मुख्यद्वार Main door
अक्सर लोग यह प्रश्न करते हैं कि मुख्य द्वार कहाँ पर होना चाहिए?
और यह प्रश्न इसलिए भी उनके मन में आता है क्योंकि हमारे ग्रन्थों में पूर्व और उत्तर मुख वाले भूखण्ड को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
लेकिन पश्चिम और दक्षिण मुख वाले भूखण्ड भी कुछ लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं होते हैं।
तो आज हम बात करते हैं अपने घर के मुख्यद्वार की।
अर्थात् आपके भवन का जो मुख है उसमें मुख्यद्वार कहाँ पर होना चाहिए?
●वास्तु के अनुसार घर का मुख्यद्वार
●भवन के मुख्य द्वार का विचार
●मुख्य द्वार की सही दिशा लाए जीवन में खुशहाली
●मुख्य द्वार की सही दिशा से मिलते हैं कई लाभ
दिशा से तात्पर्य यह है कि आपका भवन पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण किसी भी दिशा की ओर मुख का है लेकिन उसमें प्रवेश करने के लिए मुख्यद्वार कहाँ पर हो?
वास्तुशास्त्र में मुख्य द्वार की सही दिशा के कई लाभ बताए गए हैं।
साधारणतया किसी भी भवन में मुख्य रूप से एक या दो द्वार मुख्य द्वारों की श्रेणी के होते हैं जिनमें से प्रथम मुख्य द्वार से हम भवन की सीमा में प्रवेश करते हैं। द्वितीय से हम भवन के अन्दर प्रवेश करते हैं। भवन के मुख्य द्वार का हमारे जीवन से एक घनिष्ठ संबंध है।
मुख्यद्वार और वास्तु के सिद्धान्त
वास्तु के सिद्धान्तों के अनुसार मुख्यद्वार की सही स्थिति गृहस्वामी को लक्ष्मी (संपदा), ऐश्वर्य, पारिवारिक सुख एवं वैभव प्रदान करते हैं। जबकि गलत दिशा में स्थित मुख्य द्वार जीवन में अनेक समस्याओं को उत्पन्न करता है।
बहुमंजिला इमारतों में अपने फ्लैट का द्वार हमारा मुख्यद्वार होता है।
यदि किसी कारणवश आप उपरोक्त दिशा में मुख्य द्वार का निर्माण न कर सके तो भवन के मुख्य (आंतरिक) ढांचे में प्रवेश के लिए उपरोक्त में से किसी एक दिशा को चुन लेने से भवन के मुख्य द्वार का वास्तुदोष समाप्त हो जाता है।
आईये हम जानते हैं कि मुख्यद्वार कहाँ बनाया जाए?
यदि भूखण्ड को चारों दिशाओं में 9 भागों में बांटा जाए तो कुल मिलाकर 32 कोष्ठक बनते हैं। यह ईशान से घड़ी की चाल की दिशा से चलते हुए आग्नेय, नैऋत्य एवं वायव्य होते हुए ईशान तक 1 से संख्या 32 तक होते हैं। यदि मुख्य द्वार पूर्व दिशा में बना हो तो कोष्ठक तीन और चार सर्वश्रेष्ठ हैं। इसी प्रकार दक्षिण में 11 12 या 13, पश्चिम में 20 21 तथा उत्तर में 27 28 व 29 कोष्ठक सर्वश्रेष्ठ हैं।
यदि भूखंड विदिशा में हो तो दिशा सूचक यंत्र से ईशान कोण ढूंढ लें। भूखण्ड पर पूर्वोक्त विधि के अनुसार 32 कोष्ठक बना ले और पूर्व निर्धारित स्थानों में द्वार का निर्माण करें।
अब आपके मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि यह नियम नए निर्माण में लागू हो सकता है लेकिन पहले से बने हुए भवन में यदि मुख्यद्वार सही स्थिति में नहीं है तो क्या करना चाहिए?
इसका उत्तर है कि
●यदि दो द्वार हैं तो उनमें से एक का सही स्थिति में होना आवश्यक है।●द्वार को सही स्थिति में करा लिया जाए।
●मुख्यद्वार की दहलीज पर चांदी का तार लगाएं।
●उत्तम मुहूर्त में वास्तुयन्त्र को प्रतिष्ठित करा कर उसकी स्थापना करें।
●घर में पञ्चगव्य की धूनी करें।
●सायंकाल में मुख्यद्वार पर गोमय दीप प्रज्वलित करें।
इसे वीडियो में देखें-मुख्यद्वार का विचार
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