Saturday, January 30, 2021

सुदर्शन चक्र एक अध्ययन Sudarshan Chakra a study

 सुदर्शन चक्र एक अध्ययन  
Sudarshan Chakra a study



ज्योतिष शास्त्र में किसी भी कुण्डली का फलित लग्न,राशि एवं ग्रह दशा को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। तथा जन्म नक्षत्र वह केन्द्र बिन्दु है जिसके चारों तरफ जातक की जीवन गति चलती रहती है। 

अतः सही फलकथन के लिए जन्म नक्षत्र का विचार करना परम आवश्यक है। 27 नक्षत्रों में से 6 नक्षत्र मूल संज्ञक नक्षत्र होते हैं। इनमें जन्म लेने वाले जातकों को गण्डमूल का दोष लगता है। 

ज्योतिष शास्त्र में ऋषियों ने सूर्य चन्द्रमा एवं लग्न कुण्डलियों का समायोजन सुदर्शन कुण्डली में किया है। 

आइए जानते हैं गण्डमूल एवं सुदर्शन कुण्डली द्वारा जातक के आचार व्यवहार एवं अरिष्टों की जानकारी... सूर्य कुण्डली, चन्द्र कुण्डली, लग्न कुण्डली तीनों का एक साथ समायोजन सुदर्शन चक्र कहलाता है। लग्न जातक के सामान्य आकार, लक्षण, स्वभाव एवं स्वास्थ्य के बारे में सूचित करती है। लग्न के आधार पर कुंडली के अन्य भावों का क्रमबद्ध निर्धारण किया जाता है।

इन द्वादश भावों का निर्धारण करके जातक के जीवन में घटने वाली समस्त शुभाशुभ घटनाओं के बारे में विचार किया जाता है। ‘चन्द्रमा मनसो जातः’ अर्थात चन्द्रमा जातक का मन है। मन की शीघ्र गति होने के कारण एवं सभी ग्रहों में चन्द्रमा की गति सबसे अधिक होने के कारण इसका मन पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। जातक के किसी भी शुभ कार्य जैसे विवाह, उपनयन आदि अन्य आवश्यक मुहूर्तों में चन्द्रमा को आधार मानकर  शुभाशुभ मुहूर्त प्राप्त किये जाते हैं। 

सूर्य ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। सूर्य को जातक की आत्मा भी कहा जाता है। ‘आत्मा का अंश आत्मा’ इस आधार पर कहा जाता है कि प्रत्येक जातक अपने पिता का अंश है।

अतः सूर्य को पिता का कारक भी कहा गया है।

"हमारा जीवन आत्मा,मन तथा शरीर का मिश्रण है"।

यही सुदर्शन चक्र का मूल आधार है। आत्मा मन तथा शरीर का सही समायोजन जीवन की पूर्णता के लिए परम आवश्यक है। आत्मा जातक की सबसे भीतरी स्थिति है। मन उससे बाहर की तथा शरीर सबसे बाह्य स्थिति है। इसी प्रकार का क्रम सुदर्शन चक्र कुंडली में भी है। सबसे भीतर सूर्य कुंडली उससे ऊपर चंद्र कुंडली, सबसे बाहर लग्न कुंडली। आत्मा का प्रभाव मन पर व मन के विचारों का प्रभाव जातक के शरीर पर पड़ता है। प्रत्येक जातक में आत्मा के रूप में सिर्फ पिता का ही अंश नहीं है बल्कि आत्मा पिता के माध्यम से प्राप्त जन्म जन्मांतर में विभिन्न योनियों में विचरण करने के उपरांत प्राप्त अनुभवों तथा सीखों का संकलन है। जो सर्वप्रथम मन उसके बाद जातक का विकास रहता है।

इसलिए एक ही पिता की संतान (चाहे जुड़वां ही क्यों न हो) गुण, स्वभाव, आचार, विचार, व्यवहार में एक जैसी नहीं होती। इसका अर्थ यही है कि शरीर तो पिता से मिलता है लेकिन इस शरीर के साथ ऐसा भी कुछ प्राप्त होता रहता है जो पिछले कई जन्मों के विकास का परिणाम है। यही आत्मा है। 

हम शरीर के माध्यम से आत्मा का निरन्तर विकास करते रहते हैं। मन आत्मा तथा शरीर के मध्य सेतु का कार्य करता है। एक तरफ मन आत्मा का विकास करता है तो दूसरी तरफ आत्मा के अनुभवों को शरीर पर अनुभव कराता है। विचार, प्रयास, गंभीरता, सुख दुखः करूणा, दया, प्रेम सब.इसी का परिणाम है। यही पुनर्जन्म का परम गूढ़ रहस्य है। हमारे दूरदर्शी ज्योतिष मर्मज्ञ ऋषियों ने सूर्य एवं चन्द्रमा द्वारा बनने वाले योगों पर विचार करना बताया है। उसका आशय मन एवं आत्मा पर अन्य ग्रहों द्वारा पड़ने वाले प्रभाव से है। मन और आत्मा का सही समायोजन जातक के व्यक्तित्व का विकास करता है।

यथा-सूर्य से बनने वाले वासियोग, उभयचरी योग में चन्द्रमा को विशेष महत्व दिया है एवं सर्य से चन्द्र की स्थिति के आधार पर इन योगों का निर्माण किया गया है। चन्द्रमा से बनने वाले सुनफा, अनफा, दुरुधरा,और केमद्रुम योग सूर्य एवं चन्द्रमा की विशेष स्थिति के आधार पर ही निर्धारित किये जाते हैं। इन योगों पर गहनता से विचार करके जातक के व्यक्तित्व, भविष्य आदि के बारे में फलित किया जाता है। बुधादित्य योग, गजकेसरी योग आदि योगों के माध्यम से जातक के मन, और आत्मा की गहराई जान सकते हैं। 

वास्तव में सुदर्शन चक्र ज्योतिष का पूर्ण आध्यात्मिक पक्ष है। 

Related topics-

खोई हुई वस्तु की जानकारी Lost information

गृह प्रवेश मुहूर्त विचार grih pravesh muhurt vichaar

 गृह प्रवेश मुहूर्त विचार
grih pravesh muhurt vichaar




सनातन धर्म में हर शुभ कार्य मुहुर्त देखकर किया जाता है। गृह प्रवेश करते समय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, गृह प्रवेश के मुुहूर्त में नक्षत्र, तिथि, वार और लग्न पर विशेष रूप से विचार किया जाता है। इन बातों का ध्यान रख कर आप भी गृह प्रवेश के मुहूर्त बहुत आसानी से निकाल सकते हैं।

जानिए गृह प्रवेश के लिए शुभ नक्षत्र,शुभ तिथि, वार और लग्न
Know auspicious constellation, auspicious date, war and lagna for home entry

शुभ नक्षत्र- उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा एवं रेवती नक्षत्र गृह प्रवेश के लिए शुभ हैं।

शुभ तिथि- शुक्लपक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, दशमी, एकादशी व त्रयोदशी तिथियां भी गृह प्रवेश के लिए शुभ मानी गई हैं।

शुभ वार- गृह प्रवेश के लिए सोमवार, बुधवार, गुरुवार व शुक्रवार शुभ हैं।

शुभ लग्न- वृष, सिंह, वृश्चिक व कुंभ राशि का लग्न उत्तम है। मिथुन, कन्या, धनु व मीन राशि का लग्न मध्यम है। लग्नेश बली, केंद्र-त्रिकोण में शुभ ग्रह और 3, 6, 10 व 11वें भाव में पाप ग्रह होने चाहिए।
 

रिक्ता तिथि (चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी) और शनिवार को गृह प्रवेश नहीं करना चाहिए।

गृह प्रवेश के समय वास्तु पूजन अवश्य कराना चाहिए।

वास्तु पूजन के बाद ब्राह्मण भोज करवाना चाहिए।

घर में तुलसी का पौधा लगाना अच्छा होता है। इससे शुभ फल मिलते हैं। 

घर के मुख्य दरवाजे के आस-पास शुभ चिह्न जैसे- ॐ,स्वास्तिक भी बनवाना चाहिए।

शुभ मुहूर्त में सपरिवार व परिजनों के साथ मंगलगान करते हुए शंख बजाते हुए गृह प्रवेश करना चाहिए।

नोट-जिन लोगों को नौकरी आदि में स्थानांतरण आदि के कारण मकान बदलने होते हैं या किराये के मकान खाली कर दूसरी जगह निवास करना पड़ता है।देशकाल परिस्थिति वश इन मुहूर्तों में गुरु,शुक्र का अस्तकाल,अधिकमास दोष,गुर्वादित्य दोष,कलशचक्र शुद्धि, होलाष्टक आदि का विचार नहीं किया जाता है।

Releted topics-

Thursday, January 21, 2021

ज्योतिष और विदेश यात्रा/प्रवास Astrology and Foreign Travel / Migration

 ज्योतिष और विदेश यात्रा/प्रवास
Astrology and Foreign Travel / Migration


यद्यपि कुछ समय पहले तक जन्मपत्रिका में शकट योग का होना अशुभ माना जाता था कारण ऐसे व्यक्ति की आजीविका जन्म स्थान से दूर या विदेश में होती है।किन्तु समय के परिवर्तन के साथ अब सब बदल गया है।विदेशों में जाना वहाँ पर रहना या वहाँ बस जाना जीवन का उद्देश्य सा हो गया है।
इसलिए आजकल हर व्यक्ति के ह्रदय में विदेश में बसने की तीव्र इच्छा होती है तथा वह ये भी जानना चाहते हैं कि क्या उन्हे स्थाई आवास या स्थान (permanent residency) मिलने का योग है या नहीं?
किसी भी जातक को यह जानने के लिए कि क्या उसका विदेश में प्रवास सम्भव है या नहीं (जिसे हम permanent displacement from the country of birth कहते हैं) जानने के लिए जो ग्रह सबसे ज्यादा कारक होते हैं, वे ही शनि और राहु तथा छोटी यात्राओं के लिए शनि और राहु के अतिरिक्त चंद्रमा तथा शुक्र भी प्रभाव डालते हैं।
इसके अतिरिक्त जन्मपत्री के जो 12 भाव रहते हैं, उसमें से सप्तम, अष्टम, नवम तथा बारहवें भाव की स्थिति तथा उसमें जो ग्रह है, उस पर निर्भर करता है।
उदाहरण के लिए यदि पहले ग्रह का स्वामी यदि 12वें भाव में है तो विदेश में प्रवास की तीव्र सम्भावना बन जाती है, इसके अतिरिक्त बहुत से और भी योग हैं जैसे चतुर्थ भाव के स्वामी का 12वे भाव में स्थित होना आदि।
हर जन्मपत्रिका की स्थिति अलग होती है तथा यह भी देखना पडता है कि जातक की किस ग्रह की दशा या महादशा चल रही है। इसके द्वारा हम ज्ञात कर सकते हैं कि समय प्रतिकूल है या अनुकूल है तथा इसके साथ साथ नवमांश तथा द्वादशशांश कुण्डली का  भी अध्ययन करना पडता है।
प्राचीन समय में अपने घर या मातृभूमि को छोड कर जाने में कोई इच्छुक नहीं होता था पर आज कल अच्छे अवसर(better opportunities) के लिए विदेश में प्रवास एक तीव्र इच्छा बन गई है। 

Monday, January 4, 2021

ज्योतिष एक पथप्रदर्शक Astrology a guide

 

" ज्योतिष भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है , और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है "

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त Mantra theory for suffering peace

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त  Mantra theory for suffering peace संसार की समस्त वस्तुयें अनादि प्रकृति का ही रूप है,और वह...