                 जग दुर्लभ तिनकहु कछु नाहीं.३४.
                                जो ध्यावें पद मातु तुम्हारे,                   भव बन्धन मिटि जाइ सकारे.३५.
                                बालक प्रमुदित करहिं जो ध्याना,           आइ करहिं बहु विनती नाना.३६.
                                तिन कहँ अवसि सफलता देहू,                    बुद्धि बढ़ाइ सुखी करि देहू.३७.
                                आवहिं नर अरु नावहिं शीशा,                    होहिं सुखी पावहिं आशीषा.३८.
                                जो यह पाठ करै मन लाई,                           अम्बे ता कहूँ होहिं सहाई.३९.
                               'सन्त' सदा चरनन तव दासा,                 आय करहु मम ह्रदय निवासा.४०.
                                                                                                              दोहा


         मातु तुम्हारी भक्ति से सुख उपजै मन माहि.
         करहु कृपा हम दीन पर आयहु चरनन माहि..
         मंगलमय तुम मातु हो    सदा करहु कल्यान.
          गावहिं सुनहिं जे प्रेम से पावहिं सुन्दर ज्ञान..



                   कूष्माण्डा पञ्चामृत
जग के जंजाल माहि जकड़े हुये को मातु,
आप ही छुडाय कर दुःख दूर करती हो .
संतन की रक्षा हित धरती हो रौद्र रूप,
दुष्टों का विनाश कर शान्ति बसा देती हो.
सिंह पै सवार हो कंपाती दल असुरन के,
भक्तों के ह्रदयों में मोद सुधा भरती हो.
करती हो सभी का कुशल मातु जगदम्बा तुम,
नाम की महिमा मातु कुशला बता देती हो ..१..
असहायों अनाथों का सहारा हो मातु तुम,
गिरे हुये जनमन को तुम ऊपर उठा देती हो.
करती हो पूर्ण तुम मनोरथ सभी के मातु,
जीवन की कटुता में मृदुता भर देती हो .
आता जो भी है शरण तुम्हारी माँ,
उसको निज गोद में तुरत उठा लेती हो.
देती हो मनः शान्ति दुःख से उबार कर,
उसके फिर मन में आनन्द बसा देती हो..२..
तुमने ही बड़े-बड़े दुष्टों को संहारा मातु,
किसने नहीं जानी तुम्हारी यह महिमा है.
गूँज रही त्रिभुवन में तुम्हारी गुण गाथा एक,
उसके समान 'सन्त' किसकी और महिमा है.
तुम नहीं होती यदि मातु जगदम्बा तो,
शव समान शिव की न होती यह महिमा है.
जग की हो आदि अन्त मातु कूष्माण्डा जी,
पाता न कोई नर तुम्हारी शक्ति सीमा है..३..
तुम हो निष्शीम और अक्षय जगदम्बिके,
पुत्र वत्सलता की रखती एक सानी हो.
आँख भी उठाता यदि कोई दुष्ट नीच व्यक्ति,
एक ही बार में बनाती काल की कहानी हो.
देखा सुना हमने भी अरियों को जलते हुए,
कोई न बचा जिसने तुमसे रांर ठानी हो.
करती हो चूर्ण अभिमान अहंकारी का,
पाखण्डी के पाप की मिटाती निशानी हो..४..
मधु और कैटभ का किया है मान-मर्दन भी,
महिषासुर की कुमहिमा की मिटाई निशानी है.
सेनापति धूम्रलोचन का किया है अन्त आपने ही,
चन्ड-मुन्ड के जीवन की अन्त की कहानी है.
रक्त-बीज वंशजों को किया है काल-कवलित,
शुम्भ और निशुम्भ बध माँ की मनमानी है.
माँ का बल विक्रम-पराक्रम देख देवों नें,
बार-बार वाणी से माँ की महिमा बखानी है..५..


                          शिव शतनाम  

जय महादेव शिव शंकर शम्भो उमाकान्त त्रिपुरारी,
चंद्रमौलि गंगाधर सोमेश्वर भूतनाथ कामारी ..१..

हर-हर शूलपाणि गिरिजापति बाघाम्बर धारी,
पंचानन कालेश्वर नागेश्वर आशुतोष प्रलयंकारी..२..

तीननेत्र भुजगेन्द्र्हार कर्पूरगौर करुणावतार,
केदारनाथ देवाधिदेव गिरिईश रूद्र संसार सार..३..

घुष्मेश जटाधर विश्वरूप श्री विरूपाक्ष श्री शिवाधार,
सर्वशक्ति श्मशानवास पशुपति भोला तन लसित छार..४..

नीलकंठ वृषकेतु महेश्वर विश्वनाथ अवढर दानी,
कैलाशनाथ डमरूधर गौरी पति गुणातीत गुणखानी..५..

वेधषे दिगम्बर वेदगीत गोपत कपोत मंगलदानी,
लिंगरूप परमार्थरूप अव्यय त्रिदेव सर्वज्ञानी ..६..

लालाबन्ध सरूप सिंह अज्ञात ज्ञात विज्ञानी,
लोहित नील व्याघ्र गर्वकित श्री सुरेश परमात्म बखानी..७..

भीमशंकर मल्लिकार्जुन हे कपर्दिन मुण्डमाली,
सिद्धिदा परमेष्टिने हे महीधर मरीचिमाली..८..

हे व्यालप्रिय मृत्युंजयी हे दीर्घरूप हे दीर्घनाम,
हे बुद्धिनाथ हे जगत्पिता हे व्योमकेश करते प्रणाम..९..

रंगदेव रामेश्वर जागेश्वर हे अजगव धारी,
त्र्यम्बक प्रभाव हे अर्थरूप श्री महेश प्रतिवास बिहारी..१०..

हे चन्द्रचूड शशि-शेखर नन्दीश्वर अवलेश्वर ललाम,
हे तपोरूप दुर्गा दुर्गेश्वर करते चरणों में शत-शत प्रणाम..११..

                            शान्ति पाठ

जै जै अम्बे जय जगदम्बे        जय कुशले कल्याण करो,
जय कूष्माण्डा जय कल्याणी        सदबुद्धि का दान करो.
उग्रवाद  आतंकवाद  का       माँ  समूल  तुम नाश करो ,
पुत्र  पुकारें  जय  जगदम्बे      जग का माँ उत्थान करो.
नैतिकता  का  पाठ  पढ़ाकर     माँ  चरित्र निर्माण करो,
साहस शील शिष्टता संयम से      मानव का उत्थान करो.
दैहिकादि त्रिविध तापों से  माँ    जग का तुम उद्धार करो,
शान्ति-शान्ति माँ शान्त रूप से जग को शान्ति प्रदान करो..

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● जानें- कब होती है कुष्मांडा देवी की पूजा, क्या है पूजा विधि? Know- When is the worship of Kushmanda Devi, what is the worship method?
 

Tuesday, February 12, 2019

कमर दर्द के उपाय Waist Pain Remedies

                    कमर दर्द

आजकल शरीर में दर्द की समस्या बढ़ती जा रही है,इसमें एक है कमरदर्द।
यह समस्या आम हो गई है। सिर्फ बड़ी उम्र के लोग ही नहीं बल्कि युवा भी कमर दर्द की शिकायत करते रहते हैं। इसकी मुख्य वजह खानपान का ध्यान नहीं रखना,अनियमित जीवनशैली और शारीरिक श्रम न करना है।

अधिकतर लोगों को कमर के मध्य या निचले भाग में दर्द महसूस होता है। यह दर्द कमर के दोनों और तथा कूल्हों तक भी फ़ैल सकता है। बढ़ती उम्र के साथ कमर दर्द की समस्या बढ़ती जाती है।
कुछ आदतों को बदलकर इससे काफी हद तक बचा जा सकता है। साथ ही कुछ घरेलू नुस्खों को अपनाकर आप कमर दर्द से छुटकारा पा सकते हैं।

कमर दर्द के कुछ मुख्य कारण हैं।
There are some main causes of back pain.
जैसे:-

मांसपेशियों पर अत्यधिक तनाव।
Excessive stress on the muscles

अधिक वजन।Overweight

गलत तरीके से बैठना।
Sit in the wrong way

हमेशा ऊंची एड़ी के जूते या सेंडिल पहनना।
Always wear high heels or sandals.

गलत तरीके से अधिक वजन उठाना।
Wrong weight lifting

शरीर में लम्बे समय से बीमारियों का होना।
Disease in the body for a long time

अधिक नर्म गद्दों पर सोना।
Gold on more soft mattresses.

 कमर दर्द से बचने के घरेलू उपाय
Home remedies to avoid back pain

1. रोज सुबह सरसों या नारियल के तेल  गर्म कर लें। ठंडा होने पर इस तेल से कमर की मालिश करें।

2. नमक मिले गरम पानी में एक तौलिया डालकर निचोड़ लें। इसके बाद पेट के बल लेट जाएं। दर्द के स्थान पर तौलिये से भाप लें। कमर दर्द से राहत पहुंचाने का यह एक अचूक उपाय है।

3. कढ़ाई में दो-तीन चम्मच नमक डालकर इसे अच्छे से सेक लें। इस नमक को थोड़े मोटे सूती कपड़े में बांधकर पोटली बना लें। कमर पर इस पोटली से सेक करने से भी दर्द से आराम मिलता है।

4. अजवाइन को तवे के पर थोड़ी धीमी आंच पर सेंक लें। ठंडा होने पर धीरे-धीरे चबाते हुए निगल जाएं। इसके नियमित सेवन से कमर दर्द में लाभ मिलता है।

5. अधिक देर तक एक ही पोजीशन में बैठकर काम न करें। हर चालीस मिनट में अपनी कुर्सी से उठकर थोड़ी देर टहल लें।

6. नर्म गद्देदार सीटों से परहेज करना चाहिए। कमर दर्द के रोगियों को थोड़ा सख्ते बिस्तर बिछाकर सोना चाहिए।

7. योग भी कमर दर्द में लाभ पहुंचाता है। भुन्ज्गासन, शलभासन, हलासन, उत्तानपादासन, आदि कुछ ऐसे योगासन हैं जो की कमर दर्द में काफी लाभ पहुंचाते हैं। कमर दर्द के योगासनों को योगगुरु की देख रेख में ही करने चाहिए।

8. कैल्शियम की कम मात्रा से भी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, इसलिए कैल्शियमयुक्त चीजों का सेवन करें।

9. कमर दर्द के लिए व्यायाम भी करना चाहिए। सैर करना, तैरना या साइकिल चलाना सुरक्षित व्यायाम हैं। तैराकी जहां वजन तो कम करती है, वहीं यह कमर के लिए भी लाभकारी है। साइकिल चलाते समय कमर सीधी रखनी चाहिए। व्यायाम करने से मांसपेशियों को ताकत मिलेगी तथा वजन भी नहीं बढ़ेगा।

10. कमर दर्द में भारी वजन उठाते समय या जमीन से किसी भी चीज को उठाते समय कमर के बल ना झुकें बल्कि पहले घुटने मोड़कर नीचे झुकें और जब हाथ नीचे वस्तु तक पहुंच जाए तो उसे उठाकर घुटने को सीधा करते हुए खड़े हो जाएं|

11. कार चलाते वक्त सीट सख्त होनी चाहिए, बैठने का पोश्चर भी सही रखें और कार ड्राइव करते समय सीट बेल्ट टाइट कर लें।

12. ऑफिस में काम करते समय कभी भी पीठ के सहारे न बैठें। अपनी पीठ को कुर्सी पर इस तरह टिकाएं कि यह हमेशा सीधी रहे। गर्दन को सीधा रखने के लिए कुर्सी में पीछे की ओर मोटा तौलिया मोड़ कर लगाया जा सकता है।
साभार:-

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Monday, February 11, 2019

जानें- कब होती है कुष्मांडा देवी की पूजा, क्या है पूजा विधि? Know- When is the worship of Kushmanda Devi, what is the worship method?


माँ कूष्माण्डा देवी  भगवती दुर्गा का चौथा स्वरुप हैं।अपनी हल्की हंसी के द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा हुआ। ये अनाहत चक्र को नियंत्रित करती हैं।
मां की आठ भुजाएं हैं।
अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं. संस्कृत भाषा में कुष्मांडा  को कुम्हड़ कहते हैं और इन्हें कुम्हड़ा विशेष रूप से प्रिय है. ज्योतिष में इनका सम्बन्ध बुध नामक ग्रह से है।

जानें- कब होती है कूष्माण्डा देवी की पूजा, क्या है पूजा विधि?


Know- When is the worship of Kushmanda Devi, what is the worship method?

नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के 9 रूपों की पूजा की जाती है।ये माँ का चौथा रूप है अतः चौथे दिन नवरात्रि में इनका पूजन होता है।

क्या है देवी कूष्माण्डा की पूजा विधि?

What is Goddess Kushmanda worship method?

- हरे वस्त्र धारण करके मां कूष्माण्डा का पूजन करें।
- पूजा के दौरान मां को हरी इलाइची, सौंफ,या कुम्हड़ा अर्पित करें।
- इसके बाद उनके मुख्य मंत्र "ॐ कूष्माण्डा देव्यै नमः" का 108 बार जाप करें।
- सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें।

बुध को मजबूत करने के लिए  करें मां कूष्माण्डा की पूजा?

To strengthen Mercury, worship of Mother Kushmanda?

- मां कूष्माण्डा को  अपने उम्र के वर्षों की सँख्या के अनुसार हरी इलायची अर्पित करें।
- हर इलाइची अर्पित करने के साथ "ॐ बुं बुधाय नमः" और "ॐ कूष्माण्डाय नमः" कहें।
- सारी इलाइचियों को एकत्र करके हरे कपड़े में बांधकर रख लें।
- इन्हें अपने पास अगली नवरात्रि तक सुरक्षित रखें।
-पुनः अगले नवरात्रि में यही क्रिया करें, और पुरानी इलायची को किसी को दान कर दें।

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जाने राशि के अनुसार क्या खरीदें धनतेरस पर According to the amount of money to buy on Dhanteras

जाने राशि के अनुसार क्या खरीदें धनतेरस पर
According to the amount of money to buy on Dhanteras


हमारे मुख्य त्यौहार दीपावली की शुरुआत धनतेरस से होती है।
धनतेरस के दिन हर कोई माँ लक्ष्मी, गणेश और धन के देवता कुबेरऔर धन्वन्तरि की पुजा करता है। यह मान्यता है कि इस दिन हर व्यक्ति को कुछ न कुछ जरूर खरीदना चाहिए क्योंकि इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है,और उनकी कृपा वर्ष भर हमें प्राप्त होती है।
ऐसे में हम अन्य वस्तुओं की खरीदारी अपनी राशि के अनुसार करें तो यह पूरे वर्ष शुभ-मङ्गल कारी होता है।


● मेष राशि के जातकों को धनतेरस के दिन पीतल के बर्तन खरीदने चाहिए।


● वृष राशि के जातकों के लिए धनतेरस के दिन चांदी का कलश या अपने जीवन साथी के लिए सोने की अंगूठी या सोने की कोई वस्तु खरीदना शुभ माना जाता है।


● मिथुन राशि के जातकों के लिए धनतेरस के दिन सफेद धातु का श्रीयंत्र या गणेश जी खरीदना काफी शुभ माना जाता है।


● कर्क राशि के जातकों के लिए धनतेरस के दिन पारद का शिवलिंग खरीदना काफी शुभ माना जाता है।


● सिंह राशि के जातकों के लिए धनतेरस के दिन माँ लक्ष्मी या विष्णु जी की मूर्ति खरीदना काफी शुभ माना जाता है।


● कन्या राशि के जातकों को धनतेरस के दिन चांदी के लक्ष्मी गणेश जी अथवा सोने के श्रीयंत्र खरीदने चाहिए।


● तुला राशि के जातकों के लिए धनतेरस के दिन चांदी का श्रीयंत्र या शंख खरीदना काफी शुभ माना जाता है।


● वृश्चिक राशि के जातकों के लिए धनतेरस के दिन तांबे की कलश खरीदना काफी शुभ माना जाता है।


● धनु राशि के जातकों को पीली धातु में या मूंगे का सामान लेना काफी ज्यादा शुभ रहेगा।


● मकर राशि के जातकों को धनतेरस के दिन बेडरूम के लिए सफेद धातु में मेज इत्यादि चीजें खरीदनी चाहिए।


● कुंभ राशि के जातकों को धनतेरस के दिन अपने घर के पूजा घर के लिए सफेद धातु या चांदी का दीप खरीदना चाहिए।


● मीन राशि के जातकों को धनतेरस के दिन सफेद धातु या चांदी का पिरामिड और गणेश, सरस्‍वती की प्रतिमा और तांबे का कलश खरीदना चाहिए।


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Sunday, February 10, 2019

मेरा जीवन एक कहानी My life is a story

मनुष्य के जीवन की एक कविता, जो कहीं न कहीं किसी न किसी मोड़ पर सबके ऊपर चरितार्थ होती है।

   मेरा जीवन एक कहानी


 दर्द कागज़ पर, मेरा बिकता रहा,
मैं बैचैन था, रातभर लिखता रहा..
छू रहे थे सब, बुलंदियाँ आसमान की
मैं सितारों के बीच,चाँद की तरह छिपता रहा..
अकड होती तो,कब का टूट गया होता
मैं था नाज़ुक डाली,जो सबके आगे झुकता रहा..
बदले यहाँ लोगों ने, रंग अपने-अपने ढंग से
रंग मेरा भी निखरा पर, मैं मेहँदी की तरह पिसता रहा..
जिनको जल्दी थी, वो बढ़ चले मंज़िल की ओर
मैं समन्दर से राज, गहराई के सीखता रहा..!!
"ज़िन्दगी कभी भी ले सकती है करवट...
तू गुमान न कर...
बुलंदियाँ छू हज़ार, मगर...
उसके लिए कोई 'गुनाह' न कर..
कुछ बेतुके झगड़े, कुछ इस तरह खत्म कर दिए मैंने..
जहाँ गलती नही भी थी मेरी, फिर भी हाथ जोड़ दिए मैंने..


साभार:-

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Friday, February 8, 2019

जानें बाल कब कटवाना चाहिए Learn when the hair should be cut

जानें क्षौर कर्म अर्थात बाल कटवाने के शास्त्रोक्त नियम
Sophisticated rules for haircut


एकादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति, व्यतिपात, विष्टि (भद्रा), श्राद्धपक्ष, मंगलवार एवं शनिवार को क्षौरकर्म पूर्णतयः वर्जित है।

रविवार को क्षौर कर्म अर्थात बाल कटवाने से एक माह की आयु को, शनिवार को सात माह की और मंगलवार को आठ माह की आयु को उस-उस दिन के अभिमानी देवता क्षीण कर देते हैं।

बुद्धवार को क्षौर कर्म अर्थात बाल कटवाने से पांच माह की, सोमवार को सात माह की, गुरुवार को दस माह की और शुक्रवार को ग्यारह माह की आयु की उस-उस दिन के देवता वृद्धि करते हैं।

संतान के इच्छुक गृहस्थों को तथा एक-पुत्र वाले को सोमवार को क्षौर कर्म अर्थात बाल कदापि नहीं कटवाने चाहिये।

विद्या और लक्ष्मी के इच्छुक को गुरुवार को क्षौर कर्म अर्थात बाल कदापि नहीं कटवाने चाहिये।
विद्यार्थियों और व्यापारी वर्ग के व्यक्तियों को ध्यान रखना चाहिए।
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जानें अपने शत्रु को उसकी राशि अनुसार Know your enemy according to its amount


ज्योतिष में मनुष्यों के व्यक्तित्व और स्वभाव को बारह भाग अर्थात राशियों में विभाजित किया गया है। यह राशियां उसके स्वभाव के कई राज़ खोलती है। तो इसी के आधार पर जानते हैं कि आप अपने दुश्मन या किसी व्यक्ति से किस प्रकार से बदला लेते हैं?
या फिर आपका दुश्मन आपके लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है?
यह सारी जानकारी इन्हीं राशियों के द्वारा प्राप्त की जा सकती है।
जानें आपका दुश्मन कैसा है?
Learn how is your enemy?
विरोधी व्यक्ति के नाम या जन्म राशि /लग्न के आधार पर इस लेख को पढ़कर आप यह अनुमान लगा सकते हैं कि जिस व्यक्ति से आपका  विरोध है वो आपसे बदला लेने के लिए किस हद तक जा सकता है। ताकि आप पहले से ही उससे बचने के लिए खुद को तैयार कर सकें।
मेष राशि
मेष राशि के जातक मंगल ग्रह का प्रतीक माने जाते हैं जो अपने आप में  एक क्रूर और विनाशकारी ग्रह के रूप से जाना जाता है। तो यदि आपका दुश्मन इसी राशि चिन्ह से संबंध रखता है तो थोड़ा ध्यान रखें।
क्योंकि मेष राशि वाले यदि गुस्सा करने या बदला लेने पर आते हैं तो वह कुछ सोचते समझते नहीं हैं। बस वही करते हैं जो उस समय उनको सबसे ज्यादा सही लगता है। किसी से बदला लेने के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं।
वृष राशि
इस राशि चिन्ह वाले व्यक्ति बातों को हमेशा ही अपने दिल तथा दिमाग में बसा कर रखने के लिए जाना जाता है। यह ना तो किसी द्वारा मिला स्नेह भूलते हैं और ना ही किसी अन्य द्वारा दिया गया दर्द भुला पाते हैं। लेकिन बदला लेने के मामले में ये तुरंत नहीं तो कुछ समय के बाद प्रतिक्रिया जरूर करते हैं। क्योंकि ये अपने तेज़ दिमाग का इस्तेमाल कर पहले एक योजना बनाते हैं और फिर उसे आज़माते हैं।इनका बदला लेने का अंदाज कुछ अलग ही होता है।
मिथुन राशि
यदि आपका दुश्मन मिथुन राशि से संबंध रखता है तो हो सकता है कि वह आपकी गलती को माफ कर दे और आप पर किसी प्रकार का वार ना करे। क्योंकि मिथुन राशि वाले लोग ज्यादातर मामलों में या तो किसी के किए गए गुनाह को धीरे-धीरे भुला देते हैं या फिर समय आने पर खुद ही मन ही मन उन्हें माफ कर देते हैं। बहुत कम ऐसा होता है कि वे बदले की भावना से किसी पर वार करें।
कर्क राशि
यह एक ऐसी राशि है जो आपको बदला लेने का सही अर्थ समझा सकती है। जी हां, यदि आपका दुश्मन कर्क राशि का है या फिर जिसे आपने दुख पहुंचाया है उसका नाता कर्क राशि से है तो पहले ही खुद को तैयार कर लें। क्योंकि एक कर्क राशि का जातक यदि दिल से किसी को प्रेम कर सकता है तो उतनी ही कठोर भावना से वह किसी से बदला भी ले सकता है।आप सोच भी नहीं सकते कि उसके द्वारा किया हुआ प्रहार आप पर कितना भारी पड़ सकता है। तो सम्भव हो तो इस राशि के जातकों से विरोध न करें तो आपके लिए बेहतर होगा।
सिंह राशि
अपनी राशि के चिन्ह की तरह ही यह जातक काफी गुस्से वाले तथा गर्व से भरपूर होते हैं। जिस प्रकार से एक सिंह किसी को छोटी सी भी गलती के लिए माफ नहीं करता।  ठीक उसी प्रकार से सिंह राशि के जातक को यदि किसी से धोखा मिले तो वह गुस्से की सुनामी ला सकता है। तो यदि आपके दोस्तों की सूची में कोई ऐसा दोस्त है तो कभी उसे परेशान ना करें, क्योंकि यदि उसने आपसे बदला लिया तो अगली बार उसकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए भी आपके हाथ कांप उठेंगे।
कन्या राशि
यह एक ऐसी राशि है जो बदला लेने के संदर्भ से कुछ ठंडे मिजाज़ की है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे मिथुन राशि के जातकों की तरह चुपचाप एक कोने में बैठ जाएंगे। वे वार तो करेंगे लेकिन उसमें बुरे शब्दों या शस्त्रों का उपयोग शायद ही हो। वे आपको दिल से बदले की भावना का एहसास करवा सकते हैं ताकि आप सामाजिक नहीं तो निजी रूप से रोने पर मजबूर हो जाएंगे।
तुला राशि
अपने राशि चिन्ह की तरह ही तुला राशि बुराई की बजाय अच्छाई का प्रतीक माना गया है। लेकिन यदि किन्हीं कारणों से वह हताश होकर किसी से बदला लेने की ठान भी लें तो उनका अंदाज़ कुछ नियंत्रित ही रहता है। शायद आपको ऐसा एहसास ही ना हो कि वे आपसे बदला ले रहे हैं।
वृश्चिक राशि
यदि आप एक वृश्चिक पर पांव रख दें तो वह आपको काटने में एक पल नहीं लगाता। कुछ ऐसा ही स्वभाव है इस राशि के जातकों का। यदि आपने सच में उन्हें चोट पहुंचाई होगी तो वह आपको एक पल के लिए भी सुखी नहीं रहने देंगे। ऐसे में बेहतर तो यही होगा कि आप ना केवल अपना घर, शहर या देश बदल लें, बल्कि आप जिस ग्रह पर रह रहे हैं आपको वही बदल लेना चाहिए।
धनु राशि
धनु राशि के जातक एक सीमा तक गुस्से को नियंत्रित कर लेते हैं। यदि आप इन्हें नुकसान पहुंचाएंगे तो हो सकता है कि आप बच भी सकते हैं। लेकिन यदि इन्हें निजी रूप से बात गलत लगी तो इनकी  कठोर प्रतिक्रिया आपको हिला कर रख देगी। तो बेहतर यही है कि इन्हें ज्यादा परेशान ना करें।
मकर राशि
अन्य राशियों की तरह उसी समय नहीं, लेकिन मकर राशि के जातक बदला लेने के लिए पूरी योजना के साथ आते हैं। उन्हें किस प्रकार का दर्द दिया गया है और ठीक वैसा ही या उससे भी ज्यादा दर्द दूसरे को किस तरह से देना है, यह सारी योजना उनके दिमाग में हर समय चलती रहती है। तो ऐसे जातक काफी खतरनाक साबित हो सकते हैं।
कुम्भ राशि
मिथुन राशि की तरह ही कुंभ राशि के जातक भी बदला लेने पर विश्वास नहीं करते। वे दूसरे द्वारा दिए हुए दर्द से परेशान जरूर होते हैं, इसे याद भी रखते हैं लेकिन बदला लेने का ख्याल शायद ही इनके दिल या दिमाग में कभी आता है। किन्तु किसी ने इनके साथ कितना बुरा किया है, इस बात को हमेशा याद रखते हैं और उन्हें दूसरा मौका देने से कतराते हैं।
मीन राशि
अब तक की सभी राशियों में से शायद यह एक ऐसी राशि है जिसके जातक स्वभाव में तो दिलचस्प, हंसमुख तथा लोगों से स्नेह रखने वाले होते हैं लेकिन यदि इन्हें कोई धोखा दे तो ये उसकी मौत की योजना बनाने से भी हिचकिचाते नहीं हैं। दुश्मन को तकलीफ देना और इस बात का अंदाज़ा रखना कि उनकी कौन सी हरकत कितनी तकलीफ पहुंचाएगी, यह सब कुछ  मीन राशि के जातक की खूबी है।


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Thursday, February 7, 2019

कलावा या मौली Kalawa ya Mauli

कलावा या मौली Kalawa ya Mauli


हमारे यहां जब भी कोई शुभ अवसर आता है या किसी भी पूजन विधान में कलावा या मौली बांधने की परंपरा है।
कलावा/ मौली तीन धागों से मिलकर बना हुआ होता है। आम तौर पर यह सूत से बना होता है।
इसमें लाल, पीले, हरे या सफ़ेद रंग के धागे होते हैं। यह तीन धागे त्रिशक्तियों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के प्रतीक माने जाते हैं।
हिन्दू धर्म में इसको रक्षा के लिए धारण किया जाता है।
मान्यता है कि जो कोई भी विधि विधान से रक्षा सूत्र या कलावा धारण करता है, उसकी हर प्रकार के अनिष्टों से रक्षा होती है।

कलावा धारण करने के क्या लाभ हैं?
What are the benefits of holding kalawa

कलावा आम तौर पर कलाई में धारण किया जाता है।
अतः यह तीनों धातुओं (कफ,वात,पित्त) को संतुलित करती हैं।
इसे विशेष  मंत्रों के साथ बांधा जाता है।
अतः यह धारण करने वाले की रक्षा भी करता है।
अलग-अलग तरह की समस्याओं के निवारण के लिए अलग-अलग तरह के कलावे बांधे जाते हैं।
हर तरह के कलावे के लिए अलग तरह का मंत्र होता है।

कलावा धारण करने या बांधने की सावधानियां क्या हैं?
What are the precautions to hold the kalawa?

कलावा सूत का बना हुआ ही होना चाहिए।
इसे मन्त्रों के साथ ही बांधना चाहिए।
इसे किसी भी दिन पूजा के बाद धारण कर सकते हैं।
लाल, पीला और सफ़ेद रंग का बना हुआ कलावा सर्वोत्तम होता है।
एक बार बांधा हुआ कलावा एक सप्ताह में बदल देना चाहिए।
पुराने कलावे को वृक्ष के नीच रख देना चाहिए या मिटटी में दबा देना चाहिए।

अपने  उद्देश्यों के अनुसार कलावे धारण करें-
Hold the artwork according to your purposes

शिक्षा और एकाग्रता के लिए-
For education and concentration
नारंगी रंग का कलावा धारण करें
इसे बृहस्पतिवार प्रातः या वसंत पंचमी को बांधें।

विवाह संबंधी समस्याओं के लिए-
For marriage problems
पीले और सफेद रंग का कलावा धारण करें।
इसे शुक्रवार को प्रातः धारण करें।
इसे दीपावली पर भी धारण करना शुभ होगा।

रोजगार और आर्थिक लाभ के लिए-
For employment and economic benefits
नीले रंग का कलावा बांधना अच्छा होगा।
इसे शनिवार की शाम को बांधें।
इसे अगर किसी बुजुर्ग व्यक्ति से बंधवाएं तो अच्छा होगा।

नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा के लिए-
To protect from negative energy
काले रंग के सूती धागे बांधने चाहिए।
इसको बांधने के पूर्व मां काली को अर्पित करें।
इसके साथ किसी अन्य रंग के धागे बिलकुल न बांधें।

हर तरह से रक्षा के लिए-
For every way possible to protect
लाल पीले सफ़ेद रंग का मिश्रित कलावा बांधना चाहिए।
इसको बांधने के पूर्व भगवान को अर्पित कर दें।
अगर किसी सात्विक या धार्मिक व्यक्ति से बंधवाएं तो काफी उत्तम होगा।

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पञ्चाङ्ग का महत्व Importance of Panchang

पञ्चाङ्ग का महत्व  

Importance of Panchang

यहाँ पञ्चाङ्ग के महत्व पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है।जिससे आपको पञ्चाङ्ग क्या है यह जानकारी प्राप्त हो और उसका महत्व, लाभ आदि के बारे मे ज्ञात हो सके।

पञ्चाङ्ग के पांच अंग हैं।

There are five parts of the panchang

1-तिथि (Tithi)
2-वार (Vaar)
3-नक्षत्र (Nakshatra)
4-योग (Yog)
5-करण (Karan)

पञ्चाङ्ग का शाब्दिक अर्थ है, 'पाँच अङ्ग' (पञ्च + अङ्ग)। अर्थात पञ्चाङ्ग में वार, तिथि, नक्षत्र, योग,और करण - इन पाँच चीजों का उल्लेख मुख्य रूप से होता है। इसलिए इन पांचों के योग को पञ्चाङ्ग कहा जाता है।इसके अलावा पञ्चाङ्ग से प्रमुख त्यौहारों,  संक्रान्ति, ग्रहण आदि घटनाओं और शुभ मुहुर्त आदि का ज्ञान होता है।

एक वर्ष में 12 महीने होते हैं। प्रत्येक महीने में 15 दिन के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल और कृष्ण। प्रत्येक वर्ष में दो अयन होते हैं। इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं।

गणना के आधार पर पञ्चाङ्ग की तीन धाराएँ हैं- पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति। भिन्न-भिन्न रूप में यह पूरे भारत में माना जाता है।दक्षिण भारत में पञ्चाङ्ग को पञ्चाङ्गम् कहते हैं।

हिन्दु कैलेण्डर जो सभी पांच अंगों को दर्शाता है उसे पञ्चाङ्ग कहते हैं। 


प्रतिदिन पञ्चाङ्ग श्रवण का महत्व


शास्त्रों में पञ्चाङ्ग के पठन और श्रवण का बहुत अधिक महत्व दिया गया है। नववर्ष अर्थात् चैैत्र शुक्ल प्रतिपदा को पञ्चाङ्ग फल का श्रवण करना वर्ष भर उन्नति फल प्रदायक होता है।
पञ्चाङ्ग के पाँच अंगों को नित्य ही पढ़ना सुनना चाहिए।
भगवान राम नित्य सभा में बैठकर पञ्चाङ्ग का श्रवण करते थे।यह प्रसंग अध्यात्म रामायण में मिलता है।इसके पांचो अंगों के श्रवण से हमें जीवन की बहुमूल्य चीजें प्राप्त होती हैं यथा-

तिथि के पठन और श्रवण से महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।

वार के पठन और श्रवण से आयु की वृद्धि होती है।

नक्षत्र के पठन और श्रवण से पापों का नाश होता है।

योग के पठन  और श्रवण से प्रियजनों का प्रेम मिलता है।

करण के पठन  और श्रवण से मनोकामना की  पूर्ति होती है।

यह पञ्चाङ्ग  के नित्य उपयोग की विषयवस्तु है।इसके अलावा भी पञ्चाङ्ग के कुछ महत्वपूर्ण अंग हैं यथा-सम्वत्सर के नाम,आनन्दादि योग(इनका प्रभाव अपने नामानुसार शुभाशुभ होता है),12 माह के नाम,16 तिथियां, नक्षत्रों के नाम,योगों के नाम, करण के नाम,राशियों के नाम आदि।

चन्द्र माह के नाम (12माह)

1. चैत्र 2. वैशाख 3. ज्येष्ठ 4. आषाढ़
5. श्रावण 6. भाद्रपद 7. आश्विन 8. कार्तिक
9. मार्गशीर्ष 10. पौष 11. माघ 12. फाल्गुन

नक्षत्र के नाम
1. अश्विनी
2. भरणी
3. कृत्तिका
4. रोहिणी
5. मॄगशिरा
6. आर्द्रा
7. पुनर्वसु
8. पुष्य
9. अश्लेशा
10. मघा
11. पूर्वाफाल्गुनी
12. उत्तराफाल्गुनी
13. हस्त
14. चित्रा
15. स्वाती
16. विशाखा
17. अनुराधा
18. ज्येष्ठा
19. मूल
20. पूर्वाषाढा
21. उत्तराषाढा
22. श्रवण
23. धनिष्ठा
24. शतभिषा
25. पूर्व भाद्रपद
26. उत्तर भाद्रपद
27. रेवती

योग:-कुल 27 योगों में से  9 योगों को अशुभ माना जाता है तथा सभी प्रकार के शुभ कामों में इनसे बचने की सलाह दी गई है। ये अशुभ योग हैं: विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतीपात, परिघ और वैधृति।बाकी शेष सभी शुभफलदायी होते हैं।

27 योगों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं:

1. विष्कम्भ
2. प्रीति
3. आयुष्मान्
4. सौभाग्य
5. शोभन
6. अतिगण्ड
7. सुकर्मा
8. धृति
9. शूल
10. गण्ड
11. वृद्धि
12. ध्रुव
13. व्याघात
14. हर्षण
15. वज्र
16. सिद्धि
17. व्यतीपात
18. वरीयान्
19. परिघ
20. शिव
21. सिद्ध
22. साध्य
23. शुभ
24. शुक्ल
25. ब्रह्म
26. इन्द्र
27. वैधृति

करण:-एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में।कुल 11 करण होते हैं। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुघ्न करण होता है। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।

करणों के नाम इस प्रकार है:-

  • 1. बव
  • 2. बालव
  • 3. कौलव
  • 4. तैतिल
  • 5. गर
  • 6. वणिज
  • 7. विष्टि (भद्रा)
  • 8. शकुनि
  • 9. चतुष्पद
  • 10. नाग
  • 11. किस्तुघन

इसमें किस्तुघन से गणना आरम्भ करने पर पहले 7 करण आठ बार क्रम से पुनरावृ्त होते है। अंत में शेष चार करण स्थिर प्रकृति के है।

तिथि:-एक दिन को तिथि कहा गया है जो पंचांग के आधार पर उन्नीस घंटे से लेकर छब्बीस घंटे तक की होती है। चंद्र मास में 30 तिथियाँ होती हैं, जो दो पक्षों में बँटी हैं। शुक्ल पक्ष में एक से चौदह और फिर पूर्णिमा आती है। पूर्णिमा सहित कुल मिलाकर पंद्रह तिथि। कृष्ण पक्ष में एक से चौदह और फिर अमावस्या आती है। अमावस्या सहित पंद्रह तिथि।

तिथि के नाम
1. प्रतिपदा
2. द्वितीया
3. तृतीया
4. चतुर्थी
5. पञ्चमी
6. षष्ठी
7. सप्तमी
8. अष्टमी
9. नवमी
10. दशमी
11. एकादशी
12. द्वादशी
13. त्रयोदशी
14. चतुर्दशी
15. पूर्णिमा
16. अमावस्या

 राशि के नाम
1. मेष
2. वृषभ
3. मिथुन
4. कर्क
5. सिंह
6. कन्या
7. तुला
8. वृश्चिक
9. धनु
10. मकर
11. कुम्भ
12. मीन

 सम्वत्सर के नाम
1. प्रभव
2. विभव
3. शुक्ल
4. प्रमोद
5. प्रजापति
6. अङ्गिरा
7. श्रीमुख
8. भाव
9. युवा
10. धाता
11. ईश्वर
12. बहुधान्य
13. प्रमाथी
14. विक्रम
15. वृष
16. चित्रभानु
17. सुभानु
18. तारण
19. पार्थिव
20. व्यय
21. सर्वजित्
22. सर्वधारी
23. विरोधी
24. विकृति
25. खर
26. नन्दन
27. विजय
28. जय
29. मन्मथ
30. दुर्मुख
31. हेमलम्बी
32. विलम्बी
33. विकारी
34. शर्वरी
35. प्लव
36. शुभकृत्
37. शोभन
38. क्रोधी
39. विश्वावसु
40. पराभव
41. प्लवङ्ग
42. कीलक
43. सौम्य
44. साधारण
45. विरोधकृत्
46. परिधावी
47. प्रमाथी
48. आनन्द
49. राक्षस
50. नल
51. पिङ्गल
52. काल
53. सिद्धार्थ
54. रौद्र
55. दुर्मति
56. दुन्दुभी
57. रुधिरोद्गारी
58. रक्ताक्षी
59. क्रोधन
60. क्षय

आनन्दादि योग के नाम
1. आनन्द - सिद्धि
2. कालदण्ड - मृत्यु
3. धुम्र - असुख
4. धाता/प्रजापति - सौभाग्य
5. सौम्य - बहुसुख
6. ध्वांक्ष - धनक्षय
7. केतु/ध्वज - सौभाग्य
8. श्रीवत्स - सौख्यसम्पत्ति
9. वज्र - क्षय
10. मुद्गर - लक्ष्मीक्षय
11. छत्र - राजसन्मान
12. मित्र - पुष्टि
13. मानस - सौभाग्य
14. पद्म - धनागम
15. लुम्बक - धनक्षय
16. उत्पात - प्राणनाश
17. मृत्यु - मृत्यु
18. काण - क्लेश
19. सिद्धि - कार्यसिद्धि
20. शुभ - कल्याण
21. अमृत - राजसन्मान
22. मुसल - धनक्षय
23. गद - भय
24. मातङ्ग - कुलवृद्धि
25. राक्षस - महाकष्ट
26. चर - कार्यसिद्धि
27. स्थिर - गृहारम्भ
28. वर्धमान - विवाह


Benefits of positive energy सकारात्मक ऊर्जा के लाभ

              सकारात्मक ऊर्जा के लाभ
         Benefits of positive energy 


हम अक्सर सकारात्मक(Positive)विचार के लिए प्रयासरत और नकारात्मक(Negetive) ऊर्जा से दूर  रहने की कोशिश करते रहते हैं।पर हमें ये पता नही चलता कि इससे क्या लाभ-हानि हो सकती है?
किसी का आदर-सत्कार करने से पहले यह सोचना कि मैं इसका आदर-सत्कार करूं या न करूं, यह अज्ञानता है।

किसी का आदर-सत्कार करना मिट्टी में फूलों के बीज डालने जैसा ही है।
एक बार मिट्टी में बीज चला गया तो हम चाहें या न चाहें प्रकृति उन बीजों को अंकुरित/पल्लवित-पुष्पित करके ही दम लेगी।
इसके लिए हमें विशेष कुछ नहीं करना पड़ता है,
लेकिन प्रसन्नता अवश्य मिलती है।
यह सहज है और इसके लिए मस्तिष्क को कोई मेहनत नही करनी पड़ती है।
इसके लिए सिर्फ एक भाव की जरूरत होती है कि मुझे सबका सम्मान करना है।
इस भाव की प्रतिक्रिया को कोई अस्वीकार भी नहीं करता।

किन्तु किसी के सम्मान की अस्वीकृति बड़ी कठिन होती है।
सम्मान की अस्वीकृति का अर्थ है किसी का अपमान अथवा उपेक्षा करना।
इसके लिए अत्यधिक ऊर्जा की जरूरत पड़ती है।
इतनी कि बाकी के कामों के लिए ऊर्जा बचती ही नहीं।
किसी का अपमान अथवा उपेक्षा करना सरल नहीं कठिन होता है,
क्योंकि इसके लिए मन में विशेष परिस्थितियों का निर्माण करना पड़ता है।
जब तक हम अपने मन में किसी के प्रति घृणा अथवा विद्वेष नहीं पालेंगे उसकी उपेक्षा अथवा अपमान कैसे कर पाएंगे?
किसी का अपमान करने के लिए हमें अपने अंदर जहर भरना होता है,
अपने आपको सुलगाना पड़ता है तब कहीं जाकर वह जहर, वह आंच आगे फैलती है।
जितना अधिक जहर होगा, जितनी अधिक आंच सुलगेगी उतनी ही अधिक ऊर्जा भी नष्ट होगी।
किसी का अपमान अथवा उपेक्षा मनुष्य की जीवनी शक्ति अथवा ऊर्जा का भयंकर दुरुपयोग है, अपव्यय है।

इससे अच्छे भले संबंध भी खराब हो सकते हैं। सिर्फ हो सकते हैं नहीं, हो जाते हैं।
यदि हमारे अंदर जहर ही जहर भरा हो, आग ही आग भरी हो,
तो वह कभी भी किसी पर गिर सकती है।
जब अंदर मिठास भरी हो तो वह भी किसी पर गिर सकती है,
लेकिन इसके गिरने से कोई नुकसान नहीं होता।
कई बार गलती से किसी पर यह मिठास गिर जाती है तो चमत्कार हो जाता है।
इससे ऊर्जा नष्ट नहीं होती, ऊर्जा स्तर और सुदृढ़ हो जाता है।
यदि हम अपनी ऊर्जा का सही प्रयोग करना चाहते हैं तो हमें बिना किसी भेद-भाव के सबका आदर करना शुरू कर देना चाहिए।
इससे न केवल बिगड़े हुए संबंधों को सुधारने में मदद मिलती है,
अपितु वर्तमान अच्छे संबंध और अधिक अच्छे व अर्थपूर्ण हो जाते हैं।
इसी में जीवन का वास्तविक आनंद है। यदि हम इस क्षेत्र में थोड़ा सा भी प्रयास करें तो चमत्कार घटित हो सकता है।
जीवन में कोई भी चमत्कार कोई दैवी घटना नहीं अपितु अपनी ऊर्जा को सही दिशा में प्रस्तुत करना ही है।
जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मक सोच ही चमत्कार उत्पन्न करने में सक्षम होती है।
साभार-

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Tuesday, February 5, 2019

Mahamrityunjay Mantra

                       महामृत्युञ्जय मंत्र

भूतभावन भगवान शिव अपने भक्तों की भक्ति से जल्द प्रसन्न होकर उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए ऐसे कई मंत्र हैं, जिनका नित्य जप/अनुष्ठान कर मनोकामनाएं पूरी की जा सकती हैं।

शिवपुराणआदि ग्रन्थों में ऐसे कई मंत्रों का वर्णन किया गया है, जो मानव  के कल्याण हेतु बहुत ही प्रभावी हैं।

शिव को जल्द प्रसन्न करने का सबसे प्रभावशाली मंत्र है- महामृत्युञ्जय मंत्र। इस मंत्र का जप करने से वैभव व ऐश्वर्य की कामना पूरी होती है,साथ ही रोगनिवारण की अद्भुत क्षमता इस मंत्र में होती है।

महामृत्युञ्जय मंत्र Mahamrityunjay Mantra-

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।

यह ऐसा चमत्कारी मंत्र है, जिसके नित्य जप से कुंडली में मौजूद दोष दूर हो जाते हैं। इस मंत्र के जप से मांगलिक दोष, नाड़ी दोष, कालसर्प दोष, बुरी नजर दोष, रोग, दुःस्वप्न, वैवाहिक जीवन की समस्याएं, संतान बाधा आदि समस्या भी दूर होती हैं।

जो जातक भक्तिपूर्वक इस मंत्र का जाप करते हैं, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता, उम्र बढ़ती है। इस मंत्र को जीवन प्रदाता भी कहा गया है।
इस मंत्र का नित्य जप व शिव पूजन करने से स्वास्थ उत्तम बना रहता है। अगर किसी बीमारी से पीड़ित हैं, तो वह रोग दूर हो जाता है। यदि आर्थिक समस्या बनी रहती है, धन हानि होती है, व्यापार में लाभ नहीं होता, तो इस मंत्र का जाप करने से धन-दौलत और वैभव प्राप्त होता है।

इस मंत्र का निरंतर जप करने वाले जातकों को समाज में उच्च स्थान मिलता है। समाज में सम्मान बना रहता है, ख्याति फैलती है, नौकरी या व्यवसाय में तरक्की होती है, जीवन में आनंद की प्राप्ति होती है व सुख-समृद्धि बढ़ती है।

ऐसे जातक जो निःसंतान है। वह प्रतिदिन शिव को जल अर्पित करने के साथ-साथ इस मंत्र का जाप करें, तो जल्द सुंदर संतान की प्राप्ति होगी। धन-हानि हो रही हो या मनोबल कमजोर हो गया हो तो महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।

शास्त्रों के अनुसार, इस मंत्र का जप करने के लिए ब्रम्हमुहूर्त का समय सबसे उत्तम माना गया है, लेकिन अगर आप इस समय मंत्र जप नहीं कर पाते हैं, तो सुबह उठकर स्नान कर साफ कपडे़ पहने, फिर कम से कम पांच बार(पाँच माला) रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें।

अगर कुंडली में किसी भी तरह से मृत्यु दोष या मारकेश है, तो इस मंत्र का जप करें। इस मंत्र का जप करने से किसी भी तरह की महामारी से बचा जा सकता है, पारिवारिक कलह, संपत्ति विवाद से भी बचता है।

इस मंत्र में आरोग्यकर शक्तियां है, जिसके जप से ऐसी ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो आपको मृत्यु के भय से मुक्त कर देती है, इसीलिए इसे मोक्ष दायक भी कहा गया है। इस मंत्र के जप से शिव की कृपा प्राप्त होती है।

आपको व्यापार में घाटा हो रहा है, तो महामृत्युजंय मंत्र का जप करें, लाभ होने लगेगा। भविष्य पुराण में कहा गया है कि महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से अच्छा स्वास्थ्य, धन, समृद्धि और लंबी उम्र मिलती है।

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नमक के कुछ अद्भुत प्रयोग Some amazing use of salt

 एक ऐसी वस्तु जिसका प्रयोग हम भोजन में नियमित रूप से करते हैं।जिसके बिना एक दिन भी रहना मुश्किल होता है।लेकिन क्या आप जानते हैं कि  भोजन और औषधि प्रयोग के अलावा भी इसका प्रयोग किया जाता है?
यदि नही तो -

आईये जानते हैं नमक के कुछ प्रयोग
Let's know some uses of salt

हमारे यहां मांगलिक कार्यों में सबसे पहले घर में नमक लाया जाता है क्योंकि साबुत नमक घर में रखना बहुत शुभ माना जाता है।


जब शादी में सबसे पहले गणेश स्थापना के पूर्व भी जो पूजा सामग्री रखी जाती है उसमें साबुत नमक भी जरुर रखा जाता है। वास्तु के अनुसार ऐसी मान्यता है कि साबुत नमक में सकारात्मक ऊर्जा को अपनी तरफ आकर्षित करने की क्षमता होती है।


साथ ही यह नकारात्मक उर्जा को घर से दूर करता है। इसलिए घर में कोई भी शुभ काम करने जा रहे हों तो नमक डालकर पोंछा जरूर लगाएं।

घर में हमेशा साबुत नमक जरुर रखना चाहिए क्योंकि इससे घर से कई तरह के वास्तुदोष दूर हो जाते हैं। इसीलिए घर के जिस भी कोने में वास्तुदोष दूर करने के लिए वहां एक काँच या मिट्टी के प्याले में भरकर साबुत नमक रखा जाता है।

मन में खिन्नता, उदासी,भय, चिंता होने से, दोनों हाथों में साबुत नमक भर कर कुछ देर रखे रहें, फिर वॉशबेसिन में डाल कर पानी से बहा दें। नमक इधर-उधर न फेंकें। नमक हानिकारक चीजों को नष्ट करता है।

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Monday, February 4, 2019

मौनी अमावस्या Mauni Amavasya

मौनी अमावस्या Mauni Amavasya


हमारे धर्मग्रंथों में माघ मास को बेहद पवित्र और धार्मिक माह  माना जाता है ।
इस मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है।
सूर्य के मकर राशि में रहते हुए मौनी अमावस्या का पड़ना अपने आप में एक महा संयोग है।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों और सरोवरों में देवी देवताओ का वास होता है।

चन्द्रमा को मन का स्वामी माना गया है और अमावस्या को चन्द्रदर्शन नहीं होते, जिससे मन की स्थिति कमज़ोर होती है। इसलिए इस दिन मौन व्रत रखकर मन को संयम में रखने का विधान बनाया गया है।
मौनी अमावस्या का भी यही संदेश है कि इस दिन मौन व्रत धारण कर मन को संयमित किया जाये। मन ही मन ईश्वर के नाम का स्मरण किया जाये उनका जाप किया जाये। यह एक प्रकार से मन को साधने का पर्व है।

यदि किसी के लिये मौन रहना संभव न हो तो वह अपने विचारों में किसी भी प्रकार की मलिनता न आने दे, किसी के प्रति कोई कटुवचन न निकले तो भी मौनी अमावस्या का व्रत उसके लिये सफल होता है।
प्रात:काल पवित्र तीर्थ स्थलों पर स्नान किया जाता है। स्नान के बाद तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला, वस्त्रादि किसी ब्राह्मण को दान दिया जाता है।

● इस दिन पितरों का तर्पण करने से भी उन्हें शांति मिलती है।
● इस दिन किया गया गंगा स्नान अश्वमेध यज्ञ के फल के सामान पुण्य फलदायी होता है।

● शास्त्रानुसार इस दिन मौन रहकर स्नान-ध्यान करने से सहस्त्र गौ दान का पूण्य मिलता है।

● शास्त्रो के अनुसार पीपल की परिक्रमा करने से ,सेवा पूजा करने से, पीपल की छाया से,स्पर्श करने से समस्त पापो का नाश,अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति होती है व आयु में वृद्धि होती है।किन्तु सामान्य दिनों में केवल शनिवार के दिन ही पीपल वृक्ष का स्पर्श किया जाता है।

● पीपल के पूजन में दूध, दही, तिल मिश्रितमिठाई, फल, फूल,जनेऊ, का जोड़ा चढाने से और घी का दीप दिखाने से भक्तो की सभी मनोकामनाये पूरी होती है।
कहते है की पीपल के मूल में भगवान् विष्णु तने में शिव जी तथा अग्र भाग में ब्रह्मा जी का निवास है।इसलिए सोमवार को यदि अमावस्या हो तो पीपल के पूजन से अक्षय पूण्य लाभ तथा सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

●  इस दिन विवाहित स्त्रियों द्वारा पीपल के पेड़ की दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन आदि से पूजा और पीपल के चारो और 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा करने का विधान होता है और हर परिक्रमा में कोई भी तिल मिश्रित मिठाई या फल चढाने से विशेष लाभ होता है। ये सभी 108 फल या मिठाई परिक्रमा के बाद ब्राह्मण या निर्धन  को दान करे। इस प्रक्रिया को कम से कम 3 सोमवतीअमावस्या तक करने से सभी समस्याओ से मुक्ति मिलती है।इस प्रदक्षिणा से पितृ दोष का भी निश्चित समाधान होता है।

●  इस दिन जो भी स्त्री तुलसी या माँ पार्वती पर सिंदूर चढ़ा कर अपनी मांग में लगाती है वह अखंड सौभाग्यवती बनी रहती है।

●  जिन जातको की जन्म पत्रिका में कालसर्प दोष है।वे लोग यदि सोमवती अमावस्या पर चांदी के बने नाग-नागिन की विधिवत पूजा कर उन्हें नदी में प्रवाहित करे,शिव जी पर कच्चा दूध चढाये,पीपल पर मीठा जल चढ़ा कर उसकी परिक्रमा करें,धुप दीप दिखाए,ब्राह्मणों को यथा शक्ति दान दक्षिणा दे कर उनका आशीर्वाद ग्रहण करे तो निश्चित ही काल सर्प दोष की शांति होती है।

●  इस दिन जो लोग व्यवसाय में परेशानी उठा रहे है,वे पीपल के नीचे तिल के तेल का दिया जलाकर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मन्त्र का कम से कम 5 माला जप करे तो व्यवसाय में आ रही दिक्कते समाप्त होती है।इस दिन अपने पितरों के नाम से पीपल का वृक्ष लगाने से जातक को सुख, सौभग्य,पुत्र की प्राप्ति होती है,एव पारिवारिक कलेश दूर होते है।

●  इस दिन पवित्र नदियो में स्नान, ब्राह्मण भोज, गौ दान, अन्नदान, वस्त्र, स्वर्ण आदि दान का विशेष महत्त्व माना गया है,इस दिन गंगा स्नान का भी विशिष्ट महत्त्व है। माँ गंगा या किसी पवित्र सरोवर में स्नान कर शिव-पार्वती एवं तुलसी का विधिवत पूजा करें।

● भगवान् शिव पर बेलपत्र, बेल फल, मेवा, तिल मिश्रित मिठाई, जनेऊ का जोड़ा आदि चढ़ा कर ॐ नमः शिवाय की 11 माला करने से असाध्य कष्टो में भी कमी आती है।

● प्रातः काल शिव मंदिर में सवा किलो साबुत चांवल और तिल अथवा तिल मिश्रित मिष्ठान दान करे।

● सूर्योदय के समय सूर्य को जल में लाल फूल,लाल चन्दन डाल कर गायत्री मन्त्र जपते हुए अर्घ देने से दरिद्रता दूर होती है।

●  सोमवती मौनीअमावस्या को तुलसी के पौधे की ॐ नमो नारायणाय जपते हुए  108 बार परिक्रमा करने से दरिद्रता दूर होती है।

●  जिन लोग का चन्द्रमा कमजोर है वो गाय को दही और चांवल खिलाये अवश्य ही मानसिक शांति मिलेगी।

●  मन्त्र जप,साधना एवं दान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

● इस दिन स्वास्थ्य, शिक्षा, कानूनी विवाद, आर्थिक परेशानियो और पति-पत्नी सम्बन्धि विवाद के समाधान के लिए किये गए उपाय अवश्य ही सफल होते है।

● इस दिन धोबी-धोबन को भोजन कराने,उनके बच्चों को किताबे मिठाई फल और दक्षिणा देने से सभी मनोरथ पूर्ण होते है।

● मौनीअमावस्या को भांजा,ब्राह्मण, और ननद को मिठाई, फल,खाने की सामग्री देने से उत्तम फल मिलाता है।

● इस दिन अपने आसपास के वृक्ष पर बैठे कौओं और जलाशयों की मछलियों को (चावल और घी मिलाकर बनाए गए) लड्डू दीजिए। यह पितृ दोष दूर करने का उत्तम उपाय है।

● मौनीअमावस्या के दिन दूध से बनी खीर दक्षिण दिशा में (पितृ की फोटो के सम्मुख) कंडे की धूनी लगाकर पितृ को अर्पित करने से भी पितृ दोष में कमी आती है।

● मौनीअमावस्या के समय जब तक सूर्य चन्द्र एक राशि में रहे, तब कोई भी सांसरिक कार्य जैसे-हल चलाना, दांती, गंडासी, लुनाई, जोताई, आदि तथा इसी प्रकार से गृह कार्य भी नहीं करने चाहिए।

मौनी अमावस्या की कथा
The story of Mauni Amavasya

कांचीपुरी में देवस्वामी नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम धनवती था। उनके सात पुत्र तथा एक पुत्री थी। पुत्री का नाम गुणवती था। ब्राह्मण ने सातों पुत्रों को विवाह करके बेटी के लिए वर खोजने अपने सबसे बड़े पुत्र को भेजा। उसी दौरान किसी पण्डित ने पुत्री की जन्मकुण्डली देखी और बताया- "सप्तपदी होते-होते यह कन्या विधवा हो जाएगी।" तब उस ब्राह्मण ने पण्डित से पूछा- "पुत्री के इस वैधव्य दोष का निवारण कैसे होगा?" पंडित ने बताया- "सोमा का पूजन करने से वैधव्य दोष दूर होगा।" फिर सोमा का परिचय देते हुए उसने बताया- "वह एक धोबिन है। उसका निवास स्थान सिंहल द्वीप है। उसे जैसे-तैसे प्रसन्न करो और गुणवती के विवाह से पूर्व उसे यहाँ बुला लो।" तब देवस्वामी का सबसे छोटा लड़का बहन को अपने साथ लेकर सिंहल द्वीप जाने के लिए सागर तट पर चला गया। सागर पार करने की चिंता में दोनों एक वृक्ष की छाया में बैठ गए। उस पेड़ पर एक घोंसले में गिद्ध का परिवार रहता था। उस समय घोंसले में सिर्फ़ गिद्ध के बच्चे थे। गिद्ध के बच्चे भाई-बहन के क्रिया-कलापों को देख रहे थे। सायंकाल के समय उन बच्चों (गिद्ध के बच्चों) की माँ आई तो उन्होंने भोजन नहीं किया। वे माँ से बोले- "नीचे दो प्राणी सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं। जब तक वे कुछ नहीं खा लेते, तब तक हम भी कुछ नहीं खाएंगे।" तब दया और ममता के वशीभूत गिद्ध माता उनके पास आई और बोली- "मैंने आपकी इच्छाओं को जान लिया है। इस वन में जो भी फल-फूल, कंद-मूल मिलेगा, मैं ले आती हूं। आप भोजन कर लीजिए। मैं प्रात:काल आपको सागर पार कराकर सिंहल द्वीप की सीमा के पास पहुंचा दूंगी।" और वे दोनों भाई-बहन माता की सहायता से सोमा के यहाँ जा पहुंचे। वे नित्य प्रात: उठकर सोमा का घर झाड़कर लीप देते थे।

एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा- "हमारा घर कौन बुहारता है, कौन लीपता-पोतता है?" सबने कहा- "हमारे सिवाय और कौन बाहर से इस काम को करने आएगा?" किंतु सोमा को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। एक दिन उसने रहस्य जानना चाहा। वह सारी रात जागी और सब कुछ प्रत्यक्ष देखकर जान गई। सोमा का उन बहन-भाई से वार्तालाप हुआ। भाई ने सोमा को बहन संबंधी सारी बात बता दी। सोमा ने उनकी श्रम-साधना तथा सेवा से प्रसन्न होकर उचित समय पर उनके घर पहुंचने का वचन देकर कन्या के वैधव्य दोष निवारण का आश्वासन दे दिया। किंतु भाई ने उससे अपने साथ चलने का आग्रह किया। अधिक आग्रह करने पर सोमा उनके साथ चल दी। चलते समय सोमा ने बहुओं से कहा- "मेरी अनुपस्थिति में यदि किसी का देहान्त हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट मत करना। मेरा इन्तजार करना।" और फिर सोमा बहन-भाई के साथ कांचीपुरी पहुंच गई। दूसरे दिन गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हो गया। सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया। सोमा ने तुरन्त अपने संचित पुण्यों का फल गुणवती को प्रदान कर दिया। तुरन्त ही उसका पति जीवित हो उठा। सोमा उन्हें आशीर्वाद देकर अपने घर चली गई। उधर गुणवती को पुण्य-फल देने से सोमा के पुत्र, जामाता तथा पति की मृत्यु हो गई। सोमा ने पुण्य फल संचित करने के लिए मार्ग में अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष की छाया में विष्णु जी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं कीं। इसके पूर्ण होने पर उसके परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे।
निष्काम भाव से सेवा का फल मधुर होता है, यही मौनी अमावस्या के व्रत का लक्ष्य है।
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Sunday, February 3, 2019

आलोचना और सफलता Criticism and success

एक बहुत पुरानी कहावत है-

"निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय"
nindak niyare raakhiye aangan kutee chhavaay"

अर्थात हमारे जीवन में निंदा/आलोचना करने वाले लोग बहुत महत्वपूर्ण है।कारण अगर कोई हमारी आलोचना नही करेगा तो हमे अपनी कमियों के अहसास भी नहीं हो पाएगा,और हमारा जीवन उद्देश्य से परे हो जाएगा।

हमारे शास्त्रों में अनेकों प्रेरणा देने वाले स्रोत हैं लेकिन हम उन्हें पढ़ते हैं कुछ समय तक याद रखा फिर भूल गए।

हमारा मन और मष्तिष्क हमेशा दूसरी दुनिया में विचरण करता रहता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि आप अपने मस्तिष्क को सकारात्मक विचार दो तो वो तुरंत ही नकारात्मक विचारों की ओर आकर्षित हो जाता है, आप बार-बार उसे अच्छा सोचने को कहते हो लेकिन वो फिर भी हर बार उल्टी दिशा में ही जाता है।

इसी तरह जब कोई हमें अच्छी बातों की ओर अग्रसर होने को कहता है तो वो बातें हमें अच्छी लगती हैं लेकिन कुछ समय बाद ही हमारे विचारों से दूर हो जाती हैं।

ठीक इसके विपरीत यदि कोई हमारी आलोचना करता है, हमारी निंदा करता है तो वो बात हमारे जेहन में अंदर तक चली जाती है और हम ठीक उसके खिलाफ हो जाते हैं।यह प्रभाव जितना अधिक होता है, जितना तीव्र होता है, हम उतनी ही तीव्रता से उसके खिलाफ काम कर रहे होते हैं और एक दिन हम उस  पड़ाव तक पहुंच चुके होते हैं जिसके न कर पाने के लिए हमारी आलोचना हुई थी।
अर्थात हम सफल हो चुके होते हैं और हमे पता भी नही चलता।

इससे ये बात सिद्ध होती है कि जीवन में निंदा करने वालों की बहुत ही आवश्यकता है, हम हर निंदा को स्वीकार करते हुए भी सफल हो जाते हैं, और यह सफलता बच्चों के खेल जैसी होती है।
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Saturday, February 2, 2019

जीवन का मुख्य रहस्य The main secret of life

जीवन का मुख्य रहस्य 

The main secret of life



गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है अच्छा हो रहा, है और जो होगा  वो भी अच्छा ही होगा।

भगवान श्रीकृष्ण जी ने दूसरा सूत्र यह भी बताया है कि कर्म करते जाओ फल की चिन्ता न करो।
कभी आपने विचार किया है कि कैसे?

क्या वास्तव में आपके साथ जो हुआ वो अच्छा ही हुआ ?
या जो हो रहा है वो सब अच्छा ही हो रहा है?

क्या यह सम्भव है कि हम बिना फल की चिन्ता किये ही कर्म करते जाएं?
यदि नही तो इसका अर्थ ये हुआ कि हम सब लोग अपने कर्मों का सही निर्वाहन नही कर रहें हैं।

मनुष्य अक्सर नकारात्मक विचारों (Negetive Thoughts) का स्मरण करता है। जो भी गलत घटनाएं, विचार, अनुभव है, उनका ही वह स्मरण करता रहता है, और जो भी शुभ है अर्थात सफलता उपलब्धि आदि, उसका स्मरण नहीं करता। ये मनुष्य की मुख्य भूलों (Blunders) में से एक  है कि जो भी नकारात्मक (Negetive) है,उसका वह स्मरण करता है; और जो भी विधायक है,सकारात्मक(Positive) है, उसका स्मरण नहीं करता।

किसी को शायद ही वे क्षण याद आते हों, जब आप प्रेम से भरे हुए थे,या अत्यंत उत्साहित थे,जब अपने स्वास्थ्य की कोई बहुत अदभुत ( Amazing) अनुभूति ( Sensation) की थी,या किसी क्षण बहुत शांत हो गए थे।

लेकिन आपको वे स्मरण(Remember)रोज आएंगे जब आप क्रोधित या अशांत हुए थे,जब किसी ने आपका अपमान किया था, या आपने किसी से बदला लिया था। आप उन-उन बातों को निरंतर स्मरण करते हैं, जो घातक हैं,और उनका स्मरण शायद ही होता हो, जो कि आपके जीवन के लिए विधायक हो सकती हैं।


विधायक अनुभूतियों का स्मरण बहुत बहुमूल्य है। उन-उन अनुभूतियों को निरंतर स्मरण करना चाहिए। इसमें सबसे महत्वपूर्ण तो यह होगा कि अगर आप विधायक अनुभूतियों को स्मरण करते हैं, तो उन अनुभूतियों के वापस पैदा होने की संभावना आपके भीतर बढ़ जाएगी।

जो आदमी घृणा की बातों को बार-बार याद करता हो, बहुत संभावना है,कि घृणा की कोई घटना उसके जीवन में बार-बार घटेगी। जो आदमी उदासी की बातों को बार-बार स्मरण करता हो, बहुत संभव है,कि उदासी बार-बार उसके करीब आएगी।
क्योंकि उसके एक तरह के झुकाव पैदा हो जाते हैं और वही बातें उसमें पुनरुक्त हो जाती हैं। ये जो भाव हैं, स्थायी बन जाते हैं और जीवन में उन-उन भावों का बार-बार पैदा हो जाना आसान हो जाता है।

इसको अपने भीतर विचार करें कि आप किस तरह के भावों को स्मरण करने के आदी हैं। हर आदमी स्मरण करता है। किस तरह के भावों को आप स्मरण करने के आदी हैं? और यह स्मरण रखें कि अतीत के जिन भावों को आप स्मरण करते हैं, भविष्य में आप उन्हीं भावों के घटनाओं के, बीजों को बो रहे हैं और उनकी फसल को काटेंगे। अतीत का स्मरण भविष्य के लिए रास्ता बन जाता है।

जो व्यर्थ है, जिसका कोई उपयोग नहीं है, उसे याद न करें। उसका कोई मूल्य नहीं है। अगर उसका स्मरण भी आ जाए, तो रुकें और उस स्मरण को कहें कि बाहर हो जाओ, तुम्हारी कोई आवश्यकता नहीं है। कांटों को भूल जाएं और फूलों को स्मरण रखें।

"बीती ताहि बिसारिये आगे की सुधि लेय।।"

 कांटे बहुत हैं, लेकिन फूल भी हैं। जो फूलों को स्मरण रखेगा, उसके जीवन में कांटे क्षीण होते जाएंगे और फूल बढ़ जाएंगे। और जो कांटों को स्मरण रखेगा, उसके जीवन में हो सकता है, फूल विलीन हो जाएं और केवल कांटे रह जाएं।

हम क्या स्मरण करते हैं, वही हम बनते चले जाते हैं। जिसका हम स्मरण करते हैं, वही हम हो जाते हैं। जिसका हम निरंतर विचार करते हैं, वैसा ही वातावरण हमारे लिए तैयार हो जाता है, वह विचार हमें परिवर्तित कर देता है क्योंकि इस संसार मे विचार ही सार है।और हमारा प्राण हो जाता है। इसलिए शुभ, सद, जो भी आपको श्रेष्ठ मालूम पड़े, उसे स्मरण करें और आप पाएंगे कि वो सब आपको प्राप्त होता जा रहा है।
यही आकर्षण का सिद्धांत(Attraction of Low)) है।

इस ईश्वर प्रदत्त जीवन में--इतना दरिद्र जीव कोई  नहीं है कि उसके जीवन में कोई शांति के, आनंद के, सौंदर्य के, प्रेम के क्षण न घटित हुए हों। और अगर आप उनके स्मरण में समर्थ हो गए, तो यह भी हो सकता है कि आपके चारों तरफ अंधकार हो, लेकिन आपकी स्मृति में प्रकाश हो और इसलिए चारों तरफ का अंधकार भी आपको दिखायी न पड़े। यह भी हो सकता है, आपके चारों तरफ दुख हो, लेकिन आपके भीतर कोई प्रेम की, कोई सौंदर्य की, कोई शांति की अनुभूति हो और आपको चारों तरफ का दुख भी दिखायी न पड़े। यह संभव है, यह संभव है कि बिलकुल कांटों के बीच में कोई व्यक्ति फूलों में हो। इसके विपरीत भी संभव है। और यह हमारे ऊपर निर्भर है।

यह मनुष्य के ऊपर निर्भर है कि वह अपने को विचारों के साथ कहां स्थापित कर देता है,क्योंकि जो आज हमारे साथ घट रहा है हो यह हमारे ऊपर निर्भर है कि हम स्वर्ग में रहते हैं या नर्क में रहते हैं।

 स्वर्ग- नर्क कोई भौगोलिक स्थान नहीं हैं। वे मानसिक, मनोवैज्ञानिक स्थितियां हैं। हममें से अधिकतर लोग दिन में कई बार नर्क में चले जाते हैं और कई बार स्वर्ग में आ जाते हैं। और हममें से कई लोग दिनभर नर्क में रहते हैं। और हममें से कई लोग स्वर्ग में वापस लौटने का रास्ता ही भूल जाते हैं। लेकिन ऐसे लोग भी हैं, जो चौबीस घंटे स्वर्ग में रहते हैं। इसी जमीन पर, इन्हीं स्थितियों में ऐसे लोग हैं, जो स्वर्ग में रहते हैं। आप भी उनमें से एक बन सकते हैं। कोई बाधा नहीं है, सिवाय कुछ सूत्रों/ नियमों को समझने के।

हमारे चित्त की स्थिति हम जैसी बनाए रखेंगे, यह दुनिया भी ठीक वैसी बन जाती है। न मालूम कौन-सा चमत्कार है कि जो आदमी भला होना शुरू होता है, यह सारी दुनिया उसे एक भली दुनिया में परिवर्तित हो जाती है। और जो आदमी प्रेम से भरता है, इस सारी दुनिया का प्रेम उसकी तरफ प्रवाहित होने लगता है।

और यह नियम इतना शाश्वत है कि जो आदमी घृणा से भरेगा, प्रतिकार में घृणा उसे उपलब्ध होने लगेगी। हम जो अपने चारों तरफ फेंकते हैं, वही हमें उपलब्ध हो जाता है। इसके सिवाय कोई रास्ता भी नहीं है।

तो हर समय उन क्षणों का स्मरण करें, जो जीवन में अदभुत थे, ईश्वरीय थे। वे छोटे-छोटे क्षण, उनका स्मरण करें और उन क्षणों पर अपने जीवन को खड़ा करें। और उन बड़ी-बड़ी घटनाओं को भी भूल जाएं, जो दुख की हैं, पीड़ा की हैं, घृणा की हैं, हिंसा की हैं। उनका कोई मूल्य नहीं है। उन्हें विसर्जित कर दें, उन्हें जीवन से हटा दें। जैसे सूखे पत्ते दरख्तों से गिर जाते हैं, वैसे जो व्यर्थ है, उसे छोड़ते चले जाएं; और जो सार्थक है और जीवंत है, उसे स्मरणपूर्वक पकड़ते चले जाएं। हर समय इसका सातत्य रहे। एक धारा मन में बहती रहे शुभ की, सौंदर्य की, प्रेम की, आनंद की।

तो आप क्रमशः पाएंगे कि जिसका आप स्मरण कर रहे हैं, वे घटनाएं बढ़नी शुरू हो गयी हैं। और जिसको आप निरंतर साध रहे हैं, उसके चारों तरफ दर्शन होने शुरू हो जाएंगे। और तब यही दुनिया बहुत दूसरे ढंग की दिखायी पड़ती है। और तब ये ही लोग बहुत दूसरे लोग हो जाते हैं। और ये ही आंखें और ये ही फूल और ये ही पत्थर एक नए अर्थ को ले लेते हैं, जो हमने कभी पहले जाना नहीं था। क्योंकि हम कुछ और बातों में उलझे हुए थे।
जब हम इस स्थिति को प्राप्त कर लेते हैं तो बुरा शब्द ही हमारे लिए समाप्त हो जाता है, और फिर जो भी होता हैअच्छा ही होता है, और हम बिना किसी फल की इच्छा के कर्म करते चले जाते हैं।

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त

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