Wednesday, March 15, 2017

धर्म के लक्षण Characteristics of religion

मनु ने धर्म के दस लक्षण गिनाए हैं:
Manu has counted ten characteristics of religion:

धृति: क्षमा दमोऽस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्‍यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌।। (मनुस्‍मृति ६.९२)
(धैर्य, क्षमा, संयम, चोरी न करना, शौच (स्वच्छता), इन्द्रियों को वश मे रखना, बुद्धि, विद्या, सत्य और क्रोध न करना ; ये दस धर्म के लक्षण हैं।)
Patience, forgiveness, restraint, stealing, defecation (cleanliness), keeping the senses under control, do not have wisdom, wisdom, truth and anger; These are the signs of ten religions.

चित्त या मानसिक अवस्था के रूप Form of mental or mental condition

चित्त या मानसिक अवस्था के पांच रूप है
(1)क्षिप्त
(2) मूढ़
(3)विक्षिप्त
(4)एकाग्र और
(5)निरुद्व।
प्रत्येक अवस्था में कुछ न कुछ मानसिक वृत्तियों का निरोध होता है।

(1)क्षिप्त : क्षिप्त अवस्था में चित्त एक विषय से दूसरे विषय पर लगातार दौड़ता रहता है। ऐसे व्यक्ति में विचारों, कल्पनाओं की भरमार रहती है।

(2)मूढ़ : मूढ़ अवस्था में निद्रा, आलस्य, उदासी, निरुत्साह आदि प्रवृत्तियों या आदतों का बोलबाला रहता है।

(3)विक्षिप्त : विक्षिप्तावस्था में मन थोड़ी देर के लिए एक विषय में लगता है पर क्षण में ही दूसरे विषय की ओर चला जाता है। पल प्रति‍पल मानसिक अवस्था बदलती रहती है।

(4)एकाग्र : एकाग्र अवस्था में चित्त देर तक एक विषय पर लगा रहता है। यह अवस्था स्थितप्रज्ञ होने की दिशा में उठाया गया पहला कदम है।

(5)निरुद्व : निरुद्व अवस्था में चित्त की सभी वृत्तियों का लोप हो जाता है और चित्त अपनी स्वाभाविक स्थिर, शान्त अवस्था में आ जाता है। अर्थात व्यक्ति को स्वयं के होने का पूर्ण अहसास होता है। उसके उपर से मन,मस्तिष्क में घुमड़ रहे बादल छट जाते हैं और वह पूर्ण जाग्रत रहकर दृष्टा बन जाता है। यह योग की पहली समाधि अवस्था भी कही गई है।
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दुख का मूल कारण Root cause of misery


Five forms of mind or mental state
(1) Infection
(2) Fool
(3) Neglect
(4) Convergent and
(5) Nirud
At some stage, there are some mental disorders.


(1) Mistake: Chitta is constantly running from one subject to another. Such a person is full of thoughts, fantasies.

(2) Fooled: In the idle state, tendencies of sleep, idleness, sadness, discouragement, etc. are dominated.

(3) Neurotic: In a bickering mind takes a subject for a while, but in the moment it goes towards the other subject. Moment repetition mental state varies.

(4) Convergent: At an inextricable stage, the mind remains focused on a subject. This stage is the first step towards being a transcriptionist.

(5) Nirvad: In Nirvudda state, all the thoughts of Chitta are eliminated and the Chitta comes into its natural, stable state. That is, the person has a complete feeling of being himself. From that onwards, the clouds roam in the mind, the brain gets scattered, and it becomes completely visible by staying awake. This yoga first mausoleum has also been said.

Tuesday, March 14, 2017

कुण्डली के बारह भाव Twelve prices of horoscope

कुण्डली में ग्रह, नक्षत्र तथा राशियों के समान ही कुण्डली में मौजूद विभिन्न भावों का अपना खास महत्व है. प्रथम भाव से लेकर द्वादश भाव तक सभी के अधीन बहुत से विषय होते हैं. इन विषयों से सम्बन्धित फल ग्रहों राशियों एवं इनसे सम्बन्धित नक्षत्रों के आधार पर शुभ-अशुभ तथा कम और ज्यादा मिलते हैं.
कुण्डली के प्रथम भाव को लग्न भाव भी कहते है. जिस प्रकार व्यक्ति के शरीर का आरम्भ सिर से होता है उसी प्रकार इस भाव से कुण्डली का आरम्भ होता है. इस भाव से व्यक्ति के स्वभाव (nature), आचार-विचार की जानकारी होती है. शरीर के हिस्सों में मस्तिष्क, सिर व पूरा शरीर तथा सामान्य कद-काठी का अनुमान भी लगाया जाता है. इस भाव में उपस्थित राशि तथा इस भाव में स्थित ग्रहों के आधार पर इस विषय में फल ज्ञात किया जाता है.
प्रथम भाव से विचार:- इस भाव से सोचने -समझने के कार्य किये जाते है. किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति का प्रथम भाव से विचार किया जाता है. यह घर मस्तिष्क का घर होने के कारण इस घर से व्यक्ति में निर्णय लेने की क्षमता तथा दूरददर्शिता आती है. मन का झुकाव, बल, धीरज, हौसला, नेतृत्व (leadership), प्रतिरोध शक्ति, स्वास्थ्य, रुप-रंग तथा व्यक्तित्व सामान्य रुप से देखा जाता है.

प्रथम भाव की अन्य विशेषताएं:- किसी भी व्यक्ति की कुण्डली का विश्लेषण करते समय सबसे पहले कुण्डली के पहले भाव पर नजर डाली जाती है. प्रथम भाव को देखने से व्यक्ति के विषय में सामान्य जानकारी मिल जाती है. लग्न भाव के सुदृढ होने पर व्यक्ति का मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा रहने की संभावनाएं रहती है.

इस भाव से विचार किये जाने वाले कार्य:-
यह भाव दूसरे स्थान का बारहवां घर है. इसलिये इस घर से संचय में कमी का विचार किया जाता है. संचित धन में कमी का कारण पहला घर हो सकता है. दूसरे घर के स्वामी का पहले भाव में होने पर व्यक्ति को संचय करने में परेशानियां आ सकती है. यह घर बारहवें घर से दूसरा घर होता है इसलिए विदेशों के संस्कार का प्रभाव भी इस घर से ज्ञात किया जाता है.

घर में पहले भाव का स्थान:-
पहले भाव को घर के दरवाजे (door of the house) के रुप में देखा जाता है. यह भाव कमज़ोर होने पर घर का दरवाजा वास्तु दोष से प्रभावित हो सकता है. अगर कोई वस्तु खो गयी है जिनका सम्बन्ध प्रथम भाव से हैं तो खोई हुई वस्तु को मुख्य दरवाजे के पास तलाश करनी चाहिए चाहिए।

दूसरा भाव

कुण्डली के दूसरे भाव को धन भाव भी कहा जाता है. शरीर के अंगों में कान को छोड़कर कंठ के ऊपर का पूरा चेहरा दूसरे भाव के अन्तर्गत माना जाता है. जीभ, आँखें, नाक, मुंह तथा होंठ ये सभी दूसरे भाव से देखे जाते हैं.

दूसरे भाव के कार्य:-
दूसरे भाव से खाने-पीने की आदतों, बातचीत का तरीका, आवाज की मधुरता, वाणी, संगीत, कला इन सभी बातों को देखा जाता है. इसके अतिरिक्त इस भाव से परिवार के सदस्यों के विषय में भी जाना जाता है. इस कारण इस भाव को कुटुम्ब भाव भी कहते है. परिवार में वृद्धि या कमी का आंकलन भी इसी घर से किया जाता है.

दूसरे भाव की विशेषताएं:-
इस भाव को धन भाव कहते है. इससे ज्ञात होता है कि आप अपनी आय से कितना संचय कर पाते हैं. इस भाव से ही धन, रूपया- पैसा, गहने, आदि के विषय में जानकारी मिलती है. इस भाव से वाणी में मधुरता व आंखों की सुन्दरता भी देखी जाती है.

दूसरे भाव की अन्य विशेषताएं:-
बैंक, रेवेन्यी, अकाउन्ट, सात्विक भोजन, कीमती धातु आदि के विषय में जाना जाता है. यह भाव तीसरे भाव से बारहवां स्थान होने के कारण छोटे भाई-बहनों में कमी के लिये भी देखा जाता है. इस भाव से अन्य जो बातें देखी जाती जा सकती है. उसमें छोटे भाई- बहनों की विदेश यात्रा, कर्जा चुकाना, जेल, सजा, माता को होने वाले लाभ, मामा की यात्राएं, उच्च शिक्षा, दुर्घटना, ऋण इत्यादि बातें भी इस भाव से देखी जाती हैं.

द्वितीय भाव का घर में स्थान:-
दूसरे भाव को घर में तिजोरीएवं रसोई घर का स्थान दिया गया है. कुण्डली के दूसरे भाव के पीड़ित होने पर घर की तिजोरी तथा रसोई घर में दिशा संबन्धी दोष होने की संभावना रहती है. प्रश्न लग्न से खोई वस्तु को वापस प्राप्त करने के लिये वस्तु का संबन्ध दूसरे घर से होने पर तिजोरी तथा रसोई घर में वस्तु तलाशने से उसके वापस प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है।

तीसरा भाव

अगर आप शक्ति-सामर्थ्य, पराक्रम के विषय में जानना चाहते हैं तो आपको कुण्डली के तीसरे घर को देखना चाहिए. इसी प्रकार जब आप माता से स्नेह तथा सुख के विषय में जानाना चाहते हैं. भूमि एवं वाहन सुख आपको मिलेगा या नहीं मिलेगा अथवा कितना मिलेगा तो इस विषय में चौथे घर को देखा जाता है.

तीसरा भाव या पराक्रम स्थान

कुण्डली के तीसरे घर को पराक्रम स्थान के नाम से जाना जाता है. शरीर के अंगों में यह घर श्वसन तंत्र का काम करता है. हाथ, कंधे, हाथों का ऊपरी हिस्सा, उंगलियां, अस्थि मज्ज, कान व श्रवण तंत्र तथा कंठ का स्थान के विषय में जानने के लिए भी तीसरे घर को ही देखा जाता है।

इस भाव की विशेषताऐं

पराक्रम भाव से व्यक्ति की बाजुओं के बल का भीविचार किया जाता है. इसके अलावा व्यक्ति में साहस, वीरता आदि के लिये भी तीसरे भाव देखा जाता है. तीसरे घर से व्यक्ति की रुचियां व शौक देखे जाते है. यह घर लेखन (writing) की भी जानकारी देता है.
यह घर चौथे घर से बारहवां घर होने के कारण सुख में कमी की संभावनाओं कोदर्शाता है. तृतीय भाव द्वितीय भाव से दूसरा घर होने के कारण इस भाव से व्यक्ति के अंदर संगीत के प्रति लगाव को भी देखा जाता है. इस घर में जो भी राशि होती है उसके गुणों के अनुसार व्यक्ति का शौक होता है।

तीसरे घर से प्राप्त होने वाली जानकारियां

तीसरे घर से लेखन तथा कम दूरी की यात्राओं का विचार किया जाता है. काल पुरूष की कुण्डली में तीसरे भाव में मिथुन राशि होती है इस राशि का स्वामी बुध होता है जिसे बुद्धि का कारक माना जाता है. बुद्धि तथा पराक्रम होने से सभी काम सरलता से पूरा जाता हैं. इसलिए इस भाव से कार्य कुशलता के विषय में भी जाना जा सकात है. मंगल तथा बुध का मेल इस घर में होने से लेखन कला में योग्यता प्रदान करते हैं।

कम्युनिकेशन के भाव के रुप में

सभी प्रकार के समाचार पत्र, मीडिया व संप्रेषण संबन्धी कार्य इसी घर से देखे जाते है. इसके अतिरिक्त इस घर से यातायात के सभी साधन भी देखे जाते है. प्रकाशन संस्थाएं भी इस भाव के अन्तर्गत आती है. भाषा के लिये दूसरा घर देखा जाता है. यह घर दूसरे से दूसरा होने के कारण व्यक्ति को एक से अधिक भाषाओं का ज्ञान होने की जानकारी देता है।

इस भाव की अन्य जानकारियां

तीसरा घर छोटे भाई बहनों के स्वास्थ्य का घर होता है. भाई-बन्धुओं में कमी के लिये इस घर से विचार किया जाता है. संतान के लाभों के लिये भी तीसरे घर से विचार किया जाता है. नौकरी बदलने के लिये इस घर में स्थित राशि के ग्रह की दशा को देखना लाभकारी रहता है. तीसरा घर साहस एवं पराक्रम का घर होने के कारण खेल-कूद में सफलता के लिए भी इसी घर से विचार किया जाता है. इसी भाव से पड़ोसियों से सम्बन्ध का भी विचार किया जाता है.

इस भाव का घर में स्थान

किताबों की अलमारी, लेटर बाँक्स, खिडकियां, लिखने या पढ़ने का स्थान, टेबल, झूले आदि तीसरे घर का स्थान है. यदि प्रश्न कुण्डली में खोई हुई वस्तु का संबन्ध तीसरे घर से आ रहा है तो खोई हुई वस्तु इन्हीं स्थानों पर ढ़ूंढना चाहिए, इससे वस्तु मिलने की संभावना अधिक रहेगी।



पांचवा भाव

कुण्डली का पांचवा भाव  संतान भाव होने के साथ-साथ चतुर्थ भाव से दूसरा भाव भी है. इसलिये भौतिक सुख -सुविधाओं में वृद्धि की संभावनाएं देता है।

पंचम भाव

पाचवें घर से शरीर के अंगों में दिल, रीढ की हड्डी का विचार किया जाता है. इस भाव से संम्बन्धित शरीर के अंगों की जानकारी प्राप्त करने के पश्चात प्रश्न कुण्डली से रोग को ढूंढने में सहयोग प्राप्त होता है. जिससे रोग की इलाज सरल होता है.

पंचम भाव से देखी जाने वाली बातें

इस भाव से ईश्वरीय ज्ञान देखा जाता है. किसी व्यक्ति की ईश्वर पर कितनी श्रद्धा है. इसकी जानकारी पंचम घर से ही प्राप्त होती है. पंचम घर से नाटक, फिल्म, कलाकार, तथा फिल्म उद्योग से जुड़े विषयों को देखा जाता है.

पंचम भाव से संबन्धित अन्य बातें

पंचम घर अभिनय स्थान होता है. सभी प्रकार के अभिनय स्थलों को इस घर से देखा जाता है. स्टेडियम, खेल का मैदान, सभी प्रकार के खेल तथा खेल के साधन इन सभी बातों का विचार पंचम घर से किया जाता है. संतान से प्राप्त होने वाला सुख, शयन सम्बन्धी परेशानियां, समझौता, शेयर बाजार, नृत्य के मंच एवं प्रेम प्रसंगों के विषय में भी इसी घर से विचार होता है. पंचम भाव से पूर्व जन्म के पुण्य का भी ज्ञान मिलता है.
पांचवा घर तीसरे घर से तीसरा भाव होता है इस कारण इस घर से भाई-बन्धुओं की छोटी यात्राओं का आंकलन किया जाता है. जीवनसाथी से लाभ, पिता की धार्मिक आस्था, पिता की विदेश यात्रा, कोर्ट-कचहरी के फैसले के विषय में भी यही घर जानकारी देता है. यह स्थान छठे घर से बारहवां स्थान है जिसके कारण प्रतियोगिता कि भावना कमी करता है. नौकरी में बदलाव, उधार लिये गये ऋण की हानि भी दर्शाता है.

घर में स्थान

घर में रसोईघर को पंचम भाव का स्थान माना जाता है।

सप्तम भाव

ज्योतिष में फलादेश के लिये आधारभूत नियमों को समझना बेहद जरूरी होता है. जब हम विवाह, वैवाहिक जीवन तथा साझेदारी व्यवसाय की बात करते हैं तो सप्तम भाव से विश्लेषण किया जाता है. इसी प्रकार से अष्टम भाव का भी विश्लेषण किया जाता है.
सप्तम भाव को विवाह या जाया भाव के नाम से भी जाना जाता है. इस भाव से विवाह, जीवनसाथी, साझेदारी, विदेशी व्यापार तथा अन्तर्राष्ट्रीय मामलों का आंकलन किया जाता है. इस भाव से वैवाहिक जीवन के सुख तथा विवाह से संबन्धित सभी विषयों को देखा जाता है. शीघ्र विवाह, विवाह में विलम्ब तथा विवाह की आयु ज्ञात करने के लिये भी सप्तम भाव को देखा जाता है. कानूनी साझेदारों, कारोबार के लेन-देन इत्यादि के लिये भी इसी घर को देखा जाता है।

सप्तम भाव से देखी जाने वाली अन्य बातें

कारोबार की स्थिति, व्यापार केन्द्र, विवाह मंडल, विदेश में प्रतिष्ठा व सभाओं में प्राप्त होने वाले सम्मान भी इस घर से देखा जाता है. विवाह कराने वाली संस्थाएं भी सप्तम भाव से देखी जाती है. अगर आप शिक्षा के उद्देश्य से छोटी यात्रा करना चाहते हैं तो इस विषय में भी सातवें भाव से विचार किया जाएगा. यह भाव चतुर्थ भाव से चौथा होना के कारण माता की माता अर्थात नानी के विषय में भी ज्ञान प्रदान करता है. सप्तम घर से कानूनी नोटिस का भी विचार किया जाता है.

आप से सम्बन्धित लोगों के लिए सातवें घर का फल

सप्तम घर से छोटे-भाई बहनों तथा मित्रों की संतान को देखा जाता है. मित्रों के प्रेम-प्रसंगों के लिये भी इस घर को देखा जाता है. शिक्षा में आने वाली बाधाएं, कला, माता के घर, वाहन को खरीदना, संतान के मित्र, जीवनसाथी का स्वास्थ्य, पिता के व्ययों के लिये सप्तम घर का विचार किया जा सकता है. भाई-बन्धुओं को प्राप्त होने वाले सम्मान, अचानक से मिलने वाले प्रमोशन के लिये भी सातवें घर को देखा जाता है.

सप्तम भाव से घर के स्थानों का विचार

बडे कमरे, पलंग, गद्दा रखने का स्थान।

अन्य बातें

यह स्थान अष्टम से बारहवां भाव होने के कारण, अष्टम भाव से प्राप्त होने वाले लाभों में कमी करता है. इस घर से घर-परिवार से प्राप्त होने वाली वसीयतें, नुकसान की भरपाई, बोनस, फंड, ग्रेच्युटी में आने वाली मुश्किलों को भी देखा जाता है।

अष्टम भाव

अष्टम भाव मृत्यु स्थान के रुप में विशेष रुप से जाना जाता है. जन्म से लेकर तमाम उम्र जो चीज़ व्यक्ति को सबसे अधिक परेशान करती है, वह मृत्यु से संबन्धित प्रश्न के लिये अष्टम भाव का विचार किया जाता है. अष्टम भाव से छुपी हुई या गुप्त बातें देखी जाती है. मृत्यु भाव होने के कारण इस भाव को शुभ नहीं समझा जाता है इसलिये जिस घटना से इस भाव का संबन्ध बनता है. उसमें शुभ फल कम मिलने की संभावना रहती है.

अष्टम भाव से विचार की जाने वाली बातें

अष्टम भाव गुप्त शत्रुओं (enemies) के विषय में बताता है, साजिश, छुपी योजनाएं, प्यार के छुपे मामले, दुर्घटना, आँपरेशन, गर्भपात, शरीर के हिस्से बेकार हो जाना, अपयश व नैतिक पतन इस भाव से देखा जाता है. इस भाव से मृत्यु के समय शरीर की स्थिति की भी जानकारी मिलती है तथा अचानक होने वाली हानि व लाभों के लिये भी अष्टम घर को देखा जाता है. इस घर के बली होने पर शेयर बाजार, रेस से आय की प्राप्ति होती है.

अष्टम भाव की विशेषताएं

अष्टम भाव से प्राप्त होने वाली आय के पीछे कष्ट या दुख प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. इस भाव से विवाह के बाद प्राप्त होने वाले धन की जानकारी प्राप्त होती है. अष्टम भाव से धन की प्राप्ति की संभावना तो रहती है. परन्तु इसमें भी अशुभ प्रभाव बना रहता है जैसे:- नौकरी छुटने पर ग्रेच्युटी की प्राप्ति, किसी अपने की मृत्यु के बाद वसीयत की प्राप्ति, दुर्घटना के बाद मुआवजे की प्राप्ति में बाधा आती है.

अन्य बातें

इस घर को गोपनीय विषयों के लिये देखा जाता है. इसलिए पुलिस विभाग, जासूसी, आँडिट डिपार्टमेन्ट, किसी भी विभाग में पूछताछ के काम, अग्निशमन दल, सफाई विभाग, सर्जरी, जन्म-मृत्यु पंजीकरण का दफ्तर, जहर, बडी असफलता, बीमा ऎजेंट आदि का भी इसी इस घर से देखा जाता है.

इस भाव से संबन्धित अन्य फल

अष्टम भाव से छोटे भाई-बहनों के स्वास्थ्य में खराबी, नौकरी, धन अर्जन और ऋण, मां की नौकरी में बदलाव, लम्बी अवधि की बीमारियां, संतान की शिक्षा, घर और वाहन खरीदना, जीवनसाथी का धन कमाना, पिता का नुकसान, मोक्ष, भाई-बहन या दोस्तों का प्रमोशन, यश, सम्मान. इन सभी बातों का विचार किया जाता है.

अन्य भावों से संबन्धित फल

अष्टम भाव नवम भाव से बारहवां भाव होने के कारण पिता के स्वास्थय में कमी का कारण हो सकता है. भाग्य में आने वाली बाधाओं को जानने के लिए भी अष्टम भाव को देखा जाता है. धर्म-कर्म में मन नहीं लगने का कारण भी आवठें घर से जाना जाता है. उच्च शिक्षा एवं अनुसंधान के क्षेत्र में मिलने वाले विरोध का कारण भी यही घर होता है.
व्यवसाय के लिये की जाने वाली यात्राओं में लाभ की स्थिति का विचार भी आठवें घर से किया जाता है. आठवां भाव अस्पताल का भी भाव होता है इसलिए जब छठे घर का संबन्ध, अष्टम भाव से बनता है तो व्यक्ति लम्बे समय तक रोग से पीड़ित होगा यह जानकारी मिलती है।

नवम भाव

कुण्डली में नवम भाव को भाग्य का घर कहा जाता है जबकि दसवें घर को को आजीविका स्थान के रूप में जाना जाता है. किसी भी व्यक्ति के जीवन में ये दोनों ही चीजें बहुत मायने रखते हैं. अगर आप जानना चाहते हैं कि कुण्डली के नवम भाव का आपके जीवन पर क्या प्रभाव है तथा दसवां घर आपको किस प्रकार का फल दे रहा है तो सबसे पहले आपको यह जानना चाहिए कि इन घरों की क्या-क्या विशेषताएं हैं.

नवम भाव से विचार की जाने वाली बातें-

नवम भाव को भाग्य भाव तथा धर्म का घर भी कहते है. इस भाव से पैरो के ऊपरी हिस्से अर्थात पिंडलियों को देखा जाता है. काल पुरुष की कुण्डली के अनुसार इस भाव में गुरू की धनु राशि आती है. यह भाव धर्म का भाव होने के कारण इस भाव से व्यक्ति के धार्मिक आचरण को देखा जाता है. यह भाव बलवान होने पर व्यक्ति धर्मिक कार्यों में अधिक रूचि लेता है. नवम भाव को पिता का घर भी माना जाता है अत: पिता के विषय में जानने के लिए भी नवम भाव को देखा जाता है.

नवम भाव की विशेषतायें
यह भाव मित्रों व छोटे भाई-बहनो के लिए विवाह स्थान होता है. इस भाव से इनके विवाह के समय का आंकलन किया जा सकता है. जीवनसाथी के छोटे-भाई बहनों के लिये भी नवम भाव का विचार किया जाता है. उच्च शिक्षा, व अनुसंधान कार्य के लिए भी नवम भाव को देखा जाता है. देश और विदेश यात्रा के विषय में जब आप कुण्डली का विश्लेषण करते है तब भी नवम भाव का विश्लेषण किया जाता है. व्यक्ति का झुकाव आध्यात्म कि ओर देखने के लिये इस घर पर केतु व गुरु का प्रभाव होना जरूरी समझा जाता है. नवम भाव नई खोज का भाव है. जिन व्यक्तियों की कुण्डली में यह भाव बलवान होता है उन्हें कुछ नया करने की चाह रहती है.

अन्य बातें:-
यह भाव बडे पैमाने के विज्ञापनों का भाव है. धर्म ग्रन्थों को जानने में यह भाव सहयोगी होता है. समाज में व्यक्ति की छवि नवम भाव से ज्ञात की जा सकती है. किसी व्यक्ति के साथ समाज है या नहीं इसका निर्णय चतुर्थ व नवम भाव से ही किया जाता है. मुख्य रुप से इस भाव को ईश्वरीय आस्था-प्रेम के लिये देखा जाता है तथा अगले जन्म को समझने के लिये भी इसी भाव का आंकलन किया जाता है.

नवम भाव से संबन्धित अन्य फल:-

नवम भाव छोटे-भाई बहनों के विवाह का स्थान है. तथा माता की बीमारियां जानने के लिये भी इस भाव का विश्लेषण किया जाता है. नवम भाव को धन भाव भी कहते है. इस भाव से संतान की शिक्षा भी देखी जाती है तथा नवम भाव में राहु ग्रह के होने पर गैर पारम्परिक कलाओं में रुचि लेता है. नवम भाव जीवनसाथी की यात्राओं का भाव होता है. पिता का भाव होने के कारण इस भाव से पिता के स्वास्थ्य को देखा जाता है. एकादश भाव से एकादश होने के कारण यह भाव भाई-बहनों के लाभ के लिए भी देखा जाता है.

नवम भाव से संबन्धित फल
यह भाव दशम भाव से बारहवां भाव है. इसलिये श्रम में कमी की ओर संकेत करता है. प्रमोशन में आ रही रुकावटों के लिये इस भाव को देखा जा सकता है. व्यक्ति की अधिकार सीमा में किसी प्रकार की आने वाली बाधाओं के लिये भी यह भाव मह्त्वपूर्ण समझा जाता है. न्याय स्थान होने के कारण कोर्ट-कचहरी के विषय के लिए भी इस भाव का विश्लेषण किया जा सकता है. इस भाव से अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय सम्बन्धी विषयों को भी देखा जाता है.

नवम भाव से घर के स्थानों का विचार:-

घर का पूजा स्थल नवम भाव का स्थान माना जाता है. घर में देवी देवताओं की तस्वीरों का स्थान भी नवम भाव ही होता है।


Tuesday, March 7, 2017

होलाष्टक Holashtak

होलाष्टक



ज्योतिष के ग्रंथों में ‘होलाष्टक’ के आठ दिन समस्त मांगलिक कार्यों में निषिद्ध कहे गए हैं।इस दौरान शुभ कार्य करने पर अपशकुन होता है।

इस मान्यता के पीछे यह कारण है कि, भगवान शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेव को शिव जी ने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भष्म कर दिया था।कामदेव प्रेम के देवता माने जाते हैं, इनके भष्म होने पर संसार में शोक की लहर फैल गयी थी। कामदेव की पत्नी रति द्वारा शिव से क्षमा याचना करने पर शिव जी ने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया।

इसके बाद लोगों ने खुशी मनायी। होलाष्टक का अंत दुलहंडी के साथ होने के पीछे एक कारण यह माना जाता है।

होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य प्रतिबंधित रहने के पीछे धार्मिक मान्यता के अलावा ज्योतिषीय मान्यता भी है। ज्योतिष के अनुसार अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप लिए हुए रहते हैं।

इससे पूर्णिमा से आठ दिन पूर्व मनुष्य का मस्तिष्क अनेक सुखद व दुःखद आशंकाओं से ग्रसित हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को अष्ट ग्रहों की नकारात्मक शक्ति के क्षीण होने पर सहज मनोभावों की अभिव्यक्ति रंग, गुलाल आदि द्वारा प्रदर्शित की जाती है।

सामान्य रूप से देखा जाए तो होली एक दिन का पर्व न होकर पूरे आठ दिन का त्योहार है। भगवान श्रीकृष्ण आठ दिन तक गोपियों संग होली खेले और दुलहंडी के दिन अर्थात होली को रंगों में सने कपड़ों को अग्नि के हवाले कर दिया, तब से आठ दिन तक यह पर्व मनाया जाने लगा।

होलाष्टक पूजन विधि


होलिका पूजन करने के लिए होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकड़ी, सूखी घास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है।

जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारंभ का दिन भी कहा जाता है। जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है, होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबंधित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है।

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Friday, March 3, 2017

संकटनाशन गणेश स्तोत्र Sankatnshan Ganesh Stotra

संकट के नाश के लिए और मनोवांछित फल प्राप्ति हेतु श्री गणेश के चित्र अथवा मूर्ति के आगे 'संकष्टनाशन गणेश स्तोत्र' के 11 पाठ करें : -

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Sankatnshan Ganesh Stotra


प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।
भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।

प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतमद्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णं पिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।2।।

लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ।।3।।

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।4।।

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो।।5।।

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।6।।

जपेद् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।।

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।8।।

।।इति संकष्टनाशन गणेश स्तोत्रं संपूर्णम्।।

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शत्रुओं को परास्त करने / नष्ट करने के उपाय Measures to defeat / destroy enemies

शत्रुओं को परास्त करने / नष्ट करने के उपाय

जीवन में कई बार ऐसा भी समय आता है कि कोई ताकतवर व्यक्ति / शत्रु किसी को अकारण ही परेशान करने लगता है। उससे जितना भी पीछा छुड़ाया जाय वह और भी ज्यादा परेशान करता है। उसके कारण व्यक्ति का जीना हराम हो जाता है हर समय भय, चिन्ता और असुरक्षा की भावना घेरे रहती है । उसकी शिकायत भी नहीं हो पाती है या शिकायत करने से भी कोई फायदा नहीं होता है ।
मन किसी अज्ञात आशंका से भरा रहता है ।
ऐसी स्तिथि में कुछ ऐसे उपाय बताये गए है जिन्हे चुपचाप पूर्ण विश्वास से करने से शत्रु के विरुद्ध जातक के प्रयास सफल होते है, शत्रु कमजोर पड़ने लगता है, शान्त हो जाता है अथवा मित्रवत व्यवहार करने लगता है ।
इन उपायों को करने से साहस आता है, नए शक्तिशाली मददगार मिल जाते है , सम्बंधित व्यक्ति जिसके पास हम मदद के लिए जाते है वह ध्यान पूर्वक समस्या को सुनता है और उचित मदद करता है ।

शत्रु को परास्त करने के अचूक उपाय

यदि आपको कोई शत्रु अनावश्यक परेशान कर रहा हो तो एक भोजपत्र का टुकड़ा लेकर उस पर लाल चंदन से उस शत्रु का नाम लिखकर उसे शहद की डिब्बी में डुबोकर रख दें। आपका शत्रु आपका अहित नहीं कर पायेगा।

यदि कोई व्यक्ति किसी को बगैर किसी को अकारण ही परेशान कर रहा हो, तो शौच करते समय शौचालय में बैठे-बैठे वहीं के पानी से उस व्यक्ति का नाम लिखें और बाहर निकलने से पहले जिस जगह पर पानी से नाम लिखा था, उस स्थान को अपने बाएं पैर से तीन बार ठोकर मारें। लेकिन यह प्रयोग किसी बुरी भावना से न करें, अन्यथा खुद की हानि हो सकती है।

शत्रु को शांत करने के लिए साबुत उड़द की काली दाल के 38 और चावल के 40 दाने मिलाकर किसी गड्ढे में दबा दें और उसके ऊपर नीबू को निचोड़ दें। नीबू निचोड़ते समय लगातार उस शत्रु का नाम लेते रहें, इस उपाय से जैसा भी शत्रु होगा वह बिलकुल निस्तेज जो जायेगा और वह आपका कोई भी अहित नहीं कर पायेगा ।

अगर शत्रु पीछे पड़ा हो, किसी को बिना किसी कारण से परेशान कर रहा हो तो हनुमान जी की शरण में जाएँ । नित्य हनुमान जी को गुड़ या बूंदी का भोग लगाएं, हनुमान जी को लाल गुलाब चढ़ाकर हनुमान चालीसा , बजरंग बाण का पाठ करें और प्रतिदिन कच्ची धानी के तेल के दीपक में लौंग डालकर हनुमान जी की आरती करें , और अपने उनसे शत्रु को नष्ट करने / परास्त करने की प्रार्थना करें। अपनी कमीज़ की सामने वाली जेब में लाल रंग की छोटी हनुमान चालीसा रखें ,इससे संकटमोचन की कृपा से सभी तरह के अनिष्ट दूर होते है, मनोबल बढ़ता है, जातक निर्भय हो जाता है, नए और शक्तिशाली मित्र बनते है। शत्रु कुछ भी नहीं बिगाड़ पाता है और शांत हो जाता है।

यदि शत्रु बहुत अधिक परेशान कर रहा हो तो एक मोर के पंख पर हनुमान जी के मस्तक के सिन्दूर से मंगलवार या शनिवार रात्री में उस शत्रु का नाम लिख कर अपने घर के मंदिर में रात भर रखें फिर प्रातःकाल उठकर बिना नहाये धोए उस मोर पंख को बहते हुए पानी में बहा देने से शत्रु शान्त हो जाता है ।

यदि कोई व्यक्ति किसी को बगैर किसी कारण के परेशान कर रहा हो तो शनिवार की रात्रि में 7 लौंग लेकर उस पर 21 बार उसका नाम लेकर फूंक मारें और अगले दिन रविवार को इनको आग में जला दें। यह प्रयोग लगातार 7 बार करने से अभीष्ट व्यक्ति का वशीकरण होता है अगर कोई शत्रु परेशान कर रहा हो तो वह शांत हो जाता है । लेकिन ध्यान दें कि यह प्रयोग किसी बुरी भावना से अथवा किसी का अहित करने के लिए कदापि नहीं करना चाहिए।

अपने पलंग के नीचे लोहे की छड़ रखे शत्रुभय नही होगा।

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विद्यार्थियों के लिए कुछ उपाय Some tips for students

जिन विद्यार्थियों को परीक्षा में उत्तर भूल जाने की आदत हो, उन्हें परीक्षा में अपने पास कपूर और फिटकरी रखनी चाहिए। इससे मानसिक रूप से मजबूती बनी रहती है और यह नकारात्मक ऊर्जा को भी हटाती हैं ।

विद्यार्थियों के कमरे में दीवार पर नीम की डाली लगनी चाहिए इससे कमरे में शुद्ध हवा के साथ साथ सकारात्मक उर्जा का भी प्रभाव बना रहता है ।

साधारणतया मस्तिष्क का केवल 3 से 7 प्रतिशत भाग ही सक्रिय हो पाता है। शेष भाग सुप्त रहता है, जिसमें अनंत ज्ञान छिपा रहता है। ऐसी विलक्षण शक्ति को जाग्रत करने के दोनों कानों के नीचे के भाग को अंगूठे और अंगुलियों से दबाकर नीचे की ओर खीचें। पूरे कान को ऊपर से नीचे करते हुए मरोड़ें। सुबह 4-5 मिनट और दिन में जब भी समय मिले, कान के नीचे के भाग को खींचे।

सिर व गर्दन के पीछे बीच में मेडुला नाड़ी होती है। इस पर अंगुली से 3-4 मिनट मालिश करें। इससे एकाग्रता बढ़ती है और पढ़ा हुआ याद रहता है।

उत्तर दिशा में मुंह करके पिरामिड की आकृति की टोपी पहनकर पढ़ाई करने से पढ़ा हुआ बहुत शीघ्र याद होता है। टोपी, कागज, गत्ता या मोटे कपड़े की बनाई जा सकती है।

125 ग्राम बादाम और 125 ग्राम सौंफ को मिलाकर बारीक़ कूट लें । इसको प्रतिदिन एक तोला रात में सोते समय पानी के साथ ले लें । शरीर स्वस्थ रहेगा दिमाग और नज़र दोनों ही तेज़ होते है ।
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दुर्घटना के योग Accident

दुर्घटना(एक्सीडेंट)के योग

- छठे भाव में मंगल पर शनि की दृष्टि पड़े तो मशीनरी से चोट लगती है ।
- सातवें भाव के स्वामी के साथ मंगल-शनि हों तो एक्सीडेंट के योग बनते हैं ।
- आठवें भाव में मंगल व शनि वायु तत्व में हों तो जलने से दुर्घटना होती है ।
- छठे भाव में शनि शत्रु राशि या नीच का होकर केतु के साथ हो तो पशु से चोट लगती है ।
- शनि मंगल व केतु आठवें भाव में एकसाथ हों तो वाहन दुर्घटना के कारण चोट लगती है ।
- चंद्रमा शनि से पीड़ित होकर नीच का हो व मंगल भी साथ हो तो पानी से एक्सीडेंट होता है ।
- आठवें भाव में शनि के साथ मंगल हो या शत्रु राशि का होकर सूर्य के साथ हो तो आग से एक्सीडेंट होता है ।
- वायु तत्व राशि में चंद्र व राहु युति करें तथा मंगल व शनि की उन पर दृष्टि हो वायुयान संबंधित दुर्घटना होती है ।

उपाय

- वाहन दुर्घटना होने पर शनि मंदिर में इमली व संतरे चढ़ाएं ।
- मशीनरी से चोट लगने पर हनुमान मंदिर में 8 शनिवार चमेली के तेल का दीपक करें ।
- जलने से दुर्घटना होने पर भैरव मंदिर में सरसों का तेल में सिंदूर मिलकर दीपक करें ।
- विस्फोटक दुर्घटना होने पर लाल कपड़े में तिल व नारियल बांधकर हनुमान मंदिर में चढ़ाएं ।
- सीढ़ियों से गिरकर दुर्घटना होने पर पानी में नील नमक और केरोसीन मिलाकर सीढ़ियों पर पोछा लगाएं ।
- पशु से चोट लगने पर बुधवार प्रदोश काल में काले धागे में पिरोए 7 नीबू की माला देवी मंदिर में चढ़ाएं ।
- पानी से दुर्घटना होने पर शनिवार प्रदोश काल में काले शिवलिंग पर शतावरी मिले पानी से अभिषेक करें ।
- पैदल चलने पर चोटिल होने पर गुरुवार प्रदोश काल में काले धागे में पिरोए 7 केलों की माला गणपति पर चढ़ाएं

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