महामृत्युञ्जय मन्त्र का प्रयोग कब करना चाहिए?
When should one use Mahamrityunjaya Mantra?
जानें ज्योतिष के अनुसार
महामृत्युञ्जय मन्त्र का जप करने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है। आयोग्यता भी प्राप्त होती है, स्नान करते समय शरीर पर लोटे पानी डालते समय इस इस मंत्र का जाप करने से स्वास्थ्य लाभ होता है। दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा होती है साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएं दूर होती हैं, अतः इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए।
किन्तु कभी-कभी मन में यह बात आती है कि जन्मपत्रिका के अनुसार महामृत्युञ्जय मन्त्र का सम्यक प्रयोग कब करना चाहिए?
प्रस्तुत हैं कुछ प्रमुख कारण जिनमें हर हाल में महामृत्युञ्जय मन्त्र का प्रयोग करना चाहिए यथा:-
- ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास गोचर और दशा, अंर्तदशा, आदि में ग्रहपीड़ा होने का योग है।
-शनि की साढ़ेसाती के समय में
-मारकेश अर्थात् सप्तमेश या द्वितीयेश की दशा-अन्तर्दशा में
-जन्म से चतुर्थ तथा छठी महादशा के समय में
-षष्ठेश की महादशा में सप्तमेश, द्वितीयेश, द्वादशेश, अष्टमेश की अन्तर्दशा में
-सप्तमेश तथा अष्टमेश की महादशा में षष्ठेश, द्वादशेश की अन्तर्दशा में।
-जन्मकुण्डली में शनि व मंगल की अशुभ स्थिति में।
- जन्मपत्रिका में मंगल दोष होने तथा साथ में मंगल की महादशा-अन्तर्दशा होने पर।
- जिन स्त्रियों की जन्म पत्रिका में अष्टम भाव दूषित हो तथा सप्तमेश व सप्तम भाव क्रूर ग्रहों के प्रभाव में हो तो वैधव्य योग के निवारण एवं पति के जीवन की रक्षा हेतु।
- अष्टक वर्ग में जो ग्रह जिस राशि में शून्य या कम बिंदु पाते हैं, गोचर से संबंधित ग्रह उसी राशि में( जिसमें शून्य या कम बिंदु मिले हो) जाने पर, शारीरिक मानसिक, आर्थिक कष्टों की प्राप्ति हो रही हों, उस समय में।
- लग्नेश की निर्बल अवस्था में साथ में अष्टम भाव के स्वामी की निर्बल स्थिति में।
- एकादश भाव का स्वामी छठे या आठवें भाव में स्थित हो।
- गोचर में जन्म राशि से चौथे, छठे, आठवें तथा बारहवें घर में बृहस्पति के आने पर।
- जातक की जन्मपत्रिका में चंद्रमा पर राहु की पूर्ण दृष्टि होवे तथा राहु की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा में या चंद्रमा की महादशा में राहु की अंतर्दशा में। क्योंकि राहु की दृष्टि चंद्रमा पर होने से जातक निराशावादी होकर आत्महत्या जैसे कुकृत्य कर सकता है, विशेष कर जब चंद्रमा लग्न का प्रतिनिधित्व करता हो।
- अल्पायु योग में।
- समस्त प्रकार के अरिष्टों के समय में यथा- शत्रु बाधा, दुर्घटना आदि की आशंका में।
- किसी महारोग से पीडित होने पर,
- जमीन-जायदाद के बटवारे की संभावना हो,- हैजा-प्लेग आदि महामारी से लोग मर रहे हों,
- राज्य या संपदा के जाने का अंदेशा हो
- मेलापक में नाड़ीदोष,षडष्टक आदि आता हो,
- मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो,
- मनुष्यों में परस्पर घोर क्लेश हो रहा हो,
- त्रिदोषवश रोग से पीड़ित हों,
इन स्थितियों में महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप करना परम आवश्यक एवं फलप्रदायी है।
महामृत्युञ्जय मन्त्र का साधारण एवं अनुभूत प्रयोग
अच्छे स्वास्थ्य की इच्छा के लिए ताम्रपत्र के महामृत्युंजय यंत्र को शुभ समय में प्राण प्रतिष्ठित करा कर शुक्ल पक्ष में, सोमवार, शिवरात्रि या गुरुपुष्य नक्षत्र योग में पूजा स्थल में स्थापित करें। प्रतिदिन स्नान कराकर अष्टगंध या केशर मिश्रित चंदन से तिलक कर गंध,अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें। कम से कम एक माला महामृत्युञ्जय मन्त्र प्रतिदिन जप करने से आयु आरोग्यता एवं क्रूर ग्रहों का दोष शांत होता है।
रोग की अवस्था में किसी कर्मकाण्डी विद्वान को संकल्प देखकर निश्चित मात्रा में 24000 या 31000 या सवालाख जप कराकर दशांश होम कराए। हवन करने से पूर्व उसी दिन भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही से अनार की कलम से जप किए गए मंत्र को लिखकर एक बाजोट या पाटे पर स्थापित कर हवन कुण्ड के समीप रखकर हवन कराएं।
हवन की पूर्णाहुति के बाद उक्त लिखित मंत्र को धुँआ दिखाकर(हवन कुण्ड नगाकर) चांदी के ताबीज में भरकर रोगी के दाहिने बाजू पर बांध देवें। हवन से पूर्व किसी भी शुभ दिन में प्राण प्रतिष्ठित किया गया ताम्रपत्र पर निर्मित महामृत्युंजय यंत्र को रोगी के घर में स्थापित करना परम आवश्यक है।
इस प्रकार किए गए प्रयोग से रोग शांत होकर व्यक्ति विशेष के स्वास्थ्य एवं आयु में वृद्धि अवश्य होती है।
इस तरह महामृत्युंजय प्रयोग से शत्रु बाधा एवं क्रूर ग्रहों के दोष शांत होकर सुख ऐश्वर्य एवं दीर्घायु प्राप्त होता है
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