Monday, January 27, 2020

बसंत पञ्चमी Basant Panchami


बसंत पञ्चमी Basant Panchami


बसंत पञ्चमी हिंदुओं का मुख्य पर्व है।यह पर्व प्रति वर्ष माघ मास के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि को मनाया जाता है।इस दिन माँ देवी सरस्वती की आराधना की जाती है।
इस दिन महिलाएं पीले रंग का वस्त्र धारण करती हैं।भारत समेत नेपाल में छः ऋतुओं में सबसे लोकप्रिय ऋतु बसंत है।इस ऋतु में प्रकृति अपने सौंदर्य से सबके मन को मोहित करता है।इस ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा की जाती है, जिससे यह बसंत पञ्चमी का पर्व कहलाता है।
बसंत पञ्चमी के दिन को देवी सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में माता सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात् मां आप परम चेतना हो,देवी सरस्वती के रूप में आप हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हो,हम में जो आचार और मेधा है उसका आधार मां आप ही हो। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है।


बसंत पञ्चमी की  कथा -

Story of Basant Panchami -

सृष्टि रचना के समय भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। ब्रह्माजी अपने सृजन से संतुष्ट नहीं हुए उन्हें लगा कि कुछ कमी है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया है।
विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल का छिड़काव किया, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई। यह शक्ति एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री थी। जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरे हाथ में वर मुद्रा था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया।
जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हुई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हुआ। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है।

बसंत पञ्चमी व सरस्वती पूजा
Basant Panchami and Saraswati Puja

बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा भी की जाती है। मां सरस्वती ज्ञान की देवी हैं। गुरु शिष्य परंपरा के तहत माता-पिता इसी दिन अपने बच्चे को गुरुकुल में गुरु को सौंपते थे। यानि बच्चों की औपचारिक शिक्षा के लिये यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। विद्या व कला की देवी सरस्वती इस दिन मेहरबान होती हैं इसलिये उनकी पूजा की जाती है।
कला-जगत से जुड़े लोग भी इस दिन को अपने लिये बहुत खास मानते हैं। जिस तरह  सैनिकों के लिए उनके शस्त्र और विजयादशमी का पर्व, उसी तरह और उतना ही महत्व कलाकारों के लिए बसंत पञ्चमी का है।चाहे वह कवि, लेखक, गायक, वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब इस दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।

माता सरस्वती को कैसे करें प्रसन्न? How to please Mother Saraswati?

◆ जिन लोगों को एकाग्रता की समस्या हो, उन्हें प्रातः सरस्वती वंदना का पाठ जरूर करना चाहिए।
◆ माता सरस्वती के चित्र की स्थापना करें। चित्र की स्थापना पढ़ने के स्थान पर करना श्रेष्ठ होगा।
◆ माता सरस्वती का बीज मंत्र (ऐं) को केसर गंगाजल से लिखकर दीवार पर लगा सकते हैं।
◆ जिन लोगों को सुनने या बोलने की समस्या है वो लोग सोने या पीतल के चौकोर टुकड़े पर माता सरस्वती के बीज मंत्र "ऐं" को लिखकर धारण कर सकते हैं।
◆ अगर संगीत या वाणी से लाभ लेना है तो केसर अभिमंत्रित करके जीभ पर "ऐं" लिखवाएं। किसी धार्मिक व्यक्ति या माता से लिखवाना अच्छा होगा।

कैसे करें माता सरस्वती की उपासना? How to worship Mother Saraswati?

◆ इस दिन पीले, बसंती या सफेद वस्त्र धारण करें.  पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पूजा की शुरुआत करें।
◆ माता सरस्वती को पीला वस्त्र बिछाकर उस पर स्थापित करें और रोली मौली, केसर, हल्दी, चावल, पीले फूल, पीली मिठाई, मिश्री, दही, हलवा आदि प्रसाद के रूप में उनके पास रखें।
◆ माता सरस्वती को श्वेत चंदन और पीले तथा सफ़ेद पुष्प दाएं हाथ से अर्पण करें।
◆ केसर मिश्रित खीर अर्पित करना सर्वोत्तम होगा।
◆ माता सरस्वती के मूल मंत्र ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः का जाप हल्दी की माला से करना सर्वोत्तम होगा।
◆ काले, नीले कपड़ों का प्रयोग पूजन में भूलकर भी ना करें।
शिक्षा में बाधा का योग है तो इस दिन विशेष पूजा करके उसको ठीक किया जा सकता है।

Related topics:-



Monday, January 20, 2020

सूर्यकालानल चक्र Surya kalanal Chakra


सूर्यकालानल चक्र Surya kalanal Chakra


सूर्य कालानल चक्र

 सूर्यकालानल चक्र का प्रयोग हम दैनिक प्रश्न गत यात्रा शत्रु विजय आदि में प्रयोग करते है 
सूर्य काला नल चक्र के द्वारा पिता से सम्बन्ध पिता का सुख सहयोग पिता का स्वास्थ्य अदि का विचार करते है । 
सूर्य कलानल चक्र तर्क, साजिश और युद्ध के परिणामों को जानने और बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए बनाया गया है।  
इसे हर संक्रांति के दिन बनाया जाना चाहिए यानी जिस दिन सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है।
सूर्य कालानल चक्र दो प्रकार से बनते है ।
● प्रथम जन्म कालीन सूर्य काला नल चक्र जो जन्मलग्न, चन्द्रलग्न,और सूर्यलग्न को मिलाकर बनाया जाता है।
●दूसरा प्रश्न कालीन सूर्य काला नल चक्र जो तत्कालीन सूर्य नक्षत्र के अनुसार बनता है
सूर्य कालानल चक्र का फल निम्न प्रकार से है ।
त्रिशूल वाली रेखाओ में नीचे मूल में क्रमशः चिंता, बंधन
दोनों श्रृंगो में पडे तो रोग होने की सम्भावना
तीनो त्रिशूल में पडे तो मृत्यु तुल्य कष्ट और पराजय
अन्य स्थान विजयी व शुभ धन लाभ अभीष्ट की सिद्धि कार्य सफलता ।
ग्रहों का वेध गोचर कालीन कालानल चक्र में त्रिशूल मूल और श्रिंग इत्यादि अशुभ स्थानों में जो ग्रह बैठते है उनका वेध माना जाता है ।
यदि चंद्रमा का वेध होता है तो मनसिक कष्ट, मंगल का वेध होतो धन हानि,शनि का वेध रोग पीड़ा, राहु केतु का वेध मृत्यु तुल्य कष्ट, शुक्र का वेध हो तो रत्न लाभ मित्र लाभ,  गुरु का वेध हो तो धन लाभ, बुध का वेध हो तो सभी प्रकार के सुख लाभ।
सूर्य कलानल चक्र का निर्माण आकृति में किया गया है जैसा चित्र में दिखाया गया है।
नक्षत्र जिसमें सूर्य को अस्त किया जाता है, नंबर 1 पर रखा जाता है
अभिजीत सहित शेष 27 नक्षत्रों को संख्यात्मक क्रम (दक्षिणावर्त) में रखा जाना चाहिए जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।
परिणाम जन्म नक्षत्र के अलग-अलग स्थान के लिए सारणीबद्ध किए गए हैं।
सूर्य के नक्षत्र से 1, 2 या 28 वें भाग में जन्म नक्षत्र का अर्थ है कि जातक को भय / चिंता / भय का अनुभव होगा।
और 3,4, 8 वीं, 10 वीं, 20 वीं, 22 वीं, 26 वीं या 27 वीं संख्या में स्थित होने पर  सभी क्षेत्रों में लाभ का अनुभव होगा।
पश्चिम से पूर्व तक के छह नक्षत्र यानी 5 वें, 6 वें, 7 वें, 23 वें, 24 वें और 25 वें दिन भी यही परिणाम आएंगे।अर्थात् शुभ फल प्राप्त होगा।
दो नक्षत्र, अर्थात्, 9 वीं और 21 वीं बीमारी का इलाज करना आदि दर्शाता है।
यदि 11वीं, 12वीं, 13वीं, 14 वीं 15 वीं 16 वीं 17 वीं 18 वीं और 19वीं में दुर्लभ मामलों में मृत्यु की भविष्यवाणी की जा सकती है।  इस तरह के निष्कर्ष पर पहले से सावधानी बरतनी चाहिए।

Related topics-



Sunday, January 19, 2020

Kundalini Chakras Significance in Our Life कुण्डलिनी चक्रों का हमारे जीवन में महत्व

कुण्डलिनी चक्रों का हमारे जीवन में महत्व


1. मूलाधार चक्र :
यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला यह "आधार चक्र" है। 99.9% लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है, उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।
मंत्र : "लं"
कैसे जाग्रत करें : मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है.! इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्यािन लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना।
प्रभाव : इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतरवीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।
2. स्वाधिष्ठान चक्र -
यह वह चक्र लिंग मूल से चार अंगुल ऊपर स्थित है, जिसकी छ: पंखुरियां हैं। अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है, वह आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे।
मंत्र : "वं"
कैसे जाग्रत करें : जीवन में मनोरंजन जरूरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी में धकेलता है। फिल्म सच्ची नहीं होती. लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आपके बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते।
प्रभाव : इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हो, तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।
3. मणिपुर चक्र :
नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अंतर्गत "मणिपुर" नामक तीसरा चक्र है, जो दस कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।
मंत्र : "रं"
कैसे जाग्रत करें: आपके कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएंगे। पेट से श्वास लें।
प्रभाव : इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान होना जरूरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं। आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।
4. अनाहत चक्र
हृदय स्थल में स्थित स्वर्णिम वर्ण का द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से सुशोभित चक्र ही "अनाहत चक्र" है। अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है, तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने की सोचते हैं.
मंत्र : "यं"
कैसे जाग्रत करें : हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह अभ्यास से जाग्रत होने लगता है और "सुषुम्ना" इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है।
प्रभाव : इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण होता है। इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान स्वत: ही प्रकट होने लगता है। व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता हैं। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।
5. विशुद्ध चक्र
कंठ में सरस्वती का स्थान है, जहां "विशुद्ध चक्र" है और जो सोलह पंखुरियों वाला है। सामान्यतौर पर यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है, तो आप अति शक्तिशाली होंगे।
मंत्र : "हं"
कैसे जाग्रत करें : कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र Iजाग्रत होने लगता है।
प्रभाव : इसके जाग्रत होने कर सोलह कलाओं और सोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।
6. आज्ञाचक्र :
भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में "आज्ञा-चक्र" है। सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय है, तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। "बौद्धिक सिद्धि" कहते हैं।
मंत्र : "ॐ"
कैसे जाग्रत करें : भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।
प्रभाव : यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस "आज्ञा चक्र" का जागरण होने से ये सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं, व्यक्ति एक सिद्धपुरुष बन जाता है।
7. सहस्रार चक्र :
"सहस्रार" की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात जहां चोटी रखते हैं। यदि व्यक्ति यम, नियम का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है। ऐसे व्यक्ति को संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब नहीं रहता है।
कैसे जाग्रत करें : "मूलाधार" से होते हुए ही "सहस्रार" तक पहुंचा जा सकता है। लगातार ध्यान करते रहने से यह "चक्र" जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त कर लेता है।
प्रभाव : शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत का संग्रह है। यही "मोक्ष" का द्वार है।

Related topics-

● कुण्डलिनी kundalinee

● दश महाविद्या शाबर मन्त्र Das Mahavidya Shabar Mantra

Wednesday, January 15, 2020

चन्द्र कालानल चक्र chandra kalanala chakra

चन्द्र कालानल चक्र 
chandra kalanala chakra


इस चक्र के द्वारा आप स्वयं अपना दैनिक राशिफल जान सकते हैं।

यह चक्र इक्षित दिन के लाभ और हानि, आराम और जीत आदि का आकलन करने के लिए प्रयोग किया जाता है।  जन्म नक्षत्र के अभिजीत सहित 28 नक्षत्रों उपयोग किया जाता है 

इतना ही नही आप आगे कितने भी दिन का राशिफल देखकर अपना लक्ष्य या दिनचर्या में अनुकूल परिवर्तन कर सकते हैं।
बस केवल आपको अपना जन्म या नाम नक्षत्र को एक बार याद कर लेना है।उसके बाद जिस दिन का आपको राशिफल देखना है उस दिन का नक्षत्र आपको ज्ञात करना है।
और इस चक्र के द्वारा उस दिन की स्थिति आपको ज्ञात हो जाती है, की वो दिन आपके लिए कैसा रहेगा आप उसके अनुसार कार्य कर सकते हैं।
ये राशिफल आपका स्वयं अपना होगा ।
बाकी कैलेंडर आदि में सामान्य रूप से राशिफल निकाला जाता है जो पूर्णतया आपके लिए नही होता है, बस राशि अनुसार मिलता-जुलता है।


आइए जानते हैं इस चक्र का प्रयोग कैसे करें?Let's know how to use this cycle?

इस चक्र में त्रिशूल के मध्य जहाँ १ लिखा है वहाँ पर उस दिन का नक्षत्र लिखें फिर क्रमशः १-२-३-४-५ आदि क्रमशः संख्या अनुसार आगे के अभिजित सहित २८ नक्षत्रों के नाम लिखें।
इस तरह आपका विशेषकर जन्म नक्षत्र या नाम नक्षत्र देखिए चक्र के किस भाग में स्थित है।
आपका नक्षत्र यदि त्रिशूल पर मिले तो वह दिन कष्टप्रद, चिन्ता विषयक जाने। त्रिशूल के अलावा नीचे के गोलाकार वर्तुल के बाहर किसी स्थान पर आवे तो वह दिन सामान्य प्रतिफल समझें।
तथा गोलाकार वर्तुल के मध्य  किसी स्थान पर आवे तो वह दिन शुभ संज्ञक जानें अर्थात् समस्या समाधान, शुभ संदेश, लाभ,आमदनी-यश सम्पदा, वैचारिक शक्ति विकास इष्ट जन से सहयोग की प्राप्ति,अभिनव दिशा पथ का संचारक प्रतीत होगा।
मूल अभिप्राय यह कि यदि आपका जन्म या नाम नक्षत्र त्रिशूल गत स्थित द्वादश नक्षत्र स्थान २८-१-२-७-८-९-१४-१५-१६-२१-२२-२३ नेष्ट अशुभ फल सूचक हैं।
इसी तरह ३-६-१०-१३-१७-२०-२४-२७ सामान्य फल सूचक हैं।
और ४-५-११-१२-१८-१९-२५-२६ अत्यंत शुभ सूचक हैं।
इस तरह आप अपना या किसी इष्टमित्र का किसी भी दिन का शुभाशुभ फल देख सकते हैं।
इस विषय पर शंका-समाधान आदि के लिए टिप्पणी कर सकते हैं।

Related topics:-





Saturday, January 11, 2020

लोहड़ी 2020 Lohri 2020


लोहड़ी 2020
Lohri 2020

लोहड़ी का धार्मिक महत्व


Religious importance of Lohri




हेमन्त और शिशिर ऋतु अर्थात् पौष-माघ के महीने में सिहरन पैदा करती ठंड में जलता हुआ अलाव बड़ी शान्ति और सकून देने वाला होता है।
इसी मौसम में किसानों को अपनी फसलों आदि के कामकाज से थोड़े  फुर्सत के पल मिल जाते हैं, गेंहूं, सरसों, चने आदि की फसलें लहलहाने लगती हैं, किसानों के सपने सजने लगते हैं, उम्मीदें पलने लगती हैं। किसानों के इस उल्लास को लोहड़ी के दिन देखा जा सकता है। हर्षोल्लास से भरा, जीवन में नई स्फूर्ति, एक नई उर्जा, आपसी भाईचारे को बढ़ाने व अत्याचारी, दुराचारियों की पराजय एवं दीन-दुखियों के नायक, सहायक की विजय का प्रतीक है लोहड़ी का त्यौहार।
लोहड़ी का यह त्यौहार पंजाब के साथ-साथ हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश व जम्मू-कश्मीर में भी पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। वर्तमान में देश के अन्य हिस्सों में भी लोहड़ी पर्व लोकप्रिय होने लगा है।

लोहड़ी की कहानियां
Lohri Stories

इस त्योहार के मनाए जाने में वैसे तो कई मान्यताएं हैं, लेकिन सबसे प्रचलित मान्यता दुल्ला भट्टी की है। दुल्ला भट्टी की लोक कथा के अनुसार दुल्ला भट्टी मुगल शासकों के समय का एक बहादुर योद्धा था। एक गरीब ब्राह्मण की दो लड़कियों सुंदरी और मुंदरी के साथ स्थानीय मुगल शासक जबरदस्ती विवाह करना चाहता था, जबकि उनका विवाह पहले से कहीं और तय था। दुल्ला भट्टी ने लड़कियों को मुगल शासक के चंगुल से छुड़वाकर स्वयं उनका विवाह किया। उस समय उसके पास और कुछ नहीं था, इसलिए एक शेर शक्कर उनकी झोली में डाल कर उन्हें विदा किया। इसी कहानी को कई तरीके से पेश किया जाता है। किसी कहानी में दुल्ला भट्टी को अकबर के शासनकाल का योद्धा व पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित बताया जाता है तो किसी कहानी में डाकू। लेकिन सभी कहानियों में समानता यही है कि दुल्ला भट्टी ने पीड़ित लड़कियों की सहायता कर एक पिता की तरह उनका विवाह किया। दुल्ला भट्टी की कहानी को आज भी पंजाब के लोक-गीतों में सुना जा सकता है।

सुंदरिए मुंदरिए हो.. तेरा कौण बिचारा
हो... दुल्ला भट्टी वाला हो
दुल्ले दी धी ब्याही हो
शेर शक्कर पाई हो...

पौराणिक कथा mythology


पौराणिक कथा के अनुसार, दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में यह अग्नि जलाई जाती है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, संत कबीर की पत्नी लोई से भी लोहड़ी को जोड़ा जाता है, जिस कारण पंजाब में कई स्थानों पर लोहड़ी को आज भी लोई कहा जाता है।

कैसे मनाते हैं लोहड़ी का त्यौहार? How do you celebrate the festival of Lohri?

लोहड़ी के दिन लकड़ियों व उपलों का छोटा सा ढेर बनाकर जलाया जाता है जिसमें मूंगफली, रेवड़ी, भुने हुए मक्की के दानों को डाला जाता है। लोग अग्नि के चारों और गीत गाते, नाचते हुए खुशी मनाते हैं व भगवान से अच्छी पैदावार होने की कामना करते हैं। अविवाहित लड़कियां-लड़के टोलियां बनाकर गीत गाते हुए घर-घर जाकर लोहड़ी मांगते हैं, जिसमें प्रत्येक घर से उन्हें मुंगफली रेवड़ी एवं पैसे दिए जाते हैं। जिस घर में बच्चा पैदा होता है उस घर से विशेष रुप से लोहड़ी मांगी जाती है।
दे माए लोहड़ी... जीवे तेरी जोड़ी
खोल माए कुंडा जीवे तेरा मुंडा

2020 में कब है लोहड़ी का त्योहार When is Lohri festival in 2020


सन 2020 में लोहड़ी का त्यौहार 13 जनवरी, सोमवार को पूरी धूम-धाम के साथ मनाया जायेगा।

Related topics-




Friday, January 10, 2020

मकर संक्रांति 2020 Makar Sankranti 2020


मकर संक्रांति 2020
Makar Sankranti 2020

मकर संक्रांति हमारे प्रमुख त्यौहारों में एक है। यह होली, दीवाली,दशहरा और नवरात्र की तरह मनाया जाने वाला त्यौहार  हैं। यह त्यौहार भगवान् सूर्य को समर्पित हैं।
यह पर्व एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना का साक्षी रहता हैं।सूर्य प्रतिवर्ष पृथ्वी के गति के कारण दक्षिणायन से उत्तरायण भाग में आ जाते हैं और इसी के साथ सूर्य मकर राशि में भी प्रवेश करते हैं। 

मकर संक्रांति क्या है?Makar Sankranti Kya Hai ? 


किसी ग्रह का संचरण जब एक राशि से दूसरी राशि में होता है तो इसे संक्रांति कहते हैं।सूर्य एक राशि में एक मास तक रहता है, इस तरह बारह संक्रान्ति होती हैं।
शरद ऋतु में माघ महीने के आरम्भ में जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इस संक्रांति को मकर संक्रांति कहते हैं। पृथ्वी के गति के कारण इसी दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण भी हो जाते हैं। सभी बारह संक्रांतियों में मकर संक्रांति सबसे प्रमुख संक्रांति हैं।

मकर संक्रांति मुहूर्त पुण्यकाल कब कैसे मनाएँ ? How to celebrate Makar Sankranti Muhurta Punyakal


शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति के समय पुण्यकाल संक्रांति से 6 घंटे पहले तथा संक्रांति के ख़त्म होने के 6 बाद तक रहता हैं। इस वर्ष मकर संक्रांति का पुण्यकाल15 जनवरी 2020 को पूरे दिन रहेगा।
अतः ब्रह्ममुहूर्त से ही स्नान,ध्यान,दान पुरे दिन सूर्यास्त तक किया जा सकता हैं। मकर संक्रांति पर किया गया ध्यान  फल कई गुना बढ़कर दान और पूजा-पाठ करने वालो को मिलता हैं। 

तिल-गुड़ के लड्डू और पकवान  Sesame-jaggery laddus and dish


मकर संक्रांति के दिन पूजा-पाठ और मन्त्र जप का विशेष लाभ मिलता हैं इस दिन प्रातःकाल स्नान करके सर्वप्रथम उगते सूर्यनारायण को जल में पुष्प-अक्षत डाल कर अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। और उनसे बल, विद्या, बुद्धि का आशीर्वाद माँगना चाहिए। ऐसी मान्यता हैं की इस दिन किया गया दान का पुण्य सौ गुना बढ़कर पुनः प्राप्त होता हैं।

मकर संक्रान्ति का महत्व Importance of Makar Sankranti


शास्त्रों के मतानुसार दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है-

माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम्।स भुक्त्वा सकलान् भोगान् अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥


गंगा सागरे गंगायाम् सर्वत्र नद्यां तीर्थे वा स्नानं गौ,कम्बल,मृगमोदकं वस्त्र,उपानह दानम्।।



मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण छ:-छ: माह के अन्तराल पर होता है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है।

मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व Historical significance of Makar Sankranti


ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। और दो महीने तक उनके घर पर निवास करते हैं।
चूँकि शनिदेव मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं,अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति अर्थात सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।


Related topics-

● वर्ष भर के प्रमुख व्रत-पर्व-त्योहार Major fast-festival of the year

● मौनी अमावस्या Mauni Amavasya

Saturday, January 4, 2020

नववर्ष 2020 का पहला चन्द्र ग्रहण First lunar eclipse of new year 2020

         नववर्ष 2020 का पहला चन्द्र ग्रहण
First lunar eclipse of new year 2020


मान्द्य या उपछाई चन्द्र ग्रहण यह नववर्ष 2020 का पहला ग्रहण है।

                    ग्रहण विवरण

            Eclipse Description

संवत् 2076 पौष शुक्ल पक्ष पूर्णिमा शुक्रवार तारीख 10 जनवरी 2020 को मान्द्य चन्द्रग्रहण होगा। ग्रहण का स्पर्श रात्रि 10:38 मिनट पर, ग्रहण का मध्य रात्रि 12:40 तथा मोक्ष रात्रि 2:42 पर होगा।
इसे उपछाई चन्द्रग्रहण भी कहते हैं। चन्द्रमा पृथ्वी की विरल छाया में से गुजरेगा जिससे मामूली सी चन्द्रकांति मलिन हो जाएगी।
वास्तव में ज्योतिर्गणित की दृष्टि से इसे ग्रहण नहीं माना जाता है, अतः इस ग्रहण का धार्मिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं है। इसमें किसी भी प्रकार का यम, नियम, सूतक,आदि मान्य नहीं है।
यह ग्रहण कनाडा, यूनाइटेड स्टेट, ब्राजील, अर्जेन्टीना, अंटार्कटिका, आदि को छोड़कर भारत सहित संपूर्ण विश्व में दृश्य होगा।पूर्वाचार्य, पंचांगकर्ता पहले इसका उल्लेख नहीं करते थे।
परंतु वर्तमान समय में मीडिया आदि के द्वारा अधकचरा ज्ञान फैल जाता है, और जनसाधारण में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसलिए हमने इस उपछाई या मान्द्य ग्रहण के संदर्भ में थोड़ा लिखा है।
यह चंद्रग्रहण माना नहीं जाता है।

Related topics-

● वर्ष भर के प्रमुख व्रत-पर्व-त्योहार Major fast-festival of the year

● मौनी अमावस्या Mauni Amavasya

Friday, January 3, 2020

मृत संजीवनी मुद्रा

मृत संजीवनी मुद्रा  


यदि प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन मात्र ३० मिनटों तक ‘मृत संजीवनी मुद्रा’ का अभ्यास करे, तो उससे उसका हृदय सशक्त होगा और उसको  हृदयघात (हार्ट अटैक) आने की संभावनाएँ न के बराबर होगी।

आजकल बहुत से लोगों में हृदयघात का झटका (हार्ट अटैक) आकर उसमें मृत्यु की मात्रा बढ़ी है । साथ ही युवावस्था में भी हृदयाघात का झटका आने की मात्रा भी प्रतिदिन बढ रही है । इसपर उपाय के रूप में प्रत्येक व्यक्ति यदि अपने हाथ की तर्जनी (अंगूठे से सटी उंगली) की नोक का तलुवे से स्पर्श करें तथा अंगूठा, मध्यमा और अनामिका (करांगुली से सटी उंगली) इन उंगलियों की नोकों को एक-दूसरे से लगाएं और यह मृत संजीवनी मुद्रा प्रतिदिन ३० मिनटोंतक करती है, तो उससे उसका हृदय सशक्त रहेगा तथा अकालीन हृदयघात का झटका आने की मात्रा निश्‍चितरूप से घटेगी । यह मुद्रा कर अनाहतचक्र अथवा हृदय के स्थान पर न्यास करने से उसका अधिक लाभ होगा ।
साभार

Related topics-



Wednesday, January 1, 2020

नववर्ष की शुभकामनाएं Happy New Year

नववर्षं शुभं भूयात् सदानन्दकरं चिरम् ।
आरोग्यमायु: कीर्तिश्च लक्ष्मीश्च लसतां गृहे ।।

नववर्ष मंगलकारी हो, सदा आनंद प्रदान करनेवाला हो। आप के घर में आरोग्य, आयु, कीर्ति और लक्ष्मी का चिरकाल तक वास हो।। 

न भारतीयो नव संवत्सरोयं
     तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात् ।
यतो धरित्री निखिलैव माता
     तत: कुटुम्बायितमेव विश्वम् ।।

यद्यपि यह नव वर्ष भारतीय नहीं है, तथापि सबके लिये कल्याणप्रद हो; क्योंकि सम्पूर्ण विश्व हमारा कुटुम्ब ही तो है !

भले ही हमारा नववर्ष प्रतिपदा से प्रारंभ होता है, पर अनेकता में एकता वाली संस्कृति को आत्मसात कर विश्व बंधुत्व की भावना को अंगीकार कर हम सत्य सनातन धर्म को मानने वाले आंग्लभाषा के नववर्ष पर भी एक दूसरे के साथ शुभकामनाओं का आदान- प्रदान करते हैं। हर वर्ष पर इस बार भी हम लोग तमाम नए संकल्प व अग्रिम योजनाएं बनाएंगे। प्रयास करेंगे कि हम उन्हें कार्यरूप में भी परिणित करें। 
पहली योजना तो यह है कि हम मनुष्य  बनाने का प्रयास करेंगे, यानि जिस राम राज्य की बात संत प्रवर तुलसीदास जी महराज ने श्री रामचरितमानस में की ‘ *बयरू न करू काहू सम कोई, राम प्रताप विषमता कोई’,,* ,, यानि मैं संकल्प लेता हूं कि मनसा, वाचा कर्मणा आज से मेरा किसी के प्रति कोई भी राग, द्वेष, बैर का भाव नही रहेगा।

दूसरा संकल्प यह है कि मुश्किलों का सामना हंसते हुए करूंगा ,,,, क्योूकि प्रारब्ध की खूबसूरती के कारण जीवन पथ पर मुश्किलें तो आएंगी ही, उनका सामना किसी प्रकार करना है, यह हमें सोचना है । 

तीसरा संकल्प प्रभु से प्रार्थना कि "वह शक्ति हमें दो दयानिधे कर्तव्य मार्ग पर डट जाएं, परसेवा में उपकार में हम अपना जीवन सफल बना जाएं" । 

"सूर्य संवेदना पुष्पे:, दीप्ति कारुण्यगंधने ।
लब्ध्वा शुभम् नववर्षेअस्मिन् कुर्यात्सर्वस्य मंगलम्" ।।

जिस तरह सूर्य प्रकाश देता है, संवेदना करुणा को जन्म देती है, पुष्प सदैव महकता रहता है, उसी अंग्रेजी  नव वर्ष आपके लिए हर दिन, हर पल के लिए मंगलमय हो।
जीवन पथ पर नव वर्ष मान-सम्मान, यश, कीर्ति, सुख शांति के साथ उन्नतिशील वर्ष हो।यह वर्ष आपके जीवन मे आपार सुख समृद्धि, संपन्नता लेकर आये ।  
यह पावन पर्व आपके जीवन को प्यार मोहब्बत खुशी उमंग उत्साह सफलता सौहार्द आदि से भर दे ! इसी मंगलकामनाओ के साथ, ईश्वर आपको प्रातः काल  की प्रथम  किरण से प्रारंभ  होने वाले नूतन वर्ष  में  सुख , शांति, शक्ति, सम्पत्ति, स्वरुप, संयम, सादगी, सफलता, समृध्दि, साधना, संस्कार, और  स्वास्थ्य प्रदान करें ।               

सर्वे  भवन्तु  सुखिनः  सर्वे  सन्तु  निरामयः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दु:खभाग्भवेत।।

Related topics-

● नववर्ष 2020 और पञ्चतत्व नवग्रह गायत्री New Year 2020 and Panchatattva Navagraha Gayatri

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त Mantra theory for suffering peace

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त  Mantra theory for suffering peace संसार की समस्त वस्तुयें अनादि प्रकृति का ही रूप है,और वह...