Thursday, September 13, 2018

श्री गणेश महोत्सव Shri Ganesh Mahotsav

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक गणेश उत्सव मनाया जाता है। विघ्नहर्ता  भगवान गणेश की  पूजा करने से मनुष्य को सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है साथ ही विघ्न, कष्ट और मुसीबतों से छुटकारा मिलता है।

भगवान गणेश के जन्म दिन के उत्सव को गणेश चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन, भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। यह मान्यता है कि भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष के दौरान भगवान गणेश का जन्म हुआ था।

गणेशोत्सव अर्थात गणेश चतुर्थी का उत्सव, 10 दिन के बाद, अनन्त चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है और यह दिन गणेश विसर्जन के नाम से जाना जाता है। अनन्त चतुर्दशी के दिन श्रद्धालु-जन बड़े ही धूम-धाम के साथ सड़क पर जुलूस निकालते हुए भगवान गणेश की प्रतिमा का सरोवर, झील, नदी इत्यादि में विसर्जन करते हैं।

गणपति स्थापना और  पूजा :-

 भगवान गणेश का जन्म मध्याह्न काल के दौरान हुआ था इसीलिए मध्याह्न के समय को गणेश पूजा के लिये ज्यादा उपयुक्त माना जाता है।

हिन्दु समय गणना के आधार पर, सूर्योदय और सूर्यास्त के मध्य के समय को पाँच बराबर भागों में विभाजित किया जाता है। इन पाँच भागों को क्रमशः प्रातःकाल, सङ्गव, मध्याह्न, अपराह्न और सायंकाल के नाम से जाना जाता है।
गणेश चतुर्थी के दिन, गणेश स्थापना और गणेश पूजा, मध्याह्न के दौरान की जानी चाहिये। वैदिक ज्योतिष के अनुसार मध्याह्न के समय को गणेश पूजा के लिये सबसे उपयुक्त समय माना जाता है।

मध्याह्न मुहूर्त में, भक्त-लोग पूरे विधि-विधान से गणेश पूजा करते हैं जिसे षोडशोपचार गणपति पूजा के नाम से जाना जाता है।

गणेश चतुर्थी पर  चन्द्र-दर्शन निषेध:-

गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्र-दर्शन वर्ज्य होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चन्द्र के दर्शन करने से मिथ्या दोष अथवा मिथ्या कलंक लगता है जिसकी वजह से दर्शनार्थी को चोरी का झूठा आरोप सहना पड़ता है।

पौराणिक गाथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण पर स्यमन्तक नाम की कीमती मणि चोरी करने का झूठा आरोप लगा था। झूठे आरोप में लिप्त भगवान कृष्ण की स्थिति देख के, नारद ऋषि ने उन्हें बताया कि भगवान कृष्ण ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चन्द्रमा को देखा था जिसकी वजह से उन्हें मिथ्या दोष का श्राप लगा है।

नारद ऋषि ने भगवान कृष्ण को आगे बतलाते हुए कहा कि भगवान गणेश ने चन्द्र देव को श्राप दिया था कि जो व्यक्ति भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दौरान चन्द्र के दर्शन करेगा वह मिथ्या दोष से अभिशापित हो जायेगा और समाज में चोरी के झूठे आरोप से कलंकित हो जायेगा। नारद ऋषि के परामर्श पर भगवान कृष्ण ने मिथ्या दोष से मुक्ति के लिये गणेश चतुर्थी के व्रत को किया और मिथ्या दोष से मुक्त हो गये।

मिथ्या दोष निवारण मन्त्र

चतुर्थी तिथि के प्रारम्भ और अन्त समय के आधार पर चन्द्र-दर्शन लगातार दो दिनों के लिये वर्जित हो सकता है। धर्मसिन्धु के नियमों के अनुसार सम्पूर्ण चतुर्थी तिथि के दौरान चन्द्र दर्शन निषेध होता है और इसी नियम के अनुसार, चतुर्थी तिथि के चन्द्रास्त के पूर्व समाप्त होने के बाद भी, चतुर्थी तिथि में उदय हुए चन्द्रमा के दर्शन चन्द्रास्त तक वर्ज्य होते हैं।

अगर भूल से गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्रमा के दर्शन हो जायें तो मिथ्या दोष से बचाव के लिये निम्नलिखित मन्त्र का जाप करना चाहिये -

मन्त्र-
 "सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥"

गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी और गणेश चौथ के नाम से भी जाना जाता है।

भगवान श्री गणेश को घर में भी  शुभ मुहूर्त में ही लाना चाहिए।
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Saturday, September 8, 2018

वैवाहिक जीवन को प्रभावित करने वाले कुछ योग vaivaahik jeevan ko prabhaavit karane vaale kuchh yog

हमारी जन्मपत्रिका में कुछ ग्रहों की युति या सम्बन्ध जो निश्चित रूप से वैवाहिक जीवन को प्रभावित करते हैं।

Combination of some planets or relationships in our horoscope which surely affect marital life.

1. चन्द्र +राहू युति=  पति- पत्नी की मानसिक स्थिति में असंतुलन होता है। 
2. मंगल+राहू की युति = अड़ियल स्वभाव के कारण एक दूसरे की भावनाओं को ठेस पहुँचाना।

3. शुक्र +राहू की युति = जातक के पत्नी के अलावा अन्य स्त्री से सम्बन्ध के कारण अथवा माता-पिता की इच्छा के बिना विवाह कारण तलाक।

4. सूर्य+राहू = आर्थिक स्थिति को लेकर मतभेद , तथा तलाक की नौबत।

5. शनि +राहू = एक दूसरे से अलग रहने के कारण , अशांति तथा तलाक।

6. बुध+राहू = वैचारिक असमानता के कारण अशांति तथा तलाक।

7. मंगल+शुक्र+राहू = घरेलू अशांति, दुःख तथा तलाक।

8. शुक्र+चन्द्र +राहू = स्त्रियों से हानि, घरेलू अशांति। पराई औरतों से सम्बन्ध अंत में तलाक।

विशेष- यदि ये  ग्रह योग 2-7 -11 वे भाव में हो और इन पर किसी क्रूर ग्रहों की द्रष्टि हो तो ये ज्यादा प्रभावशाली होते है बाकी इसके आलावा भी अन्य कई  योग है जिससे वैवाहिक जीवन में तनाव, परेशानी या आपसी मतभेद हो सकता है ।

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Monday, September 3, 2018

जाने भगवान क्यों नहीं सुन रहा इतनी पूजा /प्रार्थना करने पर भी? Why is not God listening to so much worship / prayer?

भगवान क्यों नहीं सुन रहा इतनी पूजा /प्रार्थना करने पर भी ?

bhagavaan kyon nahin sun raha itanee pooja /praarthana karane par bhee ?

संसार में बहुत से लोग यहाँ तक कहते हैं की वह बिना स्वार्थ पूजा -पाठ कर रहे ,इतने सालों से मंदिर /गुरुद्वारा जा रहे ,कभी कुछ नहीं माँगा ,भले उनके जीवन में अनेक कष्ट थे|पर यह सच नहीं है ,बिना  स्वार्थ कोई कुछ नहीं करता ।
मंदिर ,भगवान् को मानने /पूजने का बड़ा कारण ज्यादातर लोगों में या तो भय होता है या कोई न कोई स्वार्थ। कुछ लोग स्पष्ट स्वार्थ के तहत पूजा पाठ करते हैं तो कुछ लोग आंतरिक स्वार्थ वश हाथ जोड़ने वाला तक यह कामना तो जरुर रखता है की उसका भला हो ,भगवान् कल्याण करे ,रक्षा करे ,सफलता दे।
जब जीवन में संघर्षों -कठिनाइयों से वास्ता पड़ता है तब यह स्वार्थ खुलकर सामने आ जाता है और व्यक्ति अपनी कठिनाइयों का हल भगवान् की कृपा में खोजने लगता है ,पर अधिकतर की बात भगवान् तक नहीं पहुचती ,भगवान् उनकी नहीं सुनता ,उनके कष्ट नहीं कम करता ।
लोग सर पटकते रहते हैं मंदिरों /तस्वीरों के आगे पर उनके जीवन की कठिनाइयाँ बढती ही जाती हैं।
कुछ समय बाद हम अक्सर लोगों को कहते सुनते हैं की इतनी पूजा -आराधना करते हैं किन्तु कोई लाभ नजर नहीं आता ,पता नहीं भगवान् है भी की नहीं ,या वह हमारी सुनता क्यों नहीं ।हम तो रोज पूरे श्रद्धा से इतनी देर तक पूजा करते हैं ,इस मंदिर जाते हैं उस मंदिर जाते हैं ,सब जगह मत्था टेक रहे ।पर हमारे कष्ट कम होते ही नहीं ।
पाप करने वाले ,पूजा न करने वाले सुखी हैं और हम इतनी सदाचारिता से रहते हैं ,पूजा-पाठ करते हैं ,अपने घर में भगवान् को बिठाये हैं पर हम कष्ट ही कष्ट उठा रहे हैं |
हम इसका तार्किक और आतंरिक विश्लेषण करते हैं तो पाते हैं की यहाँ भगवान् की कोई सीधी भूमिका है ही नहीं ।उस तक तो आपकी बात पहुँच ही नहीं रही ।उस तक आपकी बात पहुंचाने का माध्यम ही बीच से टूटा हुआ है या कोई और आपकी पूजा ले ले रहा ।
आपके पिछले कर्म ,आपके उपर की या घर की नकारात्मकता कष्ट दे रही ,न भगवान् कष्ट दे रहा न भाग्य कष्ट दे रहा ,कारण तो कुछ और ही है ।
जब लोगों को बताया जाता है की आप पर या घर पर नकारात्मक उर्जा का प्रभाव है जिसके कारण कष्ट आ रहे हैं तो कुछ लोग यह भी कहते मिलते हैं की हम तो शिव ,हनुमान ,कृष्ण ,दुर्गा आदि की पूजा करते हैं रोज नियमित ,फिर हमें कष्ट क्यों है ,नकारात्मकता कैसे है।
क्या भगवान् इसे नहीं हटा सकते ,या कोई तांत्रिक अभिचार कर रहा है तो क्यों ये देवी देवता रक्षा नहीं कर रहे ।
हमारे कष्ट क्या उन्हें दिखाई नहीं देते,क्यों वे हमारी नहीं सुन रहे,कुछ अंध श्रद्धालु इसे पूर्व जन्म का दोष देकर अपने को संतुष्ट रखने का प्रयत्न करते हैं की यह हमारे पूर्व जन्म के दोष हैं जिससे कोई पूजा पाठ नहीं लग रहा ।
जब हम इसका विश्लेषण करते हैं तो इसके कई कारण मिलते हैं ।
आजकल सबसे बड़ी समस्या हर घर में कुल देवी/देवता की आ रही है ,बहुतों को इनका पता नहीं है,कुछ को पता है तो पूजा पद्धति भूल चुके हैं ।यहाँ ध्यान देने योग्य है की कुलदेवता वह सेतु होते हैं जो आपकी पूजा सम्बंधित देवता तक पहुचाते हैं ,आपके कुल की रक्षा करते हैं ।वायव्य बाधाओं को रोकते हैं |इन्हें ठीक से पूजा न मिलने पर आपकी पूजा भी ठीक से आपके इष्ट तक नहीं पहुचती है ।घर में और आप पर नकारात्मक उर्जा बेरोक टोक आ सकती हैं या प्रभावित कर सकती हैं ।कभी-कभी ऐसा भी होता है की कुलदेवता/देवी की ठीक से पूजा न होने पर कोई वायव्य बाधा जैसे भूत-प्रेत-ब्रह्म-पिशाच-जिन्न आदि आपको या आपके घर को प्रभावित करने लगता है ।
कुलदेवता के अभाव में वह आपके घर की अथवा आपकी पूजा लेने लगता है ,वह आपकी पूजा आपके इष्ट तक नहीं पहुचने देता अपितु आपकी पूजा से अपनी शक्ति बढाने लगता है और आपके घर में स्थायी डेरा जमा लेता है ।ऐसे में आप चार घंटे रोज पूजा करो मिलेगा कुछ नहीं,होगा वही जो वह शक्ति चाहेगा,कभी कभी आपने देखा होगा लोगों पर आवेश आते हैं,|यह अधिकतर ऐसी ही शक्तियों का प्रभाव होते हैं,अधिकतर मामलों में यह शक्तियां अपने आपको देवता या देवी के रूप में प्रस्तुत करते हैं,लोग भ्रम में पड़ जाते हैं की देवी या देवता का आवेश आ रहा है और उन्हें पूजा देने लगते हैं ।
चूंकि यह शक्तियां भूत काल जानती हैं अतः इनके द्वारा बताई गयी घटनाएं सही भी होती हैं ,लोगों का विश्वास बन जाता है की सचमुच देवी/देवता ही हैं ,पर सच्चाई बिलकुल उलट होती है ।यह अधिकतर आत्मिक शक्तियां होती हैं जो किसी सिद्ध पीठ पर पहुचते ही आवेश देने लगती हैं |
आपकी पूजा का पूरा लाभ आपको न मिलने का दूसरा कारण होता है ,आपके द्वारा सही पद्धति से पूजा न किया जाना अथवा सही ढंग से मंत्र आदि का उच्चारण न होना ।
आप ध्यान से देखें तो पायेंगे की हर देवता के मंत्र में अलग विशिष्टता होती है ,सबकी पूजा पद्धति भिन्न होती है ,सबका रूप अलग होता है।ऐसा क्यों ? इसलिए की हर देवता की ऊर्जा प्रकृति भिन्न होती है जो उसके गुणों और कार्यों के अनुरूप होता है,इसलिए उसकी कल्पना भी अलग होती है,इसीलिए सबकी पूजा भी एक जैसे नहीं होनी चाहिए।
सबकी अलग पूजा पद्धति उनके विशिष्ट गुण को उभारने और विशिष्ट ऊर्जा प्राप्त करने के लिए होती है।
आप पूजा दुर्गा -काली की करें और मन में रोने धोने अथवा भावुकता का भाव रखें तो दुर्गा -काली की शक्ति आपको ठीक से नहीं मिलेगी।बहुत लोगों को मेरी बात अनुचित लगेगी किन्तु यह सच्चाई है ।
उग्र शक्ति की ऊर्जा पाने के लिए आपके भाव भी उग्र होने चाहिए ,आपकी पद्धति और सामग्री भी वैसी ही होनी चाहिए।कोमल भाव से उग्र शक्ति प्राप्त नहीं होगी,यही वह कारण है की अघोरी ,तांत्रिक उग्र शक्ति की साधना करते हैं और भाव उग्र रखते हैं जिससे उन्हें पूर्ण शक्ति मिलती है ।
कहने को तो लोग कहते मिलेंगे की वह तो माँ है जिस भाव में जिस रूप में भी पूजो वह मिलेगी ।सत्य है की वह माँ है ,पर उस माँ की प्रकृति और स्वरुप भिन्न भी होती है जो उसके कार्यों और गुणों के कारण होती है ।
सरस्वती की पूजा क्रोध में करेंगे तो या उग्र भाव से करेंगे तो वह कैसे प्रसन्न होगी ,कैसे वह आपके साथ तालमेल बैठाएगी,उसे पाने के लिए तो कोमल भाव ही चाहिए।
भैरव की साधना आप कोमल भाव से करें ,हनुमान की साधना आप स्त्री रत रहते हुए करें तो यह कैसे प्रसन्न होंगे। इनके लिए तो ब्रह्मचर्य और उग्र भाव ही चाहिए ।ऐसा ही पूजा पद्धतियों के साथ है,एक समान तरीके अथवा पद्धतियाँ सबके अनुकूल नहीं होती।वस्तुएं और पद्धति विपरीत ऊर्जा उत्पन्न कर रही हैं और आप विपरीत शक्ति को बुला रहे हैं तो वह नहीं आएगी ।अगर आ भी गयी तो आपसे तालमेल नहीं बैठ पायेगा
कुछ लोग तीन घंटे चार घंटे भी पूजा करते हैं पर कष्ट ही पाते हैं ।यह पूर्व जन्म के दोष नहीं हैं ।आज की गलतियाँ हैं ।अगर आप साधक नहीं हैं और गुरु से मार्गदर्शन नहीं मिल रहा ,ठीक से तरीके नहीं पता ,मंत्र का शुद्ध उच्चारण नहीं मालूम ,स्तोत्र आदि की प्रिंटिंग में अशुद्धि है तो आप जितनी अधिक पूजा करेंगे गलती उतनी ही अधिक होगी ।ध्यान देने योग्य है की शक्तियां गलतियों को क्षमा नहीं करती ,भले आप भ्रम पाले रहें की यह तो माता-पिता हैं कभी अहित नहीं कर सकते किन्तु सच्चाई बिलकुल उलट है आपकी गलती उर्जा की प्रकृति को विकृत कर देती है जिससे वही ऊर्जा आपकी गलती पर दस गुना अधिक नुक्सान दायक हो जाती है ।सोचिये ठीक से पूजा किया तो मिला एक गुना और थोड़ी सी गलती हो गई तो नुकसान हो गया दस गुना,अब नुक्सान में कौन होगा,आपको मंत्र ठीक से पता नहीं है ,गुरु है नहीं ,पद्धति पता है नहीं ,सामग्री अशुद्ध है ,भाव गलत हैं और पूजा किया तीन घंटे तो नुक्सान भी तो उठाएंगे ।दोष देवता को देते हैं ,गलती तो आपकी है।
यह भाग्य का नहीं आपके पूजा की गलती का दोष है ।यही वह कारण है की न पूजा करने वाला अथवा कम करने वाला अधिक लाभ में भी कभी कभी हो सकता है और अधिक करने वाला कष्ट में भी,पूजा कम कीजिये पर सही और शुद्ध कीजिये अधिक फायदे में रहेंगे,मंत्र शुद्ध हो ,उच्चारण सही हो ,सामग्री शुद्ध हो और उस देवता के अनुकूल हो ,पद्धति सही हो तो थोड़ी सी पूजा अधिक लाभ दे देती है ।
आप हमेश यह ध्यान दीजिये की शक्तियों की अपनी कोई दृष्टि नहीं होती ।आप कहते हैं ना की वह देखता नहीं क्या की हम कितना कष्ट उठाते हैं ।सचमुच वह नहीं देखता |क्योकि उसे आँखें तो होती ही नहीं।वह तो वही देखता है जो आप उसे दिखाएँगे।आपमें अगर शक्ति नहीं है की आप उसे कुछ दिखा सकें तो वह कुछ नहीं देखता ।आपमें शक्ति हो तो आपका आशीर्वाद अथवा श्राप वह पूरा करने को बाध्य होता है ।आपमें शक्ति नहीं है ,वह आपसे जुड़ा नहीं है तो वह कुछ नहीं देखता।तांत्रिक या शत्रु आपका नुक्सान कर रहा है ,आपके ही देवता को आपके विरुद्ध लगा रहा है आप सोचते हैं की हम भी तो पूजा करते हैं फिर हमारा ही नुकसान कैसे हो रहा है ।यहाँ शक्ति संतुलन होता है ।आपकी पूजा की शक्ति कम है आप दिखा नहीं पाते ,अपने देवता को उनके विरुद्ध खड़ा नहीं कर पाते।इसलिए आप कष्ट पाते हैं ।यह सब ऊर्जा का खेल है ।देवी/देवता सब उर्जायें हैं ।जो जितनी शक्ति से इन्हें जो दिखाता है उनसे वैसा करा लेता है ।इन्हें आँखें तो आपने काल्पनिक बनाई हैं ,यह तो केवल आपकी दृष्टि से ही देख सकती हैं ,इसका कोई शरीर ही नहीं होता ।जैसी आपकी कल्पना वैसा इनका रूप ।
आज के समय में अधिकतर लोगों के पास गुरु नहीं है ।कुछ लोगों के पास ऐसे भी गुरु हैं जो अंध श्रद्धा में बना लिए गए या प्रचार देख कर उन्हें गुरु बना लिया पर उनसे कोई मार्गदर्शन नहीं मिल पाता ,क्योकि गुरु का मात्र उद्देश्य व्यवसाय है।उनके पास मार्गदर्शन के लिए समय ही नहीं ,अथवा उन्हें खुद जानकारी ही नहीं जिससे वह खुद को व्यस्त दिखा रहे हैं ।गुरु के न होने पर अथवा अयोग्य गुरु के होने पर साधक अथवा शिष्य के लिए मार्ग और कठिन हो जाता है ।वह साधना अथवा पूजा देर तक कर सकता है पर उसे अपेक्षित लाभ नहीं मिलता ।गलतियाँ होने पर नुकसान भी होता है ।गुरु का सुरक्षा चक्र उसके पास नहीं होता कि वह नुकसान को रोक सके या गुरु है भी तो गुरु में ही शक्ति नहीं कि कुछ  कर सके। गुरु मंत्र ,गुरु का मार्गदर्शन न होने से मन्त्रों का जागरण नहीं हो पाता अथवा उनमे शक्ति नहीं आ पाती ।सही पद्धति ,सही उच्चारण का मार्गदर्शन नहीं मिल पाता ।ऐसे में गलतियों और कष्ट की सम्भावना बढ़ जाती है ।
कैसे मन एकाग्र किया जाए?किन मुद्राओं ,किन वस्तुओं ,किन आसन का उपयोग हो बताने वाला कोई नहीं होता।परिणाम स्वरुप लम्बी और क्लिष्ट साधनों की तो बात ही क्या सामान्य पूजा भी लाभ नहीं दे पाती ,कभी कभी तो कष्ट बढ़ भी जाते हैं।इसलिए गुरु और वह भी योग्य जरुर चुनना चाहिए ।वह भी ऐसा जो मार्गदर्शन दे सके।ऐसा नहीं की उसके यहाँ भीड़ देखी और चुन लिया ।उसके पास समय ही नहीं है ,अथवा वह प्रायोजित भीड़ जुटाने वाला है अथवा उसे व्यवसाय में रूचि है अथवा उसे खुद जानकारी नहीं है अथवा वह खुद साधक नहीं है और चोला चढ़ाया हुआ है ।ध्यान दीजिये गुरु आडम्बर नहीं करता ,भेष नहीं बनाता ,भीड़ से दूर रहता है ।यह उपरोक्त कुछ कारण हैं जो लोगों की पूजा के अपेक्षित परिणाम में बाधक होते हैं।यद्यपि और भी कारण होते हैं अधिकतर कष्ट के और पूर्ण परिणाम न मिलने के ।

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Sunday, September 2, 2018

चरणामृत का महत्व charanaamrit ka mahatva

जब हम मंदिर जाते है तो पंडित जी हमें भगवान का चरणामृत देते है।

चरणामृतका क्या महत्व है?इसे कैसे ग्रहण करना चाहिए?

What is the importance of charanamrit? How should it be accepted?

शास्त्रों में कहा गया है


अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।

अर्थात भगवान विष्णु के चरण का अमृत रूपी जल समस्त पाप -व्याधियों का शमन करने वाला है तथा औषधि के समान है।

● जो चरणामृत पीता है उसका पुनः जन्म नहीं होता" जल तब तक जल ही रहता है जब तक भगवान के चरणों से नहीं लगता, जैसे ही भगवान के चरणों से लगा तो अमृत रूप हो गया और चरणामृत बन जाता है।

● जब भगवान का वामन अवतार हुआ, और वे राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गए तब उन्होंने तीन पग में तीन लोक नाप लिए जब उन्होंने पहले पग में नीचे के लोक नाप लिए और दूसरे में ऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे ही ब्रह्म लोक में उनका चरण गया तो ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल में से जल लेकर भगवान के चरण धोए और फिर चरणामृत को वापस अपने कमंडल में रख लिया।

● वह चरणामृत गंगा की धारा बन गई, जो आज भी सारी दुनिया के पापों को धोती है, ये  शक्ति है भगवान के चरणों की, जिस पर ब्रह्मा जी ने साधारण जल चढाया था पर चरणों का स्पर्श होते ही बन गई गंगा जी ।

● इसीलिए इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है तथा मस्तक से लगाने के बाद इसका सेवन किया जाता है।

● चरणामृत का सेवन अमृत के समान माना गया है।

● भगवान श्री राम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो गया बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया।

● चरणामृत का महत्व चिकित्सकीय भी है। चरणामृत का जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाता है।

● आयुर्वेद के मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है जो उसमें रखे जल में आ जाती है।

● उस जल का सेवन करने से शरीर में रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है तथा रोग नहीं होते।

●आयुर्वेद के अनुसार इसमें तुलसी के पत्ते डालेेजाते हैं  जिससे इस जल की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है।

● तुलसी के पत्ते पर जल इतने परिमाण में होना चाहिए कि सरसों का दाना उसमें डूब जाए ।

● ऐसा माना जाता है कि तुलसी चरणामृत लेने से मेधा, बुद्धि,स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।

● इसीलिए यह मान्यता है कि भगवान का चरणामृत औषधी के समान है।

●यदि उसमें तुलसी पत्र भी मिला दिया जाए तो उसके औषधीय गुणों में और भी वृद्धि हो जाती है।

● कहते हैं सीधे हाथ में तुलसी और चरणामृत ग्रहण करने से हर शुभ का या अच्छे काम का जल्द परिणाम मिलता है।

इसीलिए चरणामृत हमेशा सीधे हाथ से लेना चाहिये।

● चरणामृत लेने के बाद अधिकतर लोगों की आदत होती है कि वे अपना हाथ सिर पर फेरते हैं।

 ●चरणामृत लेने के बाद सिर पर हाथ रखना सही है या नहीं यह बहुत कम लोग जानते हैं।

 ● शास्त्रों के अनुसार चरणामृत लेकर सिर पर हाथ रखना अच्छा नहीं माना जाता है।

● इससे विचारों में सकारात्मकता नहीं बल्कि नकारात्मकता बढ़ती है।

● इसीलिए चरणामृत लेकर कभी भी सिर पर हाथ नहीं फेरना चाहिए।

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एकादशी ekadashi

एकादशी दो प्रकार की होती है।
(1)सम्पूर्णा (2) विद्धा
सम्पूर्णा:-जिस तिथि में केवल एकादशी तिथि होती है अन्य किसी तिथि का उसमे मिश्रण नही होता उसे सम्पूर्णा एकादशी कहते है।

विद्धा एकादशी पुनः दो प्रकार की होती है
(1) पूर्वविद्धा (2) परविद्धा
पूर्वविद्धा:- दशमी मिश्रित एकादशी को पूर्वविद्धा एकादशी कहते हैं।यदि एकादशी के दिन अरुणोदय काल (सूरज निकलने से लेकर लगभग  1घंटा 30 मिनट का समय) में यदि दशमी का नाम मात्र अंश भी रह गया तो ऐसी एकादशी पूर्वविद्धा दोष से दोषयुक्त होने के कारण वर्जनीय है यह एकादशी दैत्यों का बल बढ़ाने वाली है।पुण्यों का नाश करने वाली है।

पद्मपुराण में वर्णित है।
" वासरं दशमीविधं दैत्यानां पुष्टिवर्धनम।
मदीयं नास्ति सन्देह: सत्यं सत्यं पितामहः।।
" दशमी मिश्रित एकादशी दैत्यों के बल बढ़ाने वाली है इसमें कोई भी संदेह नही है।"
परविद्धा:-* द्वादशी मिश्रित एकादशी को परविद्धा एकादशी कहते हैं!
" द्वादशी मिश्रिता ग्राह्य सर्वत्र एकादशी तिथि:
"द्वादशी मिश्रित एकादशी सर्वदा ही ग्रहण करने योग्य है।"
इसलिए भक्तों को परविद्धा एकादशी ही रखनी चाहिए।ऐसी एकादशी का पालन करने से भक्ति में वृद्धि होती है।दशमी मिश्रित एकादशी से तो पुण्य क्षीण होते हैं।
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क्या देवता भोग ग्रहण करते है ? kya devata bhog grahan karate hai ?

क्या सच में देवतागण भोग ग्रहण करते हैं ?
kya sach mein devataagan bhog grahan karate hai ?
हां , ये सच है ..शास्त्र में इसका प्रमाण भी है ..
गीता में भगवान् कहते है ...'' जो भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है , उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेम पूर्वक अर्पण किया हुआ , वह पत्र पुष्प आदि मैं ग्रहण करता हूँ ...गीता ९/२६

अब देवता भोग ग्रहण कैसे करते है , ये समझना जरुरी है।
ab devata bhog grahan kaise karate hai , ye samajhana jaruree hai

हम जो भी भोजन ग्रहण करते है , वे चीजे पञ्च तत्वों से बनी हुई होती है ....क्योकि हमारा शरीर भी पञ्चतत्वों से बना होता है ..इसलिए अन्न, जल, वायु,प्रकाश और आकाश ..तत्व की हमें जरुरत होती है ,
जो हम अन्न और जल आदि के द्वारा प्राप्त करते है ...

देवता का शरीर पांच तत्वों से नहीं बना होता , उनमे पृथ्वी और जल तत्व नहीं होता ...मध्यम स्तर के देवताओ का शरीर तीन तत्वों से तथा उत्तम स्तर के देवता का शरीर दो तत्व --तेज और आकाश से बना हुआ होता है ...इसलिए देव शरीर वायुमय और तेजोमय होते है ...

यह देवता वायु के रूप में गंध, तेज के रूप में प्रकाश को ग्रहण और आकाश के रूप में शब्द को ग्रहण करते है ...

यानी देवता गंध, प्रकाश और शब्द के द्वारा भोग ग्रहण करते है ..जिसका विधान पूजा पध्दति में होता है ...जैसे जो हम अन्न का भोग लगाते है , देवता उस अन्न की सुगंध को ग्रहण करते है ,,,उसी से तृप्ति हो जाती है ..जो पुष्प और धुप लगाते है ,उसकी सुगंध को भी देवता भोग के रूप में ग्रहण करते है ... जो हम दीपक जलाते है , उससे देवता प्रकाश तत्व
को ग्रहण करते है ,,,आरती का विधान भी उसी के लिए है ..

जो हम मन्त्र पाठ करते है , या जो शंख बजाते है या घंटी घड़ियाल बजाते है , उसे देवता गण ''आकाश '' तत्व के रूप में ग्रहण करते है ...

यानी पूजा में हम जो भी विधान करते है , उससे देवता वायु,तेज और आकाश तत्व के रूप में '' भोग '' ग्रहण करते है ......

जिस प्रकृति का देवता हो , उस प्रकृति का भोग लगाने का विधान है...
jis prakrti ka devata ho , us prakrti ka bhog lagaane ka vidhaan hai...

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Saturday, September 1, 2018

अटल परिचय Atal Prichay

Hindu Than Man Hindu Life Rug Rag Hindu Introduction
 हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय

मै शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार क्षार
डमरू की वह प्रलयध्वनि हूं जिसमे नचता भीषण संहार
रणचंडी की अतृप्त प्यास मै दुर्गा का उन्मत्त हास
मै यम की प्रलयंकर पुकार जलते मरघट का धुँवाधार
फिर अंतरतम की ज्वाला से जगती मे आग लगा दूं मै
यदि धधक उठे जल थल अंबर जड चेतन तो कैसा विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै आज पुरुष निर्भयता का वरदान लिये आया भूपर
पय पीकर सब मरते आए मै अमर हुवा लो विष पीकर
अधरोंकी प्यास बुझाई है मैने पीकर वह आग प्रखर
हो जाती दुनिया भस्मसात जिसको पल भर मे ही छूकर
भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन
मै नर नारायण नीलकण्ठ बन गया न इसमे कुछ संशय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै अखिल विश्व का गुरु महान देता विद्या का अमर दान
मैने दिखलाया मुक्तिमार्ग मैने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान
मेरे वेदों का ज्ञान अमर मेरे वेदों की ज्योति प्रखर
मानव के मन का अंधकार क्या कभी सामने सकठका सेहर
मेरा स्वर्णभ मे गेहर गेहेर सागर के जल मे चेहेर चेहेर
इस कोने से उस कोने तक कर सकता जगती सौरभ मै
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै तेजःपुन्ज तम लीन जगत मे फैलाया मैने प्रकाश
जगती का रच करके विनाश कब चाहा है निज का विकास
शरणागत की रक्षा की है मैने अपना जीवन देकर
विश्वास नही यदि आता तो साक्षी है इतिहास अमर
यदि आज देहलि के खण्डहर सदियोंकी निद्रा से जगकर
गुंजार उठे उनके स्वर से हिन्दु की जय तो क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

दुनिया के वीराने पथ पर जब जब नर ने खाई ठोकर
दो आँसू शेष बचा पाया जब जब मानव सब कुछ खोकर
मै आया तभि द्रवित होकर मै आया ज्ञान दीप लेकर
भूला भटका मानव पथ पर चल निकला सोते से जगकर
पथ के आवर्तोंसे थककर जो बैठ गया आधे पथ पर
उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढनिश्चय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मैने छाती का लहु पिला पाले विदेश के सुजित लाल
मुझको मानव मे भेद नही मेरा अन्तःस्थल वर विशाल
जग से ठुकराए लोगोंको लो मेरे घर का खुला द्वार
अपना सब कुछ हूं लुटा चुका पर अक्षय है धनागार
मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयोंका वह राज मुकुट
यदि इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरिट तो क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै वीरपुत्र मेरी जननी के जगती मे जौहर अपार
अकबर के पुत्रोंसे पूछो क्या याद उन्हे मीना बझार
क्या याद उन्हे चित्तोड दुर्ग मे जलनेवाली आग प्रखर
जब हाय सहस्त्रो माताए तिल तिल कर जल कर हो गई अमर
वह बुझनेवाली आग नही रग रग मे उसे समाए हूं
यदि कभि अचानक फूट पडे विप्लव लेकर तो क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

होकर स्वतन्त्र मैने कब चाहा है कर लूं सब को गुलाम
मैने तो सदा सिखाया है करना अपने मन को गुलाम
गोपाल राम के नामोंपर कब मैने अत्याचार किया
कब दुनिया को हिन्दु करने घर घर मे नरसंहार किया
कोई बतलाए काबुल मे जाकर कितनी मस्जिद तोडी
भूभाग नही शत शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै एक बिन्दु परिपूर्ण सिन्धु है यह मेरा हिन्दु समाज
मेरा इसका संबन्ध अमर मै व्यक्ति और यह है समाज
इससे मैने पाया तन मन इससे मैने पाया जीवन
मेरा तो बस कर्तव्य यही कर दू सब कुछ इसके अर्पण
मै तो समाज की थाति हूं मै तो समाज का हूं सेवक
मै तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता बलिदान अभय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

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