Thursday, April 28, 2016

आपकी राशि हेतु रत्न और रुद्राक्ष Gems and Rudraksh for your amount

राशि      स्वामी         रुद्राक्ष       रत्न
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मेष        मंगल        3मुखी       मूंगा
वृष         शुक्र         6मुखी      हीरा
मिथुन      बुध         4मुखी      पन्ना
कर्क      चन्द्रमा       2मुखी      मोती
सिंह        सूर्य       12मुखी माणिक्य
कन्या      बुध        4मुखी       पन्ना
तुला       शुक्र        6मुखी       हीरा
वृश्चिक    मंगल      3मुखी         मूंगा
धनु         गुरु        5मुखी   पुखराज
मकर      शनि       7मुखी      नीलम
कुम्भ      शनि       7मुखी      नीलम
मीन        गुरु        5मुखी   पुखराज
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Wednesday, April 27, 2016

महामृत्युञ्जय mahaamrtyunjay

महामृत्युञ्जय मन्त्र का प्रयोग कब करना चाहिए?
When should one use Mahamrityunjaya Mantra?
जानें ज्योतिष के अनुसार



महामृत्युञ्जय मन्त्र का जप करने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है। आयोग्यता भी प्राप्त होती है, स्नान करते समय शरीर पर लोटे पानी डालते समय इस इस मंत्र का जाप करने से स्वास्थ्य लाभ होता है। दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा होती है साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएं दूर होती हैं, अतः इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए।

किन्तु कभी-कभी मन में यह बात आती है कि जन्मपत्रिका के अनुसार महामृत्युञ्जय मन्त्र  का सम्यक प्रयोग कब करना चाहिए?
प्रस्तुत हैं कुछ प्रमुख कारण जिनमें हर हाल में महामृत्युञ्जय मन्त्र का प्रयोग करना चाहिए यथा:-

- ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास गोचर और दशा, अंर्तदशा, आदि में ग्रहपीड़ा होने का योग है।
-शनि की साढ़ेसाती के समय में
-मारकेश अर्थात् सप्तमेश या द्वितीयेश की दशा-अन्तर्दशा में
-जन्म से चतुर्थ तथा छठी महादशा के समय में
-षष्ठेश की महादशा में सप्तमेश, द्वितीयेश, द्वादशेश, अष्टमेश की अन्तर्दशा में
-सप्तमेश तथा अष्टमेश की महादशा में षष्ठेश, द्वादशेश की अन्तर्दशा में।
-जन्मकुण्डली में शनि व मंगल की अशुभ स्थिति में।
- जन्मपत्रिका में मंगल दोष होने तथा साथ में मंगल की महादशा-अन्तर्दशा होने पर।
- जिन स्त्रियों की जन्म पत्रिका में अष्टम भाव दूषित हो तथा सप्तमेश व सप्तम भाव क्रूर ग्रहों के प्रभाव में हो तो वैधव्य योग के निवारण एवं पति के जीवन की रक्षा हेतु।
- अष्टक वर्ग में जो ग्रह जिस राशि में शून्य या कम बिंदु पाते हैं, गोचर से संबंधित ग्रह उसी राशि में( जिसमें शून्य या कम बिंदु मिले हो) जाने पर, शारीरिक मानसिक, आर्थिक कष्टों की प्राप्ति हो रही हों, उस समय में।
- लग्नेश की निर्बल अवस्था में साथ में अष्टम भाव के स्वामी की निर्बल स्थिति में।
- एकादश भाव का स्वामी छठे या आठवें भाव में स्थित हो।
- गोचर में जन्म राशि से चौथे, छठे, आठवें तथा बारहवें घर में बृहस्पति के आने पर।
- जातक की जन्मपत्रिका में चंद्रमा पर राहु की पूर्ण दृष्टि होवे तथा राहु की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा में या चंद्रमा की महादशा में राहु की अंतर्दशा में। क्योंकि राहु की दृष्टि चंद्रमा पर होने से जातक निराशावादी होकर आत्महत्या जैसे कुकृत्य कर सकता है, विशेष कर जब चंद्रमा लग्न का प्रतिनिधित्व करता हो।
- अल्पायु योग में।
- समस्त प्रकार के अरिष्टों के समय में यथा- शत्रु बाधा, दुर्घटना आदि की आशंका में।
- किसी महारोग से पीडित होने पर,
- जमीन-जायदाद के बटवारे की संभावना हो,
- हैजा-प्लेग आदि महामारी से लोग मर रहे हों,
- राज्य या संपदा के जाने का अंदेशा हो
- मेलापक में नाड़ीदोष,षडष्टक आदि आता हो,
- मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो,
- मनुष्यों में परस्पर घोर क्लेश हो रहा हो,
- त्रिदोषवश रोग से पीड़ित हों,
 इन स्थितियों में महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप करना परम   आवश्यक एवं फलप्रदायी है।

महामृत्युञ्जय मन्त्र का साधारण एवं अनुभूत प्रयोग



अच्छे स्वास्थ्य की इच्छा के लिए ताम्रपत्र के महामृत्युंजय यंत्र को शुभ समय में प्राण प्रतिष्ठित करा कर शुक्ल पक्ष में, सोमवार, शिवरात्रि या गुरुपुष्य नक्षत्र योग में पूजा स्थल में स्थापित करें। प्रतिदिन स्नान कराकर अष्टगंध या केशर मिश्रित चंदन से तिलक कर गंध,अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें। कम से कम एक माला महामृत्युञ्जय मन्त्र प्रतिदिन जप करने से आयु आरोग्यता एवं क्रूर ग्रहों का दोष शांत होता है।

रोग की अवस्था में किसी कर्मकाण्डी विद्वान को संकल्प देखकर निश्चित मात्रा में 24000 या 31000 या सवालाख जप कराकर दशांश होम कराए। हवन करने से पूर्व उसी दिन भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही से अनार की कलम से जप किए गए मंत्र को लिखकर एक बाजोट या पाटे पर स्थापित कर हवन कुण्ड के समीप रखकर हवन कराएं।
हवन की पूर्णाहुति के बाद उक्त लिखित मंत्र को धुँआ दिखाकर(हवन कुण्ड नगाकर) चांदी के ताबीज में भरकर रोगी के दाहिने बाजू पर बांध देवें। हवन से पूर्व किसी भी शुभ दिन में प्राण प्रतिष्ठित किया गया ताम्रपत्र पर निर्मित महामृत्युंजय यंत्र को रोगी के घर में स्थापित करना परम आवश्यक है।
इस प्रकार किए गए प्रयोग से रोग शांत होकर व्यक्ति विशेष के स्वास्थ्य एवं आयु में वृद्धि अवश्य होती है।

इस तरह महामृत्युंजय प्रयोग से शत्रु बाधा एवं क्रूर ग्रहों के दोष शांत होकर सुख ऐश्वर्य एवं दीर्घायु प्राप्त होता है

Saturday, April 23, 2016

Astrology calculation for investment निवेश के लिए ज्योतिष गणना

ये गणित(calculation) आपको बताएगी की आपको अपना पैसा कहा लगाना है ...?
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निचे दिए गए अंको में से कोई भी एक अंक चुने।

1 - 2 - 3 - 4 - 5 - 6 - 7 - 8 - 9.

अब 3 से गुणा करे

अब उस अंक में 3 को जोड़े

अब फिर 3 से गुना करे

आपको 2 Digit का अंक मिलेगा।

दोनों अंको को जोड़े  अब ये नंबर आप को बतायेगे की आपको कहा निवेश करना है ।

1. जमीन
2. सोना
3. F.D.
4. Business
5. Shares
6. P.P.F.
7. R.D.
8. N.S.C.
9. Mere ko de do.
10.mutual fund
11. Company deposit

अगर अब भी ना मानो तो आपकी मर्ज़ी।
कोई और नम्बर,चुन करके फिर से देख लें।

जानिये कहाँ iinvest करें पैसा?

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Monday, April 18, 2016

कुम्भपर्व २०१६

वेद मे कहा गया है-चतुरः कुम्भाश्चतुर्धा ददामि।

ब्रह्मा जी कहते हैं-हे मनुष्यों मै तुम्हें ऐहिक तथा आमुष्मिक सुख देने वाले चार कुम्भ पर्वो का निर्माण कर पृथ्वी के चार स्थानों,हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक मे प्रदान करता हूँ।

मेष राशि गते सूर्ये सिंह राशौ  बृहस्पतौ।
उज्जयिन्यां भवेत् कुंभः सदा मुक्ति प्रदायकः।।

अर्थात्-जिस समय सूर्य मेष राशि पर हों और बृहस्पति सिंह राशि मे हों तो उस समय उज्जैन मे कुम्भ योग होता है।उज्जैन यह 'उज्जयिनी' शब्द का अपभ्रंश है।इसका प्राचीन नाम विशाला अथवा अवन्तिका भी है।
उज्जैन मे इस कुम्भ पर्व का स्नान शिप्रा नदी मे होता है।
इसका मुख्य शाही स्नान चैत्र शुक्ल पूर्णिमा,अक्षय तृतीया, और वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को होगा।
               प्रमुख स्नान पर्व
१-चैत्र शुक्ल पर्णिमा शुक्रवार २२/०४/२०१६
२-वैशाख कृष्ण एकादशी मंगलवार ०३/०५/२०१६
३- वैशाख कृष्ण  अमावस्या शुक्रवार ०६/०५/२०१६
४-अक्षय तृतीया सोमवार ०९/०५/२०१६
५-आद्य शंकराचार्य जयन्ती वैशाख शुक्ल पञ्चमी बुधवार ११/०५/२०१६
६-वृष संक्रान्ति शनिवार १४/०५/२०१६
७-वैशाख शुक्ल पूर्णिमा शनिवार २१/०५/२०१६

उपरोक्त पर्वो पर शिप्रा मे स्नान कर महाकाल का दर्शन-पूजन करने का माहात्म्य है।

Sunday, April 10, 2016

पैर किसके छुएं?Whose feet touch

 पैर किसके छुएँ और किसके न छुएँ
क्या है पैर छूने का वैज्ञानिक आधार ?
हिन्दू संस्कृति में पैर छूना एक संस्कार माना जाता है । हम अपने से बड़ो के , माता पिता , और गुरु के पैर छूते है । लेकिन आजकल इसका स्वरुप बिगड़ गया है ।

हमारे शरीर के उत्तरी और दक्षिणी दो ध्रुव होते है । सिर उत्तरी ध्रुव और पैर दक्षिणी ध्रुव होता है । अगर हम किसी के पैर छूते है तो हमारा उत्तरी ध्रुव बड़े आदमी के दक्षिणी ध्रुव से मिल जाता है । ऐसी स्थिति में बड़े आदमी के संस्कार स्वतः चुम्बकीय आधार पर हमारे चित में प्रवेश कर जाते है ।

हमारी हिन्दू संस्कृति के संस्कार कहते है सदाचारी माता पिता, ज्ञानी और उच्च कोटि के गुरु के ही पैर छूने चाहिए ।
अगर आप मांसाहारी के पैर छुओगे तो निश्चित तौर पर आपके संस्कार अपवित्र हो जाएंगे । दुराचारी के यहाँ भोजन करने से संस्कार पापी हो जाते है ।
इसलिये सभी के पैर छूने से बचना चाहिये।

Monday, April 4, 2016

कितने प्रकार के विवाह होते हैं?How many types of marriages occur?

हमारे यहाँ विवाह के कई भेद हैं, जिन्हें आठ श्रेणियों में बताया गया है यथा:-
1. ब्रह्म विवाह
दोनो पक्ष की सहमति से समान वर्ग के सुयोज्ञ वर से कन्या का विवाह निश्चित कर देना 'ब्रह्म विवाह' कहलाता है। सामान्यतः इस विवाह के बाद कन्या को आभूषणयुक्त करके विदा किया जाता है। आज का "Arranged Marriage" 'ब्रह्म विवाह' का ही रूप है।

2. दैव विवाह
किसी सेवा कार्य (विशेषतः धार्मिक अनुष्टान) के मूल्य के रूप अपनी कन्या को दान में दे देना 'दैव विवाह' कहलाता है।

3. आर्श विवाह
कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य दे कर (सामान्यतः गौदान करके) कन्या से विवाह कर लेना 'अर्श विवाह' कहलाता है।

4. प्रजापत्य विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह अभिजात्य वर्ग के वर से कर देना 'प्रजापत्य विवाह' कहलाता है।

5. गंधर्व विवाह
परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना 'गंधर्व विवाह' कहलाता है।

6. असुर विवाह
कन्या को खरीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना 'असुर विवाह' कहलाता है।

7. राक्षस विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना 'राक्षस विवाह' कहलाता है।

8. पैशाच विवाह
कन्या की मदहोशी (गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे विवाह करना 'पैशाच विवाह' कहलाता है।

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त Mantra theory for suffering peace

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त  Mantra theory for suffering peace संसार की समस्त वस्तुयें अनादि प्रकृति का ही रूप है,और वह...