Tuesday, April 27, 2021

मस्तक पर तिलक का रहस्य Tilak's secret on the head

 मस्तक पर तिलक का रहस्य
Tilak's secret on the head


भारतीय संस्कृति के दैनिक आचार में मस्तक पर तिलक होना संस्कृति का अभिन्न अंग है।

शास्त्रों के अनुसार तिलक हीन व्यक्ति के द्वारा कृत नित्य नैमित्तिक सभी कर्म व्यर्थ होते हैं।


"यज्ञो दानं तपो होमः स्वाध्याय पितृ तर्पणम्।

व्यर्थ भवति तत्सर्वं तिलकेन विनाशकृतम्।।


परंतु आज के धार्मिक व्यक्तियों के भाल का अवलोकन करने पर तिलक अनेको भाति का दिखता है तब तिलक के शास्त्रीय रूप विषयक जिज्ञासा स्वाभाविक है।

तिलक वास्तव में अपनी उपास्य संप्रदाय /परंपरा पर है। हमारे वैदिक उपासना की मुख्य पांच परंपरा है, जिनको पंचदेव उपासना कहते हैं। यथा गणेश, सूर्य, शिव, शक्ति और विष्णु यही नित्य उपास्य हैं, बाकी के अन्य सभी देव इनके ही अन्तर्भूत हैं।

इन पांच देवों के उपासकों को वैष्णव, शैव, गाणपत्य, शाक्त, सौरि संज्ञा प्राप्त है।

यहां वैष्णव को ऊर्ध्वपुण्ड्र, शैवों को त्रिपुण्ड्र, गाणपत्य को अर्धचन्द्र शाक्तों  को वर्तुल और सौरों को त्रिशूलाक तिलक धारण करना चाहिए।


"वैष्णवस्योर्ध्वपुण्ड्रस्यात्त्रिपुण्ड्र: शिव सेवितुः।

अर्धचंद्रः गणेशस्य देवीभक्तस्य वर्तुलम्।।

नारायण परोयस्तु चन्दनेन त्रिशूलकम्।।

(पुरश्चर्यार्णव तरंग)

साथ ही वर्ण भेद से भी तिलक निरूपित हैं-

ब्राह्मण आदि वर्णक्रमानुसार ऊर्ध्वपुण्ड्र-त्रिपुण्ड्र-अर्धचन्द्र-वर्तुलाकृति तिलक धारण करें।

"ब्राह्मणस्योर्ध्वपुण्ड्रस्तु क्षत्रियस्यत्रिपुण्ड्रकम्।

अर्धचन्द्रं तु वैश्यस्य शूद्राणां वर्तुलाकृतिः।।"(पुरश्चर्यार्णवतरंग)


ऊर्ध्वपुण्ड्र:-तिलक स्वरूप यह आकृति वैष्णव तिलक है।इसे भगवान का चरण चिन्ह मानते हैं।वैष्णवों में सम्प्रदाय भेद से इसकी कई आकृतियां हैं।

यह मस्तक सहित शरीर के 12 स्थानों पर लगाते हैं।यह गोपीचन्दन, तुलसी, अश्वत्थ, तीर्थरज आदि से धारण करते हैं।चन्दन के अभाव में मृतिका, कुमकुम ग्राह्य है।


त्रिपुण्ड्र:-यह शैव तिलक है, यह भी अनेक प्रकार का दिखता है।यह मस्तक सहित 5/7 स्थानों पर धारण करते हैं।यह यज्ञ भस्म से लगाया जाता है।


वर्तुल:-गोल बिन्दी यह शक्ति तिलक है।इसे मस्तक पर कुंकुंम से धारण करते हैं।


अर्धचन्द्र:-यह गाणपत्य तिलक है।मस्तक पर सिन्दूर कुंकुंम आदि से धारण किया जाता है।


त्रिशूल:-यह सौरि तिलक है।यह मस्तक पर चन्दन से धारण करते हैं।

सभी तिलक निर्दिष्ट वस्तु के अभाव में चन्दन से धारण कर सकते हैं।और चन्दन के अभाव में जल ग्राह्य है तथा जल के अभाव में अंगुली से सूखा तिलक आकृति द्वारा धारण करना आवश्यक है।

वर्तमान में वैष्णव आदि सभी तिलकों के मध्य में बिन्दी आदि भी दृष्ट हैं।

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धारणा/एकाग्रता (Concentration)

Monday, April 19, 2021

तीन गुण और यक्ष प्रश्न

 तीन गुण और यक्ष प्रश्न


अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करना बहुत कठिन क्यों लगता है?

क्यों हम अपनी इच्छाओं से उपर नहीं उठ पाते? क्यों छोटी छोटी बातें हम अवसाद से त्रस्त कर देती हैं?

जीवन में हम अपने अलावा चाहकर भी क्यों नहीं सोच पाते?

यौन इच्छाओं को नियंत्रित करना इतना कठिन क्यों है?


यह पूरी पृथ्वी तीन गुणों से घिरी हुई है सतोगुण रजोगुण और तमोगुण अगर विज्ञान की बात करो तो विज्ञान में हमें बताया है कि प्रोटोन न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन।


प्रोटोन मतलब सतोगुण -positive


न्यूट्रॉन मतलब रजोगुण -neutral


इलेक्ट्रॉन मतलब तमोगुण-negative


हर किसी में है उसके पुराने जन्मों का कुछ ना कुछ गुण होता है आप उसको बोल सकते हो पॉजिटिव ,नेगेटिव या इक्वल, इसी कारण देखा जाता है कि कोई बचपन से ही बहुत अच्छे स्वभाव का होता है क्योंकि उसमें पॉजिटिव यानी कि सतोगुण होता है


दूसरे नंबर पर आता है रजोगुण और ज्यादातर लोग इसी गुण के अंदर आते हैं जिससे कभी तो हम बहुत अच्छे तरीके से व्यवहार करते हैं यानी कि अध्यात्म की तरफ हमारा मूड बहुत अच्छा लगता है कभी-कभी हम एकदम गंदे काम करने लग जाते हैं।


तीसरा है तमोगुण जितने भी जन्मजात आतंकवादी लड़ाई-झगड़े करने वाले देखे जाते है इनका बचपन से ही लड़ाई झगड़ा मारपीट लूट आदि में ध्यान जाता है यानी कि उसके पिछले जन्म का जो भी हिसाब किताब है उसके कारण उसको तमोगुण बहुत अधिक मिले हुए हैं


और फिर आता है हमारे आसपास के लोग मान लो आप में सतोगुण यानी कि पॉजिटिव में बहुत ज्यादा है पर आपके आसपास जो लोग हैं उनमें नेगेटिव है तो आप भी न्यूट्रल की तरफ हो चले क्योंकि आपका पॉजिटिव और किसी और का नेगेटिव है। तो ऐसे में अगर आप अपने दिमाग को ध्यान से देखोगे तो आपको लगेगा कि मन में कुछ अजीब से ख्याल आ रहे हैं अभी तो मैं बहुत अच्छा था मुझे बहुत अच्छी फीलिंग आ रही थी पर अचानक से यह पता नहीं क्या हो रहा है तो उस समय आपका क्षेत्र (एरिया)खराब है।


अब इसके बाद आता आहार यानी भोजन यह सबसे बड़ा  कारण है कि हमको मतलब कामवासना या ना केवल कामवासना बल्कि हर किसी वासना की तरफ भागे चले जाते हैं क्योंकि हमारा भोजन ठीक नहीं है हर एक भोजन जैसे अगर किसी को मार काट दे तो उसमें तमोगुण आ जाएगा ।


अगर आप किसी का लूट के ले कर आ रहे हो या फिर किसी को ठग के आप कमा रहे हो तो उसमें रजोगुण होता है।


और आप दिन भर मेहनत से कमा कर खा रहे हो, तो उसमें आपका सतोगुण आएगा और तभी बोला जाता है कि इमानदारी से कमाओ और अच्छा खाना खाओ, ताकि आपको अच्छी नींद आ सके।जैसे-जैसे हम अच्छे काम दान पुण्य या अध्यात्म की तरफ चलते रहते हैं तो यह सतोगुण बढ़ता रहता है और अगर बहुत समय तक हम सतोगुण के दायरे में रहे, तो उसके बाद वह इन गुणों के चक्र से बाहर निकल जाता इसी को मोक्ष कहा गया है जो कबीरदास तुलसीदास नानक जी की मस्ती का यही कारण है कि वे गुणों से परे चले गए।


कबीर जी के भजन हैं उससे आप कबीर बाबा की मस्ती समझ सकते हो, -- जो सुख पायो राम भजन में सो सुख नाही अमीरी में ,मन लागो मेरो यार फकीरी में। या

तुम बोलो कागद का लेखा मै बोलूं आखों का देखा।


बहुत समय बाद यह बात पता चलती है कि "जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन" , यह बात ऐसे ही नहीं कही  गई है। अनुभव के बाद ही बात समझ आती है।


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Sunday, April 18, 2021

सफल व्यापारी और ज्योतिषSuccessful Businessman and Astrology

 सफल व्यापारी और ज्योतिष

Successful Businessman and Astrology 

हर व्यक्ति का अपना व्यवसाय शुरू करने का एक सपना होता है। उनमें कुछ तो आगे बढ़ जाते हैं और कुछ पीछे रह जाते हैं।आज हम ज्योतिष के माध्यम से जानेंगे कि सफतापूर्वक व्यवसाय में कौन कौन ग्रह जिम्मेदार हैं।

जाने कौन-कौन से ग्रह बनाते हैं आपको बिजनेस मैन?

हर व्यक्ति हर काम नहीं कर सकता है। सबकी अलग-अलग कार्यक्षमता व मानसिक स्थिति होती है। उसी के अनुरूप अपना कार्यक्षेत्र चुनना चाहिए। कुछ लोगों को जॉब करना अच्छा लगता है तो कुछ को जॉब देना अच्छा लगता है। लोगों को आप जॉब तभी दे सकते जब आप बिजनेस करेंगे और बिजनेस में आप सफल तभी हो सकते है जब कुण्डली में बिजनेस से सम्बन्धित ग्रह, भाव व योग प्रबल हो।
दशम भाव व दशमेश का सम्बन्ध आपकी जीविका से होता है। द्वितीय, द्वतीयेश व एकादश भाव, एकादशेश का भी कुण्डली में मजबूत होना आवश्यक होता है। क्योंकि द्वतीय व द्वतीयेश का सम्बन्ध धन से होता है एंव एकादशेश व एकादश भाव का सम्बन्ध लाभ से होता है। व्यापार में धन व लाभ का विशेष महत्व है। धन नहीं होगा तो बिजनेस कर पाना मुश्किल है और धन अच्छे से नहीं आयेगा तो बिजनेस करने से फायदा क्या।

यदि एकादश भाव व एकादशेश बलवान नहीं है तो व्यापार में लाभ नहीं होगा। वैसे मूलतः व्यापार के लिए बुध व बृहस्पति ग्रह का शुभ होना अच्छा माना जाता है लेकिन व्यापार किस चीज से सम्बन्धित है। इसके लिए प्रत्येक ग्रह की अलग-अलग क्षेत्र में विशेष भूमिका है।

1-यदि आप राजनीति, चिकित्सा क्षेत्र, विद्युत विभाग, होटल मैनेजमेन्ट, रेलवे विभाग, आभूषण खरीदना-बेचना, रत्न बेचना, विद्युत उपकरण, मेडिकल स्टोर, जनरल स्टोर, कपड़े का कार्य, वाहनों का क्रय-विक्रय, पुस्तक भण्डार, अनाजों का खरीदना-बेचना आदि इस प्रकार के व्यवसाय करने के लिए जन्मपत्री में सूर्य ग्रह शुभ व बलवान आवश्यक है।

2-यदि आप बागवानी का कार्य, कृषि कार्य, तरल पदार्थो का व्यापार, आयुर्वेदिक दवाओं का व्यापार, बिजली की दुकान, मोटर पार्टस पेट्रोल पम्प, कोल्ड्र डिंक, पानी, संगीत एकाडिमी, होटल, रेस्टोरेन्ट, मिटटी का कार्य, ठेकेदारी, किसी भी क्षेत्र में दलाली, कैरोािन आयल, प्रकाशन,दूध की डेरी आदि व्यवसाय करना चाहते है तो कुण्डली में चन्द्रमा का बलवान होना बहुत जरूरी है।

3-अगर आप कम्यूटर के क्षेत्र में साफ्टवेयर, हार्डवेयर, इलेक्ट्रानिक, भूमि, मेडिकल, पेट्रोल पम्प, सर्जरी का सामान, कोर्ट-कचहरी, ठेकेदारी, मेडिकल की दुकान, धर्म उपदेशक, औषधि निर्माण कारखाना, आदि किसी प्रकार का बिजनेस करना चाहते है तो उसके लिए मंगल ग्रह का मजबूत होना जरूरी है और साथ में मंगल का दशम, दशमेश व लाभ भाव से सम्बन्ध होना आवश्यक है।

4- पर्यटन, टेलीफोन, तम्बाकू, पान मसाला, कत्था, किमाम, पुस्तक के थोक विक्रेता, दूर संचार विभाग की ठेकेदारी, रेलवे के पार्टो का कारखाना, चूडि़यों का व्यापार, कपड़े का व्यापार, हरी वस्तुओं का व्यापार, मार्केटिंग का बिजनेस तथा फर्नीचर आदि का व्यवसाय आपके लिए लाभप्रद रहेगा। इसके लिए बुध ग्रह का शुभ व ताकतवर होना बहुत जरूरी है तभी आप सफल हो पायेंगे।

5-यदि आप सम्पादन कार्य, थोक विक्रेता, पूजन भण्डार, पान की दुकान, मिठाई की दुकान, इत्र का कार्य, फिल्म मेकर, भूमि का क्रय व विक्रय, आभूषण के विक्रेता, पीली वस्तुओं का व्यापार, वक्ता, नेता, शिक्षा और शेयर आदि का व्यवसाय करना चाहते है तो गुरू ग्रह का कुण्डली में मजबूत होना जरूरी है।

6- अगर आप रेस्टोरेन्ट, सौन्दर्य प्रसाधन, शिल्प कार्य, साहित्य, फिल्म विज्ञापन, परिवहन विभाग की ठेकेदारी, वस्त्रों का व्यापार, हीरे का बिजनेस, सफेद वस्तुओं का कार्य, खनिज कार्य, पेन्टिंग, निर्माण कार्य, परिवहन विभाग, पर्यटन विभाग, रेसलिंग, टीवी शो, थियेटर, आदि से सम्बन्धित व्यवसाय करने के लिए शुक्र ग्रह का शुभ व बलवान आवश्यक होता है।

7-यदि आप, ज्योतिष का कार्य, कर्मकाण्ड, लोहे का, वकालत, खनिज विभाग, तकनीकी कार्य, कृषि कार्य, काली वस्तुओं का व्यापार जैसे- तिलहन, काले तिल आदि, ट्रांसपोर्ट का कार्य, मुर्गी पालन, लकड़ी का कार्य, बिजली का कार्य, लोहे का कार्य, शिल्प कला का कार्य, कृषि कार्य, वाहन की ऐजेन्सी, मोटर पाटर््स आदि के व्यवसाय करने के लिए शनि का शुभ और ताकतवर होना अति-आवश्यक है।

नोट-ग्रहों के बलवान होने के साथ-साथ ग्रह किसी पाप भाव में पड़ा न हो, पाप ग्रहों से दृष्ट न हो, अस्त न हो, निर्बल न हो, नीच का न हो। द्वतीयेश, द्वतीय भाव, लाभ भाव, लाभेश, दशमेश व दशम भाव के साथ ग्रह सम्बन्ध होकर शुभ योग का निर्माण कर रहा हो तभी आप एक सफल व्यवसायिक या बिजनेस मैन बन सकते है।

श्रीशिवाष्टोत्तरशतनामावलिःShree Shishvashtottara Shantnamavali:

 श्रीशिवाष्टोत्तरशतनामावलिः 


Shree Shishvashtottara Shantnamavali:

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् । सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ॥ 


ॐ अस्य श्रीशिवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रमन्त्रस्य नारायणऋषिः । अनुष्टुप्छन्दः । श्रीसदाशिवो देवता । गौरी उमा शक्तिः । श्रीसाम्बसदाशिवप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥ 


अथ ध्यानम् । 


शान्ताकारं शिखरिशयनं नीलकण्ठं सुरेशं विश्वधारं स्फटिकसदृशं शुभ्रवर्णं शुभाङ्गम् । गौरीकान्तं त्रितयनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं वन्दे शम्भुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥ 


अथ नामावलिः । 


ॐ शिवाय नमः । ॐ महेश्वराय नमः । ॐ शम्भवे नमः । ॐ पिनाकिने नमः । ॐ शशिशेखराय नमः । ॐ वामदेवाय नमः । ॐ विरूपाक्षाय नमः । ॐ कपर्दिने नमः । ॐ नीललोहिताय नमः । ॐ शङ्कराय नमः । १०


 ॐ शूलपाणिने नमः । ॐ खट्वाङ्गिने नमः । ॐ विष्णुवल्लभाय नमः । ॐ शिपिविष्टाय नमः । ॐ अम्बिकानाथाय नमः । ॐ श्रीकण्ठाय नमः । ॐ भक्तवत्सलाय नमः । ॐ भवाय नमः । ॐ शर्वाय नमः । ॐ त्रिलोकेशाय नमः । २० 


ॐ शितिकण्ठाय नमः । ॐ शिवाप्रियाय नमः । ॐ उग्राय नमः । ॐ कपालिने नमः । ॐ कामारये नमः । ॐ अन्धकासुरसूदनाय नमः । ॐ गङ्गाधराय नमः । ॐ ललाटाक्षाय नमः । ॐ कलिकालाय नमः । ॐ कृपानिधये नमः । ३०


 ॐ भीमाय नमः । ॐ परशुहस्ताय नमः । ॐ मृगपाणये नमः । ॐ जटाधराय नमः । ॐ कैलासवासिने नमः । ॐ कवचिने नमः । ॐ कठोराय नमः । ॐ त्रिपुरान्तकाय नमः । ॐ वृषाङ्गाय नमः । ॐ वृषभारूढाय नमः । ४० 


ॐ भस्मोद्धूलितविग्रहाय नमः । ॐ सामप्रियाय नमः । ॐ स्वरमयाय नमः । ॐ त्रयीमूर्तये नमः । ॐ अनीश्वराय नमः । ॐ सर्वज्ञाय नमः । ॐ परमात्मने नमः । ॐ सोमसूर्याग्निलोचनाय नमः । ॐ हविषे नमः । ॐ यज्ञमयाय नमः । ५० 


ॐ सोमाय नमः । ॐ पञ्चवक्त्राय नमः । ॐ सदाशिवाय नमः । ॐ विश्वेश्वराय नमः । ॐ वीरभद्राय नमः । ॐ गणनाथाय नमः । ॐ प्रजापतये नमः । ॐ हिरण्यरेतसे नमः । ॐ दुर्धर्षाय नमः । ॐ गिरिशाय नमः । ६० 


ॐ अनघाय नमः । ॐ भुजङ्गभूषणाय नमः । ॐ भर्गाय नमः । ॐ गिरिधन्वने नमः । ॐ गिरिप्रियाय नमः । ॐ कृत्तिवाससे नमः । ॐ पुरारातये नमः । ॐ भगवते नमः । ॐ प्रमथाधिपाय नमः । ॐ मृत्युञ्जयाय नमः । ७०


 ॐ सूक्ष्मतनवे नमः । ॐ जगद्व्यापिने नमः । ॐ जगद्गुरुवे नमः । ॐ व्योमकेशाय नमः । ॐ महासेनजनकाय नमः । ॐ चारुविक्रमाय नमः । ॐ रुद्राय नमः । ॐ भूतपतये नमः । ॐ स्थाणवे नमः । ॐ अहिर्बुध्न्याय नमः । ८० 


ॐ दिगम्बराय नमः । ॐ अष्टमूर्तये नमः । ॐ अनेकात्मने नमः । ॐ सात्त्विकाय नमः । ॐ शुद्धविग्रहाय नमः । ॐ शाश्वताय नमः । ॐ खण्डपरशवे नमः । ॐ रजसे नमः । ॐ पाशविमोचनाय नमः । ॐ मृडाय नमः । ९० 


ॐ पशुपतये नमः । ॐ देवाय नमः । ॐ महादेवाय नमः । ॐ अव्ययाय नमः । ॐ हरये नमः । ॐ भगनेत्रभिदे नमः । ॐ अव्यक्ताय नमः । ॐ दक्षाध्वरहराय नमः । ॐ हराय नमः । ॐ पूषादन्तभिदे नमः । १०० 


ॐ अव्यग्राय नमः । ॐ सहस्राक्षाय नमः । ॐ सहस्रपदे नमः । ॐ अपवर्गप्रदाय नमः । ॐ अनन्ताय नमः । ॐ तारकाय नमः । ॐ परमेश्वराय नमः । ॐ त्रिलोचनाय नमः । १०८


 ॥ इति श्रीशिवाष्टोत्तरशतनामावलिः ॥

Friday, April 16, 2021

संस्कृत में गिनती Count in sanskrit

 पुल्लिंग स्त्रीलिंग नपुंसकलिंग

1-एकः, एका, एकम्

2-द्वौ,द्वे, द्वे

3-त्रयः,तिस्त्रः, त्रीणि

4-चत्वारः, चतस्त्रः,चत्वारि

*****************************

विभक्ति, पुल्लिंग, स्त्रीलिंग, नपुंसकलिंग

प्रथमा-एकः-एका-एकम्

द्वितीया-एकम्-एकाम्-एकम्

तृतीया-एकेन-एकया-एकेन

चतुर्थी-एकस्मै-एकस्यै-एकस्मै

********************************


संस्कृत में गिनती Count in sanskrit



1-एकः

2-द्वौ

3-त्रयः

4-चत्वारः

5-पञ्च

6-षट्

7-सप्त

8-अष्ट

9-नव

10-दश

11-एकादश

12-द्वादश

13-त्रयोदश

14-चतुर्दश

15-पञ्चदश

16-षोडश

17-सप्तदश

18-अष्टादश

19-नवदश,एकोनविंशति:

20-विंशतिः

21-एकविंशतिः

22-द्वाविंशतिः

23-त्रयोविंशतिः

24-चतुर्विंशति:

25-पञ्चविंशतिः

26-षड्विंशतिः

27-सप्तवंशतिः

28-अष्टाविंशतिः

29-नवविंशतिः

30-त्रिंशत्

31-एकत्रिंशत्

32-द्वात्रिंशत्

33-त्रयस्त्रिंशत्

34-चतुस्त्रिंशत्

35-पञ्चत्रिंशत्

36-षट्त्रिंशत्

37-सप्तत्रिंशत्

38-अष्टात्रिंशत्

39-नवत्रिंशत्, एकोनचत्वारिंशत्

40-चत्वारिंशत्

41-एकचत्वारिंशत्

42-द्विचत्वारिंशत्

43-त्रयश्चत्वारिंशत्

44-चतुश्चत्वारिंशत्

45-पञ्चचत्वारिंशत्

46-षट्चत्वारिंशत्

47-सप्तचत्वारिंशत्

48-अष्टचत्वारिंशत्

49-नवचत्वारिंशत्,एकोनपञ्चाशत्

50-पञ्चाशत्

51-एकपञ्चाशत्

52-द्विपञ्चाशत्

53-त्रिपञ्चाशत्

54-चतुःपञ्चाशत्

55-पञ्चपञ्चाशत्

56-षट्पञ्चाशत्

57-सप्तपञ्चाशत्

58-अष्टपञ्चाशत्

59-नवपञ्चाशत्,एकोनषष्टि

60-षष्टि:

61-एकषष्टि:

62-द्विषटिः, द्विषष्टि:

63-त्रिषष्टि:

64-चतुष्षष्टि:

65-पञ्चषष्टि:

66-षट्षष्टि:

67-सप्तषटिः

68-अष्टषष्टि:

69-नवषष्टि:

70-सप्ततिः

71-एकसप्ततिः

72-द्विसप्ततिः

73-त्रिसप्ततिः

74-चतुस्सप्ततिः

75-पञ्चसप्ततिः

76-षट्सप्ततिः

77-सप्तसप्ततिः

78-अष्टसप्ततिः

79-नवसप्ततिः,एकोनाशीतिः

80-अशीतिः

81-एकाशीतिः

82-द्वयशीतिः

83-त्र्यशीतिः

84-चतुशीतिः

85-पञ्चाशीतिः

86-षडशीतिः

87-सप्ताशीतिः

88-अष्टाशीतिः

89-नवाशीतिः, एकोननवतिः

90-नवतिः

91-एकनवतिः

92-द्विनवतिः

93-त्रिणवीतिः

94-चतुर्णवतिः

95-पञ्चनवतिः

96-षण्णवतिः

97-सप्तनवतिः

98-अष्टानवतिः

99-नवनवतिः,एकोनशतम्

100-शतम्

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