आपका परिश्रम से कमाया हुआ धन कहीं फँस जाए तथा उसकी
पुनः प्राप्ति की सम्भावना भी दिखाई न पड़े, तो श्रीकार्तवीर्यार्जुन
का मन्त्र प्रयोग अचूक तथा सद्यः फल-दायी होता है ।
श्रीकार्तवीर्यार्जुन
का प्रयोग ‘तन्त्र’-शास्त्र की दृष्टि से बड़े गुप्त बताए जाते हैं । इस प्रयोग से
साधक गत-नष्ट धन को तो प्राप्त कर ही सकता है, साथ ही षट्-कर्म-साधन
यहाँ तक कि प्रत्येक अभिलषित-प्राप्ति में भी सफल हो सकता है ।
पौराणिक
सन्दर्भों के अनुसार भगवान् विष्णु के अमित तेजस्वी ‘सुदर्शन चक्र’ के अवतार – हैहय-वंशी
राजा कार्तवीर्यार्जुन को हजार भुजाएँ होने के कारण ‘सहस्रार्जुन’ भी कहा जाता था ।
साधना-क्रम
१॰
शुद्ध होकर, संकल्प करें - देश-कालौ सङ्कीर्त्य अमुक-कामना सिद्धयर्थं
मम श्रीकार्तवीर्यार्जुन-देवता-प्रीति-पुरस्सरं क्षिप्रममुक-जनस्य बुद्धि-हरण-पूर्वकं
स्व-धन-प्राप्तये मनोऽभिलषित-कार्य-सिद्धये वा दीप-दान-पूर्वकं अमुकामुक-संख्यात्मकं
जप-रुप-प्रयोगमहं करिष्यामि । – इस प्रकार सङ्कल्प करने के बाद श्रीगणेशादि-पूजन करें
।
२॰
गोबर से लेपन कर शुद्ध स्थान (पक्का फर्श हो, तो धोकर पञ्च-गव्य
से प्रोक्षण करें) पर ताँबे का बर्तन रखें तथा उसमें लाल चन्दन अथवा रोली से षट्-कोण
बनाकर, उसके बीच में “ॐ फ्रों” लिखें । फिर उसमें एक ताँबे का
दीप-पात्र (सरसों के तेल, मौली या लाल रंग से रँगी रुई की बत्ती
सहित) निम्न मन्त्र पढ़ते हुए स्थापित करें -
शुद्ध
तैल-दीपमयं, स्थापयामि जगत्पते !
कार्तवीर्य, महा-वीर्य ! कार्यं सिद्धयतु मे हि तत् ।।
३॰
दीप-पात्र के दाहिने भाग में (अर्थात् साधक के बाँई ओर) एक नई छुरी – निम्न मन्त्र
पढ़कर स्थापित करें । छुरी की धार ‘दक्षिण’- दिशा की ओर रहे और उसकी नोक (अग्र-भाग)
साधक की ओर रहे – “ॐ नमः सुदर्शनास्त्राय फट् ।”
४॰
‘दीपक’ का मुख पश्चिम की ओर या साधक की ओर रखें । निम्न मन्त्र से उसे प्रज्जवलित करें
-
“ॐ
कार्तवीर्य नृपाधीश ! योग-ज्वलित-विग्रह !
भव
सन्निहितो देव ! ज्वाला-रुपेण दीपके ।।”
५॰
मन्त्रोच्चार-पूर्वक ‘दीपक’ की ज्योति में प्राण-प्रतिष्ठा करें । यथा – पहले प्राण-प्रतिष्ठा-मन्त्र
का विनियोग पढ़ें -
विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीप्राण-प्रतिष्ठा-मन्त्रस्य अजेश-पद्मजाः ऋषयः, ऋग्-यजुः-सामानि छन्दांसि, प्राण-शक्तिर्देवता,
आं बीजं, ह्रीं शक्तिः, क्रों
कीलकं, श्रीकार्तवीर्यार्जुन-देव-दीपे प्राण-प्रतिष्ठापने विनियोगः
।
‘श्रीकार्तवीर्यार्जुन-दीप-देवतायै
नमः’ से लाल चन्दन एवं पुष्पादि से दीपक की पूजा करें । पूजा करने के बाद निम्न मन्त्र
पढ़कर ‘दीप-समर्पण’ करें -
कार्तवीर्य
महावीर्य ! भक्तानामभयं-कर !
दीपं
गृहाण मद्-दत्तं, कल्याणं कुरु सर्वदा ।।
अनेन
दीप-दानेन, ममाभीष्टं प्रयच्छ च ।
फिर
‘दीपक’ की सन्निधि में निम्न-लिखित मन्त्र ‘प्राण-प्रतिष्ठा-मन्त्र’ का जप करें -
मन्त्रः-
“ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं ॐ क्षं सं हंसः ह्रीं ॐ हंसः ।”
फिर
श्रीकार्तवीर्यार्जुन-मन्त्र का विनियोगादि कर जप करें -
श्रीकार्तवीर्यार्जुन-मन्त्र
का विनियोगः- ॐ अस्य श्रीकार्तवीर्यार्जुन (स्तोत्रस्य) मन्त्रस्य दत्तात्रेय ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीकार्तवीर्यार्जुनो देवता,
फ्रों बीजं, ह्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकं ममाभीष्ट-सिद्धये जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः-
दत्तात्रेय ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे, श्रीकार्तवीर्यार्जुनो देवतायै नमः हृदि, फ्रों बीजाय
नमः गुह्ये, ह्रीं शक्तये नमः पादयो, क्लीं
कीलकाय नमः नाभौ ममाभीष्ट-सिद्धये जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
कर-न्यासः-
ॐ आं फ्रों ब्रीं अंगुष्ठाभ्यां नमः, ॐ ईं क्लीं भ्रूं
तर्जनीभ्यां नमः, ॐ हुं आं ह्रीं मध्यमाभ्यां नमः, ॐ क्रैं क्रौं श्रीं अनामिकाभ्यां नमः, ॐ हुं फट् कनिष्ठिकाभ्यां
नमः, ॐ कार्तवीर्यार्जुनाय कर-तल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः ।
हृदयादि-न्यासः-
ॐ आं फ्रों ब्रीं हृदयाय नमः, ॐ ईं क्लीं भ्रूं शिरसे स्वाहा,
ॐ हुं आं ह्रीं शिखायै वषट्, ॐ क्रैं क्रौं श्रीं
कवचाय हुम्, ॐ हुं फट् अस्त्राय फट्, ॐ
कार्तवीर्यार्जुनाय नमः सर्वाङ्गे ।
टिप्पणी
– नेत्रों का ‘न्यास’ नहीं होगा अर्थात् षडङ्ग के स्थान पर ‘पञ्चाङ्ग-न्यास’ का ही
विधान है ।
मन्त्र-न्यासः-
ॐ फ्रों ॐ हृदये । ॐ ब्रीं ॐ जठरे । ॐ क्लीं ॐ नाभौ । ॐ भ्रूं ॐ जठरे । ॐ आं ॐ गुह्ये
। ॐ ह्रीं ॐ दक्ष-चरणे । ॐ क्रों ॐ वाम-चरणे । ॐ श्रीं ॐ ऊर्वोः । ॐ हुं ॐ जानुनो ।
ॐ फट् ॐ जङ्घयोः । ॐ कां मस्तके । ॐ तं ललाटे । ॐ वीं भ्रुवोः । ॐ यां कर्णयो । ॐ जुं
नेत्रयोः । ॐ नां नासिकायां । ॐ यं मुखे । ॐ नं गले । ॐ मः स्कन्धयोः ।
व्यापक-न्यासः-
मूल-मन्त्र से सर्वाङ्ग-न्यास करें ।
ध्यानः-
उद्यत्-सूर्य-सहस्र्कान्तिरखिल-क्षोणी-धवैर्वन्दितः
।
हस्तानां
शत-पञ्चकेन च दधच्चापानिषूंस्तावता ।।
कण्ठे
हाटक-मालया परिवृतश्चक्रावतारो हरेः ।
पायात्
स्यन्दनगोऽरुणाभ-वसनाः श्रीकार्तवीर्यो नृपः ।।
मूल-मन्त्रः-
“ॐ
फ्रों ब्रीं क्लीं भ्रुं आं ह्रीं क्रों श्रीं हुं फट् कार्तवीर्यार्जुनाय नमः ।”
जप-संख्या
एवं हवनादि – एक लाख । तद्दशांश हवन, तर्पण, मार्जन या अभिषेक, ब्राह्मण-भोजन ।
हवन-सामग्री-
चावल, खीर तथा तिल-मिश्रित घृत ।
कामना-भेद
से हवन-सामग्री - सरसों-रीठा-लहसुन-कपास –मारण । धतूरा या गोरोचन-गोबर –स्तम्भन । नीम-पत्र
–विद्वेषण । कमल या कमल-बीज –आकर्षण । हल्दी या चम्पा-चमेली –वशीकरण । बहेड़ा व खैर-समिधा
–उच्चाटन । कस्तूरी-गोरोचन –घर से भागे व्यक्ति की वापसी । कमल-मक्खन-कस्तूरी –गत धन
की प्राप्ति । यव (जौ) –लक्ष्मी-प्राप्ति । तिल-घी –पाप-नाश । तिल-चावल-साँवक-लाजा
–राज-वशीकरण । अपामार्ग-आक-दूर्वा –पाप-नाश व लक्ष्मी-प्राप्ति । गुग्गुल –प्रेत-शान्ति
। पीपल-गूलर-पाकड़-बड़-बेल-समिधा –क्रमशः सन्तान, आयु,
धन, सुख, शान्ति । साँप की
केँचुली-धतूरा-पीली सरसों-नमक –चोर-नाश । धान –भूमि-प्राप्ति ।
टिप्पणी
– सामान्य रुप से किसी भी काम्य कर्म की सफलता के लिए, जितनी संख्या ‘जप’ की होगी, उसका दशांश ‘हवन’ होगा,
परन्तु जब कार्य-समस्या जटिल हो या सद्यः फल-प्राप्ति की इच्छा हो,
तो हवन-संख्या एक सहस्र से दस सहस्र तक ।
कामना-भेद
से जप-संख्याः- बन्दी-मोक्ष- १२०००, वाद-विवाद (मुकदमे
में) जय- १५०००, दबे या नष्ट-धन की पुनः प्राप्ति- १३०००,
वाणी-स्तम्भन-मुख-मुद्रण- १००००, राज-वशीकरण- १००००,
शत्रु-पराजय- १००००, नपुंसकता-नाश/पुनः पुरुषत्व-प्राप्ति-
१७०००, भूत-प्रेत-बाधा-नाश- ३७०००, सर्व-सिद्धि-
५१०००, सम्पूर्ण साफल्य हेतु- १२५००० ।
प्रत्येक
प्रयोग में “दीप-दान” परमावश्यक है ।
हवन
के पश्चात् ‘तर्पण’ करना होता है । वैसे तो तर्पण हवन का दशांश होता है, किन्तु कार्य की आवश्यकतानुसार हवन के अनुसार ही तर्पण भी एक हजार से दस हजार
तक किया जा सकता है । कामना-भेद से तर्पणीय जल में हवन-सम्बन्धी सामग्री को आंशिक रुप
में मिश्रित कर सकते हैं ।
तर्पण-विधिः-
ताम्र-पात्र में कार्तवीर्यार्जुन-यन्त्र या ‘फ्रों’ बीज लिखें । उसी पात्र में निम्न
मन्त्र से तर्पण करें – “ॐ फ्रों ब्रीं क्लीं भ्रुं आं ह्रीं क्रों श्रीं हुं फट् कार्तवीर्यार्जुनाय
नमः कार्तवीर्यार्जुनं तर्पयामि नमः ।”
अभिषेक-विधिः-
‘अभिषेक’ के सम्बन्ध में दो मत हैं – (१) देवता का मार्जन तथा (२) यजमान का मार्जन
। दोनों के मन्त्र निम्न प्रकार हैं - (१) “ॐ फ्रों ब्रीं क्लीं भ्रुं आं ह्रीं क्रों
श्रीं हुं फट् कार्तवीर्यार्जुनाय नमः कार्तवीर्यार्जुनं अभिषिञ्चामि ।” (२) “ॐ फ्रों
ब्रीं क्लीं भ्रुं आं ह्रीं क्रों श्रीं हुं फट् कार्तवीर्यार्जुनाय नमः आत्मानं अमुकं
वा अभिषिञ्चामि ।”
‘कार्तवीर्यार्जुन-मन्त्र-प्रयोग’
में यजमान के मार्जन/अभिषेक की एक विशिष्ट विधि निम्न प्रकार है – शुद्ध भूमि पर गोबर/पञ्च-गव्य
का लेपन/प्रोक्षण करें । उस पर अष्ट-गन्ध या लाल चन्दन से कार्तवीर्यार्जुन-यन्त्र
बनावें । उस यन्त्र पर विधि-पूर्वक कलश स्थापित करें । कलश में कार्तवीर्यार्जुन का
आवाहन कर यथा-विधि पूजन करें । पूर्वोक्त विधि के अनुसार दीपक जलावें । बाँएँ हाथ से
कुम्भ को स्पर्श करते हुए मूल-मन्त्र की दस माला जप करें । इस अभिमन्त्रित जल से स्वयं
तथा स्व-जनों का अभिषेक करें ।
ऐसा
करने से पुत्र, यश, आयु,
स्व-जन-प्रेम, वाक-सिद्धि, गृहस्थ-सुख की प्राप्ति होती है तथा जटिल रोगों से मुक्ति मिलती है । मारण/कृत्यादि
अभिचार-कर्म से प्रभावित तथा पीड़ित व्यक्ति को उस प्रभाव से मुक्ति मिलती है ।
श्रीकार्तवीर्यार्जुन-मन्त्र
के जपानुष्ठान में आसन आदि लाल रंग के होते हैं । शङ्ख की माला सर्वोत्तम, रक्त-चन्दन की मध्यम तथा अन्य मालाएँ भी ठीक मानी गई है । अनुष्ठान की सफलता
हेतु मूल-मन्त्र के आवश्यक जप के साथ दस गायत्री जप आवश्यक बतलाया गया है । कुछ विद्वानों
का मत है कि जिस देवता के मन्त्र का जप किया जाए, उसी देवता की
‘गायत्री’ का ही जप होना चाहिए । अस्तु “श्रीकार्तवीर्यार्जुन-गायत्री” इस प्रकार है
-
“ॐ
कार्तवीर्याय विद्महे महा-वीर्याय धीमहि तन्नोऽर्जुनः प्रचोदयात् ।”
10 comments:
जी हाँ केवल मन्त्र का भी प्रयोग किया जा सकता है।
कोई बालक खो गया हो या किसी ने उसे कैद कर लिया हो तो वह मिल सकता है जी.....मार्गदर्शन करें...
जी हाँ यदि बालक खो गया है या चला गया है तो पुनः आ सकता है,किन्तु यदि किसी ने उसे कैद कर लिया है तो बन्दी मोचन प्रयोग भी किया जाता है
मोबाइल खो चुका है,,, क्या वह मिल सकता है मार्गदर्शन करें
खोई हुई वस्तु का ज्ञान Lost knowledge
https://vedicvidha.blogspot.com/2016/08/blog-post.html?m=1
Kya female is mantra (o jap sakti hai.
Ji ha,shuddh awastha me koi bhi is mantra ko jap sakta hai
सहस्त्रार्जुन भगवान के बारे में और जानकारियां चाहियें, कैसे मिलसकती हैं।
विस्तार से बताएं
Paisa koi louta nhi rha.. isme konsa mantra padhna chahiye? Sirf mantra k path se ho jaega karya?
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