शरीर का पारमार्थिक स्वरुप ब्रह्माण्ड के गुणों से सम्पन्न और योगियों के द्वारा धारण करने योग्य है।
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, तथा आकाश – ये पाँच स्थूल भूत कहे जाते हैं। यह शरीर इन्ही पाँच भूतों से बना है, इसीलिये पाञ्च भौतिक कहलाता है।
पारमार्थिक शरीर में मूलाधार आदि छः चक्र होते हैं यथा-
मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्ध, तथा आज्ञा ।
मूलाधार चक्र
यह चक्र गुद प्रदेश के ऊपर, चतुर्दलाकार, अग्नि के समान और व से स पर्यन्त वर्णों (अर्थात् व, श, ष, और स )-आश्रय है। इसके देवता गणेश हैं।
स्वाधिष्ठान चक्र
यह चक्र सूर्य के समान दीप्तिमान, ब से लेकर ल पर्यन्त वर्णों (अर्थात् ब, भ, म, य, र, ल ) का आश्रयस्थान और षड्दलाकार है।इसके देवता ब्रह्मा जी हैं।इसका स्थान लिङ्ग देश में बताया गया है।
मणिपूरक चक्र
यह चक्र रक्तिम आभा वाला, दश दलाकार और ड से लेकर फ पर्यन्त वर्णों (अर्थात् ड, ढ,ण, त, थ, द, ध, न, प, फ) का आधार है। इसके देवता विष्णु जी हैं। इसका स्थान नाभि में होता है।
अनाहत चक्र
यह चक्र द्वादशदलाकार , स्वर्णिम आभा वाला तथा क से ठ पर्यन्त वर्णों (अर्थात् क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ)- से युक्त है।इसके देवता शिव हैं।इसका स्थान हृदय में होता है।
विशुद्ध चक्र
यह चक्र कण्ठ में, षोडशदलाकार, सोलह स्वरों (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ॠ, लृ, लॄ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:)-से युक्त कमल और चन्द्रमा के समान कान्ति वाला होता है।इसमें जीवात्मा का ध्यान किया जाता है।
आज्ञा चक्र
यह चक्र भ्रुव मध्य में, द्विदलाकार ' हं सः' इन दो अक्षरों से युक्त और रक्तिम वर्ण का है। इसमें गुरु का ध्यान किया जाता है।
तत्पश्चात सहस्रसार चक्र में सर्वव्यापी परब्रह्म का चिन्तन करना चाहिये।
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, तथा आकाश – ये पाँच स्थूल भूत कहे जाते हैं। यह शरीर इन्ही पाँच भूतों से बना है, इसीलिये पाञ्च भौतिक कहलाता है।
पारमार्थिक शरीर में मूलाधार आदि छः चक्र होते हैं यथा-
मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्ध, तथा आज्ञा ।
मूलाधार चक्र
यह चक्र गुद प्रदेश के ऊपर, चतुर्दलाकार, अग्नि के समान और व से स पर्यन्त वर्णों (अर्थात् व, श, ष, और स )-आश्रय है। इसके देवता गणेश हैं।
स्वाधिष्ठान चक्र
यह चक्र सूर्य के समान दीप्तिमान, ब से लेकर ल पर्यन्त वर्णों (अर्थात् ब, भ, म, य, र, ल ) का आश्रयस्थान और षड्दलाकार है।इसके देवता ब्रह्मा जी हैं।इसका स्थान लिङ्ग देश में बताया गया है।
मणिपूरक चक्र
यह चक्र रक्तिम आभा वाला, दश दलाकार और ड से लेकर फ पर्यन्त वर्णों (अर्थात् ड, ढ,ण, त, थ, द, ध, न, प, फ) का आधार है। इसके देवता विष्णु जी हैं। इसका स्थान नाभि में होता है।
अनाहत चक्र
यह चक्र द्वादशदलाकार , स्वर्णिम आभा वाला तथा क से ठ पर्यन्त वर्णों (अर्थात् क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ)- से युक्त है।इसके देवता शिव हैं।इसका स्थान हृदय में होता है।
विशुद्ध चक्र
यह चक्र कण्ठ में, षोडशदलाकार, सोलह स्वरों (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ॠ, लृ, लॄ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:)-से युक्त कमल और चन्द्रमा के समान कान्ति वाला होता है।इसमें जीवात्मा का ध्यान किया जाता है।
आज्ञा चक्र
यह चक्र भ्रुव मध्य में, द्विदलाकार ' हं सः' इन दो अक्षरों से युक्त और रक्तिम वर्ण का है। इसमें गुरु का ध्यान किया जाता है।
तत्पश्चात सहस्रसार चक्र में सर्वव्यापी परब्रह्म का चिन्तन करना चाहिये।
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