Monday, January 27, 2020

बसंत पञ्चमी Basant Panchami


बसंत पञ्चमी Basant Panchami


बसंत पञ्चमी हिंदुओं का मुख्य पर्व है।यह पर्व प्रति वर्ष माघ मास के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि को मनाया जाता है।इस दिन माँ देवी सरस्वती की आराधना की जाती है।
इस दिन महिलाएं पीले रंग का वस्त्र धारण करती हैं।भारत समेत नेपाल में छः ऋतुओं में सबसे लोकप्रिय ऋतु बसंत है।इस ऋतु में प्रकृति अपने सौंदर्य से सबके मन को मोहित करता है।इस ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा की जाती है, जिससे यह बसंत पञ्चमी का पर्व कहलाता है।
बसंत पञ्चमी के दिन को देवी सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में माता सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात् मां आप परम चेतना हो,देवी सरस्वती के रूप में आप हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हो,हम में जो आचार और मेधा है उसका आधार मां आप ही हो। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है।


बसंत पञ्चमी की  कथा -

Story of Basant Panchami -

सृष्टि रचना के समय भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। ब्रह्माजी अपने सृजन से संतुष्ट नहीं हुए उन्हें लगा कि कुछ कमी है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया है।
विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल का छिड़काव किया, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई। यह शक्ति एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री थी। जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरे हाथ में वर मुद्रा था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया।
जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हुई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हुआ। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है।

बसंत पञ्चमी व सरस्वती पूजा
Basant Panchami and Saraswati Puja

बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा भी की जाती है। मां सरस्वती ज्ञान की देवी हैं। गुरु शिष्य परंपरा के तहत माता-पिता इसी दिन अपने बच्चे को गुरुकुल में गुरु को सौंपते थे। यानि बच्चों की औपचारिक शिक्षा के लिये यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। विद्या व कला की देवी सरस्वती इस दिन मेहरबान होती हैं इसलिये उनकी पूजा की जाती है।
कला-जगत से जुड़े लोग भी इस दिन को अपने लिये बहुत खास मानते हैं। जिस तरह  सैनिकों के लिए उनके शस्त्र और विजयादशमी का पर्व, उसी तरह और उतना ही महत्व कलाकारों के लिए बसंत पञ्चमी का है।चाहे वह कवि, लेखक, गायक, वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब इस दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।

माता सरस्वती को कैसे करें प्रसन्न? How to please Mother Saraswati?

◆ जिन लोगों को एकाग्रता की समस्या हो, उन्हें प्रातः सरस्वती वंदना का पाठ जरूर करना चाहिए।
◆ माता सरस्वती के चित्र की स्थापना करें। चित्र की स्थापना पढ़ने के स्थान पर करना श्रेष्ठ होगा।
◆ माता सरस्वती का बीज मंत्र (ऐं) को केसर गंगाजल से लिखकर दीवार पर लगा सकते हैं।
◆ जिन लोगों को सुनने या बोलने की समस्या है वो लोग सोने या पीतल के चौकोर टुकड़े पर माता सरस्वती के बीज मंत्र "ऐं" को लिखकर धारण कर सकते हैं।
◆ अगर संगीत या वाणी से लाभ लेना है तो केसर अभिमंत्रित करके जीभ पर "ऐं" लिखवाएं। किसी धार्मिक व्यक्ति या माता से लिखवाना अच्छा होगा।

कैसे करें माता सरस्वती की उपासना? How to worship Mother Saraswati?

◆ इस दिन पीले, बसंती या सफेद वस्त्र धारण करें.  पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पूजा की शुरुआत करें।
◆ माता सरस्वती को पीला वस्त्र बिछाकर उस पर स्थापित करें और रोली मौली, केसर, हल्दी, चावल, पीले फूल, पीली मिठाई, मिश्री, दही, हलवा आदि प्रसाद के रूप में उनके पास रखें।
◆ माता सरस्वती को श्वेत चंदन और पीले तथा सफ़ेद पुष्प दाएं हाथ से अर्पण करें।
◆ केसर मिश्रित खीर अर्पित करना सर्वोत्तम होगा।
◆ माता सरस्वती के मूल मंत्र ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः का जाप हल्दी की माला से करना सर्वोत्तम होगा।
◆ काले, नीले कपड़ों का प्रयोग पूजन में भूलकर भी ना करें।
शिक्षा में बाधा का योग है तो इस दिन विशेष पूजा करके उसको ठीक किया जा सकता है।

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