रुद्राष्टाध्यायी के पाठ का क्रम और महत्व
Rudrhatadhyayi's Text and Significance
सम्पूर्ण रुद्राष्टाध्यायी का एक आवृत्ति पाठ और अभिषेक करना रुद्राभिषेक कहलाता है।
शिव पुराण में शतरुद्री से पूजन अभिषेक आदि का बड़ा अत्युत्तम माहात्म्य बताया गया है। इसमें भी मंत्रो का प्रयोग रुद्राष्टाध्यायी से ही किया गया है।कुछ मन्त्र बाहर से लिये गये हैं। शतरुद्री सम्बन्धी वाक्य इस प्रकार मिलते हैं:-
षष्ठषष्ठि नीलसूक्तं च पुनर्षोडशमेव च।।
एषते द्वे नमस्ते द्वे नतं विद्द्द्वयमेव च।।
मीढुष्टमेति चत्वारि वय गुंग चाष्टमेव च।।
शतरुद्री समाख्याता सर्वपातकनाशिनी।।
यों शतरुद्री का प्रयोग श्रेष्ठ होने पर भी रुद्राभिषेक में रुद्री का नमकचमकात्मक प्रयोग विशेष रूप से प्रचलित है।
इसमें रुद्राष्टाध्यायी का पहले सात अध्याय तक पाठ करके अष्टम अध्याय में क्रमशः 4,4,4,3,3,3,2,1,1,2 मन्त्रो पर विराम करते हुए पञ्चम अध्याय अर्थात नीलसूक्त के 11 पाठ होते है।
● इस प्रकार एक नमकचमकात्मक रुद्राभिषेक को एक "रुद्र" कहते हैं।
● 11रुद्रों का एक लघुरुद्र होता है।
● 11 लघुरुद्रों का एक महारुद्र होता है।
● 11 महारुद्रों का एक अतिरुद्र होता है।
रुद्राष्टाध्यायी के पाठ और उनसे होने वाले रुद्रादि प्रयोंगों के लाभ
Benefits of Rudrhatadhyayi lessons and Rudradi Prayogs
रूद्र प्रयोग Rudra Prayog
● एक रुद्र से बालग्रहों की शान्ति होती है।
● 3 रुद्रों से उपद्रव की शान्ति होती है।
● 5 रुद्रों से ग्रह शान्ति होती है।
● 7 रुद्रों से भय का निवारण होता है।
● 9 रुद्रों से शान्ति एवं वाजपेय फल की प्राप्ति होती है।
● 11 रुद्रों से राजा का वशीकरण होता है।
लघुरुद्र प्रयोग Laghu rudra Prayog
● 1 लघुरुद्र से कामना की पूर्ति होती है।
● 3 लघुरुद्रों से शत्रु भय का नाश होता है।
● 5 लघुरुद्रों से शत्रु और स्त्री का वशीकरण होता है।
● 7 लघुरुद्रों से सुख की प्राप्ति होती है।
● 9 लघुरुद्रों से कुल की वृद्धि एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है।
महरुद्र प्रयोग Maharudra Prayog
● 1 महरुद्र से राजभय का निराकरण, शत्रु का उच्चाटन,दीर्घायु, यश-कीर्ति-चतुर्वर्ग की प्राप्ति होती है।
● 3 महरुद्रों से दुष्कर कार्य भी सुख साध्य हो जाता है।
● 5 महरुद्रों से राज्य प्राप्ति के साधन होते हैं।
● 7 महरुद्रों से सप्तलोक साधन होता है।
● 9 महरुद्रों से मोक्ष पद के मार्ग प्राप्त होते हैं।
अतिरुद्र प्रयोग Atirudra Prayog
● 1 अतिरुद्र से देवत्व की प्राप्ति होती है।डाकिनी-शाकिनी-अभिचारादि भय का निवारण होता है।
● 3 अतिरुद्रों से संस्कार भूतादि बाधायें दूर होती हैं।
● 5 अतिरुद्रों से ग्रहजन्य फल एवं व्याधि शांत होती है।
● 7 अतिरुद्रों से कर्मज व्याधियां शांत होती हैं।
● 9 अतिरुद्रों से सर्वार्थसिद्धि होती है।
● 11 अतिरुद्रों से असाध्य का भी साधन होता है।
इन रुद्राष्टाध्यायी के पाठ, अभिषेक आदि के द्वारा शिवकृपा से हम अपने लिए मनचाही स्थितियां निर्मित कर सकते हैं,इन प्रयोगों में प्रारब्ध को मिटाने की क्षमता है।
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महामृत्युञ्जय mahaamrtyunjay
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शिव पुराण में शतरुद्री से पूजन अभिषेक आदि का बड़ा अत्युत्तम माहात्म्य बताया गया है। इसमें भी मंत्रो का प्रयोग रुद्राष्टाध्यायी से ही किया गया है।कुछ मन्त्र बाहर से लिये गये हैं। शतरुद्री सम्बन्धी वाक्य इस प्रकार मिलते हैं:-
षष्ठषष्ठि नीलसूक्तं च पुनर्षोडशमेव च।।
एषते द्वे नमस्ते द्वे नतं विद्द्द्वयमेव च।।
मीढुष्टमेति चत्वारि वय गुंग चाष्टमेव च।।
शतरुद्री समाख्याता सर्वपातकनाशिनी।।
यों शतरुद्री का प्रयोग श्रेष्ठ होने पर भी रुद्राभिषेक में रुद्री का नमकचमकात्मक प्रयोग विशेष रूप से प्रचलित है।
इसमें रुद्राष्टाध्यायी का पहले सात अध्याय तक पाठ करके अष्टम अध्याय में क्रमशः 4,4,4,3,3,3,2,1,1,2 मन्त्रो पर विराम करते हुए पञ्चम अध्याय अर्थात नीलसूक्त के 11 पाठ होते है।
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● 11रुद्रों का एक लघुरुद्र होता है।
● 11 लघुरुद्रों का एक महारुद्र होता है।
● 11 महारुद्रों का एक अतिरुद्र होता है।
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रूद्र प्रयोग Rudra Prayog
● एक रुद्र से बालग्रहों की शान्ति होती है।
● 3 रुद्रों से उपद्रव की शान्ति होती है।
● 5 रुद्रों से ग्रह शान्ति होती है।
● 7 रुद्रों से भय का निवारण होता है।
● 9 रुद्रों से शान्ति एवं वाजपेय फल की प्राप्ति होती है।
● 11 रुद्रों से राजा का वशीकरण होता है।
लघुरुद्र प्रयोग Laghu rudra Prayog
● 1 लघुरुद्र से कामना की पूर्ति होती है।
● 3 लघुरुद्रों से शत्रु भय का नाश होता है।
● 5 लघुरुद्रों से शत्रु और स्त्री का वशीकरण होता है।
● 7 लघुरुद्रों से सुख की प्राप्ति होती है।
● 9 लघुरुद्रों से कुल की वृद्धि एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है।
महरुद्र प्रयोग Maharudra Prayog
● 1 महरुद्र से राजभय का निराकरण, शत्रु का उच्चाटन,दीर्घायु, यश-कीर्ति-चतुर्वर्ग की प्राप्ति होती है।
● 3 महरुद्रों से दुष्कर कार्य भी सुख साध्य हो जाता है।
● 5 महरुद्रों से राज्य प्राप्ति के साधन होते हैं।
● 7 महरुद्रों से सप्तलोक साधन होता है।
● 9 महरुद्रों से मोक्ष पद के मार्ग प्राप्त होते हैं।
अतिरुद्र प्रयोग Atirudra Prayog
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● 3 अतिरुद्रों से संस्कार भूतादि बाधायें दूर होती हैं।
● 5 अतिरुद्रों से ग्रहजन्य फल एवं व्याधि शांत होती है।
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● 9 अतिरुद्रों से सर्वार्थसिद्धि होती है।
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