त्राटक Tratak
कहा गया है कि त्राटक साधना सिद्धियों का द्वार है,भौतिक जगत की सभी उपलब्धियों की प्राप्ति इसके माध्यम से की जा सकती है।
त्राटक का अर्थ है किसी वस्तु पर मन और मस्तिष्क को एकाग्र करना। त्राटक का लाभ केवल एकाग्रता बढ़ाने में ही नहीं मिलता बल्कि इससे मनुष्य के नेत्रों में आकर्षण शक्ति बढ़ जाती है।
क्योंकि इससे दृष्टि स्थिर होती है और मस्तिष्क विचारशून्य हो जाता है जिससे उसकी क्षमता में वृद्धि होती है। त्राटक को सम्मोहन की प्रारंभिक क्रिया भी कहा जाता है, क्योंकि सम्मोहन में सबसे पहले त्राटक का ही अभ्यास किया जाता है।
क्योंकि इससे दृष्टि स्थिर होती है और मस्तिष्क विचारशून्य हो जाता है जिससे उसकी क्षमता में वृद्धि होती है। त्राटक को सम्मोहन की प्रारंभिक क्रिया भी कहा जाता है, क्योंकि सम्मोहन में सबसे पहले त्राटक का ही अभ्यास किया जाता है।
हठयोग प्रदीपिका में त्राटक को योग के छह कर्मों में से एक कहा गया है। ये कर्म हैं वस्ति, द्योति, नौलि, नेति, कपालभाति और त्राटक। इन षटकर्मों में त्राटक को सर्वोपरि स्थान दिया गया है ।
निकट त्राटक Nikat Tratak
इसके लिए किसी शांत कमरे या शांत वातावरण में सुखासन में बैठें। नेत्रों को दाएं-बाएं, उपर-नीचे चलाकर आंखों का हल्का व्यायाम करें। त्राटक के लिए सबसे अच्छा समय प्रातः 4 बजे से सूर्योदय तक होता है। अब सुखासन में बैठकर अपने सामने दो फुट की दूरी पर स्फटिक का शिवलिंग या सफेद पत्थर का गोल टुकड़ा रखकर उस पर ध्यान केंद्रित करें। एकटक उसे देखें। जितनी देर हो सकते पलक न झपकाएं। प्रारंभ में परेशानी होती लेकिन धीरे-धीरे अभ्यास हो जाएगा। आंसू निकलने लगे तो आंखें बंद कर लें। कुछ समय बाद दोबारा ऐसा ही करें। कुछ दिनों तक ऐसा करते रहें इससे अभ्यास होने लगेगा। फिर समय बढ़ाते जाएं।
शिवलिंग पर दृष्टि स्थिर होने के बाद मोमबत्ती की लौ से अभ्यास करें। जब लौ पर दृष्टि स्थिर हो जाए तो अपनी नाक पर दृष्टि जमाएं।
इसके बाद दोनों भौंहों के बीच में दृष्टि स्थिर करें। इस प्रयास में कई महीने का समय भी लग सकता है। इससे साधक को दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है।
दूरस्थ त्राटक Doorasth Tratak
जब निकट त्राटक का अच्छे से अभ्यास हो जाए तो साधक किसी पहाड़ की चोटी, मंदिर का गुंबद या पेड़ की टहनी पर दृष्टि जमाने का अभ्यास करे।
इन चीजों पर दृष्टि स्थिर हो जाए तो चंद्रमा पर दृष्टि जमाने का अभ्यास करे। इसके बाद तारे और फिर सूर्य पर दृष्टि जमाने क प्रयास करे।
इन चीजों पर दृष्टि स्थिर हो जाए तो चंद्रमा पर दृष्टि जमाने का अभ्यास करे। इसके बाद तारे और फिर सूर्य पर दृष्टि जमाने क प्रयास करे।
प्रारंभ में सूर्य पर दृष्टि जमाना कठिन होता है इसलिए पानी में सूर्य के प्रतिबिंब पर दृष्टि जमाए। उसके बाद दर्पण पर सूर्य के प्रतिबिंब पर और फिर सूर्य पर। इस तरह जब 32 मिनट से अधिक दृष्टि स्थिर हो जाए तो व्यक्ति दूर त्राटक में माहिर जो जाता है।
अन्तः त्राटक Antah Tratak
उपरोक्त दोनों त्राटक बाह्य पदार्थों पर त्राटक है। अंतर त्राटक में साधक को आंखें बंद कर अपने मनोबल पर ध्यान लगाना पड़ता है। इसके लिए साधक आंखें बंद कर भौहों के बीच में ध्यान लगाए। अभ्यास के बाद धीरे-धीरे साधक को आंखें बंद करने पर तीन, पांच सा सात बिंदु दिखाई देंगे। जो सफेद, नीले, पीले रंग के हो सकते हैं। कुछ समय बाद ये बिंदु दिखाई नहीं देंगे और ज्योति से जगमग नेत्र दिखाई देगा। प्रारंभ में यह नेत्र हिलता हुआ नजर आएगा। इसके बाद सूर्य, चंद्र, तारे आदि दिखने का अनुभव होगा। इसके बाद आकाश के मध्य तीसरा नेत्र दिखाई देगा। यही पूर्ण अवस्था है।
नोट:- सर्वप्रथम त्राटक की क्रिया किसी योग्य गुरु के मार्गदर्शन में ही करें। सिर्फ पढ़कर या अपने मन से कुछ न करें।
साभार
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