Monday, June 27, 2016

जन्म नक्षत्र के अनुसार रत्न और रुद्राक्ष Gems and Rudraksh according to birth constellation

जन्म नक्षत्र के अनुसार रत्न और रुद्राक्ष


[1] अश्विनी नक्षत्र
यदि आपका जन्म अश्विनी नक्षत्र में हुआ है तो आप मूंगा माणिक्य तथा लहसुनिया रत्न और एकमुखी तीनमुखी और नौमुखी रुद्राक्ष धारण कर सकते है ।
इनकी सहायता से स्वास्थ लाभ आत्मविश्वास में वृद्घि कार्यक्षेत्र में उन्नति जैसे फल प्राप्त होते है ।

[2] भरणी नक्षत्र
जिनका जन्म भरणी नक्षत्र में हुआ है तो आपको हीरा या ओपल एवं मूंगा रत्न धारण करना चाहिए ।
और तीनमुखी और छमुखी रुद्राक्ष धारण करना भी उत्तम होगा ।
इससे आत्मविश्वास और आर्थिक समृद्घि होती है ।

[3] कृत्तिका नक्षत्र
जिस जातक का जन्म कृत्तिका नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म हो तो वह माणिक्य तथा मूंगा रत्न धारण कर सकता है ।
और एकमुखी एवं तीनमुखी रुद्राक्ष भी धारण करना उत्तम होगा ।
यदि जिसका जन्म वृषभ राशि और कृत्तिका के अंतिम चरण में हो तो वह माणिक्य के साथ हीरा या ओपल रत्न एवं एकमुखी रुद्राक्ष के साथ छमुखी रुद्राक्ष भी धारण करना चाहिए ।
इससे व्यक्ति की हर दिशा में उन्नति होती है ।
[4] रोहिणी नक्षत्र
रोहणी नक्षत्र में जन्म होने पर हीरा अथवा ओपल एवं मोती रत्न तथा दोमुखी और छमुखी रुद्राक्ष धारण करने से सभी प्रकार के सुखो की प्राप्ति होती है।

[5] मृगशिरा नक्षत्र
मृगशिरा नक्षत्र में पहले दो चरणों में जन्म होने पर मूंगा तथा हीरा अथवा ओपल रत्न एवं तीनमुखी छमुखी रुद्राक्ष धारण करना उत्तम होता है ।
मिथुन राशि अर्थात मृगशिरा नक्षत्र के अंतिम दो चरणों में जन्म होने पर सफेद मूंगा एवं पन्ना रत्न तथा तीनमुखी एवं चारमुखी रुद्राक्ष उन्नति देंने वाले होते है ।

[6] आर्द्रा नक्षत्र
इस नक्षत्र में जन्मे जातक को
जीवन में उन्नति प्राप्त हेतु पन्ना एवं गोमेदक रत्न तथा चारमुखी और आठमुखी रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए ।

[7] पुनर्वसु नक्षत्र
पुनर्वसु नक्षत्र के प्रथम तीन चरण अर्थात मिथुन राशि में जन्म होने पर पन्ना एवं पुखराज रत्न तथा चारमुखी और पांचमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए ।
इससे जातक को अपार सफलता मिलती है ।
पुनर्वसु नक्षत्र के अंतिम चरण में जन्म होने पर पुखराज एवं मोती रत्न तथा दोमुखी और पांचमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए ।
इससे जातक को उत्तम स्वास्थ और श्रेष्ठ बुद्घि की प्राप्ति होती है।

[8] पुष्य नक्षत्र
इस नक्षत्र में जन्म होने पर जातक को नीलम एवं मोती रत्न तथा दोमुखी और सातमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए ।
स्वास्थ लाभ एव आर्थिम लाभ की प्राप्ति होता है।

[9] अश्लेषा नक्षत्र
इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति को मोती एवं पन्ना रत्न तथा चारमुखी और दोमुखी रुद्राक्ष धारण करने से सभी क्षेत्रो में उन्नति प्राप्त होती है ।

[10] मघा नक्षत्र
इस नक्षत्र में जन्मे लोगो माणिक्य एवं लहसुनिया तथा एकमुखी एवं नौमुखी रुद्राक्ष धारण करने से दुखो से छुटकारा मिल जाता है और उन्नति मिलती है ।

[11] पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र
इस नक्षत्र में जन्मे जातक को माणिक्य एवं हीरा या ओपल रत्न तथा एकमुखी एवं छमुखी रुद्राक्ष धारण करने से सर्वोन्नति प्राप्त होती है ।

[12] उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र
इस नक्षत्र में ( सिंह एवं कन्या राशियों में ) जन्मे जातक को माणिक्य एवं पन्ना रत्न तथा एकमुखी एवं चारमुखी रुद्राक्ष धारण करने से उत्तम स्वस्थ आत्मशक्ति और आर्थिक उन्नति मिलती है ।

[13] हस्त नक्षत्र
इस नक्षत्र में जन्मे जातक को उन्नति एवं आर्थिक सुरक्षा हेतु पन्ना एवं मोती रत्न तथा दोमुखी और चारमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए ।

[14] चित्रा नक्षत्र
चित्रा नक्षत्र के दो चरणों में जन्म होने पर मूंगा एवं पन्ना रत्न तथा तीनमुखी एवं चारमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए ।
चित्रा नक्षत्र के अंतिम दो चरणों में जन्म होने पर अर्थात तुला राशि एवं चित्रा नक्षत्र में जन्म होने पर हीरा अथवा ओपल के साथ सफेद मूंगा रत्न एवं तीनमुखी और छमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए ।
इससे जातक को स्वास्थ्य लाभ और व्यापार में लाभ होगा और आत्मविश्वास में वृद्घि होगी।

[15] स्वाती नक्षत्र
इस नक्षत्र में जन्म होने पर स्वास्थ्य रक्षा और उन्नति हेतु गोमेद तथा हीरा या ओपल रत्न और छमुखी व आठमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए ।

[16] विशाखा नक्षत्र
इस नक्षत्र के प्रारम्भिक तीन चरणों में जन्म होने पर पुखराज तथा ओपल रत्न एवं पांचमुखी छमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए  ।
और अंतिम चरण में और वृश्चिक राशि में जन्म होने पर पुखराज धारण करना चाहिए ।
अपार सफलता मिलती है ।

[17] अनुराधा नक्षत्र
इस नक्षत्र में जन्म होने पर नीलम तथा मूंगा रत्न एवं तीनमुखी सातमुखी रुद्राक्ष धारण करे ।
पराक्रम बढ़ता है और असम्भव कार्य सम्भव हो जाता है ।

[18] ज्येष्ठा नक्षत्र
इस नक्षत्र में जन्म होने पर मूंगा पन्ना रत्न एवं तीनमुखी छमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए इससे अपनी मति द्वारा यश एवं प्रतिष्ठा प्राप्त होती है ।

[19] मूल नक्षत्र
इस नक्षत्र में जन्मे जातक को पुखराज एवं लहसुनियां रत्न तथा पांचमुखी नौमुखी रुद्राक्ष धारण करने से आत्मविश्वास में वृद्घि अपार यश की प्राप्ति होती है ।

[20] पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र
इस नक्षत्र में जन्म होने पर पुखराज माणिक्य रत्न एवं एकमुखी पांचमुखी रुद्राक्ष धारण करे ।
भाग्य पक्ष मजबूत होगा उन्नति होगी ।

[21] उत्तराषाढा नक्षत्र
इस नक्षत्र के प्रथम चरण में यदि जन्म हुआ हो तो पुखराज एवं माणिक्य रत्न तथा एकमुखी पांचमुखी रुद्राक्ष धारण करना उत्तम होता है ।
यदि अंतिम तीन चरणों में जन्म हुआ हो तो माणिक्य एवं नीलम रत्न तथा एकमुखी सातमुखी रुद्राक्ष धारण करना उत्तम होता है ।
[22] श्रवण नक्षत्र
इस नक्षत्र वालो को मोती और नीलम रत्न धारण करना चाहिए यदि श्रेष्ठ फल चाहते हो तो साथ में दोमुखी और सातमुखी रुद्राक्ष भी धारण करे ।

[23] धनिष्ठा नक्षत्र
घनिष्ठा नक्षत्र  [ मकर एवं कुम्भ दोनों राशियों में ] में जन्म होने पर मूंगा तथा नीलम रत्न और तीनमुखी सातमुखी रुद्राक्ष भी धारण करे ।
अपार सफलता मिलती है ।

[24] शतभिषा नक्षत्र
इस नक्षत्र में जन्मे जातक को गोमेद एवं नीलम रत्न तथा सात और आठ मुखी अपार उन्नति हेतु धारण करना चाहिए ।

[25] पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र
इस नक्षत्र के प्रथम 3 चरणों में जन्मे लोगो को पुखराज एवं नीलम रत्न तथा पांचमुखी सातमुखी रुद्राक्ष और
अंतिम चरण में जन्मे को मूंगा और पुखराज तथा 3 और 5 मुखी रुद्राक्ष प्रत्येक क्षेत्रो में उन्नति हेतु धारण करना चाहिए ।

[26] उत्तराभाद्रपद नक्षत्र
इस नक्षत्र में जन्मे को पुखराज नीलम तथा 5 व 7 मुखी रुद्राक्ष धारण करने से अपने कार्यक्षेत्र में उन्नति और सभी सुखो की प्राप्ति होती है ।

[27] रेवती नक्षत्र
रेवती नक्षत्र में जन्मे लोगो को सभी सुखो की प्राप्ति हेतु पन्ना पुखराज तथा 4 व 5 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए ।

Related Post-

● सुख-समृद्धि व मन की प्रसन्नता के लिए For happiness and prosperity and happiness of mind

● नक्षत्र से रोग विचार तथा उपाय

● कैसे जानें ग्रहों का अशुभ प्रभाव अपने जीवन मे How To Learn The Inauspicious Impact Of The Planets In Your Life

● महामृत्युञ्जय mahaamrtyunjay

Friday, June 24, 2016

सुख-समृद्धि व मन की प्रसन्नता के लिए For happiness and prosperity and happiness of mind

सुख-समृद्धि व मन की प्रसन्नता के लिए बैठक कक्ष में फूलों का गुलदस्ता रखें। शयनकक्ष में खिड़की के पास भी गुलदस्ता रखना चाहिए।
घर में कभी भी कंटीली झाडिय़ां या पौधे न रखें। इन्हें लगाने से समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।उन पुष्प या पौधे को सजावट में न ले जिससे दूध झरता हो। शुभता की दृष्टि से ये अशुभ होते हैं।शयनकक्ष में झूठे बर्तन नहीं रखना चाहिए। आलस्य के कारण ऐसा करने पर रोग व दरिद्रता आती है।
रात में बुरे सपने आते हों तो जल से भरा तांबे का बर्तन सिरहाने रखकर सोएं।
यदि गृहस्थ जीवन में समस्याएं हों तो कमरे में शुद्ध घी का दीपक प्रतिदिन जलाना चाहिए।
यदि शत्रु पक्ष से पीडित हो तो पलंग के नीचे लोहे का दण्ड रखें।पवित्र स्थान या पूजा स्थल ईशान कोण(पूर्व-उत्तर) में ही बनवाएं। इससे घर में खुशहाली आएगी।
टी.वी. या अन्य अग्नि संबंधी उपकरण सदैव आग्नेय कोण में रखें।
शयन कक्ष में नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करें। ऐसा करने से घर में क्लेश होता है।

All Problem in life of 12 house

All Problem in life because of 8, 12 house
5;8;12--Love Scandal, Financial Scandal.
7;8;12--Rape, Murder
6;8;12---Problems hi problem mostly health
3;8;12--sort-2 travel
4;8;12-- property related problem
1;4;8;12-- accidents
1;10;6;8;12-court cases
1;6--1:8-1:12--sort health problem
1:6:8--surgery is required
1:6:12-- Big health problem
1:8:12 and 1:6:8:12---surgery required but not much helpful
1:6:10 with 8:12-- divorce related court cases

ईष्ट या देवता एक चिन्तन God or a god


ईष्ट या देवता का प्रत्यक्षीकरण या प्रकटीकरण एक ऐसी घटना होती है ,जिसे लक्ष्यकर प्रत्येक साधक -आराधक अपने पूजा-अनुष्ठान-साधना शुरू करता है |उसका परम लक्ष्य उस ईष्ट या देवता का साक्षात्कार करना होता है |सामान्य साधक या आस्थावान कभी यह नहीं सोचता यह कैसे होता है ,कहा से आते है देवी-देवता ,इसके पीछे कौन सी उर्जा-तकनीक काम करती है |,क्या सचमुच वह ईष्ट हमारे सामने कही से आकर खड़ा हो जाता है ,जिसे हम बुला रहे होते है ,क्या वास्तव में ऐसे देवता कही किसी लोक में रहते है | क्षमा कीजियेगा यदि आस्थावानो की भावना को ठेस लगे ,किन्तु यदि आप समझते है की देवी-देवता की आकृतियों के विलक्षण प्राणी इस ब्रह्माण्ड में कही रहते है तो आप भारी भ्रम में है |
कभी इन देवियों की पूजा पहाड़ काटकर मूर्ति जैसा बनाकर ,कभी फूस तो कभी मिटटी की पिंडी जैसी बनाकर की जाती थी ,,आज इनकी सुन्दर मुर्तिया बनी हुई है |आप इनमे से किस आकृति की देवी को अलौकिक प्राणी मानेगे?देवता तो वैदिक ऋषियों के प्रतीक थे और वे मूर्ति पूजक थे ही नहीं |यदि देवी-देवता जैसे प्राणी है तो वे केवल मूर्ति पूजको को ही मिलने चाहिए |फिर जो मूर्ति पूजक नहीं है ,मुसलमान या ईसाई है ,या जो गुरु परम्परा के है अथवा जो गुरु को ही ईश्वर मानते है ,तो क्या उन्हें ईश्वर नहीं मिलता या वे ईश्वरीय उर्जा अथवा कृपा से वंचित होते है |नहीं ऐसा नहीं है ,ईश्वर उर्जा स्वरुप है ,सर्वत्र विद्यमान है ,,मुर्तिया वस्तुतः भाव मुर्तिया है ,जो मानसिक एकाग्रता के लिए होती है ,एक विशेष प्रकार की ऊर्जा -गुण और भाव जाग्रत करने वाली आकृति होती है मुर्तिया |सामने एक आकृति है और उसका भाव है तो उस भाव को गहन करना सरल हो जाता है |
जब भाव गहन होता है ,तो एक समय ऐसा आता है ,जब साधक अनुभूत करता है की वह आकृति प्रकट हो गयी |वह आकृति प्रत्यक्ष उससे बातें कर रही है |यह कल्पना का साकार हो जाना है |वह आकृति सचमुच साधक के सामने सजीव हो जाती है और उसके प्रत्येक प्रश्न के उत्तर देती है या आशीर्वाद देकर दर्शन देती है |
यह साधना की एक दुर्लभ अवस्था है ,इस अवस्था में पंहुचा साधक ही वास्तविक सिद्ध है |...........परन्तु क्षमा कीजियेगा यह भी एक भावात्मक अनुभूति है वहा कोई प्राणी नहीं आया होता है अपितु ऊर्जा समूह आकृति में आया होता है और वहा व्याप्त होता है |साधक जब उस आकृति को प्रत्यक्ष करता है तो वहा का वातावरण उस भाव से संतृप्त हो जाता है ,फलतः वहा अन्य जो भी होगा उसे लगेगा एकाएक कुछ परिवर्तन हो गया और वह चौंकेगा ,किन्तु उस आकृति को केवल साधक अनुभव कर सकेगा और बातें कर सकेगा ,अन्य व्यक्ति को वह दृष्टिगत नहीं होगी ,क्योकि वह साधक के भाव की आकृति है ,वास्तव में उसका वहा कोई अवतरण नहीं होता |
होता यह है की जब साधक किसी विशेष भाव-गुण-आकृति पर एकाग्र होता है तो उसके भाव की गहनता उसके आतंरिक ऊर्जा चक्र में सम्बंधित गुण -भाव के चक्र को स्पंदित करने लगते है [ज्ञातव्य है की शरीर में ही समस्त गुणों का प्रतिनिधित्व करने वाले चक्र उपस्थित होते है ,तभी तो कहा जाता है की सभी देवी देवता इसी शरीर में है ]फलतः चक्र से सामान्य से अधिक उर्जा और तरंगे उर्सर्जित होने लगती है ,यह तरंगे शारीरिक -रासायनिक परिवर्तन के साथ ही विशिष्ट आभामंडल भी बनाने लगती है |इस प्रकार एक निश्चित मानसिक उर्जा बनती और अंतरिक्ष में प्रक्षेपित होने लगती है ,जिसके बल से सौरमंडल में उपस्थित उसी प्रकार की उर्जा और भाव तरंगे वहाँ खिचने [आकर्षित होने] लगती है और वह क्षेत्र उन तरंगों और उर्जा से घनीभूत हो जाता है |इससे वहा उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति का आतंरिक उर्जा परिपथ प्रभावित होता है |साधक में मानसिक रूप से स्थिर आकृति के अनुसार यह ऊर्जा परिवर्तित हो उसके सामने प्रत्यक्ष हो जाती है ,और साधक को सिद्ध हो उसके मानसिक तरंगों की क्रिया से संचालित होने लगती है |
यह सब ब्रह्मांडीय ऊर्जा तरंगों का खेल है |जिसके सामने प्रत्यक्षीकरण होता है केवल वही उसे देख पाता है ,दूसरों को केवल अनुभूति होती है की वातावरण में परिवर्तन हो गया है |प्रत्यक्षीकरण \दर्शन समाप्त होने के बाद भी उन ऊर्जा तरंगों का प्रभाव उस स्थान पर रहता है ,पर देवता के आने का कोई भौतिक चिन्ह नहीं होता |प्राकृतिक रूप से कोई देवता -देवी कोई भौतिक चिन्ह नहीं छोड़ते ,क्योकि उनका भौतिक शरीर होता ही नहीं |वह तो साधक की भावना के अनुरूप रूप धारण कर प्रत्यक्ष होते है |जो भौतिक चिन्ह छोड़ने की बात करता है वह झूठ बोलता है |
यह सब ऊर्जा का प्रत्यक्षीकरण और मानसिक ऊर्जा द्वारा उनका नियंत्रण है ,इसी के बल पर बिना मूर्ति पूजा या साकार आराधना के भी बहुत से धर्म-सम्प्रदाय ईश्वरीय ऊर्जा और कृपा प्राप्त करते रहते है ,.......[एक चिंतन ].......................................................हर-हर महादेव

साभार स्रोत

Related Post-

● श्रीशिवमहिम्नस्तोत्र ( पुष्पदन्त विरचितम्) Shree shiv mahima stotra

● अन्तिम सत्य Last truth

Thursday, June 23, 2016

कभी कभी किसी कारणवश जन्म तारीख और दिन माह वार आदि का पता नही होता है,कितनी ही कोशिशि की जावे लेकिन जन्म तारीख का पता नही चल पाता है,जातक को सिवाय भटकने के और कुछ नही प्राप्त होता है,,इस कारण के निवारण के लिये आपको कहीं और जाने की जरूरत नही है,किसी भी दिन उजाले में बैठकर एक सूक्षम दर्शी सीसा लेकर बैठ जावें,और अपने दोनो हाथों बताये गये नियमों के अनुसार देखना चालू कर दें,साथ में एक पेन या पैंसिल और कागज भी रख लें,तो 8 कि किस प्रकार से अपना हाथ जन्म तारीख को बताता है।
अपनी वर्तमान की आयु का निर्धारण करें
हथेली मे चार उंगली और एक अगूंठा होता है,अंगूठे के नीचे शुक्र पर्वत,फ़िर पहली उंगली तर्जनी उंगली की तरफ़ जाने पर अंगूठे और तर्जनी के बीच की जगह को मंगल पर्वत,तर्जनी के नीचे को गुरु पर्वत और बीच वाली उंगली के नीचे जिसे मध्यमा कहते है,शनि पर्वत,और बीच वाली उंगले के बाद वाली रिंग फ़िंगर या अनामिका के नीचे सूर्य पर्वत,अनामिका के बाद सबसे छोटी उंगली को कनिष्ठा कहते हैं,इसके नीचे बुध पर्वत का स्थान दिया गया है,इन्ही पांच पर्वतों का आयु निर्धारण के लिये मुख्य स्थान माना जाता है,उंगलियों की जड से जो रेखायें ऊपर की ओर जाती है,जो रेखायें खडी होती है,उनके द्वारा ही आयु निर्धारण किया जाता है,गुरु पर्वत से तर्जनी उंगली की जड से ऊपर की ओर जाने वाली रेखायें जो कटी नही हों,बीचवाली उंगली के नीचे से जो शनि पर्वत कहलाता है,से ऊपर की ओर जाने वाली रेखायें,की गिनती करनी है,ध्यान रहे कि कोई रेखा कटी नही होनी चाहिये,शनि पर्वत के नीचे वाली रेखाओं को ढाई से और बृहस्पति पर्वत के नीचे से निकलने वाली रेखाओं को डेढ से,गुणा करें,फ़िर मंगल पर्वत के नीचे से ऊपर की ओर जाने वाली रेखाओं को जोड लें,इनका योगफ़ल ही वर्तमान उम्र होगी।

अपने जन्म का महिना और राशि को पता करने का नियम
अपने दोनो हाथों की तर्जनी उंगलियों के तीसरे पोर और दूसरे पोर में लम्बवत रेखाओं को २३ से गुणा करने पर जो संख्या आये,उसमें १२ का भाग देने पर जो संख्या शेष बचती है,वही B का जन्म का महिना और उसकी राशि होती है,महिना और राशि का पता करने के लिये इस प्रकार का वैदिक नियम अपनाया जा सकता है:-
१-बैशाख-मेष राशि
२.ज्येष्ठ-वृष राशि
३.आषाढ-मिथुन राशि
४.श्रावण-कर्क राशि
५.भाद्रपद-सिंह राशि
६.अश्विन-कन्या राशि
७.कार्तिक-तुला राशि
८.अगहन-वृश्चिक राशि
९.पौष-धनु राशि
१०.माघ-मकर राशि
११.फ़ाल्गुन-कुम्भ राशि
१२.चैत्र-मीन राशि
इस प्रकार से अगर भाग देने के बाद शेष १ बचता है तो बैसाख मास और मेष राशि मानी जाती है,और २ शेष बचने पर ज्येष्ठ मास और वृष राशि मानी जाती है।
हाथ में राशि का स्पष्ट निशान भी पाया जाता है
प्रकृति ने अपने द्वारा संसार के सभी प्राणियों की पहिचान के लिये अलग अलग नियम प्रतिपादित किये है,जिस प्रकार से जानवरों में अपनी अपनी प्रकृति के अनुसार उम्र की पहिचान की जाती है,उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में दाहिने या बायें हाथ की अनामिका उंगली के नीचे के पोर में सूर्य पर्वत पर राशि का स्पष्ट निशान पाया जाता है। उस राशि के चिन्ह के अनुसार महिने का उपरोक्त तरीके से पता किया जा सकता है।
पक्ष और दिन का तथा रात के बारे में ज्ञान करना
वैदिक रीति के अनुसार एक माह के दो पक्ष होते है,किसी भी हिन्दू माह के शुरुआत में कृष्ण पक्ष शुरु होता है,और बीच से शुक्ल पक्ष शुरु होता है,व्यक्ति के जन्म के पक्ष को जानने के लिये दोनों हाथों के अंगूठों के बीच के अंगूठे के विभाजित करने वाली रेखा को देखिये,दाहिने हाथ के अंगूठे के बीच की रेखा को देखने पर अगर वह दो रेखायें एक जौ का निशान बनाती है,तो जन्म शुक्ल पक्ष का जानना चाहिये,और जन्म दिन का माना जाता है,इसी प्रकार अगर दाहिने हाथ में केवल एक ही रेखा हो,और बायें हाथ में अगर जौ का निशान हो तो जन्म शुक्ल पक्ष का और रात का जन्म होता है,अगर दाहिने और बायें दोनो हाथों के अंगूठों में ही जौ का निशान हो तो जन्म कृष्ण पक्ष रात का मानना चाहिये,साधारणत: दाहिने हाथ में जौ का निशान शुक्ल पक्ष और बायें हाथ में जौ का निशान कृष्ण पक्ष का जन्म बताता है।

जन्म तारीख की गणना
मध्यमा उंगली के दूसरे पोर में तथा तीसरे पोर में जितनी भी लम्बी रेखायें हों,उन सबको मिलाकर जोड लें,और उस जोड में ३२ और मिला लें,फ़िर ५ का गुणा कर लें,और गुणनफ़ल में १५ का भाग देने जो संख्या शेष बचे वही जन्म तारीख होती है। दूसरा नियम है कि अंगूठे के नीचे शुक्र क्षेत्र कहा जाता है,इस क्षेत्र में खडी रेखाओं को गुना जाता है,जो रेखायें आडी रेखाओं के द्वारा काटी गयीं हो,उनको नही गिनना चाहिये,इन्हे ६ से गुणा करने पर और १५ से भाग देने पर शेष मिली संख्या ही तिथि का ज्ञान करवाती है,यदि शून्य बचता है तो वह पूर्णमासी का भान करवाती है,१५ की संख्या के बाद की संख्या को कृष्ण पक्ष की तिथि मानी जाती है।
जन्म वार का पता करना
अनामिका के दूसरे तथा तीसरे पोर में जितनी लम्बी रेखायें हों,उनको ५१७ से जोडकर ५ से गुणा करने के बाद ७ का भाग दिया जाता है,और जो संख्या शेष बचती है वही वार की संख्या होती है। १ से रविवार २ से सोमवार तीन से मंगलवार और ४ से बुधवार इसी प्रकार शनिवार तक गिनते जाते है।
जन्म समय और लगन की गणना
सूर्य पर्वत पर तथा अनामिका के पहले पोर पर,गुरु पर्वत पर तथा मध्यमा के प्रथम पोर पर जितनी खडी रेखायें होती है,उन्हे गिनकर उस संख्या में ८११ जोडकर १२४ से गुणा करने के बाद ६० से भाग दिया जाता है,भागफ़ल जन्म समय घंटे और मिनट का होता है,योगफ़ल अगर २४ से अधिक का है,तो २४ से फ़िर भाग दिया जाता है।
इस तरह से कोई भी अपने जन्म समय को जान सकता है।

अभिनेता योग Actor yoga

अभिनेता योग

(क) शुक्र ग्रह गायन-वादन, कला-सौन्दर्य से सम्बन्धित है।
(ख) चर, द्विस्वभाव लग्न, शुक्र और लग्नेश का दशम से सम्बन्ध अवश्य होता है।
(ग) उच्च का मंगल और गुरू का योग हो।
(घ) गजकेशरी योग भी अच्छा रहता है।
(ङ) लग्न व त्रिकोण में बृहस्पति हो। चरित्र अभिनेताओं का कर्क व मीन लग्न होता है।
(च) खलनायक में लग्नेश मंगल, शनि या राहु पापग्रह वहां होता है। खलनायकों का जन्म मकर, वृश्चिक लग्न में होता है।
(छ) अच्छे कलाकारों के दो-तीन ग्रह स्वक्षेत्री होते है।
(ज) अभिनेत्रियों के गजकेसरी योग, गन्धर्व योग और मालव्य योग होता है।
(झ) संवाद लेखकों में मंगल-राहु एवं मंगल-चन्द्रमा का योग रहता है।

दुख का मूल कारण Root cause of misery

 दुख का मूल कारण


दुख क्या है और यह किस किस को होता है?

 “दुख” सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही सभों लोको पर आया था । यह दुख चारो प्रकार के जीवों (स्थावर , उद्विज , अंडज ,जंगम } मे होता है ।
मनुष्य योनि मे दुख पिछले कर्मो के आधार पर चित्त मे होता है । इसके अलावा दुख का संबंध 5 तत्वो के साथ होता है । लेकिन यह दुख शांत अवस्था मे रहता है । जैसे ही गोचर मे किसी पापी ग्रह की तरंगे शरीर को प्रभावित करती है तो चित मे हलचल मच जाती है । जैसे ही चित मे हलचल मचती है तो दुख बाहर निकलने की कोशिस करता है । अगर ग्रहो की तरंगो का पाप प्रभाव बढ़ जाता है तो दुख बाहर आ जाता है और मनुष्य को अपने आगोश मे ले लेता है ।
चित तालाब मे शांत पानी की तरह शरीर मे होता है अगर तालाब मे पत्थर फेंक दिया जाये तो तालाब मे लहर पैदा हो जाती है और बहुत बहुत बड़ा पत्थर फेंक दिया जाये तो लहर तालाब से बाहर निकल जाती है । ऐसे चित मे जो दुख शांत अवस्था मे होते है वो कभी भी गोचर मे पापी ग्रह की गति बदलने से बाहर आ जाते है ।

दुख कब आता है?

 यह दुख भगवान ने शरीर के निर्माण के समय ही 5 तत्वो पर आधारित कर दिया था । जैसे 84 लाख योनियो मे 5 तत्वो का उतार चड़ाव आएगा वैसे ही जीवन मे दुख का उतार चड़ाव आएगा ।
मनुष्य का शरीर 5 तत्वो से बना है । 5 तत्वो की मात्रा का अनुपात जब शरीर मे कम या ज्यादा हो जाता है तो तत्वों का संतुलन बिगड़ जाता है तो दुख और क्लेश बढ़ जाता है । क्योकि मनुष्य शरीर के दुख का मुख्य आधार सिर्फ 5 महाभूत तत्व ही होते है । ये 5 तत्व ही 84 लाख योनियों को दुख देते है । ये 5 तत्व ही जानवरों के साथ साथ पेड़ पोधों को भी दुख देते है । अगर प्रकृति मे सूखा पड़ जाये तो वनस्पति का विनाश हो जाता है और वनस्पति का विनाश होगा तो वनस्पति से जीवन लेने वाली योनी दुख के दायरे मे आ जाती है ।

भगवान ने यह दुख देवताओ को क्यो नहीं दिया तथा स्वर्ग लोक मे देव योनि मे सुख ही सुख क्यो होता है ? इसका मुख्य कारण यह है कि देव योनि मे सूक्ष्म शरीर 17 तत्वो के साथ रहता है । सूक्ष्म शरीर की आत्मा मे 5 तत्व नहीं होते है । और जो योनी 5 तत्वो के (पृथ्वी, जल , वायु , आकाश और अग्नि ) के प्रभाव से दूर है तो उस देवता योनि पर दुख  का प्रभाव नहीं होता है । किसी भी दुख का प्रभाव 5  तत्वो से बनी बस्तु पर ही होता है ।

क्या इस दुख का निवारण किया जा सकता है?

मनुष्य जीवन मे इस दुख को योग , साधना , ध्यान , समाधि , पूजा पाठ , यज्ञ , जप , तप , नग और मंत्र दान धर्म से कम किया जा सकता है । इस सभी उपाय से चित मे स्थित दुख को शांत किया जा सकता है । और योग से इस दुख को पूर्ण रूप से चित से अलग किया जा सकता है ।

Related topics-

राहु raahu

राहू ससुराल है
राहू वह धमकी है जिससे आपको डर लगता है ।
जेल में बंद कैदी भी राहू है ।
राहू सफाई कर्मचारी है ।
स्टील के बर्तन राहू के अधिकार में आते हैं ।
हाथी दान्त की बनी सभी वस्तुए राहू के रूप हैं ।
राहू वह मित्र है जो पीठ पीछे आपकी निंदा करता है !
दत्तक पुत्र भी राहू की देन होता है ।
नशे की वस्तुएं राहू हैं ।
दर्द का टीका राहू है ।
राहू मन का वह क्रोध है जो कई साल के बाद भी शांत नहीं हुआ है, न लिया हुआ बदला भी राहू है ।
शेयर मार्केट की गिरावट राहू है, उछाल केतु है ।
बहुत समय से ताला लगा हुआ मकान राहू है ।
बदनाम वकील भी राहू है ।
मिलावटी शराब राहू है ।
राहू वह धन है जिस पर आपका कोई हक़ नहीं है या जिसे अभी तक लौटाया नहीं गया है ।
ना लौटाया गया उधार भी राहू है !
उधार ली गयी सभी वस्तुएं राहू खराब करती हैं !
यदि आपकी कुंडली में राहू अच्छा नहीं है तो किसी से कोई चीज़ मुफ्त में न लें क्योंकि हर मुफ्त की चीज़ पर राहू का अधिकार होता है ।
राहू ग्रह का कुछ पता नहीं कि कब बदल जाए जैसे कि आप कल कुछ काम करने वाले हैं लेकिन समय आने पर आपका मन बदल जाए और आप कुछ और करने लगें तो इस दुविधा में राहू का हाथ होता है | किसी भी प्रकार की अप्रत्याशित घटना का दावेदार राहू ही होता है ।
आप खुद नहीं जानते की आप आने वाले कुछ घंटों में क्या करने वाले हैं या कहाँ जाने वाले हैं तो इसमें निस्संदेह राहू का आपसे कुछ नाता है ।या तो राहू लग्नेश के साथ है या लग्न में ही राहू है ।
 यदि आप जानते हैं की आप झूठ की राह पर हैं परन्तु आपको लगता है की आप सही कर रहे हैं तो यह धारणा आपको देने वाला राहू ही है !
किसी को धोखा देने की प्रवृत्ति राहू पैदा करता है यदि आप पकडे जाएँ तो इसमें भी आपके राहू का दोष है और यह स्थिति बार बार होगी इसलिए राहू का अनुसरण करना बंद करें क्योंकि यह जब बोलता है तो कुछ और सुनाई नहीं देता ।
जिस तरह कर्ण पिशाचिनी आपको गुप्त बातों की जानकारी देती है उसी तरह यदि राहू आपकी कुंडली में बलवान होगा तो आपको सभी तरह की गुप्त बातें बैठे बिठाए ही पता चल जायेंगी ।
यदि आपको लगता है की सब कुछ गुप्त है और आपसे कुछ छुपाया जा रहा है या आपके पीठ पीछे बोलने वाले लोग बहुत अधिक हैं तो यह भी राहू की ही करामात है ।
राहू रहस्य का कारक ग्रह है और तमाम रहस्य की परतें राहू की ही देन होती हैं ।
राहू वह झूठ है जो बहुत लुभावना लगता है।
 राहू झूठ का वह रूप है जो झूठ होते हुए भी सच जैसे प्रतीत होता है ।
 राहू कम से कम सत्य तो कभी नहीं है ।
जो सम्बन्ध असत्य की डोर से बंधे होते हैं या जो सम्बन्ध दिखावे के लिए होते हैं वे राहू के ही बनावटी सत्य हैं ।
राहू व्यक्ति को झूठ बोलना सिखाता है
बातें छिपाना, बात बदलना, किसी के विशवास को सफलता पूर्वक जीतने की कला राहू के अलावा कोई औरग्रह नहीं दे सकता ।
राहू वह लालच है जिसमे व्यक्ति को कुछ अच्छा बुरा दिखाई नहीं देता केवल अपना स्वार्थ ही दिखाई देता है ।
क्यों न हों ताकतवर राहू के लोग सफल? क्यों बुरे लोग तरक्की जल्दी कर लेते हैं ।
 क्यों झूठ का बोलबाला अधिक होता है और क्यों दिखावे में इतनी जान होती है ? क्योंकि इन सबके पीछे राहू की ताकत रहती है ।
मांस मदिरा का सेवन, बुरी लत, चालाकी और क्रूरता, अचानक आने वाला गुस्सा, पीठ पीछे की वो बुराई, जो ये काम करे ये सब राहू की विशेषताएं हैं ।
असलियत को सामने न आने देना ही राहू की खासियत है।

Wednesday, June 22, 2016

जीवन में सर्वत्र सुख समृद्धि और प्रसिद्ध पाने के लिए कुछ खास उपाय Something special for happiness and prosperity everywhere in life

जीवन में सर्वत्र सुख समृद्धि और प्रसिद्ध पाने के लिए कुछ खास उपाय:-

1. जीवन में मनवांछित सफलता प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से अपने माता - पिता और बड़े बुजर्गो का आशीर्वाद लें कर ही अपने दिन की शुरुआत करें और तभी घर से कहीं बाहर जाएँ ,याद रखिये उनका कभी भी किसी भी दशा में दिल न दुखाएं ।

2.स्त्रियों को देवी का स्वरुप माना गया है घर की सभी स्त्रियों(एवं किसी भी स्त्री को )पूर्ण सम्मान दें ,शास्त्रों में भी लिखा है जिस घर में स्त्रियाँ प्रसन्न रहती है वहां पर सौभाग्य स्वयं खिंचा चला आता है ।

3.जीवन में स्थाई सुख और सफलता तभी प्राप्त होती है जब हमारे कर्म शुभ होते है , क्रोधी , लालची, अभिमानी , शक्ति का दुरूपयोग करने वाला , गलत तरीके से धन संग्रह करने वाले को यदि धन, शक्ति और सत्ता का आस्थाई सुख मिलता भी है तो उसको पारिवारिक जीवन का सुख नहीं मिलता है उसका बुडापा कष्टमय बीतता है , उसके जीवन में निरंतर अस्थिरता बनी रहती है , उसके परिवार में कोई न कोई रोग बना ही रहता है इसलिए हम सभी को अपने कर्म अवश्य ही अच्छे करने चाहिए ।

4.यदि जीवन में लगातार कार्यों में बाधाएं आती है तो किसी भी दिन किसी मंदिर में अनाज के दाने चड़ाकर सच्चे मन से अपनी मनोकामना को कहिये , काम अवश्य ही निर्विघ्न रूप से पूर्ण और सफल होगा ।

5.सुबह उठते ही सर्वप्रथम अपने दोनों हाथों की हथेलियों को जोड़कर गौर से देखें , फिर उसे ३ बार चूम कर अपने चेहरे पर फिराएं , उसके बाद अपने इष्टदेव को मन ही मन में प्रणाम करते हुए अपना दाहिना पावँ जमीन पर रखें , तत्पश्चात अपने माता - पिता के चरण छू कर उनसे आशीर्वाद लें उनका अभिवादन करें तभी कुछ और बोलें ..यह दिन की शुरुआत बहुत ही चमत्कारी मानी जाती है , इससे आप निश्चित ही पूरे दिन उत्साह और प्रसन्नता का अनुभव करेंगे ।

6.प्रतिदिन प्रातः काल कुल्ला करके सर्वप्रथम थोडा शहद चख लें , तत्पश्चात नियमित रूप से सुबह नहाने के बाद सूर्य देवता को ताम्बें के बर्तन में गुड़ / चीनी , फूल मिश्रित जल से अर्ध्य दिया करें , इससे जीवन में समस्त बाधाएँ दूर होती है एवं मान सम्मान ,ऐश्वर्य और सफलता की प्राप्ति होती है ।

7.मंगलवार के दिन मिट्टी के एक बर्तन में शुद्ध शहद भरकर किसी एकांत स्थान में चुपचाप रख आईये,कार्य निर्विघ्न रूप से बनने लगेंगे,ऐसा करने से पहले या बाद में इसे किसी को भी न बताएं ।

8.यदि गृह स्वामी अपने भोजन से गाय , चिड़िया और कुत्ते के लिए कुछ अंश निकालकर उन्हें नियमित रूप से खिला दें तो उसके घर में सदैव सुख और सौभाग्य का वास बना रहता है ।

9.रविवार को छोड़कर रोजाना सुबह स्नान के बाद पीपल के पेड़ में सादा जल और शनिवार के दिन दूध, गुड / शक्कर , मिश्रित जल चड़ाकर और संध्या के समय धूप / कडवे तेल का दीपक अर्पित करके अपनी मनोकामना कहिये , हर कार्यों में शीघ्र ही सफलता मिलनी लगेगी ।

10.एक बिलकुल नया लाल सूती वस्त्र लेकर उसमें जटायुक्त नारियल बांधकर प्रभु का स्मरण करते हुए उस नारियल से अपनी मनोकामना 7 बार कहें फिर उसे बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें , कार्यों में आने वाली बाधाएं दूर होने लगेगीं ।

Related topics-

● जीवन मे उन्नति हेतु कुछ उपाय Some Tips for Advancing Life

● दुर्भाग्य दूर करने हेतु क्षिप्रप्रसाद गणपति Kshipraprasad Ganpati to remove misfortune

विदेश यात्रा योग Foreign travel yoga

क्या आपके भाग्य में विदेश यात्रा का योग है ?

पुरातन काल में जहाँ
विदेश यात्रा को निकृष्ट समझा जाता था, वहीं आज के
इस भौतिक युग में विदेश गमन से प्राप्त होने वाले धन लाभ और
शिक्षा के महत्व ने विदेश निवास को सम्मान की
श्रेणी में ला खडा किया है. वर्तमान में अच्छे व्यापार,
नौकरी के विदेश में अधिक सुअवसर प्राप्त होने,
अच्छा वैवाहिक संबंध मिलने की वजह से
भी विदेश में जाने की चाह उत्कुट हुई
है. लेकिन ऐसा सभी तो नही कर सकते.
आईये आज हम आपको कुछ ज्योतिषीय योग बतलाते
हैं जिसे अपनी कुंडली में देखकर आप
स्वयं ही इस विषय में जानकारी प्राप्त
कर सकते हैं कि आपके भाग्य में विदेश यात्रा है अथवा
नहीं ?
1, लग्न दशम या द्वादश भावों से जब राहु का योग बनता है तब
भी विदेश यात्रा का अवसर मिलता है, साथ
ही लग्नेश स्वयं द्वादश भाव गत हो निश्चय
ही विदेश गमन होता है.
2. यदि लग्नेश लग्नगत और नवमेश स्वग्रही हो
तो विदेश भ्रमण का मौका अवश्य मिलता है. नवम भाव में स्वराशि
या उच्च का शनि भी कई विदेश यात्राओं के अवसर
प्रदान करता है. इसी प्रकार लग्नेश नवमेश का
आपस में स्थान परिवर्तन भी विदेश यात्रा के सुअवसर
उपलब्ध कराता है.
3. तॄतीयेश, नवमेश एवम द्वादशेश का
किसी दशा अंतर्दशा में आपसी संबंध बन
रहा हो जातक को अक्सर कई विदेश यात्राएं करने का मौका मिलता
है.
4. सूर्य अष्टम भावगत हो तब, अष्टमेश अष्टम भाव में हो
तब अथवा दशमेश द्वादश भावगत हो तब भी विदेश
यात्रा होती है.
5.जन्म कुंडली के बारहवें भाव में मंगल, राहु जैसे
क्रूर ग्रह बैठे हों तब भी विदेश यात्रा का योग बनेगा.
6.जब भी दशा महादशाओं में द्वादश भाव और दशम
भाव का संबंध बनता है तब जातक अवश्यमेव विदेश यात्रा करता
है।

नव् वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन

नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
चैत्र शुक्ल शुभ प्रतिपदा, लाए शुभ संदेश !
संवत् मंगलमय ! रहे नित नव सुख उन्मेष !!
मधु मंगल शुभ कामना, नव संवत्सर आज !
हर शिव वांछा पूर्ण हो हर अभीष्ट हर काज !!
नव संवत्सर पर मिलें शुभ सुरभित संकेत !
स्वजन सुखी संतुष्ट हों, नंदित नित्य निकेत !!
जीव स्वस्थ संपन्न हों, हों आनंदविभोर !
मुस्काती हैं रश्मियां, नव संवत् की भोर !!
हर्ष व्याप्त हो हर दिशा, ना हो कहीं विषाद !
हृदय हृदय सौहार्द हो, ना हों कलह विवाद !!
हे नव संवत् ! है हमें तुमसे इतनी आस !
जन जन का अब से बढ़े आपस में विश्वास !!

जानिये पुरुषों का सेक्स व्यवहार उनकी राशि के अनुसार Know mens sex behavior according to their amount

जानिये पुरुषों का सेक्स व्यवहार उनकी राशि के अनुसार Know mens sex behavior according to their amount


ज्योतिष के  अनुसार हर व्यक्ति पर ग्रहों का प्रभाव होता है। उसके जन्म स्थान  व समय का उसके जीवन व व्‍यवहार पर सीधा असर पड़ता है। हम यहां बात करेंगे की पुरुषों का सेक्‍सुअल बिहेवियर किस तरह राशियों के साथ बदलता है।

मेष : मेष राशि वाले काफी हॉट एवं कामुक होते हैं। इन्‍हें ज्‍यादा लंबे समय तक सेक्‍स नहीं पसंद होता। कम समय में ज्‍यादा लुत्‍फ उठाने वाले इन लोगों में संभोग के दौरान एक अलग सी आग होती है। संभोग के लिए काफी जल्‍दी उत्‍तेजित भी हो जाते हैं। यदि इनका पार्टनर मेष राशि वाला हो तो प्‍यार का अहसास कई गुना बढ़ जाता है।

वृषभ : संभोग के दौरान वृषभ राशि वाले सेक्‍स की चरम सीमा तक काफी देर से पहुंचते हैं। यदि आप अचानक इन्‍हें सेक्‍स के लिए उत्‍तेजित करना चाहें तो भी ये उत्‍तेजित नहीं होते। इन्‍हें संभोग से पहले फोरप्‍ले व ओरल सेक्‍स पसंद होता है। चुंबन में ये काफी एक्‍सपर्ट होते हैं। इन्‍हें सेक्‍स के लिए मनाना काफी कठिन होता है।

मिथुन : मिथुन राशि वाले हमेशा सेक्‍सुअली एक्टिव होते हैं। संभोग के दौरान पार्टनर से बातें करना इन्‍हें पसंद होता है। ये हमेशा संभोग के लिए तैयार रहते हैं। चरमसीमा तक पहुंचने में भी ये काफी माहिर होते हैं। इन्‍हें उत्‍तेजित करना भी काफी आसान होता है। एक से अधिक लोगों के साथ यौन संबंध बनना काफी आम होता है। ये अपने पार्टनर को संतुष्‍ट करना अच्‍छी तरह जानते हैं।

कर्क : कर्क राशि वाले लोग बहुत ज्‍यादा भावुक एवं मानसिक तौर पर संवेदनशील होने की वजह से यौन क्रियाओं का सुख उठाने में पीछे रह जाते हैं। ये काफी मूडी होते हैं। ये अपने पार्टनर की संतुष्टि से ज्‍यादा अपनी संतुष्टि पर ध्‍यान देते हैं। यही कारण है कि इनकी सेक्‍स लाइफ नीरस होती है। हां अगर ये मूड में आ जायें तो यौन सुख देने में सबसे आगे रहते हैं।

सिंह : सिंह राशि वाले तब तक संभोग के लिए आगे नहीं बढ़ते जब तक पार्टनर की ओर से सिगनल नहीं मिलता। संभोग के दौरान ये काफी ऊर्जावान होते हैं। कई बार संभोग के दौरान ये इतने ज्‍यादा उत्‍तेजित हो जाते हैं, कि इन्‍हें किसी भी बात का खयाल नहीं रहता। ये अपने पार्टनर को खुद पर हावी नहीं होने देते हैं।

कन्‍या : इनके अंदर सेक्‍स की भूख काफी होती है, लिहाजा फोरसेक्‍स या ओरल सेक्‍स में ज्‍यादा समय नष्‍ट नहीं करते। ये भी काफी मूडी होते हैं। अगर मूड नहीं है, तो चाहे उनके पार्टनर कुछ भी कर लें, ये संभोग नहीं करते। ये सिर्फ विश्‍वस्‍त साथी से ही सेक्‍स करते हैं।

तुला : तुला राशि वाले अपने पार्टनर को हमेशा संतुष्‍ट करते हैं। ये अपने पार्टनर की इच्‍छा पर ही संभोग के लिए आगे बढ़ते हैं। ये आसानी से आकर्षित हो जाते हैं, लिहाजा यौन क्रिया की चरमसीमा तक पहुंचने में इन्‍हें दिक्‍कत नहीं होती। संभोग के दौरान बाते करना पसंद नहीं करते।

वृश्चिक : वृश्चिक राशि वालों के अंदर संभोग के प्रति भूख बहुत ज्‍यादा होती है, लेकिन वो भी उनके मूड पर निर्भर करता है। ये लोग बहुत ज्‍यादा भावुक होने के कारण आसानी से सेक्‍स करते। इनके पार्टनर अपनी सेक्‍स लाइफ को लेकर काफी परेशान रहते हैं। इनके सबसे अच्‍छे यौन संबंध वृश्चिक राशि वालों के साथ ही बनते हैं।

धनु : धनु राशि वाले काफी उत्‍साहवर्धक होते हैं। यौन जीवन को खुलकर जीने वाले होते हैं और बहुत जल्‍द सेक्‍स के लिए तैयार भी हो जाते हैं। इन्‍हें चुंबन या फोरप्‍ले ज्‍यादा पसंद नहीं होता। सीधे संभोग में इन्‍हें ज्‍यादा मजा आता है। इनके अंदर उत्‍तेजित करने वाली फीलिंग्‍स कूट-कूट कर भरी होती हैं। आसानी से चरम सीमा तक पहुंच जाते हैं।

मकर : मकर राशि वाले लोग सेक्‍स लाइफ में काफी सावधानीपूर्वक चलते हैं। ये सही व्‍यक्ति से ही यौन संबंध स्‍थापित करते हैं। दूसरों के लिए इनमें कोई रुचि नहीं होती। ईमानदार सेक्‍स लाइफ ही इनका मंत्र है। ओरल सेक्‍स इन्‍हें काफी पसंद होता है। पार्टनर की इच्‍छाओं का खयाल रखने के मामले में ये थोड़े से लापरवाह होते हैं।

कुंभ : कुंभ राशि वाले सेक्‍स लाइफ में प्रयोग करना पसंद करते हैं। कई बार संभोग के दौरान ये इतने ज्‍यादा उत्‍तेजित हो जाते हैं, कि इन्‍हें किसी भी बात का खयाल नहीं रहता। संभोग के दौरान बाते करना पसंद नहीं करते। ये अपने पार्टनर की संतुष्टि से ज्‍यादा अपनी संतुष्टि पर ध्‍यान देते हैं।

मीन : संभोग के लिये ये हमेशा तैयार रहते हैं। मीन राशि वाले अपने पार्टनर की भावनाओं को समझने में काफी आगे रहते हैं। अपने पार्टनर को संतुष्‍ट करना भी इन्‍हें अच्‍छी तरह आता है। इन्‍हें अलग-अलग तरह की क्रियाओं में संभोग करना पसंद होता है। मीन राशि वालों को सेक्‍स का सबसे सुखद अहसास इसी राशि वालों के साथ होता है।

Related topics-

● जाने अपनी होने वाली पत्नी का व्यवहार jane apnई hone vaalee patnee ka vyavahaar

● जानिए महिलाओं का ‘ सेक्स व्यवहार’ उनकी राशि के अनुसार Know women 'sex behavior' according to their amount

● संतान बाधा योग santaan baadha yog

● मूलांक और प्रेम अभिव्यक्ति Radix and love expression

जानिए महिलाओं का सेक्स व्यवहार उनकी राशि के अनुसार Kwomen sex behavior according to their amount

जानिए महिलाओं का सेक्स व्यवहार उनकी राशि के अनुसार
 Kwomen sex behavior according to their amount

हर मानव पर ग्रहों का प्रभाव होता है। उसके जन्म स्थान व समय का उसके जीवन व व्‍यवहार पर सीधा असर पड़ता है। हम यहां बात करेंगे महिलाओं के सेक्‍सुअल बिहेवियर यानी महिलाओं में सेक्स के प्रति उत्‍साह किस तरह राशियों के साथ बदलता है।

मेष: मेष राशि वाली महिलाओं का माथा और मुख काफी संवेदनशील होता है। इन जगहों पर चुंबन लेने से वो सेक्‍स के प्रति काफी जल्‍दी उत्‍तेजित हो जाती हैं। उनके बालों पर धीरे-धेरी स्‍पर्श, उनके होठों व गाल पर चुंबन और कान पर स्‍पर्श उन्‍हें सेक्‍स के प्रति उत्‍तेजित करता है।

वृषभ: वृषभ राशि वाली महिलाओं की गर्दन सेक्‍स के प्रति काफी संवेदनशील होती है। यदि आप उन्‍हें सेक्‍स के प्रति उत्‍तेजित करना चाहते हैं तो उनकी गर्दन पर चुंबन से शुरुआत करें। यदि आप उन्‍हें एक सुंदर हार तोहफे में देते हैं, तो वो आपकी तरफ खिंची चली आयेंगी।

Related topics-

● विरह-ज्वर-विनाशकं ब्रह्म-शक्ति स्तोत्रम् ।। Virah-fever-destroyer Brahma-Shakti stotrama ..

● गायत्री संग्रह gaayatree sangrah

मिथुन: मिथुन राशि वाली महिलाओं के हाथ, खास तौर से हथेली काफी संवेदनशील होती हैं। उनकी उंगलियों, हथेली, हाथ पर चुंबन लेने से वो सेक्‍स के प्रति आसानी से उत्‍तेजित हो उजाती हैं। उनकी उंगलियों को मुंह में चूसना, उंगलियों से फोर प्‍ले करना और उनके कंधों पर चुंबन लेना उन्‍हें तेजी से उत्‍तेजित करता है।

कर्क: कर्क राशि वाली महिलाएं आसानी से सेक्‍स के प्रति उत्‍तेजित नहीं होतीं। सेक्‍स के प्रति सबसे संवेदनशील भाग उनके वक्ष होते हैं। उनके वक्षों को स्‍पर्श कर आप उन्‍हें संभोग के लिए आसानी से प्रेरित कर सकते हैं।

सिंह: सिंह राशि वाली महिलाओं की पीठ सेक्‍स के प्रति सबसे संवेदनशील जगह होती है। आप अगर उनकी पीठ पर सुनहरा स्‍पर्श करते हैं, तो वो आसानी से सेक्‍स के प्रति उत्‍तेजित हो जाती हैं। उनकी पीठ और फिर उनके हिप्‍स पर स्‍पर्श उन्‍हें सेक्‍स की चरम सीमा तक पहुंचाता है।

कन्‍या: कन्‍या राशि वालों के पेट पर एक चुंबन उनके अंदर सेक्‍स की तीव्र इच्‍छा पैदा करता है। उनका पेट सेक्‍स के प्रति सबसे संवेदनशील भाग होता है। पेट पर स्‍पर्श और मसाज से आप उन्‍हें उत्‍तेजित कर सकते हैं।

तुला: तुला राशि वाली महिलाओं की पीठ का निचला हिस्‍सा काफी संवेदनशील होता है। तुला राशि वाली महिलाओं को सेक्‍स के लिए उत्‍तेजित करने के लिए हिप्‍स के ठीक ऊपर के भाग में स्‍पर्श करने से उत्‍तेजना पैदा होती है।

वृश्चिक: वृश्चिक राशि वाली महिलाओं योनि सेक्‍स के लिए सबसे ज्‍यादा संवेदनशील होती है। धीरे-धीरे स्‍पर्श एवं मसाज से वो बहुत जल्‍द उत्‍तेजित हो उठती हैं। यही कारण है कि वृश्चिक राशि वाली महिलाओं को सेक्‍स की चरम सीमा तक पहुंचने में काफी समय लगता है।

धनु: धनु राशि वाली महिलाएं लंबे समय तक फोरप्‍ले पसंद करती हैं। उनके लिए जांघ सबसे ज्‍यादा संवेदनशील अंग होता है। जांघ पर स्‍पर्श करने से वो काफी तेजी से उत्‍तेजित हो जाती हैं।

मकर: मकर राशि वाली महिलाओं के पैर सबसे ज्‍यादा संवेदनशील होते हैं। पैर के किसी भी भाग पर स्‍पर्श और चुंबन से वो जल्‍द उत्‍तेजित हो उठती हैं।

कुंभ: कुंभ राशि वाली महिलाओं की कोहनी और कंधे पर छोटा सा स्‍पर्श उन्‍हें उत्‍तेजित कर देता है।

मीन: मीन राशि वाली महिलाओं के पैर के निचले हिस्‍से में स्‍पर्श, चुंबन या मसाज से सेक्‍स के प्रति उत्‍तेजना बढ़ती है। धीरे-धीरे एड़ी से शुरुआत कर आप उन्‍हें संभोग के लिए आसानी से आकर्षित कर सकते हैं।

● जानिये पुरुषों का सेक्स व्यवहार उनकी राशि के अनुसार Know men's sex behavior according to their amount

Tuesday, June 21, 2016

मनुष्य humans

मनुष्य प्रकृति की उत्कृष्ट रचना है ।
मन प्रधान होने के कारण इन्हें मनुष्य कहा गया है।यद्यपि ऊपर वाले ने इन्हें लगभग सामान ही बनाया है।
और इनको सारी क्रियाशक्ति दे दी है अर्थात् ये अपने स्वयं भाग्य विधाता हैं।
प्रकृति ने कुछ इस तरह से मनुष्यों को बनाकर उनका वर्गीकरण कर दिया है।कि वो सक्षम होने के बाद भी कभी अपने-आप को समझ नही पाता ।
और भ्रम मे ही सारा जीवन व्यतीत कर देता है।देह मे स्थित चक्र ही उसकी चेतना और क्रियाशक्ति का आधार हैं।
1. मूलाधार चक्र :
यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला यह "आधार चक्र" है। 99.9% लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है, उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।
मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है.! इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना।इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतरवीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।

2. स्वाधिष्ठान चक्र -
यह वह चक्र लिंग मूल से चार अंगुल ऊपर स्थित है, जिसकी छ: पंखुरियां हैं। अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है, वह आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे।
जीवन में मनोरंजन जरूरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन भी व्यक्ति को चेतना को बेहोशी में धकेलता है। फिल्म सच्ची नहीं होती. लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आपके बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते है।
इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हो, तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।

3. मणिपुर चक्र :
नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अंतर्गत "मणिपुर" नामक तीसरा चक्र है, जो दस कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।
आपके कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएंगे। पेट से श्वास लें।
 इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान होना जरूरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं। आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।

4. अनाहत चक्र
हृदय स्थल में स्थित स्वर्णिम वर्ण का द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से सुशोभित चक्र ही "अनाहत चक्र" है। अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है, तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने की सोचते हैं.
हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह अभ्यास से जाग्रत होने लगता है और "सुषुम्ना" इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है।
इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण होता है। इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान स्वत: ही प्रकट होने लगता है। व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता हैं। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।

5. विशुद्ध चक्र
कंठ में सरस्वती का स्थान है, जहां "विशुद्ध चक्र" है और जो सोलह पंखुरियों वाला है। सामान्यतौर पर यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है, तो आप अति शक्तिशाली होंगे।
कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र Iजाग्रत होने लगता है।इसके जाग्रत होने कर सोलह कलाओं और सोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।

6. आज्ञाचक्र :
भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में "आज्ञा-चक्र" है। सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय है, तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। "बौद्धिक सिद्धि" कहते हैं।
भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।
यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस "आज्ञा चक्र" का जागरण होने से ये सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं, व्यक्ति एक सिद्धपुरुष बन जाता है।

7. सहस्रार चक्र :
"सहस्रार" की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात जहां चोटी रखते हैं। यदि व्यक्ति यम, नियम का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है। ऐसे व्यक्ति को संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब नहीं रहता है।

कैसे जाग्रत करें : "मूलाधार" से होते हुए ही "सहस्रार" तक पहुंचा जा सकता है। लगातार ध्यान करते रहने से यह "चक्र" जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त कर लेता है।शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत का संग्रह है। यही "मोक्ष" का द्वार है।

Thursday, June 16, 2016

नक्षत्र से रोग विचार तथा उपाय nakshatr se rog vichaar tatha upaay

हमारे ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्र के अनुसार रोगों का वर्णन किया गया है ।व्यक्ति के कुंडली में नक्षत्र अनुसार रोगों का विवरण निम्नानुसार है ।आपके कुंडली में नक्षत्र के अनुसार परिणाम आप देख सकते है

अश्विनी नक्षत्र : जातक को वायुपीड़ा, ज्वर, मतिभ्रम आदि से कष्ट.
उपाय : दान पुण्य, दिन दुखियों की सेवा से लाभ होता है ।

भरणी नक्षत्र : जातक को शीत के कारण कम्पन, ज्वर, देह पीड़ा से कष्ट, देह में दुर्बलता, आलस्य व कार्य क्षमता का अभाव ।
उपाय : गरीबोंकी सेवा करे लाभ होगा ।

कृतिका नक्षत्र : जातक आँखों सम्बंधित बीमारी, चक्कर आना, जलन, निद्रा भंग, गठिया घुटने का दर्द, ह्रदय रोग, घुस्सा आदि ।
उपाय : मन्त्र जप, हवन से लाभ ।

रोहिणी नक्षत्र : ज्वर, सिर या बगल में दर्द, चित्य में अधीरता ।
उपाय : चिर चिटे की जड़ भुजा में बांधने से मन को शांति मिलती है ।

मृगशिरा नक्षत्र : जातक को जुकाम, खांसी, नजला, से कष्ट ।
उपाय : पूर्णिमा का व्रत करे लाभ होगा ।

आर्द्रा नक्षत्र : जातक को अनिद्रा, सिर में चक्कर आना, अधासीरी का दर्द, पैर, पीठ में पीड़ा ।
उपाय : भगवान शिव की आराधना करे, सोमवार का व्रत करे, पीपल की जड़ दाहिनी भुजा में बांधे लाभ होगा ।

पुनर्वसु नक्षत्र : जातक सिर या कमर में दर्द से कष्ट ।
रविवार को पुष्य नक्षत्र में आक का पौधा की जड़ अपनी भुजा मर बांधने से लाभ होगा ।

पुष्प नक्षत्र : जातक निरोगी व स्वस्थ होता है । कभी तीव्र ज्वर से दर्द परेशानी होती है । उपाय: कुशा की जड़ भुजा में बांधने से तथा पुष्प नक्षत्र में दान पुण्य करने से लाभ होता है ।

अश्लेश नक्षत्र : जातक का दुर्बल देह प्राय: रोग ग्रस्त बना रहता है ।देह में सभी अंग में पीड़ा, विष प्रभाव या प्रदुषण के कारण कष्ट |
उपाय : नागपंचमी का पूजन करे, पटोल की जड़ बांधने से लाभ होता है ।

मघा नक्षत्र : जातक को अर्धसीरी या अर्धांग पीड़ा, भुत पिचाश से बाधा ।
उपाय : कुष्ठ रोगी की सेवा करे । गरीबोंको मिष्ठान खिलाये ।

पूर्व फाल्गुनी : जातक को बुखार,खांसी, नजला, जुकाम, पसली चलना, वायु विकार से कष्ट ।
उपाय : पटोल या आक की जड़ बाजु में बांधे । नवरात्रों में देवी माँ की उपासना करे ।

उत्तर फाल्गुनी : जातक को ज्वर ताप, सिर व बगल में दर्द, कभी बदन में पीड़ा या जकडन
उपाय : पटोल या आक की जड़ बाजु में बांधे । ब्राह्मण को भोजन कराये ।

हस्त नक्षत्र : जातको पेट दर्द, पेट में अफारा, पसीने से दुर्गन्ध, बदन में वात पीड़ा ।

उपाय: आक या जावित्री की जड़ भुजा में बांधने से लाभ होगा ।

चित्रा नक्षत्र : जातक जटिल या विषम रोगों से कष्ट पता है ।रोग का कारण बहुधा समज पाना कठिन होता है ।फोड़े फुंसी सुजन या चोट से कष्ट होता है ।
उपाय : असंगध की जड़ भुजा में बांधने से लाभ होता है । तिल चावल जौ से हवन करे ।

स्वाति नक्षत्र : वाट पीड़ा से कष्ट, पेट में गैस, गठिया, जकडन से कष्ट ।
उपाय : गौ तथा ब्राह्मणों की सेवा करे, जावित्री की जड़ भुजा में बांधे ।

विशाखा नक्षत्र : जातक को सर्वांग पीड़ा से दुःख । कभी फोड़े होने से पीड़ा ।
उपाय : गूंजा की जड़ भुजा भुजा पर बांधना, सुगन्धित वास्तु से हवन करना लाभ दायक होता है ।

अनुराधा नक्षत्र : जातक को ज्वर ताप, सिर दर्द, बदन दर्द, जलन, रोगों से कष्ट ।
उपाय : चमेली, मोतिया, गुलाब की जड़ भुजा में बांधना से लाभ ।

जेष्ठा नक्षत्र : जातक को पित्त बड़ने से कष्ट । देह में कम्पन, चित्त में व्याकुलता, एकाग्रता में कमी, कम में मन नहीं लगना ।
उपाय : चिरचिटे की जड़ भुजा में बांधने से लाभ ।ब्राह्मण को दूध से बनी मिठाई खिलाये ।

मूल नक्षत्र : जातक को सन्निपात ज्वर, हाथ पैरों का ठंडा पड़ना, रक्तचाप मंद, पेट गले में दर्द अक्सर रोगग्रस्त रहना ।
उपाय : 32 कुओं (नलों) के पानी से स्नान तथा दान पुण्य से लाभ होगा ।

पूर्वाषाढ़ नक्षत्र : जातक को देह में कम्पन, सिर दर्द तथा सर्वांग में पीड़ा ।
सफ़ेद चन्दन का लेप, आवास कक्ष में सुगन्धित पुष्प से सजाये । कपास की जड़ भुजा में बांधने से लाभ ।

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र : जातक संधि वात, गठिया, वात शूल या कटी पीड़ा से कष्ट, कभी असहय वेदना ।
उपाय : कपास की जड़ भुजा में बांधे, ब्राह्मणों को भोज कराये लाभ होगा ।

श्रवण नक्षत्र : जातक अतिसार, दस्त, देह पीड़ा ज्वर से कष्ट, दाद, खाज खुजली जैसे चर्म रोग कुष्ठ, पित्त, मवाद बनना, संधि वात, क्षय रोग से पीड़ा ।
उपाय : अपामार्ग की जड़ भुजा में बांधने से रोग का शमन होता है ।

धनिष्ठा नक्षत्र : जातक मूत्र रोग, खुनी दस्त, पैर में चोट, सुखी खांसी, बलगम, अंग भंग, सुजन, फोड़े या लंगड़े पण से कष्ट ।
उपाय : भगवान मारुती की आराधना करे । गुड चने का दान करे ।

शतभिषा नक्षत्र : जातक जलमय, सन्निपात, ज्वर, वातपीड़ा, बुखार से कष्ट ।अनिंद्रा, छाती पर सुजन, ह्रदय की  अनियमित धड़कन, पिंडली में दर्द से कष्ट ।
उपाय : यज्ञ, हवन, दान, पुण्य तथा ब्राह्मणों को मिठाई खिलानेसे लाभ होगा ।

पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र : जातक को उल्टी या वमन, देह पीड़ा, बैचेनी, ह्रदय रोग, टकने की सुजन, आंतो का रोग से कष्ट होता है ।
उपाय : भृंगराज की जड़ भुजा में भुजा पर बांधे, तिल का दान करने से लाभ होता है ।

उत्तराभाद्रपद नक्षत्र : जातक अतिसार, वातपीड़ा, पीलिया, गठिया, संधिवात, उदरवायु, पाव सुन्न पड़ना से कष्ट हो सकता है ।
उपाय : पीपल की जड़ भुजा पर बांधने से तथा ब्राह्मणों को मिठाई खिलाये लाभ होगा ।

रेवती नक्षत्र : जातक को ज्वर, वाट पीड़ा, मति भ्रम, उदार विकार, मादक द्रव्य सेवन से उत्पन्न रोग किडनी के रोग, बहरापन, या कण के रोग पाव की अस्थि, मासपेशी खिचाव से कष्ट ।
उपाय : पीपल की जड़ भुजा में बांधे लाभ होगा ।

Related topics-

वैवाहिक जीवन को प्रभावित करने वाले कुछ योग vaivaahik jeevan ko prabhaavit karane vaale kuchh yog

● जाने भगवान क्यों नहीं सुन रहा इतनी पूजा /प्रार्थना करने पर भी? Why is not God listening to so much worship / prayer?

Sunday, June 12, 2016

रामचरितमानस की चौपाइयाँ

रामचरितमानस की चौपाइयों में ऐसी क्षमता है कि इन चौपाइयों के जप से ही मनुष्य बड़े-से-बड़े संकट में भी मुक्त हो जाता है।

इन मंत्रो का जीवन में प्रयोग अवश्य करे प्रभु श्रीराम आप के जीवन को सुखमय बना देगे।


1. रक्षा के लिए

मामभिरक्षक रघुकुल नायक ।
घृत वर चाप रुचिर कर सायक ।।

2. विपत्ति दूर करने के लिए

राजिव नयन धरे धनु सायक ।
भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ।।

3. सहायता के लिए

मोरे हित हरि सम नहि कोऊ ।
एहि अवसर सहाय सोई होऊ ।।

4. सब काम बनाने के लिए

वंदौ बाल रुप सोई रामू ।
सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ।।

5. वश मे करने के लिए

सुमिर पवन सुत पावन नामू ।
अपने वश कर राखे राम ।।

6. संकट से बचने के लिए

दीन दयालु विरद संभारी ।
हरहु नाथ मम संकट भारी ।।

7. विघ्न विनाश के लिए

सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही ।
राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ।।

8. रोग विनाश के लिए

राम कृपा नाशहि सव रोगा ।
जो यहि भाँति बनहि संयोगा ।।

9. ज्वार ताप दूर करने के लिए

दैहिक दैविक भोतिक तापा ।
राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ।।

10. दुःख नाश के लिए

राम भक्ति मणि उस बस जाके ।
दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ।।

11. खोई चीज पाने के लिए

गई बहोरि गरीब नेवाजू ।
सरल सबल साहिब रघुराजू ।।

12. अनुराग बढाने के लिए

सीता राम चरण रत मोरे ।
अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ।।

13. घर मे सुख लाने के लिए

जै सकाम नर सुनहि जे गावहि ।
सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ।।

14. सुधार करने के लिए

मोहि सुधारहि सोई सब भाँती ।
जासु कृपा नहि कृपा अघाती ।।

15. विद्या पाने के लिए

गुरू गृह पढन गए रघुराई ।
अल्प काल विधा सब आई ।।

16. सरस्वती निवास के लिए

जेहि पर कृपा करहि जन जानी ।
कवि उर अजिर नचावहि बानी ।।

17. निर्मल बुद्धि के लिए

ताके युग पदं कमल मनाऊँ ।
जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ।।

18. मोह नाश के लिए

होय विवेक मोह भ्रम भागा ।
तब रघुनाथ चरण अनुरागा ।।

19. प्रेम बढाने के लिए

सब नर करहिं परस्पर प्रीती ।
चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ।।

20. प्रीति बढाने के लिए

बैर न कर काह सन कोई ।
जासन बैर प्रीति कर सोई ।।

21. सुख प्रप्ति के लिए

अनुजन संयुत भोजन करही ।
देखि सकल जननी सुख भरहीं ।।

22. भाई का प्रेम पाने के लिए

सेवाहि सानुकूल सब भाई ।
राम चरण रति अति अधिकाई ।।

23. बैर दूर करने के लिए

बैर न कर काहू सन कोई ।
राम प्रताप विषमता खोई ।।

24. मेल कराने के लिए

गरल सुधा रिपु करही मिलाई ।
गोपद सिंधु अनल सितलाई ।।

25. शत्रु नाश के लिए

जाके सुमिरन ते रिपु नासा ।
नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ।।

26. रोजगार पाने के लिए

विश्व भरण पोषण करि जोई ।
ताकर नाम भरत अस होई ।।

27. इच्छा पूरी करने के लिए

राम सदा सेवक रूचि राखी ।
वेद पुराण साधु सुर साखी ।।

28. पाप विनाश के लिए

पापी जाकर नाम सुमिरहीं ।
अति अपार भव भवसागर तरहीं ।।

29. अल्प मृत्यु न होने के लिए

अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा ।
सब सुन्दर सब निरूज शरीरा ।।

30. दरिद्रता दूर के लिए

नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना ।
नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना ।।

31. प्रभु दर्शन पाने के लिए

अतिशय प्रीति देख रघुवीरा ।
प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ।।

32. शोक दूर करने के लिए

नयन बन्त रघुपतहिं बिलोकी ।
आए जन्म फल होहिं विशोकी ।।

33. क्षमा माँगने के लिए

अनुचित बहुत कहहूँ अज्ञाता ।
क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता ।।

Saturday, June 11, 2016

नौकरी पाने के अचूक उपाय The right way to get a job

हर व्यक्ति की अपने जीवन में कामना होती है की उसे अच्छी नौकरी मिले या उसका रोज़गार उसका कारोबार श्रेष्ठ हो । कभी-कभी पर्याप्त योग्यता होने, सब कुछ ठीक होने , लिखित परीक्षा, इंटरव्यू अच्छा होने के बाद भी कुछ ऐसी अड़चने आ जाती हैं, जिससे नौकरी मिलते-मिलते रह जाती है। या अच्छी नौकरी नहीं मिलती है । ज्योतिष के अनुसार ये सब कुण्डली के ग्रहों के कारण होता है, जिससे आपके बनते काम बनते बनते बिगड़ जाते है , आपकी नौकरी , रोज़गार में कोई ना कोई दिक्कते आ जाती है । लेकिन कुछ उपायों को पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ चुपचाप करके हम अपनी नौकरी की राह में आने वाली सभी अड़चनों को निश्चय ही दूर कर सकते है ।

1.अपनी अच्छी नौकरी के लिए प्रत्येक सोमवार को शिव जी के मंदिर जाकर शिवलिंग पर मीठा कच्चा दूध चढ़ाते हुए अखंडित अक्षत ( साबुत चावल , जो टूटे हुए ना हो ) अर्पित करके भगवान भोले नाथ से अपने मन की बात करें । इससे नौकरी में आने वाली समस्त अड़चने दूर हो जाती है ।

2.माह की किसी भी गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी का कोई ऐसा चित्र या मूर्ति जिसमें उनकी सूंड़ दाईं ओर मुड़ी हो उस पर 7 या 11 दूर्वा अर्पित करें । फिर भगवान के आगे लौंग तथा सुपारी रखकर पूरी श्रद्धा से उनकी पूजा करें। तत्पश्चात जब भी किसी नौकरी के लिए या महत्वपूर्ण काम पर जाना हो तो इस लौंग को तथा सुपारी को साथ लेकर जाएं। आपको अपने कार्यों में सफलता मिलेगी ।

3.जिन व्यक्तियों को बेहतर व्यापार , नौकरी की चाह है वह अपने घर में बजरंग बली का फोटो जिसमें उनका उड़ता हुआ चित्र हो लगाकर उसकी पूजा करें ।

4.यदि आप लाख प्रयत्न करने के बाद भी बेरोजगार हैं या आपको अपने कार्यों में ज़रा सी भी सफलता नहीं मिल रही है तो आप बिना दाग वाला पीला नींबू लेकर उसके चार बराबर के टुकड़े कर लें। फिर संध्या के समय किसी सुनसान चौराहे पर जाकर चारों दिशाओं में उन्हे फेंक दें और बिना पीछे मुड़े देखे घर वापस आ जायें। या उपाय शुक्ल पक्ष के किसी भी दिन से शुरू करते हुए सात दिन लगातार करें। इससे शीघ्र ही कार्य बनने लगेंगे, नौकरी, कारोबार में सफलता मिलेगी। यह प्रयोग अमावस्या विशेषकर शनि अमावस्या के दिन विशेष रूप से प्रभावी होता है ।

5.जब भी आप किसी नौकरी के लिए इंटरव्यू देने जाये , तो एक नींबू के ऊपर चारो दिशाओं में चार लौंग गाड़ कर ( अगर लौंग ना गढ़ पाये तो नींबू में आलपिन से छेद करके लौंग गाड़ दें ) ‘ॐ श्री हनुमते नम:’ मंत्र का 108 बार जप करके उस नींबू को भी अपने साथ लेकर जाएं। आपको नौकरी मिलने की सम्भावना प्रबल होगी ।

6.जब भी आप किसी इंटरव्यू देने जाये तो गुड चना या आटे के पेड़े में गुड रखकर जाये और रास्ते में कोई भी गाय नजर आए तो उसे अपने हाथ से यह खिला दें , आपको शुभ समाचार मिलेंगे ।

7.यदि आपका कोई जरुरी काम होते होते रह जाता है तो आप शुक्ल पक्ष में हल्दी की 7 साबुत गांठें, 7 गुड़ की डलियां, एक रुपये का सिक्का किसी पीले कपड़े में बांध कर रेलवे लाइन के पार फेंक दें। फेंकते समय कहें काम दे, इससे काम के आपके पक्ष में होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।

8.किसी भी मंगलवार से प्रारंभ करते हुए 40 दिनों तक नित्य प्रात: नंगे पैर हनुमानजी के मंदिर में जाकर उन्हें लाल गुलाब के फूल चढ़ाएं। ऐसा करने से शीघ्र ही रोजगार मिलने की सम्भावना बढ़ जाती है।

9.इंटरव्यू देने जाने से पहले सुबह सूर्योदय से पूर्व स्नान करते समय पानी में थोड़ी पिसी हल्दी मिलाकर स्नान करें फिर भगवान के सामने 11 अगरबत्ती जलाकर अपनी मनोकामना कहें। इंटरव्यू देने के लिए निकलते समय एक चम्मच दही और चीनी खाकर सबसे पहले दायां पैर घर से बाहर निकालें ।

10.मान्यता है कि यदि सुबह-सुबह पंक्षियों को दाना खिलाया जाय तो नौकरी , रोज़गार सम्बन्धी कामनाएं पूर्ण होती है । यदि रोज सुबह आप पंक्षियों को सात प्रकार के अनाजों को मिलाकर दाना खिलाते हैं तो निश्चय ही आपकी मनचाही नौकरी के योग प्रबल होंगे ।

11.प्रत्येक शनिवार को शनि देव की पूजा करते हुए "ॐ शं शनैश्चराय नम:" मंत्र का 108 बार  जप करे।

12."विश्व भरन पोषन कर जोई ताकर नाम भरत अस होइ।
     गई बहोर गरीब नेवाजू सरल सबद साहिब रघुराजू।।"
इस मन्त्र का सवालाख जप करें।

Related topics-

● जीवन मे उन्नति हेतु कुछ उपाय Some Tips for Advancing Life

● गणेश को मखाने चढ़ाकर करे भगवानसमस्या का निवारण Troubleshoot the problem of God by offering a lottery to Ganesh

● जीवन में सर्वत्र सुख समृद्धि और प्रसिद्ध पाने के लिए कुछ खास उपाय Something special for happiness and prosperity everywhere in life

त्रिफला

                   त्रिफला

त्रिफला का सेवन आपके शरीर का कायाकल्प कर जीवन भर स्वस्थ आपको स्वस्थ्य रख सकता है ।
आयुर्वेद की इस महान देन त्रिफला से हमारे देश का आम व्यक्ति परिचित है व सभी ने कभी न कभी कब्ज आदि दूर करने के लिए इसका सेवन भी जरुर किया होगा ।

 बहुत कम लोग जानते है इस त्रिफला चूर्ण जिसे आयुर्वेद रसायन भी मानता है से अपने कमजोर शरीर का कायाकल्प किया जा सकता है ।
जरुरत है तो इसके नियमित सेवन करने की । क्योंकि त्रिफला का वर्षों तक नियमित सेवन ही आपके शरीर का कायाकल्प कर सकता है ।
सेवन विधि - सुबह हाथ मुंह धोने व कुल्ला आदि करने के बाद खाली पेट ताजे पानी के साथ इसका सेवन करें तथा सेवन के बाद एक घंटे तक पानी के अलावा कुछ ना लें ।
इस नियम का कठोरता से पालन करें ।
यह तो हुई साधारण विधि पर आप कायाकल्प के लिए नियमित इसका इस्तेमाल कर रहे है तो इसे विभिन्न ऋतुओं के अनुसार इसके साथ गुड़, सैंधा नमक आदि विभिन्न वस्तुएं मिलाकर ले ।
हमारे यहाँ वर्ष भर में छ: ऋतुएँ होती है और प्रत्येक ऋतू में दो दो मास ।
१- ग्रीष्म ऋतू - १४ मई से १३ जुलाई तक त्रिफला को गुड़ १/४ भाग मिलाकर सेवन करें ।
२- वर्षा ऋतू - १४ जुलाई से १३ सितम्बर तक इस त्रिदोषनाशक चूर्ण के साथ सैंधा नमक १/४ भाग मिलाकर सेवन करें ।
३- शरद ऋतू - १४ सितम्बर से १३ नवम्बर तक त्रिफला के साथ देशी खांड १/४ भाग मिलाकर सेवन करें ।
४- हेमंत ऋतू - १४ नवम्बर से १३ जनवरी के बीच त्रिफला के साथ सौंठ का चूर्ण १/४ भाग मिलाकर सेवन करें ।
५- शिशिर ऋतू - १४ जनवरी से १३ मार्च के बीच पीपल छोटी का चूर्ण १/४ भाग मिलाकर सेवन करें  ।
६- बसंत ऋतू - १४ मार्च से १३ मई के दौरान इस के साथ शहद मिलाकर सेवन करें ।शहद उतना मिलाएं जितना मिलाने से अवलेह बन जाये ।
इस तरह इसका सेवन करने से एक वर्ष के भीतर शरीर की सुस्ती दूर होगी , दो वर्ष सेवन से सभी रोगों का नाश होगा , तीसरे वर्ष तक सेवन से नेत्रों की ज्योति बढ़ेगी , चार वर्ष तक सेवन से चेहरे का सोंदर्य निखरेगा , पांच वर्ष तक सेवन के बाद बुद्धि का अभूतपूर्व विकास होगा ,छ: वर्ष सेवन के बाद बल बढेगा , सातवें वर्ष में सफ़ेद बाल काले होने शुरू हो जायेंगे और आठ वर्ष सेवन के बाद शरीर युवाशक्ति सा परिपूर्ण लगेगा ।
दो तोला हरड बड़ी मंगावे |तासू दुगुन बहेड़ा लावे ।।
और चतुर्गुण मेरे मीता |ले आंवला परम पुनीता ।।
कूट छान या विधि खाय|ताके रोग सर्व कट जाय ।।
त्रिफला का अनुपात होना चाहिए :- 1:2:3=1(हरद )+2(बहेड़ा )+3(आंवला )
त्रिफला लेने का सही नियम -
*सुबह अगर हम त्रिफला लेते हैं तो उसको हम "पोषक " कहते हैं ।क्योंकि सुबह त्रिफला लेने से त्रिफला शरीर को पोषण देता है जैसे शरीर में vitamine ,iron,calcium,micronutrients की कमी को पूरा करता है एक स्वस्थ व्यक्ति को सुबह त्रिफला खाना चाहिए ।
*सुबह जो त्रिफला खाएं हमेशा गुड के साथ खाएं ।
*रात में जब त्रिफला लेते हैं उसे "रेचक " कहते है क्योंकि रात में त्रिफला लेने से पेट की सफाई (कब्ज इत्यादि )का निवारण होता है।
*रात में त्रिफला हमेशा गर्म दूध के साथ लेना चाहिए ।
नेत्र-प्रक्षलन : एक चम्मच त्रिफला चूर्ण रात को एक कटोरी पानी में भिगोकर रखें। सुबह कपड़े से छानकर उस पानी से आंखें धो लें। यह प्रयोग आंखों के लिए अत्यंत हितकर है। इससे आंखें स्वच्छ व दृष्टि सूक्ष्म होती है। आंखों की जलन, लालिमा आदि तकलीफें दूर होती हैं।
- कुल्ला करना : त्रिफला रात को पानी में भिगोकर रखें। सुबह मंजन करने के बाद यह पानी मुंह में भरकर रखें। थोड़ी देर बाद निकाल दें। इससे दांत व मसूड़े वृद्धावस्था तक मजबूत रहते हैं। इससे अरुचि, मुख की दुर्गंध व मुंह के छाले नष्ट होते हैं।
- त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है। त्रिफला के काढ़े से घाव धोने से एलोपैथिक- एंटिसेप्टिक की आवश्यकता नहीं रहती। घाव जल्दी भर जाता है।
- गाय का घी व शहद के मिश्रण (घी अधिक व शहद कम) के साथ त्रिफला चूर्ण का सेवन आंखों के लिए वरदान स्वरूप है।
- संयमित आहार-विहार के साथ इसका नियमित प्रयोग करने से मोतियाबिंद, कांचबिंदु-दृष्टिदोष आदि नेत्र रोग होने की संभावना नहीं होती।
- मूत्र संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में यह फायदेमंद है। रात को गुनगुने पानी के साथ त्रिफला लेने से कब्ज नहीं रहती है।
- मात्रा : 2 से 4 ग्राम चूर्ण दोपहर को भोजन के बाद अथवा रात को गुनगुने पानी के साथ लें।
- त्रिफला का सेवन रेडियोधर्मिता से भी बचाव करता है। प्रयोगों में देखा गया है कि त्रिफला की खुराकों से गामा किरणों के रेडिएशन के प्रभाव से होने वाली अस्वस्थता के लक्षण भी नहीं पाए जाते हैं। इसीलिए त्रिफला चूर्ण आयुर्वेद का अनमोल उपहार कहा जाता है।
सावधानी : दुर्बल, कृश व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को एवं नए बुखार में इसका सेवन चिकित्सकीय परामर्श से करें।

Sunday, June 5, 2016

वार और उनमे होने वाले कार्य Day and work

रविवार

यह सूर्य देव का वार माना गया है। इस दिन नवीन गृह प्रवेश और सरकारी कार्य करना चाहिए। सोने के आभूषण और तांबे की वस्तुओं का क्रय विक्रय करना चाहिए या इन धातुओं के आभूषण पहनना चाहिए।

सोमवार

नौकरी वालों के लिए पद ग्रहण करने के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण है। गृह शुभारम्भ, कृषि, लेखन कार्य और दूध, घी व तरल पदार्थों का क्रय विक्रय करना इस दिन फायदेमंद हो सकता है।

मंगलवार

मंगल देव के इस दिन विवाद एवं मुकद्दमे से संबंधित कार्य करने चाहिए। शस्त्र अभ्यास, शौर्य और पराक्रम के कार्य इस दिन करने से उस कार्य में सफलता मिलती है। मेडिकल से संबंधित कार्य और अॅापरेशन इस दिन करने से सफलता मिलती है। बिजली और अग्नि से संबधित कार्य इस दिन करें तो जरूर लाभ मिलेगा। सभी प्रकार की धातुओं का क्रय विक्रय करना चाहिए।

बुधवार

इस दिन यात्रा करना, मध्यस्थता करना, योजना बनाना आदि काम करने चाहिए। लेखन, शेयर मार्केट का काम, व्यापारिक लेखा-जोखा आदि का कार्य करे।

बृहस्पति

बृहस्पति देव के इस दिन यात्रा, धार्मिक कार्य, विद्याध्ययन और बैंक से संबंधित कार्र्य करना चाहिए। इस दिन वस्त्र आभूषण खरीदना, धारण करना और प्रशासनिक कार्य करना शुभ माना गया है।

शुक्रवार

शुक्रवार के दिन गृह प्रवेश, कलात्मक कार्य, कन्या दान, करने का महत्व है। शुक्र देव भौतिक सुखों के स्वामी है। इसलिए इस दिन सुख भोगने के साधनों का उपयोग करें। सौंदर्य प्रसाधन, सुगन्धित पदार्थ, वस्त्र, आभूषण, वाहन आदि खरीदना लाभ दायक होता है।

शनिवार

मकान बनाना, टेक्रीकल काम, गृह प्रवेश, ऑपरेशन आदि काम करने चाहिए। प्लास्टिक , लकड़ी , सीमेंट, तेल, पेट्रोल खरीदना और वाद-विवाद के लिए जाना इस दिन सफलता देने वाला होता है।

रत्न कब और कितना धारण करना चाहिए When and how much should hold gems

सूर्य रत्न, माणिक्य:-15चावल
भर या 5 रत्ती का, स्वर्ण मुद्रिका
में, हस्त नक्षत्र, रवि पुष्य, या
रवि वार को रवि की होरा में ।

चन्द्र रत्न, मोती:- 2रत्ती या 4रत्ती , चांदी या स्वर्ण में,
रोहिणी नक्षत्र या सोमवार को
चन्द्र की होरा में ।

मंगल रत्न, मूंगा:-8रत्ती, स्वर्ण में
अनुराधा नक्षत्र में या मंगल वार
को मंगल की होरा में।

बुध रत्न, पन्ना:- 3रत्ती या 6रत्ती
स्वर्ण या चाँदी में, उत्तरा फाल्गुनी
नक्षत्र में या बुध वार को बुध की
होरा में।

गुरु रत्न:- पुखराज या पुष्प राज
12चावल भर, या 1-1/4 रती
या अधिकतम 9 रत्ती, गुरु पुष्य
नक्षत्र में या गुरु वार गुरु की होरा
में ।

शुक्र रत्न, हीरा, 9, 18, 27 सेंट
का, मृग्शिर नक्षत्र में, चांदी में ,
मध्यमा अंगुली में या शुक्र वार
शुक्र की होरा में ।

शनि रत्न, नीलम:- 3,6, 10 रत्ती
या 11चावल भर, श्रवण नक्षत्र
में,या शनि वार को, शनि की होरा
में।स्वर्ण में,।

राहु रत्न, गोमेद:- 6 रत्ती , उत्तरा
फाल्गुनी नक्षत्र में या बुध वार ,
सायं काल ।

केतु रत्न, लहसनिया:- 6 रत्ती
गुरु पुष्य नक्षत्र में।

रत्न धारण करने से पहले शुद्ध
रेशमी वस्त्र में, एक सप्ताह दाहिनी भुजा में बाँध कर , परीक्षा करे।
प्राय: 2भाव का मारकेश जीवन
के प्रारम्भ में, 7वे भाव का मारकेश, जीवन के अंत में, वह
8 स्थान का मारकेश जीवन के
मध्य में फल देता हे।

Related topics-

● वैवाहिक जीवन को प्रभावित करने वाले कुछ योग vaivaahik jeevan ko prabhaavit karane vaale kuchh yog

● जाने कैसे अंकों के द्वारा भाग्य बढ़ाये? Know how to increase fate by numbers?

Saturday, June 4, 2016

सुन्दर काण्ड sundarakaand

सुन्दर काण्ड Sundar Kand



श्री गोस्वामी तुलसीदास जी विरचित सुन्दरकाण्ड का नित्यप्रति पाठ करना हर प्रकार से लाभ दायक होता है, इसके अनेक लाभ है .....
सुन्दर कांड का पाठ करने से मनुष्य के सब कष्ट दूर होते हैं तथा मनोकामना पूर्ण होती है और जीवन में खुशियों का संचार होने लगता है।
सुंदरकांड में तीन श्लोक , साठ दोहे और पांच सौ छब्बीस चौपाइयां हैं। वैसे तो सुंदर कांड का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है लेकिन मंगलवार तथा शनिवार के दिन सुन्दर कांड का पाठ करना विशेष फलदायी होता है।
इस पाठ को हनुमान जी के सामने चमेली के तेल का दीपक जला कर करने से अधिक फल प्राप्त होता है, सुन्दरकाण्ड एक ऐसा पाठ है जो की हरप्रकार की बाधा और परेशानियों को खतम कर देने में पूर्णतः समर्थ है.
आजकल के व्यस्तता भरे दिनचर्या में बहुत अधिक समय तक पूजा कर पाना हमेशा संभव नहीं होता, ऐसे में इस पाठ को आप पूरा पढ़ सके तो बहुत अच्छा है पर नहीं पढ़ सकते या समय का आभाव है तो ऐसा करे के इसमें कुल ६० दोहे है, हर दिन १० दोहों का आप पाठ कर ले, ये आप मंगलवार से शुरू कर सकते है जो की रविवार तक खतम हो जायेगा।

जाने ज्योतिष के अनुसार सुन्दरकाण्ड का पाठ According to astrology, the text of Sundar Kand


ज्योतिष के अनुसार भी सुन्दरकाण्ड एक अचूक उपाय है ज्योतिषो के द्वारा उपाय के तौर पर अक्सर बताया जाता है,।
यह उन लोगो के लिए ये विशेष फलदाई होताहै जिनकी जन्म कुंडली में –
मंगल नीच का है, पाप ग्रहों से पीड़ित है, पापग्रहों से युक्त है या उनकी दृष्टि से दूषित हो रहा है, मंगल में अगर बल बहुत कम हो, अगर जातक के शरीर में रक्त विकार हो, अगर आत्मविश्वास की अधिक कमी हो, अगर मंगल बहुत ही क्रूर हो तो भी ये पाठ आपको निश्चित रहत देगा।
अगर लगन में राहू स्थित हो, लगन पर राहू या केतु की दृष्टि हो, लगन शनि या मंगल के दुष्प्रभावो से पीड़ित हो, मंगल अगर वक्री हो गोचर में मंगल के भ्रमण से अगर कोई कष्ट आ रहे हो, शनि की सादे साती या ढैय्या से आपको परेशानी हो रही हो, इत्यादि….. इन सभी योगो में सुन्दरकाण्ड का पाठ अचूक फल दायक माना जाता है…

सुन्दर काण्ड के पाठ करने से लाभ Benefits from reading Sundarakand


सुंदरकांड का पाठ करके हनुमान जी की भक्ति और स्तुति करने से कुछ विशेष लाभ मिल सकते हैं जो इस प्रकार हैं –
● अकारण  किसी काम में आ रही अड़चन या परेशानी दूर हो जाती हैं।
●  सुंदर कांड का पाठ करने या सुनने से मानसिक शक्ति में वृद्धि होती है।
●  जीवन में आ रही अत्यधिक परेशानियाँ कम हो जाती हैं।
●  आत्म-विश्वास की कमी या इच्छा शक्ति में कमी दूर होती है।
●  सुंदरकांड के मंगलाचरण का रोजाना पाठ करने से व्यापार और नौकरी में तरक्की होती है।
●  सुंदर कांड के साथ हनुमान चालीसा का पाठ करने से धन धान्य में बढ़ोतरी होती है।
●  सुंदर कांड का पाठ करके एक जटा युक्त नारियल अपने ऊपर से सात बार उतार कर हनुमान जी के मंदिर में चढ़ाने से राहू की शांति होती है। इस नारियल पर सरसों या तिल का तेल छिड़क कर चढ़ाने से शनि का प्रकोप शांत होता है।
●  इसका पाठ करने से विद्यार्थियों को विशेष लाभ मिलता है, ये आत्मविश्वासमें बढोतरी करता है और परीक्षा में अच्छे अंक लाने में मददगार होता है,बुद्धि कुशाग्र होती है, अगर बहुत छोटे बच्चेहै तो उनके माता या पिता उनकेलिए इसका पाठ करे।
● सुन्दर काण्ड का पाठ मन को शांति और सुकून देता है मानसिक परेशानियों और व्याधियो से ये छुटकारा दिलवाने में कारगर है।
●  जिन लोगो को गृह कलेश की समस्या है इस पाठ से उनको विशेष फल मिलते है।
● अगर घर का मुखिया इसका पाठ घर में रोज करता है तो घर का वातावरण अच्छा रहता है।
●  घर में या अपने आप में कोई भी नकारात्मक शक्ति को दूर करने का ये अचूक उपाय है।
●  अगर आप सुनसान जगह पर रहते है और किसी अनहोनी का डर लगा रहता हो तो उस स्थान या घर पर इसका रोज पाठ करने से हर प्रकार की बाधा से मुक्ति मिलती हैऔर आत्मबल बढ़ता है।
●  जिनको बुरे सपने आते हो रात को अनावश्यक डर लगता हो इसके पाठ निश्चित से आराम मिलेगा।
● जो लोग क़र्ज़ से परेशान है उनको ये पाठ शांति भी देता है और क़र्ज़ मुक्ति में सहायक
भी होता है।
●  जिस घर में बच्चे माँ पिता जी के संस्कार को भूल चुके हो, गलत संगत में लग गए हो और माँ पिता जी का अनादर करते हो वहा भी ये पाठ निश्चित लाभकारी होता है।
●  किसी भी प्रकार का मानसिक या शारीरिक रोग भले क्यों न हो इसका पाठ
लाभकारी होता है।
●  भूत प्रेत की व्याधि भी इस पाठ को करने से स्वतः ही दूर हो जाती है।
●  नौकरी में प्रमोशन में भी ये पाठ विशेष फलदाई होता है।
●  घर का कोई भी सदस्य घर से बाहर हो आपको उसकी कोई जानकारी मिल
पा रही हो या न भी मिल पा रही हो तो भी आप अगर इसका पाठ करते है तो सम्बंधित व्यक्ति की निश्चित ही रक्षा होगी, और आपको चिंता से भी राहत मिलेगी।
और इसके अलावा ऐसे बहुत से लाभ है जो सुन्दरकाण्ड से मिलते हैं अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव महसूस करे, जीवन सार्थक बनाये इस पाठ के मदद से हर दिन को नए उत्साह से जिए और परेशानियों से निजात पाए।

सुन्दर काण्ड पाठ की विधि Sundarkand Path ki Vidhi


अपने मन में यह विश्वास रखकर कि जैसे हनुमान जी ने श्रीराम के काज संवारे , वैसे ही हमारे भी संवारेंगे,  सुंदर कांड का पाठ करना चाहिए। सुंदर कांड के पाठ की विधि इस प्रकार है –
●  स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
●  एक चौकी पर हनुमान जी और श्रीराम भगवान की सुंदर फोटो स्थापित करके पुष्प आदि से सजाएँ।
●  गणेश गौरी,वरुण,नवग्रह, शंकर भगवान , श्रीराम भगवान और हनुमान जी का ध्यान करके आवाहन करें।
●  सिन्दूर में चमेली के तेल मिलाकर हनुमान जी को तिलक लगायें,विधिवत पूजन करें।
●  पीपल के सात पत्ते हनुमान जी के चरणों में रखें।
●  घी का दीपक जलाएं। यह दीपक सुन्दर कांड के पूरे समय तक जलना चाहिए।यदि शनिवार को सुन्दर काण्ड का पाठ हो तो चमेली के तेल का भी दीपक जलाएं।
●  फल , गुड़ चना , लड्डू आदि मिठाई का भोग लगायें।
●  गुरूजी और पितरों आदि का ध्यान करके उन्हें प्रणाम करें।
●  सबसे पहले गणेश जी की स्तुति करें।
●  इसके बाद श्रीराम की वंदना करें। फिर सुन्दर कांड का पाठ शुरू करें।
●  पाठ समाप्त होने पर हनुमान जी की आरती की और श्रीरामजी की आरती करें।
●  आवाहन किये गए देवताओं को विदा करें।
●  उपस्थित लोगों को आरती और प्रसाद दें।

सुन्दर काण्ड के नियम
sundarkand ke niyam

सुन्दर काण्ड पाठ के कुछ नियम होते हैं, इन नियमो का पालन अवश्य करना चाहिए। ये नियम इस प्रकार हैं –
● सुंदर कांड का पाठ सुबह या शाम को चार बजे के बाद करें। बारह बजे से चार बजे के बीच ना करें।
●  सुंदर कांड चल रहा हो तब बीच में उठें नहीं तथा अनावश्यक बातचीत ना करें।
●  मांस , मदिरा तथा धूम्रपान गुटका आदि तामसिक वस्तुओं का सेवन न करें।
●   नाख़ून ना काटें तथा बाल ना कटवाएं।
●  ब्रह्मचर्य का पालन करें।
●  उस दिन चाकू या कैंची आदि धार युक्त चीजें ना खरीदें।
●  इस दिन जेब में एक लाल रंग का रुमाल रखें।

●  सुन्दर कांड के बाद बच्चों को मिठाई बाटें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।

Related Post-

बंदी मोचन मंत्र प्रयोग Use of captive mochan mantra

● आदित्य हृदय स्तोत्र Aditya hriday stotram

Thursday, June 2, 2016

आपके हस्ताक्षर आपका व्यक्तित्व Your signature is your personality

1. जो लोग हस्ताक्षर में सिर्फ अपना नाम लिखते हैं, सरनेम नहीं लिखते हैं, वे खुद के सिद्धांतों पर काम करने वाले होते हैं। आमतौर पर ऐसे लोग किसी और की सलाह नहीं मानते हैं, ये लोग सुनते सबकी हैं, लेकिन करते करते अपने मन की हैं।
2. जो लोग जल्दी-जल्दी और अस्पष्ट हस्ताक्षर करते हैं, वे जीवन में कई प्रकार की परेशानियों का सामना करते हैं। ऐसे लोग सुखी जीवन नहीं जी पाते हैं। हालांकि, ऐसे लोगों में कामयाब होने की चाहत बहुत अधिक होती है और इसके लिए वे श्रम भी करते हैं। ये लोग किसी को धोखा भी दे सकते हैं। स्वभाव से चतुर होते हैं, इसी वजह से इन्हें कोई धोखा नहीं दे
3. कुछ लोग हस्ताक्षर तोड़-मरोड़ कर या टुकड़े-टुकड़े या अलग-अलग हिस्सों में करते हैं, हस्ताक्षर के शब्द छोटे-छोटे और अस्पष्ट होते हैं जो आसानी से समझ नहीं आते हैं। सामान्यत: ऐसे लोग बहुत ही चालाक होते हैं। ये लोग अपने काम से जुड़े राज किसी के सामने जाहिर नहीं करते हैं। कभी-कभी ये लोग गलत रास्तों पर भी चल देते हैं और किसी को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं।
4. जो लोग कलात्मक और आकर्षक हस्ताक्षर करते हैं, वे रचनात्मक स्वभाव के होते हैं। इन्हें किसी भी कार्य को कलात्मक ढंग से करना पसंद होता है। ऐसे लोग किसी न किसी कार्य में हुनरमंद होते हैं। इन लोगों के काम करने का तरीका अन्य लोगों से एकदम अलग होता है। ऐसे हस्ताक्षर वाले लोग पेंटर या कलाकार भी हो सकते हैं।
5. कुछ लोग हस्ताक्षर के नीचे दो लाइन खींचते हैं। ऐसे सिग्नेचर करने वाले लोगों में असुरक्षा की भावना अधिक होती है। किसी काम में सफलता मिलेगी या नहीं, इस बात का संदेह सदैव रहता है। पैसा खर्च करने में इन्हें काफी बुरा महसूस होता है अर्थात ये लोग कंजूस भी हो सकते हैं
6. जो लोग हस्ताक्षर करते समय नाम का पहला अक्षर थोड़ा बड़ा और पूरा उपनाम लिखते हैं, वे अद्भुत प्रतिभा के धनी होते हैं। ऐसे लोग जीवन में सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त करते हैं। ईश्वर में आस्था रखने वाले और धार्मिक कार्य करना इनका स्वभाव होता है। ऐसे लोगों का वैवाहिक जीवन भी सुखी होता है।
7. जिन लोगों के सिग्नेचर मध्यम आकार के अक्षर वाले, जैसी उनकी लिखावट है, ठीक वैसे ही हस्ताक्षर हो तो व्यक्ति हर काम को बहुत ही अच्छे ढंग से करता है। ये लोग हर काम में संतुलन बनाए रखते हैं। दूसरों के सामने बनावटी स्वभाव नहीं रखते हैं। जैसे ये वास्तव में होते हैं, ठीक वैसा ही खुद को प्रदर्शित करते हैं।
8. जो लोग अपने हस्ताक्षर को नीचे से ऊपर की ओर ले जाते हैं, वे आशावादी होते हैं। निराशा का भाव उनके स्वभाव में नहीं होता है। ऐसे लोग भगवान में आस्था रखने वाले होते हैं। इनका उद्देश्य जीवन में ऊपर की ओर बढ़ना होता है। इस प्रकार हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति अन्य लोगों का प्रतिनिधित्व करने की इच्छा रखते हैं।
9. जिन लोगों के हस्ताक्षर ऊपर से नीचे की ओर जाते हैं, वे नकारात्मक विचारों वाले हो सकते हैं। ऐस लोग किसी भी काम में असफलता की बात पहले सोचते हैं।
10. जिन लोगों के हस्ताक्षर एक जैसे लयबद्ध नहीं दिखाई देते हैं, वे मानसिक रूप से अस्थिर होते होते हैं। इन्हें मानसिक कार्यों में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। साथ ही, इनके विचारों में परिवर्तन होते रहते हैं। ये लोग किसी एक बात पर अडिग नहीं रह सकते हैं।
11. जिन लोगों के हस्ताक्षर सामान्य रूप से कटे हुए दिखाई देते हैं, वे नकारात्मक विचारों वाले होते हैं। इन्हें किसी भी कार्य में असफलता पहले नजर आती है। इसी वजह से नए काम करने में इन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
12. यदि कोई व्यक्ति हस्ताक्षर के अंत में लंबी लाइन खींचता है तो वह ऊर्जावान होता है। ऐसे लोग दूसरों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। किसी भी काम को पूरे मन से करते हैं और सफलता भी प्राप्त करते हैं।
13. जो लोग हस्ताक्षर करते समय अपना मिडिल नेम पहले लिखते हैं, वे अपनी पसंद-नापंसद को अधिक महत्व देते हैं। इसके बाद कार्यों को पूरा करने में लग जाते हैं।
14. जो लोग हस्ताक्षर का पहला अक्षर बड़ा लिखते हैं, वे अद्भुत प्रतिभा के धनी होते हैं। ऐसे लोग किसी भी कार्य को अपने अलग ही अंदाज से पूरा करते हैं। अपने कार्य में पारंगत होते हैं। पहला अक्षर बड़ा बनाने के बाद अन्य अक्षर छोटे-छोटे और सुंदर दिखाई देते हों तो व्यक्ति धीरे-धीरे किसी खास मुकाम पर पहुंच जाता है। ऐसे लोगों को जीवन में सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त Mantra theory for suffering peace

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त  Mantra theory for suffering peace संसार की समस्त वस्तुयें अनादि प्रकृति का ही रूप है,और वह...