Thursday, November 25, 2021

जीवन पथ कार्य व्यवसाय life path work business

जीवन पथ कार्य व्यवसाय 
life path work business

इसी क्रम में आज हम ग्रहों से संबंधित कार्य व्यवसाय विषयक जानकारी को आगे बढ़ाते हुए बात करते हैं।
ग्रह जनित संरचना योगानुयोग दृष्टि संबंधी भाव वर्ग संख्या विशेष अनुसार ग्रहों के प्रभाव उत्पादक कार्य विषय का चयन कर व्यक्ति अपना भावी कैरियर-कार्य व्यवसाय का निर्धारण करने में सक्षम बन पाता है और अपने अपने क्षेत्र में कार्य योजना निर्धारित कर जीवन यापन का मार्ग तय कर सकते हैं।

इसमें दशम राज्य भावेश दशमेश एवं दशम भाव पर ग्रह दृष्टि दशम स्थान पर किन ग्रहों का अस्तित्व विशेषकर है यह विचारणीय विषय है दशम स्थान पाप ग्रह अवलोकित दुष्कर कार्य योजना से धनोपार्जन प्रदायक एवं शुभ ग्रह अवलोकन शुभ पुण्यद सुखद कार्य से धनोपार्जन में योगदान प्रदान करता है। कई व्यक्ति अपने क्षेत्र में विपुल धनसंपदा प्राप्त कर के यशस्वी बनते हैं तथापि विशेषकर इस यश संपदा से वंचित ही प्रतीत होते हैं इस विषय हेतु दशम भाव लाभेश लग्नेश पराक्रमेश भाग्येश धनेश की भाव स्थित रचना पर गहनता से विश्लेषण कर विचार विमर्श करना योग्य समाधान सूचक सूत्र भी स्पष्ट है इस संदर्भ प्रकरण में ग्रह जनित कार्य गुणधर्म व्यवसाय पर शास्त्रोक्त एवं स्वानुभवगत सुतथ्य ज्योतिष अनुरागियों हेतु प्रस्तुत हैं।



सूर्य:- पुलिस विभाग, आरक्षी नायक, गुप्तचर, अपराध नियंत्रण निदेशक, विविध खेल खिलाड़ी, सेना-विभिन्न पदों पर नायक, वकालत, औषध निर्माण, विशेष जीवनीय औषध रचना, चिकित्सक, चाय-बागान-चाय काफी उद्योग, ऊनी वस्त्र, स्वर्णकारी, फोटोग्राफर, ठेकेदारी, जंगलात कार्य, भू खनिज कार्य-सर्वेक्षण, वन विभागीय कार्य, राजकीय सेवा-विशेष पदाधिकार, विज्ञान-अनुसंधान-शोध कार्य, पी.एच.डी., अंग्रेजी भाषा, अर्थशास्त्र,शिल्पशास्त्र, चिकित्सा शास्त्र, भूगर्भ शास्त्र, प्रशासनिक राज्य शासन पद, गवर्नर, मंत्री प्रेसिडेंट,  उच्च अभियंता, निदेशक-शासक, इमारती लकड़ी, टिंबर, फर्नीचर, बिजली कार्य-इलेक्ट्रॉनिक, जवाहरात कार्य, जल संवहन जहाज कार्य तथा लाल वस्तु तांबा धातु सुयोग प्रदायक।

चन्द्र:- सुलेखन, अभिनय-अभिनेता, कवि, साहित्यकार, फिल्म निर्माण, टी.वी. सीरियल कार्य, अनुसंधान सिंचाई विभाग कार्य, कृषि कार्य, मछली उद्योग, जौहरी, जल तरल कार्य पदार्थ, जल सेना विभाग, रंग रसायन, मादक पदार्थ-शराब उद्योग, शरबत, दूध, दही, डीजल-पेट्रोल, वाहन चालक, होटल, रेस्टोरेंट, नित्य उपयोगी खाद्य पदार्थ विक्रय-निर्माण, इत्र-सुगंधी कार्य, मिष्ठान कार्य, स्त्री उपयोगी सामान निर्माण, पशुपालन, डेयरी कार्य, वनस्पतिशास्त्र, पदार्थ विज्ञान, मौसम विज्ञान, नर्स-कंपाउंडर, कागज, शक्कर, घी, मोती, चांदी धातु सुयोग प्रदायक।

मङ्गल:- आलोचक, पत्रकार, संवाददाता, लेखक, गणितज्ञ, इंजीनियर, वैद्य, डॉक्टर, शल्य-सर्जरी चिकित्सक, शौर्य-पुरुषार्थ कार्य, जादूगर, पुलिस अधिकारी-आरक्षी नायक, दार्शनिक, फोटोग्राफी, बेकरी, अग्नि समीप कार्य कारक, बिजली वस्तु क्रय-विक्रय, भूगर्भ खनिज कार्य, भूमि भवन निर्माण-बिल्डर्स, किराया, सूद ब्याज कार्य, मांस विक्रय, आतिश वस्तु पटाखा निर्माण, कृषि कर्म, जमीन जायदाद क्रय-विक्रय, खेल-खिलाड़ी खेल वस्तु प्रसाधन निर्माण, होटल व्यवसाय, तथा गणित-इतिहास-रसायन-इंजीनियर- भूगर्भ खनिज-गृह शास्त्र-भूगोल।
बुध:- परिवहन संचार-यातायात, ऑडिटर, पोस्ट विभाग, कोरियर सेवा, रिसर्च शोध-स्कॉलर, संपादन रिपोर्टर, टाइपिस्ट, कंप्यूटर सेवा, शेयर मार्केट का कार्य, कमीशन एजेंट-दलाल, वकील, बैंक-बीमा, मनोविज्ञान, लेनदेन, धन संपदा  विनियोजक, लेखा अधिकारी, मुद्रक, क्लर्क, स्टेशनरी, राजदूत, अकाउंटेंट, साहित्यकार, प्रोफ़ेसर, प्राचार्य, अध्यापन-कोचिंग क्लासेज, आमोद प्रमोद खेल सामान, प्रकाशन, पर्यटन-यातायात, ट्रैफिक-डिजाइनर, मैनेजमेंट-व्यवस्थापन- मैनेजर, नक्शा नवीस, तंबाकू-घड़ी-टेलीविजन- ब्रोकरशिप-इंजीनियर आदि कार्यधारक।

गुरु:- उपदेशक, आचार्य, मठाधीश, महंत, दार्शनिक, कथावाचक, अध्यापन, कोचिंग क्लास, वकील, न्यायाधीश, कानून वेत्ता, न्यायालय विभागीय कार्य, राजनेता, नायक- लीडरशिप, राजनीतिज्ञ, समाज सेवक, धर्माचार्य-पुजारी, परिवहन-यातायात कार्य, रसायनवेत्ता, टैक्स सलाहकार, टैक्स विभागीय सेवा कार्य, औषध विज्ञाता एवं निर्माता, सुवक्ता, लेन-देन-सूद-ब्याज-किराया आमद, राजदूत, एम.पी., एम.एल.ए.,  प्रशासकीय पद विशेष नायक, नीति निर्णायक, योजना प्रदायक, तथा आर्थिक वित्त नीति रीति व्यवहार समायोजक कार्य, स्वर्ण, फल आयात निर्यात, मोम,शहद, पीले रंग की वस्तु व्यवसाय, सुयोग प्रदायक तथा शोध विषयक पी.एच.डी. उपाधि विभूषित होने का संयोग भी बने।

शुक्र:- राजनीतिज्ञ, निदेशक, सेक्रेटरी, अभिनेता, सरपंच, पटवारी, प्रधान, चित्रकारी, दूरदर्शन, टी.वी.-चलचित्र-सिनेमा, वीडियो फिल्म, फोटोग्राफी, न्यायाधीश, ठेकेदारी, स्वर संगीत शिक्षक, गायक वाद्य यंत्र सामान्य निर्माता-विक्रेता, वस्त्र बुनकर कार्य, डिजाइनर, मुनीम, समाज सेवक, नाट्य कला, अभिनय, फिल्म निर्माण, इनकम टैक्स-सेल टैक्स वकील, पायलट, ड्राइवर, विविध वाहन चालक, सोना-चांदी सराफा कार्य, कवि, विदेशी मुद्रा कार्य, रेडीमेड वस्त्र, वस्त्र व्यवसाय विशेषज्ञ, फल व्यापार, शेयर मार्केट कार्य, सुगंध श्रृंगार वस्तु कार्य क्रय-विक्रय एवं निर्माण-फैंसी प्रसाधन-दूरसंचार सेवा-मोबाइल सर्विस आदि कार्य धारक बनते हैं।

शनि:- भाषाविद, दुभाषिया कार्य, लेखन, समाज सेवा, गाइड, निर्माता, बिल्डर्स, भू-खनिज संपदा कार्य, राजदूत, कैशियर, निदेशक, वकील, रोड निर्माण कार्य, ठेकेदारी, पब्लिक सर्विस कार्य, श्रम विभाग कार्य, जमीन लेनदेन, कृषि यंत्र निर्माण तथा विक्रय, लोहा-वेल्डिंग कार्य,  विविध यंत्र, मशीनरी, रेलवे ठेकेदारी, सप्लायर, मैकेनिकल इंजीनियर, विद्युत विभाग सेवा, बिजली सामान, पंप-मोटर-गैस कार्य, मुद्रण कला, भवन निर्माण, स्वतंत्र एवं शासकीय ठेकेदारी, श्रमिक नेता आदि कार्य, श्रीकार तथा चर्म उद्योग, मुर्गी पालन, पोल्ट्री फार्म, हाथी दांत कार्य, लोहा, कोयला, पेट्रोल-डीजल-चमड़ा, गैस-ईंधन, सीमेंट, लोहा-सरिया तथा रिफाइनरी, नर्सरी, टेलरिंग, हथकरघा-वीविंग बुनाई वस्त्र मिल विषयक कार्य व्यवसाय भी धारक श्रीकार बनते हैं।

राहु-केतु:- छाया ग्रहों का प्रभाव भी जातक के जीवन शैली कार्य रचना उद्योग व्यवसाय पर प्रभावी बनता है इनके मूल प्रभाव अनुसार विमान सेवा, विद्युत, मोबाइल, टेलीफोन, दूरसंचार, शोध-गवेषणा कार्य, प्राणरक्षक विशेष औषध निर्माण करना बनता है। यह राजनीतिज्ञ राजनेता बनाने में भी क्षमता रखता है।विषय निर्धारण चयन में ऊपर बताए गए ग्रहों का दशमेश से संबंध व अन्य भाव स्वामियों से संबंध आदि का विचार करके निर्णय लेना योग्य रहता है तथा सर्जरी-मंत्र- कूटनीति-गुप्त अंग शास्त्र-रतिशास्त्र-कॉमर्स- शिल्प-सर्जरी आदि कार्य व्यवसाय भी धारक रहते हैं राहु केतु भी जिस ग्रह भाव से संबंध शील बने उसका भी प्रभाव स्पष्ट बन पाता है।

पदोन्नति पक्ष सुयोग

शासकीय सेवारत व्यक्ति की यह मनोकामना होती है कि वह पदोन्नति प्राप्त करें और मानक जीवन स्तर प्राप्त करके मान प्रतिष्ठा में अभिवृद्धि ले।
ज्योतिष फलित नियामक के अनुसार यदि जन्मपत्रिका में शुभ एवं प्रभावी ग्रह दशम स्थान भाव एवं दशमेश अथवा सूर्य से संबंध स्थापित करें तो वे शुभ प्रभावी ग्रह जातक के लिए अपनी दशा अंतर्दशा में उन्नति कारक सिद्ध होते हैं। इसी विषयक भाव प्रतिफल स्पष्टता यह भी कि.. 

◆ दशमेश स्वगृही उच्च आदि बली स्थित में केंद्र या त्रिकोण भाव में स्थित होवें।
दशमेश अन्य सुयोग प्रदायक ग्रह के साथ अनुकूल स्थिति में निर्दोष रूप से स्थित हो
◆ लग्नेश लग्नपति दशम भाव अथवा दशमेश के साथ स्वगृही हो या उच्च राशि का हो
स्वराशि उच्च राशि स्थित सूर्य जी पदोन्नति प्रदायक अपनी दशा अंतर्दशा में पदोन्नति प्रदान करता है।
◆ भाग्येश दशमेश की युति अथवा अपनी मित्र उच्च स्वराशि की रचना स्थिति दशा अंतर्दशा में उन्नति प्रदायक।
◆ जन्मपत्रिका में दशम भाव अथवा दशमेश से लग्नेश युति करता हो अथवा पंचम नवम भाव में स्थित हो तो गोचर में लग्नेश के दशम भाव अथवा दशमेश से त्रिकोण भाव में आने पर अनुकूल उन्नति योग बने।
◆ गुरु दशम भाव अथवा दशमेश से युति या त्रिकोण भाव से संबंध स्थापित करता हो तथा बली वर्ग का हो तो गोचर में त्रिकोण स्थित बनने पर भी पदोन्नति योग बनते हैं।

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Thursday, November 11, 2021

कुण्डली के द्वादश भाव और उनके विचारणीय विषय Twelfth house of horoscope and their topics to consider

कुण्डली के द्वादश भाव और उनके विचारणीय विषय

Twelfth house of horoscope and their topics to consider



ज्योतिष के अनुसार जन्मपत्रिका के द्वादश भाव व्यक्ति/जातक के जीवन के संपूर्ण क्षेत्रों की व्याख्या करते हैं।जन्मपत्रिका में सभी बारह भावों का अपना-अपना विशेष कारकत्व होता है।

तो आज हम जानेंगे कि बारह भावों के विचारणीय विषय...

1-प्रथम भाव:-शरीर, वर्ण,आकृति, बुद्धि, लक्षण,यश,मान, गुणत्व, विवेकशक्ति, सुख-दुःख, प्रवास,तेज,जन जीवनीय विवेक,प्रारब्ध योग,जिज्ञासा, मष्तिष्क, स्वभाव, प्रतिष्ठा, आयु,शरीर चिन्ह,व्रण आदि,निद्रा, दादी,स्त्री का दादा।
सूर्य कारक।
मिथुन, कन्या, तुला,कुम्भ बलवान राशि।
भाव संज्ञा-केन्द्र संज्ञक।

2-द्वितीय भाव:-धन,विवेक, दाहिना नेत्र,परिवार, कुटुम्ब, सुख,स्वर विचार,गुणज्ञता, वचन-वाणी,विद्या, भोजन,सौन्दर्य, यात्रा,सुवर्णरत्नादि कोष,लक्षाधिपति तथा विपुल धन-सम्पदा,खान-पान अभिरुचि, आकस्मिक धन लाभ-लाटरी आदि पक्ष।
गुरुकारक, मङ्गल नेष्ट।
भाव पणफर।

3-तृतीय भाव:-बहन-भाई, मूल अभिरुचि, पराक्रम, साहस, हाथ, कान, महत्वाकांक्षा, नौकर,सुख-दुःख, हस्ताक्षर, मित्रता, रहन-सहन,वृत्ति, धैर्य, दत्तक,उद्योग, यश,अपयश, माता-पिता, मरण,खांसी,दमा, औषध ज्ञान।
मङ्गल कारक।पाप ग्रह बली।
भाव संज्ञा-आपोक्लिम, उपचय।

4-चतुर्थ भाव:-विद्या विचार,मातृ सुख-दुःख,पशुपालन, कृषि कर्म,जमीन, जायदाद, नव-निर्माण, मनोवृत्ति, मानसिक सुख-दुःख,गृह सुख,उपभोग, रहन-सहन,हृदय का साहस, जीवनीय उन्नति, कार्य प्रसाधन क्षमता, पूर्वार्जित विविध सुख,ऐश्वर्य, कीर्ति, वाहन सवारी योग।
चन्द्र+बुध कारक, बुध नेष्ट।
भाव संज्ञा-केन्द्र।

5-पंचम भाव:-बुद्धि, सन्तान, विवेक, देवभक्ति, विद्या योग,यांत्रिक विद्या, शास्त्र निपुणता, सट्टा, लॉटरी, राजनीति, प्रतिभा, वाक्पटुता, साहित्य योग,लेखन कुशलता, मन्त्र यन्त्र शक्ति, सन्तान सुख-दुःख, गर्भ धारण शक्ति।
गुरुकारक, गुरु एकमात्र विफल।भावसंज्ञा-त्रिकोण, पणफर।
विशेष प्रेम विवाह।

6-षष्ठ भाव:-रोग,शत्रु, व्यसन,चोट,घाव,सांसर्गिक रोग,मामा का पक्ष, नुकसान, चोरी, भय,हानि,स्वजन विरोध, काका,मामा, कारागार-जेल यातना, कमर,पैर, धोखा, मन:स्ताप,रकम अवरोध-विवाद।
शनि+मङ्गल कारक,शुक्र नेष्ट।
भावसंज्ञा- त्रिक।

7-सप्तम भाव:-पत्नी का रूप,रंग,गुण, स्वभाव, स्त्री सुखादि, लाभ-हानि,व्यापार-व्यवसाय, सुरत, काम कला,व्यभिचार, विवाह, न्यायालय, विवेक, व्यापार, क्रिया+गुप्त रोग विकार,मूत्राशय स्थान, अण्डकोष, साझेदारी, लिङ्ग, योनि,भतीजा पक्ष, गुमा हुआ धनलाभ, मुकदमे, स्वतंत्र कार्य, अर्श रोग।
शुक्र कारक,शनि नेष्ट।
भावसंज्ञा-केन्द्र।

8-अष्टम भाव:-रिश्वत, भूगत द्रव्य,लॉटरी आदि से आकस्मिक धन लाभ, जलयात्रा, ससुराल से लाभ,चिन्ता, शत्रु, रोग,गुप्तरोग विकार,स्त्री लाभ,सर्पादि दंश, आयुष्य, आत्मघात, व्यसन,विदेश यात्रा योग,ऋणत्व, संकट।
शनिकारक।
भाव संज्ञा-त्रिक।

9-नवम भाव:-जलयात्रा, विदेश वायु यात्रा,
धर्म, पाप, पुण्य आदि का विवेक।उदारता, दान, दैविक शक्ति।यंत्र मंत्र साधना, पर्यटन, पौत्र सुख,शील, संतोष, संपन्नता योग,भाग्य विकास, अधिकार, मान,उच्च शिक्षा।
सूर्य+गुरुकारक।
त्रिकोण का सर्व क्षेत्रीय विचार।
भाव संज्ञा-त्रिकोण।

10-दशम भाव:-पिता का रूप, रंग, वृत्ति एवं पात्रता, गुण, स्वभाव, आयु, उत्कर्ष, मान-सम्मान, उच्च पद, राजयोग,सत्ता, अधिकार, नौकरी, स्वतन्त्र व्यापार, धंधा, पिता का सुख, कर्मसिद्धि, मानहानि, जन जीवनीय स्तर, अनुशासन, पदलाभ,राजमान्यता, परीक्षोत्तीर्ण, वैभव,उपजीविका।
मङ्गल योगद, गुरु,सूर्य,बुध, शनि कारक।
भावसंज्ञा-केन्द्र।

11-एकादश भाव:-सम्पूर्ण धनागम, लॉटरी लाभ आदि का विचार, मित्र सुख, भाई, जंवाई,समाज में श्रेष्ठता,वाहन, सवारी का लाभ,सुख,प्रोपर्टी योग,मंगल कृत्य,मशीनरी कार्य,मेलमिलाप क्रिया कुशलता, आकस्मिक लाभ, आभूषण योग।
गुरु कारक।
भाव संज्ञा-पणफर,उपचय।

12-द्वादश भाव-वाम नेत्र,दूर यात्रा का विचार, व्यसन, दुराचरण, कारावास, दण्ड, गुप्त शत्रु,अपव्यय, ऋण, अपघात, कलह,अच्छा-बुरा व्यय विचार, मुकदमा, शत्रुत्व, द्रव्य हानि, अपयश।विदेश यात्रा, स्थान परिवर्तन।
शानिकारक।
भाव संज्ञा-त्रिक, आपोक्लिम।

अब हम भावों के प्रकार  के बारे में जानते हैं-

केन्द्र भाव: वैदिक प्राकृतज्योतिष में केन्द्र भाव को सबसे शुभ भाव माना जाता है। केन्द्र में प्रथम,चतुर्थ,सप्तम और दशम भाव आते हैं। शुभ भाव होने के साथ-साथ केन्द्र भाव जीवन के अधिकांश क्षेत्र को दायरे में लेता है। केन्द्र भाव में आने वाले सभी ग्रह कुंडली में बहुत ही मजबूत माने जाते हैं। इनमें दसवाँ भाव करियर और व्यवसाय का भाव होता है। जबकि सातवां भाव वैवाहिक जीवन को दर्शाता है और चौथा भाव माँ और आनंद का भाव है। वहीं प्रथम भाव व्यक्ति के स्वभाव को बताता है। यदि जातक की जन्मपत्री में केन्द्र भाव मजबूत हैं तो जातक जीवन के विभिन्न क्षेत्र में सफलता अर्जित करेगा।

त्रिकोण भाव: वैदिक प्राकृतज्योतिष में त्रिकोण भाव को भी शुभ माना जाता है। त्रिकोण भाव में आने वाले भाव धर्म भाव कहलाते हैं। इनमें प्रथम, पंचम और नवम भाव आते हैं। प्रथम भाव स्वयं का भाव होता है। वहीं पंचम भाव जातक की कलात्मक शैली को दर्शाता है जबकि नवम भाव सामूहिकता का परिचय देता है।त्रिकोण भाव बहुत ही पुण्य भाव होते हैं केन्द्र भाव से इनका संबंध राज योग को बनाता है। इन्हें केंद्र भाव का सहायक भाव माना जा सकता है। त्रिकोण भाव का संबंध अध्यात्म से है। नवम और पंचम भाव को विष्णु स्थान भी कहा जाता है।

उपचय भाव: कुंडली में तीसरा, छठवाँ, दसवाँ और ग्यारहवाँ भाव उपचय भाव कहलाते हैं। ज्योतिष में ऐसा माना जाता है कि ये भाव, भाव के कारकत्व में वृद्धि करते हैं। यदि इन भाव में अशुभ ग्रह मंगल, शनि, राहु और सूर्य विराजमान हों तो जातकों के लिए यह अच्छा माना जाता है। ये ग्रह इन भावों में नकारात्मक प्रभावों को कम करते हैं।

मोक्ष भाव: कुंडली में चतुर्थ, अष्टम और द्वादश भाव को मोक्ष भाव कहा जाता है। इन भावों का संबंध अध्यात्म जीवन से है। मोक्ष की प्राप्ति में इन भावों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

धर्म भाव: कुंडली में प्रथम, पंचम और नवम भाव को धर्म भाव कहते हैं। इन्हें विष्णु और लक्ष्मी जी का स्थान कहा जाता है।

अर्थ भाव: कुंडली में द्वितीय, षष्ठम एवं दशम भाव अर्थ भाव कहलाते हैं। यहाँ अर्थ का संबंध भौतिक और सांसारिक सुखों की प्राप्ति के लिए प्रयोग होने वाली पूँजी से है।

काम भाव: कुंडली में तीसरा, सातवां और ग्यारहवां भाव काम भाव कहलाता है। व्यक्ति जीवन के चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में तीसरा पुरुषार्थ काम होता है।

दु:स्थान भाव: कुंडली में षष्ठम, अष्टम एवं द्वादश भाव को दुःस्थान भाव कहा जाता है। ये भाव व्यक्ति के जीवन में संघर्ष, पीड़ा एवं बाधाओं को दर्शाते हैं।

मारक भाव: कुंडली में द्वितीय और सप्तम भाव मारक भाव कहलाते हैं। 

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Wednesday, November 10, 2021

आरती श्री जगदीशजी ॐ जय जगदीश हरे

 

॥ आरती श्री जगदीशजी ॥

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।

भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥

ॐ जय जगदीश हरे।

जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।

स्वामी दुःख विनसे मन का।

सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥

ॐ जय जगदीश हरे।

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।

स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।

तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥

ॐ जय जगदीश हरे।

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।

स्वामी तुम अन्तर्यामी।

पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥

ॐ जय जगदीश हरे।

तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।

स्वामी तुम पालन-कर्ता।

मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥

ॐ जय जगदीश हरे।

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

स्वामी सबके प्राणपति।

किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥

ॐ जय जगदीश हरे।

दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।

स्वामी तुम ठाकुर मेरे।

अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥
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ॐ जय जगदीश हरे।

विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा।

स्वमी पाप हरो देवा।

श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, सन्तन की सेवा॥

ॐ जय जगदीश हरे।

श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।

स्वामी जो कोई नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥

ॐ जय जगदीश हरे।

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त

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