श्री
कार्तवीर्यार्जुन दर्पण-प्रयोग
घर
से भागे हुए व्यक्ति के बारे में यदि पता न चल रहा हो, तब उसकी स्थिति व परिस्थिति जानने के लिए यह प्रयोग किया जा सकता है । वैसे
तो इस प्रयोग के द्वारा चोरी गई वस्तुओ तथा उनके चोरों का भी ज्ञान पाया जा सकता है,
परन्तु क्योंकि प्रयोग मँहगा तथा श्रम-साध्य है, अतः अत्यन्त जटिल परिस्थिति में ही, जब और कोई उपाय काम
न आए, तभी इस ‘दर्पण-प्रयोग’ को करना चाहिए ।
१॰
शुभ मुहूर्त में, शुद्ध स्थानम में, शुद्ध होकर बैठ जाएँ | विधि-पूर्वक इच्छित कार्य की सफलता हेतु सङ्कल्प
एवं श्रीगणपत्यादि पूजन करें ।
२॰
साधक मध्य-भाग में बैठे । अपने सामने काँसे / ताँबे की थाली / कटोरे में तैल भर कर
रखे । दूसरा सहायक व्यक्ति, साधक के चारों तरफ गोल घेरे की आकृति
में, एक हजार मिट्टी के बने ‘दीपक’, इस
प्रकार रखे कि सभी दीपकों के मुख साधक की तरफ रहें । साधक का स्वयं का मुख,
‘उत्तर-दिशा’ की तरफ होगा तथा उसके दाहिने हाथ ‘प्रधान-दीपक’ रहेगा
– ताकि ‘प्रधान-दीपक’ का मुख ‘पश्चिम’ की ओर रहे ।
३॰
साधक के वस्त्र, सहायक के वस्त्र, पूजा-सामग्री – सभी लाल होनी चाहिए । लाल चन्दन या गहरे लाल मूँगे की माला,
सरसों के तेल में रोली मिली बत्तियों की रुई या तो लाल रँगी या मोली-निर्मित
होनी चाहिए । कमरे की दीवार या परदे लाल रंग के हो, तो अच्छा
रहेगा । ‘दीपक’ मिट्टी के तथा लाल रंग के अतिरिक्त अन्य किसी रंग का दाग / धब्बा नहीं
होना चाहिए । दीपकों को दूर-दूर रखें ताकि यदि किसी दीपक में तेल कम हो जाए,
तो उसमें तेल डालने कि लिए या बत्ती ऊँची करने के लिए सहयोगी व्यक्ति
के आने-जाने के लिए पर्याप्त स्थान रहे । बत्तियाँ बड़ी प्रयोग करे, क्योंकि दूसरी बत्ती प्रयोग नहीं की जा सकती है ।
४॰
सभी ‘दीपक’ जलाकर निम्न मन्त्र का दस सहस्र जप करें -
“ॐ
नमो भगवते श्रीकार्तवीर्यार्जुनाय सर्व-दुष्टान्तकाय तपोबल-पराक्रम-परिपालित-सप्त-द्वीपाय, सर्व-राजन्य-चूडामणये, सर्व-शक्ति-मते, सहस्र-बाहवे हुं फट् (मम) अभिलषितं दर्शय-दर्शय स्वाहा ।”
५॰
जब तक दस सहस्र जप पूरे न हो जाए, तब तक ‘आसन’ से उठें नहीं ।
न कोई दीपक बुझने दें । मन व सभी इन्द्रियाँ ‘जप-काल′
में एकाग्र रखें ।
विशेषः-
१॰
यदि भागे हुए व्यक्ति का चित्र ‘प्रयोग’ स्थान पर रख सकें, तो अच्छा रहेगा ।
२॰
यदि साधक को लगे कि ‘मन्त्र’ बड़ा है तथा एकासन पर पूरा जप सम्भव नहीं है, तो सहयोगी रखे जा सकते हैं । सहयोगी एक या कई हो, परन्तु
सच्चरित्र व शुद्ध उच्चारण करने वाले होने चाहिए । सहयोगियों के वस्त्रादि का विधान
साधक की तरह ही रहेगा ।
३॰
‘जप’ पूरा होने पर, अभिलषित व्यक्ति की हालत व स्थान आदि
सामने रखे हुए तैल में प्रत्यक्ष चित्र के समान स्पष्ट हो जाते हैं ।
४॰
प्रयोग को दिग्-दर्शन मानें, केवल पढ़ कर उपयोग में न लें,
किसी विद्वान के मार्ग-दर्शन में ही उपयोग करें ।
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