मकर संक्रांति 2020
Makar Sankranti 2020
मकर संक्रांति हमारे प्रमुख त्यौहारों में एक है। यह होली, दीवाली,दशहरा और नवरात्र की तरह मनाया जाने वाला त्यौहार हैं। यह त्यौहार भगवान् सूर्य को समर्पित हैं।
यह पर्व एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना का साक्षी रहता हैं।सूर्य प्रतिवर्ष पृथ्वी के गति के कारण दक्षिणायन से उत्तरायण भाग में आ जाते हैं और इसी के साथ सूर्य मकर राशि में भी प्रवेश करते हैं।
यह पर्व एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना का साक्षी रहता हैं।सूर्य प्रतिवर्ष पृथ्वी के गति के कारण दक्षिणायन से उत्तरायण भाग में आ जाते हैं और इसी के साथ सूर्य मकर राशि में भी प्रवेश करते हैं।
मकर संक्रांति क्या है?Makar Sankranti Kya Hai ?
किसी ग्रह का संचरण जब एक राशि से दूसरी राशि में होता है तो इसे संक्रांति कहते हैं।सूर्य एक राशि में एक मास तक रहता है, इस तरह बारह संक्रान्ति होती हैं।
शरद ऋतु में माघ महीने के आरम्भ में जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इस संक्रांति को मकर संक्रांति कहते हैं। पृथ्वी के गति के कारण इसी दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण भी हो जाते हैं। सभी बारह संक्रांतियों में मकर संक्रांति सबसे प्रमुख संक्रांति हैं।
शरद ऋतु में माघ महीने के आरम्भ में जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इस संक्रांति को मकर संक्रांति कहते हैं। पृथ्वी के गति के कारण इसी दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण भी हो जाते हैं। सभी बारह संक्रांतियों में मकर संक्रांति सबसे प्रमुख संक्रांति हैं।
मकर संक्रांति मुहूर्त पुण्यकाल कब कैसे मनाएँ ? How to celebrate Makar Sankranti Muhurta Punyakal
शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति के समय पुण्यकाल संक्रांति से 6 घंटे पहले तथा संक्रांति के ख़त्म होने के 6 बाद तक रहता हैं। इस वर्ष मकर संक्रांति का पुण्यकाल15 जनवरी 2020 को पूरे दिन रहेगा।
अतः ब्रह्ममुहूर्त से ही स्नान,ध्यान,दान पुरे दिन सूर्यास्त तक किया जा सकता हैं। मकर संक्रांति पर किया गया ध्यान फल कई गुना बढ़कर दान और पूजा-पाठ करने वालो को मिलता हैं।
अतः ब्रह्ममुहूर्त से ही स्नान,ध्यान,दान पुरे दिन सूर्यास्त तक किया जा सकता हैं। मकर संक्रांति पर किया गया ध्यान फल कई गुना बढ़कर दान और पूजा-पाठ करने वालो को मिलता हैं।
तिल-गुड़ के लड्डू और पकवान Sesame-jaggery laddus and dish
मकर संक्रांति के दिन पूजा-पाठ और मन्त्र जप का विशेष लाभ मिलता हैं इस दिन प्रातःकाल स्नान करके सर्वप्रथम उगते सूर्यनारायण को जल में पुष्प-अक्षत डाल कर अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। और उनसे बल, विद्या, बुद्धि का आशीर्वाद माँगना चाहिए। ऐसी मान्यता हैं की इस दिन किया गया दान का पुण्य सौ गुना बढ़कर पुनः प्राप्त होता हैं।
मकर संक्रान्ति का महत्व Importance of Makar Sankranti
शास्त्रों के मतानुसार दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है-
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम्।स भुक्त्वा सकलान् भोगान् अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
गंगा सागरे गंगायाम् सर्वत्र नद्यां तीर्थे वा स्नानं गौ,कम्बल,मृगमोदकं वस्त्र,उपानह दानम्।।
मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण छ:-छ: माह के अन्तराल पर होता है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है।
मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व Historical significance of Makar Sankranti
ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। और दो महीने तक उनके घर पर निवास करते हैं।
चूँकि शनिदेव मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं,अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति अर्थात सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।
चूँकि शनिदेव मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं,अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति अर्थात सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।
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