Saturday, October 5, 2019

भद्रा Bhadra

भद्रा Bhadra




भद्रा का नाम सुनते ही हमारे मन में तरह-तरह के विचार आने लगते हैं, अधिकतर हम भयभीत हो जाते हैं आईये जानते हैं भद्रा के बारे में-

 पञ्चाङ्ग के पाँच अङ्गों में ‘करण’ एक महत्वपूर्ण अङ्ग है, जो तिथि का आधा  हिस्सा होता है। करण के 11 भाग हैं। इसमें से सातवां भाग ‘विष्टि’ है इसी का नाम भद्रा है। भद्रा को सूर्य की पुत्री व शनि की बहन बताया गया है। चन्द्र की स्थिति के आधार पर प्रतिदिन भद्रा की स्थिति इस प्रकार बताई गई है।
मेष, वृषभ, मिथुन, वृश्चिक का जब चंद्रमा हो, तब भद्रा स्वर्गलोक में रहती है।
कन्या, तुला, धनु, मकर का चंद्रमा होने से पाताललोक में और
कर्क, सिंह, कुंभ, मीन राशि पर स्थित चंद्रमा होने पर भद्रा मृत्युलोक में रहती है अर्थात् सम्मुख रहती है।
जब भद्रा भू-लोक में रहती है, तब अशुभ फलदायिनी व वर्जित मानी गई है। इस समय शुभ कार्य नहीं करने चाहिए। शेष अन्य लोक में भद्रा शुभ रहती है। शुक्ल पक्ष की भद्रा का नाम वृश्चिकी व कृष्ण पक्ष की भद्रा सर्पिणी है। बिच्छू का विष डंक में और सर्प का विष मुख में होने के कारण वृश्चिकी भद्रा की पुच्छ व सर्पिणी भद्रा का मुख विशेष रूप से त्याज्य है। किन्तु अन्य मतानुसार भद्रा की पुच्छ सभी कार्यों में शुभ मानी गयी है।

भद्रा परिचय - कहा जाता है कि देव दानव संग्राम में जब देवगण परास्त हो हुए तो भगवान शिव ने क्रोध से संतप्त अपने शरीर को देखा, जिससे गर्दभ मुख वाली,पूँछयुक्त, तीन पैर,सात भुजा,तथा सिंह के समान गर्दन वाली प्रेत वाहिनी देवी प्रकट हुई।

जिसने अपने विकराल मुख से राक्षसों का मान मर्दन कर देवताओं का भद्र अर्थात् भला किया।
इसलिए प्रसन्न हुए देवताओं ने इसे भद्रा नाम से सम्मानित किया, और पञ्चाङ्ग में करण के मध्य स्थापित किया।भद्रा को छाया से उत्पन्न सूर्यपुत्री भी कहा गया है यथा-

छायासूर्यसुते देवि       विष्टिरिष्टार्थदायिनी।
पूजितासि यथाशक्त्या भद्रे भद्र प्रदा भव।।

छाया एवं सूर्यपुत्री भद्रा यथाशक्ति पूजन अर्चन मात्र से सभी अरिष्ट निवारण कर जगती तलवासी प्राणियों का मंगल करती है। रोगादि उपद्रव निवृत्ति, विघ्न बाधा शान्ति के साथ साथ युद्ध, मुकदमा, द्यूत तथा राजकाज में विजय दिलवाती है।

जिस दिन भद्रा हो उस दिन प्रातःकाल भद्रा के इन नामों का स्मरण करने से सारे दोषों का नाश होता है।

भद्रा के द्वादश नाम-


1-धन्या
2-दधिमुखी
3-भद्रा
4-महामारी
5-खरानना
6-कालरात्रि
7-महारुद्रा
8-विष्टि
9-कुलपुत्रिका
10-भैरवी
11-महाकाली
12-असुरक्षयकरी

भद्रा कब-कब होती है?


एक तिथि में दो करण होते हैं। तो विष्टि नामक करण को भद्रा कहते हैं। 
माह के एक पक्ष में भद्रा की चार बार पुनरावृति होती है। जैसे शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्द्ध में भद्रा होती है तथा चतुर्थी व एकादशी तिथि के उत्तरार्ध में भद्रा होती है।

कृष्ण पक्ष में तृतीया व दशमी तिथि का उत्तरार्ध में और सप्तमी व चतुर्दशी तिथि के पूर्वार्ध में भद्रा व्याप्त रहती है।

भद्रा में वर्जित  


भद्रा में मुख्य रूप से रक्षाबन्धन, होलिका दहन, वर्जित हैं।
तथा अन्यान्य ग्रंथों के अनुसार भद्रा में कई कार्यों को निषेध माना गया है। जैसे मुण्डन संस्कार, गृहारंभ, विवाह संस्कार, गृह - प्रवेश, रक्षाबंधन, शुभ यात्रा, नूतन व्यवसाय प्रारम्भ करना और सभी प्रकार के मंगल कार्य भद्रा में वर्जित माने गये हैं।

भद्रा में  विहित कार्य 


कुछ ऐसे कार्य भी है जिन्हें भद्रा में करना शुभ होता है।
जैसे अग्नि कार्य, युद्ध करना, किसी को कैद करना, विषादि का प्रयोग, विवाद संबंधी काम, क्रूर कर्म, शस्त्रों का उपयोग,रोगादि उपद्रवों की शान्ति, विघ्न बाधा शान्ति,शल्य चिकित्सा, शत्रु का उच्चाटन, पशु संबंधी कार्य, मुकदमा आरंभ करना या मुकदमे संबंधी कार्य,राजकार्य शत्रु का दमन करना आदि कार्य भद्रा में किए जा सकते हैं।

भद्रा का वास 


ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होता है तब भद्रा का वास पृथ्वी (मृत्युलोक) पर होता है।

चंद्रमा जब मेष, वृष, मिथुन या वृश्चिक में रहता है तब भद्रा का वास स्वर्गलोक में रहता है।

कन्या, तुला, धनु या मकर राशि में चंद्रमा के स्थित होने पर भद्रा पाताल लोक में होती है।

भद्रा जिस लोक में रहती है वही प्रभावी रहती है।

भूलोकस्था सदात्याज्या स्वर्ग-पातालगा शुभा।।

स्वर्गेभद्राशुभम् कार्ये पाताले च धनागमः।
मृत्युलोके यदा विष्टि: सर्वकार्य विनाशिनी।।

इस प्रकार जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होगा तभी भद्रा का पृथ्वी पर अनिष्ट प्रभाव होगा अन्यथा नही। जब भद्रा स्वर्ग या पाताल लोक में होगी तब वह शुभ फलदायी कहलाएगी।

भद्रा परिहार 


● यदि दिन की भद्रा रात में और रात की भद्रा दिन में हो तो भद्रा का परिहार माना जाता है। इस भद्रा का दोष पृथ्वी पर नहीं होता है। ऎसी भद्रा को शुभ फल देने वाली कहा गया है।यथा-

दिवा भद्रा रात्रौ रात्रि भद्रा यदा दिवा। 
न तत्र भद्रा दोषः स्यात सा भद्रा भद्रदायिनी।।

● भद्रा दिन में तिथि के उत्तरार्ध की व रात्रि में पूर्वार्ध की सब कार्यों में शुभ होती है।यथा-

रात्रि भद्रा यदा अहनि स्यात दिवा दिवा भद्रा निशि। 
न तत्र भद्रा दोषः स्यात सा भद्रा भद्रदायिनी।।

विष्टिरङ्गारकश्चैव व्यतीपातश्च वैधृति:।प्रत्यरिर्जन्मनक्षत्रं मध्यान्हातपरतः शुभम्।।

अर्थात्- विष्टि,अंगारक,क्रकच,दग्धादि योग, व्यतिपात, वैधृति, दुष्टतारा कुयोग दोपहर के बाद सभी शुभ होते हैं।

भद्रा मुख पुच्छ ज्ञानम्-


भद्रा विहित( कुल समय) को तीन स्थानों में रखकर पृथक-पृथक क्रमशः4/6/10 से भाग करने पर प्रहर, षष्ट्यंश, और दशमांश का मान निकल आता है।

चक्र में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि में जो भद्रा लिखी गई है उसके प्रथम प्रहर (यानी भद्रा के शुरू में) षष्ट्यंश तुल्य भद्रा का मुख होता है और चतुर्थ प्रहर के अंत में दशमांश तुल्य भद्रा का पुच्छकाल माना जाता है। प्रहर का मतलब भाग से है।
उदाहरण- सम्वत् 2059 श्रावण शुक्ल पूर्णिमा गुरुवार रक्षाबंधन के दिन भद्रा की व्याप्ति व्यवधान कारक है। अतः भद्रा के मुख का समय सभी शुभ कृत्यों में वर्जित है। उक्तदिन भद्रा का विहितकाल 12 घंटा 40 मिनट को 4 से भाग करने पर 3 घंटा 10 मिनट प्रत्येक पहर का मान हुआ। पुनः 12/40 को 6 से भाग दिया तो 2 घंटा 7 मिनट षष्ट्यंश प्राप्त हुआ। इसी प्रकार 10 से भाग करने पर दशमांश एक घंटा 16 मिनट सुनिश्चित हुआ।
पूर्णिमा के चतुर्थ प्रहर के प्रारंभ में षष्ट्यंश तुल्य भद्रा का मुख्य होता है, सो ज्ञातत करने पर प्रत्येक प्रहर 3/10×3=9/30 जमा भद्रा प्रारम्भकाल 26/39=36/9-24 शेष पूर्णिमा दिन 12 घंटा 9 मिनट से चौथा पहर शुरू भद्रा मुख आरम्भ का समय प्रारम्भ हुआ, जिसमें षष्ट्यंश 2/7 जमा किया तो 14 घंटा 16 मिनट तक का समय सुनिश्चित हुआ। जो कि राखी बांधने के लिए उपयुक्त नहीं है। तीसरे प्रहर के अन्त 12/9 से दशमांश 1/16 घटाया तो 10/53 से भद्रा का पुच्छकाल 12/9 , बजे तक रहेगा जिसे प्रत्येक काम में शुभ माना गया है।

पृथिव्यां यानि कर्माणि शुभान्यशुभानि च।
तानि सर्वाणि सिध्यन्ति विष्टि पुच्छे न संशयः।।

अन्य उदाहरण से समझते हैं

शुक्ल पक्ष की 4,8, 11, और 15 इन चार तिथियों में और कृष्ण पक्ष की 3,7, 10, और 14 इन चार तिथियों में एवं मास में आठ तिथियों में जो भद्रा कही गई है- उनमें क्रमशः 5,2,7, 4,8,6,1, इन प्रहरों के आरम्भ की 5 घटी मात्र भद्रा का मुख होता है, जो सब शुभ कार्यों में अशुभ प्रद है तथा उन्ही आठ तिथियों में क्रम से 8,1,6,3, 7,2,5,4, प्रहरों के अन्तिम 3 घटी विष्टि की पुच्छ होती है, जो सब कार्यों में शुभप्रद कही गई है। जिस तिथि के उत्तरार्ध की भद्रा दिन में और पूर्वार्ध की भद्रा रात रात्रि में हो तो सब कार्यों में शुभप्रद कही गई है।


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