बेचारा कलुआ
अपनी बहनों मे अकेला भाई ।पिता मेहनत मजदूरी करते और माँ घर चलाती।
पिता जो भी लाते उसमें किसी तरह गुजर हो जाता।
कलुआ हमेशा सोचा करता कि घर की स्थिति मे सुधार कैसे हो?
वो बचपन से इसी उधेणबुन मे लगा रहता।
पिता ने कुछ सोचा नही इस बात को लेकर अक्सर माँ से विवाद होता रहता।धीरे-धीरे इस बात का असर बच्चों पर पड़ने लगा।पिता को लगता कि हमारे भाई और परिवार सक्षम है मैंने जी जान से उनके लिए मेहनत की है तो समय आने पर क्या वो हमारी मदद नही करेंगे?और इसी विश्वास मे वो जीते चले गये। उन्होंने माँ की बातों को ज्यादा ध्यान नही दिया।
अपने अलावा वे कलुआ पर अधिक ध्यान देने लगे।
धीरे-धीरे इसका असर बेटियों पर दिखने लगा उन्हें लगता कि पापा कलुआ को ही चाहते है
और कलुआ की बहनों के साथ कटुता बढ़ने लगी।
बेचारा कलुआ इनमें पिसने लगा । वो खूब कोशिश करता कि ऐसा न हो।उसकी सोच भी ऐसी नही थी ।
लेकिन वो सफल नही हुआ बहनों का मनमुटाव बढ़ता चला गया अंत मे ऐसी स्थिति आ गयी कि एक दूसरे को देखने की भी जरूरत नही रही।
माँ और पिता अपने से ही नही निकल पाये और परिवार का सामंजस्य कमजोर होता गया।
इसका असर ये हुआ कि कलुआ की प्रवृत्ति अंतर्मुखी हो गयी।वो न किसी से मिलना चाहता और न ही सबके सामने अपने को पेश कर पाता, धीरे-धीरे उसका स्वभाव चिड़चिड़ा होता चला गया।
उसकी इस स्थिति पर किसी ने ध्यान नही दिया।अब उसके मन मे अपने घर परिवार को मजबूत करने के अलावा और कोई बात नही होती ,लेकिन वो अपने आप को सही रूप से प्रस्तुत नही कर पाता या लोग उसकी बात नही समझ नही पाते।जो भी हो लेकिन
इस तरह उसके प्रति लोगों का नजरिया अच्छा नही रहा,लोग उसे चिड़चिड़ा, मूर्ख खौर घमण्डी समझते।फलस्वरूप कलुआ जितना घुलने-मिलने का प्रयत्न करता लोग उसे उतना ही दूर छिटकते।धीरे-धीरे वो एकदम अकेला हो गया अब लोग उससे बात करते उससे अपनत्व दिखाते पर वो केवल एक औपचारिकता भर।
और तो और उसके बारे मे सभी को यही पता था की उसका व्यवहार एकदम सही नही है इसलिए उससे बात करना ठीक नही है।अब कलुआ के पास अपने आप को समेट लेने के अलावा कोई चारा नही था।क्योंकि जिन लोगो पर उसे एकदम भरोसा था कि कम से कम वो लोग उसकी बात को हर हाल मे समझते है, इसलिए वो उसके साथ हमेशा रहेंगे और यदि उससे कोई गलती होगी तो वो उसे आगाह करेंगे।
लेकिन अब उसका ये भरोसा टूट चुका था उसे लग रहा था कि उसके बारे मे अन्य लोग भ्रम फैला रहे हैं लेकिन अब वो जान गया था कि अब तक जिनके ऊपर भरोसा किया गया वही लोग थे जो पीछे से ये सब कर रहे थे क्यों ये तो पता अभी नही चला लेकिन स्थिति स्पष्ट हो गयी है ।
दोनों छोटी बहनो की शादी के बाद से अब तक वो बैल की तरह काम मे लगा रहा और मन मे हमेशा यह बात रही कि अब जिम्मेदारियां कम हो गयी हैं अब धीरे-धीरे स्थिति मजबूत हो जायेगी और वो अपने परिवार के साथ सामंजस्य पूर्वक बैठने की स्थिति मे आ जायेगा ।
पर उसे कहाँ मालूम था की परिवार ऐसा नही चाहता है।
बहनो ने भी साथ नही दिया बल्कि विरोध किया और उसको दोषी ठहराया।
इस तरह के माहौल मे किसी तरह से खुद उसकी शादी तय हो पाई, वो बड़ा खुश था कि चलो जो हुआ सो हुआ अब कोई उसकी बात समझेगा और उसका साथ देगा।
अब वो और अच्छी तरह से घर को सजा संवार पायेगा और समाज मे अपनी स्थिति स्पष्ट कर पायेगा लेकिन उसे क्या पता था कि जिंदगी यहाँ भी एक बड़ी परीक्षा लेने की तैयारी मे है, और शायद ही ये परीक्षा वो दे पाये।
उसकी शादी चूँकि वो और माता-पिता सभी ये चाहते थे कि कोई अच्छा रिश्ता मिल जाये दुनियादारी से वे सभी बेखबर थे अतः इसका फायदा लड़की के पिता को मिला और उसने बड़े ही तरीके से सब्जबाग दिखाकर अपनी मंदबुद्धि लड़की की शादी कलुआ से कर दी ।
कुछ ही दिन बीते थे कि धीरे-धीरे सारे राज खुलने लगे और कलुआ एकदम शॉक्ड हो गया उसे यह अंदाजा नही था की कोई इस तरह की धोखाधड़ी भी कर सकता है।
कलुआ ने अपने मन को बहुत तरह से समझाया ससुराल वालो से अपने साले से बात करके अपने को समझाना चाहा।
उसे यह था की उसके साथ ऐसा क्यों किया गया उसका क्या अपराध था और वो भी तब जब वो सब कुछ स्वीकार करने के लिए तैयार था ।
बस इस बात को वो किसी भी तरह से अपने मन से निकाल नही पाया।उसका स्वभाव और भी ख़राब हो गया था।
जहाँ विवाह के बाद मनुष्य का मन एकदम खिल जाता है वो अपने आप को आनन्दित महसूस करने लगता है, कलुआ के साथ एकदम विपरीत हो गया था।
उसका मन बुझ गया था किसी भी परिस्थिति मे अपने मन को समझा लेने वाला कलुआ अब दुखी और निराश हो गया था।
जीवन में कभी-कभी कुछ परिस्थितियों की वजह से एक कहावत चरितार्थ हो जाती है-"गुड़ भरा हसिया न उगल सकते हैं और न निगल सकते हैं" अगर धोखे से मुँह में रख लिया तो इसके दो अर्थ निकलते हैं-
एक यह कि दोनों ही परिस्थितियों में मरना होगा ।।
दूसरा यह कि उसी परिस्थिति में रहा जाय।न उसे निगला जाय और न उसे उगला जाय।।
यद्यपि यह दूसरी परिस्थिति अत्यंत कठिन है लेकिन निर्वहन हो सकता है।।मरने की अपेक्षा।।
कुछ लोग अपने फायदे के लिए या अपना काम निकालने के लिए कुछ ऐसा काम कर जाते हैं कि आगे चलकर उसका परिणाम गुड़ भरा हसिया हो जाता है।
जो किसी एक को जीवन भर की मृत्यु दे जाता है।।
जिसकी वजह से अन्य कई परिस्थितियों का निर्माण होता है जो हम चाहे भी तो उनको सुलझा भी नहीं सकते और उलझा भी नहीं सकते।।
जीवन में हमें ऐसी परिस्थितियाँ नही आने देना चाहिए।क्योंकि इससे तात्कालिक कार्य निकल जाते हैं लेकिन जीवन भर के लिए समस्यायें खड़ी हो जाती हैं।
बहुत समय बाद वो कुछ सामान्य सा हो पाया लेकिन इतने अंतराल मे बहुत कुछ हो गया था ।अब तक कलुआ के दो छोटे बच्चे हो गये थे और वो उनमे काफी हद तक रम भी गया था
लेकिन आज भी कभी-कभी उसकी आँख भर आती हैं कि इन बच्चों का क्या होगा?
क्योंकि कलुआ तो कब का मर चुका था।
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