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Saturday, August 31, 2019

रुद्राभिषेक सम्पूर्ण जानकारी। Rudrabhishek complete information

                 रुद्राभिषेक सम्पूर्ण जानकारी


शिव शब्द स्वयं कल्याणवाचक है। भगवान शिव तो विश्वरूप हैं।उनका न कोई स्वरूप है न कोई चिन्ह है।ऐसी अवस्था में उनका पूजन कहाँ और कैसे किया जाए?
चारों वेदों में यजुर्वेद यजन का प्रतीक है।इसी से प्रायः सभी वैदिक उपासनाएँ-सम्पन्न होती हैं।शिव पूजन में प्रायः रुद्राष्टाध्यायी का ही प्रयोग होता है।
हमारे शास्त्रों और पुराणो में पूजन के कई प्रकार बताये गए है लेकिन जब हम शिव लिङ्ग स्वरुप महादेव का अभिषेक करते है तो उस जैसा पुण्य अश्वमेघ यज्ञ से भी प्राप्त नही होता ।
शिव जी को अनन्त मानने से उनका पूजन विभिन्न वस्तुओं एवं नानाप्रकार के लिङ्ग पर भी होता है।
यथा-चाँदी के लिङ्ग का पूजन करने से पितरों की मुक्ति होती है।
स्वर्ण लिङ्ग से वैभव और सत्यलोक, ताम्र एवं पीतल के लिङ्ग से पुष्टि, कांस्य लिङ्ग से सुन्दर यश की प्राप्ति, लौह लिङ्ग से मारण सिद्धि, स्तंभन के लिए हल्दी का लिङ्ग, आयु-आरोग्यता के लिए शीशे के लिङ्ग शुभफलदायी होता है।
रत्न लिङ्ग श्रीप्रद होता है।गोमय लिङ्ग का पूजन करने से अतुल ऐश्वर्य प्राप्त होता है।किन्तु दूसरे के लिए करने पर मारक होता है।इसी प्रकार अनेक लिङ्ग का वर्णन मिलता है।
इस पर भी पार्थिव शिवलिङ्ग का पूजन सर्वोपरि एवं सुगम बताया गया है।
स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम रुद्राभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करते  है । संसार में ऐसी कोई वस्तु , कोई भी वैभव , कोई भी सुख , ऐसी कोई भी वस्तु या पदार्थ नही है जो हमें अभिषेक से प्राप्त न हो सके! वैसे तो अभिषेक कई प्रकार से बताये गये है । लेकिन मुख्य पांच ही प्रकार है ! 

(1) रूपक या षडंग पाठ - रूद्र के छः अंग कहे गये है इन छह अंग का यथा विधि पाठ षडंग पाठ कहा गया है ।

● शिव संकल्प सुक्त(प्रथम अध्याय के अंतिम 6 श्लोक) --- 1. प्रथम हृदय रूपी अंग है ।

● पुरुष सुक्त (द्वितीय अध्याय 16 श्लोक)--- 2. द्वितीय सर रूपी अंग है।

● उत्तर नारायण सूक्त(द्वितीय अध्याय अंतिम 6 श्लोक)--3.आत्मा रूप तृतीय अंग है।

● अप्रतिरथ सूक्त(तृतीय अध्याय 12 श्लोक) --- 4. कवचरूप चतुर्थ अंग है ।

● मैत्रसूक्त(चतुर्थ अध्याय 12 श्लोक)--- 5. नेत्र रूप पंचम अंग कहा गया है ।

● शतरुद्रिय(मुख्य रूप से पंचम अध्याय) --- 6. अस्तरूप षष्ठ अंग कहा गया है।

(1) इस प्रकार - सम्पूर्ण रुद्राष्टाध्यायी के दस अध्यायों का  पाठ षड़ंग रूपक पाठ कहलाता है षडंग पाठ में विशेष बात है की इसमें आठवें अध्याय के साथ पांचवे अध्याय की आवृति नही होती है।

(2) रुद्री या एकादिशिनि - रुद्राध्याय की  ग्यारह आवृति को रुद्री या एकादिशिनी कहते है रुद्रो की संख्या ग्यारह होने के कारण ग्यारह अनुवाद में विभक्त किया गया है।

(3) लघुरुद्र- एकादिशिनी रुद्री की ग्यारह आवृतियों के पाठ के लघुरुद्र पाठ कहा गया है।

यह लघु रूद्र अनुष्ठान एक दिन में ग्यारह ब्राह्मणों का वरण करके एक साथ संपन्न किया जा सकता है । तथा एक ब्राह्मण द्वारा अथवा स्वयं ग्यारह दिनों तक एक एकादशिनी पाठ नित्य करने पर भी लघु रूद्र संपन्न होती है।

(4) महारुद्र -- लघु रूद्र की ग्यारह आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री का 121 आवृति पाठ होने पर महारुद्र अनुष्ठान होता है । यह पाठ ग्यारह ब्राह्मणों द्वारा 11 दिन तक कराया जाता है । 

(5) अतिरुद्र - महारुद्र की 11 आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री का 1331 आवृति पाठ होने से अतिरुद्र अनुष्ठान संपन्न होता है।
ये अनुष्ठात्मक, अभिषेकात्मक, हवनात्मक 
तीनो प्रकार से किये जा सकते है शास्त्रों में इन तीनों अनुष्ठानो का अत्यधिक फल है व तीनो का फल समान है। 

रुद्राभिषेक प्रयुक्त होने वाले प्रमुख द्रव्य व उनका फल 

1. जलसे रुद्राभिषेक -- वृष्टि होती है 

2. कुशोदक जल से -- समस्त प्रकार की व्याधि की शांति 

3. दही से अभिषेक --संतान व  पशुवृद्धि प्राप्ति होती है 

4. इक्षु रस -- लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए 

5. मधु (शहद)-- धन प्राप्ति के लिए, क्षय (तपेदिक)।

6. घृत --ऐश्वर्य प्राप्ति।
7. तीर्थ जल से  -- मोक्ष प्राप्ति के लिए।

8. दूध से अभिषेक --  से प्रमेह रोग का विनाश व पुत्र प्राप्ति होती है ।

9. जल की धारा भगवान शिव को अति प्रिय है अत: ज्वर के कोपो को शांत करने के लिए जल धारा से अभिषेक करना चाहिए।

10. सरसों के तेल से अभिषेक करने से शत्रु का विनाश होता है।यह अभिषेक विवाद मुकदमे सम्पति विवाद न्यायालय में विवाद को दूर करते है।

11.शक्कर मिले जल से पुत्र की प्राप्ति होती है ।

12. इत्र मिले जल से अभिषेक करने से शरीर की बीमारी नष्ट होती है ।

13. दूध से मिले काले तिल से अभिषेक करने से भगवन शिव का अभिषेक करने से  रोग व शत्रु पर विजय प्राप्त होती है ।

14.समस्त प्रकार के प्राकृतिक रसो से अभिषेक किया जा सकता है ।

नोट--उपरोक्त द्रव्यों से शिवलिंग का अभिषेक करने पर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होकर भक्तो की सभी कामनाओं की पूर्ति करते है ।

अत: भक्तो को यजुर्वेद विधान से रुद्रो का अभिषेक करना चाहिए ।

विशेष बात :- रुद्राध्याय के केवल पाठ अथवा जप से ही सभी कामनाओं की पूर्ति होती है 

रूद्र का पाठ या अभिषेक करने या कराने वाला महापातक  से मुक्त होकर सम्यक ज्ञान को प्राप्त होता है ।

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