Monday, July 10, 2023

सफलता के 10 नियम 10 Laws of Success

सफलता का अर्थ  Meaning of Success 

सफलता पाने के लिए हम न जाने क्या क्या उपाय करते रहते हैं।
जीवन में किसी भी क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि प्राप्त करना, पद प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त करना, पारिवारिक और सामाजिक सुख प्राप्त करना, शारीरिक स्वास्थ और मानसिक शांति प्राप्त करना, ज्ञान से समृद्ध होना और बुद्धि से कुशलता प्राप्त करने को सफलता माना जाता हैं।



सफलता के तत्व क्या है?
What are the elements of success?

उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम - यह 6 गुण जिस भी व्यक्ति के पास होते हैं, भगवान भी उसकी मदद करते हैं।
सफलता जिसे हम अपने जीवन के लक्ष्य प्राप्ति के रूप में परिभाषित करते है। सफलता एक चीज है जो जीवन में हम पाना चाहते है।हमें अपने सपने साकार करने के लिए कड़ी मेहनत और अपने समय का सही उपयोग करने की आवश्यकता है।

श्रीमद्देवीभागवत में स्वयं देवी भगवती ने बताए हैं सफलता पाने के ये 10 नियम

साधारणतया मनुष्य को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, इसका वर्णन कई ग्रंथों और शास्त्रों में पाया जाता है। इन बातों को समझ कर, उनका पालन करने पर जीवन को सुखद बनाया जा सकता है। श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में स्वयं देवी भगवती ने 10 नियमों के बारे में बताया है। इन नियमों का पालन हर मनुष्य को अपने जीवन में करना ही चाहिए।
श्रीमद्देवीभागवत महापुराण के अनुसार, ये है वह 10 नियम जिन्हें हर मनुष्य को अपने जीवन में अपनाना चाहिए-
श्लोक-

तपः सन्तोष आस्तिक्यं दानं देवस्य पूजनम्।
सिद्धान्तश्रवणं चैव ह्रीर्मतिश्च जपो हुतम्।।

अर्थ-
तप, संतोष, आस्तिकता, दान, देवपूजन, शास्त्रसिद्धांतों का श्रवण, लज्जा, सद्बुद्धि, जप और हवन- ये दस नियम देवी भगवती द्वारा कहे गए है।


1- तप
तपस्या करने या ध्यान लगाने से मन को शांति मिलती है। मनुष्य को जीवन में कई बातें होती हैं, जिन्हें समझ पाना कभी-कभी मुश्किल हो जाता है। तप करने या ध्यान लगाने से हमारा सारा ध्यान एक जगह केन्द्रित हो जाता है और मन भी शांत हो जाता है। शांत मन से किसी भी समस्या का हल निकाला जा सकता है। साथ ही ध्यान लगाने से कई मानसिक और शारीरिक रोगों का भी नाश होता है।


2- संतोष
मनुष्य के जीवन में कई इच्छाएं होती हैं। हर इच्छा को पूरा कर पाना संभव नहीं होता। ऐसे में मनुष्य को अपने मन में संतोष (संतुष्टि) रखना बहुत जरूरी होता है। असंतोष की वजह से मन में जलन, लालच जैसी भावनाएं जन्म लेने लगती हैं। जिनकी वजह से मनुष्य गलत काम तक करने को तैयार हो जाता है। सुखी जीवन के लिए इन भावनाओं से दूर रहना बहुत आवश्यक होता है। इसलिए मनुष्य हमेशा अपने मन में संतोष रखना चाहिए।


3- आस्तिकता
आस्तिकता का अर्थ होता है- देवी-देवता में विश्वास रखना। मनुष्य को हमेशा ही देवी-देवताओं का स्मरण करते रहना चाहिए। नास्तिक व्यक्ति पशु के समान होता है। ऐसे व्यक्ति के लिए अच्छा-बुरा कुछ नहीं होता। वह बुरे कर्मों को भी बिना किसी भय के करता जाता है। जीवन में सफलता हासिल करने के लिए आस्तिकता की भावना होना बहुत ही जरूरी होता है।


4- दान
हमारे धर्म में दान का बहुत ही महत्व है। दान करने से पुण्य मिलता है। दान करने पर ग्रहों के दोषों का भी नाश होता है। कई बार मनुष्य को उसकी ग्रह दशाओं की वजह से कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। दान देकर या अन्य पुण्य कर्म करके ग्रह दोषों का निवारण किया जा सकता है। मनुष्य को अपने जीवन में हमेशा ही दान कर्म करते रहना चाहिए।


5- देव पूजन
हर मनुष्य की कई कामनाएं होती हैं। अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए कर्मों के साथ-साथ देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना भी की जाती है। मनुष्य अपने हर दुःख में, हर परेशानी में भगवान को याद अवश्य करता है। सुखी जीवन और हमेशा भगवान की कृपा अपने परिवार पर बनाए रखने के लिए पूरी श्रद्धा के साथ भगवान की पूजा करनी चाहिए।


6- शास्त्र सिद्धांतों को सुनना और मानना
कई पुराणों और शास्त्रों में धर्म-ज्ञान संबंधी कई बातें बताई गई हैं। जो बातें न कि सिर्फ उस समय बल्कि आज भी बहुत उपयोगी हैं। अगर उन सिद्धान्तों का जीवन में पालन किया जाए तो किसी भी कठिनाई का सामना आसानी से किया जा सकता है। शास्त्रों में दिए गए सिद्धांतों से सीख के साथ-साथ पुण्य भी प्राप्त होता है। इसलिए, शास्त्रों और पुराणों का अध्यन और श्रवण करना चाहिए।


7- लज्जा
किसी भी मनुष्य में लज्जा (शर्म) होना बहुत जरूरी होता है। बेशर्म मनुष्य भी पशु के समान होता है। जिस मनुष्य के मन में लज्जा का भाव नहीं होता, वह कोई भी दुष्कर्म कर सकता है। जिसकी वजह से कई बार न केवल उसे बल्कि उसके परिवार को भी अपमान का पात्र बनना पड़ सकता है। लज्जा ही मनुष्य को सही और गलत में फर्क करना सिखाती है। मनुष्य को अपने मन में लज्जा का भाव निश्चित ही रखना चाहिए।


8- सदबुद्धि
किसी भी मनुष्य को अच्छा या बुरा उसकी बुद्धि ही बनाती है। अच्छी सोच रखने वाला मनुष्य जीवन में हमेशा ही सफलता पाता है। बुरी सोच रखने वाला मनुष्य कभी उन्नति नहीं कर पाता। मनुष्य की बुद्धि उसके स्वभाव को दर्शाती है। सदबुद्धि वाला मनुष्य धर्म का पालन करने वाला होता है और उसकी बुद्धि कभी गलत कामों की ओर नहीं जाती। अतः हमेशा सदबुद्धि का पालन करना चाहिए।

9- जप
शास्त्रों के अनुसार, जीवन में कई समस्याओं का हल केवल भगवान का नाम जपने से ही पाया जा सकता है। जो मनुष्य पूरी श्रद्धा से भगवान का नाम जपता हो, उस पर भगवान की कृपा हमेशा बनी रहती है। भगवान का भजन-कीर्तन करने से मन को शांति मिलती है और पुण्य की भी प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार, कलियुग में देवी-देवताओं का केवल नाम ले लेने मात्र से ही पापों से मुक्ति मिल जाती है।


10- हवन
किसी भी शुभ काम के मौके पर हवन किया जाता है। हवन करने से घर का वातावरण शुद्ध होता है। कहा जाता है, हवन करने पर हवन में दी गई आहुति का एक भाग सीधे देवी-देवताओं को प्राप्त होता है। उससे घर में देवी-देवताओं की कृपा सदा बनी रहती है। साथ ही वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा भी बढ़ती है।


इस प्रकार हम अपने कर्म को सुदृढ़ करके अर्थात् सफलता के तत्व जो पहले बताए गए हैं उनका उपयोग करके और श्रीमद्देवीभागवत में भगवती द्वारा बताए गए नियमों का पालन करते हुए जीवन के सभी क्षेत्रों में सफल हो सकते हैं इसमें संदेह नहीं है।

Related topics-

Monday, July 3, 2023

गुरु चरणों में समर्पित guru charano mein samarpit

गुरु चरणों में समर्पित 

guru charano mein samarpit




गुरु के बारे में दो बातें बहुत ही प्रचलित हैं-एक गुरु शब्द का अर्थ, जो हमारे अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाता है, वह गुरु है।

और दूसरा एक बहु प्रचलित श्लोक -गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरःगुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।।अर्थात् गुरु ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं और इस प्रकार गुरु साक्षात परब्रह्म हैं,उनके चरणों में नमन।

सनातन संस्कृति में पौराणिक काल से ही गुरु का व्यापक महत्व है।गुरु शब्द का प्रयोग भी व्यापक है।गुरु किसी बंधन में नही बांधता है, बल्कि साधना व सेवा के पथ पर अग्रसर करता है।गुरु शब्द को आज के समय में समझना भी जरूरी है।

गुरु और पुरोहित में थोड़ा अंतर है,पुरोहित भक्त व ईश्वर के बीच माध्यम बनता है।ऐसा ही भेद गुरु और शिक्षक या आचार्य के बीच भी होता है।शिक्षक पारितोषिक के बदले ज्ञान देता है।और गुरु ज्ञान देने के बाद शिष्यों से गुरुदक्षिणा ग्रहण करते हैं।ताकि ज्ञान की पूर्ति हो जाए।

गुरु के साथ ही ज्ञान को भी समझना चाहिए।क्योंकि बुद्धि और प्रज्ञा में अंतर है, उस अंतर को समझे बिना ज्ञान नही हो सकता।

दत्तात्रेय जी ने कहा है कि मानव में जो ज्ञान शक्ति है, वह विषय मुक्त हो,तो प्रज्ञा बन जाती है।विषय के अभाव में ज्ञान स्वयं को जानता है।स्वयं द्वारा स्वयं का ज्ञान ही प्रज्ञा है।स्वयं का स्वयं से प्रकाशित होना प्रज्ञा है।या ज्ञान का स्वयं अपने आप पर लौट आना ही प्रज्ञा है।और यही मनुष्य की चेतना की सबसे बड़ी क्रांति है।इसी की खोज सदियों से विद्वान करते आये हैं।

गुरु हमारी ज्ञानशक्ति पर छाए विषय रूपी अंधेरे को हटा देता है और ज्ञान स्वयं प्रकाशित हो उठता है।

हम अन्यान्य जगहों से ज्ञान अर्जित करते हैं उसके साथ थोड़ा बहुत विषय भी चला आता है, इसलिए सत्य का वास्तविक स्वरूप हम समझ नहीं पाते।

सच्चा गुरु वही है, जो विषय रूपी अंधकार को परे हटाकर हमारी प्रज्ञा को स्वयं प्रकाशित होने में भूमिका निभाता है।

यहाँ प्रश्न यह उठता है कि सच्चे गुरु की पहचान कैसे हो?

क्योंकि एक शास्त्रज्ञ आचार्य ने एक संत के सामने बड़ी विनम्रता से अपने को प्रस्तुत किया-"महाराज मैंने शास्त्रों का अध्ययन किया है, दर्शन जानता हूँ, शिष्यों को जगत मिथ्या है यह पढ़ाता भी हूँ, परन्तु आज तक स्वयं को नही समझा सका कि जगत मिथ्या क्यों है?"

यहाँ ज्ञान का परिपक्व होना आवश्यक है।वास्तव में, जिसने सत्य का साक्षात्कार स्वयं न किया हो,ऐसा गुरु भी शिष्य के अज्ञान के अंधकार को दूर नही कर सकता।विषयों की सेवा में लगे हुए अधपके ज्ञान वाले गुरु से हमे बचना चाहिए।


कबीर जी ने गुरु के लक्षणों को बताया है-


गुरू के लक्षण चार बखाना, प्रथम वेद शास्त्र को ज्ञाना।।

दुजे हरि भक्ति मन कर्म बानि, तीजे समदृष्टि करि जानी।।

चौथे वेद विधि सब कर्मा, ये चार गुरू गुण जानों मर्मा।।


अर्थात् कबीर जी ने कहा है कि जो सच्चा गुरू होगा, उसके चार मुख्य लक्षण होते हैं -


सब वेद तथा शास्त्रों को वह ठीक से जानता है।


दूसरे वह स्वयं भी भक्ति मन-कर्म-वचन से करता है अर्थात् उसकी कथनी और करनी में कोई अन्तर नहीं होता।


तीसरा लक्षण यह है कि वह सभी शिष्यों से समान व्यवहार करता है, भेदभाव नहीं रखता।


चौथा लक्षण यह है कि वह सर्व भक्ति कर्म वेदों के अनुसार करवाता है तथा अपने द्वारा करवाए भक्ति कर्मों को वेदों से प्रमाणित भी करता है।


वास्तव में, सत्य के प्रति हमारे अंदर आस्था होगी,तभी हम गुरु की खोज करेंगें।चूंकि आज सत्य के प्रति आस्था कम हुई है, इसलिए लोगों ने सच्चे गुरु को खोजना कम कर दिया है।

ज्ञान को अग्नि कहा गया है।एक सच्चा गुरु शिष्य में ज्ञान की अग्नि पैदा करता है और वही ज्ञान की अग्नि विकारों को मिटाकर हमे मनुष्य बनाती है।

Related topics-

ढोल गँवार सूद्र पशु नारी dhol ganwar sudra pashu naari

 ढोल गँवार सूद्र पशु नारी



गोस्वामी तुलसीदास रचित यह चौपाई इस समय सबसे विवादित विषय है।

इसी के संदर्भ में कुछ प्रस्तुत किया गया है-


ढोल गँवार सूद्र पशु नारी सकल ताड़ना के अधिकारी।।

गोस्वामी तुलसीदास जी की इस चौपाई में दोष निकालने वाले अवश्य पढ़ें और गुनें।


ढोल-

काठ की खोल तामें मढ़ो जात मृत चाम।

      रसरी सो फाँस वा में मुँदरी अरझाबत हैं।

मुँदरी अरझाय तीन गाँठ देत रसरी में।

   चतुर सुजान वा को खैंच के चढ़ाबत हैं।

खैंच के चढ़ाय मधुर थाप देत मंद मंद।

    सप्तक सो साधि-साधि सुर सो मिलाबत हैं।

याही विधि ताड़त गुनी बाजगीर ढोलन को।

     माधव सुमधुर ताल सुर सो बजाबत हैं।।


गँवार- 

मूढ़ मंदमति गुनरहित,अजसी चोर लबार। 

मिथ्यावादी दंभरत, माधव निपट गँवार।।

इन कहुँ समुझाउब कठिन,सहज सुनत नहिं कान।

जा विधि समुझैं ताहि विधि,ताड़त चतुर सुजान।।


सूद्र-

भोजन अभक्ष खात पियत अपेय सदा।

    दुष्ट दुराचारी जे साधुन्ह सताबत हैं।

मानत नहिं मातु-पितु भगिनी अरु पुत्रवधू।

    कामरत लोभी नीच नारकी कहाबत हैं।

सोइ नर सूद्रन्ह महुँ गने जात हैं माधव।

   जिनके अस आचरन यह वेद सब बताबत हैं।

इनकहुँ सुधारिबे को सबै विधि ताड़त  चतुर।

    नाहक में मूढ़ दोष मानस को लगाबत हैं।।


पशु-

नहिं विद्या नहिं शील गुन,नहिं तप दया न दान।

ज्ञान धर्म नहिं जासु उर,सो नर पशुवत जान।।

सींग पूँछ नख दंत दृढ़, अति अचेत पशु जान।

तिन कहुँ निज वश करन हित,ताड़त चतुर सुजान।।


नारी-

नारि सरल चित अति सहज,अति दयालु सुकुमारि। 

निज स्वभाव बस भ्रमति हैं,माधव शुद्ध विचारि।।

माधव नारि सुसकल विधि,सेवत चतुर सुजान।

ताड़िय सेइय आपनो, जो चाहत कल्यान।।


।।जय जय श्री राम जय हनुमान जयतु सनातनः।।

Related topics-

गोमय दीपदान gomay deepdan


एक समय एक जमाना ek samay ek jamana

 एक समय एक जमाना
ek samay ek jamana

हमारा समय our time

● हमारा भी एक जमाना था हमें खुद ही स्कूल जाना पड़ता था क्योंकि साइकिल, बस आदि से भेजने की रीति नहीं थी, स्कूल भेजने के बाद कुछ अच्छा बुरा होगा ऐसा हमारे माता-पिता कभी सोचते भी नहीं थे उनको किसी बात का भय भी नहीं होता था।


● पास/ फैल यानि नापास यही हमको मालूम था... परसेंटेज % से हमारा कभी संबंध ही नहीं रहा।

पूरे मोहल्ले में चर्चा की जाती थी जब कोई फर्स्ट क्लास में पास होता था।

ट्यूशन/कोचिंग लगाई है ऐसा बताने में भी शर्म आती थी क्योंकि हमको ढपोर शंख समझा जा सकता था।


● किताबों में पीपल के पत्ते, विद्या के पत्ते, मोर पंख रखकर हम होशियार हो सकते हैं, ऐसी हमारी धारणाएं थी।

● कपड़े की थैली में बस्तों में और बाद में एल्यूमीनियम की पेटियों में किताब, कॉपियां बेहतरीन तरीके से जमा कर रखने में हमें महारत हासिल थी।

● हर साल जब नई क्लास का बस्ता जमाते थे उसके पहले किताब कापी के ऊपर रद्दी पेपर की जिल्द चढ़ाते थे और यह काम लगभग एक वार्षिक उत्सव या त्योहार की तरह होता था। 

● साल खत्म होने के बाद किताबें बेचना और अगले साल की पुरानी किताबें खरीदने में हमें किसी प्रकार की शर्म नहीं होती थी क्योंकि तब हर साल न किताब बदलती थी और न ही पाठ्यक्रम।

● हमारे माताजी/ पिताजी को हमारी पढ़ाई का बोझ है ऐसा कभी लगा ही नहीं। 

● किसी दोस्त के साइकिल के अगले डंडे पर और दूसरे दोस्त को पीछे कैरियर पर बिठाकर गली-गली में घूमना हमारी दिनचर्या थी।इस तरह हम ना जाने कितना घूमे होंगे।


● स्कूल में मास्टर जी के हाथ से मार खाना,पैर के अंगूठे पकड़ कर खड़े रहना,और कान लाल होने तक मरोड़े जाते वक्त हमारा ईगो कभी आड़े नहीं आता था सही बोले तो ईगो क्या होता है यह हमें मालूम ही नहीं था।


● घर और स्कूल में मार खाना भी हमारे दैनिक जीवन की एक सामान्य प्रक्रिया थी।

मार खाने वाला इसलिए सामान्य रहता था कि कल से आज कम पिटे हैं।


● बिना चप्पल जूते के और किसी भी गेंद के साथ लकड़ी के पटियों से कहीं पर भी नंगे पैर क्रिकेट खेलने में क्या सुख था वह हमको ही पता है।


हमने पॉकेट मनी कभी भी मांगी ही नहीं और पिताजी ने भी दी नहीं.....इसलिए हमारी आवश्यकता भी छोटी छोटी सी ही थीं। साल में कभी-कभार मेले में जलेबी आदि खाने को मिल जाती थी तो बहुत होता था उसमें भी हम बहुत खुश हो लेते थे।


● छोटी मोटी जरूरतें तो घर में ही कोई भी पूरी कर देता था क्योंकि परिवार संयुक्त होते थे।

● दिवाली में लिए गये पटाखों की लड़ को छुट्टा करके एक एक पटाखा फोड़ते रहने में हमको कभी अपमान नहीं लगा।


● हम....हमारे माता-पिता को कभी बता ही नहीं पाए कि हम आपको कितना प्रेम करते हैं क्योंकि हमको आई लव यू कहना ही नहीं आता था।


● आज हम दुनिया के असंख्य धक्के और व्यंग खाते हुए और संघर्ष करती हुई दुनिया का एक हिस्सा है किसी को जो चाहिए था वह मिला और किसी को कुछ मिला कि नहीं क्या पता

● स्कूल की डबल ट्रिपल सीट पर घूमने वाले हम और स्कूल के बाहर उस हाफ पेंट मैं रहकर गोली टाॅफी बेचने वाले की दुकान पर दोस्तों द्वारा खिलाए पिलाए जाने की कृपा हमें याद है।वह दोस्त कहां खो गए वह बेर वाली कहां खो गई....वह चूरन बेचने वाला कहां खो गया...पता नहीं।


● हम दुनिया में कहीं भी रहे पर यह सत्य है कि हम वास्तविक दुनिया में बड़े हुए हैं हमारा वास्तविकता से सामना वास्तव में ही हुआ है।


● कपड़ों में सिलवटें ना पड़ने देना और रिश्तों में औपचारिकता का पालन करना हमें जमा ही नहीं......सुबह का खाना और रात का खाना इसके सिवा टिफिन क्या था हमें अच्छे से मालूम ही नहीं...हम अपने नसीब को दोष नहीं देते जो जी रहे हैं वह आनंद से जी रहे हैं और यही सोचते हैं और यही सोच हमें जीने में मदद कर रही है जो जीवन हमने जिया उसकी वर्तमान से तुलना हो ही नहीं सकती।


हम अच्छे थे या बुरे थे पता नहीं पर हमारा भी एक समय एक जमाना था। वो बचपन हर गम से बेगाना था।


जीवन के दो कीमती रत्न समय और धैर्य Time and patience are the two precious gems of life

 जीवन के दो कीमती रत्न समय और धैर्य
Time and patience are the two precious gems of life.




कुछ समय पहले की बात है।एक साधु रोज घाट के किनारे बैठकर जोर जोर से कहा करता था "जो चाहोगे सो पाओगे, जो चाहोगे सो पाओगे।" बहुत सारे व्यक्ति वहाँ से निकलते थे पर कोई भी उसकी बात पर ध्यान नही देता था और सब उसे एक पागल आदमी समझते थे। एक दिन एक युवक वहाँ से गुजरा और उसने उस साधु की आवाज सुनी, "जो चाहोगे सो पाओगे, जो चाहोगे सो पाओगे" और आवाज सुनते ही उसके पास चला गया।


उसने साधु से पूछा - महाराज आप बोल रहे हैं कि ‘जो चाहोगे सो पाओगे’ तो क्या आप मुझे वो दे सकते हो जो मैं चाहता हूँ ?

साधु उसकी बात को सुनकर बोला - हाँ बेटा तुम जो कुछ भी चाहते हो मैं उसे जरुर दूँगा, बस तुम्हे मेरी बात माननी होगी।किन्तु पहले यह तो बताओ कि तुम्हे आखिर चाहिये क्या ?


युवक बोला - मेरी एक ही ख्वाहिश है मैं हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनना चाहता हूँ।

साधू बोला - कोई बात नहीँ मैँ तुम्हे एक हीरा और एक मोती देता हूँ, उससे तुम जितने भी हीरे मोती बनाना चाहोगे बना पाओगे ! और ऐसा कहते हुए साधु ने अपना हाथ आदमी की हथेली पर रखते हुए कहा - पुत्र, मैं तुम्हे दुनिया का सबसे अनमोल हीरा दे रहा हूँ,लोग इसे "समय" कहते हैं, इसे तेजी से अपनी मुट्ठी में पकड़ लो और इसे कभी मत गंवाना, तुम इससे जितने चाहो उतने हीरे बना सकते हो"।


युवक अभी कुछ सोच ही रहा था कि साधु उसका दूसरी हथेली पकड़ते हुए बोला - पुत्र, इसे पकड़ो, यह दुनिया का सबसे कीमती मोती है, लोग इसे "धैर्य" कहते हैं, जब कभी समय देने के बावजूद परिणाम ना मिलें तो इस कीमती मोती को धारण कर लेना, याद रखना जिसके पास यह मोती है, वह दुनिया में कुछ भी प्राप्त कर सकता है।


युवक गंभीरतापूर्वक साधु की बातों पर विचार करता है और निश्चय करता है कि आज से वह कभी अपना समय बर्बाद नहीं करेगा और हमेशा धैर्य से काम लेगा और ऐसा सोचकर वह हीरों के एक बहुत बड़े व्यापारी के यहाँ काम शुरू करता है और अपने मेहनत और ईमानदारी के बल पर एक दिन खुद भी हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनता है।


अतः 'समय और धैर्य' वह दो हीरे-मोती हैं जिनके बल पर हम बड़े से बड़ा लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।सबसे आवश्यक यह है कि हम अपने बहुमूल्य समय को व्यर्थ न जाने दें और अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए धैर्य से काम लें।

Related topics-जीवन मे उन्नति हेतु कुछ उपाय Some Tips for Advancing Life

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त Mantra theory for suffering peace

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त  Mantra theory for suffering peace संसार की समस्त वस्तुयें अनादि प्रकृति का ही रूप है,और वह...