Wednesday, January 10, 2024

ग्रहशांति grah shanti

ग्रहशांति एक विलक्षण प्रयोग




हमारे शास्त्रों में यद्यपि ग्रह शान्ति के अनेकों उपाय बताये गये हैं।जिनमे मुख्य रूप से जप-तप-दान-यन्त्र-स्नान-रत्न-रुद्राक्ष-वनस्पतियों आदि को धारण कराया जाता है।

-जप और तप दोनों ही काफी कठिन और खर्चीले उपाय हैं ग्रहों की विशेष स्थिति पर ही इनका उपयोग होता है।
-दान और टोटके अधिकतर ग्रहों के गोचर के लिए किए जाते हैं।
-रत्न-रुद्राक्ष ग्रहों को बल प्रदान कर उन्हें अनुकूल बनाते हैं।
-ग्रहों से संबंधित औषधियों का प्रयोग जल में डालकर स्नान करने का विधान है।यह भी गोचर को प्रभावित करता है।

-रत्न और रुद्राक्ष की तरह ग्रहों की कुछ वनस्पति हम धारण कर सकते हैं जिनका काफी अच्छा प्रभाव पड़ता है लेकिन इनकी आयु कम होती है और इन्हें बदलना पड़ता है।

-किसी विशेष समय में ग्रहयन्त्र का निर्माण कर उसका नित्यपूजन करना भी ग्रह सम्बन्धी शुभता को देनेवाला है।किन्तु बदलते परिवेश/दिनचर्या में सबके लिए ऐसा कर पाना सम्भव नहीं होता है।
अतः आज हम आपके लिए ग्रहों की शान्ति के लिए और उनकी अनुकूलता प्राप्ति के लिए अत्यन्त साधारण और विलक्षण प्रयोग लेकर आए हैं-
यद्यपि इसमें मेरा कुछ भी नही है शास्त्र और गुरुजनों की कृपा से प्राप्त यह प्रयोग करके न केवल आप अपने ग्रहों को अनुकूल कर पाएंगे बल्कि उनकी शुभता/कृपा भी प्राप्त कर सकेंगे।
यह अत्यंत दुर्लभ प्रयोग है जिसका उपयोग हम एक यन्त्र के माध्यम से करते हैं।
सबसे पहले हमें यह ज्ञात करना होगा कि जन्मपत्रिका में किस ग्रह को अनुकूल बनाना है।
दूसरे तीसरे सातवें आठवें भाव के स्वामी ग्रह मारक क्षमता से युक्त होते हैं।इसी प्रकार छठे, ग्यारहवें, और बारहवें भाव के स्वामी भी अशुभ फल देने वाले माने जाते हैं।अतः इन्ही भावेशों को अनुकूल/शान्त करने की आवश्यकता होती है।
किन्तु हम इस यन्त्र का प्रयोग सभी नव ग्रहों के लिए कर सकते हैं चाहे वह शुभ फल देने वाले हैं या अशुभ फल देने वाले।
इस प्रयोग से शुभ फल देने वाले ग्रहों की शुभता में वृद्धि होती है और अशुभ फल देने वाले ग्रहों की अशुभता कम होकर वह हमारे लिए अनुकूलता प्रदान करते हैं।

नवग्रह शान्ति यन्त्र

नवग्रह शान्ति यन्त्र का प्रयोग कैसे करें?

रवि के प्रतिकूल होने पर एक से
सोम/चन्द्रमा के प्रतिकूल होने पर दो से
मंगल के प्रतिकूल होने पर तीन से
बुध के प्रतिकूल होने पर चार से
बृहस्पति के प्रतिकूल होने पर पांच से
शुक्र के प्रतिकूल होने पर छह से
शनि के प्रतिकूल होने पर सात से
राहु के प्रतिकूल होने पर आठ से और
केतु के प्रतिकूल होने पर नव से
आरम्भ करके क्रमानुसार यन्त्र को लिखना चाहिए।
'ह्रीं आदित्याय नमः'- इसी प्रकार सबके साथ "ह्रींकार" को लिखना चाहिए।

पीपल के पत्ते पर या भोजपत्र पर लिखकर यन्त्र को पीपल की जड़ में रख देना चाहिए। इस प्रकार 28 दिन तक करने से सभी ग्रह शान्त/प्रसन्न हो जाते हैं और पीड़ा नहीं देते हैं।
यन्त्र क्रम
816  357   492
                 





Related topics-चाँदी के कुछ अद्भुत प्रयोग Some amazing uses of silver

स्मार्त और वैष्णव smart aur vaishnav

स्मार्त और वैष्णव

आज हम जानेंगें स्मार्त और वैष्णवमत के बारे में-


● स्मार्त और वैष्णव में क्या अंतर है?
● आप स्मार्त हैं या वैष्णव?
● स्मार्त और वैष्णव का भेद।


जब भी किसी त्यौहार की बात आती है तो स्मार्त और वैष्णव शब्द भी आता है।क्योंकि हमारे पञ्चाङ्ग में लगभग सभी व्रत और त्यौहारों का निर्णय स्मार्त और वैष्णव के आधार पर दिया जाता है इस प्रकार अधिकतर त्यौहार दो दिन के हो जाते हैं।


लोगों के मन में यह प्रश्न आता है कि स्मार्त और वैष्णव में क्या अंतर है तो आज हम आपको बताएंगे कि स्मार्त किसे कहते हैं और वैष्णव किसे कहते हैं?


● सामान्य सांसारिक नियमों को मानकर गृहस्थ आश्रम का पालन करने वाले अर्थात् सभी गृहस्थी जन स्मार्त कहे जातें हैं।श्रुति-स्मृतियों में विश्वास,वेद पुराण आदि का पठन-पाठन एवं श्रवण करने वाले लोग, पांच देवों(सूर्य,गणेश, शिव, विष्णु, दुर्गा) की उपासना करने वाले अर्थात् पञ्चदेवोपासक,भगवान शिव का पूजन करने वाले सभी स्मार्त कहे जाते हैं।


गृहस्थी स्त्रियों को हमेशा स्मार्तमत के अनुसार व्रत त्यौहार मनाने चाहिए।


● वैष्णव उन्हें कहते हैं जो भगवान विष्णु के उपासक हैं।अपने माथे पर वैष्णव संप्रदाय के अनुसार तिलक धारण करते हैं, भुजाओं पर जिन्होंने शंख-चक्र आदि चिन्ह तप्त मुद्रा से अंकित करवा रखे हैं,अथवा जिन्होंने वैष्णव धर्मगुरु से दीक्षा ली हुई होती है और उनके द्वारा बताये गए नियमों का कठोरता से पालन करते हैं।

साधु-सन्यासी, योगी, तथा विधवा स्त्रियां भी वैष्णव मत के अनुसार त्यौहार व्रत आदि किया करते हैं।



Tuesday, January 2, 2024

खरमास kharmas

खरमास

सनातन धर्म में खरमास का विशेष महत्व है। इसमें किसी भी प्रकार के शुभ और मांगलिक कार्यों का अभाव हो जाता है। खरमास के प्रारंभ होते ही हर प्रकार के मांगलिक कार्य भी स्थगित कर दिए जाते हैं।

आइए आज हम जानते हैं क्या होता खरमास और क्या है इसका महत्व....

सूर्य के धनु या फिर मीन राशि में गोचर करने की अवधि खरमास कहलाती है।
कुछ लोग खरमास और मलमास को एक ही समझते हैं, ऐसा नहीं है।
खरमास के दौरान नियमों का पालन करना जरूरी होती है।इस दौरान कुछ चीजों का उल्लेख किया गया है कि क्या करें और क्या न करें?

खरमास में क्या करें-

● खरमास के दिनों में भगवान भास्कर की पूजा और उपासना करने से साधक को सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

● कहा गया है कि खरमास में भगवान विष्णु की पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है। साथ ही घर में यश-वैभव का आगमन होता है।

● धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि इन दिनों में गौमाता, गुरुदेव,सन्तजनों की सेवा और पुराणों का श्रवण करना चाहिए इससे शुभ फल की प्राप्ति होती है।

● खरमास के दौरान नियमित रूप से भगवान भास्कर को लाल रंग युक्त जल का अर्ध्य दें। साथ ही, सूर्य मंत्र का जाप करना लाभदायी है।

● खरमास में गरीबों और जरूरतमंदों को सामर्थ्य अनुसार दान अवश्य करें।

खरमास में क्या न करें-

● इस समयकाल में मांगलिक कार्य नही होते हैं,इसलिए इन दिनों में कोई भी शुभ कार्य न करें।

● तामसिक भोजन से बचें।

● किसी से वाद-विवाद न करें।

● खरमास में बेटी या बहू की विदाई नहीं करनी चाहिए।

●कारोबार/व्यवसाय का श्रीगणेश न करें।

Releted topic-चाँदी के कुछ अद्भुत प्रयोग Some amazing uses of silver

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त Mantra theory for suffering peace

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त  Mantra theory for suffering peace संसार की समस्त वस्तुयें अनादि प्रकृति का ही रूप है,और वह...