Tuesday, March 26, 2024

प्रयोग आरम्भ चक्र prayog aarambh chakra

प्रयोग आरम्भ चक्र 

prayog aarambh chakra

किसी भी अनुष्ठानादि का प्रारंभ करते समय इस चक्र का प्रयोग कर सकते हैं जिससे उसके सफल होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

जब किसी प्रयोग का आरम्भ करें तो सूर्य नक्षत्र से वर्तमान नक्षत्र तक गणना करें।

उस संख्या को चक्र में दाहिनी ओर संख्या के कालम में देखें, हमें जो भी संख्या प्राप्त हुई थी उसके सामने ही उसका फल लिखा गया है।अतः इस दौरान प्रयोग आरम्भ करेंगें तो उसके समान रूप फल की प्राप्ति होगी।


Releted topic-

● चाँदी के कुछ अद्भुत प्रयोग Some amazing uses of silver

● व्यापार/व्यवहार हेतु क्रय विक्रय नक्षत्र Purchase/sale constellation for business/dealing

Wednesday, January 10, 2024

ग्रहशांति grah shanti

ग्रहशांति एक विलक्षण प्रयोग




हमारे शास्त्रों में यद्यपि ग्रह शान्ति के अनेकों उपाय बताये गये हैं।जिनमे मुख्य रूप से जप-तप-दान-यन्त्र-स्नान-रत्न-रुद्राक्ष-वनस्पतियों आदि को धारण कराया जाता है।

-जप और तप दोनों ही काफी कठिन और खर्चीले उपाय हैं ग्रहों की विशेष स्थिति पर ही इनका उपयोग होता है।
-दान और टोटके अधिकतर ग्रहों के गोचर के लिए किए जाते हैं।
-रत्न-रुद्राक्ष ग्रहों को बल प्रदान कर उन्हें अनुकूल बनाते हैं।
-ग्रहों से संबंधित औषधियों का प्रयोग जल में डालकर स्नान करने का विधान है।यह भी गोचर को प्रभावित करता है।

-रत्न और रुद्राक्ष की तरह ग्रहों की कुछ वनस्पति हम धारण कर सकते हैं जिनका काफी अच्छा प्रभाव पड़ता है लेकिन इनकी आयु कम होती है और इन्हें बदलना पड़ता है।

-किसी विशेष समय में ग्रहयन्त्र का निर्माण कर उसका नित्यपूजन करना भी ग्रह सम्बन्धी शुभता को देनेवाला है।किन्तु बदलते परिवेश/दिनचर्या में सबके लिए ऐसा कर पाना सम्भव नहीं होता है।
अतः आज हम आपके लिए ग्रहों की शान्ति के लिए और उनकी अनुकूलता प्राप्ति के लिए अत्यन्त साधारण और विलक्षण प्रयोग लेकर आए हैं-
यद्यपि इसमें मेरा कुछ भी नही है शास्त्र और गुरुजनों की कृपा से प्राप्त यह प्रयोग करके न केवल आप अपने ग्रहों को अनुकूल कर पाएंगे बल्कि उनकी शुभता/कृपा भी प्राप्त कर सकेंगे।
यह अत्यंत दुर्लभ प्रयोग है जिसका उपयोग हम एक यन्त्र के माध्यम से करते हैं।
सबसे पहले हमें यह ज्ञात करना होगा कि जन्मपत्रिका में किस ग्रह को अनुकूल बनाना है।
दूसरे तीसरे सातवें आठवें भाव के स्वामी ग्रह मारक क्षमता से युक्त होते हैं।इसी प्रकार छठे, ग्यारहवें, और बारहवें भाव के स्वामी भी अशुभ फल देने वाले माने जाते हैं।अतः इन्ही भावेशों को अनुकूल/शान्त करने की आवश्यकता होती है।
किन्तु हम इस यन्त्र का प्रयोग सभी नव ग्रहों के लिए कर सकते हैं चाहे वह शुभ फल देने वाले हैं या अशुभ फल देने वाले।
इस प्रयोग से शुभ फल देने वाले ग्रहों की शुभता में वृद्धि होती है और अशुभ फल देने वाले ग्रहों की अशुभता कम होकर वह हमारे लिए अनुकूलता प्रदान करते हैं।

नवग्रह शान्ति यन्त्र

नवग्रह शान्ति यन्त्र का प्रयोग कैसे करें?

रवि के प्रतिकूल होने पर एक से
सोम/चन्द्रमा के प्रतिकूल होने पर दो से
मंगल के प्रतिकूल होने पर तीन से
बुध के प्रतिकूल होने पर चार से
बृहस्पति के प्रतिकूल होने पर पांच से
शुक्र के प्रतिकूल होने पर छह से
शनि के प्रतिकूल होने पर सात से
राहु के प्रतिकूल होने पर आठ से और
केतु के प्रतिकूल होने पर नव से
आरम्भ करके क्रमानुसार यन्त्र को लिखना चाहिए।
'ह्रीं आदित्याय नमः'- इसी प्रकार सबके साथ "ह्रींकार" को लिखना चाहिए।

पीपल के पत्ते पर या भोजपत्र पर लिखकर यन्त्र को पीपल की जड़ में रख देना चाहिए। इस प्रकार 28 दिन तक करने से सभी ग्रह शान्त/प्रसन्न हो जाते हैं और पीड़ा नहीं देते हैं।
यन्त्र क्रम
816  357   492
                 





Related topics-चाँदी के कुछ अद्भुत प्रयोग Some amazing uses of silver

स्मार्त और वैष्णव smart aur vaishnav

स्मार्त और वैष्णव

आज हम जानेंगें स्मार्त और वैष्णवमत के बारे में-


● स्मार्त और वैष्णव में क्या अंतर है?
● आप स्मार्त हैं या वैष्णव?
● स्मार्त और वैष्णव का भेद।


जब भी किसी त्यौहार की बात आती है तो स्मार्त और वैष्णव शब्द भी आता है।क्योंकि हमारे पञ्चाङ्ग में लगभग सभी व्रत और त्यौहारों का निर्णय स्मार्त और वैष्णव के आधार पर दिया जाता है इस प्रकार अधिकतर त्यौहार दो दिन के हो जाते हैं।


लोगों के मन में यह प्रश्न आता है कि स्मार्त और वैष्णव में क्या अंतर है तो आज हम आपको बताएंगे कि स्मार्त किसे कहते हैं और वैष्णव किसे कहते हैं?


● सामान्य सांसारिक नियमों को मानकर गृहस्थ आश्रम का पालन करने वाले अर्थात् सभी गृहस्थी जन स्मार्त कहे जातें हैं।श्रुति-स्मृतियों में विश्वास,वेद पुराण आदि का पठन-पाठन एवं श्रवण करने वाले लोग, पांच देवों(सूर्य,गणेश, शिव, विष्णु, दुर्गा) की उपासना करने वाले अर्थात् पञ्चदेवोपासक,भगवान शिव का पूजन करने वाले सभी स्मार्त कहे जाते हैं।


गृहस्थी स्त्रियों को हमेशा स्मार्तमत के अनुसार व्रत त्यौहार मनाने चाहिए।


● वैष्णव उन्हें कहते हैं जो भगवान विष्णु के उपासक हैं।अपने माथे पर वैष्णव संप्रदाय के अनुसार तिलक धारण करते हैं, भुजाओं पर जिन्होंने शंख-चक्र आदि चिन्ह तप्त मुद्रा से अंकित करवा रखे हैं,अथवा जिन्होंने वैष्णव धर्मगुरु से दीक्षा ली हुई होती है और उनके द्वारा बताये गए नियमों का कठोरता से पालन करते हैं।

साधु-सन्यासी, योगी, तथा विधवा स्त्रियां भी वैष्णव मत के अनुसार त्यौहार व्रत आदि किया करते हैं।



Tuesday, January 2, 2024

खरमास kharmas

खरमास

सनातन धर्म में खरमास का विशेष महत्व है। इसमें किसी भी प्रकार के शुभ और मांगलिक कार्यों का अभाव हो जाता है। खरमास के प्रारंभ होते ही हर प्रकार के मांगलिक कार्य भी स्थगित कर दिए जाते हैं।

आइए आज हम जानते हैं क्या होता खरमास और क्या है इसका महत्व....

सूर्य के धनु या फिर मीन राशि में गोचर करने की अवधि खरमास कहलाती है।
कुछ लोग खरमास और मलमास को एक ही समझते हैं, ऐसा नहीं है।
खरमास के दौरान नियमों का पालन करना जरूरी होती है।इस दौरान कुछ चीजों का उल्लेख किया गया है कि क्या करें और क्या न करें?

खरमास में क्या करें-

● खरमास के दिनों में भगवान भास्कर की पूजा और उपासना करने से साधक को सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

● कहा गया है कि खरमास में भगवान विष्णु की पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है। साथ ही घर में यश-वैभव का आगमन होता है।

● धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि इन दिनों में गौमाता, गुरुदेव,सन्तजनों की सेवा और पुराणों का श्रवण करना चाहिए इससे शुभ फल की प्राप्ति होती है।

● खरमास के दौरान नियमित रूप से भगवान भास्कर को लाल रंग युक्त जल का अर्ध्य दें। साथ ही, सूर्य मंत्र का जाप करना लाभदायी है।

● खरमास में गरीबों और जरूरतमंदों को सामर्थ्य अनुसार दान अवश्य करें।

खरमास में क्या न करें-

● इस समयकाल में मांगलिक कार्य नही होते हैं,इसलिए इन दिनों में कोई भी शुभ कार्य न करें।

● तामसिक भोजन से बचें।

● किसी से वाद-विवाद न करें।

● खरमास में बेटी या बहू की विदाई नहीं करनी चाहिए।

●कारोबार/व्यवसाय का श्रीगणेश न करें।

Releted topic-चाँदी के कुछ अद्भुत प्रयोग Some amazing uses of silver

Monday, July 10, 2023

सफलता के 10 नियम 10 Laws of Success

सफलता का अर्थ  Meaning of Success 

सफलता पाने के लिए हम न जाने क्या क्या उपाय करते रहते हैं।
जीवन में किसी भी क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि प्राप्त करना, पद प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त करना, पारिवारिक और सामाजिक सुख प्राप्त करना, शारीरिक स्वास्थ और मानसिक शांति प्राप्त करना, ज्ञान से समृद्ध होना और बुद्धि से कुशलता प्राप्त करने को सफलता माना जाता हैं।



सफलता के तत्व क्या है?
What are the elements of success?

उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम - यह 6 गुण जिस भी व्यक्ति के पास होते हैं, भगवान भी उसकी मदद करते हैं।
सफलता जिसे हम अपने जीवन के लक्ष्य प्राप्ति के रूप में परिभाषित करते है। सफलता एक चीज है जो जीवन में हम पाना चाहते है।हमें अपने सपने साकार करने के लिए कड़ी मेहनत और अपने समय का सही उपयोग करने की आवश्यकता है।

श्रीमद्देवीभागवत में स्वयं देवी भगवती ने बताए हैं सफलता पाने के ये 10 नियम

साधारणतया मनुष्य को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, इसका वर्णन कई ग्रंथों और शास्त्रों में पाया जाता है। इन बातों को समझ कर, उनका पालन करने पर जीवन को सुखद बनाया जा सकता है। श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में स्वयं देवी भगवती ने 10 नियमों के बारे में बताया है। इन नियमों का पालन हर मनुष्य को अपने जीवन में करना ही चाहिए।
श्रीमद्देवीभागवत महापुराण के अनुसार, ये है वह 10 नियम जिन्हें हर मनुष्य को अपने जीवन में अपनाना चाहिए-
श्लोक-

तपः सन्तोष आस्तिक्यं दानं देवस्य पूजनम्।
सिद्धान्तश्रवणं चैव ह्रीर्मतिश्च जपो हुतम्।।

अर्थ-
तप, संतोष, आस्तिकता, दान, देवपूजन, शास्त्रसिद्धांतों का श्रवण, लज्जा, सद्बुद्धि, जप और हवन- ये दस नियम देवी भगवती द्वारा कहे गए है।


1- तप
तपस्या करने या ध्यान लगाने से मन को शांति मिलती है। मनुष्य को जीवन में कई बातें होती हैं, जिन्हें समझ पाना कभी-कभी मुश्किल हो जाता है। तप करने या ध्यान लगाने से हमारा सारा ध्यान एक जगह केन्द्रित हो जाता है और मन भी शांत हो जाता है। शांत मन से किसी भी समस्या का हल निकाला जा सकता है। साथ ही ध्यान लगाने से कई मानसिक और शारीरिक रोगों का भी नाश होता है।


2- संतोष
मनुष्य के जीवन में कई इच्छाएं होती हैं। हर इच्छा को पूरा कर पाना संभव नहीं होता। ऐसे में मनुष्य को अपने मन में संतोष (संतुष्टि) रखना बहुत जरूरी होता है। असंतोष की वजह से मन में जलन, लालच जैसी भावनाएं जन्म लेने लगती हैं। जिनकी वजह से मनुष्य गलत काम तक करने को तैयार हो जाता है। सुखी जीवन के लिए इन भावनाओं से दूर रहना बहुत आवश्यक होता है। इसलिए मनुष्य हमेशा अपने मन में संतोष रखना चाहिए।


3- आस्तिकता
आस्तिकता का अर्थ होता है- देवी-देवता में विश्वास रखना। मनुष्य को हमेशा ही देवी-देवताओं का स्मरण करते रहना चाहिए। नास्तिक व्यक्ति पशु के समान होता है। ऐसे व्यक्ति के लिए अच्छा-बुरा कुछ नहीं होता। वह बुरे कर्मों को भी बिना किसी भय के करता जाता है। जीवन में सफलता हासिल करने के लिए आस्तिकता की भावना होना बहुत ही जरूरी होता है।


4- दान
हमारे धर्म में दान का बहुत ही महत्व है। दान करने से पुण्य मिलता है। दान करने पर ग्रहों के दोषों का भी नाश होता है। कई बार मनुष्य को उसकी ग्रह दशाओं की वजह से कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। दान देकर या अन्य पुण्य कर्म करके ग्रह दोषों का निवारण किया जा सकता है। मनुष्य को अपने जीवन में हमेशा ही दान कर्म करते रहना चाहिए।


5- देव पूजन
हर मनुष्य की कई कामनाएं होती हैं। अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए कर्मों के साथ-साथ देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना भी की जाती है। मनुष्य अपने हर दुःख में, हर परेशानी में भगवान को याद अवश्य करता है। सुखी जीवन और हमेशा भगवान की कृपा अपने परिवार पर बनाए रखने के लिए पूरी श्रद्धा के साथ भगवान की पूजा करनी चाहिए।


6- शास्त्र सिद्धांतों को सुनना और मानना
कई पुराणों और शास्त्रों में धर्म-ज्ञान संबंधी कई बातें बताई गई हैं। जो बातें न कि सिर्फ उस समय बल्कि आज भी बहुत उपयोगी हैं। अगर उन सिद्धान्तों का जीवन में पालन किया जाए तो किसी भी कठिनाई का सामना आसानी से किया जा सकता है। शास्त्रों में दिए गए सिद्धांतों से सीख के साथ-साथ पुण्य भी प्राप्त होता है। इसलिए, शास्त्रों और पुराणों का अध्यन और श्रवण करना चाहिए।


7- लज्जा
किसी भी मनुष्य में लज्जा (शर्म) होना बहुत जरूरी होता है। बेशर्म मनुष्य भी पशु के समान होता है। जिस मनुष्य के मन में लज्जा का भाव नहीं होता, वह कोई भी दुष्कर्म कर सकता है। जिसकी वजह से कई बार न केवल उसे बल्कि उसके परिवार को भी अपमान का पात्र बनना पड़ सकता है। लज्जा ही मनुष्य को सही और गलत में फर्क करना सिखाती है। मनुष्य को अपने मन में लज्जा का भाव निश्चित ही रखना चाहिए।


8- सदबुद्धि
किसी भी मनुष्य को अच्छा या बुरा उसकी बुद्धि ही बनाती है। अच्छी सोच रखने वाला मनुष्य जीवन में हमेशा ही सफलता पाता है। बुरी सोच रखने वाला मनुष्य कभी उन्नति नहीं कर पाता। मनुष्य की बुद्धि उसके स्वभाव को दर्शाती है। सदबुद्धि वाला मनुष्य धर्म का पालन करने वाला होता है और उसकी बुद्धि कभी गलत कामों की ओर नहीं जाती। अतः हमेशा सदबुद्धि का पालन करना चाहिए।

9- जप
शास्त्रों के अनुसार, जीवन में कई समस्याओं का हल केवल भगवान का नाम जपने से ही पाया जा सकता है। जो मनुष्य पूरी श्रद्धा से भगवान का नाम जपता हो, उस पर भगवान की कृपा हमेशा बनी रहती है। भगवान का भजन-कीर्तन करने से मन को शांति मिलती है और पुण्य की भी प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार, कलियुग में देवी-देवताओं का केवल नाम ले लेने मात्र से ही पापों से मुक्ति मिल जाती है।


10- हवन
किसी भी शुभ काम के मौके पर हवन किया जाता है। हवन करने से घर का वातावरण शुद्ध होता है। कहा जाता है, हवन करने पर हवन में दी गई आहुति का एक भाग सीधे देवी-देवताओं को प्राप्त होता है। उससे घर में देवी-देवताओं की कृपा सदा बनी रहती है। साथ ही वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा भी बढ़ती है।


इस प्रकार हम अपने कर्म को सुदृढ़ करके अर्थात् सफलता के तत्व जो पहले बताए गए हैं उनका उपयोग करके और श्रीमद्देवीभागवत में भगवती द्वारा बताए गए नियमों का पालन करते हुए जीवन के सभी क्षेत्रों में सफल हो सकते हैं इसमें संदेह नहीं है।

Related topics-

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त Mantra theory for suffering peace

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त  Mantra theory for suffering peace संसार की समस्त वस्तुयें अनादि प्रकृति का ही रूप है,और वह...