Pages

Tuesday, February 14, 2017

सनातन धर्म में क्यों वर्जित है स्त्री का नारियल फोड़ना What is taboo in Sanatan religion is to break the woman's coconut

सनातन धर्म में धर्म की प्रकृति के साथ एकात्मकता दिखाई गई है। यहां प्रकृति का पांच तत्वों जल, थल, अग्नि, वायु तथा आकाश में वर्गीकरण ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं में एक ईश्वर की प्रधानता बताई गई है। इसी क्रम में जानवरों, पेड़-पौधों, फल, फूल सभी को विशेष स्थान देकर उनकी महत्ता स्थापित की गई है।
पूजा के दौरान या फिर किसी शुभ कार्य के आरंभ के समय नारियल का प्रयोग किया जाता है। गृह प्रवेश या फिर किसी नए कार्य का शुभारंभ भी नारियल को फोड़कर ही किया जाता है।

हमारे धर्म में स्त्री को साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है तथा "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, तत्र रमन्ते देवता"कह कर उनकी श्रेष्ठता की बात की गई है। फिर भी पारंपरिक रूप से पूजा के दौरान अथवा अन्य किसी भी स्वरूप में महिलाओं को नारियल फोड़ने का अधिकार नहीं दिया गया है। यह विशेषाधिकार विशेष रूप से पुरुषों के लिए ही सीमित रखा गया है।क्यों

परंपरागत रूप से नारियल को नई सृष्टि का बीज माना गया है। इसकी कथा ब्रह्मऋषि विश्वामित्र द्वारा नई सृष्टि के सृजन करने से जुड़ी हुई है। तब उन्होंने सर्वप्रथम पहली रचना के रूप में नारियल का निर्माण किया, यह मानव का ही प्रतिरूप माना गया था। नारियल को बीज का स्वरूप माना गया है और इसे प्रजनन यानि उत्पादन से जोड़कर देखा गया है।

स्त्रियां संतान उत्पत्ति की कारक होती हैं इसी कारण उनके लिए नारियल को फोड़ना एक वर्जित कर्म मान कर निषिद्ध कर दिया गया। हालांकि प्रामाणिक रूप से ऐसा किसी भी धार्मिक ग्रंथ में नहीं लिखा गया है, न ही ऐसा किसी देवी-देवता द्वारा निर्देश दिया गया है। परन्तु सामाजिक मान्यताओं तथा विश्वास के चलते ही वर्तमान में हिंदू महिलाएं नारियल नहीं तोड़ती है।

No comments:

Post a Comment