Monday, November 4, 2019

बड़ी सोच रखने से मिलती है बड़ी कामयाबी Great success is achieved by thinking big


बड़ी सोच रखने से मिलती है बड़ी कामयाबी Great success is achieved by thinking big


प्राचीन काल में एक राजा अपने लाव-लश्कर के साथ जा रहे थे। राजा के साथ उनका मंत्री भी था। तभी कांटे वाली झाड़ियों की वजह से राजा  का कुर्ता फट गया।
राजा ने मंत्री से कहा कि किसी दर्जी को तुरंत बुलाया जाय, कारिन्दे दौड़ाए गए।
मंत्री ने जल्दी ही एक दर्जी को ढूंढ लिया और उसे बताया की राजा का कुर्ता फट गया है। तुम्हें उसे तुरंत सही करना है, जल्दी चलो।
दर्जी अपने साथ सुई-धागा लेकर राजा के पास पहुंच गया। दर्जी ने बहुत ही अच्छी तरह राजा का कुर्ता सिल दिया। राजा उसके काम से बहुत खुश हुआ, क्योंकि कुर्ते में फटा हुआ हिस्सा अब दिख नहीं रहा था।
प्रसन्न राजा ने दर्जी से कहा कि मांग लो जो तुम्हें चाहिए। दर्जी ने सोचा कि राजा से क्या मांगू। मेरा तो थोड़ा सा ही धागा लगा है। चलो ऐसा करता हूँ दो स्वर्ण मुद्राएं मांग लेता हूं, इससे ज्यादा तो इस छोटे से काम का पारिश्रमिक नहीं हो सकता है।
परन्तु तत्काल उस दर्जी ने फिर सोचा कि कहीं राजा ये ना समझ ले कि इतने से काम की मैंने ज्यादा मुद्राएं मांग ली हैं, राजा मुझे सजा दे देगा। उसने राजा से कहा कि महाराज छोटा सा काम था, इसका दाम कैसे ले सकता हूं। आप रहने दीजिए।
आपने सेवा का अवसर प्रदान किया मैं धन्य हो गया।
राजा ने  कहा कि नहीं, तुमने काम किया है तो तुम्हें तुम्हारी मेहनत का पारिश्रमिक तो मिलना ही चाहिए। तुम बिना डरे मांगो।
दर्जी ने कहा कि महाराज छोटा सा काम था,मैं क्या माँगूं आप जो उचित समझे वह मुझे दे दीजिए। राजा ने सोचा कि इस दर्जी ने तो मुझे ही परेशानी में डाल दिया,अब मैं इसे क्या दूँ?
उसने मंत्री से परामर्श किया।फिर कहा कि इस दर्जी को दो गांव  की जमींदारी दे दो। दर्जी ये सुनकर हैरान था। उसने सोचा मैं तो दो मुद्राएं मांगने की सोच रहा था, लेकिन राजा ने दो गांव दे दिए।
अर्थात् हमें अपनी सोच बड़ी रखनी चाहिए। हम कभी-कभी अनजाने में सोच छोटी कर लेते हैं, इस कारण हमें पूरा फल नहीं मिलता है। अगर दर्जी सिर्फ दो स्वर्ण मुद्राएं मांग लेता तो उसे राजा दो गांव नहीं देता।
ठीक इसी तरह ऊपरवाला भी हमे अपने अनुसार देना चाहता है।लेकिन माँगने के चक्कर में हम कमी कर लेते हैं।
जबकि उसके पास हमे देने के लिए कुछ भी कम नही है, बल्कि हमारी सोच से ज्यादा है।

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Sunday, November 3, 2019

कभी भी अपने ज्ञान पर घमंड न करें Never boast on your knowledge


कभी भी अपने ज्ञान पर घमंड न करें Never boast on your knowledge


ज्ञान का भी मद होता है, और ये बहुत ही खतरनाक होता है।और मजे की बात तो यह है कि कब ये मद या अभिमान हो जाये पता नहीं चलता है जानते हैं प्रसंग के माध्यम से.......

सुप्रसिद्ध महाकवि कालिदास के जीवन के कई प्रेरक प्रसंग प्रचलित हैं। इन प्रसंगों में छिपी बातों को जीवन में उतार लेने पर हम कई परेशानयों से बच सकते हैं। यहां जानिए एक ऐसा प्रसंग, जिसमें बताया गया है कि हमें अहंकार से बचना चाहिए...
एक दिन महाकवि कालिदास गांव-गांव में भ्रमण कर रहे थे। रास्ते में उन्हें प्यास लगी। जल्दी ही उन्हें एक कुआं दिखाई दिया। वहां एक महिला पानी भर रही थी। कालिदास ने महिला से कहा कि मुझे प्यास लगी है, कृपया मुझे थोड़ा सा पानी दे दीजिए। महिला ने कहा कि मैं आपको जानती नहीं हूं, पहले अपना परिचय दें। इसके बाद ही मैं पानी दे सकती हूं। कालिदास ने कहा कि मैं इस गांव में मेहमान हूं। महिला ने कहा कि आप मेहमान कैसे हो सकते हैं?
इस संसार में बस दो ही मेहमान हैं, एक धन और दूसरा यौवन।
महिला की ये बात सुनकर कालिदास आश्चर्य चकित रह गए, उन्हें ऐसे उत्तर की उम्मीद नहीं थी। उन्होंने फिर कहा कि मैं सहनशील हूं। महिला बोली कि आप सहनशील नहीं है, इस संसार में सिर्फ दो ही सहनशील हैं। एक ये धरती जो पापी और पुण्यात्माओं दोनों का बोझ उठाती है। दूसरे सहनशील पेड़ हैं, जो पत्थर मारने पर भी मीठे फल ही देते हैं।
कालिदास ने फिर कहा कि मैं हठी हूं। महिला बोली कि आप फिर झूठ बोल रहे हैं। संसार में हठी सिर्फ दो ही हैं। एक हमारे नाखून और दूसरे बाल। इन्हें बार-बार काटने पर भी फिर से बढ़ जाते हैं।
कालिदास ने हार मान ली और कहा कि मैं मूर्ख हूं। इस पर महिला ने कहा कि मूर्ख भी दो ही हैं। एक राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर राज करता है। दूसरे दरबारी जो राजा को खुश करने के लिए गलत बात पर भी झूठी प्रशंसा करते हैं। अब कालिदास महिला के चरणों में गिर पड़े और पानी के लिए याचना करने लगे।
तब महिला ने कहा कि उठो वत्स। कालिदास ने ऊपर देखा तो वहां देवी सरस्वती खड़ी थीं। देवी ने कहा कि शिक्षा से ज्ञान मिलता है, न कि घमंड। तूझे अपने ज्ञान का घमंड हो गया था। इसीलिए तेरा घमंड तोड़ने के लिए मुझे ये सब करना पड़ा। कालिदास समझ गए कि उन्होंने गलत किया है। देवी से क्षमा याचना की और कहा कि अब से वे कभी भी घमंड नहीं करेंगे। इसके बाद देवी वहां से अंतर्ध्यान हो गईं और कालिदास भी पानी पीकर आगे बढ़ गए।

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जाने कैसे जोखिम लेने के बाद ही कोई बड़ी सफलता मिलती है? Know how to get a big success only after taking risk?

जाने कैसे जोखिम लेने के बाद ही कोई बड़ी सफलता मिलती है?
Know how to get a big success only after taking risk?


जोखिम लेने के बाद ही बड़ी सफलता प्राप्त होती है, जाने इस प्रेरक प्रसंग के माध्यम से.....


एक राजा अपने पड़ोसी राज्य में  घूमने गया। पड़ोसी राजा ने खूब अच्छी तरह मेहमान राजा की मेजबानी की। कुछ दिन वहां रहने के बाद राजा अपने राज्य में लौटने लगा तो पड़ोसी राजा ने उसे दो सुंदर कबूतर उपहार में दिए।

राजा उन दोनों कबूतरों के लेकर अपने महल में आ गया। वहां एक सेवक को कबूतरों की देखभाल में नियुक्त कर दिया। सेवक सुबह-शाम कबूतरों के लिए दाना-पानी का इंतजाम कर देता। कुछ दिन बाद जब राजा उन कबूतरों का हाल जानने पहुंचा।

सेवक ने बताया कि एक कबूतर तो बहुत ऊंचाई तक उड़ता है, लेकिन दूसरा पेड़ की एक शाखा पर ही बैठा रहता है। ये जानकर राजा को बहुत दुख हुआ कि दूसरा कबूतर उड़ क्यों नहीं रहा है।

राजा ने तुरंत अपने मंत्रियों को बुलवाया, लेकिन कोई भी ये नहीं समझ पा रहा था कि दूसरे कबूतर को क्या हुआ है।

तभी किसी ने राजा को सलाह दी कि पक्षियों के जानकार को बुलवाना चाहिए। मंत्रियों ने तुरंत ही एक गरीब को किसान को बुलवा लिया।

किसान पक्षियों का जानकार था, उसने कबूतर के आसपास का क्षेत्र देखा और जिस पेड़ की शाखा पर वह बैठा रहता था, वह शाखा ही काट दी।

इसके बाद दूसरा कबूतर भी आसमान में बहुत ऊंचाई तक उड़ने लगा। किसान ने राजा को बताया कि ये कबूतर इस शाखा के मोह में फंसा हुआ था, उड़ने की जोखिम लेने से डरता था, जब ये शाखा ही काट दी गई तो उसके पास उड़ने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। इस कारण वह अब ऊंचाई तक उड़ने लगा है। ये देखकर राजा प्रसन्न हो गया और उसने किसान स्वर्ण मुद्राओं से सम्मानित किया।

अर्थात् जो लोग जोखिम लेने से डरते हैं, अपने आराम वाले काम को छोड़ना नहीं चाहते, वे ऊंचाई तक उड़ नहीं सकते यानी कोई सफलता नहीं हासिल कर पाते हैं। अगर आप कुछ बड़ा करना चाहते हैं  जीवन मे बड़ा बदलाव लाना चाहते हैं तो जोखिम लेना पड़ेगा।

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