Tuesday, May 31, 2016

दशरथकृत शनि स्तोत्र Dashrathakrit Shani Sotra

             दशरथकृत शनि स्तोत्र



विनियोगः- ॐ अस्य श्रीशनि-स्तोत्र-मन्त्रस्य कश्यप ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, सौरिर्देवता, शं बीजम्, निः शक्तिः, कृष्णवर्णेति कीलकम्, धर्मार्थ-काम-मोक्षात्मक-चतुर्विध-पुरुषार्थ-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

कर-न्यासः-
शनैश्चराय अंगुष्ठाभ्यां नमः। मन्दगतये तर्जनीभ्यां नमः। अधोक्षजाय मध्यमाभ्यां नमः। कृष्णांगाय अनामिकाभ्यां नमः। शुष्कोदराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। छायात्मजाय करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः।

हृदयादि-न्यासः-
शनैश्चराय हृदयाय नमः। मन्दगतये शिरसे स्वाहा। अधोक्षजाय शिखायै वषट्। कृष्णांगाय कवचाय हुम्। शुष्कोदराय नेत्र-त्रयाय वौषट्। छायात्मजाय अस्त्राय फट्।

दिग्बन्धनः-
“ॐ भूर्भुवः स्वः”
पढ़ते हुए चारों दिशाओं में चुटकी बजाएं।

ध्यानः-
नीलद्युतिं शूलधरं किरीटिनं गृध्रस्थितं त्रासकरं धनुर्धरम्।
चतुर्भुजं सूर्यसुतं प्रशान्तं वन्दे सदाभीष्टकरं वरेण्यम्।।

अर्थात् -नीलम के समान कान्तिमान, हाथों में धनुष और शूल धारण करने वाले, मुकुटधारी, गिद्ध पर विराजमान, शत्रुओं को भयभीत करने वाले, चार भुजाधारी, शान्त, वर को देने वाले, सदा भक्तों के हितकारक, सूर्य-पुत्र को मैं प्रणाम करता हूँ।

रघुवंशेषु विख्यातो राजा दशरथः पुरा।
चक्रवर्ती स विज्ञेयः सप्तदीपाधिपोऽभवत्।।१
कृत्तिकान्ते शनिंज्ञात्वा दैवज्ञैर्ज्ञापितो हि सः।
रोहिणीं भेदयित्वातु शनिर्यास्यति साम्प्रतं।।२
शकटं भेद्यमित्युक्तं सुराऽसुरभयंकरम्।
द्वासधाब्दं तु भविष्यति सुदारुणम्।।३
एतच्छ्रुत्वा तु तद्वाक्यं मन्त्रिभिः सह पार्थिवः।
व्याकुलं च जगद्दृष्टवा पौर-जानपदादिकम्।।४
ब्रुवन्ति सर्वलोकाश्च भयमेतत्समागतम्।
देशाश्च नगर ग्रामा भयभीतः समागताः।।५
पप्रच्छ प्रयतोराजा वसिष्ठ प्रमुखान् द्विजान्।
समाधानं किमत्राऽस्ति ब्रूहि मे द्विजसत्तमः।।६
प्राजापत्ये तु नक्षत्रे तस्मिन् भिन्नेकुतः प्रजाः।
अयं योगोह्यसाध्यश्च ब्रह्म-शक्रादिभिः सुरैः।।७
तदा सञ्चिन्त्य मनसा साहसं परमं ययौ।
समाधाय धनुर्दिव्यं दिव्यायुधसमन्वितम्।।८
रथमारुह्य वेगेन गतो नक्षत्रमण्डलम्।
त्रिलक्षयोजनं स्थानं चन्द्रस्योपरिसंस्थिताम्।।९
रोहिणीपृष्ठमासाद्य स्थितो राजा महाबलः।
रथेतुकाञ्चने दिव्ये मणिरत्नविभूषिते।।१०
हंसवर्नहयैर्युक्ते महाकेतु समुच्छिते।
दीप्यमानो महारत्नैः किरीटमुकुटोज्वलैः।।११
ब्यराजत तदाकाशे द्वितीये इव भास्करः।
आकर्णचापमाकृष्य सहस्त्रं नियोजितम्।।१२
कृत्तिकान्तं शनिर्ज्ञात्वा प्रदिशतांच रोहिणीम्।
दृष्टवा दशरथं चाग्रेतस्थौतु भृकुटीमुखः।।१३
संहारास्त्रं शनिर्दृष्टवा सुराऽसुरनिषूदनम्।
प्रहस्य च भयात् सौरिरिदं वचनमब्रवीत्।।१४

प्राचीन काल में रघुवंश में दशरथ नामक प्रसिद्ध चक्रवती राजा हुए, जो सातों द्वीपों के स्वामी थे। उनके राज्यकाल में एक दिन ज्योतिषियों ने शनि को कृत्तिका के अन्तिम चरण में देखकर राजा से कहा कि अब यह शनि रोहिणी का भेदन कर जायेगा। इसको ‘रोहिणी-शकट-भेदन’ कहते हैं। यह योग देवता और असुर दोनों ही के लिये भयप्रद होता है तथा इसके पश्चात् बारह वर्ष का घोर दुःखदायी अकाल पड़ता है।
ज्योतिषियों की यह बात मन्त्रियों के साथ राजा ने सुनी, इसके साथ ही नगर और जनपद-वासियों को बहुत व्याकुल देखा। उस समय नगर और ग्रामों के निवासी भयभीत होकर राजा से इस विपत्ति से रक्षा की प्रार्थना करने लगे। अपने प्रजाजनों की व्याकुलता को देखकर राजा दशरथ वशिष्ठ ऋषि तथा प्रमुख ब्राह्मणों से कहने लगे- ‘हे ब्राह्मणों ! इस समस्या का कोई समाधान मुझे बताइए।’।।१-६
इस पर वशिष्ठ जी कहने लगे- ‘प्रजापति के इस नक्षत्र (रोहिणी) में यदि शनि भेदन होता है तो प्रजाजन सुखी कैसे रह सकते हें। इस योग के दुष्प्रभाव से तो ब्रह्मा एवं इन्द्रादिक देवता भी रक्षा करने में असमर्थ हैं।।७।।
विद्वानों के यह वचन सुनकर राजा को ऐसा प्रतीत हुआ कि यदि वे इस संकट की घड़ी को न टाल सके तो उन्हें कायर कहा जाएगा। अतः राजा विचार करके साहस बटोरकर दिव्य धनुष तथा दिव्य आयुधों से युक्त होकर रथ को तीव्र गति से चलाते हुए चन्द्रमा से भी तीन लाख योजन ऊपर नक्षत्र मण्डल में ले गए। मणियों तथा रत्नों से सुशोभित स्वर्ण-निर्मित रथ में बैठे हुए महाबली राजा ने रोहिणी के पीछे आकर रथ को रोक दिया।
सफेद घोड़ों से युक्त और ऊँची-ऊँची ध्वजाओं से सुशोभित मुकुट में जड़े हुए बहुमुल्य रत्नों से प्रकाशमान राजा दशरथ उस समय आकाश में दूसरे सूर्य की भांति चमक रहे थे। शनि को कृत्तिका नक्षत्र के पश्चात् रोहिनी नक्षत्र में प्रवेश का इच्छुक देखकर राजा दशरथ बाण युक्त धनुष कानों तक खींचकर भृकुटियां तानकर शनि के सामने डटकर खड़े हो गए।
अपने सामने देव-असुरों के संहारक अस्त्रों से युक्त दशरथ को खड़ा देखकर शनि थोड़ा डर गया और हंसते हुए राजा से कहने लगा।।८-१४

शनि उवाच-
पौरुषं तव राजेन्द्र ! मया दृष्टं न कस्यचित्।
देवासुरामनुष्याशऽच सिद्ध-विद्याधरोरगाः।।१५
मयाविलोकिताः सर्वेभयं गच्छन्ति तत्क्षणात्।
तुष्टोऽहं तव राजेन्द्र ! तपसापौरुषेण च।।१६
वरं ब्रूहि प्रदास्यामि स्वेच्छया रघुनन्दनः !

शनि कहने लगा- ‘ हे राजेन्द्र ! तुम्हारे जैसा पुरुषार्थ मैंने किसी में नहीं देखा, क्योंकि देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और सर्प जाति के जीव मेरे देखने मात्र से ही भय-ग्रस्त हो जाते हैं। हे राजेन्द्र ! मैं तुम्हारी तपस्या और पुरुषार्थ से अत्यन्त प्रसन्न हूँ। अतः हे रघुनन्दन ! जो तुम्हारी इच्छा हो वर मां लो, मैं तुम्हें दूंगा।।१५-१६।।

दशरथ उवाच-
प्रसन्नोयदि मे सौरे ! एकश्चास्तु वरः परः।।१७
रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन्।
सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी।।१८
याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं।
एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम्।।१९
प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा।
पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत ! ।।२०

दशरथ ने कहा- हे सूर्य-पुत्र शनि-देव ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मैं केवल एक ही वर मांगता हूँ कि जब तक नदियां, सागर, चन्द्रमा, सूर्य और पृथ्वी इस संसार में है, तब तक आप रोहिणी शकट भेदन कदापि न करें। मैं केवल यही वर मांगता हूँ और मेरी कोई इच्छा नहीं है।’
तब शनि ने ‘एवमस्तु’ कहकर वर दे दिया। इस प्रकार शनि से वर प्राप्त करके राजा अपने को धन्य समझने लगा। तब शनि ने कहा- ‘मैं पुमसे परम प्रसन्न हूँ, तुम और भी वर मांग लो।।१७-२०

प्रार्थयामास हृष्टात्मा वरमन्यं शनिं तदा।
नभेत्तव्यं न भेत्तव्यं त्वया भास्करनन्दन।।२१
द्वादशाब्दं तु दुर्भिक्षं न कर्तव्यं कदाचन।
कीर्तिरषामदीया च त्रैलोक्ये तु भविष्यति।।२२
एवं वरं तु सम्प्राप्य हृष्टरोमा स पार्थिवः।
रथोपरिधनुः स्थाप्यभूत्वा चैव कृताञ्जलिः।।२३
ध्यात्वा सरस्वती देवीं गणनाथं विनायकम्।
राजा दशरथः स्तोत्रं सौरेरिदमथाऽकरोत्।।२४

तब राजा ने प्रसन्न होकर शनि से दूसरा वर मांगा। तब शनि कहने लगे- ‘हे सूर्य वंशियो के पुत्र तुम निर्भय रहो, निर्भय रहो। बारह वर्ष तक तुम्हारे राज्य में अकाल नहीं पड़ेगा। तुम्हारी यश-कीर्ति तीनों लोकों में फैलेगी। ऐसा वर पाकर राजा प्रसन्न होकर धनुष-बाण रथ में रखकर सरस्वती देवी तथा गणपति का ध्यान करके शनि की स्तुति इस प्रकार करने लगा।।२१-२४

दशरथकृत शनि स्तोत्र

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।२५।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।२६
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।।२७
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।२८
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ।।२९
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ।।३०
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ।।३१
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ।।३२
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।३३
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ।।३४

जिनके शरीर का वर्ण कृष्ण नील तथा भगवान् शंकर के समान है, उन शनि देव को नमस्कार है। जो जगत् के लिए कालाग्नि एवं कृतान्त रुप हैं, उन शनैश्चर को बार-बार नमस्कार है।।२५
जिनका शरीर कंकाल जैसा मांस-हीन तथा जिनकी दाढ़ी-मूंछ और जटा बढ़ी हुई है, उन शनिदेव को नमस्कार है। जिनके बड़े-बड़े नेत्र, पीठ में सटा हुआ पेट और भयानक आकार है, उन शनैश्चर देव को नमस्कार है।।२६
जिनके शरीर का ढांचा फैला हुआ है, जिनके रोएं बहुत मोटे हैं, जो लम्बे-चौड़े किन्तु सूके शरीर वाले हैं तथा जिनकी दाढ़ें कालरुप हैं, उन शनिदेव को बार-बार प्रणाम है।।२७
हे शने ! आपके नेत्र कोटर के समान गहरे हैं, आपकी ओर देखना कठिन है, आप घोर रौद्र, भीषण और विकराल हैं, आपको नमस्कार है।।२८
वलीमूख ! आप सब कुछ भक्षण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है। सूर्यनन्दन ! भास्कर-पुत्र ! अभय देने वाले देवता ! आपको प्रणाम है।।२९
नीचे की ओर दृष्टि रखने वाले शनिदेव ! आपको नमस्कार है। संवर्तक ! आपको प्रणाम है। मन्दगति से चलने वाले शनैश्चर ! आपका प्रतीक तलवार के समान है, आपको पुनः-पुनः प्रणाम है।।३०
आपने तपस्या से अपनी देह को दग्ध कर लिया है, आप सदा योगाभ्यास में तत्पर, भूख से आतुर और अतृप्त रहते हैं। आपको सदा सर्वदा नमस्कार है।।३१
ज्ञाननेत्र ! आपको प्रणाम है। काश्यपनन्दन सूर्यपुत्र शनिदेव आपको नमस्कार है। आप सन्तुष्ट होने पर राज्य दे देते हैं और रुष्ट होने पर उसे तत्क्षण हर लेते हैं।।३२
देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और नाग- ये सब आपकी दृष्टि पड़ने पर समूल नष्ट हो जाते हैं।।३३
देव मुझ पर प्रसन्न होइए। मैं वर पाने के योग्य हूँ और आपकी शरण में आया हूँ।।३४

एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबलः।
अब्रवीच्च शनिर्वाक्यं हृष्टरोमा च पार्थिवः।।३५
तुष्टोऽहं तव राजेन्द्र ! स्तोत्रेणाऽनेन सुव्रत।
एवं वरं प्रदास्यामि यत्ते मनसि वर्तते।।३६

राजा दशरथ के इस प्रकार प्रार्थना करने पर ग्रहों के राजा महाबलवान् सूर्य-पुत्र शनैश्चर बोले- ‘उत्तम व्रत के पालक राजा दशरथ ! तुम्हारी इस स्तुति से मैं अत्यन्त सन्तुष्ट हूँ। रघुनन्दन ! तुम इच्छानुसार वर मांगो, मैं अवश्य दूंगा।।३५-३६

दशरथ उवाच-
प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम्।
अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित्।।३७

प्रसादं कुरु मे सौरे ! वरोऽयं मे महेप्सितः।
राजा दशरथ बोले- ‘प्रभु ! आज से आप देवता, असुर, मनुष्य, पशु, पक्षी तथा नाग-किसी भी प्राणी को पीड़ा न दें। बस यही मेरा प्रिय वर है।।३७
शनि उवाच-
अदेयस्तु वरौऽस्माकं तुष्टोऽहं च ददामि ते।।३८
त्वयाप्रोक्तं च मे स्तोत्रं ये पठिष्यन्ति मानवाः।
देवऽसुर-मनुष्याश्च सिद्ध विद्याधरोरगा।।३९
न तेषां बाधते पीडा मत्कृता वै कदाचन।
मृत्युस्थाने चतुर्थे वा जन्म-व्यय-द्वितीयगे।।४०
गोचरे जन्मकाले वा दशास्वन्तर्दशासु च।
यः पठेद् द्वि-त्रिसन्ध्यं वा शुचिर्भूत्वा समाहितः।।४१
न तस्य जायते पीडा कृता वै ममनिश्चितम्।
प्रतिमा लोहजां कृत्वा मम राजन् चतुर्भुजाम्।।४२
वरदां च धनुः-शूल-बाणांकितकरां शुभाम्।
आयुतमेकजप्यं च तद्दशांशेन होमतः।।४३
कृष्णैस्तिलैः शमीपत्रैर्धृत्वाक्तैर्नीलपंकजैः।
पायससंशर्करायुक्तं घृतमिश्रं च होमयेत्।।४४
ब्राह्मणान्भोजयेत्तत्र स्वशक्तया घृत-पायसैः।
तैले वा तेलराशौ वा प्रत्यक्ष व यथाविधिः।।४५
पूजनं चैव मन्त्रेण कुंकुमाद्यं च लेपयेत्।
नील्या वा कृष्णतुलसी शमीपत्रादिभिः शुभैः।।४६
दद्यान्मे प्रीतये यस्तु कृष्णवस्त्रादिकं शुभम्।
धेनुं वा वृषभं चापि सवत्सां च पयस्विनीम्।।४७
एवं विशेषपूजां च मद्वारे कुरुते नृप !
मन्त्रोद्धारविशेषेण स्तोत्रेणऽनेन पूजयेत्।।४८
पूजयित्वा जपेत्स्तोत्रं भूत्वा चैव कृताञ्जलिः।
तस्य पीडां न चैवऽहं करिष्यामि कदाचन्।।४९
रक्षामि सततं तस्य पीडां चान्यग्रहस्य च।
अनेनैव प्रकारेण पीडामुक्तं जगद्भवेत्।।५०

शनि ने कहा- ‘हे राजन् ! यद्यपि ऐसा वर मैं किसी को देता नहीं हूँ, किन्तु सन्तुष्ट होने के कारण तुमको दे रहा हूँ। तुम्हारे द्वारा कहे गये इस स्तोत्र को जो मनुष्य, देव अथवा असुर, सिद्ध तथा विद्वान आदि पढ़ेंगे, उन्हें शनि बाधा नहीं होगी। जिनके गोचर में महादशा या अन्तर्दशा में अथवा लग्न स्थान, द्वितीय, चतुर्थ, अष्टम या द्वादश स्थान में शनि हो वे व्यक्ति यदि पवित्र होकर प्रातः, मध्याह्न और सायंकाल के समय इस स्तोत्र को ध्यान देकर पढ़ेंगे, उनको निश्चित रुप से मैं पीड़ित नहीं करुंगा।।३८-४१

हे राजन ! जिनको मेरी कृपा प्राप्त करनी है, उन्हें चाहिए कि वे मेरी एक लोहे की मूर्ति बनाएं, जिसकी चार भुजाएं हो और उनमें धनुष, भाला और बाण धारण किए हुए हो।
इसके पश्चात् दस हजार की संख्या में इस स्तोत्र का जप करें, जप का दशांश हवन करे, जिसकी सामग्री काले तिल, शमी-पत्र, घी, नील कमल, खीर, चीनी मिलाकर बनाई जाए। इसके पश्चात् घी तथा दूध से निर्मित पदार्थों से ब्राह्मणों को भोजन कराएं। उपरोक्त शनि की प्रतिमा को तिल के तेल या तिलों के ढेर में रखकर विधि-विधान-पूर्वक मन्त्र द्वारा पूजन करें, कुंकुम इत्यादि चढ़ाएं, नीली तथा काली तुलसी, शमी-पत्र मुझे प्रसन्न करने के लिए अर्पित करें।
काले रंग के वस्त्र, बैल, दूध देने वाली गाय- बछड़े सहित दान में दें। हे राजन ! जो मन्त्रोद्धारपूर्वक इस स्तोत्र से मेरी पूजा करता है, पूजा करके हाथ जोड़कर इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसको मैं किसी प्रकार की पीड़ा नहीं होने दूंगा। इतना ही नहीं, अन्य ग्रहों की पीड़ा से भी मैं उसकी रक्षा करुंगा। इस तरह अनेकों प्रकार से मैं जगत को पीड़ा से मुक्त करता हूँ।।।४२-५०

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Thursday, May 26, 2016

एक प्रश्न एक कहानी A question a story

      बेचारा कलुआ



अपनी बहनों मे अकेला भाई ।पिता मेहनत मजदूरी करते और माँ घर चलाती।
पिता जो भी लाते उसमें किसी तरह गुजर हो जाता।
कलुआ हमेशा सोचा करता कि घर की स्थिति मे सुधार कैसे हो?
वो बचपन से इसी उधेणबुन मे लगा रहता।
पिता ने कुछ सोचा नही इस बात को लेकर अक्सर माँ से विवाद होता रहता।धीरे-धीरे इस बात का असर बच्चों पर पड़ने लगा।पिता को लगता कि हमारे भाई और परिवार सक्षम है मैंने जी जान से उनके लिए मेहनत की है तो समय आने पर क्या वो हमारी मदद नही करेंगे?और इसी विश्वास मे वो जीते चले गये। उन्होंने माँ की बातों को ज्यादा ध्यान नही दिया।
अपने अलावा वे कलुआ पर अधिक ध्यान देने लगे।
धीरे-धीरे इसका असर बेटियों पर दिखने लगा उन्हें लगता कि पापा कलुआ को ही चाहते है
और कलुआ की बहनों के साथ कटुता बढ़ने लगी।
बेचारा कलुआ इनमें पिसने लगा । वो खूब कोशिश करता कि ऐसा न हो।उसकी सोच भी ऐसी नही थी ।
लेकिन वो सफल नही हुआ बहनों का मनमुटाव बढ़ता चला गया अंत मे ऐसी स्थिति आ गयी कि एक दूसरे को देखने की भी जरूरत नही रही।
माँ और पिता अपने से ही नही निकल पाये और परिवार का सामंजस्य कमजोर होता गया।
इसका असर ये हुआ कि कलुआ की प्रवृत्ति अंतर्मुखी हो गयी।वो न किसी से मिलना चाहता और न ही सबके सामने अपने को पेश कर पाता, धीरे-धीरे उसका स्वभाव चिड़चिड़ा होता चला गया।
उसकी इस स्थिति पर किसी ने ध्यान नही दिया।अब उसके मन मे अपने घर परिवार को मजबूत करने के अलावा और कोई बात नही होती ,लेकिन वो अपने आप को सही रूप से प्रस्तुत नही कर पाता या लोग उसकी बात नही समझ नही पाते।जो भी हो लेकिन
इस तरह उसके प्रति लोगों का नजरिया अच्छा नही रहा,लोग उसे चिड़चिड़ा, मूर्ख खौर घमण्डी समझते।फलस्वरूप कलुआ जितना घुलने-मिलने का प्रयत्न करता लोग उसे उतना ही दूर छिटकते।धीरे-धीरे वो एकदम अकेला हो गया अब लोग उससे बात करते उससे अपनत्व दिखाते पर वो केवल एक औपचारिकता भर।
और तो और उसके बारे मे सभी को यही पता था की उसका व्यवहार एकदम सही नही है इसलिए उससे बात करना ठीक नही है।अब कलुआ के पास अपने आप को समेट लेने के अलावा कोई चारा नही था।क्योंकि जिन लोगो पर उसे एकदम भरोसा था कि कम से कम वो लोग उसकी बात को हर हाल मे समझते है, इसलिए वो उसके साथ हमेशा रहेंगे और यदि उससे कोई गलती होगी तो वो उसे आगाह करेंगे।
लेकिन अब उसका ये भरोसा टूट चुका था उसे लग रहा था कि उसके बारे मे अन्य लोग भ्रम फैला रहे हैं लेकिन अब वो जान गया था कि अब तक जिनके ऊपर भरोसा किया गया वही लोग थे जो पीछे से ये सब कर रहे थे क्यों ये तो पता अभी नही चला लेकिन स्थिति स्पष्ट हो गयी है ।
दोनों छोटी बहनो की शादी के बाद से अब तक वो बैल की तरह काम मे लगा रहा और मन मे हमेशा यह बात रही कि अब जिम्मेदारियां कम हो गयी हैं अब धीरे-धीरे स्थिति मजबूत हो जायेगी और वो अपने परिवार के साथ सामंजस्य पूर्वक  बैठने की स्थिति मे आ जायेगा ।
पर उसे कहाँ मालूम था की परिवार ऐसा नही चाहता है।
बहनो ने भी साथ नही दिया बल्कि विरोध किया और उसको दोषी ठहराया।
इस तरह के माहौल मे किसी तरह से खुद उसकी शादी तय हो पाई, वो बड़ा खुश था कि चलो जो हुआ सो हुआ अब कोई उसकी बात समझेगा और उसका साथ देगा।
अब वो और अच्छी तरह से घर को सजा संवार पायेगा और समाज मे अपनी स्थिति स्पष्ट कर पायेगा लेकिन उसे क्या पता था कि जिंदगी यहाँ भी एक बड़ी परीक्षा लेने की तैयारी मे है, और शायद ही ये परीक्षा वो दे पाये।
उसकी शादी चूँकि वो और माता-पिता सभी ये चाहते थे कि कोई अच्छा रिश्ता मिल जाये दुनियादारी से वे सभी बेखबर थे अतः इसका फायदा लड़की के पिता को मिला और उसने बड़े ही तरीके से सब्जबाग दिखाकर अपनी मंदबुद्धि लड़की की शादी कलुआ से कर दी ।
कुछ ही दिन बीते थे कि धीरे-धीरे सारे राज खुलने लगे और कलुआ एकदम शॉक्ड हो गया उसे यह अंदाजा नही था की कोई इस तरह की धोखाधड़ी भी कर सकता है।
कलुआ ने अपने मन को बहुत तरह से समझाया ससुराल वालो से अपने साले से बात करके अपने को समझाना चाहा।
उसे यह था की उसके साथ ऐसा क्यों किया गया उसका क्या अपराध था और वो भी तब जब वो सब कुछ स्वीकार करने के लिए तैयार था ।
बस इस बात को वो किसी भी तरह से अपने मन से निकाल नही पाया।उसका स्वभाव और भी ख़राब हो गया था।
जहाँ विवाह के बाद मनुष्य का मन एकदम खिल जाता है वो अपने आप को आनन्दित महसूस करने लगता है, कलुआ के साथ एकदम विपरीत हो गया था।
उसका मन बुझ गया था किसी भी परिस्थिति मे अपने मन को समझा लेने वाला कलुआ अब दुखी और निराश हो गया था।
जीवन में कभी-कभी कुछ परिस्थितियों की वजह से एक कहावत चरितार्थ हो जाती है-"गुड़ भरा हसिया न उगल सकते हैं और न निगल सकते हैं" अगर धोखे से मुँह में रख लिया तो इसके दो अर्थ निकलते हैं-
एक यह  कि दोनों ही परिस्थितियों में मरना होगा ।।
दूसरा यह कि उसी परिस्थिति में रहा जाय।न उसे निगला जाय और न उसे उगला जाय।।
यद्यपि यह दूसरी परिस्थिति अत्यंत कठिन है लेकिन निर्वहन हो सकता है।।मरने की अपेक्षा।।
कुछ लोग अपने फायदे के लिए या अपना काम निकालने के लिए कुछ ऐसा काम कर जाते हैं कि आगे चलकर उसका परिणाम गुड़ भरा हसिया हो जाता है।
जो किसी एक को जीवन भर की मृत्यु दे जाता है।।
जिसकी वजह से अन्य कई परिस्थितियों का निर्माण होता है जो हम चाहे भी तो उनको सुलझा भी नहीं सकते और उलझा भी नहीं सकते।।
जीवन में हमें ऐसी परिस्थितियाँ नही आने देना चाहिए।क्योंकि इससे तात्कालिक कार्य निकल जाते हैं लेकिन जीवन भर के लिए समस्यायें खड़ी हो जाती हैं।
बहुत समय बाद वो कुछ सामान्य सा हो पाया लेकिन इतने अंतराल मे बहुत कुछ हो गया था ।
अब तक कलुआ के दो छोटे बच्चे हो गये थे और वो उनमे काफी हद तक रम भी गया था
लेकिन आज भी कभी-कभी उसकी आँख भर आती हैं कि इन बच्चों का क्या होगा?
क्योंकि कलुआ तो कब का मर चुका था।

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Wednesday, May 25, 2016

हनुमान प्रश्नावली Hanuman Questionnaire

 आप कभी भी असमंजस्य की स्थिति में हो, आप किसी महत्वपूर्ण निष्कर्ष में पहुँचना चाहते हो परन्तु कुछ भी साफ नज़र न आ रहा हो, या किसी भी खास प्रश्न का उत्तर चाहते हो, या अपने अच्छे समय या किसी भी परेशानी का उपाय जानना हो तो यह दिव्य श्री हनुमान यंत्र आपको आपकी आस्था और श्रद्धा के अनुसार आपके प्रश्नों के उत्तर प्रदान कर देगा।
               सबसे पहले अपना प्रश्न सोचे। इसके बाद यहां दिखाए गए यंत्र के चित्र में अंक 1 से 9 तक अंक दिए गए हैं। अब अपनी आंख बंद करके पूरे विश्वास और भक्ति के साथ प्रभुं हनुमानजी का ध्यान करें फिर अपनी उंगली किसी भी  अंक पर रखें।
आपकी समस्या का उत्तर नीचे लिखा है ।


हनुमान यंत्र

9 1 2 3 4 5 6 7 8 3 4 5 6 7 8 9 1 2 1 2 3 4 5 6 7 8 9 8 9 1 2 3 4 5 6 7 2 3 4 5 6 7 8 9 1 4 5 6 7 8 9 1 2 3 6 7 8 9 1 2 3 4 5 5 6 7 8 9 1 2 3 4 7 8 9 1 2 3 4 5 6




1. प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें। अपना कार्य पूर्ण लगन एवं ईमानदारी से करें। धैर्य बनाये रखे, आपका अच्छा समय आने वाला है, आपको शीघ्र ही सफलता मिलेगी ।

2. आप अपना काम पूरी योजना बना कर ही करें। जल्दीबाज़ी और अपूर्ण योजना से आपके बनते काम बिग़ड भी सकते है अत: अपना कार्य पूरी सावधानी और शांति से करें। किसी बड़े, अनुभवी व्यक्ति से भी समय समय पर सलाह अवश्य ही लें। मंगलवार और शनिवार को बजरंग बली के किसी भी मन्दिर में दर्शन अवश्य करें, आपका मनोरथ अवश्य ही सिद्ध होगा ।

3. अभी समय पूरी तरह से अनुकूल नहीं है, धैर्य बनाये रखिये। हो सके तो मंगलवार को हनुमान जी का ब्रत रखे और उन्हें चोला चढ़ाएं।शीघ्र ही परिस्थितियां आपके अनुकूल हो जाएंगी।

4. आपका अच्छा समय आने वाला है । परिवार के बड़े बुजुर्गों एवं स्त्रियों को पूर्ण सम्मान दें। किसी का भी दिल न दुखाएं, दूसरों की हर सम्भव मदद करें। हनुमान चालीसा का दोनों समय पाठ करें , बजरंग बलि कि कृपा से आपके सोचे सभी कार्य अवश्य ही बनेगे।

5. आप घर के स्त्रियों को पूर्ण सम्मान दें, उन्हें हर त्योहार में अपनी क्षमता के अनुसार कोई न कोई उपहार अवश्य ही दें। उनके आशीर्वाद से आपके बिगड़ते काम भी बन जायेंगे। "हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट" का लाल चन्दन की माला से नित्य एक माला का जाप करे।

6. अभी समय पूरी तरह से आपके अनुकूल नहीं है । आपको अभी थोड़ा इंतजार भी करना पड़ सकता है। ईश्वर पर पूर्ण विश्वास बनाये रखे, जरुरतमंदो कि सहायता करते रहे, हर मंगलवार को सुन्दर काण्ड का पाठ करें । शीघ्र ही समय बदलेगा ।

7. आपका अच्छा समय शीघ्र ही आने वाला है। हनुमान जी कि भक्ति करते रहें। जल्दी ही समस्याओं से निजात मिलेगी।अपने काम को पूरी लगन और ईमानदारी से करें जल्द ही शुभ फल प्राप्त होंगे।

8. अपने कार्य में पुनर्विचार करें। यदि कार्य सही नहीं है तो आपकी मेहनत व्यर्थ जा सकती है, अत: सही कार्य में ही समय लगाएं। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें। हर मंगलवार को हनुमान जी को गुड़-चने का भोग लगायें। आपका कल्याण होगा। .

9. आपके कार्य में कुछ बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं।आप लोगो को पहचाने और उन पर भरोसा करके उनका सहयोग भी लेना शुरू करें। बिना सहयोग, उचित सलाह लिए आप निराशा में भी घिर सकते हैं।शुक्ल पक्ष के किसी भी शनिवार को हनुमान जी को चॊला चड़ाकर उन्हें एक नारियल पर सिंदूर लगाकर अर्पित करें।

नारायणबलि तथा नागबलि Narayanabali and Nagbali

नारायणबलि तथा नागबलि Narayanabali and Nagbali


क्यों कराते हैं नारायणबलि तथा नागबलि विधानWhy do Narayanbal and Nagbali method


यह दोनों मानव की अपूर्ण कामना पूर्ण करने के उद्देश्य से की जाती है ।
इसलिए यह दोनों ही   "काम्य"  विधियाँ कहलाती है ।
◑ सन्तान प्राप्ति के लिए
◑ प्रेतबाधा से होने वाली पीड़ा को दूर करने के लिए
◑ प्रेतशाप और मारण उच्चाटन तथा अन्य अभिचार कर्म के लिए
◑ परिवार में किसी सदस्य को असमय या अकाल अपमृत्यु (जलाघात, अपघात,आत्महत्या,और दुर्घटना के कारण हुई मृत्यु) के कारण इहलोक छोड़ना पड़ा हो तो उससे होने वाली पीड़ा के परिहारार्थ हेतु ।

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संतान बाधा योग santaan baadha yog

    संतान बाधा योग

              santaan baadha yog          

   

   जानें संतान बाधक योग

विवाह के पश्चात हर स्त्री-पुरुष की यह कामना होती है कि उन्हें एक योग्य संतान की प्राप्ति हो जिससे उनका वंश चले और वह उम्र के आखरी पड़ाव में उनका सहारा बने।
किन्तु कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं, की कोई कमी न होने के बाद भी सन्तान की उत्पत्ति में बाधा होती है।जिनमे ग्रह मुख्य भूमिका निभाते हैं।
नीचे दिए गए कुछ ग्रह योग संतान की उत्पत्ति में  बाधक हैं,  यदि किसी की कुंडली में मौजूद हो तो उन्हें अवश्य ही सावधान होकर उचित उपाय के द्वारा उन प्रतिकूल ग्रहों को अनुकूल बनाना चाहिए जिनके वजह यह बाधक योग उत्पन्न हुए हैं।

● लग्न से, चंद्र से तथा गुरु से पंचम स्थान पाप ग्रह से यक्त हो और वहाँ कोई शुभ ग्रह न बैठा हो न ही शुभ ग्रह की दृष्टि हो।

● लग्न, चंद्र तथा गुरु से पंचम स्थान का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में बैठा हो।

● यदि पंचमेश पाप ग्रह होते हुए पंचम में हो तो पुत्र होवे किन्तु शुभ ग्रह पंचमेश होकर पंचम में बैठ जाये और साथ में कोई पाप ग्रह हो तो वह पाप ग्रह संतान बाधक बनेगा।

● यदि पंचम भाव में वृष, सिंह, कन्या या वृश्चिक राशि हो और पंचम भाव में सूर्य, आठवें भाव में शनि तथा लग्न में मंगल  स्थित हो तो संतान होने में दिक्कत होती है एवं विलंब होता है।

● लग्न में दो या दो से अधिक पाप ग्रह हों तथा गुरु से पांचवें स्थान पर भी पाप ग्रह हो तथा ग्यारवें भाव में चन्द्रमा हो तो भी संतान होने में विलंब होता है।

● प्रथम, पंचम, अष्टम एवं द्वादश । इन चारो भावों में अशुभ ग्रह हो तो वंश वृद्धि में  दिक्कत होती है।

●  चतुर्थ भाव में अशुभ ग्रह, सातवें में शुक्र तथा दसवें में चन्द्रमा हो तो भी वंश वृद्धि के लिए बाधक है।

● पंचम भाव में चंद्रमा तथा लग्न, अष्टम तथा द्वादस भाव में पाप ग्रह हो तो भी बंश नहीं चलता।

● पंचम में गुरु, सातवें भाव में बुध- शुक्र तथा चतुर्थ भाव में क्रूर ग्रह होना संतान बाधक है।

● लग्न में पाप ग्रह, लग्नेश पंचम में, पंचमेश तृतीय भाव में हो तथा चन्द्रमा चौथे भाव में हो तो पुत्र संतान नहीं होता।

● पंचम भाव में मिथुन, कन्या, मकर या कुंभ राशि हो। शनि वहां बैठा हो या शनि की दृष्टि पांचवे भाव पर हो तो पुत्र संतान प्राप्ति में समस्या होती है।

● षष्टेश, अष्टमेश या द्वादशेश पंचम भाव में हो या पंचमेश 6-8-12 भाव में बैठा हो या पंचमेश नीच राशि में हो या अस्त हो तो संतान बाधायोग उत्पन्न होता है।

● पंचम में गुरु यदि धनु राशि का हो तो बड़ी परेशानी के बाद संतान की प्राप्ति होती है।

● पंचम भाव में गुरु कर्क या कुंभ राशि का हो और गुरु पर कोई शुभ दृष्टि नहीं हो तो प्रायः पुत्र का आभाव ही रहता है।

●  तृतीयेश यदि 1-3-5-9 भाव में बिना किसी शुभ योग के हो तो संतान होने में रूकावट पैदा करते हैं।

● लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश एवं गुरु सब के सब दुर्बल हों तो जातक संतानहीन होता है।

● पंचम भाव में पाप ग्रह, पंचमेश नीच राशि में बिना किसी शुभ दृष्टि के तो जातक संतानहीन होता है।

● सभी पाप ग्रह यदि चतुर्थ में बैठ जाएँ तो संतान नहीं होता।

● चंद्रमा और गुरु दोनों लग्न में हो तथा मंगल और शनि दोनों की दृष्टि लग्न पर हो तो पुत्र संतान नहीं होता ।

● गुरु दो पाप ग्रहों से घिरा हो और पंचमेश निर्बल हो तथा शुभ ग्रह की दृष्टि या स्थिति न हो तो जातक को संतान होने में दिक्कत होता है।

● दशम में चंद्र, सप्तम में राहु तथा चतुर्थ में पाप ग्रह हो तथा लग्नेश बुध के साथ हो तो जातक को पुत्र नहीं होता ।

● पंचम,अष्टम, द्वादश तीनो स्थान में पाप ग्रह बैठे हों तो जातक को पुत्र नहीं होता।

● बुध एवं शुक्र सप्तम में, गुरु पंचम में तथा चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हो एवं चंद्र से अष्टम भाव में भी पाप ग्रह हो तो जातक का लड़का नहीं होता।

●  चंद्र पंचम हो एवं सभी पाप ग्रह 1-7-12 या 1-8-12 भाव में हो तो संतान नहीं होता ।

● पंचम भाव में तीन या अधिक पाप ग्रह बैठे हों और उनपर कोई शुभ दृष्टि नहीं हो तथा पंचम भाव पाप राशिगत हो तो संतान नहीं होता।

● 1-7-12 भाव में पाप ग्रह शत्रु राशि में हों तो पुत्र होने में दिक्कत होती है ।

●  लग्न में मंगल, अष्टम में शनि, पंचम में सूर्य हो तो यत्न करने पर ही पुत्र प्राप्ति होती है।

●  पंचम में केतु हो और किसी शुभ गृह की दृष्टि न हो तो संतान होने में परेशानी होती है।

●  पति-पत्नी दोनों के जन्मकालीन शनि तुला राशिगत हो तो संतान प्राप्ति में समस्या होती है।

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Monday, May 23, 2016

व्यापार वृद्धि हेतु कुछ विशेष उपाय Some special measures for business growth

हर व्यक्ति की यही चाहत होती है कि उसका अपना व्यापार हो और उसे वो अपने मनमुताबिक उचाईयों तक ले जाने मे सफलता प्राप्त करे।
किन्तु सब कुछ अपने अनुसार नही होता है।व्यवसाय मे निरन्तर उतार-चढाव होता है,कभी-कभी  तो ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है,व्यक्ति अपना धैर्य छोड़ने लगता है।इस उतार-चढाव के कई कारण हो सकते हैं,
यथा-व्यक्ति की अपनी ग्रह स्थिति,व्यवसाय मे नजर लग जाना या किसी की बुरी नजर का प्रभाव् आदि कुछ ऐसे कारण उत्पन्न हो जाते हैं जो व्यक्ति को परेशान कर देते हैं।
अतः ये कुछ ऐसे उपाय हैं जो व्यक्ति और व्यवसाय दोनों को सुरक्षित रखते हुए उसमे आने वाली बाधाओ को दूर करते ह।

**व्यापार का कारक ग्रह बुध होता है अतः     बुध ग्रह को     हमेशा अनुकूल रखने के लिए प्रयत्न करना                     चाहिये।

**गणेश अथर्वशीर्ष का नियमित पाठ।

**कनकधारा स्तोत्र का पाठ।

**नवग्रह गायत्री,सञ्जीवनी, गणेश,लक्ष्मी,     नारायण,       और कुबेर गायत्री का              नियमित प्रयोग             करायें।

**पीताम्बरा प्रयोग करायें।

**आय का कुछ निश्चित प्रतिशत निकाले,     और उसे         जरूरतमंद लोगों मे खर्च करे       या किसी कर्मनिष्ठ          ब्राह्मण को दान करें।

धीरे-धीरे किन्तु निश्चित ही हमारा व्यवसाय उन्नति की ओर अग्रसर होता है।

Friday, May 20, 2016

कैसे जानें ग्रहों का अशुभ प्रभाव अपने जीवन मे How To Learn The Inauspicious Impact Of The Planets In Your Life

ग्रहों का प्रभाव हमारे ऊपर विभिन्न प्रकार से पड़ता है।
कोई भी ग्रह हमारे व्यक्तित्व,संबंध, आदि का कारक होता है, जब हमारे लिए वो ग्रह शुभ होता है तो उस ग्रह से सम्बंधित कारक शुभफल दायक हो जाते हैं।
और जब वो ग्रह नकारात्मक होता है तो उससे सम्बंधित कारकों मे अशुभता आ जाती है।
इस प्रकार हम अपने आसपास के माहौल से जान सकते हैं कि यह शुभ और अशुभ प्रभाव किस ग्रह के कारण है।

अशुभ सूर्य के प्रभाव

व्यक्ति के अंदर अहंकार की भावना बढना,  पैतृक घर में बदलाव होना, घर के मुख्य को परेशानी आना, कानूनी विवादों में फंसना, पिता के कारण या उसकी सम्पति के कारण विवाद होना, पत्नि से विछोह होना,  अधिकारी से विवाद, दांत, बाल, आंख व हृदय में रोग होना, सरकारी नौकरी में अडचन आना आदि।

अशुभ चंद्र के प्रभाव

घर-परिवार के सुखों में कमी आना, मानसिक रोगों से परेशान होना, भय व घबराहट की स्थिति बनी रहना, माता से दूरियां, सर्दी-जुखाम रहना, छाती सम्बंधित रोग, या रोगों का बना रहना, कार्य व धन में अस्थिरता।

अशुभ मंगल के प्रभाव

मन में क्रोध व चिडचिडापन रहना, भाइयों से विरोध होना, रक्त सम्बंधी विकार, मकान या जमीन के कारण परेशान होना, अग्निभय या चोट-खरोच लगना, मशीन इत्यादि से नुकसान होना।

अशुभ बुध के प्रभाव

अल्पबुद्धि होना, बोलने और सुनने में दिक्कत होना, आत्मविश्वास की कमी होना, नपुंसकता, व्यापार में हानि होना, माता से विरोध होना, शिक्षा में बाधायें आना, मित्रों से धोखे मिलना।

अशुभ गुरु के प्रभाव

बडे भाई, गुरुजन से विरोध व अनैतिक मार्ग से हानि होना, अधिकारी से विवाद, अहंकारी होना, धर्म से जुडकर अधर्म करना, पाखंडी, स्त्रियों के विवाह सुख को हीन करना, संतान दोष, अपमान व अपयश होना, मोटापा आना, सूजन व चर्बी के रोग होना।

अशुभ शुक्र के प्रभाव

अशुभ शुक्र स्त्री सुखों से दूर करता हैं, सेक्स रोग, विवाह बाधा, प्रेम में असफलता मिलना, चंचल होना, अपने साथी के साथ धोखा करना, सुखों से हीन होना,

अशुभ शनि के प्रभाव

शनि के कारण जातक झगडालूं, आलसी, दरिद्री, अधिक निद्रा आना, वैराग्य से युक्त, पांव में या नशों से सम्बंधित व स्टोन की दिक्कत आना, उपेक्षाओं का शिकार होना, विवाह बाधायें आना, नपुंसकता आदि होना।

अशुभ राहु के प्रभाव

नशे इत्यादि के प्रति रूचि बढना, गलत कार्यो से जुडना, शेयर मार्किट आदि से हानि होना, घर-गृहस्थी से दूर होना, जेल या कानूनी अपराधों में संलग्न होना, फोडे फुंसी व घृणित रोग होना।

अशुभ केतु के प्रभाव

केतु के प्रभाव राहु मंगल के मिश्रित फल जैसे होते हैं। अत्यधिक क्रोधी, शरीर में अधिक अम्लता होना जिस कारण पेट में जलन होती हैं तथा चेहरे पर दाग धब्बे होते हैं। किसी प्रकार के आप्रेशन से गुजरना पडता हैं।

Monday, May 16, 2016

अक्षय तृतीया (कुछ आसान उपाय)Akshaya Tritiya (some easy steps)

             क्या हैं अक्षय तृतीया


अक्षय तृतीया वैशाख शुक्ल तृतीया को कहा जाता है। वैदिक पंचांग के चार सर्वाधिक शुभ दिनों में से यह एक मानी गई है। ‘अक्षय’ से तात्पर्य है ‘जिसका कभी क्षय ना हो’ अर्थात जो कभी नष्ट नहीं होता। भारत के कुछ क्षेत्रों में अक्षय तृतीया को अखतीज या फिर अक्खा तीज के नाम से भी जाना जाता है।

अक्षय तृतीया क्यों महत्वपूर्ण हैं

जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान करता है, उसे पापों से मुक्ति मिलती है।यदि आप गंगा स्नान नही कर पा रहे तो किसी पवित्र नदी मे भी स्नान कर सकते हो,यदि वह भी सम्भव नही हो तो घर पर नहाने की बाल्टी मे पवित्र नदी का जल मिलाकर नहाये ।

 इस दिन परशुरामजी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है।


शुभ व पूजनीय कार्य इस दिन होते हैं, जिनसे प्राणियों (मनुष्यों) का जीवन धन्य हो जाता है।

 श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि यह तिथि परम पुण्यमय है। इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप, तप, होम, स्वाध्याय, पितृ-तर्पण तथा दान आदि करने वाला महाभाग अक्षय पुण्यफल का भागी होता है।

क्या खरीदे इस दिन

ऐसी मान्यता है कि अक्षय तृतीया के समय खरीदा गया महंगा सामान भविष्य में मुनाफा देता है। तो यदि कोई कारोबारी अपना भंडार घर इस दौरान भरे, तो ऐसा माना जाता है कि भविष्य में उसे उसके इसी भंडार से कई गुना अधिक मुनाफा हासिल होगा।

 अक्षय तृतीया पर सोना खरीदना काफी शुभ माना गया है। सोना या फिर कोई भी महंगी धातु खरीदना अच्छे भाग्य का प्रतीक माना गया है। इसके अलावा जिनका कारोबार है वे भी अपनी फैक्ट्रियों के भंडार घर सामान से भरते हैं।

क्या और किसे दान करे

अक्षय तृतीया को दिया गया दान हमेशा अक्षत याने चिरायु रहता हैं।

अक्षय तृतीया के दिन किसी ब्राह्मण को जल के साथ सुपारी दान करें, आपके द्वारा किया गया यह शुभ दान आने वाले समय में आपको धन-संपत्ति दिलाएगा।


अक्षय तृतीया के दिन यदि महिलाएं कुमकुम दान करें, तो यह दान उन्हें लंबे वैवाहिक जीवन के साथ उनके पति की भी लंबी आयु का फल प्रदान करता है।

चंदन को शास्त्रों में काफी महत्वपूर्ण माना गया है। धार्मिक कार्यों में चंदन का काफी प्रयोग किया जाता है। अक्षय तृतीया के दिन चंदन दान करने से भविष्य में होनी वाली दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है।

अक्षय तृतीया के दिन पान के पत्ते का दान बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। जो भी व्यक्ति इस दिन पान के पत्ते का दान करता है उसे जीवन वह यश एवं गौरव की प्राप्ति होती है। समाज में वह राजा के समान माना जाता है।

अक्षय तृतीया के दिन नारियल का दान अवश्य करें, ऐसा करने से पिछली सात पुश्तों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है।

मक्खन या फिर छाछ का दान भी इस दिन अहम माना गया है। विद्यार्थियों को यह दान अवश्य करना चाहिए, यह शिक्षा प्राप्ति का प्रतीक माना गया है।

अक्षय तृतीया पर चप्पल दान करने का भी महत्व है। ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस दिन चप्पल दान करता है, उसे मृत्यु के पश्चात नर्क नहीं भोगना पड़ता।

बिस्तर या जिस पर भी विश्राम किया जा सके, ऐसी वस्तु का भी दान किया जाता है अक्षय तृतीया के दिन। मान्यतानुसार ऐसा दान भविष्य में खुशहाली लाता है।

अक्षय तृतीया के दिन वस्त्रों का दान अवश्य करें। यह दान लंबी आयु पाने के लिए किया जाता है। लेकिन एक बात का ध्यान रखें, वस्त्र नए ही होने चाहिए, पुराने वस्त्रों का दान अशुभ माना जाता है।

इस दिन देवताओं और पूर्वजों को तिलयुक्त जल अर्पण करने का भी विशेष महत्व है।


अक्षय तृतीया को यदि कोई व्यक्ति वृक्षारोपण करता है अर्थात् वृक्ष लगाता है तो उसको अनन्त गुणा पुण्य फल प्राप्त होता है।

स्थिर लग्न मे करे साधना

अक्षय तृतीया के अवसर पर स्थिर लग्न मै या तो स्वर्ण आदि खरीदना चाहिए, अथवा महालक्ष्मी के महामंत्र “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः” का अधिक से अधिक जाप करना चाहिए।

 कुछ अन्य उपाय :-

● इस दिन समुद्र या गंगा स्नान करना चाहिए।

● प्रातः पंखा, चावल, नमक, घी, शक्कर, साग, इमली, फल तथा वस्त्र का दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा भी देनी चाहिए।

● ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।

●  इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए।

● आज के दिन नवीन वस्त्र, शस्त्र, आभूषणादि बनवाना या धारण करना चाहिए।

● नवीन स्थान, संस्था, समाज आदि की स्थापना या उद्घाटन भी आज ही करना चाहिए।

"जब तक हम अपनी समस्याओं
एंव कठिनाइयों की वजह दूसरों
को मानते है, तब तक हम अपनी
 समस्याओं एंव कठिनाइयों को
मिटा नहीं सकते।

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शनिदोष निवारण Saturnal cessation

शनि दोष निवारण के उपाय  (भाव/लग्न अनुसार)

 *प्रथम भाव में शनि हो तो कष्ट निवारण के उपाय  :-

1. अपने ललाट पर प्रतिदिन दूध अथवा दही का तिलक लगाए।
2.  शनिवार केदिन न तो तेल लगाए और न ही तेल खाए।
3. तांबे के बने हुए चार साँप शनिवार के दिन नदी में प्रवाहित करे।


*दूसरे भाव में शनि हो तो कष्ट निवारण के उपाय:-

1. शराब का त्याग करे और मांसाहार भी न करे।
2. साँपो को दूध पिलाए कभी भी साँपो को परेशान न करे , न ही मारे।
3. दो रंग वाली गाय / भैस न पालें।
4. अपने ललाट पर दूध / दही का तिलक करे।
5. रोज शनिवार को कडवे तेल का दान करें।
6. शनिवार के दिन किसी तालाब, नदी में मछलियों को आटा डाले।
7. सोते समय दूध का सेवन न करें।
8. शनिवार के दिन सिर पर तेल न लगाएं।

*तीसरे भाव में शनि हो तो कष्ट निवारण के उपाय:-

1. आपके घर का मुख्य दरवाजा यदि दक्षिण दिशा की ओर हो तो उसे बंद करवा दे या एक और दरवाजा लगवाये।
2. रोज शनि चालीसा पढ़ें तथा दूसरों को भी शनि चालीसा भेंट करें।
3. शराब का त्याग करे और मांसाहार भी न करे।
4. गले में शनि यंत्र धारण करें।
5. मकान के आखिर में एक अंधेरा कमरा बनवाएँ।
6. अपने घर पर एक काला कुत्ता पाले तथा उस का ध्यान रखें।
7. घर क अंदर कभी हैंडपम्प न लगवाएँ।

*चतुर्थ भाव में शनि हो तो कष्ट निवारण के उपाय:-

1. रात में दूध न पिये।
2. पराई स्त्री से अवैध संबंध कदापि न बनाएँ।
3. कौवों को दाना खिलाएँ।
4. सर्प को दूध पिलाएँ।
5. काली भैस पालें।
6. कच्चा दूध शनिवार दिन कुएं में डालें।
7. एक बोतल शराब शनिवार के दिन बहती नदी में प्रवाहित करें

*पंचम भाव में शनि हो तो कष्ट निवारण के उपाय:-

1. पुत्र के जन्मदिन पर नमकीन वस्तुएं बांटनी चाहिए, मिठाई आदि नहीं।
2. माँस और शराब का सेवन न करें।
3. काला कुत्ता पालें और उसका पूरा ध्यान रखें।
4. शनि यंत्र धारण करें।
5. शनिदेव की पुजा करें।
6. शनिवार के दिन अपने भार के दसवें हिस्से के बराबर वजन करके, बादाम नदी में प्रवाहित करने का कार्य करें।

*छठवे भाव में शनि हो तो कष्ट निवारण के उपाय:-

1. चमड़े के जूते , बैग , अटैची आदि काप्रयोग न करें।
2. शनिवार का व्रत करें।
3. चार नारियल बहते पानी में प्रवाहित करें। ध्यान रहे, गंदे नाले मे नहीं करें, परिणाम बिल्कुल उल्टा होगा।
4. हर शनिवार के दिन काली गाय को घी से चुपड़ी हुई रोटी नियमित रूप से खिलाएँ।
5. शनि यंत्र धारण करें।

*सप्तम भाव में शनि हो तो कष्ट निवारण के उपाय :-

1. पराई स्त्री से अवैध संबंध कदापि न बनाएँ।
2. हर शनिवार के दिन काली गाय को घी से चुपड़ी हुई रोटी नियमितरूप से खिलाएँ।
3. शनि यंत्र धारण करें।
4. मिट्टी के पात्र में शहद भरकर खेत में मिट्टी के नीचे दबाएँ।
खेत की जगह बगीचे में भी दबा सकते हैं।
5. अपने हाथ में घोड़े की नाल का शनि छल्ला धारण करें।

*अष्टम भाव में शनि हो तो कष्ट निवारण के उपाय :-

1. गले में चाँदी की चेन धारण करें।
2. शराब का त्याग करे और मांसाहार भी न करे।
3. शनिवार के दिन आठ किलो उड़द बहती नदी में प्रवाहित करें। उड़द काले कपड़े में बांध कर ले जाएँ और बंधन खोल कर ही प्रबहित करें।
4. सोमवार के दिन चावल का दान करना आपके लिए उत्तम हैं।
5. काला कुत्ता पालें और उसका पूरा ध्यान रखें।

*नवम भाव में शनि हो तो कष्ट निवारण के उपाय :-

1. पीले रंग का रुमाल सदैव अपने पास रखें।
2. साबुत मूंग मिट्टी के बर्तन में भरकर नदी में प्रवाहित करें।
3. साव 6 रत्ती का पुखराज गुरुवार को धारण करें।
4. कच्चा दूध शनिवार दिन कुएं में डालें।
5. हर शनिवार के दिन काली गाय को घी से चुपड़ी हुई रोटी नियमितरूप से खिलाएँ।
6. शनिवार के दिन किसी तालाब, नदी में मछलियों को आटा डाले।

*दशम भाव में शनि हो तो कष्ट निवारण के उपाय:-

1. पीले रंग का रुमाल सदैव अपने पास रखें।
2. आप अपने कमरे के पर्दे , बिस्तर का कवर , दीवारों का रंग आदि पीला रंग की करवाए यह आप के लिए उत्तम रहेगा।
3. पीले लड्डू गुरुवार के दिन बाँटे।
4. आपने नाम से मकान न बनवाएँ।
5. अपने ललाट पर प्रतिदिन दूध अथवा दही का तिलक लगाए।
6. शनि यंत्र धारण करें।
7. जब भी आपको समय मिले शनि दोष निवारण मंत्र का जाप करे।

*एकादश भाव में शनि हो तो कष्ट निवारण के उपाय :-

1. शराब और माँस से दूर रहें।
2. मित्र के वेश मे छुपे शत्रुओ से सावधान रहें।
3. सूर्योदय से पूर्व शराब और कड़वा तेल मुख्य दरवाजे के पास भूमि पर गिराएँ।
4. परस्त्री गमन न करें।
5. शनि यंत्र धारण करें।
6. कच्चा दूध शनिवार के दिन कुएं में डालें।
7. कौवों को दाना खिलाएँ।

*द्वादश भाव में शनि हो तो कष्ट निवारण के उपाय:-

1. जातक झूठ न बोले।
2. शराब और माँस से दूर रहें।
3. चार सूखे नारियल बहते पानी में प्रवाहित करें।
4. शनि यंत्र धारण करें।
5. शनिवार के दिन काले कुत्ते ओर गाय को रोटी खिलाएँ।
6. शनिवार को कडवे तेल , काले उड़द का दान करे।
7. सर्प को दूध पिलाएँ।

Thursday, May 5, 2016

अक्षय तृतीया पर करें मातंगी महाविद्या साधना Matangi mahahvidya Sadhana on Akshaya Tritiya

अक्षय तृतीया पर करें मातंगी महाविद्या साधना


भगवती मातंगी दश महाविद्या मे आती हैं।इनकी साधना अत्यंत सौभाग्यप्रद मानी जाती है।
मातंगी महाविद्या दस महाविद्याओं में श्री कुल के अंतर्गत मानी जाने वाले महाविद्या हैं ,इन्हें सरस्वती का रूप भी माना जाता है ।
इनकी साधाना से बुद्धि -विवेक की प्राप्ति ,पांडित्य ,शास्त्र का ज्ञान ,गूढ़ विद्याओं का ज्ञान ,ललित और कलाओं का ज्ञान ,वाक् सिद्धि ,वशीकरण सम्मोहन की शक्ति प्राप्त होती है ।
 इस साधना के बाद जीवन का कोई क्षेत्र अधूरा और शेष रहता ही नहीं है. क्योकि बुद्धि और वाणी के विकास से सबकुछ अनुकूल हो जाता है ।
मातंगी साधना कि सिद्धि पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास पर आधारित है।
अक्षय तृतीया के दिन ''मातंगी जयंती'' होती है और वैशाख पूर्णिमा ''मातंगी सिद्धि दिवस'' होता है.
इन 12 दिनों मे आप चाहे जितना मंत्र जाप कर सकते है। अगर ऐसी कोई साधना आप कर रहे है जिसमे सिद्धि नहीं मिल रही है या फिर सफलता नहीं मिल रही है,तो इन 12 दिनों मे आपकी मनचाही साधना मे सिद्धि प्राप्ति कि इच्छा कीजिये और मातंगी साधना संपन्न कीजिये.सफलता आपकी दासी बन जायेगी।
विनियोग :-
अस्य मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति हृषीविराट छंद : मातंगी देवता ह्रीं बीजं हूं शक्तिः क्लीं कीलकं सर्वाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।।
ध्यान:-
श्यामांगी शशिशेखरां त्रिनयनां वेदैः करैविर्भ्रतीं ,
पाषं खेटमथामकुशं दृध्मसिं नाशाय भक्त द्विशाम ।
रत्नालंकरण ह्रीं प्रभोज्ज्वलतनुं भास्वत्किरीटाम् शुभां ;
मातंगी मनसा स्मरामि सदयां सर्वार्थसिद्धि प्रदाम ।।
मंत्र :-
"ओम ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट स्वाहा "
इस साधना मे माँ मातंगी का चित्र,यंत्र ,और लाल मूंगा माला का महत्व बताया गया है परन्तु सामग्री उपलब्ध ना हो तो किसी ताँबे की प्लेट मे स्वास्तिक बनाये और उसपे एक सुपारी स्थापित कर दे और उसे ही यंत्र माने,आपके पास मातंगी का चित्र ना हो तो आप '' माताजी ''को ही मातंगी स्वरुप मे पूजन करे,माताजी तो स्वयं ही '' जगदम्बा '' है,और माला कि विषय मे
स्फटिक,लाल हकिक,रुद्राक्ष माला का उपयोग हो सकता है ।
साधना दिखने मे ही साधारण हो सकती है परन्तु बहुत तीव्र है ।कम से कम 11 माला जप आवश्यक है.और कोई 1250 मालाये कर ले तो अतिउत्तम।
आज तक इस साधना मे किसी को असफलता नहीं मिली है।

 यद्यपि यह सौम्य महाविद्या की साधना है और कोई दुष्प्रभाव नहीं उत्पन्न करती किन्तु है तो तंत्र साधना ही और प्रकृति की सर्वोच्च शक्ति महाविद्या की साधना है।अतः किसी योग्य महाविद्या के सिद्ध साधक से मंत्र प्राप्त करना ,उच्चारण समझना ,और विधियों की जानकारी लेना अधिक उपयुक्त होगा जिससे आपको पूर्ण सफलता मिले और आप असफल न हों ।महाविद्या साधना ब्रह्माण्ड की सर्वोच्च साधना होती है अतः इसके लिए योग्य गुरु के मार्गदर्शन में ही साधना करें ,हमारा उद्देश्य उपयुक्त समय और महाविद्या के साधना की सामान्य जानकारी देना मात्र है ।

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Wednesday, May 4, 2016

चौघड़िया मुहूर्त Chaughadiya Muhurta

 दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त Mantra theory for suffering peace

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त  Mantra theory for suffering peace संसार की समस्त वस्तुयें अनादि प्रकृति का ही रूप है,और वह...