Sunday, August 7, 2022

शिवोपासना या रुद्राभिषेक shivopasana rudrabhishek

 शिवोपासना या रुद्राभिषेक




शिव की उपासना के लिए कहा गया है

"जगतः पितरौवन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ"

शिव शब्द स्वयं कल्याण वाचक है।यह शिवशक्ति दोनों का उद्बोधक भी है।शिव उच्चारण करने मात्र से विश्व के उत्पादक-पालक एवं संहारक प्रकृति पुरुषात्मक ब्रह्म का स्मरण हो जाता है।

भगवान शिव तो विश्वरूप है उनका ना कोई स्वरूप है ना कोई चिन्ह है ऐसी अवस्था में उनका पूजन कहां और कैसे किया जाए? क्योंकि पृथ्वी जल वायु तेज आकाश सूर्य चन्द्रमा आत्मा आदि सभी में शिव तत्व विद्यमान है।

चिन्तन करने पर यह समझ में आता है कि सभी में एक गोलाकृति का गुण समान रूप से विद्यमान है। अतएव उसी आकृति को चिन्ह मानकर कर उसे शिवलिंग कह कर उसकी उपासना आरम्भ हो गयी। क्योंकि शिव ने सर्वप्रथम ब्रह्मा और विष्णु दोनों को इसी रूप में दर्शन कराया था।

इसलिए संसार में लिङ्गोपासना के विविध विधान बताए गए हैं। चारों वेदों में यजुर्वेद यजन का प्रतीक है। इसी से प्रायः सभी वैदिक उपासनाएँ संपन्न होती हैं।

वैदिक-विधान में प्रायः रुद्राष्टाध्यायी का ही प्रयोग प्रचिलित है।इसका पाठ कई प्रकार से करते हुए भक्तजन शिवोपासना करते हैं।

वे अवघड़दानी महेश्वर एक ॐ के उच्चारण मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं फिर वेद स्तुति करने वालों को क्या फल देंगे।अर्थात् उनकी सभी मनोकामनाओं को सहज ही पूर्ण कर देते हैं।

सर्वदोष नाश और मनोकामना पूर्ति  के लिये रुद्राभिषेक विधान

वेदों में कहा गया है कि शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही रुद्र कहा जाता है। क्योंकि- रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं।

हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ विधान माना गया है। रूद्र शिव जी का ही एक स्वरूप हैं। रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी किया गया है। शास्त्र और वेदों में वर्णित हैं की शिव जी का अभिषेक करना परम कल्याणकारी है।

शिव के मस्तक पर किए किया जाने वाला घटाभिषेक अग्नि द्वारा सोमपान का ही रूपक है प्रत्येक शरीर के भीतर प्रकृति की ओर से यह अभिषेक हो रहा है जब तक यह अभिषेक चल रहा है तब तक शिवत्व है। जहां यह बंद हुआ तभी शिव यम हो जाता है और संहारक बन जाता है।

शिवार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पातक-से पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।

रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि- सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं।

वैसे तो रुद्राभिषेक किसी भी दिन किया जा सकता है परन्तु त्रयोदशी तिथि,प्रदोष काल और सोमवार को रुद्राभिषेक करना परम कल्याणकारी है। श्रावण मास में किसी भी दिन किया गया रुद्राभिषेक अद्भुत व शीघ्र फल प्रदान करने वाला होता है।

रुद्राभिषेक क्या है ?

अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है – स्नान करना अथवा कराना। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान रुद्ररूप शिव को कराया जाता है।

वर्तमान समय में अभिषेक रुद्राभिषेक के रुप में ही विश्रुत है। अभिषेक के कई रूप तथा प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसन्न करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है रुद्राभिषेक। वैसे भी अपनी जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधाराप्रिय कहा गया है।

रुद्राभिषेक क्यों किया जाता हैं?

रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रूद्र हैं और रुद्र ही शिव है। रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे सभी दु:खों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं। वस्तुतः जो दुःख हम भोगते है उसका कारण हम सब स्वयं ही है हमारे द्वारा जाने अनजाने में किये गए प्रकृति विरुद्ध आचरण के परिणाम स्वरूप ही हम दुःख भोगते हैं।

रुद्राभिषेक का आरम्भ कैसे हुआ ?

प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी जब अपने जन्म का कारण जानने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो उन्होंने ब्रह्मा की उत्पत्ति का रहस्य बताया और यह भी कहा कि मेरे कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है।

परन्तु ब्रह्माजी यह मानने के लिए तैयार नहीं हुए और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध से नाराज भगवान रुद्र लिंग रूप में प्रकट हुए। इस लिंग का आदि अन्त जब ब्रह्मा और विष्णु को कहीं पता नहीं चला तो हार मान लिया और लिंग का अभिषेक किया, जिससे भगवान प्रसन्न हुए। कहा जाता है कि यहीं से रुद्राभिषेक का आरम्भ हुआ।

जो मनुष्य शीघ्र ही अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है वह विविध द्रव्यों से विविध फल की प्राप्ति हेतु अभिषेक करता है। जो मनुष्य शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करता है उसे शीघ्र ही मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है अर्थात यदि कोई पशु/वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए।

यदि कोई रोग दुःख आदि व्याधियों से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे कुशा के जल से अभिषेक करना या कराना चाहिए।

रुद्राभिषेक पाठ एवं उसके भेद

शास्त्रों और पुराणों में पूजन के कई प्रकार बताये गए है लेकिन जब हम शिव लिंग स्वरुप महादेव का अभिषेक करते है तो उस जैसा पुण्य अश्वमेघ जैसे यज्ञों से भी प्राप्त नही होता  है।

स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करते हैं । संसार में ऐसी कोई वस्तु , कोई भी वैभव , कोई भी सुख , ऐसी कोई भी वास्तु या पदार्थ नही है जो हमें अभिषेक से प्राप्त न हो सके! वैसे तो अभिषेक कई प्रकार से बताये गये है ।यथा-

(1) रूपक या षडंग पाठ - रूद्र के छः अंग कहे गये है इन छह अंग का यथा विधि पाठ षडंग पाठ कहा गया है ।

इस प्रकार - सम्पूर्ण रुद्राष्टाध्यायी के दस अध्यायों का पाठ रूपक या षडंग कहलाता है ।

(2) रुद्र या एकादिशिनि - रुद्राध्याय की ग्यारह आवृति को रुद्र या एकादिशिनी कहते है रुद्रो की संख्या ग्यारह होने के कारण ग्यारह अनुवाद में विभक्त किया गया है।यह नमक-चमक के नाम से भी प्रसिद्ध है।

(3) लघुरुद्र- एकादिशिनी  की ग्यारह आवृतियों के पाठ को लघुरुद्र कहा गया है।यह लघु रूद्र अनुष्ठान एक दिन में ग्यारह ब्राह्मणों का वरण करके एक साथ संपन्न किया जा सकता है । तथा एक ब्राह्मण द्वारा अथवा स्वयं ग्यारह दिनों तक एक एकादिशिनी पाठ नित्य करने पर भी लघु रूद्र संपन्न होता है।

(4) महारुद्र -- लघु रूद्र की ग्यारह आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री का 121 आवृति पाठ होने पर महारुद्र अनुष्ठान होता है । यह पाठ ग्यारह ब्राह्मणों द्वारा 11 दिन तक कराया जाता है ।

(5) अतिरुद्र - महारुद्र की 11 आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री का 1331 आवृति पाठ होने से अतिरुद्र अनुष्ठान संपन्न होता है ये (1)अनुष्ठानात्मक 

(2) अभिषेकात्मक 

(3) हवनात्मक , तीनो प्रकार से किये जा सकते है शास्त्रों में इन अनुष्ठानो का अत्यधिक महत्व और पुण्य लाभ बताया गया है।

रुद्राभिषेक से लाभ

शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है उसका सविस्तार विवरण प्रस्तुत कर रहा हू और आप से अनुरोध है की आप इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक कराये तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा।

रुद्राभिषेक अनेक पदार्थों से किया जाता है और हर पदार्थ से किया गया रुद्राभिषेक अलग फल देने में सक्षम है जो की इस प्रकार से बताया गया है-

◆जल से रुद्राभिषेक करने पर वृष्टि होती है।

◆कुशा जल से अभिषेक करने पर रोग, दुःख आदि व्याधियों का निवारण होता है।

◆दही से अभिषेक करने पर पशु,भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है।

◆गन्ने के रस से अभिषेक  करने पर लक्ष्मी प्राप्ति होती है।

◆मधु युक्त जल से अभिषेक करने पर धन वृद्धि के लिए। 

◆तीर्थ जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

◆इत्र मिले जल से अभिषेक करने से रोग नष्ट होते हैं ।

◆दुग्ध से अभिषेक करने से पुत्र प्राप्ति,प्रमेह रोग की शान्ति तथा  मनोकामनाएं  पूर्ण होती है।

◆गंगाजल से अभिषेक करने से ज्वर ठीक हो जाता है।

◆दुग्ध शर्करा मिश्रित अभिषेक करने से सद्बुद्धि की प्राप्ति होती है।

◆घी से अभिषेक करने से वंश का विस्तार होता है।

◆सरसों के तेल से अभिषेक करने से रोग तथा शत्रु का नाश होता है।

◆शुद्ध शहद रुद्राभिषेक करने से पाप क्षय अर्थात् पापों का निवारण होता है।तथा कोष की प्राप्ति होती है।

नाना प्रकार के शिवलिंग का पूजन-

शिवजी को अनन्त मानते हुए उनका पूजन विभिन्न वस्तुओं एवं नाना प्रकार के लिगों पर होता है।

◆चांदी के लिंग का पूजन करने से पितरों की मुक्ति होती है। ◆स्वर्ण लिंग से वैभव एवं सत्य लोक की प्राप्ति होती है।

◆ताम्र एवं पीतल के लिंग से पुष्टि एवं कांसे के लिंग से सुंदर यश की प्राप्ति होती है।लौह लिंग से मारण सिद्धि होती है। ◆स्तंभन के लिए हल्दी का लिंग, आयु-आरोग्यता के लिए शीशे के लिंग का पूजन करना शुभ फलदायी होता है। 

◆रत्न लिंग श्रीप्रद होता है।

◆गोमय से निर्मित लिंग का स्वयं पूजन करने से अतुल ऐश्वर्य प्राप्त होता है, किंतु दूसरे के लिए करने पर मारक होता है। इसी प्रकार से और भी अनेक अनेक प्रकार के लिंगो का वर्णन मिलता है। इनका अर्चन विभिन्न कामनाओं के लिए किया जाता है। इस पर भी पार्थिवेश्वर का पूजन सर्वप्रचिलित एवं शुगम बताया गया है इससे चतुर्वर्ग की प्राप्ति होती है।

इस प्रकार शिव के रूद्र रूप के पूज अभिषेक करने से जाने-अनजाने होने वाले पापाचरण से भक्तों को शीघ्र ही छुटकारा मिल जाता है और साधक में शिवत्व का उदय हो जाता है उसके बाद शिव के शुभाशीर्वाद से समृद्धि, धन-धान्य, विद्या और संतान की प्राप्ति होती है।

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