ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को पिता का कारक व मंगल को रक्त का कारक माना गया है। अतः जब जन्मकुंडली में सूर्य या मंगल, पाप प्रभाव में होते हैं तो पितृदोष का निर्माण हाता है। इनमे सूर्य पिता का कारक है इसलिए सूर्य को प्रधानता दी गयी है।
शास्त्रों में कहा गया है-सूर्य सप्तमे पापः सूर्य मध्यगतः पापः सूर्य संयुतः पापः पितृदोषः।
पितृ दोष वाली कुंडली में समझा जाता है कि जातक अपने पूर्व जन्म में भी पितृदोष से युक्त था। प्रारब्धवश वर्तमान समय में भी जातक पितृदोष से युक्त है। यदि समय रहते, इस दोष का निवारण कर लिया जाये तो पितृ दोष से मुक्ति मिल सकती है।
पितृ दोष वाले जातक के जीवन में सामान्यतः निम्न प्रकार की घटनाएं या लक्षण दिखायी दे सकते है। पितृ दोष वाले जातक क्रोधी स्वभाव वाले होते हैं। यदि राजकीय सेवा में कार्यरत हैं तो उन्हें अपने अधिकारियों के कोप का सामना करना पड़ता है। मानसिक व्यथा का सामना करना पड़ता है। पिता से अच्छा तालमेल नहीं बैठ पाता। जीवन में किसी आकस्मिक नुकसान या दुर्घटना के शिकार होते हैं।
जीवन के अंतिम समय में, जातक का पिता बीमार रहता है या स्वयं को ऐसी बीमारी होती है जिसका पता नहीं चल पाता।
विवाह व शिक्षा में बाधाओं के साथ वैवाहिक जीवन अस्थिर-सा बना रहता है। वंश-वृद्धि में अवरोध दिखायी पड़ते हैं। गर्भपात की स्थिति पैदा होती हैं। आत्मबल में कमी रहती है। स्वयं निर्णय लेने में परेशानी होती है। वस्तुतः लोगों से अधिक सलाह लेनी पड़ती है। परीक्षा एवं साक्षात्कार में असफलता मिलती है।
पितृ दोष का मूल रहस्य: ज्योतिष में पूर्व जन्म के कर्मों के फलस्वरूप, वर्तमान समय में कुंडली में वर्णित ग्रह दिशा प्रदान करते हैं। तभी तो हमारे धर्मशास्त्र सकारात्मक कर्मों को महत्व देते हैं। यदि हमारे कर्म अच्छे होते हैं तो अगले जन्म में ग्रह सकारात्मक परिणाम देते हैं। इसी क्रम में पितृदोष का भी निर्माण होता है। यदि हम इस जन्म में पिता की हत्या, पिता का अपमान, बड़े बुजुर्गों का अपमान आदि करते हैं तो अगले जन्म में निश्चित तौर पर हमारी कुंडली में ‘पितृदोष आ जाता है। कहा जाता है कि पितृदोष वाले जातक से पूर्वज दुखी रहते हैं। कैसे जानें कि कुंडली में पितृदोष है या नहीं कुंडली में पितृदोष का सृजन दो ग्रहों सूर्य व मंगल के पीड़ित होने से होता है क्योंकि सूर्य का संबंध पिता से व मंगल का संबंध रक्त से होता है। सूर्य के लिए पाप ग्रह शनि, राहु व केतु माने गए हैं। अतः जब सूर्य का इन ग्रहों के साथ दृष्टि या युति संबंध हो तो सूर्यकृत पितृदोष का निर्माण होता है। इसी प्रकार मंगल यदि राहु या केतु के साथ हो या इनसे दृष्ट हो तो मंगलकृत पितृ दोष का निर्माण होता है। सामान्यतः यह देखा जाता है कि सूर्यकृत पितृदोष होने से जातक के अपने परिवार या कुटुंब में अपने से बड़े व्यक्तियों से विचार नहीं मिलते। वहीं मंगलकृत पितृदोष होने से जातक के अपने परिवार या कुटुंब में अपने छोटे व्यक्तियों से विचार नहीं मिलते। सूर्य व मंगल की राहु से युति अत्यंत विषम स्थिति पैदा कर देती है क्योंकि राहु एक पृथकताकारी ग्रह है तथा सूर्य व मंगल को उनके कारकों से पृथक कर देता है।
सूर्यकृत पितृदोष निवारण
1. शुक्लपक्ष के प्रथम रविवार के दिन, घर में विधि-विधान से ‘सूर्ययंत्र’ स्थापित करें। सूर्य को नित्य तांबे के पात्र में जल लेकर अघ्र्य दें। जल में कोई लाल पुष्प, चावल व रोली अवश्य मिश्रित कर लें। जब घर से बाहर जाएं तो यंत्र दर्शन जरूर करें।
2. निम्न मंत्र का एक माला, नित्य जप करें। ध्यान रहे आपका मुख पूर्व दिशा में हो। ।। ऊँ आदित्याय विद्महे, प्रभाकराय, धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्।।
3. ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से प्रारंभ कर कम से कम 12 व अधिक से अधिक 30 रविवार व्रत रखें। सूर्यास्त के पूर्व गेहूं, गुड़, घी आदि से बनी कोई सामग्री खा कर व्रतपूर्ण करें। व्रत के दिन ‘सूर्य स्तोत्र’ का पाठ भी करें।
4. लग्नानुसार सोने या तांबे में 5 रत्ती के ऊपर का माणिक्य रविवार के दिन विधि-विधान से धारण कर लें।
5. पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करें। तथा नित्य द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नामों का स्मरण करें। 6. पिता का अपमान न करें। बड़े बुजुर्गों को सम्मान दें।
7. रविवार के दिन गाय को गेंहू व गुड़ खिलाएं। स्वयं घर से बाहर जाते समय गुड़ खाकर निकला करें।
8. दूध में शहद मिलाकर पिया करें।
9. सदैव लाल रंग का रूमाल अपने पास अवश्य रखें।
मंगलकृत पितृदोष निवारण:
1. शुक्लपक्ष के प्रथम मंगलवार के दिन घर में मंगल यंत्र, पूर्ण विधि-विधान से स्थापित करें। जब घर के बाहर जाएं तो यंत्र दर्शन अवश्य करके जाएं।
2. नित्य प्रातः काल उगते हुए सूर्य को अघ्र्य दें।
3. नित्य एक माला जप, निम्न मंत्र का करें। ।। ऊँ अंगारकाय विद्महे, शक्तिहस्ताय, धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात्।।
4. शुक्लपक्ष के प्रथम मंगलवार से आरंभ करके 11 मंगलवार व्रत करें। हनुमान जी व शिवजी की उपासना करें। जमीन पर सोयें। 5. मंगलवार के दिन 5 रत्ती से अधिक वजन का मूंगा, सोने या तांबे में विधि-विधान से धारण करें।
6. तीनमुखी रुद्राक्ष धारण करें तथा नित्य प्रातःकाल द्व ादश ज्योतिर्लिंगों के नामों का स्मरण करें।
7. बहनों का भूलकर भी अपमान न करें।
8. लालमुख वाले बंदरों को गुड़ व चना खिलाएं।
9. जब भी अवसर मिले, रक्तदान अवश्य करें।
10. 100 ग्राम मसूर की दाल जल में प्रवाहित कर दें।
11. सुअर को मसूर की दाल व मछलियों को आटे की गोलियां खिलाया करें। विशेष: हो सकता है कि कुंडली में सूर्य व मंगलकृत दोनों ही पितृदोष हो। यह स्थिति अत्यंत घातक हो सकती है। यदि ऐसी स्थिति है तो जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सूर्य, मंगल, राहु की युति विशेष रूप से कष्टकारी हो सकती है। अतः अनिष्टकारी प्रभावों से बचने के लिए निम्न उपाय करने चाहिए।
1. शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को सायं काल पानी वाला नारियल अपने ऊपर से 7 बार उसार कर, तीव्र प्रवाह वाले जल में प्रवाहित कर दें तथा पितरों से आशीर्वाद का निवेदन करें।
2. अष्टमुखी रुद्राक्ष धारण करें। घर में 21 मोर के पंख अवश्य रखें तथा शिवलिंग पर जलमिश्रित दूध अर्पित करें। प्रयोग अनुभूत है, अवश्य लाभ मिलेगा।
3. जब राहु की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो तो कंबल का प्रयोग कतई न करें।
4. सफाईकर्मी को दान-दक्षिणा दे दिया करें। उपरोक्त प्रयोग पूर्ण श्रद्धा, लगन व विश्वास के साथ करने पर पितृदोष के दुष्प्रभावों का शमन होता है।
पितृदोष के समुचित निवारण के लिए पितृदोष गायत्री का प्रयोग करना चाहिए।
शास्त्रों में कहा गया है-सूर्य सप्तमे पापः सूर्य मध्यगतः पापः सूर्य संयुतः पापः पितृदोषः।
पितृ दोष वाली कुंडली में समझा जाता है कि जातक अपने पूर्व जन्म में भी पितृदोष से युक्त था। प्रारब्धवश वर्तमान समय में भी जातक पितृदोष से युक्त है। यदि समय रहते, इस दोष का निवारण कर लिया जाये तो पितृ दोष से मुक्ति मिल सकती है।
पितृ दोष वाले जातक के जीवन में सामान्यतः निम्न प्रकार की घटनाएं या लक्षण दिखायी दे सकते है। पितृ दोष वाले जातक क्रोधी स्वभाव वाले होते हैं। यदि राजकीय सेवा में कार्यरत हैं तो उन्हें अपने अधिकारियों के कोप का सामना करना पड़ता है। मानसिक व्यथा का सामना करना पड़ता है। पिता से अच्छा तालमेल नहीं बैठ पाता। जीवन में किसी आकस्मिक नुकसान या दुर्घटना के शिकार होते हैं।
जीवन के अंतिम समय में, जातक का पिता बीमार रहता है या स्वयं को ऐसी बीमारी होती है जिसका पता नहीं चल पाता।
विवाह व शिक्षा में बाधाओं के साथ वैवाहिक जीवन अस्थिर-सा बना रहता है। वंश-वृद्धि में अवरोध दिखायी पड़ते हैं। गर्भपात की स्थिति पैदा होती हैं। आत्मबल में कमी रहती है। स्वयं निर्णय लेने में परेशानी होती है। वस्तुतः लोगों से अधिक सलाह लेनी पड़ती है। परीक्षा एवं साक्षात्कार में असफलता मिलती है।
पितृ दोष का मूल रहस्य: ज्योतिष में पूर्व जन्म के कर्मों के फलस्वरूप, वर्तमान समय में कुंडली में वर्णित ग्रह दिशा प्रदान करते हैं। तभी तो हमारे धर्मशास्त्र सकारात्मक कर्मों को महत्व देते हैं। यदि हमारे कर्म अच्छे होते हैं तो अगले जन्म में ग्रह सकारात्मक परिणाम देते हैं। इसी क्रम में पितृदोष का भी निर्माण होता है। यदि हम इस जन्म में पिता की हत्या, पिता का अपमान, बड़े बुजुर्गों का अपमान आदि करते हैं तो अगले जन्म में निश्चित तौर पर हमारी कुंडली में ‘पितृदोष आ जाता है। कहा जाता है कि पितृदोष वाले जातक से पूर्वज दुखी रहते हैं। कैसे जानें कि कुंडली में पितृदोष है या नहीं कुंडली में पितृदोष का सृजन दो ग्रहों सूर्य व मंगल के पीड़ित होने से होता है क्योंकि सूर्य का संबंध पिता से व मंगल का संबंध रक्त से होता है। सूर्य के लिए पाप ग्रह शनि, राहु व केतु माने गए हैं। अतः जब सूर्य का इन ग्रहों के साथ दृष्टि या युति संबंध हो तो सूर्यकृत पितृदोष का निर्माण होता है। इसी प्रकार मंगल यदि राहु या केतु के साथ हो या इनसे दृष्ट हो तो मंगलकृत पितृ दोष का निर्माण होता है। सामान्यतः यह देखा जाता है कि सूर्यकृत पितृदोष होने से जातक के अपने परिवार या कुटुंब में अपने से बड़े व्यक्तियों से विचार नहीं मिलते। वहीं मंगलकृत पितृदोष होने से जातक के अपने परिवार या कुटुंब में अपने छोटे व्यक्तियों से विचार नहीं मिलते। सूर्य व मंगल की राहु से युति अत्यंत विषम स्थिति पैदा कर देती है क्योंकि राहु एक पृथकताकारी ग्रह है तथा सूर्य व मंगल को उनके कारकों से पृथक कर देता है।
सूर्यकृत पितृदोष निवारण
1. शुक्लपक्ष के प्रथम रविवार के दिन, घर में विधि-विधान से ‘सूर्ययंत्र’ स्थापित करें। सूर्य को नित्य तांबे के पात्र में जल लेकर अघ्र्य दें। जल में कोई लाल पुष्प, चावल व रोली अवश्य मिश्रित कर लें। जब घर से बाहर जाएं तो यंत्र दर्शन जरूर करें।
2. निम्न मंत्र का एक माला, नित्य जप करें। ध्यान रहे आपका मुख पूर्व दिशा में हो। ।। ऊँ आदित्याय विद्महे, प्रभाकराय, धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्।।
3. ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से प्रारंभ कर कम से कम 12 व अधिक से अधिक 30 रविवार व्रत रखें। सूर्यास्त के पूर्व गेहूं, गुड़, घी आदि से बनी कोई सामग्री खा कर व्रतपूर्ण करें। व्रत के दिन ‘सूर्य स्तोत्र’ का पाठ भी करें।
4. लग्नानुसार सोने या तांबे में 5 रत्ती के ऊपर का माणिक्य रविवार के दिन विधि-विधान से धारण कर लें।
5. पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करें। तथा नित्य द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नामों का स्मरण करें। 6. पिता का अपमान न करें। बड़े बुजुर्गों को सम्मान दें।
7. रविवार के दिन गाय को गेंहू व गुड़ खिलाएं। स्वयं घर से बाहर जाते समय गुड़ खाकर निकला करें।
8. दूध में शहद मिलाकर पिया करें।
9. सदैव लाल रंग का रूमाल अपने पास अवश्य रखें।
मंगलकृत पितृदोष निवारण:
1. शुक्लपक्ष के प्रथम मंगलवार के दिन घर में मंगल यंत्र, पूर्ण विधि-विधान से स्थापित करें। जब घर के बाहर जाएं तो यंत्र दर्शन अवश्य करके जाएं।
2. नित्य प्रातः काल उगते हुए सूर्य को अघ्र्य दें।
3. नित्य एक माला जप, निम्न मंत्र का करें। ।। ऊँ अंगारकाय विद्महे, शक्तिहस्ताय, धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात्।।
4. शुक्लपक्ष के प्रथम मंगलवार से आरंभ करके 11 मंगलवार व्रत करें। हनुमान जी व शिवजी की उपासना करें। जमीन पर सोयें। 5. मंगलवार के दिन 5 रत्ती से अधिक वजन का मूंगा, सोने या तांबे में विधि-विधान से धारण करें।
6. तीनमुखी रुद्राक्ष धारण करें तथा नित्य प्रातःकाल द्व ादश ज्योतिर्लिंगों के नामों का स्मरण करें।
7. बहनों का भूलकर भी अपमान न करें।
8. लालमुख वाले बंदरों को गुड़ व चना खिलाएं।
9. जब भी अवसर मिले, रक्तदान अवश्य करें।
10. 100 ग्राम मसूर की दाल जल में प्रवाहित कर दें।
11. सुअर को मसूर की दाल व मछलियों को आटे की गोलियां खिलाया करें। विशेष: हो सकता है कि कुंडली में सूर्य व मंगलकृत दोनों ही पितृदोष हो। यह स्थिति अत्यंत घातक हो सकती है। यदि ऐसी स्थिति है तो जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सूर्य, मंगल, राहु की युति विशेष रूप से कष्टकारी हो सकती है। अतः अनिष्टकारी प्रभावों से बचने के लिए निम्न उपाय करने चाहिए।
1. शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को सायं काल पानी वाला नारियल अपने ऊपर से 7 बार उसार कर, तीव्र प्रवाह वाले जल में प्रवाहित कर दें तथा पितरों से आशीर्वाद का निवेदन करें।
2. अष्टमुखी रुद्राक्ष धारण करें। घर में 21 मोर के पंख अवश्य रखें तथा शिवलिंग पर जलमिश्रित दूध अर्पित करें। प्रयोग अनुभूत है, अवश्य लाभ मिलेगा।
3. जब राहु की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो तो कंबल का प्रयोग कतई न करें।
4. सफाईकर्मी को दान-दक्षिणा दे दिया करें। उपरोक्त प्रयोग पूर्ण श्रद्धा, लगन व विश्वास के साथ करने पर पितृदोष के दुष्प्रभावों का शमन होता है।
पितृदोष के समुचित निवारण के लिए पितृदोष गायत्री का प्रयोग करना चाहिए।
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