Sunday, October 20, 2019

अहोई अष्‍टमी Ahoi Ashtami 2019

        अहोई अष्‍टमी Ahoi Ashtami


इस पर्व विशेष को करने से संतान की उन्नति और कल्याण भी होता है
यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी तिथि को रखा जाता है।
इस दिन महिलाएं संतान की उन्नति और कल्याण के लिए व्रत रखती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. इस दिन अहोई माता (पार्वती) की पूजा की जाती है। इस दिन किए उपाय आपकी हर मुश्किल दूर कर सकते है। इस दिन महिलाएं व्रत रखकर अपने संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं।
जिन लोगों को संतान नहीं हो पा रही हो उनके लिए ये व्रत विशेष है। इस दिन विशेष उपाय करने से संतान की उन्नति और कल्याण भी होता है।इस बार अहोई अष्टमी 21 अक्टूबर सोमवार को है।

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व
Importance of Ahoi Ashtami Vrat


● अहोई अष्टमी व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है।
● इस दिन  माता पार्वती (अहोई) की पूजा की जाती है।
● इस दिन महिलाएं व्रत रखकर अपने संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं।
● जिन लोगों को संतान नहीं हो पा रही हो उनके लिए ये व्रत विशेष है।
● जिनकी संतान दीर्घायु न होती हो , या गर्भ में ही नष्ट हो जाती हो , उनके लिए भी ये व्रत शुभकारी होता है।
● सामान्यतः इस दिन विशेष प्रयोग करने से संतान की उन्नति और कल्याण भी होता है।
● ये पर्व आयु और सौभाग्यकारक होता है।
● इस बार अहोई अष्टमी का व्रत 21 अक्टूबर को किया जाएगा।

कैसे रखें इस दिन उपवास ?

How to keep fast on this day?


● प्रातः स्नान करके अहोई की पूजा का संकल्प लें।
● अहोई माता की आकृति , गेरू या लाल रंग से दीवार पर बनायें।
● सूर्यास्त के बाद तारे निकलने पर पूजन आरम्भ करें।
● पूजा की सामग्री में एक चांदी या सफ़ेद धातु की अहोई ,चांदी की मोती की माला , जल से भरा हुआ कलश , दूध-भात, हलवा और पुष्प , दीप आदि रखें।
● पहले अहोई माता की , रोली , पुष्प,दीप से पूजा करें , उन्हें दूध भात अर्पित करें।
● फिर हाथ में गेंहू के सात दाने और कुछ दक्षिणा (बयाना) लेकर अहोई की कथा सुनें।
● कथा के बाद माला गले में पहन लें और गेंहू के दाने तथा बयाना सासु माँ को देकर उनका आशीर्वाद लें।
● अब चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करें।
●  चांदी की माला को दीवाली के दिन निकाले और जल के छींटे देकर सुरक्षित रख लें।

अहोई अष्टमी व्रत की विधि
Method of Ahoi Ashtami Vrat

व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान किया जाता है और पूजा के समय ही संकल्प लिया जाता है कि “हे अहोई माता, मैं अपने पुत्र की लम्बी आयु एवं सुखमय जीवन हेतु अहोई व्रत कर रही हूं। अहोई माता मेरे पुत्रों को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखें।” अनहोनी से बचाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए इस व्रत में माता पर्वती की पूजा की जाती है। अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवाल पर अहोई माता का चित्र बनाया जाता है और साथ ही स्याहु और उसके सात पुत्रों का चित्र भी निर्मित किया जाता है। माता जी के सामने चावल की कटोरी,  मूली, सिंघाड़े रखते हैं और सुबह दिया रखकर कहानी कही जाती है। कहानी कहते समय जो चावल हाथ में लिए जाते हैं, उन्हें साड़ी के दुप्पटे में बाँध लेते हैं। सुबह पूजा करते समय लोटे में पानी और उसके ऊपर करवे में पानी रखते हैं।  ध्यान रखें कि यह करवा, करवा चौथ में इस्तेमाल हुआ होना चाहिए। इस करवे का पानी दिवाली के दिन पूरे घर में भी छिड़का जाता है। संध्या काल में इन चित्रों की पूजा की जाती है। पके खाने में चौदह पूरी और आठ पूयों का भोग अहोई माता को लगाया जाता है। उस दिन बयाना निकाला जाता है। बायने में चौदह पूरी या मठरी या काजू होते हैं। लोटे का पानी शाम को चावल के साथ तारों को आर्ध किया जाता है।

अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे स्याहु कहते हैं। इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है।  पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें। पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं। पूजा के पश्चात अपनी सास के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करती है।

अहोई अष्टमी व्रत कथा
Ahoi Ashtami Vrat Katha

प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ हो ली। साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।

स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा ले। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।

सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं अचानक साहुकार की छोटी बहू की नज़र एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे के मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है।गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।
 वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है। अहोई का अर्थ एक प्रकार से यह भी होता है "अनहोनी से बचाना " जैसे साहुकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था।
साभार:-

Related topics-



No comments:

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त Mantra theory for suffering peace

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त  Mantra theory for suffering peace संसार की समस्त वस्तुयें अनादि प्रकृति का ही रूप है,और वह...