पुरुष और नारी purush aur naaree
इस प्रकार उत्पादित ऊर्जा को मानसिक शक्ति से रीढ़ में ऊपर खींचने से मूलाधार चक्र की नेगेटिव ऊर्जा उससे ऊपर के पॉजिटिव चक्र में पहुचती हैं। इससे शॉट-सर्किट होता है और वह चक्र अधिक तेज हो जाता है। इस तरह इस धारा को उल्टी करके के एक-एक चक्र बेधते हुए मस्तक के सहस्त्रार चक्र पर पहुँचाने से इसमें स्फुलिंग होती है और चंद्रमा (सिर का गढ़ा) का मल के कारण बंद हुआ छिद्र खुल जाता है। इससे इसमें अधिक मात्रा में अमृत तत्व का प्रवेश होने लगता है और शारीरिक चक्र कई गुणा अधिक शक्तिशाली हो जातें है। इससे रूप, यौवन, उम्र के साथ-साथ अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति होती है और अपना सारा ऊर्जा शरीर उसका व्यापार अनुभूत होता है(ध्यान में प्रत्यक्ष)। इससे अज्ञानता का मल नष्ट होता है और दिव्य तन-मन की प्राप्ति होती है।
आचरण संहिता पर विश्वास रखने वाले पंडितों और धर्माचार्यों ने इसकी कटु आलोचना की हैं। फल की नहीं; प्रक्रिया की। उन्होंने संयम, नियम, उपवास, आदि के द्वारा इन चक्रों के भेदन का रास्ता ही उपयुक्त बताया है।
पर सभी तंत्र आचार्यों ने इस आलोचना पर खुल कर ठहाका लगाया है। इन्होंने कहा है कि नियम बनाने वाले तुम कौन हो? नियम केवल परमात्मा से उत्पन्न होते है और वे ही सनातनधर्म है। मानव निर्मित कृत्रिम नियमों में बंधा मानव समाज पाशबद्ध पशु है। वह निरर्थक पाप-पुण्य के भ्रम में उलझा हुआ है। प्रकृति में जो नियम नहीं है या जो नियम उसके विपरीत है; उनको पालने का केवल नाटक किया जाता है।(साभार)
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