।।
श्री अमृत-मृत्युञ्जय-मन्त्र प्रयोग ।।
किसी
प्राचीन शिवालय में जाकर गणेश जी की “ॐ गं गणपतये नमः” मन्त्र से षोडशोपचार पूजन करे
। तदनन्तर “ॐ नमः शिवाय” मन्त्र से महा-देव जी की पूजा कर हाथ में जल लेकर विनियोग
पढ़े -
ॐ अस्य श्री अमृत-मृत्युञ्जय-मन्त्रस्य श्री कहोल ऋषिः, विराट् छन्दः, अमृत-मृत्युञ्जय सदा-शिवो देवता,
अमुक गोत्रोत्पन्न अमुकस्य-शर्मणो मम समस्त-रोग-निरसन-पूर्वकं अप-मृत्यु-निवारणार्थे
जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः-
श्री कहोल ऋषये नमः शिरसि, विराट् छन्दसे नमः मुखे, अमृत-मृत्युञ्जय सदा-शिवो देवतायै नमः हृदि, मम समस्त-रोग-निरसन-पूर्वकं
अप-मृत्यु-निवारणार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
कर-न्यासः-
ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः, जूं तर्जनीभ्यां नमः, सः मध्यमाभ्यां नमः, मां अनामिकाभ्यां नमः, पालय कनिष्ठिकाभ्यां नमः, पालय कर-तल-कर-पृष्ठाभ्यां
नमः ।
षडङ्ग-न्यासः-
ॐ हृदयाय नमः, जूं शिरसे स्वाहा, सः शिखायै वषट्,
मां कवचाय हुं, पालय नेत्र-त्रयाय वोषट्,
पालय अस्त्राय फट् ।
ध्यानः-
स्फुटित-नलिन-संस्थं, मौलि-बद्धेन्दु-रेखा-स्रवदमृत-रसार्द्र
चन्द्र-वन्ह्यर्क-नेत्रम् ।
स्व-कर-लसित-मुद्रा-पाश-वेदाक्ष-मालं, स्फटिक-रजत-मुक्ता-गौरमीशं नमामि ।।
मूल-मन्त्रः-
“ॐ
जूं सः मां पालय पालय ।”
पुरश्चरणः-
सवा लाख मन्त्र-जप के लिए पाँच हजार जप प्रतिदिन करना चाहिए । जप के बाद न्यास आदि
करके पुनः ध्यान करे । फिर जल लेकर - ‘अनेन-मत् कृतेन जपेन श्री-अमृत-मृत्युञ्जयः प्रीयताम्’
कहकर जल छोड़ दे ।
जप
का दशांश हवनादिक करे । ‘हवन’ हेतु ‘तिलाज्य’ में ‘गिलोय’ भी डालनी चाहिए । हवनादि
न कर सकने पर ‘चतुर्गुणित जप’ करने से अनुष्ठान पूर्ण होता है एवं आरोग्यता मिलती है, अप-मृत्यु-निवारण होता है ।
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