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Thursday, September 26, 2019

क्या करें जब जिंदगी बोझ लगने लगे? What to do when life starts becoming a burden?


          क्या करें जब जिंदगी बोझ लगने लगे?     What to do when life starts becoming a burden?

जीवन में हम अक्सर ऐसे मोड़ पर आ जाते हैं कि हमें ऐसा लगता कि बस जिन्दगी इतनी ही है।
हालाँकि जिन्दगी कभी रुकती नहीं है, वह हर पल हर क्षण नए आयाम देती है।जब भी कभी ऐसा लगे तो क्षण भर रुक कर देखें विचारें तब आगे बढ़ें।
इस विषय पर एक कहानी याद आ गई जो कुछ समय पहले किसी ने मुझे सुनाई थी। हो सकता है कि  कुछ लोग इस कहानी के बारे में जानते भी होंगे।
इस कहानी से मैं बड़ा प्रभावित हुआ। उसी कहानी को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ-
जापान में हमेशा से ही मछलियाँ खाने का एक ज़रुरी हिस्सा रही हैं और ये जितनी ताजा होतीं हैँ लोग उसे उतना ही पसंद करते हैं । लेकिन जापान के तटों के आस-पास इतनी मछलियाँ नहीं होतीं की उनसे लोगों की जरूरत पूरी की जा सके,फलस्वरूप मछुआरों को दूर समुद्र में जाकर मछलियाँ पकड़नी पड़ती हैं। जब इस तरह से मछलियाँ पकड़ने की शुरुआत हुई तो मछुआरों के सामने एक गंभीर समस्या आई ।
वे जितनी दूर मछली पक़डने जाते उन्हें लौटने में उतना ही अधिक समय लगता और मछलियाँ बाजार तक पहुँचते-पहुँचते बासी हो जाती, और फिर कोई उन्हें खरीदना नहीं चाहता इस समस्या से निपटने के लिए मछुआरों ने अपनी बोट्स पर फ्रीज़र लगवा लिये वे मछलियाँ पकड़ते और उन्हें फ्रीजर में डाल देते ।इस तरह से वे और देर तक मछलियाँ पकड़ सकते थे और उसे बाजार तक पहुंचा सकते थे पर इसमें भी एक समस्या आने लगी। जापानी फ्रोजेन फ़िश ओर फ्रेश फिश में आसानी से अंतर कर लेते और फ्रोजेन मछलियों को खरीदने से कतराते, उन्हें तो किसी भी कीमत पर ताज़ी मछलियाँ ही चाहिए होतीं।
एक बार फिर मछुआरों ने इस समस्या से निपटने की सोची और इस बार एक शानदार तरीका निकाला, उन्होंने अपनी बड़ी- बड़ी जहाजों पर फ़िश टैंक्स बनवा लिए ओर अब वे मछलियाँ पकड़ते और उन्हें पानी से भरे टैंक में डाल देते।टैंक में डालने के बाद कुछ देर तो मछलियाँ इधर उधर भागती पर जगह कम होने के कारण वे जल्द ही एक जगह स्थिर हो जातीं फिर जब ये मछलियाँ बाजार में पहुँचती तो भले ही वे सांस ले रही होतीं लकिन उनमें वो बात नहीं होती जो आज़ाद घूम रही ताज़ी मछलियों मे होती, और जापानी चखकर इन मछलियों में भी अंतर कर लेते ।
तो इतना कुछ करने के बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई थी।
अब मछुवारे क्या करते ?
वे कौन सा उपाय लगाते कि मछलियाँ ताजा स्थिति में लोगोँ तक पहुँच पातीं ?
नहीं, उन्होंने कुछ नया नहीं किया, वे अभी भी मछलियाँ टैंक्स में ही रखते, पर इस बार वो हर एक टैंक मे एक छोटी सी शार्क मछली भी ङाल देते।शार्क कुछ मछलियों को जरूर खा जाती पर ज्यादातर मछलियाँ बिलकुल ताज़ी पहुंचती।
ऐसा क्यों हुआ ? Why did this happen ?
क्योंकि शार्क बाकी मछलियों के लिए एक चैलेंज की तरह थी। उसकी मौज़ूदगी बाक़ी मछलियों को हमेशा भयभीत, चौकन्ना और सतर्क रखती ओर अपनी जान बचाने के लिए वे हमेशा अलर्ट रहती। इसीलिए कई दिनों तक टैंक में रहने के बावज़ूद उनमें स्फूर्ति ओर ताजापन बना रहता।
आज बहुत से लोगों की ज़िन्दगी  टैंक में पड़ी उन मछलियों की तरह हो गयी है जिन्हे जगाने के लिए कोई shark मौज़ूद नहीं है। और अगर दुर्भाग्य से(unfortunately) आपके साथ भी ऐसा ही है तो आपको भी अपनी life में नयी-नयी चुनौतियाँ स्वीकार ( challenges accept) करनी होंगी। आप जिस रूटीन के आदी हो चुकें हैं उससे कुछ अलग़ करना होगा, आपको अपना दायरा बढ़ाना होगा और एक बार फिर ज़िन्दगी में रोमांच और नयापन लाना होगा। नहीं तो, बासी मछलियों की तरह आपका भी मोल कम हो जायेगा और लोग आपसे मिलने-जुलने की बजाय नजरें बचायेंगे । और दूसरी तरफ अगर आपकी लाइफ में चैलेंजेज हैँ, बाधाएं हैँ तो उन्हें कोसते मत रहिये, यकीन मानिए समस्याएं किसी न किसी रूप में सबके जीवन में होती ही हैं. कहीं ना कहीं ये आपको  ताजा और जीवन्त(fresh and lively )बनाये रखती हैं, इन्हेँ स्वीकार (accept)करिये, इन्हे काबू (overcome) करिये और अपने में हमेशा नई ऊर्जा और अपना तेज बनाये रखिये।

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