Sunday, October 11, 2015

कलश स्थापन एवं दुर्गा पूजा विधान Kalash Setting and Durga Puja Vidhan


घट स्थापना करना अर्थात नवरात्रि की कालावधि में ब्रह्मांड में कार्यरत शक्ति तत्त्व का घट में आवाहन कर उसे कार्यरत करना । कार्यरत शक्ति तत्त्व के कारण वास्तु में विद्यमान कष्टदायक तरंगें समूल नष्ट हो जाती हैं।
सामग्री:
जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र
जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी
पात्र में बोने के लिए जौ
घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश
कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल
मोली (कलावा)
इत्र
साबुत सुपारी
दूर्वा
कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के
पंचरत्न
पंचपल्लव या आम के पत्ते
कलश ढकने के लिए ढक्कन
ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल
पानी वाला नारियल
नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा
फूल माला
विधि
सबसे पहले जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें। इस पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब एक परत जौ की बिछाएं। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब फिर एक परत जौ की बिछाएं। जौ के बीच चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे न दबे। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब कलश के कंठ पर मोली बाँध दें और स्वस्तिक बना दे। अब कलश में शुद्ध जल, गंगाजल कंठ तक भर दें। कलश में साबुत सुपारी, दूर्वा, कुश,रोली,चावल,फूल डालें। कलश में पंचरत्न डालें। कलश में कुछ सिक्के डाल दें। कलश मे पंचपल्लव या आम के पत्ते रख दें। अब कलश का मुख ढक्कन से बंद कर दें। ढक्कन में चावल भर दें। श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार “पञ्चपल्लवसंयुक्तं वेदमन्त्रैः सुसंस्कृतम्। सुतीर्थजलसम्पूर्णं हेमरत्नैः समन्वितम्॥” अर्थात कलश पंचपल्लवयुक्त, वैदिक मन्त्रों से भली भाँति संस्कृत, उत्तम तीर्थ के जल से पूर्ण और सुवर्ण तथा पंचरत्न मय होना चाहिए।
नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मोली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रखें। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है: “अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय,ऊर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृध्यै। प्राचीमुखं वित विनाशनाय,तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं”। अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है।नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।
अब कलश को उठाकर जौ के पात्र में बीचो बीच रख दें। अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें। "हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इस में पधारें।" अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें। धूपबत्ती कलश को दिखाएं। कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई अर्पित करें। कलश को इत्र समर्पित करें। तत्पश्चात् एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए। इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। इसको कलश के दायीं और रखना चाहिए। उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फोटो स्थापित करना चाहिए। मूर्ति के अभाव में नवार्णमन्त्र युक्त यन्त्र को स्थापित करें। माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए। माँ दुर्गा से प्रार्थना करें "हे माँ दुर्गा आप नौ दिन के लिए इस चौकी में विराजिये।
नवरात्रि में नौ दिन मां भगवती का व्रत रखने का तथा प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विशेष महत्व है। हर एक मनोकामना पूरी हो जाती है। सभी कष्टों से छुटकारा दिलाता है।
नवरात्री के प्रथम दिन ही अखंड ज्योत जलाई जाती है जो नौ दिन तक जलती रहती है। दीपक के नीचे "चावल" रखने से माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा "सप्तधान्य" रखने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है
माता की पूजा "लाल रंग के कम्बल" के आसन पर बैठकर करना उत्तम माना गया है
नवरात्रि के प्रतिदिन माता रानी को फूलों का हार चढ़ाना चाहिए। प्रतिदिन घी का दीपक (माता के पूजन हेतु सोने, चाँदी, कांसे के दीपक का उपयोग उत्तम होता है) जलाकर माँ भगवती को मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए। मान भगवती को इत्र/अत्तर विशेष प्रिय है।
नवरात्री के प्रतिदिन कंडे की धूनी जलाकर उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कपूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा जरूर अर्पित करना चाहिए।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए नवरात्र मे पान मे गुलाब की ७ पंखुरियां रखें तथा मां भगवती को अर्पित कर दें
मां दुर्गा को प्रतिदिन विशेष भोग लगाया जाता है। किस दिन किस चीज़ का भोग लगाना है ।इसका अलग महत्त्व है।
प्रतिदिन कन्याओं का विशेष पूजन किया जाता है।

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Saturday, October 10, 2015

नवरात्र Navratra

नवरात्रियों तक व्रत करने से 'नवरात्र' व्रत पूर्ण होता है.वैसे तो
वासंती नवरात्रों में विष्णु की और शारदीय नवरात्रों में शक्ति की
उपासना का प्राधान्य है;किन्तु ये दोनों बहुत ही व्यापक है,अतः
दोनों में दोनों की उपासना होती है इनमे किसी वर्ण,विधान या देवादि
की भिन्नता नहीं है;सभी वर्ण अपने अभीष्ट की उपासना करते है.
यदि नवरात्र पर्यन्त व्रत रखने की सामर्थ्य न हो तो-
(१) प्रतिपदा से सप्तमी पर्यन्त 'सप्तरात्र' ;
(२) पञ्चमी से नवमी पर्यन्त 'पञ्चरात्र' ;
(३) सप्तमी से नवमी पर्यन्त 'त्रिरात्र'
(४) आरम्भ और समाप्ति के दो व्रतों से 'युग्मरात्र'
(५) आरम्भ या समाप्ति के एक व्रत से 'एकरात्र' के रूप में जो भी
किये जायें, उन्ही से अभीष्ट की सिद्धि होती है.
दुर्गा पूजा में- प्रतिपदा को केश संस्कार द्रव्य,आँवला आदि,
द्वितीया को बाल बांधने के लिये रेशमी डोरी;
तृतीया को सिन्दूर और दर्पण;
चतुर्थी को मधुपर्क,तिलक और नेत्रांजन;
पंचमी को अंगराग और अलंकार;
षष्ठी को फूल आदि
सप्तमी को गृह मध्य पूजा;
अष्टमी को उपवास पूर्वक पूजन;
नवमी को महापूजा और कुमारी पूजा तथा दशमी को नीराजन और
विसर्जन करें।
नवरात्र में कलश स्थापन हेतु चित्रा नक्षत्र एवं वैधृति योग वर्जित है।
यदि इन दोनों का मान रात्रि तक है और कलश स्थापन का कोई मुहूर्त न हो तो मध्याह्न मे अभिजित मुहूर्त को कलश स्थापन हेतु ग्रहण किया जाता  है ।
लेकिन यह एक विकल्प है।
और दुर्गा पूजा हमारे नित्य अनुष्ठानों में आती है।
अतः कलश स्थापन भी जरुरी हो जाता है।ऐसी स्थिति मे हमें क्षण वार,नक्षत्र और योग का ग्रहण करना चाहिये।
बृहज्ज्योतिषार के अनुसार प्रत्येक दिन सूर्योदय से अहोरात्र भर मे 2-2 घड़ी के 30 नक्षत्र बीतते है,जो क्षण नक्षत्र कहलाते है।यथा-1 आर्द्रा,2 श्लेषा,3 अनुराधा, 4 मघा,5 धनिष्ठा, 6 पूर्वाषाढ,7 उत्तराषाढा,8 अभिजित,9 रोहिणी,10 ज्येष्ठा,11 विशाखा,12 मूल,13 शतभिषा,14 उत्तराफाल्गुनी,15 पूर्वाफाल्गुनी,16 आर्द्रा,17 पूर्वाभाद्रपद,18 उत्तराभाद्रपद,19 रेवती,20 आश्विनी,21 भरणी,22 कृतिका,23 रोहिणी,24 मृगशिरा,25 पुनर्वसु,26 पुष्य,27 श्रवण,28 हस्त, 29 चित्रा,30 स्वाती।
चित्रा का मान 29 वें स्थान है अर्थात् 56 घड़ी बीत जाने पर चित्रा का वर्जनीय काल होगा।
इसी तरह स्थूल योग के पूर्ण मान का 27 वाँ भाग एक-एक सूक्ष्म योग होता है।
आवश्यकता पड़ने पर स्थूल के निषिद्ध होने पर भी सूक्ष्म मे कार्य करना श्रेष्ठ होता है।
इस तरह हम ब्रह्म मुहूर्त के अलावा सूर्योदय के एक घण्टे के बाद किसी भी समय कलश स्थापन कर सकते है।इसमें किसी प्रकार का भ्रम पलने की आवश्यकता नही है।

नवरात्र की त्रिदिवसीय पूजा मे सप्तमी तिथि जिस दिन पड़े उससे देवी आगमन के वाहन का तथा दशमी जिस दिन पड़े उससे गमन का विचार होता है।
यद्यपि इसका लौकिक प्रमाण ही प्राप्त होता है।
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