Thursday, April 23, 2015

पितृदोष pitradosh

 ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को पिता का कारक व मंगल को रक्त का कारक माना गया है। अतः जब जन्मकुंडली में सूर्य या मंगल, पाप प्रभाव में होते हैं तो पितृदोष का निर्माण हाता है। इनमे सूर्य पिता का कारक है इसलिए सूर्य को प्रधानता दी गयी है।
शास्त्रों में कहा गया है-सूर्य सप्तमे पापः सूर्य मध्यगतः पापः सूर्य संयुतः पापः पितृदोषः।
पितृ दोष वाली कुंडली में समझा जाता है कि जातक अपने पूर्व जन्म में भी पितृदोष से युक्त था। प्रारब्धवश वर्तमान समय में भी जातक पितृदोष से युक्त है। यदि समय रहते, इस दोष का निवारण कर लिया जाये तो पितृ दोष से मुक्ति मिल सकती है।
पितृ दोष वाले जातक के जीवन में सामान्यतः निम्न प्रकार की घटनाएं या लक्षण दिखायी दे सकते है। पितृ दोष वाले जातक क्रोधी स्वभाव वाले होते हैं। यदि राजकीय सेवा में कार्यरत हैं तो उन्हें अपने अधिकारियों के कोप का सामना करना पड़ता है। मानसिक व्यथा का सामना करना पड़ता है। पिता से अच्छा तालमेल नहीं बैठ पाता। जीवन में किसी आकस्मिक नुकसान या दुर्घटना के शिकार होते हैं।
जीवन के अंतिम समय में, जातक का पिता बीमार रहता है या स्वयं को ऐसी बीमारी होती है जिसका पता नहीं चल पाता।
 विवाह व शिक्षा में बाधाओं के साथ वैवाहिक जीवन अस्थिर-सा बना रहता है। वंश-वृद्धि में अवरोध दिखायी पड़ते हैं। गर्भपात की स्थिति पैदा होती हैं। आत्मबल में कमी रहती है। स्वयं निर्णय लेने में परेशानी होती है। वस्तुतः लोगों से अधिक सलाह लेनी पड़ती है। परीक्षा एवं साक्षात्कार में असफलता मिलती है।
पितृ दोष का मूल रहस्य: ज्योतिष में पूर्व जन्म के कर्मों के फलस्वरूप, वर्तमान समय में कुंडली में वर्णित ग्रह दिशा प्रदान करते हैं। तभी तो हमारे धर्मशास्त्र सकारात्मक कर्मों को महत्व देते हैं। यदि हमारे कर्म अच्छे होते हैं तो अगले जन्म में ग्रह सकारात्मक परिणाम देते हैं। इसी क्रम में पितृदोष का भी निर्माण होता है। यदि हम इस जन्म में पिता की हत्या, पिता का अपमान, बड़े बुजुर्गों का अपमान आदि करते हैं तो अगले जन्म में निश्चित तौर पर हमारी कुंडली में ‘पितृदोष आ जाता है। कहा जाता है कि पितृदोष वाले जातक से पूर्वज दुखी रहते हैं। कैसे जानें कि कुंडली में पितृदोष है या नहीं कुंडली में पितृदोष का सृजन दो ग्रहों सूर्य व मंगल के पीड़ित होने से होता है क्योंकि सूर्य का संबंध पिता से व मंगल का संबंध रक्त से होता है। सूर्य के लिए पाप ग्रह शनि, राहु व केतु माने गए हैं। अतः जब सूर्य का इन ग्रहों के साथ दृष्टि या युति संबंध हो तो सूर्यकृत पितृदोष का निर्माण होता है। इसी प्रकार मंगल यदि राहु या केतु के साथ हो या इनसे दृष्ट हो तो मंगलकृत पितृ दोष का निर्माण होता है। सामान्यतः यह देखा जाता है कि सूर्यकृत पितृदोष होने से जातक के अपने परिवार या कुटुंब में अपने से बड़े व्यक्तियों से विचार नहीं मिलते। वहीं मंगलकृत पितृदोष होने से जातक के अपने परिवार या कुटुंब में अपने छोटे व्यक्तियों से विचार नहीं मिलते। सूर्य व मंगल की राहु से युति अत्यंत विषम स्थिति पैदा कर देती है क्योंकि राहु एक पृथकताकारी ग्रह है तथा सूर्य व मंगल को उनके कारकों से पृथक कर देता है।
सूर्यकृत पितृदोष निवारण
1. शुक्लपक्ष के प्रथम रविवार के दिन, घर में विधि-विधान से ‘सूर्ययंत्र’ स्थापित करें। सूर्य को नित्य तांबे के पात्र में जल लेकर अघ्र्य दें। जल में कोई लाल पुष्प, चावल व रोली अवश्य मिश्रित कर लें। जब घर से बाहर जाएं तो यंत्र दर्शन जरूर करें।
2. निम्न मंत्र का एक माला, नित्य जप करें। ध्यान रहे आपका मुख पूर्व दिशा में हो। ।। ऊँ आदित्याय विद्महे, प्रभाकराय, धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्।।
3. ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से प्रारंभ कर कम से कम 12 व अधिक से अधिक 30 रविवार व्रत रखें। सूर्यास्त के पूर्व गेहूं, गुड़, घी आदि से बनी कोई सामग्री खा कर व्रतपूर्ण करें। व्रत के दिन ‘सूर्य स्तोत्र’ का पाठ भी करें।
4. लग्नानुसार सोने या तांबे में 5 रत्ती के ऊपर का माणिक्य रविवार के दिन विधि-विधान से धारण कर लें।
 5. पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करें। तथा नित्य द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नामों का स्मरण करें। 6. पिता का अपमान न करें। बड़े बुजुर्गों को सम्मान दें।
7. रविवार के दिन गाय को गेंहू व गुड़ खिलाएं। स्वयं घर से बाहर जाते समय गुड़ खाकर निकला करें।
8. दूध में शहद मिलाकर पिया करें।
9. सदैव लाल रंग का रूमाल अपने पास अवश्य रखें।
मंगलकृत पितृदोष निवारण:
1. शुक्लपक्ष के प्रथम मंगलवार के दिन घर में मंगल यंत्र, पूर्ण विधि-विधान से स्थापित करें। जब घर के बाहर जाएं तो यंत्र दर्शन अवश्य करके जाएं।
2. नित्य प्रातः काल उगते हुए सूर्य को अघ्र्य दें।
3. नित्य एक माला जप, निम्न मंत्र का करें। ।। ऊँ अंगारकाय विद्महे, शक्तिहस्ताय, धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात्।।
4. शुक्लपक्ष के प्रथम मंगलवार से आरंभ करके 11 मंगलवार व्रत करें। हनुमान जी व शिवजी की उपासना करें। जमीन पर सोयें। 5. मंगलवार के दिन 5 रत्ती से अधिक वजन का मूंगा, सोने या तांबे में विधि-विधान से धारण करें।
6. तीनमुखी रुद्राक्ष धारण करें तथा नित्य प्रातःकाल द्व ादश ज्योतिर्लिंगों के नामों का स्मरण करें।
7. बहनों का भूलकर भी अपमान न करें।
8. लालमुख वाले बंदरों को गुड़ व चना खिलाएं।
9. जब भी अवसर मिले, रक्तदान अवश्य करें।
10. 100 ग्राम मसूर की दाल जल में प्रवाहित कर दें।
11. सुअर को मसूर की दाल व मछलियों को आटे की गोलियां खिलाया करें। विशेष: हो सकता है कि कुंडली में सूर्य व मंगलकृत दोनों ही पितृदोष हो। यह स्थिति अत्यंत घातक हो सकती है। यदि ऐसी स्थिति है तो जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सूर्य, मंगल, राहु की युति विशेष रूप से कष्टकारी हो सकती है। अतः अनिष्टकारी प्रभावों से बचने के लिए निम्न उपाय करने चाहिए।
1. शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को सायं काल पानी वाला नारियल अपने ऊपर से 7 बार उसार कर, तीव्र प्रवाह वाले जल में प्रवाहित कर दें तथा पितरों से आशीर्वाद का निवेदन करें।
2. अष्टमुखी रुद्राक्ष धारण करें। घर में 21 मोर के पंख अवश्य रखें तथा शिवलिंग पर जलमिश्रित दूध अर्पित करें। प्रयोग अनुभूत है, अवश्य लाभ मिलेगा।
3. जब राहु की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो तो कंबल का प्रयोग कतई न करें।
4. सफाईकर्मी को दान-दक्षिणा दे दिया करें। उपरोक्त प्रयोग पूर्ण श्रद्धा, लगन व विश्वास के साथ करने पर पितृदोष के दुष्प्रभावों का शमन होता है।
पितृदोष के समुचित निवारण के लिए पितृदोष गायत्री का प्रयोग करना चाहिए।

गिलोय एक अमृत बेल Giloy is a nectar

गिलोय Giloy

गिलोय एक अमृत बेल है।इसलिए इसे  अमृता भी कहा जाता है। यह स्वयं भी नहीं मरती है और उसे भी मरने से बचाती है, जो इसका प्रयोग करे। कहा जाता है की देव दानवों के युद्ध में अमृत कलश की बूँदें जहाँ जहाँ पडी, वहां वहां गिलोय उग गई।
यह सभी तरह के व्यक्ति बड़े आराम से ले सकते हैं। ये हर तरह के दोष का नाश करती है।
कैंसर की बीमारी में 6 से 8 इंच की इसकी डंडी लें इसमें wheat grass का जूस और 5-7 पत्ते तुलसी के और 4-5 पत्ते नीम के डालकर सबको कूटकर काढ़ा बना लें।
इसका सेवन खाली पेट करने से aplastic anaemia भी ठीक होता है। इसकी डंडी का ही प्रयोग करते हैं पत्तों का नहीं, उसका लिसलिसा पदार्थ ही दवाई होता है।
डंडी को ऐसे  भी चूस सकते है . चाहे तो डंडी कूटकर, उसमें पानी मिलाकर छान लें, हर प्रकार से गिलोय लाभ पहुंचाएगी।
इसे लेते रहने से रक्त संबंधी विकार नहीं होते . toxins खत्म हो जाते हैं , और बुखार तो बिलकुल नहीं आता। पुराने से पुराना बुखार खत्म हो जाता है।
इससे पेट की बीमारी, दस्त,पेचिश,  आंव, त्वचा की बीमारी, liver की बीमारी, tumor, diabetes, बढ़ा हुआ E S R, टी बी, white discharge, हिचकी की बीमारी आदि ढेरों बीमारियाँ ठीक होती हैं ।
अगर पीलिया है तो इसकी डंडी के साथ-  पुनर्नवा  (साठी,  जिसका गाँवों में साग भी खाते हैं) की जड़ भी कूटकर काढ़ा बनायें और पीयें। kidney के लिए भी यह बहुत बढ़िया है।
गिलोय के नित्य प्रयोग से शरीर में कान्ति रहती है और असमय ही झुर्रियां नहीं पड़ती।
शरीर में गर्मी अधिक है तो इसे कूटकर रात को भिगो दें और सवेरे मसलकर शहद या मिश्री  मिलाकर पी लें।
अगर platelets बहुत कम हो गए हैं, तो चिंता की बात नहीं , aloevera और गिलोय मिलाकर सेवन करने से एकदम platelets बढ़ते हैं।
इसका काढ़ा यूं भी स्वादिष्ट लगता है नहीं तो थोड़ी चीनी या शहद भी मिलाकर ले सकते हैं. इसकी डंडी गन्ने की तरह खडी करके बोई जाती है इसकी लता अगर नीम के पेड़ पर फैली हो तो सोने में सुहागा है।
अन्यथा इसे अपने गमले में उगाकर रस्सी पर चढ़ा दीजिए।
देखिए कितनी अधिक फैलती है यह और जब थोड़ी मोटी हो जाए तो पत्ते तोडकर डंडी का काढ़ा बनाइये या शरबत। दोनों ही लाभकारी हैं।
यह त्रिदोशनाशक  है अर्थात किसी भी प्रकृति के लोग इसे ले सकते हैं।
गिलोय का लिसलिसा पदार्थ सूखा हुआ भी मिलता है। इसे गिलोय सत कहते हैं .
इसका आरिष्ट भी मिलता है जिसे अमृतारिष्ट कहते हैं। अगर ताज़ी गिलोय न मिले तो इन्हें भी ले सकते हैं।
ताजी गिलोय के छोटे-छोटे टुकड़े कर पानी में गला दिया जाता हे, गली हुई टहनियों को हाथ से मसलकर पानी चलनी या कपडे से छान  कर अलग किया जाता हे और स्थिर छोड़ दिया जाता हे अगले दिन तलछट (सेडीमेंट) को निथार कर सुखा लिया जाता हे


यही गिलोय  सत्व होता हे जो ओषधि के कडवेपन से भी मुक्त और पूर्ण लाभकारी होता हे बाज़ार में भी इसी नाम से मिलता हे।

सूखी गिलोय से भी सत्व निकला जा सकता हे पर वह मात्रा में कम निकलता हे,और कुछ कम गुणों वाला हो सकता हे।

गिलोय घन सत्व-शेष बचे हुए पानी को उबाल कर गाडा होने पर धुप में सुखा लिया जाता हे यह गिलोय घन सत्व होता हे यह भी दिव्य औषधि हे।  ये दोनों गिलोय सत्व एवं गिलोय घन सत्व'  बहुत उपयोगी पाउडर है जो  जड़ी बूटी गिलोय  के महान गुण क्षमता रखती हे  सकारात्मक बात यह हे कि इसकी  मामूली मात्रा  भी यह अद्भुत काम करती है। इससे गिलोय चूर्ण के रूप में न केवल अधिक मात्रा बचा जा सकता हे वहीँ कड़वाहट से भी छुटकारा मिल जाता हे।
इसे गुर्च भी कहते हैं । संस्कृत में इसे गुडूची या अमृता कहते हैं । कई जगह इसे छिन्नरूहा भी कहा जाता है क्योंकि यह आत्मा तक को कंपकंपा देने वाले मलेरिया बुखार को छिन्न -भिन्न कर देती है।

यह एक झाडीदार लता है। इसकी बेल की मोटाई एक अंगुली के बराबर होती है इसी को सुखाकर चूर्ण के रूप में दवा के तौर पर प्रयोग करते हैं। बेल को हलके नाखूनों से छीलकर देखिये नीचे आपको हरा,मांसल भाग दिखाई देगा । इसका काढा बनाकर पीजिये । यह शरीर के त्रिदोषों को नष्ट कर देगा । आज के प्रदूषणयुक्त वातावरण में जीने वाले हम लोग हमेशा त्रिदोषों से ग्रसित रहते हैं। त्रिदोषों को अगर मैं सामान्य भाषा में बताने की कोशिश करूं तो यह कहना उचित होगा कि हमारा शरीर कफ ,वात और पित्त द्वारा संचालित होता है । पित्त का संतुलन गडबडाने पर। पीलिया, पेट के रोग जैसी कई परेशानियां सामने आती हैं । कफ का संतुलन बिगडे तो सीने में जकड़न, बुखार आदि दिक्कते पेश आती हैं । वात [वायु] अगर असंतुलित हो गई तो गैस ,जोडों में दर्द ,शरीर का टूटना ,असमय बुढापा जैसी चीजें झेलनी पड़ती हैं । अगर आप वातज विकारों से ग्रसित हैं तो गिलोय का पाँच ग्राम चूर्ण घी के साथ लीजिये । पित्त की बिमारियों में गिलोय का चार ग्राग चूर्ण चीनी या गुड के साथ खालें तथा अगर आप कफ से संचालित किसी बीमारी से परेशान हो गए है तो इसे छः ग्राम कि मात्र में शहद के साथ खाएं । गिलोय एक रसायन एवं शोधक के र्रूप में जानी जाती है जो बुढापे को कभी आपके नजदीक नहीं आने देती है । यह शरीर का कायाकल्प कर देने की क्षमता रखती है। किसी ही प्रकार के रोगाणुओं ,जीवाणुओं आदि से पैदा होने वाली बिमारियों, खून के प्रदूषित होने बहुत पुराने बुखार एवं यकृत की कमजोरी जैसी बिमारियों के लिए यह रामबाण की तरह काम करती है । मलेरिया बुखार से तो इसे जातीय दुश्मनी है। पुराने टायफाइड ,क्षय रोग, कालाजार ,पुराणी खांसी , मधुमेह [शुगर ] ,कुष्ठ रोग तथा पीलिया में इसके प्रयोग से तुंरत लाभ पहुंचता है । बाँझ नर या नारी को गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर खिलाने से वे बाँझपन से मुक्ति पा जाते हैं। इसे सोंठ के साथ खाने से आमवात-जनित बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं ।गिलोय तथा ब्राह्मी का मिश्रण सेवन करने से दिल की धड़कन को काबू में लाया जा सकता है।

गिलोय का वैज्ञानिक नाम है--तिनोस्पोरा कार्डीफोलिया । इसे अंग्रेजी में गुलंच कहते हैं। कन्नड़ में अमरदवल्ली, गुजराती में गालो, मराठी में गुलबेल, तेलगू में गोधुची ,तिप्प्तिगा , फारसी में गिलाई,तमिल में शिन्दिल्कोदी आदि नामों से जाना जाता है। गिलोय में ग्लुकोसाइन, गिलो इन, गिलोइनिन, गिलोस्तेराल तथा बर्बेरिन नामक एल्केलाइड पाये जाते हैं। अगर आपके घर के आस-पास नीम का पेड़ हो तो आप वहां गिलोय बो सकते हैं । नीम पर चढी हुई गिलोय उसी का गुड अवशोषित कर लेती है ,इस कारण आयुर्वेद में वही गिलोय श्रेष्ठ मानी गई है जिसकी बेल नीम पर चढी हुई हो ।
किन्तु इसका आवश्यकता से अधिक प्रयोग नही करना चाहिए।

बवासीर एवं बादी मस्सों की दवा


नारियल के जटाओं के रेशे जलाकर कपड़े से छानकर एक काँच की शीशी में रख लें।
अब सुबह बिना कुछ खाए पिए एक छोटी कटोरी दही में एक चाय के चम्मच बराबर भस्म मिला कर घोल देवें।उसमें कुछ भी मसाला शक्कर इत्यादि ना डालें, और उसे पी लें। एक डेढ़ घंटे बाद चाय दूध नाश्ता इत्यादि ले सकते हैं दिन में दो बार भी कर सकते हैं।
दो तीन खुराक में रोग जड़ से मिट जाएगा खून बंद हो जाएगा मस्से की गोलियां अंदर तक की सूख जावेगीं अधिक से अधिक तीन-चार दिनों में तो रोग का नामोनिशान नहीं रहना चाहिए। यह अनुभूत औषधि है।

मधुमेह का इलाज treatment of diabetes


1-जामुन के हरे पत्ते
2-हरे नीम के कड़ुवे पत्ते
3-विल्वपत्र के पत्ते
4-तुलसी के पत्ते
अलग अलग लेकर समभाग में सूखे पत्तों को पीसकर मिलाकर रख लें।
प्रतिदिन प्रातःकाल एक चाय के चम्मच के बराबर चूर्ण प्रतिदिन पानी से लें।10 दिन में आपकी शुगर लगभग नियंत्रण में आ जाएगी।
नियमित रूप से सेवन करते रहना चाहिए।तो रोग हमेशा कम रहेगा।

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त

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कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त  Mantra theory for suffering peace संसार की समस्त वस्तुयें अनादि प्रकृति का ही रूप है,और वह...