Sunday, October 24, 2021

दीपावली पर्व Deepawali Parva

 दीपावली पर्व Deepawali Parva



दीपावली  (व्रतोत्सव) के अनुसार लोक प्रसिद्धि में प्रज्ज्वलित दीपकों की पंक्ति लगा देने से "दीपावली" और स्थान-स्थान में मण्डल बना देने से "दीपमालिका" बनती है,अतः इस रूप में यह दोनों नाम सार्थक हो जाते हैं।इस प्रकार की दीपावली या दीपमालिका संपन्न करने से  'कार्तिके मास्यमावास्या तस्यां दीप प्रदीपनम्।शालायां ब्राह्मण: कुर्यात् स गच्छेत् परमं पदम्।।'के अनुसार परमपद प्राप्त होता है।  ब्रह्मपुराण में लिखा है कि कार्तिक की  अमावस्या को अर्धरात्रि के समय  माता लक्ष्मी सद्गृहस्थों के मकानों/ भवनों में जहांँ-तहांँ विचरण करती हैं।  इसलिए अपने मकानों को सब प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुशोभित करके दीपावली अथवा दीपमालिका बनाने से लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और उनमें स्थाईरूप से निवास करती हैं। इसके अलावा वर्षा काल के किए हुए दुष्कर्म ( जाले, मकड़ी, धूल-धमासे और दुर्गंध आदि) दूर करने के हेतु से भी कार्तिक की अमावस्या को दीपावली लगाना हितकारी होता है। यह अमावस्या प्रदोष काल से अर्ध रात्रि तक रहने वाली श्रेष्ठ होती है। यदि वह अर्धरात्रि तक ना रहे तो प्रदोष व्यापिनी लेना चाहिए।

लक्ष्मी पूजन- कार्तिक कृष्ण अमावस्या अर्थात् दीपावली के दिन प्रातः स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर "मम सर्वापच्छान्ति पूर्वक दीर्घायुष्य बलपुष्टि नैरुज्यादि सकलशुभ फल प्राप्त्यर्थं गज तुरग रथ राज्य ऐश्वर्य आदि सकल सम्पदामुत्तरोत्तराभि वृध्यर्थम् इन्द्र कुबेर सहित श्रीलक्ष्मी पूजनं करिष्ये।"
यह संकल्प करके दिन भर व्रत रखें और सायंकाल के समय पुनः स्नान करके पूर्वोक्त प्रकार की "दीपावली", "दीपमालिका" और "दीपवृक्ष" आदि बनाकर कोषागार अर्थात खजाने में या किसी भी शुद्ध, सुंदर,सुशोभित और शांतिवर्धक स्थान में वेदी बनाकर या चौकी-पाटे आदि पर अक्षतादि से अष्टदल लिखें और उस पर लक्ष्मी का स्थापन करके 'लक्ष्म्यै नमः' 'इन्द्राय नमः' और 'कुबेराय नमः' इन नामों से तीनों का पृथक-पृथक (या एकत्र) यथाविधि पूजन करके 'नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रियाया गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्वदर्चनात् से माता लक्ष्मी की और 'ऐरावत समारूढो वज्रहस्तो महाबलःशतयज्ञाधिपो देवस्तस्मा इन्द्राय ते नमः'से इन्द्र की और 'धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादिसम्पद:'से कुबेर की प्रार्थना करें। पूजन सामग्री में अनेक प्रकार की उत्तमोत्तम मिठाई उत्तमोत्तम फल पुष्प और सुगंधपूर्ण धूप-दीपादि लें और ब्रम्हचर्य से रहकर उपवास अथवा नक्त व्रत करें।
हमारे देश भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् (हे भगवन!) मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाइए
मान्यता है कि दीपावली के दिन भगवान राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे।अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने देशी घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस की वह रात्रि दीपों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक हम सब प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं।

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