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Sunday, December 15, 2013

गायत्री संग्रह gaayatree sangrah

गायत्री संग्रह gaayatree sangrah


ब्रह्म गायत्री-   ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।।

रूद्र गायत्री-   ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।।

गुरु गायत्री - ॐ परब्रह्मणे विद्महे गुरुदेवाय धीमहि 
                    तन्नो गुरु: प्रचोदयात्।
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नवग्रह गायत्री----

सूर्य गायत्री- ॐ आदित्याय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नः                       सूर्यः प्रचोदयात्।
चन्द्र गायत्री - ॐ अत्रिपुत्राय विद्महे सागरोद्भवाय धीमहि                            तन्नश्चन्द्र: प्रचोदयात्।
भौम गायत्री - ॐ क्षितिपुत्राय  विद्महे लोहिताङ्गाय धीमहि                           तन्नो भौमः प्रचोदयात्।
बुध गायत्री - ॐ चन्द्रपुत्राय विद्महे रोहिणीप्रियाय धीमहि
                    तन्नो बुधः प्रचोदयात्।
गुरु गायत्री - ॐ अङ्गिरोजाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि
                   तन्नो गुरु: प्रचोदयात्।
शुक्र गायत्री - ॐ भृगुवंशजाताय विद्महे श्वेतवाहनाय धीमहि
                    तन्नो कविः प्रचोदयात्।
शनि गायत्री - ॐ कृष्णाङ्गाय विद्महे रविपुत्राय धीमहि तन्नो                       सौरिः प्रचोदयात्।
राहु गायत्री- ॐ  नीलवर्णाय विद्महे सैहिकेयाय धीमहि
                     तन्नो राहु: प्रचोदयात्।
केतु गायत्री - ॐ अत्रवाय विद्महे कपोतवाहनाय धीमहि
                    तन्नो केतु: प्रचोदयात्।
नोट- इन गायत्री का प्रयोग हम ग्रहों की आराधना हेतु करते हैं।
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ग्रह गायत्री -
सूर्य- ॐ आदित्याय विद्महे प्रभाकराय धीमहि तन्नः सूर्य:
          प्रचोदयात्।
चन्द्रमा- ॐ अमृताङ्गाय विद्महे कलारुपाय धीमहि तन्नश्चन्द्र:
           प्रचोदयात्।
मंगल- ॐ अङ्गारकाय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि तन्नो भौमः             प्रचोदयात्।
बुध- ॐ सौम्यरूपाय विद्महे वाणेशाय धीमहि तन्नो सौम्यः                प्रचोदयात्।
गुरु-  ॐ आङ्गिरसाय विद्महे दण्डायुधाय धीमहि तन्नो जीवः            प्रचोदयात्।
शुक्र-  ॐ भृगु सुताय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नः शुक्रः                  प्रचोदयात् ।
शनि-  ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि तन्नो सौरिः
           प्रचोदयात्।
राहु-  ॐ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहु:
           प्रचोदयात्।
केतु-  ॐ गदाहस्ताय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो केतु:
          प्रचोदयात्।
नोट- इन गायत्री का प्रयोग हम ग्रहों की शांति के लिए करते हैं।
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पञ्च तत्व गायत्री -

अग्नि गायत्री - ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निमग्नाय धीमहि
                      तन्न: अग्निः प्रचोदयात्।
पृथ्वी गायत्री - ॐ पृथ्वीदेव्यै विद्महे सहस्त्रमूर्तये धीमहि
                      तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात्।
वायु गायत्री - ॐ पवनपुरुषाय विद्महे सहस्त्रमूर्तये धीमहि
                   तन्नो वायु: प्रचोदयात्।
जल गायत्री - ॐ जलबिम्वाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि
                   तन्नो अम्बु: प्रचोदयात्।
आकाश गायत्री - ॐ आकाशाय विद्महे नभोदेवाय धीमहि
                       तन्नो खं हि प्रचोदयात्।
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महामृत्युञ्जय गायत्री मंत्र

ॐ जूं सः परमहंसाय विद्महे सो हंसः मृत्युञ्जयाय धीमहि जूं ॐ ॐ तन्न: अमृतेश्वर: प्रचोदयात्।।
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दश दिक्पाल गायत्री मन्त्र

इन्द्र-(प्राच्ये दिशे) ॐ सुराधिपाय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि तन्नो इन्द्रः प्रचोदयात्।।

अग्नि-(आग्नेयै दिशे) ॐ जातवेदाय विद्महे सप्तहस्ताय धीमहि तन्नो अग्निः प्रचोदयात्।।

यम-(दक्षिणायै दिशे) ॐ पितृराजाय विद्महे दण्डहस्ताय धीमहि तन्नो यमः प्रचोदयात्।।

निऋति-(नैऋत्ये दिशे) ॐ रक्षोधिपाय विद्महे खड्गहस्ताय धीमहि तन्नो निऋति:प्रचोदयात्।।

वरुण-(प्रतिच्यै दिशे) ॐ जलाधिपाय विद्महे पाशहस्ताय धीमहि तन्नो वरुणः प्रचोदयात्।।

वायु-(वायव्यै दिशे) ॐ प्रणाधिपाय विद्महे महाबलाय धीमहि तन्नो वायुः प्रचोदयात्।।

सोम-(उदीच्यै दिशे) ॐ नक्षत्रेशाय विद्महे अमृतंगाय धीमहि तन्न:सोमः प्रचोदयात्।।

रुद्र-(ईशान्यै दिशे) ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।

ब्रह्म-(उर्ध्वायै दिशे) ॐ लोकाधिपाय विद्महे चतुर्वक्त्राय धीमहि तन्नो ब्रह्म:प्रचोदयात्।।

नाग-(अधरायै दिशे) ॐ नागराजाय विद्महे सहस्राक्षाय धीमहि तन्नो नगः प्रचोदयात्।।
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गणेश गायत्री - ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि
                     तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।
लक्ष्मी गायत्री - ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि
                    तन्नो लक्ष्मिः प्रचोदयात्।
विष्णु गायत्री - ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि
                    तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।
नारायण गायत्री - ॐ नारायणाय विद्महे शेषशायिने धीमहि
                       तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।
त्रैलोक्य मोहन गायत्री - ॐ त्रैलोक्य मोहनाय विद्महे                                 आत्मारामाय धीमहि तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।
काम गायत्री - ॐ मन्मथाय विद्महे कामदेवाय धीमहि
                   तन्नो अनंग: प्रचोदयात्।
हंस गायत्री - ॐ परम हंसाय विद्महे महाहंसाय धीमहि
                   तन्नो हंसः प्रचोदयात्।
त्वरिता गायत्री - ॐ त्वरिता देव्यै च विद्महे महानित्यायै                                धीमहि तन्नो देविः प्रचोदयात्।
सरस्वती गायत्री - ॐ सरस्वत्यै विद्महे ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि
                         तन्नो देविः प्रचोदयात्।
राम गायत्री - ॐ दाशरथाय विद्महे सीता वल्लभाय धीमहि
                     तन्नो राम: प्रचोदयात्।
सीता गायत्री- ॐ जनक नंदिन्यै विद्महे भूमिजायै धीमहि तन्न:                      सीता प्रचोदयात्।
लक्ष्मण गायत्री - ॐ  दशरथाय विद्महे उर्मिलेशाय धीमहि
                         तन्नो लक्ष्मण:प्रचोदयात्।
हयग्रीव गायत्री- ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि                               तन्नो हयग्रीवः प्रचोदयात्।
कृष्ण गायत्री - ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि
                    तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्।
राधा गायत्री- ॐ बृषभानुजायै विद्महे कृष्ण प्रियायै धीमहि                          तन्नो राधा प्रचोदयात्।
नृसिंह गायत्री - ॐ नृसिंहाय विद्महे वज्रदंताय धीमहि
                     तन्नो नृसिंह:प्रचोदयात्।
हनुमत् गायत्री - ॐ अंजनीजाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि
                  तन्नो वीरः(हनुमत् ) प्रचोदयात्।
गरुड़ गायत्री - ॐ तत्पुरुषाय विद्महे स्वर्णपक्षाय धीमहि
                     तन्नो गरुड़:प्रचोदयात्।
परशुराम गायत्री - ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि
                   तन्नो विप्रः प्रचोदयात्।
तुलसी गायत्री - ॐ तुलसीपत्रायै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि
                   तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।
गंगा गायत्री - ॐ भागीरथ्यै च विद्महे विष्णुपद्दयै च धीमहि
                  तन्नो गंगा प्रचोदयात्।
पितृदोष गायत्री- ॐ पितृगणाय विद्महे जगत्धारिणाये धीमहि                      तन्नो पितरः प्रचोदयात्।
कालसर्प (सर्प) गायत्री- 'ॐ नव कुलाय विद्महे विषदन्ताय                                धीमहि तन्नो सर्पः प्रचोदयात्॥
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 सञ्जीवनी महामृत्युञ्जय मन्त्र  - 

ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं त्रयम्बकं यजामहे  भर्गोदेवस्य धीमहि सुगन्धिम्पुस्टिवर्धनम् धियो   यो नः प्रचोदयात् उर्व्वारुकमिवबन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।
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सामग्री-एक गरी का गोला
           फूलवाली लौंग
            कपूर
            गुग्गुल
            लोबान
           चन्दन पाउडर
            गुड़
तैयारी-गरी के गोले को खड़ा काटे  फिर उसमे कपूर डाले फिर थोड़ा गुग्गुल लोबान चन्दन पाउडर और गुड़ डाले ऊपर से फिर कपूर डाले और उसके ऊपर एक जोड़ा लौंग रखे।
यह हमारा हवनकुण्ड तैयार है।

प्रार्थना -किसी भी काल में जाने अनजाने हमसे या हमारे पूर्वजों से जो भी गलती हुई हो उसे क्षमा करो हमें और हमारे परिवार को स्वस्थ करो हमारी आर्थिक स्थिति सही करो हमें ऋण मुक्त करो(इसके बाद अपनी मनोकामना कह सकते है)|
तत्पश्चात अग्नि प्रज्वलित करके तत्वानुसार गायत्री का पाठ करते हुए एक-एक लौंग से आहुति दे।सबसे बाद में सञ्जीवनी का हवन करे।
नोट-यह हवन किसी भी स्थिति मे सूर्योदय से पहले या सूर्योदय के बाद होगा।
अपने को ऊर्जावान बनाये रखने और जीवन की विभिन्न समस्याओं के निवारण हेतु हम इसका अलग-अलग प्रकार से  प्रयोग कर सकते है।
दीपावली- पांच दियाली रखे।और पांचो में कपूर और एक-एक जोड़ा फूलवाली लौंग रखें।
पहली दियाली का कपूर जलाकर हनुमान गायत्री का पाठ करे।।कम से कम ग्यारह बार।।
इसी तरह दूसरी दियाली  मे गणेश गायत्री तीसरी दियाली मे लक्ष्मी गायत्री चौथी मे कुबेर गायत्री और पांचवी मे सञ्जीवनी का पाठ करे।
यदि चाहे तो पहले नवग्रह गायत्री का हवन कर  ले।
दियाली परिवार का हर व्यक्ति अलग-अलग या मिलकर भी जला सकते है।
सरस्वती पूजन -नवग्रह गायत्री सरस्वती गायत्री सञ्जीवनी का प्रयोग करें।

नवरात्रि-नवग्रह गायत्री सञ्जीवनी दुर्गा गायत्री राम गायत्री।
शिवरात्रि-नवग्रह सञ्जीवनी और शिव गायत्री।
जन्माष्टमी-नवग्रह सञ्जीवनी कृष्ण और विष्णु गायत्री।
पितृदोष और कालसर्प दोष-(इसमे पांच लोग चाहिए)
नवग्रह सञ्जीवनी फिर पितृदोष या कालसर्प गायत्री से हवन करे।
शादी मे बिलम्ब या शादी न होने पर- नवग्रह सञ्जीवनी और विष्णु गायत्री।
विवाह -वर और कन्या दोनों मे किसी एक के मंगली होने पर या दोनों की कुंडली में कोई दोष होने पर-
विवाह पूर्व दोनों के हाथ मे कलावा पकड़ाकर नवग्रह गायत्री संजीवनी और विष्णु गायत्री का एक-एक माला से हवन करे।
पति-पत्नी मे सामंजस्य और प्रेम बढ़ाने हेतु-नवग्रह गायत्री सञ्जीवनी और काम गायत्री।
मनपसन्द जीवन साथी हेतु-नवग्रह सञ्जीवनी और तत्सम्बन्धित गायत्री।
संतानप्राप्ति हेतु-नवग्रह सञ्जीवनी और उससे सम्बंधित गायत्री।
किसी भी बीमारी के निवारण हेतु- नवग्रह सञ्जीवनी की एक-एक मालाऔर उस ग्रह (जिससे रोग का सम्बन्ध है)की गायत्री की तीन माला फिर सञ्जीवनी की एक माला रोग ठीक होने तक करें।

विशेष-इस तरह से करने से शीघ्र ही दोष नष्ट हो जाते है मनोकामना पूरी होती है।और पूर्व जन्म के दोष मिटते है।यह अनुभूत है।
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ग्रह और सम्बंधित रोग

सूर्य-कमजोर दृष्टि,ह्रदय रोग,विषाक्तता,हड्डी टूटना,मानसिक परेशानी,सिरदर्द,माइग्रेन,बुखार,जलना,कटना,चोट,सुजाक,पीलिया,पित्त पृकृति,क्षय,अतिसार।

चन्द्रमा-टी बी,गले से सम्बंधित समस्यायें,खून की कमी,मधुमेह,मासिक अनियमितता,बेचैनी,सुस्ती,सूजन,गर्भाशय सम्बंधित रोग,कफ,ड्रॉप्सी,फेफड़े की सूजन,गुर्दा,रक्त अशुद्धता,उदार शूल,त्वचा रोग,खसरा,पेचिस,नजला,जुकाम,अस्थमा,बुखार,पीलिया,पथरी,दस्त,पाण्डुरोग,जलोत्पन्न रोग,स्त्री सम्बन्ध से होने वाले रोग,।

मंगल- रक्तचाप,फोड़ा,रक्त से सम्बंधित परेशानी,जलन,कटना,चोट,बवासीर,चढ़ी हुई आँखे,गांठ,ट्यूमर,मिर्गी,घाव,।

बुध- मानसिक रोग,टायफायड,मष्तिष्क एवं मुखर अंगों के विकार,गर्दन संबंधी रोग,यकृत,सिर चकराना,हकलाना,अत्यधिक पसीना आना,नपुंसकता,आलसीपन,व्यर्थ अभिमान अकारण कल्पनाओं मे खो जाना,स्मरण शक्ति का ह्रास,गला रुक जाना।

बृहस्पति- पेट की समस्या,गैस की परेशानी,मधुमेह,बदहजमी,आंत उतरना,बेहोशी,सूजन,अंगों का बढ़ना,नाभि से सबंधित रोग,पेट फूलना,रक्तहीनता,पित्ताशय,पीलिया,बदन दर्द,कैंसर,गुल्म,आंतों के विकार,ज्वर,कफ,शोक,मूर्च्छा,कर्ण रोग।

शुक्र- मोतिया बिन्द,जलोदर,चेहरा आँख व गुप्तांगों के रोग,अत्यधिक यौनेच्छा,स्वप्न दोष,गुप्त रोग,मूत्राशय मे पथरी,गुर्दा रोग,प्रजनन सम्बन्धी रोग,मधुमेह,पाण्डु रोग,कफ़रोग,वातरोग,मूत्रावरोध,कामसुख मे बाधक रोग,वीर्यस्राव,सूखारोग।

शनि- मानसिक पतन,वातरोग,लकवा,बहरापन,अंगों की हानि,ग्रंथियों के रोग,चोट के निशान,बेवक्त बुढ़ापा,हड्डी की टी बी,कान के रोग,चौथिया ज्वर,दांत शीत ज्वर,उदासीनता और उष्णता से उत्पन्न ज्वर,कामला,अर्धांगवायु,कम्प,निरर्थक भय,संधिवात।

राहु- त्वचारोग,कृत्रिम जहर,प्लीहा,पैरों के रोग,अल्सर,नासूर,शरीर मे जलन,ऐसे रोग जिनका निदान कठिन हो,दुर्बलता,पागलपन,पिशाच बाधा,एलर्जी,कालरा।

केतु- शरीर मे सनसनाहट,आत्म घाती प्रवृत्ति,लाइलाज बीमारी,अनजाने कारणों से होने वाले रोग,त्वचा की बीमारी,भगन्दर।
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दीपावली पर्व का विशेष पूजन

दीपावली में माता महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए एक चमत्कारी उपाय

दीपावली पर्व पर महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए तथा अपने को ऊर्जावान बनाये रखने और जीवन की विभिन्न समस्याओं के निवारण हेतु हम इस विधि का  प्रयोग कर सकते है।

दीपावली में मुख्य रूप से गणेश और लक्ष्मी जी का पूजन होता है।साथ ही हनुमान और कुबेरादि का पूजन किया जाता है।अन्त में संजीवनी का पाठ किया जाता है।

● हनुमान जी असीमित शक्तियों के स्वामी होते हुए भी हमेशा सेवक धर्म का पालन करते रहे इनका पूजन करने से हमारे अन्दर अहंकार की भावना नही आती है,और हम सफलता की नित नई सीढ़ियां चढ़ते जाते हैं।

● गणेश जी इनके उदर में सब समाहित हो जाता है,और इनका वाहन चूहा छोटी से छोटी जगह में चला जाता है।अर्थात् व्यापारी को हमेशा बड़े पेट वाला होना चाहिए, ताकि वो सबकी सुन सके और ग्राहक उससे संतुष्ट हो।
और छोटी जगहों से भी वो व्यापारिक लाभ ले सकें।

● लक्ष्मी जी अर्थात् लक्ष्य में लगा हो मन जिसका उसी के पास ये आती हैं।

● कुबेर अर्थात् स्थायित्व।लक्ष्मी किसी के पास रुकती नही हैं, उन्हें स्थिर रखने के लिए कुबेर जी की शरण मे जाना पड़ता है।

● और अन्त में संजीवनी अर्थात् स्वास्थ्य की रक्षा तभी हम जीवन के सारे सुखों का रसास्वादन कर पाएंगे।

दीपावली पूजन की विशेष विधि
सबसे पहले नवग्रह गायत्री का पाठ कर  ले।

दीपावली पूजन(विशेष विधि):- पांच दियाली रखे।और पांचो में कपूर का एक टुकड़ा और एक-एक जोड़ा फूलवाली लौंग रखें।

● पहली दियाली का कपूर जलाकर हनुमान गायत्री का पाठ करे।।कम से कम ग्यारह या एक सौ आठ बार।।

● इसी तरह दूसरी दियाली का कपूर जलाकर गणेश गायत्री ग्यारह या एक सौ आठ बार पढ़ें।।

● तीसरी दियाली का कपूर जलाकर लक्ष्मी गायत्री का एक सौ आठ बार पाठ करें।

● चौथी दियाली का कपूर जलाकर कुबेर गायत्री का एक सौ आठ बार पाठ करें।।

●  और पांचवी  दियाली का कपूर जलाकर सञ्जीवनी  महामृत्युंजयका कम से कम ग्यारह बार पाठ करे।

दियाली परिवार का हर व्यक्ति अलग-अलग या मिलकर भी जला सकते है।

नोट:- लौंग देवी देवताओं का भोजन है, और कपूर हमारे घर के वास्तु संबंधित सभी दोषों को नष्ट कर देता है।

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