भगवान कृष्ण की याद आते ही हाथ में वंशी और मोर-मुकुट आँखों में बस जाते हैं :
कान्हा की असली पहचान उनके प्रतीकों में छिपी हुई है..........
मुरली के बिना कृष्ण की कल्पना नहीं की जा सकती है,इसी तरह मोर-मुकुट,गायेंमाखनऔर दूध से बने खाद्यों के प्रति उनका लगाव,नृत्य और रास उनके व्यक्तित्व से अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं;इन्ही प्रतीकों के कारण उनका स्वरुप उभर कार आतता है.आइये उनके सौंदर्य औरर मर्म पर थोड़ा विचार करें.
मुरली
अत्यंत सहज, इसे बनाने में किसी तकनीक की आवश्यकता नही पड़ती है इसमें कोई गांठ नहीं होती,एक बार गोपियों ने बांसुरी से कहा,'हे बांसुरी! तुमने ऐसी कौन सी तपस्या की है,जो तुम कृष्ण के होठों पर सहज ही स्थान पाती हो.
वंशी ने कहा,'हे गोपिकाओं!मैंने अपना तन कटवाया,अंग-अंग छिदवाया.
मैंने अपने आपको इस तरह स्थिर किया कि श्री कृष्ण ने जो तान छेड़नी चाही,मैंने उसे ही अपनाया.
मोरपंख
मोरमुकुट धारण करने के पीछे अनेक कथाएं प्रचिलित हैं;
जैसे कि नृत्य-क्रिया में मोर की आँखों से आँसू गिरने लगते है,इन आंसुओं से मोरनी को गर्भ धारण होता है;
इस प्रक्रिया में अंशमात्र भी वासना का भाव नहीं होता;मोर को चिर-ब्रह्मचर्य युक्त प्राणी समझा जाता है,अतः प्रेम में ब्रह्यचर्य की महान भावना को समाहित करने के प्रतीक के रूप में कृष्ण मोरपंख धारण करते है;
इसका गहरा रंग दुःख और कठिनाइयाँ,हल्का रंग सुख, शान्ति और समृद्धि का प्रतीक मना जाता है;
इस प्रकार श्री कृष्ण ने विरोधाभासों को स्वयं में सम्मिलित कर उच्चतर जीवन मूल्य की अवधारणा स्थापित की है
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