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Tuesday, September 20, 2011

श्री कूष्माण्डा चालीसा shree kooshmaanda chaaleesa


                          श्री कूष्माण्डा   चालीसा 
                                     दोहा 
              अम्बे पद चित लाय करि विनय करहुँ कर जोरि,
              बरनऊ तव मै विशद यश करहु विमल मति मोरि.
              दीन  हीन  मुझ अधम  को  आप  उबारो आय,
             तुम  मेरी   मनकामना   पूर्ण   करो   सरसाय. 
                                    चौपाई
जय जय जय कुड़हा महरानी, त्रिविध ताप नाशक तिमुहानी. १.
आदि शक्ति अम्बिके  भवानी, तुम्हरी महिमा अकथ कहानी .२.
रवि सम तेज तपै चहुँ  ओरा, करहु कृपा जनि होंहि निहोरा .३.
धवल धाम मंह वास तुम्हारो,  सब मंह सुन्दर लागत न्यारो .४.
तिनकै रचना बरनि न जाई,    सुन्दरता लखि मन ठग जाई.५.
सोहत  इहां  चारि दरवाजा, विविध भॉंति चित्रित छवि छाजा.६.
चवँर घंट बहु भॉंति विराजहिं,मठ पर ध्वजा अलौकिक लागहिं.७.
शीश मुकुट अरु कानन कुण्डल,अरुण बदन से प्रगटै तव बल.८.
रूप   अठ्भुजी   अद्भुत  सोहे,    होय  सुखी  जो  मन से जोहै.९. 
तन पर शुभ्र वसन हैं राजत, कर कंकन पद नूपुर छाजत.१०.
विविध भॉंति मन्दिर चहुँ ओरा, चूमत गगन हवै सब ओरा.११.
शंकर महावीर  को  वासा,  औरहु  सुर  सुख पावहिं पासा.१२.
सरवर सुन्दर जहाँ सुहाई,    तेहि कै महिमा बरनि न जाई.१३.
घाट  मनोहर  सुन्दर  सोहैं,      पडत दृष्टि तुरतै मन मोहैं.१४.      
नीर मोति अस निर्मल तासू , अमृत आनि कपूर सुवासू .१५.
पीपल नीम आछि अमराई,        औरहु तरुवर इहां सुहाई .१६.  
बहु भांतिन ध्यावैं नर नारी, मन वांछित फल पावहिं चारी.१७.
तुम्हरो ध्यान करहिं जे प्रानी,  होहिं मुक्त रहि जाइ कहानी.१८.
जोगी जती ध्यान जो लावें,      तुरतै सिद्ध पुरुष होई जावै.१९.
नेत्र हीन तव आवहिं पासा,       पूजा करहिं होइ तम नासा.२०.
दिव्य दृष्टि तिनकै होइ जाई,     होहिं सुखी जब होउ सहाई.२१.
पुत्रहीन  कहुं  ध्यान  लगावै,  तुरतै  पुत्रवान  होइ  जावै.२२.
रंक आइ सब नावहिं माथा,   पावहिं धन अरु होंहिं सनाथा.२३.
नाम लेत दुःख दरिद नसाहीं, अक्षत से अरिगन हटी जाहीं.२४.
नित प्रति आइ करहिं जो दर्शन,मनवांछित फल पावै सो जन.२५.
जो सरवर मंह मज्जन करहीं, कलुष  नसाइ  जात  हैं सबहीं.२६.
जो जन मन से ध्यावहिं तुमही,सब विपत्ति से छूटहिं  तबहीं.२७.
सोम  शुक्र  दिन  आवहिं प्रानी,    पूजा करहिं प्रेम रस सानी.२८.
कार्तिक माह पूर्णिमा आवत,     तेहि दिन मेला सुन्दर लागत.२९.
लेत नाम भव भय मिटि जाई,          भूत प्रेत सब भजै पराई.३०.   
पूजा जो जन मन से करहीं,        होहिं सुखी मुद मंगल भरहीं.३१.  
दूर दूर से आवहिं प्रानी,            करहिं सुदर्शन मन सुख मानी.३२.
तुम्हरी कीर्ति रही जग छाई,         तेहिते सब जन आवत भाई.३३.  
दरश परश कर मन हरषाहीं,     जग दुर्लभ तिनकहु कछु नाहीं.३४.  
जो ध्यावें पद मातु तुम्हारे,       भव बन्धन मिटि जाइ सकारे.३५.
बालक प्रमुदित करहिं जो ध्याना, आइ करहिं बहु विनती नाना.३६.
तिन कहँ अवसि सफलता देहू,         बुद्धि बढ़ाइ सुखी करि देहू.३७.
आवहिं नर अरु नावहिं शीशा,           होहिं सुखी पावहिं आशीषा.३८. 
जो यह पाठ करै मन लाई,               अम्बे ता कहूँ होहिं सहाई.३९.
'सन्त' सदा चरनन तव दासा,       आय करहु मम ह्रदय निवासा.४०.
                                           दोहा
                  मातु तुम्हारी भक्ति से सुख उपजै मन माहि.
                 करहु कृपा हम दीन पर आयहु चरनन माहि..
                 मंगलमय तुम मातु हो सदा करहु कल्यान.
                 गावहिं सुनहिं जे प्रेम से पावहिं सुन्दर ज्ञान..

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