Thursday, April 27, 2017

मंगलागौरी व्रत mangalaagauree vrat

मंगलागौरी व्रत



आज हम मंगला गौरी के पूजन विधान के बारे में आपको बताएंगे कि मंगला गौरी का पूजन और व्रत कब और किस प्रकार करना चाहिए, किसे करना चाहिए?

श्रावण मास में मंगलवार को माँ मंगलागौरी का पूजन, व्रत-उपवास करने से मनुष्य के सुख-सौभाग्य में वृद्धि करते हैं। अपने पति व संतान की लंबी उम्र एवं सुखी जीवन की कामना के लिए महिलाएं खास तौर पर इस व्रत को करती है। सौभाग्य से जुडे होने की वजह से नवविवाहित दुल्हनें भी आदरपूर्वक एवं श्रद्धा से इस व्रत को करती है।

ज्योतिष के अनुसार जिन युवतियों और महिलाओं की कुंडली में वैवाहिक जीवन में कमी महसूस होती है अथवा शादी के बाद पति से अलग होने या तलाक हो जाने जैसे अशुभ योग निर्मित हो रहे हो, तो उन महिलाओं के लिए मंगला गौरी व्रत विशेष रूप से फलदायी है। अत: ऐसी महिलाओं को सोलह सोमवार के साथ-साथ मंगला गौरी का व्रत अवश्य रखना चाहिए।

कैसे करें व्रत:-

* इस व्रत के दौरान ब्रह्म मुहूर्त में जल्दी उठें।
* नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ-सुथरे धुले हुए अथवा कोरे (नवीन) वस्त्र धारण कर व्रत करना चाहिए।
* इस व्रत में एक ही समय अन्न ग्रहण करके पूरे दिन मां पार्वती की आराधना की जाती है।
* मां मंगला गौरी (पार्वतीजी) का एक चित्र अथवा प्रतिमा लें।
* फिर - 'मम पुत्रपौत्रसौभाग्यवृद्धये श्रीमंगलागौरीप्रीत्यर्थं पंचवर्षपर्यन्तं मंगलागौरीव्रतमहं करिष्ये।’ इस मंत्र के साथ व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए।
- व्रत संकल्प का अर्थ-मैं अपने पति, पुत्र-पौत्रों, उनकी सौभाग्य वृद्धि एवं मंगला गौरी की कृपा प्राप्ति के लिए इस व्रत को करने का संकल्प लेती हूं। तत्पश्चात मंगला गौरी के चित्र या प्रतिमा को एक चौकी पर सफेद फिर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित किया जाता है। फिर उस प्रतिमा के सामने एक घी का दीपक (आटे से बनाया हुआ) जलाएं, दीपक ऐसा हो, जिसमें सोलह बत्तियां लगाई जा सकें।
* तत्पश्चात -
'कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्।
नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्..।।
- यह मंत्र बोलते हुए माता मंगला गौरी का षोडशोपचार पूजन किया जाता है। माता के पूजन के पश्चात उनको (सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में होनी चाहिए) 16 मालाएं, लौंग, सुपारी, इलायची, फल, पान, लड्डू, सुहाग क‍ी सामग्री, 16 चुडि़यां तथा मिठाई चढ़ाई जाती है। इसके अलावा 5 प्रकार के सूखे मेवे, 7 प्रकार के अनाज-धान्य (जिसमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) आदि होना चाहिए। पूजन के बाद मंगला गौरी की कथा सुनी जाती है।

कथा

मां मंगला गौरी कथा के अनुसार - पुराने समय की बात है। एक शहर में धरमपाल नाम का एक व्यापारी रहता था। उसकी पत्नी खूबसूरत थी और उनके पास बहुत सारी धन-दौलत थी। लेकिन उनको कोई संतान नहीं थी, इस वजह से पति-पत्नी दोनों ही हमेशा दुखी रहते थे।

फिर ईश्वर की कृपा से उनको पुत्र प्राप्ति हुई, लेकिन वह अल्पायु था। उसे यह श्राप मिला हुआ था कि सोलह वर्ष की उम्र में सर्प दंश के कारण उसकी मौत हो जाएगी।

ईश्वरीय संयोग से उसकी शादी सोलह वर्ष से पहले ही एक युवती से हुई, जिसकी माता मंगला गौरी व्रत किया करती थी। परिणामस्वरूप उसने अपनी पुत्री के लिए एक ऐसे सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त किया था, जिसके कारण वह कभी विधवा नहीं हो सकती। इसी कारण धरमपाल के पुत्र ने 100 साल की लंबी आयु प्राप्त की।

अत: शास्त्रों के अनुसार यह मंगला गौरी व्रत नियमानुसार करने से प्रत्येक मनुष्य के वैवाहिक सुख में बढ़ोतरी होकर पुत्र-पौत्रादि भी अपना जीवन सुखपूर्वक गुजारते हैं। ऐसी इस व्रत की महिमा है।
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Wednesday, April 26, 2017

ईश्वर the Creation

ईश्वर शब्द के अनेक अर्थ हो सकते हैं, लेकिन शब्द का साधारण अर्थ है नियंता। जो इस विश्व कल्पना का नियंत्रण करता है, वह ईश्वर है। दार्शनिक भाषा में ईश्वर शब्द का एक और अर्थ समझा जाता है। सब बंधनों से मुक्त पुरुष को दार्शनिक भाषा में ईश्वर कहा जाता है। कोई दार्शनिक मतभेद जो भी हो, पर साधक की दृष्टि से ईश्वर सगुण ब्रह्य या भगवान को छोड़कर कुछ भी नहीं हैं।
The word of God can have many meanings, but the general meaning of the word means that the controller The one who controls this world's imagination is God. In the philosophical language, the word God is understood as another meaning. A man free of all bonds is called God in philosophical language. Whatever the philosophical differences, there is nothing left except God Saguna Brah or Lord in view of the seeker.

मन और विचारों का आध्यात्मिक प्रभाव Spiritual effects of mind and thoughts

मन का कोई अस्तित्व नहीं होता सिर्फ विचार होते हैं और विचार मन से हमेशा अलग होते हैं। वे ऐसी वस्तु नहीं है, जो तुम्हारे स्वभाव के साथ एकाकार हों, वे आते हैं और चले जाते हैं..तुम बने रहते हो, तुम स्थिर होते हो। तुम ऐसे हो जैसे कि आसमान, यह कभी आता नहीं, जाता नहीं, यह हमेशा यहां है।
बादल आते हैं और जाते हैं, वे क्षणिक हैं।
 तुम विचार को पकडऩे का प्रयास भी करो तो रोक नहीं सकते। उसे जाना ही होगा, उसका अपना जन्म और मृत्यु है। विचार तुम्हारे नहीं हैं, वे तुम्हारे नहीं होते हैं। वे आगंतुक की तरह आते हैं, लेकिन वे मेजबान नहीं हैं।
There is no existence of mind, only thoughts are there and thoughts are always different from the mind. They are not such things which are united with your nature, they come and go .. You remain, you are stable Yes.You are as if the sky, it never comes, it does not go, it's always here.
Clouds come and go, they are transient.
Even if you try to catch the idea then you can not stop it.He has to go, he has his own birth and death. Thoughts are not yours, they are not yours. They come like a visitor, but they are not hosts.

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प्राणायाम Pranayama

प्राणायाम

हम जीवनभर बाहर की बातों में ही उलझे रहते हैं। सभी इंद्रियां अपने-अपने विषयों में दौड़ती रहती हैं। इसे ही भोग कहते हैं। लेकिन योग साधना में इन सभी इंद्रियों के विषयों को व्यक्ति बाहर ही रोककर ध्यान की अवस्था में बैठकर स्वयं को शून्य में स्थिर कर लेता है।

प्राण को प्राणायाम के द्वारा स्थिर कर आने-जाने वाली सांस की गति को एक जैसा कर लेता है। इससे मन हमारे प्राण से शक्ति पाता है। प्राणायाम के जरिए जैसे ही प्राण को साधा जाता है। मन अपने आप सधने लगता है और फिर साधक अंतर्मुखी साधना की शुरुआत करता है।
Pranayama

We are confused with external issues only. All the senses keep on running in their subjects. This is called enjoyment only. But in Yoga Sadhana, the subjects of all these senses restrain themselves from outside and sit in meditation and stabilize themselves in the vacuum.

By speeding up the prana by pranayama, the speed of the breathing of the one who gets stuck is uniform. This gives us strength from our soul. As soon as prana is done through pranayama. The mind begins to feel self-reliant and then the seeker initiates introverted meditation.

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Tuesday, April 25, 2017

स्वामी विवेकानंद की कुछ सफलतादायक बातें Some of Swami Vivekananda's Successful Things

स्वामी विवेकानंद की कुछ सफलतादायक बातें  Some of Swami Vivekananda's Successful Things


स्वामी विवेकानंद की ऐसी ही नौ उक्तियों के बारे में जिन्हें अपना कर आप किसी भी व्यापार में सफलता पा सकते हैं-
Regarding Swami Vivekananda's similar nine utterances, which you can achieve success in any business -


(1) एक विचार लो। उस विचार को अपना जीवन बना लो। उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो, उस विचार को जियो, अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो। यही सफल होने का तरीका है।

(2) ये कभी भी मत सोचो कि आत्मा के लिए कुछ भी असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा पाखण्ड है। यदि कोई पाप है, तो केवल यही पाप है - कि तुम कहते हो, तुम कमजोर हो या दूसरे कमजोर हैं।

(3) व्यापार व्यापार होता है, यह कोई बच्चों का खेल नहीं है। व्यापार में सब कुछ तुरंत करना चाहिए। जरा सी देर और ढील व्यापार को खत्म कर देती है।

(4) हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखिए कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं, विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।

(5) कुछ सच्चे, ईमानदार और उर्जावान पुरुष और महिलाएं, जितना कोई भीड़ एक सदी में कर सकती है उससे अधिक एक वर्ष में कर सकते हैं।

(6) शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से जो कुछ भी कमजोर बनाता है, उसे ज़हर की तरह त्याग दो।

(7) एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।

(8) किसी पर भी आरोप प्रति आरोप न करें। आप किसी की मदद के लिए हाथ बड़ा सकतें हैं तो ऐसा अवश्य करें। और उन्हें अपने-अपने रास्ते पर चलने दें।

(9) अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है। अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाए उतना बेहतर है।

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Sunday, April 9, 2017

एक आस An excursion

विश्वास का सम्बल न टूटे,
साहस मुझसे न रूठे,
थकूँ गिरुं पर उठता रहूँ
हो जाऊँ लहूलुहान,पर मन न हो म्लान,
करता रहूँ संघर्ष,न हो अमर्ष,
तुम्हारी प्रेमपगी दृष्टि ही
दे मुझे आशीर्वाद
मिटें सारे अवसाद,ले सकू संकल्प
करू क्षार-क्षार हर अंधकार-अवरोध
सम्भव हो सके सत्य बोध।
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