एक बहुत पुरानी कहावत है-
"निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय"
nindak niyare raakhiye aangan kutee chhavaay"
अर्थात हमारे जीवन में निंदा/आलोचना करने वाले लोग बहुत महत्वपूर्ण है।कारण अगर कोई हमारी आलोचना नही करेगा तो हमे अपनी कमियों के अहसास भी नहीं हो पाएगा,और हमारा जीवन उद्देश्य से परे हो जाएगा।
हमारे शास्त्रों में अनेकों प्रेरणा देने वाले स्रोत हैं लेकिन हम उन्हें पढ़ते हैं कुछ समय तक याद रखा फिर भूल गए।
हमारा मन और मष्तिष्क हमेशा दूसरी दुनिया में विचरण करता रहता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि आप अपने मस्तिष्क को सकारात्मक विचार दो तो वो तुरंत ही नकारात्मक विचारों की ओर आकर्षित हो जाता है, आप बार-बार उसे अच्छा सोचने को कहते हो लेकिन वो फिर भी हर बार उल्टी दिशा में ही जाता है।
इसी तरह जब कोई हमें अच्छी बातों की ओर अग्रसर होने को कहता है तो वो बातें हमें अच्छी लगती हैं लेकिन कुछ समय बाद ही हमारे विचारों से दूर हो जाती हैं।
ठीक इसके विपरीत यदि कोई हमारी आलोचना करता है, हमारी निंदा करता है तो वो बात हमारे जेहन में अंदर तक चली जाती है और हम ठीक उसके खिलाफ हो जाते हैं।यह प्रभाव जितना अधिक होता है, जितना तीव्र होता है, हम उतनी ही तीव्रता से उसके खिलाफ काम कर रहे होते हैं और एक दिन हम उस पड़ाव तक पहुंच चुके होते हैं जिसके न कर पाने के लिए हमारी आलोचना हुई थी।
अर्थात हम सफल हो चुके होते हैं और हमे पता भी नही चलता।
इससे ये बात सिद्ध होती है कि जीवन में निंदा करने वालों की बहुत ही आवश्यकता है, हम हर निंदा को स्वीकार करते हुए भी सफल हो जाते हैं, और यह सफलता बच्चों के खेल जैसी होती है।
इसे यूट्यूब चैनल पर देखें
Related topics-
● जीवन का मुख्य रहस्य The main secret of life
"निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय"
nindak niyare raakhiye aangan kutee chhavaay"
अर्थात हमारे जीवन में निंदा/आलोचना करने वाले लोग बहुत महत्वपूर्ण है।कारण अगर कोई हमारी आलोचना नही करेगा तो हमे अपनी कमियों के अहसास भी नहीं हो पाएगा,और हमारा जीवन उद्देश्य से परे हो जाएगा।
हमारे शास्त्रों में अनेकों प्रेरणा देने वाले स्रोत हैं लेकिन हम उन्हें पढ़ते हैं कुछ समय तक याद रखा फिर भूल गए।
हमारा मन और मष्तिष्क हमेशा दूसरी दुनिया में विचरण करता रहता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि आप अपने मस्तिष्क को सकारात्मक विचार दो तो वो तुरंत ही नकारात्मक विचारों की ओर आकर्षित हो जाता है, आप बार-बार उसे अच्छा सोचने को कहते हो लेकिन वो फिर भी हर बार उल्टी दिशा में ही जाता है।
इसी तरह जब कोई हमें अच्छी बातों की ओर अग्रसर होने को कहता है तो वो बातें हमें अच्छी लगती हैं लेकिन कुछ समय बाद ही हमारे विचारों से दूर हो जाती हैं।
ठीक इसके विपरीत यदि कोई हमारी आलोचना करता है, हमारी निंदा करता है तो वो बात हमारे जेहन में अंदर तक चली जाती है और हम ठीक उसके खिलाफ हो जाते हैं।यह प्रभाव जितना अधिक होता है, जितना तीव्र होता है, हम उतनी ही तीव्रता से उसके खिलाफ काम कर रहे होते हैं और एक दिन हम उस पड़ाव तक पहुंच चुके होते हैं जिसके न कर पाने के लिए हमारी आलोचना हुई थी।
अर्थात हम सफल हो चुके होते हैं और हमे पता भी नही चलता।
इससे ये बात सिद्ध होती है कि जीवन में निंदा करने वालों की बहुत ही आवश्यकता है, हम हर निंदा को स्वीकार करते हुए भी सफल हो जाते हैं, और यह सफलता बच्चों के खेल जैसी होती है।
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