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Wednesday, December 11, 2013

प्रेम व् अंतरजातीय विवाह Love and inter caste marriages


भारतीय समाज मे विवाह सोलह संस्कारों में  एक संस्कार के  रूप मे माना जाता हैं जिसमे शामिल होकर स्त्री पुरुष मर्यादापूर्ण तरीके
से अपनी काम इच्छाओ की पूर्ति कर अपनी संतति को जन्म
देते हैं समान्यत: विवाह का यह
संस्कार
परिवारजनों की सहमति या इच्छा से
अपनी जाति,समाज या समूह मे
ही किया जाता हैं पर फिर भी हमे ऐसे
कई उदाहरण मिलते हैं जहां विवाह
परिवार की सहमति से ना होकर स्वय
की इच्छा से किया जाता हैं ।
पूर्वसमय मे प्रेम संबंध या यौन आकर्षण
विवाह के बाद ही होता था परंतु
आज के इस भागते दौड़ते कलयुग मे
विवाह के पूर्व स्त्री पुरुष के बीच
प्रगाढ़ परिचय व आकर्षण हो जाने
पर उनमे प्रेम संबंध हो जाते हैं।
 स्त्री पुरुष रागाधिक्य के
फलस्वरूप स्वेच्छा से परस्पर संभोग
करते हैं जिसे (शास्त्रो मे) गंधर्व
विवाह कहा जाता हैं । इस संबंध मे
स्त्री पुरुष के अतिरिक्त
किसी की भी स्वीकृति ज़रूरी नहीं समझी
जाती हैं।
प्रेम विवाह या गंधर्व विवाह के कई
कारण हो सकते हैं परंतु यहाँ हम केवल
ज्योतिषीय द्रष्टि से यह जानने
का प्रयास करेंगे की ऐसे कौन से ग्रह
या भाव होते हैं जो किसी को भी प्रेम
या गंधर्व विवाह करने पर मजबूर कर
देते हैं । इस प्रयास मे हमने कुछ
जातको की कुंडलियों का अध्ययन
किया जिन्होने प्रेम विवाह
किया था हमने यह पाया की लगभग
85% प्रेमविवाह
अपनी जाति या समाज से बाहर
अर्थात अंतरजातीय होते हैं ।

भाव –
लग्न,द्वितीय,पंचम,सप्तम,नवम व
द्वादश

ग्रह – मंगल,गुरु व शुक्र

लग्न भाव- यह भाव स्वयं या निज
का प्रतिनिधित्व करता हैं
जो व्यक्ति विशेष के शरीर व
व्यक्तित्व के विषय मे सम्पूर्ण
जानकारी देता हैं ।

द्वितीय भाव- यह भाव कुटुंब,खानदान
व अपने परिवार के विषय मे बताता हैं
जिससे हम बाहरी सदस्य का अपने
परिवार से जुड़ना भी देखते हैं ।

पंचम भाव- यह भाव हमारी बुद्धि,सोच
व पसंद को बताता हैं जिससे हम अपने
लिए किसी वस्तु या व्यक्ति का चयन
करते हैं ।

सप्तम भाव – यह भाव हमारे विपरीत
लिंगी साथी का होता हैं जिसे भारत मे
हम पत्नी भाव भी कहते हैं इस भाव से
स्त्री सुख देखा जाता हैं ।

नवम भाव- यह भाव परंपरा व
धार्मिकता से जुड़ा होने से धर्म के
विरुद्ध किए जाने वाले कार्य
को दर्शाता हैं ।

द्वादश भाव- यह भाव शयन सुख
का भाव हैं ।

ग्रह – मंगल यह ग्रह
पराक्रम,साहस,धैर्य व बल
का होता हैं जिसके बिना प्रेम संबंध
बनाना या प्रेम विवाह करना असंभव हैं
क्यूंकी प्रेम की अभिव्यक्ति साहस
बल व धैर्य से ही संभव हैं ।

शुक्र – यह ग्रह आकर्षण,यौन
आचरण,सुंदरता,प्रेम वासना
,भोग,विलास,ऐश्वर्या का प्रतीक हैं
जिनके बिना प्रेम संबंध
हो ही नहीं सकते ।

गुरु – यह ग्रह स्त्रीयों मे पति कारक
होने के साथ साथ पंचम व नवम भाव
का कारक भी होता हैं साथ ही इसे
धर्म व परंपरा के लिए
भी देखा जाता हैं ।

प्रेम विवाह के सूत्र वैसे तो बहुत से
बताए गए हैं परंतु हमने अपने इस शोध
मे जो सूत्र उपयोगी पाये या प्राप्त
किए वह इस प्रकार से हैं ।

१) पंचम भाव , पंचमेश का मंगल, शुक्र
से संबंध ।
२) पंचम भाव , पंचमेश,सप्तम भाव,
सप्तमेश का लग्न, लग्नेश या द्वादश
भाव, द्वादशेश से संबंध ।
३) लग्न,सूर्य,चन्द्र से दूसरे भाव
या द्वितीयेश का मंगल से संबंध ।
४) पंचम भाव, पंचमेश का नवम भाव,
नवमेश से संबंध ।
५) पंचम भाव , पंचमेश,सप्तम भाव,
सप्तमेश,नवम भाव, नवमेश का संबंध ।
६) एकादशेश का, एकादश भाव मे
स्थित ग्रह का पंचम भाव, सप्तम भाव
से संबंध और शुक्र ग्रह का लग्न
या एकादश भाव मे होना ।
७) पंचम-सप्तम का संबंध ।
८) मंगल-शुक्र
की युति या दृस्टी संबंध किसी भी भाव
मे होना ।
९) पंचमेश-नवमेश
की युति किसी भी भाव मे होना ।
अंतरजातीय विवाह मे इन सूत्रो के
अलावा यह चार सूत्र भी सटीकता से
उपयुक्त पाये गए ।
१) लग्न, सप्तम व नवम भाव पर
शनि का प्रभाव ।
२) विवाह कारक शुक्र व गुरु पर
शनि का प्रभाव ।

३) लग्नेश, सप्तमेश का छठे भाव , 

षष्ठेश से संबंध-अंतरजातीय विवाह मे
शत्रुता या विवाद का होना आवशयक
होता हैं जिस कारण छठे भाव का संबंध
लग्नेश या सप्तमेश से होना ज़रूरी हो
जाता हैं ।
४) द्वितीय भाव मे पाप ग्रह ।

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