Thursday, September 26, 2019

क्या करें जब जिंदगी बोझ लगने लगे? What to do when life starts becoming a burden?


          क्या करें जब जिंदगी बोझ लगने लगे?     What to do when life starts becoming a burden?

जीवन में हम अक्सर ऐसे मोड़ पर आ जाते हैं कि हमें ऐसा लगता कि बस जिन्दगी इतनी ही है।
हालाँकि जिन्दगी कभी रुकती नहीं है, वह हर पल हर क्षण नए आयाम देती है।जब भी कभी ऐसा लगे तो क्षण भर रुक कर देखें विचारें तब आगे बढ़ें।
इस विषय पर एक कहानी याद आ गई जो कुछ समय पहले किसी ने मुझे सुनाई थी। हो सकता है कि  कुछ लोग इस कहानी के बारे में जानते भी होंगे।
इस कहानी से मैं बड़ा प्रभावित हुआ। उसी कहानी को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ-
जापान में हमेशा से ही मछलियाँ खाने का एक ज़रुरी हिस्सा रही हैं और ये जितनी ताजा होतीं हैँ लोग उसे उतना ही पसंद करते हैं । लेकिन जापान के तटों के आस-पास इतनी मछलियाँ नहीं होतीं की उनसे लोगों की जरूरत पूरी की जा सके,फलस्वरूप मछुआरों को दूर समुद्र में जाकर मछलियाँ पकड़नी पड़ती हैं। जब इस तरह से मछलियाँ पकड़ने की शुरुआत हुई तो मछुआरों के सामने एक गंभीर समस्या आई ।
वे जितनी दूर मछली पक़डने जाते उन्हें लौटने में उतना ही अधिक समय लगता और मछलियाँ बाजार तक पहुँचते-पहुँचते बासी हो जाती, और फिर कोई उन्हें खरीदना नहीं चाहता इस समस्या से निपटने के लिए मछुआरों ने अपनी बोट्स पर फ्रीज़र लगवा लिये वे मछलियाँ पकड़ते और उन्हें फ्रीजर में डाल देते ।इस तरह से वे और देर तक मछलियाँ पकड़ सकते थे और उसे बाजार तक पहुंचा सकते थे पर इसमें भी एक समस्या आने लगी। जापानी फ्रोजेन फ़िश ओर फ्रेश फिश में आसानी से अंतर कर लेते और फ्रोजेन मछलियों को खरीदने से कतराते, उन्हें तो किसी भी कीमत पर ताज़ी मछलियाँ ही चाहिए होतीं।
एक बार फिर मछुआरों ने इस समस्या से निपटने की सोची और इस बार एक शानदार तरीका निकाला, उन्होंने अपनी बड़ी- बड़ी जहाजों पर फ़िश टैंक्स बनवा लिए ओर अब वे मछलियाँ पकड़ते और उन्हें पानी से भरे टैंक में डाल देते।टैंक में डालने के बाद कुछ देर तो मछलियाँ इधर उधर भागती पर जगह कम होने के कारण वे जल्द ही एक जगह स्थिर हो जातीं फिर जब ये मछलियाँ बाजार में पहुँचती तो भले ही वे सांस ले रही होतीं लकिन उनमें वो बात नहीं होती जो आज़ाद घूम रही ताज़ी मछलियों मे होती, और जापानी चखकर इन मछलियों में भी अंतर कर लेते ।
तो इतना कुछ करने के बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई थी।
अब मछुवारे क्या करते ?
वे कौन सा उपाय लगाते कि मछलियाँ ताजा स्थिति में लोगोँ तक पहुँच पातीं ?
नहीं, उन्होंने कुछ नया नहीं किया, वे अभी भी मछलियाँ टैंक्स में ही रखते, पर इस बार वो हर एक टैंक मे एक छोटी सी शार्क मछली भी ङाल देते।शार्क कुछ मछलियों को जरूर खा जाती पर ज्यादातर मछलियाँ बिलकुल ताज़ी पहुंचती।
ऐसा क्यों हुआ ? Why did this happen ?
क्योंकि शार्क बाकी मछलियों के लिए एक चैलेंज की तरह थी। उसकी मौज़ूदगी बाक़ी मछलियों को हमेशा भयभीत, चौकन्ना और सतर्क रखती ओर अपनी जान बचाने के लिए वे हमेशा अलर्ट रहती। इसीलिए कई दिनों तक टैंक में रहने के बावज़ूद उनमें स्फूर्ति ओर ताजापन बना रहता।
आज बहुत से लोगों की ज़िन्दगी  टैंक में पड़ी उन मछलियों की तरह हो गयी है जिन्हे जगाने के लिए कोई shark मौज़ूद नहीं है। और अगर दुर्भाग्य से(unfortunately) आपके साथ भी ऐसा ही है तो आपको भी अपनी life में नयी-नयी चुनौतियाँ स्वीकार ( challenges accept) करनी होंगी। आप जिस रूटीन के आदी हो चुकें हैं उससे कुछ अलग़ करना होगा, आपको अपना दायरा बढ़ाना होगा और एक बार फिर ज़िन्दगी में रोमांच और नयापन लाना होगा। नहीं तो, बासी मछलियों की तरह आपका भी मोल कम हो जायेगा और लोग आपसे मिलने-जुलने की बजाय नजरें बचायेंगे । और दूसरी तरफ अगर आपकी लाइफ में चैलेंजेज हैँ, बाधाएं हैँ तो उन्हें कोसते मत रहिये, यकीन मानिए समस्याएं किसी न किसी रूप में सबके जीवन में होती ही हैं. कहीं ना कहीं ये आपको  ताजा और जीवन्त(fresh and lively )बनाये रखती हैं, इन्हेँ स्वीकार (accept)करिये, इन्हे काबू (overcome) करिये और अपने में हमेशा नई ऊर्जा और अपना तेज बनाये रखिये।

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Wednesday, September 25, 2019

शारदीय नवरात्र 2019 Sharadiya Navratri 2019

            शारदीय नवरात्र 2019
       Sharadiya Navratri 2019


शारदीय नवरात्र 29 सितम्बर 2019 दिन रविवार से प्रारम्भ हो रहे हैं।कलश स्थापन प्रातःकाल से लेकर पूरे दिन किसी भी समय किया जा सकता है।तथा अभिजित मुहूर्त दिन में 11/35 से लेकर 12/25 तक विशेष माना गया है।
शक्तिस्वरूपा जगतजननी के नवो स्वरूपों के लिए निर्धारित नवदिन का नवरात्र सनातनियों के लिए शक्ति और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है।
जगदम्बा की शारदीय नवरात्र में स्थापना कर पूजा अर्चना सभी गृहस्थों की मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाली होती है।

तथा दुर्गा पूजा समितियाँ पण्डालों में भगवती की स्थापना कर भगवती की विशेष कृपा के भागी बनते हैं।भगवान राम द्वारा रावण वध के लिए की गई त्रिदिवसीय शक्ति पूजा को आधार मानकर बंगीय परम्परा से निःसृत इस पूजा पद्धति में सप्तमी तिथि में देवी की स्थापना की जाती है जो तीन दिन तक चलती है।
सप्तमी तिथि के दिन से ही देवी के आगमन का विचार होता है।तदनुसार इस वर्ष देवी का आगमन तुरंग अथवा अश्व पर हो रहा है जिसका फल नेष्टकारक है।
महाष्टमी का मान 6 अक्टूबर रविवार को होगा।
महानवमी 7 अक्टूबर सोमवार को होगी।नवमी तिथि पर्यन्त दिन में 3 बजकर5 मिनट तक नवरात्र से संबंधित दुर्गा सप्तशती पाठ एवं हवन कर नवरात्र अनुष्ठान संपन्न कर लिया जाएगा।
चूँकि दिन में ही नवमी तिथि समाप्त हो जा रही है इसलिए पूरे नवरात्र भर व्रत वाले व्रती आज ही 03/05pm के बाद पारण कर सकते हैं।

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Saturday, September 21, 2019

गजलक्ष्मी व्रत gajalakshmee vrat

         गजलक्ष्मी व्रत           gajalakshmee vrat



पितृ पक्ष में आने वाले गजलक्ष्मी(गज अर्थात् हाथी के ऊपर सवार माता लक्ष्मी) व्रत पूजन का सरल  विधान
 इसे महालक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है।इसका आरम्भ भाद्रपद शुक्ल अष्टमी तिथि से होता है।
विधि :
यह व्रत आश्विन  कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। इस व्रत को करने से पहले भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को स्नान करके सकोरे में ज्वारे (गेहूं) बोये जाते हैं। प्रतिदिन 16 दिनों तक इन्हें पानी से सींचा जाता है।
ज्वारे बोने के दिन ही कच्चे सूत (धागे) से 16 तार का एक डोरा बनाएं। डोरे की लंबाई इतनी लें कि आसानी से गले में पहन सकें। इस डोरे में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर 16 गांठ लगाएं तथा हल्दी से पीला करके पूजा के स्थान पर रख दें तथा प्रतिदिन 16 दूब और 16 गेहूं चढ़ाकर पूजन करें।
आश्विन कृष्ण पक्ष  की अष्टमी तिथि के दिन उपवास (व्रत) रखें। स्नान के बाद पूर्ण श्रृंगार करें। 18 मुट्ठी गेहूं के आटे से 18 मीठी पूड़ी बनाएं। आटे का एक दीपक बनाकर 16 पु‍ड़ियों के ऊपर रखें तथा दीपक में एक घी-बत्ती रखें, शेष दो पूड़ी महालक्ष्मीजी को चढ़ाने के लिए रखें। पूजन करते समय इस दीपक को जलाएं तथा कथा पूरी होने तक दीपक जलते रखना चाहिए। अखंड ज्योति का एक और दीपक अलग से जलाकर रखें। पूजन के पश्चात इन्हीं 16 पूड़ी को बियें (सिवैंया) की खीर या मीठे दही से खाते हैं। इस व्रत में नमक नहीं खाते हैं। इन 16 पूड़ी को पति-पत्नी या पुत्र ही खाएं, अन्य किसी को नहीं दें।
मिट्टी का एक हाथी बनाएं या कुम्हार से बनवा लें जिस पर महालक्ष्मीजी की मूर्ति बैठी हो। सायंकाल जिस स्थान पर पूजन करना हो, उसे गोबर से लीपकर पवित्र करें। रंगोली बनाकर बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर हाथी को रखें। तांबे का एक कलश जल से भरकर पटे के सामने रखें। एक थाली में पूजन की सामग्री (रोली, गुलाल, अबीर, अक्षत, आंटी (लाल धागा), मेहंदी, हल्दी, टीकी, सुरक्या, दोवड़ा, लौंग, इलायची, खारक, बादाम, पान, गोल सुपारी, बिछिया, वस्त्र, फूल, दूब, अगरबत्ती, कपूर, इत्र, मौसम का फल-फूल, पञ्चामृत, मेवे का प्रसाद आदि रखें।

केल के पत्तों से झांकी बनाएं। संभव हो सके तो कमल के फूल भी चढ़ाएं। पटे पर 16 तार वाला डोरा एवं ज्वारे रखें। विधिपूर्वक महालक्ष्मीजी का पूजन करें तथा कथा सुनें एवं आरती करें। इसके बाद डोरे को गले में पहनें अथवा भुजा से बांधें।

भोजन के पश्चात रात्र‍ि जागरण तथा भजन-कीर्तन करें। दूसरे दिन प्रात:काल हाथी को जलाशय में विसर्जन करके सुहाग-सामग्री ब्राह्मण को दें।

उद्यापन विधि : सामान्यत: यह व्रत 16 वर्षों तक किया जाता है। उसके उपरांत ही व्रत का उद्यापन किया जाता है। किंतु श्री महालक्ष्मी की असीम कृपा से मनोकामना शीघ्र पूरी हो जाए तो कम समय में भी उद्यापन किया जा सकता है। लेकिन व्रत को 16 वर्षों तक ही पूरे करना चाहिए। यदि परिस्थितिवश 16 वर्ष के बाद उद्यापन नहीं कर सकें, तो व्रत को आगे भी किया जाता रहे, जब तक कि उद्यापन न हो।किसी श्रेष्ठ विद्वान पंडित के द्वारा हवन-पूजन कराएं। पूजन की तैयारी उपरोक्त लिखी विधि के अनुसार करें। कथा सुनें, आरती करें तथा 16 जोड़ों को भोजन कराएं। पूजन के समय मिट्टी से बनाई गई मूर्ति को बिठाएं तथा ज्वारे के सामने 17 नारियल और सुहाग पूड़े की 17 टोकरी रखें जिसमें सुहाग की समस्त वस्तुएं साड़ी एवं ब्लाउज पीस व रुपए रखें। इनमें से एक टोकरी श्री महालक्ष्मीजी को चढ़ाएं, इसके साथ साड़ी-ब्लाउज, पेटीकोट (सरोपाव) एवं भगवान के नाम की धोती-कुर्ता भी रखें। इनका संकल्प लें।
16 जोड़ों को भोजन कराने के पश्चात पुरुषों को पूजन में रखे गए नारियल के साथ रुपया रखकर तिलक करके दें। स्त्रियों को सुहाग पूड़ा दक्षिणा के रूप में दें। आचार्य को धोती-कुर्ता व दक्षिणा दें।सबको भोजन कराने के बाद स्वयं मीठी पूड़ी, खीर या दही से खाएं। इस दिन भी नमक नहीं खाएं। रात्रि जागरण, भजन-कीर्तन करें। अखंड ज्योति जल्दी रहना चाहिए। प्रात:काल हाथी एवं फूल-पत्ते आदि को जलाशय में विसर्जन करें। इसके बाद शेष बचा हुआ सुहाग पूड़ा, लक्ष्मीजी को चढ़ाए गए वस्त्र एवं नारियल, धोती-कुर्ता अपने सास-ससुर को देकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें।

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जीवत्पुत्रिका (जिउतिया) व्रत 2019 Jeevattuprika (Jiutia) fast 2019

जीवत्पुत्रिका (जिउतिया) व्रत 2019
Jeevattuprika (Jiutia) fast 2019

जिउतिया व्रत भारतीय महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस व्रत को जीवत्पुत्रिका नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत विशेष तौर पर संतान के लिए किया जाता है। इस व्रत को तीन दिन तक किया जाता है। महिलाएं व्रत के दूसरे दिन और पूरी रात में जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करती हैं। यह व्रत विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार में किया जाता है।

जिउतिया व्रत की तारीख
पञ्चाङ्ग के अनुसार यह व्रत अश्विन मास कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से नवमी   तिथि तक किया जाता है। इस वर्ष व्रत को लेकर अलग-अलग धारणाएं बन रही हैं। बनारस पंचांग के अनुसार 22 सितंबर को व्रत रखा जाएगा, वहीं विश्वविद्यालय पंचांग के अनुसार 21 सितंबर को व्रत रखा जाएगा। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार व्रत का समय 21 से 23 सितंबर तक है और व्रत का श्रेष्ठ दिन अष्टमी 22 सितंबर रविवार का है।

पूजा विधि 
इस व्रत में तीन दिन तक उपवास किया जाता है। पहले दिन महिलाएं स्नान करने के बाद भोजन करती हैं और फिर दिन भर कुछ नहीं खाती हैं।  व्रत का दूसरा दिन अष्टमी को पड़ता है और यही मुख्य दिन होता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। व्रत के तीसरे दिन पारण करने के बाद भोजन ग्रहण किया जाता है।

व्रत-कथा 
इस व्रत की कथा महाभारत काल से संबंधित है। महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत का बदला लेने की भावना से अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थें। अश्वत्थामा ने उन्हें पाण्डव समझकर मार दिया, परंतु वे द्रोपदी की पांच संतानें थीं। फिर अुर्जन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि ले ली।
अश्वत्थामा ने  पुनः अपने अपमान का बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने का प्रयास किया ।
और उसने ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की गर्भस्थ मृत संतान को फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवत्पुत्रिका रखा गया। तब उस समय से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जिउतिया का व्रत रखा जाने लगा। 

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Wednesday, September 18, 2019

जन्मपत्रिका में बाधक ग्रहों का निवारणPrevention of obstructing planets in the horoscope


जन्मपत्रिका में बाधक ग्रहों का निवारण

Prevention of obstructing planets in the horoscope



सभी जातकों की जन्मपत्रिका में चर, स्थिर और द्विस्वभाव लग्न में उत्पन्न हुए या जन्म लेने वालों के लिए क्रमशः 11,9 और 7वाँ स्थान और उनके स्वामी बाधक होते है और ये अपनी दशा काल में बहुत ही प्रबल होते है ये अचानक बाधा उत्पन्न करके जीवन में परेशानी पैदा कर देते है।
अर्थात् चर लग्न के लिए  एकादश भाव का स्वामी, स्थिर लग्न के लिए नवम भाव का स्वामी, तथा द्विस्वभाव लग्न के लिए सप्तम भाव का स्वामी बाधक होता है।
इसके निवारण अथवा शांति के लिए सुदर्शन कवच का प्रयोग किया जाता है इसके अलावा ऊपरी बाधा, भूत, भूतिनी, यक्षिणी, प्रेतिनी या अन्य किसी भी तरह की ऊपरी विपत्ति में श्री सुदर्शन कवच रक्षा करता है।  यह अद्वितीय तांत्रिक शक्ति से युक्त है यह सुदर्शन चक्र की भांति साधक की रक्षा करता है ।
 विनियोग
ॐ अस्य श्री सुदर्शन कवच माला मंत्रस्य श्री लक्ष्मी नृसिंह: परमात्मा देवता क्षां बीजं ह्रीं शक्ति मम कार्य सिध्यर्थे जपे विनयोग:।
करन्यास हृदयादि न्यास
ॐ क्षां अन्गुष्ठाभ्याम नम: हृदयाय नम:
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्याम नम: शिरसे स्वाहा
ॐ श्रीं मध्यमाभ्याम नम: शिखाए वषट
ॐ सहस्रार अनामिकभ्याम नम: कवचाय हुम 
ॐ हुं फट कनिष्ठिकाभ्याम नम: नेत्रत्रयाय वौषट
ॐ स्वाहा करतल-कर प्र्ष्ठाभ्याम नम: अस्त्राय फट
ध्यानं :- उपसमाहे नृसिंह आख्यम ब्रह्म वेदांत गोचरम। भूयो-लालित संसाराच्चेद हेतुं जगत गुरुम।। 

पंचोपचार पूजनं : 
लं पृथ्वी तत्वात्मकम गंधंम समर्पयामि
 हं आकाश तत्वात्मकम पुष्पं समर्पयामि 
यं वायु तत्वात्मकम धूपं समर्पयामि
 रं अग्नि तत्वात्मकम दीपं समर्पयामि
वं जल तत्वात्मकम नैवेद्यं समर्पयामि
सं सर्व तत्वात्मकम ताम्बूलं समर्पयामि
ॐ सुदर्शने नम:
ॐ आं ह्रीं क्रों नमो भगवते प्रलय काल महा ज्वाला घोर वीर सुदर्शन नृसिंहाय ॐ महा चक्र राजाय महा बले सहस्रकोटिसूर्यप्रकाशाय सहस्रशीर्षाय सहस्राक्षाय सहस्रपादाय संकर्षणात्मने सहस्रदिव्याश्र सहस्र हस्ताय सर्वतोमुख ज्वलन ज्वाला माला वृताया विस्फु लिंग स्फोट परिस्फोटित ब्रह्माण्ड भानडाय महा पराक्रमाय महोग्र विग्रहाय महावीराय महा विष्णु रुपिणे व्यतीत कालान्त काय महाभद्र रोद्रा वताराया मृत्यु स्वरूपाय किरीट-हार-केयूर-ग्रेवेयक-कटक अन्गुलयी-कटिसूत्र मजीरादी कनक मणि खचित दिव्य भूषणआय महा भीषणआय महा भिक्षया व्याहत तेजो रूप निधेय रक्त चंडआंतक मण्डितम दोरु कुंडा दूर निरिक्षणआय प्रत्यक्ष आय ब्रह्म चक्र विष्णु चक्र कल चक्र भूमि चक्र तेजोरूपाय आश्रितरक्षाय/ ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात इति स्वाहा स्वाहा ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात इति स्वाहा स्वाहा भो भो सुदर्शन नारसिंह माम रक्षय रक्षय / ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात मम शत्रून नाशय नाशय / ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल चंड चंड प्रचंड प्रचंड स्फुर प्रस्फुर घोर घोर घोरतर घोरतर चट चट प्रचटं प्रचटं प्रस्फुट दह कहर भग भिन्धि हंधी खट्ट प्रचट फट जहि जहि पय सस प्रलय वा पुरुषाय रं रं नेत्राग्नी रूपाय / ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात भो भो सुदर्शन नारसिंह माम रक्षय रक्षय / ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात एही एही आगच्छ आगच्छ भूतग्रह- प्रेतग्रह- पिशाचग्रह-दानावग्रह-कृत्रिम्ग्रह- प्रयोगग्रह-आवेशग्रह-आगतग्रह-अनागतग्रह- ब्रह्म्ग्रह-रुद्रग्रह-पतालग्रह-निराकारग्रह -आचार-अनाचार ग्रह- नन्जाती ग्रह- भूचर ग्रह- खेचर ग्रह- वृक्ष ग्रह- पिक्षी चर ग्रह- गिरी चर ग्रह- श्मशान चर ग्रह -जलचर ग्रह -कूप चर ग्रह- देगारचल ग्रह- शुन्यगार चर ग्रह- स्वप्न ग्रह- दिवामनो ग्रह- बालग्रह -मूकग्रह- मुख ग्रह -बधिर ग्रह- स्त्री ग्रह- पुरुष ग्रह- यक्ष ग्रह- राक्षस ग्रह- प्रेत ग्रह किन्नर ग्रह- साध्य चर ग्रह - सिद्ध चर ग्रह -कामिनी ग्रह- मोहनी ग्रह-पद्मिनी ग्रह- यक्षिणी ग्रह- पकषिणी ग्रह संध्या ग्रह- उच्चाटय उच्चाटय भस्मी कुरु कुरु स्वाहा / ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ क्षरां क्षरीं क्षरूं क्षरें क्षरों क्षर : भरां भरीं भरूं भरें भरों भर: ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रें ह्रों ह्र: घरां घरीं घरूं घरें घरों घर: श्रां श्रीं श्रुं श्रें श्रों श्र: / ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात एही एही सालवं संहारय शरभं क्रन्दया विद्रावय विद्रावय भैरव भीषय भीषय प्रत्यांगिरी मर्दय मर्दय चिदंबरम बंधय बंधय विदम्बरम ग्रासय ग्रासय शांर्म्भ्वा निबंतय कालीं दह दह महिषासुरी छेदय छेदय दुष्ट शक्ति निर्मूलय निर्मूलय रूं रूं हूँ हूँ मुरु मुरु परमन्त्र - परयन्त्र - परतंत्र कटुपरं वादपर जपपर होमपर सहस्र दीप कोटि पुजां भेदय भेदय मारय मारय खंडय खंडय परकृतकं विषं निर्विष कुरु कुरु अग्नि मुख प्रकांड नानाविध कृतं मुख वनमुखं ग्राहान चुर्णय चुर्णय मारी विदारय कुष्मांड वैनायक मारीचगणान भेदय भेदय मन्त्रं परअस्माकं विमोचय विमोचय अक्षिशूल कुक्षीशूल गुल्मशूल पार्श्वशूल सर्वाबाधा निवारय निवारय पांडूरोगं संहारय संहारय विषम ज्वर त्रासय त्रासय एकाहिकं द्वाहिकं त्र्याहिकं चातुर्थिकं पंचाहिकं षष्टज्वर सप्तमज्वर अष्टमज्वर नवमज्वर प्रेतज्वर पिशाचज्वर दानवज्वर महाकालज्वरं दुर्गाज्वरं ब्रह्माविष्णुज्वरं माहेश्वरज्वरं चतु:षष्टि योगिनीज्वरं गन्धर्वज्वरं बेतालज्वरं एतान ज्वरान्न नाशय नाशय दोषं मंथय मंथय दुरित हर हर अन्नत वासुकी तक्षक कालौय पद्म कुलिक कर्कोटक शंख पलाद्य अष्ट नाग कुलानां विषं हन हन खं खं घं घं पाशुपतं नाशय नाशय शिखंडी खंडय खंडय प्रमुख दुष्ट तंत्र स्फोटय स्फोटय भ्रामय भ्रामय महानारायणअस्त्राय पंचाशधरणरूपाय लल लल शरणागत रक्षणाय हूँ हूँ गं वं गं वं शं शं अमृतमूर्तये तुभ्यं नम: / ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात भो भो सुदर्शन नारसिंह माम रक्षय रक्षय / ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात मम सर्वारिष्ट शान्तिं कुरु कुरु सर्वतो रक्ष रक्ष ॐ ह्रीं हूँ फट स्वाहा / ॐ क्ष्रोम ह्रीं श्रीं सहस्रार हूँ फट स्वाहा /

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Friday, September 13, 2019

पितृ पक्ष pitri paksh 2019

      पितृ पक्ष pitri paksh  2019


सनातन धर्मावलंबियों के लिए देवी-देवताओं की पूजा -आराधना से बढ़कर पितरों के निमित्त श्राद्ध तर्पण को मान्यता दी गयी है।माता-पिता को प्रत्यक्ष देवता माना गया है एवं पितृजनों का श्राद्ध तर्पण वर्ष भर का सबसे आवश्यक कार्य।
इसके निमित्त आश्विन कृष्ण पक्ष, पितृ पक्ष सर्वोपरि है।

इस वर्ष कब होगा श्राद्ध?
When will Shradh be held this year?

इस वर्ष 13 सितंबर पूर्णिमा को ऋषि तर्पण और श्राद्ध होगा इसके बाद 14 सितंबर से पितृ पक्ष आरम्भ हो जाएगा जो 28 सितंबर तक चलेगा। 

पितर pitar

पितर दो प्रकार के होते हैं एक दिव्य पितर और दूसरे हमारे पूर्वज( जो गत हो चुके हों)। 
दिव्य पितर ब्रह्मा के पुत्र मनु से उत्पन्न हुए ऋषि हैं। पितरों में सबसे प्रमुख अर्यमा हैं जिनके बारे में गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि पितरों में प्रधान अर्यमा वे स्वयं हैं।
दूसरे प्रकार के पितर पूर्वज होते हैं। पितृपक्ष में अपने इन्हीं पितरों को लोग याद करते हैं और इनके नाम से पिंडदान, श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन करवाते हैं। 
कठोपनिषद्, गरुड़ पुराण, मार्कण्डेय पुराण आदि के अनुसार पितर अपने परिजनों के पास पितृपक्ष में आते हैं और अन्न जल एवं आदर-सम्मान की अपेक्षा करते हैं। जिन परिवार के लोग पितृ पक्ष के दौरान पितरों के नाम से अन्न जल दान नहीं करते। श्राद्ध कर्म नहीं करते हैं उनके पितर भूखे-प्यासे धरती से लौट जाते हैं इससे परिवार के लोगों को पितृ दोष लगता है। इसे पितृ शाप भी कहते हैं। इससे संतान प्राप्ति में बाधा आती है। परिवार में अनेकों रोग और कष्टआदि बढ जाते हैं।

पितृ पक्ष के नियम pitr paksh ke niyam

पितृ पक्ष में हमारे  पूर्वजों की निर्वाण तिथि अर्थात् पिता, दादा,या परिवार के लोगों की मृत्यु जिस दिन हुई होती है उस तिथि को उनका पार्वण श्राद्ध किया जाता है। 
श्राद्ध का नियम है कि दोपहर के समय पितरों के नाम से श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन करवाना चाहिए। 

पितृपक्ष श्राद्ध तिथि 2019
 pitrpaksh shraaddh tithi 2019

13 सितंबर शुक्रवार प्रोष्ठपदी/पूर्णिमा श्राद्ध महलायरम्भ:
14 सितंबर शनिवार प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध
15 सितंबर रविवार द्वितीया तिथि का श्राद्ध
17 सितंबर मंगलवार तृतीया तिथि का श्राद्ध
18 सितंबर बुधवार चतुर्थी तिथि का श्राद्ध
19 सितंबर बृहस्पतिवार पंचमी तिथि का श्राद्ध
20 सितंबर शुक्रवार षष्ठी तिथि का श्राद्ध
21 सितंबर शनिवार सप्तमी तिथि का श्राद्ध
22 सितंबर रविवार अष्टमी तिथि का श्राद्ध
23 सितंबर सोमवार नवमी तिथि का श्राद्ध
24 सितंबर मंगलवार दशमी तिथि का श्राद्ध
25 सितंबर बुधवार एकादशी का श्राद्ध/द्वादशी तिथि/संन्यासियों का श्राद्ध
26 सितंबर बृहस्पतिवार त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध
27 सितंबर शुक्रवार चतुर्दशी का श्राद्ध/शस्त्रादि से जिनकी मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध
28 सितंबर शनिवार अमावस्या व सर्वपितृ श्राद्ध/पितृविसर्जन।।

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Tuesday, September 10, 2019

पितृ पक्ष pitri paksh


                  पितृ पक्ष pitri paksh

श्राद्ध की विस्तृत जानकारी जैसे श्राद्ध किसे कहते हैं, श्राद्ध कितने प्रकार के होते हैं, पितर किन्हें कहते हैं?आदि-आदि।

आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक पंद्रह दिन पितृपक्ष (पितृ = पिता) के नाम से विख्यात है। इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों (पूर्वजों) को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर पार्वण श्राद्ध करते हैं। पिता-माता आदि पारिवारिक मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात्‌ उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्म को पितृ श्राद्ध कहते हैं।
श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ (जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है।) भावार्थ है प्रेत और पित्त्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है।
हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई हैं। जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं।
आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तथा उस उर्जा के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। धार्मिक ग्रंथों में मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति का बड़ा सुन्दर और वैज्ञानिक विवेचन भी मिलता है। मृत्यु के बाद दशगात्र और षोडशी-सपिण्डन तक मृत व्यक्ति की प्रेत संज्ञा रहती है। पुराणों के अनुसार वह सूक्ष्म शरीर जो आत्मा भौतिक शरीर छोड़ने पर धारण करती है प्रेत होती है। प्रिय के अतिरेक की अवस्था "प्रेत" है क्यों की आत्मा जो सूक्ष्म शरीर धारण करती है तब भी उसके अन्दर मोह, माया भूख और प्यास का अतिरेक होता है। सपिण्डन के बाद वह प्रेत, पित्तरों में सम्मिलित हो जाता है।
पितृपक्ष भर में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृप्राण स्वयं आप्यापित होता है। पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो यव (जौ) तथा चावल का पिण्ड देता है, उसमें से अंश लेकर वह अम्भप्राण का ऋण चुका देता है। ठीक आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से वह चक्र उर्ध्वमुख होने लगता है। 15 दिन अपना-अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पितर उसी ब्रह्मांडीय उर्जा के साथ वापस चले जाते हैं। इसलिए इसको पितृपक्ष कहते हैं और इसी पक्ष में श्राद्ध करने से पित्तरों को प्राप्त होता है।
पुराणों में कई कथाएँ इस उपलक्ष्य को लेकर हैं जिसमें हिन्दू धर्म में सर्वमान्य श्री रामचरित में भी श्री राम के द्वारा श्री दशरथ और जटायु को गोदावरी नदी पर जलांजलि देने का उल्लेख है एवं भरत जी के द्वारा दशरथ हेतु दशगात्र विधान का उल्लेख भरत कीन्हि दशगात्र विधाना तुलसी रामायण में हुआ है।
भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं- पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया।
पितृपक्ष में हिन्दू लोग मन कर्म एवं वाणी से संयम का जीवन जीते हैं; पितरों को स्मरण करके जल चढाते हैं; निर्धनों एवं ब्राह्मणों को दान देते हैं। पितृपक्ष में प्रत्येक परिवार में मृत माता-पिता का श्राद्ध किया जाता है, परंतु गया श्राद्ध का विशेष महत्व है। वैसे तो इसका भी शास्त्रीय समय निश्चित है, परंतु ‘गया सर्वकालेषु पिण्डं दधाद्विपक्षणं’ कहकर सदैव पिंडदान करने की अनुमति दे दी गई है।

एकैकस्य तिलैर्मिश्रांस्त्रींस्त्रीन् दद्याज्जलाज्जलीन्। यावज्जीवकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।

अर्थात् जो अपने पितरों को तिल-मिश्रित जल की तीन-तीन अंजलियाँ प्रदान करते हैं, उनके जन्म से तर्पण के दिन तक के पापों का नाश हो जाता है। 
हमारे हिंदू धर्म-दर्शन के अनुसार जिस प्रकार जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है; उसी प्रकार जिसकी मृत्यु हुई है, उसका जन्म भी निश्चित है। ऐसे कुछ विरले ही होते हैं जिन्हें मोक्ष प्राप्ति हो जाती है। 

पितर

पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं। इन्हीं को पितर कहते हैं। 
दिव्य पितृ तर्पण, देव तर्पण, ऋषि तर्पण और दिव्य मनुष्य तर्पण के पश्चात् ही स्व-पितृ तर्पण किया जाता है। 
भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं। जिस तिथि को माता-पिता का देहांत होता है, उसी तिथी को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है। 
शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में हमेशा उन्नति होती है। 

पितृ दोष के अनेक कारण होते हैं। परिवार में किसी की अकाल मृत्यु होने से, अपने माता-पिता आदि सम्मानीय जनों का अपमान करने से, मरने के बाद माता-पिता का उचित ढंग से क्रियाकर्म और श्राद्ध नहीं करने से, उनके निमित्त वार्षिक श्राद्ध आदि न करने से पितरों को दोष लगता है। इसके फलस्वरूप परिवार में अशांति, वंश-वृद्धि में रूकावट, आकस्मिक बीमारी, संकट, धन में बरकत न होना, सारी सुख सुविधाएँ होते भी मन असन्तुष्ट रहना आदि पितृ दोष हो सकते हैं। 
यदि परिवार के किसी सदस्य की अकाल मृत्यु हुई हो तो पितृ दोष के निवारण के लिए शास्त्रीय विधि के अनुसार उसकी आत्म शांति के लिए किसी पवित्र तीर्थ स्थान पर श्राद्ध करवाएँ। अपने माता-पिता तथा अन्य ज्येष्ठ जनों का अपमान न करें। प्रतिवर्ष पितृपक्ष में अपने पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण अवश्य करें। यदि इन सभी क्रियाओं को करने के पश्चात् पितृ दोष से मुक्ति न होती हो तो ऐसी स्थिति में किसी सुयोग्य कर्मनिष्ठ विद्वान ब्राह्मण से श्रीमद् भागवत् पुराण की कथा करवायें। वैसे श्रीमद् भागवत् पुराण की कथा कोई भी श्रद्धालु पुरुष अपने पितरों की आम शांति के लिए करवा सकता है। इससे विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

श्राद्ध के प्रकार

मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के श्राद्ध प्रमुख बताये गए है। त्रिविधं श्राद्ध मुच्यते के अनुसार मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के श्राद्ध बतलाए गए है, जिन्हें नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य श्राद्ध कहते हैं।
यमस्मृति में पांच प्रकार के श्राद्धों का वर्णन मिलता है। जिन्हें नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण के नाम से श्राद्ध है।
नित्य श्राद्ध- प्रतिदिन किए जानें वाले श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहते हैं। इस श्राद्ध में विश्वेदेव को स्थापित नहीं किया जाता। यह श्राद्ध में केवल जल से भी इस श्राद्ध को सम्पन्न किया जा सकता है।
नैमित्तिक श्राद्ध- किसी को निमित्त बनाकर जो श्राद्ध किया जाता है, उसे नैमित्तिक श्राद्ध कहते हैं। इसे एकोद्दिष्ट के नाम से भी जाना जाता है। एकोद्दिष्ट का मतलब किसी एक को निमित्त मानकर किए जाने वाला श्राद्ध जैसे किसी की मृत्यु हो जाने पर दशाह, एकादशाह आदि एकोद्दिष्ट श्राद्ध के अन्तर्गत आता है। इसमें भी विश्वेदेवोंको स्थापित नहीं किया जाता।
काम्य श्राद्ध- किसी कामना की पूर्ति के निमित्त जो श्राद्ध किया जाता है। वह काम्य श्राद्ध के अन्तर्गत आता है।
वृद्धि श्राद्ध- किसी प्रकार की वृद्धि में जैसे पुत्र जन्म, वास्तु प्रवेश, विवाहादि प्रत्येक मांगलिक प्रसंग में भी पितरों की प्रसन्नता हेतु जो श्राद्ध होता है उसे वृद्धि श्राद्ध कहते हैं। इसे नान्दीश्राद्ध या नान्दीमुखश्राद्ध के नाम भी जाना जाता है, यह एक प्रकार का कर्म कार्य होता है। दैनंदिनी जीवन में देव-ऋषि-पित्र तर्पण भी किया जाता है।
पार्वण श्राद्ध- पार्वण श्राद्ध पर्व से सम्बन्धित होता है। किसी पर्व जैसे पितृपक्ष, अमावास्या या पर्व की तिथि आदि पर किया जाने वाला श्राद्ध पार्वण श्राद्ध कहलाता है। यह श्राद्ध विश्वेदेवसहित होता है।
सपिण्डनश्राद्ध- सपिण्डनशब्द का अभिप्राय पिण्डों को मिलाना। पितर में ले जाने की प्रक्रिया ही सपिण्डनहै। प्रेत पिण्ड का पितृ पिण्डों में सम्मेलन कराया जाता है। इसे ही सपिण्डनश्राद्ध कहते हैं।
गोष्ठी श्राद्ध- गोष्ठी शब्द का अर्थ समूह होता है। जो श्राद्ध सामूहिक रूप से या समूह में सम्पन्न किए जाते हैं। उसे गोष्ठी श्राद्ध कहते हैं।
शुद्धयर्थश्राद्ध- शुद्धि के निमित्त जो श्राद्ध किए जाते हैं। उसे शुद्धयर्थश्राद्ध कहते हैं। जैसे शुद्धि हेतु ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए।
कर्मागश्राद्ध- कर्मागका सीधा साधा अर्थ कर्म का अंग होता है, अर्थात् किसी प्रधान कर्म के अंग के रूप में जो श्राद्ध सम्पन्न किए जाते हैं। उसे कर्मागश्राद्ध कहते हैं।
यात्रार्थश्राद्ध- यात्रा के उद्देश्य से किया जाने वाला श्राद्ध यात्रार्थश्राद्ध कहलाता है। जैसे- तीर्थ में जाने के उद्देश्य से या देशान्तर जाने के उद्देश्य से जिस श्राद्ध को सम्पन्न कराना चाहिए वह यात्रार्थश्राद्ध ही है। इसे घृतश्राद्ध भी कहा जाता है।
पुष्ट्यर्थश्राद्ध- पुष्टि के निमित्त जो श्राद्ध सम्पन्न हो, जैसे शारीरिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए किया जाना वाला श्राद्ध पुष्ट्यर्थश्राद्ध कहलाता है।
धर्मसिन्धु के अनुसार श्राद्ध के 96 अवसर बतलाए गए हैं।यथा:-
एक वर्ष की अमावास्याएं'(12) पुणादितिथियां (4),'मन्वादि तिथियां (14) संक्रान्तियां (12) वैधृति योग (12), व्यतिपात योग (12) पितृपक्ष (15), अष्टकाश्राद्ध (5) अन्वष्टका (5) तथा पूर्वेद्यु:(5) कुल मिलाकर श्राद्ध के यह 96 अवसर प्राप्त होते हैं।'पितरों की संतुष्टि हेतु विभिन्न पित्र-कर्म का विधान है।
पुराणोक्त पद्धति से निम्नांकित कर्म किए जाते हैं :- एकोदिष्ट श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध, नाग बलि कर्म, नारायण बलि कर्म, त्रिपिण्डी श्राद्ध, महालय श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध कर्म उपरोक्त कर्मों हेतु विभिन्न संप्रदायों में विभिन्न प्रचलित परिपाटियाँ चली आ रही हैं। अपनी कुल-परंपरा के अनुसार पितरों की तृप्ति हेतु श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए।

गया

जब बात आती है श्राद्ध कर्म की तो बिहार स्थित गया का नाम बड़ी प्रमुखता व आदर से लिया जाता है। गया समूचे भारत वर्ष में हीं नहीं सम्पूर्ण विश्व में दो स्थान श्राद्ध तर्पण हेतु बहुत प्रसिद्द है। वह दो स्थान है बोध गया और विष्णुपद मन्दिर।
विष्णुपद मंदिर वह स्थान जहां माना जाता है कि स्वयं भगवान विष्णु के चरण उपस्थित है, जिसकी पूजा करने के लिए लोग देश के कोने-कोने से आते हैं। गया में जो दूसरा सबसे प्रमुख स्थान है जिसके लिए लोग दूर दूर से आते है वह स्थान एक नदी है, उसका नाम "फल्गु नदी" है। ऐसा माना जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने स्वयं इस स्थान पर अपने पिता राजा दशरथ का पिंड दान किया था। तब से यह माना जाने लगा की इस स्थान पर आकर कोई भी व्यक्ति अपने पितरो के निमित्त पिंड दान करेगा तो उसके पितृ उससे तृप्त रहेंगे और वह व्यक्ति अपने पितृऋण से उरिण हो जायेगा | इस स्थान का नाम ‘गया’ इसलिए रखा गया क्योंकि भगवान विष्णु ने यहीं के धरती पर असुर गयासुर का वध किया था। तब से इस स्थान का नाम भारत के प्रमुख तीर्थस्थानो में आता है और बड़ी ही श्रद्धा और आदर से "गया जी" बोला जाता है।
साभार:-

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Monday, September 9, 2019

श्री वन-दुर्गा मन्त्र-विधान Srivan-Durga Mantra-Vidhan

                श्री वन-दुर्गा मन्त्र-विधान       Srivan-Durga Mantra-Vidhan 



संकल्प:- देश-कालौ स्मृत्वा अमुक-गोत्रोऽमुक-शर्माहं अमुक-कार्य-सिद्धयर्थे (मनोऽभिलषित-कार्य-सिद्धयर्थे वा) श्रीवन-दुर्गा-मन्त्रस्य एकादश-शत-संख्याकं-जपं करिष्ये । 

विनियोगः- ॐ अस्य श्रीवन-दुर्गा-देवता-मन्त्रस्य श्रीआरण्यक ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीवन-दुर्गा देवता, ॐ वीजं, स्वाहा शक्तिः, सङ्कल्पोद्दिष्ट-कार्य-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । 
ऋष्यादि-न्यासः- श्रीआरण्यक ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे, श्रीवन-दुर्गा देवतायै नमः हृदि, ॐ वीजाय नमः गुह्ये, स्वाहा शक्तये नमः पादयो, सङ्कल्पोद्दिष्ट-कार्य-सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।

कर-न्यासः- उत्तिष्ठ पुरुषि अंगुष्ठाभ्यां नमः, किं स्वपिषि तर्जनीभ्यां नमः, भयं मे समुपस्थितं मध्यमाभ्यां नमः, यदि शक्यमशक्यं हुं अनामिकाभ्यां नमः, तन्मे भगवति कनिष्ठिकाभ्यां नमः, शमय स्वाहा करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः । 

अङ्ग-न्यासः- उत्तिष्ठ पुरुषि हृदयाय नमः, किं स्वपिषि शिरसे स्वाहा, भयं मे समुपस्थितं शिखायै वषट्, यदि शक्यमशक्यं हुं नेत्र-त्रयाय वोषट्, तन्मे भगवति कवचाय हुं, शमय स्वाहा अस्त्राय फट् । 

ध्यानः- सौवर्णासन-संस्थिता त्रिनयनां सौदामिनी-सन्निभाम् । शङ्खं चक्र-वराभयानि दधतीमिन्द्रोः कलां विभ्रतीम् ।। ग्रैवेयाङ्गद-हार-कुण्डल-धरामाखण्डलाद्यैः स्तुताम् । ध्यायेद् विन्ध्य-निवासिनीं शशि-मुखीं पार्श्वस्थ पञ्चाननाम् ।। 

मन्त्रः- “ॐ उत्तिष्ठ पुरुषि किं स्वपिषि भयं मे समुपस्थितम् । यदि शक्यमशक्यं हुं तन्मे भगवति ! शमय स्वाहा ।।” 

विधिः- प्रतिदिन ग्यारह माला २१ दिनों तक करें । यदि कार्य न हो तो ४१ दिन तक जप करना चाहिए ।

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कार्तवीर्यार्जुन-माला-मन्त्र Kartavirrajun-Mala-Mantra

              कार्तवीर्यार्जुन-माला-मन्त्र
         Kartavirrajun-Mala-Mantra


श्रीकार्तवीर्यार्जुन-माला-मन्त्र विनियोगः- 

ॐ अस्य श्रीकार्तवीर्यार्जुन-माला-मन्त्रस्य दत्तात्रेय ऋषिः । गायत्री छन्दः । श्रीकार्तवीर्यार्जुन देवता । अभीष्ट-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । 

ऋष्यादि-न्यासः- दत्तात्रेय ऋषये नमः शिरसि । गायत्री छन्दसे नमः मुखे । श्रीकार्तवीर्यार्जुन देवतायै नमः हृदि । अभीष्ट-सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे । 

पञ्चांग-न्यासः- दत्तात्रेय-प्रियतमाय हृदयाय नमः। महिष्मती-नाथाय शिरसे स्वाहा । रेवा-नदी-जल-क्रीडा-तृप्ताय शिखायै वषट् । हैहयाधोपतये कवचाय हुं । सहस्रबाहवे अस्त्राय फट् । 

ध्यानः- 1- दोर्दण्डेषु सहस्र-सम्मित-तरेष्वेतेष्वजस्रं लसत्, कोदण्डैश्च शरैरुदग्र-निशितैरुद्यद्-विवस्वत्-प्रभः । ब्रह्माण्डं परिपूरयन् स्व-निनादैर्गण्ड-द्वयान्दोलित- द्योतत्-कुण्डल-मण्डितो विजयतो श्रीकार्तवीर्यो विभुः ।। 
2- उदग्र-बाणाँश्चापानि, दधतं सूर्य-सन्निभम् । प्रपूरयन्तं ब्रह्माण्डं, धनुर्ज्या-निस्स्वनैस्तथा ।। कार्तवीर्यं नृपं ध्यायेद्, गण्ड-शोभित-कुण्डलम् ।। 

माला मन्त्रः- “ॐ नमो भगवते कार्तवीर्यार्जुनाय हैहयाधिपतये सहस्र-कवचाय, सहस्र-कर-सदृशाय, सर्व-दुष्टान्तकाय, सर्व-शिष्टेष्टाय, सर्वत्रोदधेरागन्तुकान् अस्मद्-वसुविलुम्पकान् चौर-समूहान् स्व-कर-सहस्रैः निवारय निवारय, रोधय रोधय, पाश-सहस्रैः बन्धय बन्धय अंकुश-सहस्रैः आकर्षय आकर्षय, स्व-चापोद्-भूत-बाण-सहस्रैः भिन्दि भिन्दि, स्व-हस्तोद्-गत-खड्ग-सहस्रैः छिन्धि छिन्धि, स्व-हस्तोद्-गत-चक्र-सहस्रैः निकृन्तय निकृन्तय, पर-कृत्यां त्रासय त्रासय, गर्जय गर्जय, आकर्षय आकर्षय, भ्रामय भ्रामय, मोहय मोहय, मारय मारय उद्वासय उद्वासय, उन्मादय उन्मादय, तापय तापय, विनाशय विनाशय, विदारय विदारय, स्तम्भय स्तम्भय, जृम्भय जृम्भय, मारय मारय, वशीकुरु वशीकुरु, उच्चाटय उच्चाटय विनाशय विनाशय, दत्तात्रेय-श्रीपाद-प्रियतम ! कार्तवीर्यार्जुन ! सर्वत्रोदधेरागन्तुकान् अस्मद् वसु-विलुम्पकान् चौर-समूहान् समग्रं उन्मूलय उन्मूलय हुं फठ् स्वाहा ।।” 

पुरश्चरणः- उक्त माला-मन्त्र का पुरश्चरण 30000 आवृत्तियों से होता है । पुरश्चरण करने के बाद ही प्रयोग करना चाहिए । 

कुछ प्रयोग 

1- रात्रि में एक पैर पर खड़े होकर, छः मास तक नित्य 108 बार माला-मन्त्र का जप करने से, चोर स्वयं चोरी किया हुआ धन वापस कर देते हैं । 
2- चोरों द्वारा पशुओं का अपहरण कर लिया गया हो, तो सारे पशुओं के गले में, पाश बाँधकर खींचते हुए श्रीकार्तवीर्यार्जुन का ध्यान कर, नित्य 108 जप करें । 12 दिनों तक इस विधि से जप करने पर अपहृत पशु वापस आ जाते हैं । 
3- यदि चोरों ने अनाज चुराया हो, तो चोरी गए अनाज में से बचे हुए का, रात्रि में उक्त ‘माला-मन्त्र’ से, हवन करने से चोरों का ज्ञान हो जाता है । 
4- धनुष पर बाण चढ़ाए हुए श्रीकार्तवीर्यार्जुन का ध्यान कर, दशों दिशाओं में माला-मन्त्र का जप करने से ग्राम, नगर और राष्ट्र की रक्षा होती है ।
5- माला-मन्त्र से अभिमन्त्रित मिट्टी, पत्थर या रेत जहाँ डाली जाती है, वहाँ रात्रि में किसी भी प्रकार का उत्पात नहीं होता । 
6- माला-मन्त्र का 3000 जप करने से महा-मारी नष्ट होती है । शत्रुओं का उच्चाटन, आपस में विद्वेषण तथा मारण होता है । तीनों लोक साधक के वश में हो जाते हैं ।

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Sunday, September 8, 2019

श्री सर्प सूक्तम Sri Sarp Suktam

          ।।श्री सर्प सूक्तम।।

ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:। 
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।1।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखाद्य:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।
कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।
पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।
समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।
रसातलेषु ये सर्पा: अनंतादि महाबला:
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्यः सुप्रीतो मम सर्वदा ।।११।।

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अष्टम भाव में मंगल का फलित The result of Mars in the eighth house


       अष्टम भाव में मंगल का फलित The result of Mars in the eighth house

आठवें भाव या  स्थान में मंगल होने से  दाम्पत्य सुख में कमी होती है। ऐसा जातक सर्वदा अनुचित बोलनेवाला, गुप्त रोग वाला, चिंतायुक्त, रत्नो का पारखी तथा शरीर में जख्म वाला होता है।  इस भाव में मंगल होने से मांगलिक दोष भी होता है और इस मंगल दोष के कारण दाम्पत्य जीवन दुःख  से भरा होता है। मंगल यहाँ पर पारिवारिक जीवन में शुभ परिणाम नहीं देता है।

अष्टम भाव में मंगल और पारिवारिक जीवन
Mars and family life in the eighth house
अष्टम भाव में मंगल जातक को वैवाहिक जीवन में असंतोष अथवा परिवार से दूर करता है। ऐसा जातक अपने परिवार के साथ रहकर भी साथ होने का अनुभव नहीं करता  है। ऐसे व्यक्ति को जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ऐसा जातक अपने आयु के 24 वें  25 वें वर्ष में पारिवारिक परेशानियों से गुजरता है।  मंगल इस स्थान पर होने से या तो विवाह जल्दी ही हो जाता है या तो बहुत देर से होता है। यहाँ का मंगल आपके दाम्पत्य जीवन के दु:ख का कारण बनता है।
पत्नी के साथ जातक का व्यवहार बहुत मधुर नहीं रह सकता अतः मधुर सम्बन्ध बनाने में आपको ही अहम भूमिका निभानी पड़ेगी। इस स्थान से मंगल चतुर्थ दृष्टि से अपने बड़े भाई को तथा अष्टम दृष्टि से अपने छोटे भाई को देख रहा है इस कारण से आपका अपने अग्रज तथा अनुज से संबंध बना रहेगा और आप हमेशा उनके भले के लिए कार्य करेंगे। परन्तु कभी कभी आपके भाई-बंधू भी अचानक शत्रु बन जाते है। आपका अपने पिता के साथ वैचारिक भिन्नता के कारण तनावपूर्ण सम्बंध रह सकता है। यदि कुंडली के अन्य ग्रह प्रभावित कर रहा हो तो इस स्थान का मंगल दो शादी का योग भी बनाता है। पत्नी के प्रति आपका स्वभाव रुखा रहेगा यह रूखापन हिंसात्मक रूप में भी बदल सकता है खासकर तब जब मेष अथवा वृश्चिक लग्न हो।

अष्टम भाव में मंगल और मनःस्थिति
Mars and mood in the eighth house

आप  स्वभाव से क्रोधी हो सकते हैं। आपकी वाणी अवसर के अनुकूल होगी।
किसी के लिए मधुर तो किसी के लिए कठोर हो सकती है। वैवाहिक जीवन में आने वाली परेशानियों के कारण आप मानसिक रूप से परेशान रह सकते है। आप ईर्ष्यालु  स्वभाव के हो सकते है। यहाँ मंगल बेचैनी और चिड़चिड़ापन  भी देता है। मंगल आपको धन संग्रह करने के लिए बाध्य करता है। आपको झूठ बोलने से परहेज नहीं होगा। आपमें झूठ को भी सत्य साबित करने की वाक्पटुता होगी। आप आत्महत्या की भी कोशिश कर सकते हैं।

अष्टम भाव में मंगल और स्वास्थ्य
Mars and health in the eighth house
अष्टम भाव का मंगल बवासीर तथा भगन्दर जैसी बीमारी को जन्म देती है। आपको को खुनी बवासीर हो सकती है। आपको रक्तचाप भी हो सकता है। बचपन में पेट से सम्बंधित कुछ तकलीफें रह सकती हैं। आपको कोलाइटिस या संग्रहणी नामक बिमारी हो सकती है यह एक गंभीर बीमारी होती है।  इस  बिमारी में बड़ी आंत की अंदरूनी परत में सूजन हो जाती है जिसके कारण पेट दर्द के साथ दस्त में आंव भी निकलने लगती है तथा किसी किसी को तो मल में खून के साथ कुछ आंत के टुकड़े भी निकलने लगते हैं। कहा गया है–
रूधिरार्तोगतनिश्चयः कुधी विद्यो निंधयतम कुजेष्टमे।
यदि मंगल यहाँ नीच का हो अर्थात कर्क राशि का हो तो रक्तपित्त ( नाक आदि से खून का आना) रोग होता है।

आर्थिक एवं व्यावसायिक स्थिति
Economic and Business Status
अष्टम भाव में मंगल होने से आपको धन कमाने के लिए तथा व्यावसायिक सफलता के लिए अधिक परिश्रम करनी पडेगी। यहाँ मंगल होने से आर्थिक दृष्टि बहुत अच्छा नहीं है। आपको अपने जीवन में दो प्रकार से आय होने की सम्भावना बनती  है। आपके पास गुप्त धन तथा गुप्त कार्य हो सकता है। यदि अशुभ का मंगल है या अशुभ प्रभाव में मंगल है तो आपका स्वयं किया गया परिश्रम व्यर्थ प्रयास होकर रह जाएगा।

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Saturday, September 7, 2019

ग्रह और अध्ययन विषय Planets and Study Topics


              ग्रह और अध्ययन विषय
         Planets and Study Topics


ज्योतिष शास्त्र में विद्या अध्ययन के लिए मुख्य रूप से पंचम भाव और गुरू को कारण बताया गया है।साथ ही द्वितीय और चतुर्थ भाव और उनके स्वामी भी मुख्य भूमिका निभाते हैं।गुरु जन्मपत्रिका में जहाँ स्थित है उससे पांचवे भाव का स्वामी भी विद्या अध्ययन  में भूमिका निभाता है।
ग्रहों के अनुसार कुछ मुख्य अध्ययन विषय
Some main study topics according to planets

सूर्य -
मेडिसिन(Medicine), रसायन शाश्त्र (Chemistry), अल्केमी, ज्योतिष(Astrology), भूगोल शास्त्र ( geography).
चन्द्रमा - 
टेक्सटाइल, केमिकल इंजीनियरिंग, इंजीनियरिंग, साइकोलॉजी, वाटर अथवा हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग, संगीत शिक्षा, मार्केटिंग।
मंगल -
सर्जरी, मैकेनिकल और सिविल इंजीनियरिंग, मशीन, स्ट्रक्चरल डिज़ाइन, आर्किटेक्चर, फिजिक्स, मिलिट्री सर्विस, मार्शल आर्ट एवं योगा।
बुध - 
गणित(Mathe), इंजीनियरिंग( Engineering), ज्योतिष, कॉमर्स, पुराणिक अध्ययन, ऑडिटिंग,लॉजिक, (journalism), मास कम्युनिकेशन एंड एडवरटाइजिंग, एस्ट्रोनॉमी, पब्लिक स्पीकिंग ।
बृहस्पति -
वकालत(Law), मेडिसिन, मिलिट्री साइंस, एडमिनिस्ट्रेशन, इंस्ट्रक्शनल टेक्निक्स, दर्शन शास्त्र (Philosophy), धर्म शास्त्र, पोलिटिकल साइंस,बिज़नस मैनेजमेंट, बैंकिंग, एस्ट्रोलॉजी।
शुक्र -
रसायन शास्त्र(Chemistry), इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर विज्ञान, एग्रीकल्चर, डेरी फार्मिंग, वेटरनरी साइंस, केमिकल इंजीनियरिंग, टेक्सटाइल, प्लास्टिक, नेवल साइंस, पोल्ट्री, म्यूजिक, फॉरेन लिटरेचर, लॉजिक, ग्रामर, सेक्सओलॉजी, नपथ्रोलिजि, ऑप्थल्मोलॉजी, गायनेकोलॉजी ।
शनि -
जियोलॉजी, पेट्रोकेमिकल इंजीनियरिंग, रिफाइनरी तकनीक, सिविल इंजीनियरिंग, माइनिंग, इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग, सेनेटरी इंजीनियरिंग, लेबर लॉ, इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग।
राहु -
रेडियोलोजी, फोटोग्राफी, स्पेस साइंस, तंत्र विद्या और इसके राशी अधिपति के अनुसार विषय।
केतु -
वेद अध्ययन, ज्योतिष, और विषय केतु के राशी अधिपति के अनुसार।

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Monday, September 2, 2019

वर्ष भर के प्रमुख व्रत-पर्व-त्योहार Major fast-festival of the year

वर्ष भर के प्रमुख व्रत-पर्व-त्योहार

चैत्र कृष्ण पक्ष-

● होलिकोत्सव, रंगोत्सव, बसंतोत्सव, रतिकाम महोत्सव
● रंग पञ्चमी
● श्री शीतलाष्टमी
● बृद्ध अंगारक पर्व (बुढ़वा मंगल) काशी
● पापमोचनी एकादशी
● प्रदोष व्रत
● मास शिवरात्रि व्रत
● अमावस्या पर्व,चान्द्र संवत्सर समाप्ति

चैत्र शुक्ल पक्ष-
● नवसंवत्सर प्रारम्भ,वासन्तिक नवरात्र,प्रथमं शैलादि नवदुर्गा पूजनं प्रतिदिनं
● महाष्टमी व्रत
● महानवमी, श्रीरामनवमी,रामावतार
● कामदा एकादशी व्रत
● प्रदोष व्रत,श्रीअनंग त्रयोदशी व्रत
● पूर्णिमा, श्री हनुमान जयंती, काश्यां संकट मोचन मंदिरे महोत्सव
******************************
बैशाख कृष्ण पक्ष-
● प्रतिपदा-विद्या आरोग्यार्थं तिलक व्रतं, कच्छप अवतार
● आशा द्वितीया 
● संकष्टी गणेश चतुर्थी,अनुसूया जयन्ती
● कोकिला षष्ठी
● श्री शीतलाष्टमी व्रतं
● चण्डिका नवमी
● वरुथिनी एकादशी, श्री वल्लभाचार्य जयन्ती 
● प्रदोष व्रत
● मास शिवरात्रि
● अमावस्या

बैशाख शुक्ल पक्ष-
● प्रतिपदा महर्षि पराशर जयन्ती
● द्वितीया शिवाजी जयन्ती
● अक्षय तृतीया परशुराम जयन्ती
● वैनायकी श्री गणेश चतुर्थी व्रतं
● पञ्चमी सूरदास जयन्ती, आद्य शंकराचार्य जी की जयन्ती, श्री सोमनाथ प्रतिष्ठा दिवस
● षष्ठी श्री रामानुजाचार्य जयन्ती
● सप्तमी श्रीगंगा सप्तमी,गंगोत्पत्ति:,
● श्री दुर्गा अष्टमी व्रतं, श्री अन्नपूर्णा अष्टमी, श्री बगलामुखी जयन्ती
● सीता नवमी,मध्यान्हे जानकी जन्मोत्सव
● मोहिनी एकादशी
● मधुसूदन द्वादशी, रुक्मिणी द्वादशी
● प्रदोष व्रत
● श्री नृसिंह चतुर्दशी, प्रदोष सायं काल नृसिंहावतार:
● बुद्ध पूर्णिमा, बुद्ध जयन्ती
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जयेष्ठ कृष्ण पक्ष-

● द्वितीया देवर्षि नारद जयन्ती
● संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत
● श्री शीतलाष्टमी व्रतं, श्री त्रिलोकनाथाष्टमी(बंगाल)
● अचला(अपरा) एकादशी व्रत, भद्रकाली एकादशी
● प्रदोष व्रत
● वटसावित्री व्रत आरम्भ त्रयोदशी
● वटसावित्री व्रत द्वितीय दिनं,मास शिवरात्रि
● अमावस्या, वट सावित्री व्रतं(वरगदाई)

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष-

● प्रतिपदा करवीर व्रतं
● रम्भा तृतीया व्रतं,महाराणा प्रताप जयन्ती
●  वैनायकी गणेश चतुर्थी, उमा चतुर्थी(बंगाल,उड़ीसा)
● श्रीति पञ्चमी(जैन),महादेव विवाह(उड़ीसा)
● भानु सप्तमी पर्व:सूर्यग्रहण सन्निभम् स्नानदानाय
● श्री दुर्गाष्टमी व्रतं, मेला क्षीर भवानी(कश्मीर)
● महेश नवमी(माहेश्वरी समाज)
● श्री गंगा दशहरा व्रतं हरते दश पापानि वृष लग्ने श्री गंगावतरणम्,सेतुबंध रामेश्वर प्रतिष्ठा दिवस,गायत्री जयन्ती
● निर्जला एकादशी, भीमसेनी एकादशी, शालिग्राम पूजनोत्सव
● प्रदोष व्रत

● संत कबीर जयन्ती, दक्षिणात्य वटसावित्री व्रतं पूर्णिमा
नोट-ज्येष्ठ मास के मङ्गल बड़े मङ्गल के नाम से जाना जाता है।
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आषाढ़ कृष्ण पक्ष-

● प्रतिपदा गुरु हर गोविन्द सिंह जयन्ती
● संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी व्रत
● श्री शीतलाष्टमी व्रतं, कालाष्टमी
● योगिनी एकादशी
● प्रदोष व्रत
● मास शिवरात्रि व्रतं
● आषाढ़ी अमावस्या

आषाढ़ शुक्ल पक्ष-

● गुप्त नवरात्रि आरम्भ
● द्वितीया रथयात्रा
● वैनायकी श्री गणेश चतुर्थी व्रत
● श्री स्कन्द षष्ठी, कर्दम षष्ठी(बंगाल)
● विवश्वान व्रत सप्तमी, सूर्य सप्तमी
● महिषघ्नी अष्टमी व्रत(देवी भागवत)
● कन्दर्प नवमी,भड्डली नवमी, ऐन्द्री पूजन(भविष्योत्तर पुराण)
● आशा दशमी, गिरिजा पूजन दशमी, मन्वादितिथि, सोपपदा 10,वेदारम्भानध्याय:
● श्री हरिशयनी एकादशी, चतुर्मास्यस्य व्रतारम्भ:,रात्रौ श्रीविष्णु पूजनम्शयनोत्सव:
● प्रदोष व्रत, जया पार्वती व्रत(गुजरात)
● अम्बिका व्रत चतुर्दशी, चौमासी(जैन),शिवशयन चतुर्दशी(उड़ीसा),हरिपूजा
● गुरू पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा
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श्रावण कृष्ण पक्ष-
श्रावण मास में मंगलवार को मंगलागौरी व्रत किये जाते हैं।
● द्वितीया अशून्य शयन व्रत
● संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत
● श्रावण सोमवार व्रत
● शीतला सप्तमी मध्यान्ह व्यापिनी
● कालाष्टमी
● कामदा(कामिका)एकादशी व्रत
● प्रदोष व्रत
● मास शिवरात्रि व्रत
● हरियाली अमावस्या, पिठोरा व्रत,मन्वादितिथि

श्रावण शुक्ल पक्ष-

● द्वितीया धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जयन्ती, श्रृंगार व्रतं
● हरियाली तीज, कजरी तीज,श्रावणी तीज,मधुश्रवा तीज,सुकृत व्रतं, स्वर्ण गौरी व्रतं
● वैनायकी गणेश चतुर्थी व्रत
● नाग पंचमी, तक्षक नाग पंचमी पूजा, विकल्पेन श्रावणी उपाकर्म:
● कल्कि जयन्ती, कुमार षष्ठी व्रतं
● शीतला सप्तमी, गोस्वामी तुलसीदास जयन्ती, मोक्ष सप्तमी तिथि
● श्री दुर्गाष्टमी
● कौमारी व्रतं नवमी
● कलश दशमी
● पुत्रदा एकादशी
● प्रदोष व्रत, श्री विष्णु पवित्रारोपणम्,दधि त्याग व्रतारम्भ:न तु तक्रादीनाम् त्याग:, बुद्ध द्वादशी तिथि
● आखेट त्रयोदशी(उड़ीसा),शिवपवित्रारोपणम्
● श्रावणी पूर्णिमा, हयग्रीव जयन्ती,, रक्षाबंधन
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भाद्रपद कृष्ण पक्ष-

●  द्वितीया अशून्य शयन वृत्तम्
● संकष्टी गणेश चतुर्थी, बहुला चौथ
● कोकिला पञ्चमी, रक्षा पञ्चमी, भ्रातृ पञ्चमी
● हलषष्ठी(हरछठ)वृत्तम्, चन्द्र षष्ठी वृत्तम्
● श्री कृष्ण जन्माष्टमी वृत्तम्, कृष्णावतार, गोकुलाष्टमी
● गोगा नवमी
● जया एकादशी वृत्तम्,( अजेति नाम्ना विख्याता सर्वपाप प्रणाशिनी),पर्युषण पर्वारम्भ:(जैन)
● गोवत्स द्वादशी, बछबारस,अघोर द्वादशी
● प्रदोष वृत्तम्,
● मास शिवरात्रि वृत्तम्
● अघोर चतुर्दशी, अघोराचार्य अवतरणोत्सव:(अघ: पापात् रक्षति इति अघोरः)
● कुशोत्पाटिनी अमावस्या,

भाद्रपद शुक्ल पक्ष-

● द्वितीया श्री शंकर देव तिथि(आसाम),
अपराह्न वाराहवतारः,
● हरितालिका तीज वृत्तम्, गौरी तृतीया, मन्वादितिथि
● वैनायकी सिद्धि विनायक वरद गणेश चतुर्थी वृत्तम्,गणेशोत्सव:,ढेलहिया चौथ, कपर्दिश्वर4,
● श्री ऋषि पञ्चमी वृत्तम्, रक्षा पञ्चमी
● लोलार्क षष्ठी वृत्तम्
● मुक्ताभरण सप्तमी, सन्तान सप्तमी, अपराजिता पूजा, फल सप्तमी, ललिता सप्तमी(बंगाल-उड़ीसा)
● श्री राधाष्टमी, दूर्वाष्टमी, महालक्ष्मी वृत्तम् पूजनं च,
● श्री चन्द्र नवमी, नन्दा नवमी,अदुःख नवमी, तल नवमी((बंगाल-उड़ीसा),मूले जयेष्ठा देवी विसर्जनं
● दशावतार दशमी वृत्तम्, महारविवार वृत्तम्
● कर्मा एकादशी(बिहार-झारखंड),पद्मा एकादशी वृत्तम्, डोलग्यारस(मध्यप्रदेश),ओणम(केरल)
● वामन द्वादशी, वामन जयन्ती,श्रवण द्वादशी, श्री विष्णु परिवर्तनोत्सवः
● प्रदोष वृत्तम्
● अनन्त चतुर्दशी वृत्तम्, कदली वृत्तम्, गणपति विसर्जनम्,श्री शिव परिवर्तनोत्सवः
● पूर्णिमा, इन्द्र गोविन्द पूजा((उड़ीसा),प्रौष्ठपदि श्राद्धम्,महलायरम्भ:
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आश्विन कृष्ण पक्ष

● पितृपक्षारम्भ:,प्रतिपदा तिथि श्राद्धम्,तर्पण आरम्भ,
● द्वितीया श्राद्धम्, अशून्य शयन वृत्तम्
● तृतीया श्राद्धम्
● चतुर्थी श्राद्धम्, गणेश चतुर्थी वृत्तम्
● पञ्चमी श्राद्धम्,
● षष्ठी श्राद्धम्
● सप्तमी श्राद्धम्,महालक्ष्मी व्रत पूजा अनुष्ठान समाप्ति:
● जीवित्पुत्रिका वृत्तम्, जीमूतवाहन पूजनम्, अष्टमी श्राद्धम्, अष्टका श्राद्धम्, गया मध्याष्टमी श्राद्धम्, अशोकाष्टमी
● मातृ नवमी श्राद्धम्(सौभाग्यवती स्त्रीणामपि श्राद्धम्), अनवष्टका श्राद्धम्
● दशमी श्राद्धम्
● एकादशी श्राद्धम्, इन्दिरा एकादशी वृत्तम्
● द्वादशी श्राद्धम्,(साधुयति वैष्णवनामपि श्राद्धम्
● त्रयोदशी श्राद्धम्, मघा श्राद्धम्, प्रदोष वृत्तम्
● चतुदर्शी श्राद्धम्,(शस्त्रादि हतानामपि श्राद्धम्, मासशिवरात्रि वृत्तम्
● पितृविसर्जनम्, सर्वपैतृ, महालया अमावस्या, श्री महाविष्णु प्रीत्यर्थं ब्राह्मण भोजनम्

आश्विन शुक्ल पक्ष

● शारदीय नवरात्रारंभः, शैलपुत्री दर्शनम्, दुर्गा सप्तशती पाठारम्भ,ध्वजा रोपणम्,केश संस्कार द्रव्याणि प्रदद्यात प्रतिपद्दिने।
● ब्रह्मचारिणी देवी दर्शनम्, पट्टोदरम् द्वितीययांकेशसंयम हेतवे।
● चन्द्रघण्टा देवी दर्शनम्, दर्पणं तृतीयायां सिन्दूरलक्तकं तथा।सिन्दूर तृतीया
● कूष्माण्डा देवी दर्शनम्, मधुपर्क चतुर्थ्यान्तुतिलकं नेत्र मंडनम्, रथोत्सव चतुर्थी,
वैनायकी गणेश चतुर्थी वृत्तम्
● स्कन्दमाता दर्शनम्, पञ्चम्यामङ्गरागञ्च शक्तयालंकर्णानि च,उपांग ललिता वृत्तम्(महाराष्ट्र)
● कात्यायनी देवी दर्शनम्, देवी बोधनं,
● कालरात्रि दर्शनम्, सप्तमी मूल योगे सरस्वत्यावाहनम्, पत्रिका प्रवेशनम्,पूजा पाण्डाले देवी स्थापना*
● महाष्टमी वृत्तम् महागौरी दर्शनम्, अन्नपूर्णा परिक्रमा
● महानवमी वृत्तम्, सिद्धिदात्री देवी दर्शनम् होमादिकञ्च
● विजया दशमी,श्रवणे दुर्गा प्रतिमा, सरस्वती विसर्जनम् बुद्धावतार: शमी पूजनम् अपराजिता पूजा,नीलकंठ दर्शनम् आयुध पूजनम्, राज्ञा पट्टाभिषेकं
● पापांकुशा एकादशी वृत्तम्, भरत मिलाप काश्यां
● पद्मनाभ द्वादशी
● प्रदोष वृत्तम्
● शरद पूर्णिमा,कोजागरी पूर्णिमा,रात्रौ लक्ष्मी इन्द्र कुबेरादि पूजनम् महर्षि वाल्मीकि जयंती
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कार्तिक कृष्ण पक्ष


● आकाशदीप आरम्भ:
● अशून्य शयन वृत्तम्
● संकष्टी गणेश चतुर्थी वृत्तम्, करक चतुर्थी, (करवा)वृत्तम्,
● अहोई अष्टमी वृत्तम्, राधाष्टमी वृत्तम्, राधा जयन्ती, कराष्टमी(महाराष्ट्र)
● रम्भा एकादशी वृत्तम्, रमा एकादशी वृत्तम्
● गोवत्स द्वादशी,
● प्रदोष वृत्तम्, धन्वंतरि जयन्ती, धनतेरस
● मासशिवरात्रि, नरक चतुर्दशी, हनुमज्जयन्ती
● अमावस्या, दीपावली, प्रदोषे लक्ष्मी गणेश कुबेरादि पूजनम् निशीथे महाकाली पूजनम्


कार्तिक शुक्ल पक्ष


● गोवर्धन पूजनम्
● भ्रातृ द्वितीया, भइया दूज
● वैनायकी गणेश चतुर्थी वृत्तम्
● ज्ञान पञ्चमी(जैन),सौभाग्य पञ्चमी, लाभ पञ्चमी,पाण्डव पञ्चमी,
● सूर्य षष्ठी वृत्तम्, स्कन्द षष्ठी
● सप्तमी सहस्रार्जुन जयन्ती
● गोपाष्टमी
● अक्षय नवमी, कृत युगादि नवमी
● श्री हरिप्रबोधिनी एकादशी वृत्तम्, देवोत्थान एकादशी, दीठवन एकादशी, तुलसी विवाहोत्सव प्रारम्भ:
● गोवत्स द्वादशी, चतुर्मास्य व्रत समाप्ति, मन्वादितिथि प्रदोष वृत्तम्
● श्री वैकुण्ठ चतुर्दशी, श्री काशीविश्वनाथ प्रतिष्ठा दिनम्
● कार्तिक पूर्णिमा, गुरु नानक देव जयन्ती, मन्वादितिथि, काश्यां देवदीपावली महोत्सवः
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मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष

सौभाग्य सुन्दरी व्रतम्
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रतम्
श्रीकाल भैरवाष्टमी व्रत(भैरव उत्पत्ति),कालाष्टमी व्रतम्
उत्पन्ना एकादशी व्रत
प्रदोष व्रत
मासशिवरात्रि व्रत
अमावस्या

मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष

रुद्र व्रत(पीडिया)
रविवार व्रत
रम्भा व्रत
अंगारकी वैनायकी गणेश चतुर्थी व्रत
श्रीपंचमी व्रत,विवाह पंचमी,श्रीराम विवाह महोत्सव।
स्कंदषष्ठी,चम्पा षष्ठी
विष्णु सप्तमी, मित्र सप्तमी
कल्पादि नवमी,नन्दा नवमी
मोक्षदा एकादशी, गीता जयन्ती, मौन एकादशी
व्यञ्जन द्वादशी, जनार्दन पूजा
प्रदोष व्रत
अनंग त्रयोदशी
श्रीदत्त जयन्ती पूर्णिमा

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पौष कृष्ण पक्ष

अंगारकी संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत
रुक्मिणी अष्टमी
अन्वष्टका श्राद्ध नवमी
सफला एकादशी
सुरूप द्वादशी
प्रदोष व्रत
मासशिवरात्रि
बकुल अमावस्या, गुरुगोविन्द सिंह जयन्ती

पौष शुक्ल पक्ष

वैनायकी गणेश चतुर्थी
पुत्रदा एकादशी व्रत
प्रदोष व्रत
कूर्म द्वादशी
पौष पूर्णिमा, शाकम्भरी जयन्ती, शाकम्भरी नवरात्रि समापन

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माघ कृष्ण पक्ष

माघ स्नान प्रारम्भ
संकष्टी गणेश चतुर्थी,गणेश चौथ,अद्य गणेशोत्पत्ति
सर्वाप्ति सप्तमी,स्वामी रामानंदाचार्य जयन्ती, नन्द जयन्ती, स्वामी विवेकानंद जयन्ती
अष्टका श्राद्घ
अन्वष्टका श्राद्ध
षट्तिला एकादशी
तिल द्वादशी
प्रदोष व्रत
महाशिवरात्रि व्रत
मौनी अमावस्या, मन्वादितिथि 30, युगादि30।

माघ शुक्ल पक्ष

वल्लभ जयन्ती, गुप्तनवरात्रि आरम्भ
वैनायकी गणेश चतुर्थी, उमा चतुर्थी, तिल4,कुंद4,सोपपदा चतुर्थी
बसन्त पञ्चमी, श्रीपंचमी,वागीश्वरी जयन्ती, तक्षक नाग पूजा,रतिकाम महोत्सव
मन्दार षष्ठी,दारिद्र्य हरण षष्ठी,शीतला षष्ठी(बंगाल)
अचला सप्तमी, रथ 7,आरोग्य 7,मन्वादितिथि।
भीमाष्टमी
महानन्दा नवमी,ब्रह्मनायक श्रीहरसूब्रह्मदेव जयन्ती उत्सव(चैनपुर,रोहतास)
जया एकादशी, भैमी एकादशी
वाराह द्वादशी, तिल12,भीष्म 12।
प्रदोष व्रत,
कल्पादि13,
माघी पूर्णिमा, राजराजेश्वरी ललिता देवी जयन्ती, सन्त रविदास जयंती।
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फाल्गुन कृष्ण पक्ष

संकष्टीगणेश चतुर्थी
जानकी जयन्ती 8,अष्टका श्राद्ध
अन्वष्टका श्राद्ध
समर्थ गुरुरामदास जयन्ती 9,
विजया एकादशी व्रत
प्रदोष व्रत
मासशिवरात्रि पर्व,श्रीवैद्यनाथ जयन्ती
अमावस्या

फाल्गुन शुक्ल पक्ष

पयोव्रत आरम्भ(भागवते)
श्रीरामकृष्ण परमहंस जयन्ती 2,फुलरिया 2,
वैनायकी गणेश चतुर्थी, मनोरथ चतुर्थी
अर्कपुट 7, कामदा 7, कल्याण 7
होलाष्टक (विपाशा, रावती तीरे,शुतुदृयाश्च त्रिपुष्करे विवाहादि शुभेनेष्टंहोलिका प्राग्दिनाष्टकं।अर्थात् धवलपुर, लुधियाना, शिमला, फिरोजपुर, गुरुदास,होशियारपुर,कांगड़ा,कपूरथला आदिक समीप नगरे विवाहादिक शुभ कर्म वर्जित अन्यत्र सर्वत्र विवाहादि शुभ कर्म प्रशस्तं जायते।)
फागुदशमी, लट्ठमार होली
आमलकी एकादशी, रंगभरी एकादशी, श्रीकाशी विश्वनाथ अबीरेण शिवार्चनम्श्रृंगारोत्सवः
प्रदोष व्रत
पूर्णिमा, मन्वादि 15,


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Sunday, September 1, 2019

हरितालिका तीज व्रत निर्णय haritaalika teej vrat nirnay

        हरितालिका तीज व्रत निर्णय


यह व्रत भाद्रपद, शुक्ल,तृतीया हस्त नक्षत्र में किया जाता है।
यदि तृतीया तिथि में सूर्योदय होकर तृतीया के बाद चतुर्थी हो जाए और हस्त नक्षत्र न भी हो तो तृतीया तिथि और चतुर्थी तिथि के योग में व्रत करें लेकिन द्वितीया और तृतीया तिथि के योग में व्रत नहीं करेंगें-

● माधवी में आपस्तम्ब-
चतुर्थी सहिता या तु सा तृतीया फलप्रदा।
अवैधवयकरा स्त्रीणां पुत्रपौत्रप्रवर्धिनी।।

● द्वितीया के साथ दोष-
द्वितीया शेषसंयुक्तां या करोति विमोहिता।
सा वैधव्यमाप्नोति प्रवदन्ति मनीषिणः।।

● व्रतराज एवं निर्णय सिन्धु-
मुहूर्तमात्र सत्वेपि व्रतं गौरी दिने परे।।

अर्थात सूर्योदय के बाद यदि एक मुहूर्त भी तृतीया तिथि है तो गौरी का हरितालिका व्रत उसी दिन किया जाएगा।

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कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त

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कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त  Mantra theory for suffering peace संसार की समस्त वस्तुयें अनादि प्रकृति का ही रूप है,और वह...