दस पाप
मनुष्य अपने जीवन में ज्ञात- अज्ञात अनेक प्रकार के पुण्यों के साथ पाप भी करता है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार केवल भूलवश या अज्ञानता के कारण हुए पापों का ही प्रायश्चित होता है। ऐसे पाप गंगा स्नान से धुल जाते हैं।
लेकिन इसके अलावा जो भी पाप कर्म जानबूझ कर किए जाते हैं, उनका भुगतान मनुष्य को अवश्य करना पड़ता है, भले ही वह कितने दान- पुण्य कर ले।
शास्त्रों में 10 प्रकार के पाप माने गए हैं-
तीन मानसिक-
•दूसरे का धन हड़पने का विचार करना।•दूसरों के बारे में बुरा सोचना।
•मिथ्या बातों के बारे में सोचना।
तीन कायिक -
•बिना पूछे दूसरे की वस्तु लेना।•व्यर्थ की हिंसा करना।
•परस्त्री गमन।
और चार प्रकार के वाचिक पाप-
•मुंह से कठोर वचन कहना।•चुगली करना।
•झूठ बोलना।
•व्यर्थ की बातें करना।
मनुष्य के पाप-पुण्य के होते हैं 14 साक्षी
वेद पुराण आदि ग्रंथों के अनुसार मनुष्य द्वारा किए गए पाप और पुण्य के ये चौदह साक्षी होते हैं-धर्म, सूर्य, चंद्र, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, दिन, संध्या, रात्रि, काल, दिशाएं और इंद्रियां होते हैं।
मनुष्य द्वारा किए गए पाप या पुण्य के समय इनमें से किसी न किसी एक की उपस्थिति अवश्य रहती है।मनुष्य के पाप किस तरह वापस उसी के पास लौट कर आते हैं, इस संबंध में एक पौराणिक कथा है। एक बार कुछ ऋषि मुनि गंगा जी के पास गए और उनसे पूछा कि मनुष्य आपके जल में स्नान करके अपने पाप आपके जल में विसर्जित कर देते हैं। इसका अर्थ यह है कि आप उस पाप की भागी हुई।
तो गंगा जी ने ऋषियों से कहा कि वह तो सारे पाप समुद्र को सौंप देती हैं।
अब ऋषि समुद्र के पास गए और उन्होंने समुद्र से यही प्रश्न किया। समुद्र ने कहा कि वह मनुष्यों के सारे पापों को वाष्प बनाकर बादलों को अर्पित कर देता है।
अब सभी ऋषि बादलों के पास के गए और उनसे भी यही प्रश्न किया। बादलों ने कहा कि वह पापी नहीं है। वह वाष्प रूपी पाप को पानी बना कर वर्षा के जल के रूप में वापस धरती पर भेज देते हैं। इसी जल से किसान खेतों में अन्न उपजाते हैं।
उस अन्न को आप अपनी मेहनत से कमाए धन से खाते हैं, तो आप उस पाप के भागी बनने से बच जाते हैं। लेकिन यदि आप बेईमानी से अर्जित धन से उस अन्न का उपभोग करते हैं तो आप पुनः उस पाप के भागी बन जाते हैं।
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