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Thursday, February 7, 2019

पञ्चाङ्ग का महत्व Importance of Panchang

पञ्चाङ्ग का महत्व  

Importance of Panchang

यहाँ पञ्चाङ्ग के महत्व पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है।जिससे आपको पञ्चाङ्ग क्या है यह जानकारी प्राप्त हो और उसका महत्व, लाभ आदि के बारे मे ज्ञात हो सके।

पञ्चाङ्ग के पांच अंग हैं।

There are five parts of the panchang

1-तिथि (Tithi)
2-वार (Vaar)
3-नक्षत्र (Nakshatra)
4-योग (Yog)
5-करण (Karan)

पञ्चाङ्ग का शाब्दिक अर्थ है, 'पाँच अङ्ग' (पञ्च + अङ्ग)। अर्थात पञ्चाङ्ग में वार, तिथि, नक्षत्र, योग,और करण - इन पाँच चीजों का उल्लेख मुख्य रूप से होता है। इसलिए इन पांचों के योग को पञ्चाङ्ग कहा जाता है।इसके अलावा पञ्चाङ्ग से प्रमुख त्यौहारों,  संक्रान्ति, ग्रहण आदि घटनाओं और शुभ मुहुर्त आदि का ज्ञान होता है।

एक वर्ष में 12 महीने होते हैं। प्रत्येक महीने में 15 दिन के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल और कृष्ण। प्रत्येक वर्ष में दो अयन होते हैं। इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं।

गणना के आधार पर पञ्चाङ्ग की तीन धाराएँ हैं- पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति। भिन्न-भिन्न रूप में यह पूरे भारत में माना जाता है।दक्षिण भारत में पञ्चाङ्ग को पञ्चाङ्गम् कहते हैं।

हिन्दु कैलेण्डर जो सभी पांच अंगों को दर्शाता है उसे पञ्चाङ्ग कहते हैं। 


प्रतिदिन पञ्चाङ्ग श्रवण का महत्व


शास्त्रों में पञ्चाङ्ग के पठन और श्रवण का बहुत अधिक महत्व दिया गया है। नववर्ष अर्थात् चैैत्र शुक्ल प्रतिपदा को पञ्चाङ्ग फल का श्रवण करना वर्ष भर उन्नति फल प्रदायक होता है।
पञ्चाङ्ग के पाँच अंगों को नित्य ही पढ़ना सुनना चाहिए।
भगवान राम नित्य सभा में बैठकर पञ्चाङ्ग का श्रवण करते थे।यह प्रसंग अध्यात्म रामायण में मिलता है।इसके पांचो अंगों के श्रवण से हमें जीवन की बहुमूल्य चीजें प्राप्त होती हैं यथा-

तिथि के पठन और श्रवण से महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।

वार के पठन और श्रवण से आयु की वृद्धि होती है।

नक्षत्र के पठन और श्रवण से पापों का नाश होता है।

योग के पठन  और श्रवण से प्रियजनों का प्रेम मिलता है।

करण के पठन  और श्रवण से मनोकामना की  पूर्ति होती है।

यह पञ्चाङ्ग  के नित्य उपयोग की विषयवस्तु है।इसके अलावा भी पञ्चाङ्ग के कुछ महत्वपूर्ण अंग हैं यथा-सम्वत्सर के नाम,आनन्दादि योग(इनका प्रभाव अपने नामानुसार शुभाशुभ होता है),12 माह के नाम,16 तिथियां, नक्षत्रों के नाम,योगों के नाम, करण के नाम,राशियों के नाम आदि।

चन्द्र माह के नाम (12माह)

1. चैत्र 2. वैशाख 3. ज्येष्ठ 4. आषाढ़
5. श्रावण 6. भाद्रपद 7. आश्विन 8. कार्तिक
9. मार्गशीर्ष 10. पौष 11. माघ 12. फाल्गुन

नक्षत्र के नाम
1. अश्विनी
2. भरणी
3. कृत्तिका
4. रोहिणी
5. मॄगशिरा
6. आर्द्रा
7. पुनर्वसु
8. पुष्य
9. अश्लेशा
10. मघा
11. पूर्वाफाल्गुनी
12. उत्तराफाल्गुनी
13. हस्त
14. चित्रा
15. स्वाती
16. विशाखा
17. अनुराधा
18. ज्येष्ठा
19. मूल
20. पूर्वाषाढा
21. उत्तराषाढा
22. श्रवण
23. धनिष्ठा
24. शतभिषा
25. पूर्व भाद्रपद
26. उत्तर भाद्रपद
27. रेवती

योग:-कुल 27 योगों में से  9 योगों को अशुभ माना जाता है तथा सभी प्रकार के शुभ कामों में इनसे बचने की सलाह दी गई है। ये अशुभ योग हैं: विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतीपात, परिघ और वैधृति।बाकी शेष सभी शुभफलदायी होते हैं।

27 योगों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं:

1. विष्कम्भ
2. प्रीति
3. आयुष्मान्
4. सौभाग्य
5. शोभन
6. अतिगण्ड
7. सुकर्मा
8. धृति
9. शूल
10. गण्ड
11. वृद्धि
12. ध्रुव
13. व्याघात
14. हर्षण
15. वज्र
16. सिद्धि
17. व्यतीपात
18. वरीयान्
19. परिघ
20. शिव
21. सिद्ध
22. साध्य
23. शुभ
24. शुक्ल
25. ब्रह्म
26. इन्द्र
27. वैधृति

करण:-एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में।कुल 11 करण होते हैं। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुघ्न करण होता है। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।

करणों के नाम इस प्रकार है:-

  • 1. बव
  • 2. बालव
  • 3. कौलव
  • 4. तैतिल
  • 5. गर
  • 6. वणिज
  • 7. विष्टि (भद्रा)
  • 8. शकुनि
  • 9. चतुष्पद
  • 10. नाग
  • 11. किस्तुघन

इसमें किस्तुघन से गणना आरम्भ करने पर पहले 7 करण आठ बार क्रम से पुनरावृ्त होते है। अंत में शेष चार करण स्थिर प्रकृति के है।

तिथि:-एक दिन को तिथि कहा गया है जो पंचांग के आधार पर उन्नीस घंटे से लेकर छब्बीस घंटे तक की होती है। चंद्र मास में 30 तिथियाँ होती हैं, जो दो पक्षों में बँटी हैं। शुक्ल पक्ष में एक से चौदह और फिर पूर्णिमा आती है। पूर्णिमा सहित कुल मिलाकर पंद्रह तिथि। कृष्ण पक्ष में एक से चौदह और फिर अमावस्या आती है। अमावस्या सहित पंद्रह तिथि।

तिथि के नाम
1. प्रतिपदा
2. द्वितीया
3. तृतीया
4. चतुर्थी
5. पञ्चमी
6. षष्ठी
7. सप्तमी
8. अष्टमी
9. नवमी
10. दशमी
11. एकादशी
12. द्वादशी
13. त्रयोदशी
14. चतुर्दशी
15. पूर्णिमा
16. अमावस्या

 राशि के नाम
1. मेष
2. वृषभ
3. मिथुन
4. कर्क
5. सिंह
6. कन्या
7. तुला
8. वृश्चिक
9. धनु
10. मकर
11. कुम्भ
12. मीन

 सम्वत्सर के नाम
1. प्रभव
2. विभव
3. शुक्ल
4. प्रमोद
5. प्रजापति
6. अङ्गिरा
7. श्रीमुख
8. भाव
9. युवा
10. धाता
11. ईश्वर
12. बहुधान्य
13. प्रमाथी
14. विक्रम
15. वृष
16. चित्रभानु
17. सुभानु
18. तारण
19. पार्थिव
20. व्यय
21. सर्वजित्
22. सर्वधारी
23. विरोधी
24. विकृति
25. खर
26. नन्दन
27. विजय
28. जय
29. मन्मथ
30. दुर्मुख
31. हेमलम्बी
32. विलम्बी
33. विकारी
34. शर्वरी
35. प्लव
36. शुभकृत्
37. शोभन
38. क्रोधी
39. विश्वावसु
40. पराभव
41. प्लवङ्ग
42. कीलक
43. सौम्य
44. साधारण
45. विरोधकृत्
46. परिधावी
47. प्रमाथी
48. आनन्द
49. राक्षस
50. नल
51. पिङ्गल
52. काल
53. सिद्धार्थ
54. रौद्र
55. दुर्मति
56. दुन्दुभी
57. रुधिरोद्गारी
58. रक्ताक्षी
59. क्रोधन
60. क्षय

आनन्दादि योग के नाम
1. आनन्द - सिद्धि
2. कालदण्ड - मृत्यु
3. धुम्र - असुख
4. धाता/प्रजापति - सौभाग्य
5. सौम्य - बहुसुख
6. ध्वांक्ष - धनक्षय
7. केतु/ध्वज - सौभाग्य
8. श्रीवत्स - सौख्यसम्पत्ति
9. वज्र - क्षय
10. मुद्गर - लक्ष्मीक्षय
11. छत्र - राजसन्मान
12. मित्र - पुष्टि
13. मानस - सौभाग्य
14. पद्म - धनागम
15. लुम्बक - धनक्षय
16. उत्पात - प्राणनाश
17. मृत्यु - मृत्यु
18. काण - क्लेश
19. सिद्धि - कार्यसिद्धि
20. शुभ - कल्याण
21. अमृत - राजसन्मान
22. मुसल - धनक्षय
23. गद - भय
24. मातङ्ग - कुलवृद्धि
25. राक्षस - महाकष्ट
26. चर - कार्यसिद्धि
27. स्थिर - गृहारम्भ
28. वर्धमान - विवाह


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