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Thursday, November 11, 2021

कुण्डली के द्वादश भाव और उनके विचारणीय विषय Twelfth house of horoscope and their topics to consider

कुण्डली के द्वादश भाव और उनके विचारणीय विषय

Twelfth house of horoscope and their topics to consider



ज्योतिष के अनुसार जन्मपत्रिका के द्वादश भाव व्यक्ति/जातक के जीवन के संपूर्ण क्षेत्रों की व्याख्या करते हैं।जन्मपत्रिका में सभी बारह भावों का अपना-अपना विशेष कारकत्व होता है।

तो आज हम जानेंगे कि बारह भावों के विचारणीय विषय...

1-प्रथम भाव:-शरीर, वर्ण,आकृति, बुद्धि, लक्षण,यश,मान, गुणत्व, विवेकशक्ति, सुख-दुःख, प्रवास,तेज,जन जीवनीय विवेक,प्रारब्ध योग,जिज्ञासा, मष्तिष्क, स्वभाव, प्रतिष्ठा, आयु,शरीर चिन्ह,व्रण आदि,निद्रा, दादी,स्त्री का दादा।
सूर्य कारक।
मिथुन, कन्या, तुला,कुम्भ बलवान राशि।
भाव संज्ञा-केन्द्र संज्ञक।

2-द्वितीय भाव:-धन,विवेक, दाहिना नेत्र,परिवार, कुटुम्ब, सुख,स्वर विचार,गुणज्ञता, वचन-वाणी,विद्या, भोजन,सौन्दर्य, यात्रा,सुवर्णरत्नादि कोष,लक्षाधिपति तथा विपुल धन-सम्पदा,खान-पान अभिरुचि, आकस्मिक धन लाभ-लाटरी आदि पक्ष।
गुरुकारक, मङ्गल नेष्ट।
भाव पणफर।

3-तृतीय भाव:-बहन-भाई, मूल अभिरुचि, पराक्रम, साहस, हाथ, कान, महत्वाकांक्षा, नौकर,सुख-दुःख, हस्ताक्षर, मित्रता, रहन-सहन,वृत्ति, धैर्य, दत्तक,उद्योग, यश,अपयश, माता-पिता, मरण,खांसी,दमा, औषध ज्ञान।
मङ्गल कारक।पाप ग्रह बली।
भाव संज्ञा-आपोक्लिम, उपचय।

4-चतुर्थ भाव:-विद्या विचार,मातृ सुख-दुःख,पशुपालन, कृषि कर्म,जमीन, जायदाद, नव-निर्माण, मनोवृत्ति, मानसिक सुख-दुःख,गृह सुख,उपभोग, रहन-सहन,हृदय का साहस, जीवनीय उन्नति, कार्य प्रसाधन क्षमता, पूर्वार्जित विविध सुख,ऐश्वर्य, कीर्ति, वाहन सवारी योग।
चन्द्र+बुध कारक, बुध नेष्ट।
भाव संज्ञा-केन्द्र।

5-पंचम भाव:-बुद्धि, सन्तान, विवेक, देवभक्ति, विद्या योग,यांत्रिक विद्या, शास्त्र निपुणता, सट्टा, लॉटरी, राजनीति, प्रतिभा, वाक्पटुता, साहित्य योग,लेखन कुशलता, मन्त्र यन्त्र शक्ति, सन्तान सुख-दुःख, गर्भ धारण शक्ति।
गुरुकारक, गुरु एकमात्र विफल।भावसंज्ञा-त्रिकोण, पणफर।
विशेष प्रेम विवाह।

6-षष्ठ भाव:-रोग,शत्रु, व्यसन,चोट,घाव,सांसर्गिक रोग,मामा का पक्ष, नुकसान, चोरी, भय,हानि,स्वजन विरोध, काका,मामा, कारागार-जेल यातना, कमर,पैर, धोखा, मन:स्ताप,रकम अवरोध-विवाद।
शनि+मङ्गल कारक,शुक्र नेष्ट।
भावसंज्ञा- त्रिक।

7-सप्तम भाव:-पत्नी का रूप,रंग,गुण, स्वभाव, स्त्री सुखादि, लाभ-हानि,व्यापार-व्यवसाय, सुरत, काम कला,व्यभिचार, विवाह, न्यायालय, विवेक, व्यापार, क्रिया+गुप्त रोग विकार,मूत्राशय स्थान, अण्डकोष, साझेदारी, लिङ्ग, योनि,भतीजा पक्ष, गुमा हुआ धनलाभ, मुकदमे, स्वतंत्र कार्य, अर्श रोग।
शुक्र कारक,शनि नेष्ट।
भावसंज्ञा-केन्द्र।

8-अष्टम भाव:-रिश्वत, भूगत द्रव्य,लॉटरी आदि से आकस्मिक धन लाभ, जलयात्रा, ससुराल से लाभ,चिन्ता, शत्रु, रोग,गुप्तरोग विकार,स्त्री लाभ,सर्पादि दंश, आयुष्य, आत्मघात, व्यसन,विदेश यात्रा योग,ऋणत्व, संकट।
शनिकारक।
भाव संज्ञा-त्रिक।

9-नवम भाव:-जलयात्रा, विदेश वायु यात्रा,
धर्म, पाप, पुण्य आदि का विवेक।उदारता, दान, दैविक शक्ति।यंत्र मंत्र साधना, पर्यटन, पौत्र सुख,शील, संतोष, संपन्नता योग,भाग्य विकास, अधिकार, मान,उच्च शिक्षा।
सूर्य+गुरुकारक।
त्रिकोण का सर्व क्षेत्रीय विचार।
भाव संज्ञा-त्रिकोण।

10-दशम भाव:-पिता का रूप, रंग, वृत्ति एवं पात्रता, गुण, स्वभाव, आयु, उत्कर्ष, मान-सम्मान, उच्च पद, राजयोग,सत्ता, अधिकार, नौकरी, स्वतन्त्र व्यापार, धंधा, पिता का सुख, कर्मसिद्धि, मानहानि, जन जीवनीय स्तर, अनुशासन, पदलाभ,राजमान्यता, परीक्षोत्तीर्ण, वैभव,उपजीविका।
मङ्गल योगद, गुरु,सूर्य,बुध, शनि कारक।
भावसंज्ञा-केन्द्र।

11-एकादश भाव:-सम्पूर्ण धनागम, लॉटरी लाभ आदि का विचार, मित्र सुख, भाई, जंवाई,समाज में श्रेष्ठता,वाहन, सवारी का लाभ,सुख,प्रोपर्टी योग,मंगल कृत्य,मशीनरी कार्य,मेलमिलाप क्रिया कुशलता, आकस्मिक लाभ, आभूषण योग।
गुरु कारक।
भाव संज्ञा-पणफर,उपचय।

12-द्वादश भाव-वाम नेत्र,दूर यात्रा का विचार, व्यसन, दुराचरण, कारावास, दण्ड, गुप्त शत्रु,अपव्यय, ऋण, अपघात, कलह,अच्छा-बुरा व्यय विचार, मुकदमा, शत्रुत्व, द्रव्य हानि, अपयश।विदेश यात्रा, स्थान परिवर्तन।
शानिकारक।
भाव संज्ञा-त्रिक, आपोक्लिम।

अब हम भावों के प्रकार  के बारे में जानते हैं-

केन्द्र भाव: वैदिक प्राकृतज्योतिष में केन्द्र भाव को सबसे शुभ भाव माना जाता है। केन्द्र में प्रथम,चतुर्थ,सप्तम और दशम भाव आते हैं। शुभ भाव होने के साथ-साथ केन्द्र भाव जीवन के अधिकांश क्षेत्र को दायरे में लेता है। केन्द्र भाव में आने वाले सभी ग्रह कुंडली में बहुत ही मजबूत माने जाते हैं। इनमें दसवाँ भाव करियर और व्यवसाय का भाव होता है। जबकि सातवां भाव वैवाहिक जीवन को दर्शाता है और चौथा भाव माँ और आनंद का भाव है। वहीं प्रथम भाव व्यक्ति के स्वभाव को बताता है। यदि जातक की जन्मपत्री में केन्द्र भाव मजबूत हैं तो जातक जीवन के विभिन्न क्षेत्र में सफलता अर्जित करेगा।

त्रिकोण भाव: वैदिक प्राकृतज्योतिष में त्रिकोण भाव को भी शुभ माना जाता है। त्रिकोण भाव में आने वाले भाव धर्म भाव कहलाते हैं। इनमें प्रथम, पंचम और नवम भाव आते हैं। प्रथम भाव स्वयं का भाव होता है। वहीं पंचम भाव जातक की कलात्मक शैली को दर्शाता है जबकि नवम भाव सामूहिकता का परिचय देता है।त्रिकोण भाव बहुत ही पुण्य भाव होते हैं केन्द्र भाव से इनका संबंध राज योग को बनाता है। इन्हें केंद्र भाव का सहायक भाव माना जा सकता है। त्रिकोण भाव का संबंध अध्यात्म से है। नवम और पंचम भाव को विष्णु स्थान भी कहा जाता है।

उपचय भाव: कुंडली में तीसरा, छठवाँ, दसवाँ और ग्यारहवाँ भाव उपचय भाव कहलाते हैं। ज्योतिष में ऐसा माना जाता है कि ये भाव, भाव के कारकत्व में वृद्धि करते हैं। यदि इन भाव में अशुभ ग्रह मंगल, शनि, राहु और सूर्य विराजमान हों तो जातकों के लिए यह अच्छा माना जाता है। ये ग्रह इन भावों में नकारात्मक प्रभावों को कम करते हैं।

मोक्ष भाव: कुंडली में चतुर्थ, अष्टम और द्वादश भाव को मोक्ष भाव कहा जाता है। इन भावों का संबंध अध्यात्म जीवन से है। मोक्ष की प्राप्ति में इन भावों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

धर्म भाव: कुंडली में प्रथम, पंचम और नवम भाव को धर्म भाव कहते हैं। इन्हें विष्णु और लक्ष्मी जी का स्थान कहा जाता है।

अर्थ भाव: कुंडली में द्वितीय, षष्ठम एवं दशम भाव अर्थ भाव कहलाते हैं। यहाँ अर्थ का संबंध भौतिक और सांसारिक सुखों की प्राप्ति के लिए प्रयोग होने वाली पूँजी से है।

काम भाव: कुंडली में तीसरा, सातवां और ग्यारहवां भाव काम भाव कहलाता है। व्यक्ति जीवन के चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में तीसरा पुरुषार्थ काम होता है।

दु:स्थान भाव: कुंडली में षष्ठम, अष्टम एवं द्वादश भाव को दुःस्थान भाव कहा जाता है। ये भाव व्यक्ति के जीवन में संघर्ष, पीड़ा एवं बाधाओं को दर्शाते हैं।

मारक भाव: कुंडली में द्वितीय और सप्तम भाव मारक भाव कहलाते हैं। 

इसे यूट्यूब चैनल पर देखें:-कुण्डली के द्वादश भाव और विचारणीय विषय

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