Thursday, February 27, 2014

कुण्डलिनी kundalinee

शरीर का पारमार्थिक स्वरुप ब्रह्माण्ड के गुणों से सम्पन्न और योगियों के द्वारा धारण करने योग्य है।
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, तथा आकाश – ये पाँच स्थूल भूत कहे जाते हैं। यह शरीर इन्ही पाँच भूतों से बना है, इसीलिये पाञ्च भौतिक कहलाता है।
पारमार्थिक शरीर में मूलाधार आदि छः चक्र होते हैं यथा-
मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्ध, तथा आज्ञा ।

                   मूलाधार चक्र
यह चक्र गुद प्रदेश के ऊपर, चतुर्दलाकार, अग्नि के               समान और व से स पर्यन्त वर्णों (अर्थात् व, श, ष,               और स )-आश्रय है। इसके देवता गणेश हैं।


                 स्वाधिष्ठान चक्र
यह चक्र सूर्य के समान दीप्तिमान, ब से लेकर ल    पर्यन्त वर्णों (अर्थात् ब, भ, म, य, र, ल ) का आश्रयस्थान और षड्दलाकार है।इसके देवता ब्रह्मा जी हैं।इसका स्थान लिङ्ग देश में बताया गया है।


                  मणिपूरक चक्र
यह चक्र रक्तिम आभा वाला, दश दलाकार और ड से लेकर फ पर्यन्त वर्णों (अर्थात् ड, ढ,ण, त, थ, द, ध, न, प, फ) का आधार है। इसके देवता विष्णु जी हैं। इसका स्थान नाभि में होता है।

                   अनाहत चक्र
यह चक्र द्वादशदलाकार , स्वर्णिम आभा वाला तथा क से ठ पर्यन्त वर्णों (अर्थात् क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ)- से युक्त है।इसके देवता शिव हैं।इसका स्थान हृदय में होता है।

                  विशुद्ध चक्र
यह चक्र कण्ठ में, षोडशदलाकार, सोलह स्वरों (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ॠ, लृ, लॄ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:)-से युक्त कमल और चन्द्रमा के समान कान्ति वाला होता है।इसमें जीवात्मा का ध्यान किया जाता है।


              आज्ञा चक्र
यह चक्र भ्रुव मध्य में, द्विदलाकार ' हं सः' इन दो अक्षरों से युक्त और रक्तिम वर्ण का है। इसमें गुरु का ध्यान किया जाता है।

तत्पश्चात सहस्रसार चक्र में सर्वव्यापी परब्रह्म का चिन्तन करना चाहिये।

Wednesday, February 26, 2014

चौरासी लाख योनियों का गणनानुक्रम What are fourteen million vaginal

चौरासी लाख योनियाँ


हमारे शास्त्रों में ८४लाख योनियों का वर्णन मिलता है,अक्सर हमारे मन में प्रश्न उठता है कि वो ८४लाख योनियाँ वास्तव में कौन सी हैं?

इस लेख(Post) में उनकी जानकारी दी गई है, इन ८४ लाख योनियों को मुख्यरूप से छः भागों में बांटा गया है।
अर्थात् जल में उत्पन्न या रहने वाले जन्तुओं की नौ लाख योनियाँ या प्रजातियाँ हैं, स्थावर अर्थात् जमीन पर रहने वाले जन्तुओं की बीस लाख, कीट और पतंगों की ग्यारह लाख,पक्षियों की दश लाख,पशुओं की तीस लाख और मानव की चार लाख योनियाँ बताई गई हैं यथा सारिणी के अनुसार:-
जलज जन्तु -            ९०००००     नौ लाख

स्थावर जन्तु -         २००००००    बीस लाख

कृमि (कीट पतंग) -   ११०००००  ग्यारह लाख

पक्षिगण वर्ग -         १००००००   दश लाख

पशुयोनि वर्ग -         ३००००००    तीस लाख

मानव वर्ग योनि -       ४०००००    चार लाख
––––––––––––––––––––––––––––––––––

योग-                   ८४०००००     चौरासी लाख

--------------------------------------------------------

Related topics-

● मन और विचारों का आध्यात्मिक प्रभाव Spiritual effects of mind and thoughts

● पुरुष और नारी purush aur naaree

● कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त Mantra theory for suffering peace

Monday, February 24, 2014

अग्निवास का मुहूर्त जानना – होम,यज्ञ, हवन आदि में

कैसे करें हवन (अग्निवास चक्र)
How to do Havan (Agnivas Chakra)

किसी भी अनुष्ठान के पश्चात हवन करने का शास्त्रीय विधान है और हवन करने के लिए कुछ नियम बताये गए हैं जिसका अनुसरण करना आवश्यक है , अन्यथा आपका अनुष्ठान की निष्फलता का दुष्परिणाम भी आपको उठाना पड़ सकता है ।
इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात है हवन के दिन ‘अग्नि के वास ‘ का पता करना ताकि हवन का शुभ फल आपको प्राप्त हो सके ।

अग्निवास ज्ञात करने की विधि

सैका तिथिर्वारयुता कृताप्ता शेषे गुणेभ्रे भुवि वन्हिवासः।

सौख्याय होमे शशियुग्मशेषे प्राणार्थनाशौ दिवि भूतले च  ।।"
अर्थात् शुक्ल प्रतिपदा से वर्तमान तिथि तक गिनें तथा एक जोड़े , रविवारसे दिन गिने पुनः दोनों को जोड़कर  चार का भाग दें। बचे शेष के अनुसार फल प्राप्त होता है।

शेष:            अग्निवासः           फलः
१                  स्वर्ग              प्राणनाश:
२                पाताले            धननाश:
३,०             पृथ्वी               सुखः 
अर्थात्
1- जिस दिन आपको होम करना हो, उस दिन की तिथि और वार की संख्या को जोड़कर पुनः एक जोड़ें। फिर कुल जोड़ को 4 से भाग देवें- अर्थात् शुक्ल प्रतिपदा से वर्तमान तिथि तक गिनें तथा एक जोड़े , रविवारसे दिन गिने पुनः दोनों को जोड़कर चार का भाग दें।
-यदि शेष शुन्य (0) अथवा 3 बचे, तो अग्नि का वास पृथ्वी पर होगा और इस दिन होम करना कल्याणकारक होता है ।
-यदि शेष 2 बचे तो अग्नि का वास पाताल में होता है और इस दिन होम करने से धन का नाश होता है ।
-यदि शेष 1बचे तो आकाश में अग्नि का वास होगा, इसमें होम करने से आयु का क्षय अर्थात् प्राणनाशक होता है ।


अतः यह आवश्यक है की होम में अग्नि के वास का पता करने के बाद ही हवन करें ।
वार की गणना रविवार से तथा तिथि की गणना शुक्ल-पक्ष की प्रतिपदा से करनी चाहिए।
इस तरह से अग्नि वास का पता हमें लगाना हैं।
अधिक सुविधा हेतु अग्निवास की सारिणी दी जा रही है-

इसे यूट्यूब चैनल पर देेेखेे
अग्निवास

अग्नि लक्षणम्-

सधूमोग्निः शिरो ज्ञेयो निर्धूमश्चक्षुरेव च।

ज्वलत्कृषो भवेत्कर्ण: काष्ठमग्नेर्मनस्तथा ।।
अग्निर्ज्वालायते यत्र शुद्धस्फटिकसन्निभः।
तन्मुखं   तस्य  विज्ञेयं   चतुरंगुलमानतः।।
प्रज्वलोग्निस्तया जिह्वा एतदेवाग्निलक्षणम्।
आस्यान्तर्जूहुयादग्नेर्विपश्चित्सर्वंकर्मसु  ।।
कर्णहोमे भवेद् व्याधिर्नेत्रेन्धत्वमुदाह्र्तम् ।
नासिकायां मनः पीड़ा मस्तके च धनक्षयः।।

अग्निवास का विचार कहाँ नहीं किया जाता है?


विवाह, यात्रा, व्रत, चूड़ाकरण, ग्रहण, युगादि तिथियों में,दुर्गा पूजा में और पुत्र जन्म में अग्निवास का विचार नहीं किया जाता है।यथा-

विवाह यात्रा व्रतगोचरेषु चूड़ोपनीति ग्रहणे युगाद्यैः।
दुर्गा विधाने च सुतप्रसूतौ नेवाग्निचक्रं परिचिन्तनीयम्।।


इसके बाद पूर्णाहुति के लिए ‘आहुति-चक्र ‘ का विचार करना चाहिए ।

होमाहुति शुभाशुभग्रहे मुखज्ञानम् (आहुति चक्र)
Homahuti shubhashubhagrahe mukhgyanam

रवि नक्षत्र से दैनिक चान्द्र नक्षत्र तक गिने तीन तीन की संख्या में क्रमशः सूर्य, बुध, शुक्र, शनि, चन्द्र, मङ्गल, गुरु, राहु, केतु के मुख में आहुति जाती है।इसमें  सूर्य, बुध, शुक्र, चन्द्र और गुरु के मुख में आहुति जाना श्रेष्ठ माना जाता है।
ग्रह शान्ति आदि में आहुतियों का विचार प्रसंग वश किया जाता है।अर्थात् जिस ग्रह की शान्ति हेतु हवन किया जाय, आहुति उसी ग्रह के मुख में पड़नी चाहिए।

यदि सम्भव हो तो कुछ अन्य  बातों का विचार कर लेना चाहिए।यथा:-

भू रुदन :-
हर (हिंदी) महीने की अंतिम घडी, वर्ष का अंतिम दिन, अमावस्या, हर मंगल वार को भू रुदन होता हैं । अतः इस काल को शुभ कार्य भी नही लिया जाना चाहिए ।
मास का अंतिम दिन को इस आहुति कार्य के लिए न ले।

भू रजस्वला :-
प्रत्येक महीने एक सूर्य संक्रांति पड़ती हैं और यह एक हर महीने पड़ने वाला विशिष्ट साधनात्मक महूर्त होता हैं ।
सूर्य संक्रांति को एक मान कर गिना जाए तो 1, 5, 10, 11, 16, 18, 19 दिन भू रजस्वला होती हैं ।
इन दिनों का त्याग करना चाहिए।

भू शयन :-
इसमें दो प्रकार होते हैं।
1- प्रति सूर्य संक्रांती से 5, 7, 9, 15, 21 या 24 वे दिन को भू शयन माना
जाया हैं ।
2- सूर्य जिस नक्षत्र पर हो उस नक्षत्र से आगे गिनने पर 5, 7,9, 12, 19, 26 वे नक्षत्र मे पृथ्वी शयन होता हैं । इस तरह से यह भी
काल सही नही हैं ।
यद्यपि इसका विचार खात आदि में किया जाता है।
वार :- रविवार और गुरुवार सामान्यतः सभी यज्ञों के लिए श्रेष्ठ हैं ।
शुक्ल पक्ष मे यज्ञ आदि कार्य कहीं ज्यादा उचित हैं ।

किस पक्ष मे शुभ कार्य न करे
Which side should not do auspicious work


जिस पक्ष मे दो क्षय तिथि हो मतलब वह पक्षः 15 दिन का न हो कर 13 दिन का ही हो जायेगा उस पक्ष मे समस्त शुभ कार्य वर्जित हैं ।
ठीक इसी तरह अधि़क मास या मल मास मे भी यज्ञादि शुभ कार्य वर्जित हैं ।

किस समय हवन आदि कार्य करें


दिनमान के तीन भाग कर लें।
प्रथम् भाग हवनादि कार्यों के लिए उत्तम बताया गया है।अर्थात् मध्यान्ह के पहले का समय अच्छा रहता है।
यहाँ पर राहुकाल आदि अशुभ समय का विचार कर लेना चाहिए।

कितना हवन किया जाए? How much havan to do?



जप का दशांश हवन किया जाता है।
यदि बड़ा अनुष्ठान संपन्न करना है तो अन्य आचार्य/व्यक्ति की सहायता ली जा सकती हैं।
इसका दूसरा साधन यह है कि हवन संख्या के बराबर जप अधिक कर लें। फिर शतांश या एक माला का भी हवन कर सकते हैं।



Related topics:-

● हवन पद्धति havan paddhati

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त Mantra theory for suffering peace

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त  Mantra theory for suffering peace संसार की समस्त वस्तुयें अनादि प्रकृति का ही रूप है,और वह...