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Thursday, June 23, 2016

दुख का मूल कारण Root cause of misery

 दुख का मूल कारण


दुख क्या है और यह किस किस को होता है?

 “दुख” सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही सभों लोको पर आया था । यह दुख चारो प्रकार के जीवों (स्थावर , उद्विज , अंडज ,जंगम } मे होता है ।
मनुष्य योनि मे दुख पिछले कर्मो के आधार पर चित्त मे होता है । इसके अलावा दुख का संबंध 5 तत्वो के साथ होता है । लेकिन यह दुख शांत अवस्था मे रहता है । जैसे ही गोचर मे किसी पापी ग्रह की तरंगे शरीर को प्रभावित करती है तो चित मे हलचल मच जाती है । जैसे ही चित मे हलचल मचती है तो दुख बाहर निकलने की कोशिस करता है । अगर ग्रहो की तरंगो का पाप प्रभाव बढ़ जाता है तो दुख बाहर आ जाता है और मनुष्य को अपने आगोश मे ले लेता है ।
चित तालाब मे शांत पानी की तरह शरीर मे होता है अगर तालाब मे पत्थर फेंक दिया जाये तो तालाब मे लहर पैदा हो जाती है और बहुत बहुत बड़ा पत्थर फेंक दिया जाये तो लहर तालाब से बाहर निकल जाती है । ऐसे चित मे जो दुख शांत अवस्था मे होते है वो कभी भी गोचर मे पापी ग्रह की गति बदलने से बाहर आ जाते है ।

दुख कब आता है?

 यह दुख भगवान ने शरीर के निर्माण के समय ही 5 तत्वो पर आधारित कर दिया था । जैसे 84 लाख योनियो मे 5 तत्वो का उतार चड़ाव आएगा वैसे ही जीवन मे दुख का उतार चड़ाव आएगा ।
मनुष्य का शरीर 5 तत्वो से बना है । 5 तत्वो की मात्रा का अनुपात जब शरीर मे कम या ज्यादा हो जाता है तो तत्वों का संतुलन बिगड़ जाता है तो दुख और क्लेश बढ़ जाता है । क्योकि मनुष्य शरीर के दुख का मुख्य आधार सिर्फ 5 महाभूत तत्व ही होते है । ये 5 तत्व ही 84 लाख योनियों को दुख देते है । ये 5 तत्व ही जानवरों के साथ साथ पेड़ पोधों को भी दुख देते है । अगर प्रकृति मे सूखा पड़ जाये तो वनस्पति का विनाश हो जाता है और वनस्पति का विनाश होगा तो वनस्पति से जीवन लेने वाली योनी दुख के दायरे मे आ जाती है ।

भगवान ने यह दुख देवताओ को क्यो नहीं दिया तथा स्वर्ग लोक मे देव योनि मे सुख ही सुख क्यो होता है ? इसका मुख्य कारण यह है कि देव योनि मे सूक्ष्म शरीर 17 तत्वो के साथ रहता है । सूक्ष्म शरीर की आत्मा मे 5 तत्व नहीं होते है । और जो योनी 5 तत्वो के (पृथ्वी, जल , वायु , आकाश और अग्नि ) के प्रभाव से दूर है तो उस देवता योनि पर दुख  का प्रभाव नहीं होता है । किसी भी दुख का प्रभाव 5  तत्वो से बनी बस्तु पर ही होता है ।

क्या इस दुख का निवारण किया जा सकता है?

मनुष्य जीवन मे इस दुख को योग , साधना , ध्यान , समाधि , पूजा पाठ , यज्ञ , जप , तप , नग और मंत्र दान धर्म से कम किया जा सकता है । इस सभी उपाय से चित मे स्थित दुख को शांत किया जा सकता है । और योग से इस दुख को पूर्ण रूप से चित से अलग किया जा सकता है ।

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