Friday, May 1, 2020

विश्राम relaxation

विश्राम relaxation

विश्राम का अर्थ है आराम की अवस्था। इसमें व्यक्ति तनाव या उत्तेजना  में नहीं बल्कि आराम या चैन में रहता है। मन और शरीर शांत, आराम और सुख की अवस्था में रहते हैं। जब व्यक्ति विश्राम की अवस्था में होता है, आराम के क्षणों का अनुभव करता है और सुख की नींद सो सकता है। इस प्रकार विश्राम में होने का तात्पर्य है यथोचित आराम तथा निद्रा का होना, जिसका आवर्तन में अर्थ होता है - सुख कर एवं संतोषप्रद शारीरिक तथा मानसिक कार्य संपादनों के लिए यथेष्ट शक्ति, ओज, साहस और बल का होना। कार्य का गुण तथा आनन्द या सुख की मात्रा बहुत अधिक इसी विश्राम की स्थिति पर निर्भरसील है।
किंतु प्रायः प्रत्येक समाज में बहुसंख्यक नर नारी तनिक भी विश्राम नहीं कर सकते। वे सुख चैन का अनुभव नहीं कर सकते। वह मुश्किल से यथोचित रूप में सो भी सकते हैं। फलस्वरूप, वे श्रांत, बेचैन, परेशान और अंततः घबराए हुए रहते हैं। यह हमारे युग की सर्वाधिक दुखद अवस्था है, क्योंकि अनेक व्यक्ति आराम तथा विश्राम करने की इच्छा के बावजूद विफल रहते हैं, असहाय  हो जाते हैं और आराम तथा विश्राम करने में असमर्थ रहते हैं शहद थोड़ा आराम और नींद पाने के लिए वे नींद की गोलियों, औषधियों और शराब का सहारा लेते हैं और बहुत तरह के अहित कर काम करते हैं। लगातार इन हानिकारक चीजों के सेवन से बहुसंख्यक नर नारी अपनी चिरस्थायी क्षति एवं हानि कर डालते हैं। और बहुत से लोग विश्राम में सहायक इन चीजों का प्रयोग करते समय अपनी जान तक गंवा बैठते हैं। वे सहायक चीजें क्षणिक रूप से आराम तथा विश्राम देती है, किंतु कालांतर में बिल्कुल प्रभावहीन हो जाती हैं। उस समय तक अपूरणीय क्षति पहले ही हो चुकी रहती है। अतएव आधुनिक नर नारियों के लिए यह जानना अत्यंत प्रासंगिक हो जाता है कि वस्तुतः विश्राम क्या है, इसमें बाधा पड़ने के कौन से कारण है, विश्राम के अभाव से क्या हानियां होती हैं और इसका क्या उपचार क्या है। इन महत्वपूर्ण पहलुओं के साथ-साथ निवारण की यौगिक विधि ज्ञान से व्यक्ति यथेष्ट एवं वास्तविक स्थान उपलब्ध करने में समर्थ हो सकता है।

विश्राम बनाम घबराहट : 
विश्राम तथा घबराहट एक ही सिक्के के दो पहलुओं के समान हैं। जैसा कि सिक्के में होता है, यद्यपि दोनों पहलुओं की आवृतियां तथा चिन्ह भिन्न होते हैं, तथापि वे एक ही सिक्के के अभिन्न अंग होते हैं, ऐसी ही स्थिति घबराहट तथा विश्राम की है। यद्यपि ये सुस्पष्ट दो दशाएं हैं, फिर भी परस्पर संबंधित है तथा व्यक्ति पर प्रभाव डालती हैं।
यद्यपि इन दोनों अवस्थाओं के विषय में अधिक सर्वमान्यता है, तथापि अनेक विभिन्नताएं भी हैं, जिससे इन्हें स्पष्टतया पहचाना जाता है। विभिन्नता का मुख्य बिंदु यह है कि केवल घबराहट न होने का यह अर्थ नहीं कि कोई व्यक्ति विश्राम में है। दूसरे शब्दों में, कोई व्यक्ति घबराया हुआ नहीं होने पर भी विश्राम में नहीं हो सकता है। इस स्थिति में, विश्राम का अभाव ऐसे कारणों से होता है, जो केवल विश्राम में बाधा डालते हैं, और इससे अधिक कुछ नहीं करते। इस प्रकार, इस स्थिति में जो घटित होता है, वह है केवल विश्राम में बाधा पढ़ना, और उसमें घबराहट नहीं उत्पन्न होती। यदि यही अवस्था जब लंबी अवधि तक रहे तब घबराहट उत्पन्न कर सकती है।
दूसरा महत्वपूर्ण कारक, जिसे समझ लेना आवश्यक है, यह है कि चिंता रहने पर ही घबराहट उत्पन्न होती है, किंतु विश्राम के साथ हमेशा यह बात नहीं है। यद्यपि चिंता निश्चित रूप से विश्राम में बाधक है, फिर भी बहुत सी ऐसी चीजें हैं, जिनका भी वही प्रभाव पड़ता है। उदाहरणार्थ,कॉफी, चाय तथा इसी प्रकार की दूसरी चीजें घबराहट उत्पन्न में किए बिना विश्राम का भाव उत्पन्न कर सकती हैं।

विश्रामहीन अवस्था के लक्षण : 
विश्राम का अभाव व्यक्ति की सामान्य अवस्था में अनेक पहचानने योग्य परिवर्तन कर देता है। यद्यपि इनमें से अधिकांश परिवर्तनों को व्यक्ति स्वयं अच्छी तरह जान सकते हैं तथापि दर्शक भी पता लगा सकते हैं और कह सकते हैं कि कोई व्यक्ति वास्तविक विश्राम में है या नहीं। 
अनुपयुक्त विश्राम के लक्षण निम्नांकित है : 
● आकृति या रूप में तथा क्रियाकलाप में मदता,
● मुखमंडल पर स्वाभाविक आकर्षण सौंदर्य तथा कांति का अभाव,
● चेहरे पर, विशेषकर आंखों में बोझिल दृष्टि, 
● शीघ्र थक जाना,
● स्वाभाविक दक्षता से मानसिक कार्य करने में कठिनाई,
● विस्मरण शीलता,
● तत्परता का अभाव,
● तथा प्रसन्नता का अभाव।
चूँकि उपर्युक्त लक्षणों में से कुछ लक्षण भी घबराहट की अवस्था के कारण उत्पन्न होते हैं, इसलिए पाठकों को यह सोचकर संभ्रमित नहीं होना चाहिए कि इन दोनों में कोई भेद है ही नहीं। फिर, सूक्ष्म विश्लेषण से प्रकट हो जाएगा कि इन दोनों अवस्थाओं के लक्षण में सुस्पष्ट अंतर है। घबराहट में जहां वेग, गति और अधिक क्रियाशीलता की प्रवृत्ति होती है, विश्राम हीन अवस्था में मंदता या शिथिलता और कम क्रियाशीलता के प्रवृत्ति होती है। जहां प्रथम अवस्था में आंखों, चेहरे और मांसपेशियों में खिंचाव या तनाव और कठोरता होती है, वह द्वितीय अवस्था में इन शारीरिक क्षेत्रों में केवल भारीपन रहता है। प्रथम अवस्था में जहां तेजी से परिवर्तित होने वाली आंतरिक तथा बाह्य प्रसन्नता हो सकती है, वहां द्वितीय अवस्था में या तो इन चिन्हों या लक्षणों का अभाव होता है या वे मंद होते हैं। यह कुछ विभिन्नताएं हैं, जो एक को दूसरी से प्रथक पहचानने का सूत्र प्रदान करती हैं। इन पहचानने योग्य विभिन्नताओं को समझ लेने के बाद हम विश्रामहीन अवस्थाओं के कारणों पर दृष्टिपात करें।


विश्राम में बाधा के कारण :

क्रमशः

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